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मसीहा की महोब्बत का

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मसीहा की महोब्बत का, करे कैसे बयान कोई किसी के वास्ते देता है अपनी जान कहाँ कोई । 1. भरे जो दिल के जख्मों को बने जो प्यार का मरहम (2) वो दरिया प्यार का तू मिले तुमसा कहाँ कोई । 2. मेरी राहों के सब काँटे उठा ले अपनी पलकों पे (2) नहीं इस दौर करता प्यार कोई अब यहाँ कोई । 3. महोब्बत जो नहीं करता नहीं है वो मसीहा का (2) रहे चाहे सौ बार दुश्मन दुश्मनी करता कोई ।