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कितना मधुरतम है

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कितना मधुरतम है प्रभु तेरे आँगन में वास करना, कितना मधुरतम है, सेनाओं के यहोवा तेरा निवास स्थान क्या ही प्रिय है। 1. आँगन में तेरे वास करना मैं निरन्तर चाहता रहूँ, मन और तन से ईश्वर को, निरन्तर पुकारता रहूँ । 2. परमेश्वर का मैं तो मन्दिर हूँ और इसलिये आनन्दित हूँ, स्तुति रूपी बलिदान मसीह के द्वारा निरन्तर चढ़ाता रहूँ । 3. तेरा निवास स्थान प्यारे परमेश्वर कितना मधुरतम है, वचन को तेरे जो मधुर है निरन्तर परखता रहूँ ।