413
यात्री हूँ मैं जग में प्रभु जी
Content not prepared yet or Work in Progress.
Content not prepared yet or Work in Progress.
यात्री हूँ मैं जग में प्रभु जी, चलता हूँ मार्ग मैं तेरा, वो निशान तू है यीशु जी बंदरगाह तू मेरा। 1. सोचा था मैंने ये जग मेरा, खेत कुटुम्ब सब है प्यारा, धोखा सब कोई न सहारा व्यर्थ ही व्यर्थ है सारा । 2. धन दौलत सब मान और इज्जत यही रहेगी जल जाएगी, यह जगत पाप से है भरा श्राप ही श्राप है सारा। 3. ऐसा कर प्रभु अंत मैं जानू और जानू मेरी आयु के दिन को, अब बता कैसा अनित्य हूँ, खेदित हूँ मैं पूरा। 4. जान गया मैं उस दिन प्रभु जी बदला जीवन लहू से मेरा, बड़ा आनंद तूने कहा था पाप क्षमा हुआ तेरा। 5. इस जग में अब मैं हूँ मुसाफिर क्रूस उठाकर चलता रहूँगा, पाया मैं ने अनमोल धन को जो है यीशु से भरा। 6. आँख जब मेरी बंद हो जाए यात्रा मेरी पूरी हो जाए, पहुँचूँ मैं स्वर्गीय वतन में यह गीत है अब मेरा।