342
तुम जगत की ज्योति हो
Song audio
Content not prepared yet or Work in Progress.
Instrumental audio
Content not prepared yet or Work in Progress.
तुम जगत की ज्योति हो, तुम धरा के नमक भी हो। 1. तुमको पैदा इसलिए किया तुमको जीवन इसलिये मिला, उसकी मर्जी कर सको सदा । 2. वह नगर जो बसे शिखर पर, छिपता ही नहीं किसी की नज़र तुम्हारे भले काम चमके इस तरह। 3. पड़ोसी से प्रेम तुमने सुना है, दुश्मनों से प्रेम मेरा कहना है, तभी तुम सन्तान परमेश्वर समान। 4. आँख के बदले आँख बुराई का सामना है, फेरो दुसरा गाल सहलो सब अन्याय, ऐसा जीवन ही पिता को भाता है।