पाठ 16 : दानिय्येल 4

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सारांश

दानिय्येल ने राजा को वह स्वप्न बता दिया जो राजा ने देखा था परन्तु भूल गया था। पिफर दानिय्येल ने उस स्वप्न का अर्थ राजा नबूकदनेस्सर को यों बताया कि ‘‘यह सोने का सिर तू ही है। तेरे बाद एक राज्य और उदय होगा जो तुझ से छोटा होगा। पिफर एक और तीसरा, पीतल का सा राज्य होगा जिसमें सारी पृथ्वी आ जाएगी। चैथा राज्य लोहे के तुल्य मजबूत होगा। लोहे से तो सब वस्तुएँ चूर-चूर हो जाती और पिस जाती हैं। अतः चैथे राज्य से सब कुछ चूर-चूर होकर पिस जाएगा। अंत में पाँव जो कुछ मिट्टी और कुछ लोहे का था, उसी प्रकार वह राज्य बँटा हुआ होगा। वह राज्य कुछ तो दृढ़ और कुछ निर्बल होगा। उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन् वह सब राज्यों को चूर-चूर करेगा और उनका अन्त कर डालेगा और वह सदा स्थिर रहेगा। यह वह पत्थर है जो हाथ के बिना खोदे पहाड़ में से उखड़ा और उसने लोहे, पीतल, मिट्टी, चाँदी और सोने को चूर-चूर किया।’’ ;दानि. 2:38इ-45। इतना सुनकर राजा ने मुँह के बल गिरकर दानिय्येल को दण्डवत् किया और राजा ने दानिय्येल से कहा, ‘‘सच तो यह है कि तुम लोगों का परमेश्वर, सब ईश्वरों का ईश्वर, राजाओं का राजा और भेदों का खोलने वाला है।’’ तब राजा ने दानिय्येल और उसके साथियों का पद बड़ा किया।राजा के इस स्वप्न में हम संसार के राष्ट्रों की तस्वीर देख सकते हैं। यह यहूदियों पर शासन करने वाले चार अन्यजाति शक्तियों का प्रतिनिध्त्वि करते हैं। सोने का सिर बेबीलोन के राज्य का प्रतीक है जो स्वयं नबूकदनेस्सर है। चाँदी से बनी छाती और बाजुएँ मादी-पफारसी राज्य का प्रतीक हैं। पेट और जाँघें जो पीतल की थीं वह यूनानी साम्राज्य का प्रतीक हैं। लोहे और मिट्टी से मिले-जुले बने हुए पैर रोमी राज्य का प्रतीक हैं, जो बाद में पूरबी और पश्चिमी राज्य में विभाजित हो गया। हम इस विशाल मूर्ति की कुछ विशेषताएँ देख सकते हैं -

  1. आकार और सौंदर्य: इसकी विशालता और भव्यता संसार के राष्ट्रों की सामथ्र्य और महानता का प्रतीक है। उन साम्राज्यों के द्वारा बनाई गई सभ्यता भव्य है।
  2. कमशोर निर्माण: ऊपरी हिस्सा भारी था परन्तु निचला भाग कमशोर था, क्योंकि लोहा और मिट्टी आपस में जुड़ नहीं सकते। यह साम्राज्यों की अस्थिरता को दर्शाता है और इस बात का प्रतीक है कि वह किसी भी समय चूर-चूर हो सकता है।
  3. सभी वस्तुएँ पृथ्वी के नीचे की थीं: इसके निर्माण में लगी सभी वस्तुएँ पृथ्वी के नीचे से खोद कर निकाली जाने वाली हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि इस पृथ्वी के राष्ट्र भी ‘‘सांसारिक’’ ही हैं। उनमें ‘‘स्वर्गीय’’ जैसी कोई बात पाई नहीं जाती।
  4. दस उंगलियाँ: इस मूर्ति के पाँवों में हम दस उंगलियाँ देखते हैं जो इस बात का प्रतीक हैं कि भविष्य में जो रोमी राज्य होगा उसके अधीन दस राष्ट्र होंगे। वर्तमान का यूरोपीय संघ ;म्नतवचमंद न्दपवदद्ध और उसकी मुद्रा ‘‘यूरो’’ इस बात का प्रतीक हो सकता है। एक पत्थर: एक पत्थर जिसे किसी ने खोदा नहीं था, वह प्रभु यीशु मसीह को दर्शाता है। अपने जन्म, जीवन और मृत्यु में वह ‘‘छूआ नहीं गया’’ अर्थात् वह पवित्रा और पाप रहित था। वह स्वर्ग से था। वह स्वयं परमेश्वर था। इसी कारण वह मृतकों में से जी उठा और स्वर्ग पर चढ़ गया। ;रोमियों 1:4। प्रभु यीशु के दोबारा आगमन पर भी यह बात प्रासंगिक है, जब प्रभु संसार की राजनीतिक प्रणाली को पूरी तरह कुचल देंगे और पूरे विश्व पर स्वयं शासन करेंगे। वह पत्थर जिसने पूरी मूर्ति को चूर-चूर कर दिया था और पिफर बड़ा पहाड़ बनकर सारी पृथ्वी में पफैल गया था, स्वयं प्रभु हैं। यह सहस्र वर्ष के प्रभु के शासन काल में होगा। परलोक सिद्धांत में इसे ‘‘पाँचवाँ साम्राज्य’’ कहते हैं। इस अध्याय में पिछली और आने वाली बातों को सटीक बताया गया है। चार साम्राज्य समाप्त हो चुके हैं। हमारे आस-पास हो रही घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि किस प्रकार भविष्यद्वाणियाँ पूरी हो रही हैं। बाइबल सर्वज्ञानी परमेश्वर की पुस्तक है। अतः हम देख सकते हैं कि इसमें भविष्य कितना स्पष्ट और सत्य रूप से प्रकट किया गया है। आगे के पाठों में हम इस विषय में और अध्ययन करेंगे।

बाइबल अध्यन

दानिय्येल :2 1 अपने राज्य के दूसरे वर्ष में नबूकदनेस्सर ने ऐसा स्वप्न देखा जिस से उसका मन बहुत ही व्याकुल हो गया और उसको नींद न आई। 2 तब राजा ने आज्ञा दी, कि ज्योतिषी, तन्त्री, टोनहे और कसदी बुलाए जाएं कि वे राजा को उसका स्वप्न बताएं; सो वे आए और राजा के साम्हने हाजिर हुए। 3 तब राजा ने उन से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और मेरा मन व्याकुल है कि स्वपन को कैसे समझूं। 4 कसदियों ने, राजा से अरामी भाषा में कहा, हे राजा, तू चिरंजीव रहे! अपने दासों को स्वप्न बता, और हम उसका फल बताएंगे। 5 राजा ने कसदियों को उत्तर दिया, मैं यह आज्ञा दे चुका हूं कि यदि तुम फल समेत स्वप्न को न बताओगे तो तुम टुकड़े टुकड़े किए जाओगे, और तुम्हारे घर फुंकवा दिए जाएंगे। 6 और यदि तुम फल समेत स्वप्न को बता दो तो मुझ से भांति भांति के दान और भारी प्रतिष्ठा पाओगे। 7 इसलिये तुम मुझे फल समेत स्वप्न बाताओ। उन्होंने दूसरी बार कहा, हे राजा स्वप्न तेरे दासों को बताया जाए, और हम उसका फल समझा देंगे। 8 राजा ने उत्तर दिया, मैं निश्चय जानता हूं कि तुम यह देख कर, कि राजा के मुंह से आज्ञा निकल चुकी है, समय बढ़ाना चाहते हो। 9 इसलिये यदि तुम मुझे स्वप्न न बताओ तो तुम्हारे लिये एक ही आज्ञा है। क्योंकि तुम ने गोष्ठी की होगी कि जब तक समय न बदले, तब तक हम राजा के साम्हने झूठी और गपशप की बातें कहा करेंगे। इसलिये तुम मुझे स्वप्न को बताओ, तब मैं जानूंगा कि तुम उसका फल भी समझा सकते हो। 10 कसदियों ने राजा से कहा, पृथ्वी भर में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो राजा के मन की बात बता सके; और न कोई ऐसा राजा, वा प्रधान, वा हाकिम कभी हुआ है जिसने किसी ज्योतिषी वा तन्त्री, वा कसदी से ऐसी बात पूछी हो। 11 जो बात राजा पूछता है, वह अनोखी है, और देवताओं को छोड़ कर जिनका निवास मनुष्यों के संग नहीं है, और कोई दूसरा नहीं, जो राजा को यह बता सके॥ 12 इस पर राजा ने झुंझलाकर, और बहुत की क्रोधित हो कर, बाबुल के सब पण्डितों के नाश करने की आज्ञा दे दी। 13 सो यह आज्ञा निकली, और पण्डित लोगों का घात होने पर था; और लोग दानिय्येल और उसके संगियों को ढूंढ़ रहे थे कि वे भी घात किए जाएं। 14 तब दानिय्येल ने, जल्लादों के प्रधान अर्योक से, जो बाबुल के पण्डितों को घात करने के लिये निकला था, सोच विचार कर और बुद्धिमानी के साथ कहा; 15 और राजा के हाकिम अर्योक से पूछने लगा, यह आज्ञा राजा की ओर से ऐसी उतावली के साथ क्यों निकली? तब अर्योक ने दानिय्येल को इसका भेद बता दिया। 16 और दानिय्येल ने भीतर जा कर राजा से बिनती की, कि उसके लिये कोई समय ठहराया जाए, तो वह महाराज को स्वप्न का फल बता देगा। 17 तब दानिय्येल ने अपने घर जा कर, अपने संगी हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह को यह हाल बता कर कहा, 18 इस भेद के विषय में स्वर्ग के परमेश्वर की दया के लिये यह कह कर प्रार्थना करो, कि बाबुल के और सब पण्डितों के संग दानिय्येल और उसके संगी भी नाश न किए जाएं। 19 तब वह भेद दानिय्येल को रात के समय दर्शन के द्वारा प्रगट किया गया। सो दानिय्येल ने स्वर्ग के परमेश्वर का यह कह कर धन्यवाद किया, 20 परमेश्वर का नाम युगानुयुग धन्य है; क्योंकि बुद्धि और पराक्रम उसी के हैं। 21 समयों और ऋतुओं को वही पलटता है; राजाओं का अस्त और उदय भी वही करता है; बुद्धिमानों को बुद्धि और समझ वालों को समझ भी वही देता है; 22 वही गूढ़ और गुप्त बातों को प्रगट करता है; वह जानता है कि अन्धियारे में क्या है, और उसके संग सदा प्रकाश बना रहता है। 23 हे मेरे पूर्वजों के परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद और स्तुति करता हूं, क्योंकि तू ने मुझे बुद्धि और शक्ति दी है, और जिस भेद का खुलना हम लोगों न तुझ से मांगे था, उसे तू ने मुझ पर प्रगट किया है, तू ने हम को राजा की बात बताई है। 24 तब दानिय्येल ने अर्योक के पास, जिसे राजा ने बाबुल के पण्डितों के नाश करने के लिये ठहराया था, भीतर जा कर कहा, बाबुल के पण्डितों का नाश न कर, मुझे राजा के सम्मुख भीतर ले चल, मैं फल बताऊंगा॥ 25 तब अर्योक ने दानिय्येल को राजा के सम्मुख शीघ्र भीतर ले जा कर उस से कहा, यहूदी बंधुओं में से एक पुरूष मुझ को मिला है, जो राजा को स्वप्न का फल बताएगा। 26 राजा ने दानिय्येल से, जिसका नाम बेलतशस्सर भी था, पूछा, क्या तुझ में इतनी शक्ति है कि जो स्वप्न मैं ने देखा है, उसे फल समेत मुझे बताए? 27 दानिय्येल ने राजा का उत्तर दिया, जो भेद राजा पूछता है, वह न तो पण्डित न तन्त्री, न ज्योतिषी, न दूसरे भावी बताने वाले राजा को बता सकते हैं, 28 परन्तु भेदों का प्रगटकर्त्ता परमेश्वर स्वर्ग में है; और उसी ने नबूकदनेस्सर राजा को जताया है कि अन्त के दिनों में क्या क्या होने वाला है। तेरा स्वपन और जो कुछ तू ने पलंग पर पड़े हुए देखा, वह यह है: 29 हे राजा, जब तुझ को पलंग पर यह विचार हुआ कि भविष्य में क्या क्या होने वाला है, तब भेदों को खोलने वाले ने तुझ को बताया, कि क्या क्या होने वाला है। 30 मुझ पर यह भेद इस कारण नहीं खोला गया कि मैं और सब प्राणियों से अधिक बुद्धिमान हूं, परन्तु केवल इसी कारण खोला गया है कि स्वपन का फल राजा को बताया जाए, और तू अपने मन के विचार समझ सके॥ 31 हे राजा, जब तू देख रहा था, तब एक बड़ी मूर्ति देख पड़ी, और वह मूर्ति जो तेरे साम्हने खड़ी थी, सो लम्बी चौड़ी थी; उसकी चमक अनुपम थी, और उसका रूप भयंकर था। 32 उस मूर्ति का सिर तो चोखे सोने का था, उसकी छाती और भुजाएं चान्दी की, उसका पेट और जांघे पीतल की, 33 उसकी टांगे लोहे की और उसके पांव कुछ तो लोहे के और कुछ मिट्टी के थे। 34 फिर देखते देखते, तू ने क्या देखा, कि एक पत्थर ने, बिना किसी के खोदे, आप ही आप उखड़ कर उस मूर्ति के पांवों पर लगकर जो लोहे और मिट्टी के थे, उन को चूर चूर कर डाला। 35 तब लोहा, मिट्टी, पीतल, चान्दी और सोना भी सब चूर चूर हो गए, और धूपकाल में खलिहानों के भूसे की नाईं हवा से ऐसे उड़ गए कि उनका कहीं पता न रहा; और वह पत्थर जो मूर्ति पर लगा था, वह बड़ा पहाड़ बन कर सारी पृथ्वी में फैल गया॥ 36 स्वपन तो यों ही हुआ; और अब हम उसका फल राजा को समझा देते हैं। 37 हे राजा, तू तो महाराजाधिराज है, क्योंकि स्वर्ग के परमेश्वर ने तुझ को राज्य, सामर्थ, शक्ति और महिमा दी है, 38 और जहां कहीं मनुष्य पाए जाते हैं, वहां उसने उन सभों को, और मैदान के जीवजन्तु, और आकाश के पक्षी भी तेरे वश में कर दिए हैं; और तुझ को उन सब का अधिकारी ठहराया है। यह सोने का सिर तू ही है। 39 तेरे बाद एक राज्य और उदय होगा जो तुझ से छोटा होगा; फिर एक और तीसरा पीतल का सा राज्य होगा जिस में सारी पृथ्वी आ जाएगी। 40 और चौथा राज्य लोहे के तुल्य मजबूत होगा; लोहे से तो सब वस्तुएं चूर चूर हो जाती और पिस जाती हैं; इसलिये जिस भांति लोहे से वे सब कुचली जाती हैं, उसी भांति, उस चौथे राज्य से सब कुछ चूर चूर हो कर पिस जाएगा। 41 और तू ने जो मूर्ति के पांवों और उनकी उंगलियों को देखा, जो कुछ कुम्हार की मिट्टी की और कुछ लोहे की थीं, इस से वह चौथा राज्य बटा हुआ होगा; तौभी उस में लोहे का सा कड़ापन रहेगा, जैसे कि तू ने कुम्हार की मिट्टी के संग लोहा भी मिला हुआ देखा था। 42 और जैसे पांवों की उंगलियां कुछ तो लोहे की और कुछ मिट्टी की थीं, इसका अर्थ यह है, कि वह राज्य कुछ तो दृढ़ और कुछ निर्बल होगा। 43 और तू ने जो लोहे को कुम्हार की मिट्टी के संग मिला हुआ देखा, इसका अर्थ यह है, कि उस राज्य के लोग एक दूसरे मनुष्यों से मिले जुले तो रहेंगे, परन्तु जैसे लोहा मिट्टी के साथ मेल नहीं खाता, वैसे ही वे भी एक न बने रहेंगे। 44 और उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा; 45 जैसा तू ने देखा कि एक पत्थर किसी के हाथ के बिन खोदे पहाड़ में से उखड़ा, और उसने लोहे, पीतल, मिट्टी, चान्दी, और सोने को चूर चूर किया, इसी रीति महान् परमेश्वर ने राजा को जताया है कि इसके बाद क्या क्या होने वाला है। न स्वप्न में और न उसके फल में कुछ सन्देह है॥ 46 इतना सुनकर नबूकदनेस्सर राजा ने मुंह के बल गिर कर दानिय्येल को दण्डवत की, और आज्ञा दी कि उसको भेंट चढ़ाओ, और उसके साम्हने सुगन्ध वस्तु जलाओ। 47 फिर राजा ने दानिय्येल से कहा, सच तो यह है कि तुम लोगों का परमेश्वर, सब ईश्वरों का ईश्वर, राजाओं का राजा और भेदों का खोलने वाला है, इसलिये तू यह भेद प्रगट कर पाया। 48 तब राजा ने दानिय्येल का पद बड़ा किया, और उसको बहुत से बड़े बड़े दान दिए; और यह आज्ञा दी कि वह बाबुल के सारे प्रान्त पर हाकिम और बाबुल के सब पण्डितों पर मुख्य प्रधान बने। 49 तब दानिय्येल के बिनती करने से राजा ने शद्रक, मेशक, और अबेदनगो को बाबुल के प्रान्त के कार्य के ऊपर नियुक्त कर दिया; परन्तु दानिय्येल आप ही राजा के दरबार में रहा करता था॥ रोमियों 1:4 4 और पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है।