पाठ 9 : यहूदा का राजा
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सारांश
यहूदा के राजा
(5) यहोराम (2 राजा 8:16-24; 2 इतिहास 21)
यद्यपि यहोराम यहूदा के सर्वोत्तम राजाओं में से एक राजा का पुत्र था, परंतु अपने आप
में वह सबसे बुरा था। उसने अहाब की बेटी अतल्याह से विवाह किया जो एक दुष्ट संगिनी
थी और इसी बात ने यहोराम के आत्मिक जीवन को इतना नष्ट कर दिया कि उसने राजा
अहाब की बुराइयों को अपनाया जिसमें बाल देवता की आराधना भी शामिल थी।
यहोराम ने सभी प्रकार के पाप किया जिसमें हत्या, मूर्तिपूजा, उत्पीड़न और परमेश्वर
की निंदा भी शामिल थी। केवल दाऊद के साथ परमेश्वर की प्रतिज्ञा ने ही यहोराम के संपूर्ण
विनाश को बचा लिया था। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किया था कि वह हर पीढ़ी से एक राजा देगा
ताकि उसका घराना तब तक लुप्त न हो जब तक कि मसीहा न आए जाए। परमेश्वर ने इस
शर्तहीन प्रतिज्ञा को पूरा किया, तब भी जब दाऊद के वंश ने मतत्याग और पाप किया। यह
बात यहूदा के राजाओं के साथ परमेश्वर की सहनशीलता को दिखाती है। यहूदा का राजा चाहे
जितना भी बुरा क्यों न रहा हो, परमेश्वर ने उसके बेटे को उसके सिंहासन का उत्तराधिकारी
बनाया। इस्राएल में ऐसा नहीं था। वहाँ उनकी दुष्टता के कारण उनकी राजसता एक-एक
करके छाँट दी गई। बेशक, यहूदा के राजाओं की व्यक्तिगत दुष्टता भी किसी रीति से भी
दंडरहित नहीं छोड़ी गई थी।
यहोराम ने उन सुधारों को जो उसके भले पिता और दादा ने किया था, पूरी तरह खत्म
कर डाला। उन लोगों के विषय सोचिये जो यहोशापात के अधीन थे जिन्हें परमेश्वर के वचन
के अध्ययन के लिये प्रेरित किया गया, परमेश्वर से प्रार्थना करने और उस पर विश्वास करने
को सिखाया गया था, अब यहोशापात के पुत्र के अधीन उन्हीं लोगों को गंभीर दुखदायी रूप
से पाप करने को मजबूर किया जा रहा था। यह सब एक दुष्ट स्त्री के प्रभाव से हुआ था
क्योंकि अहाब की बेटी उसकी पत्नी थी।" (2 राजा 8:18; 2 इतिहास 21:6)
पहली सजा जो यहोराम को मिली वह उसी के कुछ लोगों अर्थात् एदोमियों द्वारा विद्रोह
था, जिन पर उसने विजय पाने का या दमन करने का असफल प्रयास किया था। यहाँ तक
कि उसके अपने राज्य का एक शहर लिब्ना उसके विरुद्ध उठ खड़ा हुआ था। एलिया ने
यहोराम को एक पत्र लिखा था जिसे शायद उसने एलीशा के द्वारा भिजवाया था। लेकिन,
यहोराम ने पत्र के संदेश पर ध्यान नहीं दिया, और अगली सजा जो उस पर आई वह उस
पर पलिश्तियों और अरबों द्वारा आक्रमण था जिसका परिणाम उसके सबसे छोटे पुत्र
यहोआहाज को छोड़कर उसकी बड़ी संपत्ति, पत्नियों, सभी पुत्रों का सर्वनाश हुआ।
यहाँ तक कि यह डरावनी सजा ने भी यहोराम को उसकी दुष्टता से नहीं फेर सकी,
और वह घातक बीमारी का शिकार हो गया जिसकी भविष्यवाणी एलिया ने किया था। जब
वह मरा तो उसके लोगों ने उसके लिये विलाप नहीं किया उसे अनिच्छा से दफनाया गया।
यद्यपि उसे राजाओं के मध्य दफनाने की अनुमति नहीं दी गई थी, उसे यरूशलेम में दफनाया
गया।
यहोराम के 8 वर्षीय शासन के अंत में जो युद्ध, विद्रोह और बीमारी से भरपूर था,
उसका बेटा अहज्याह राजा बना, परंतु वह नाममात्र के लिये था। वास्तव में उसकी माँ
अतल्याह ने यहूदा पर राज्य की, जैसे उसकी माँ यिजबेल ने उत्तर में इस्राएल पर राज्य की
थी उन दो विधर्मी स्त्रियों ने जो परमेश्वर से घृणा करती थीं और उनके हृदयों में मूर्तिपूजा
का दुष्टता से प्रेम करती थीं दोनों भी शाही घरानों के राज्यों का शासन अपने हाथों में रखी
थीं। उनका प्रभाव इतना बड़ा था कि राष्ट्रीय विश्वास का भी देश से खातमा होने का खतरा
बन चुका था। यह एक जटिल स्थिति थी जिसका बाद का परिणाम दंड हुआ।
6) रहूबियाम 2 (2 राजा 8:25-29; 2 इतिहास 22:1-7)।
अहज्याह जो उसके पिता यारोबाम का उत्तराधिकारी बना और यहूदा के सिंहासन पर
बैठा दो भिन्न नामों से जाना जाता था। (2 राजा 8:25) उसे अहज्याह और (2 इतिहास 21:17)
में उसे यहोआहाज के नाम से जाना जाता था। वह उसके पिता के समान ही एक बहुत दुष्ट
व्यक्ति था। उसके आसपास ऐसे पिता, ऐसी माता और ऐसे परामर्शदाताओं से क्या बेहतर
उम्मीद की जा सकती थीं? सौभाग्य से उसका शासन केवल एक वर्ष ही चला। उसका मामा
योराम, अर्थात उसकी माँ का भाई इस्राएल का राजा था और अहज्याह को सीरिया के विरुद्ध
युद्ध में शामिल होने उकसाया गया। योराम युद्ध में घायल हो गया था और सुधरने के लिये
यिज्रेल गया था। वहीं पर अहज्याह अपने मामा को मिलने गया और येहू के द्वारा मार डाला
गया।
7) अतल्याह (2 राजा 11:1-16; 2 इतिहास 23:12-15)
जब अतल्याह ने जो अहज्याह की माँ थी देखी कि उसका बेटा मर गया है तो वह
समस्त शाही परिवार को नष्ट करने को उठी। परंतु अहज्याह की बहन यहोशेबा जो यहोराम
राजा की बेटी थी उसने अहज्याह के छोटे पुत्र योआश को घात होने वाले अन्य राजकुमारों
में से चुरा ली। यहोशेबा ने योआश और उसकी घाई को शयनकक्ष में छिपा दी ताकि अतल्याह
के हाथ न पड़ें। वे परमेश्वर के घर में 6 वर्ष तक अर्थात जब तक अतल्याह शासन करती
रही, छिपे रहे।
अतल्याह के शासन के 7वें वर्ष में याजक यहोयादा ने कमांडरों और संतरियों को
परमेश्वर के मंदिर मे बुलवाया। उसने उनके साथ एक वाचा बांधा और उनसे परमेश्वर के
भवन में वफादारी की प्रतिज्ञा करवाया फिर उसने उन्हें राजा के पुत्र को दिखाया। उसने उन्हें
परमेश्वर के मंदिर में ही राजा की रक्षा करने को कहा। इसलिये कमांडरों ने ठीक वैसा ही
किया जैसा यहोयादा याजक ने करने को कहा था। कमांडरों ने उस सब्त के दिन आने और
जानेवाले लोगों को जो ड्यूटी करते थे अपने साथ कर लिया। उन्होंने उन सब को यहोयादा
याजक के पास लाया और याजक ने उन्हें दाऊद के भाले, ढाल दे दिया जो मंदिर मे रखे गए
थे। रक्षक लोग राजा के चारों और हथियार लेकर तैनात हो गए। वे मंदिर के सामने भी चारों
तरफ खड़े हो गए और वेदी को भी घेर लिया। तब यहोयादा ने योआश को बाहर लाया और
मुकुट को उसके सिर पर रख दिया। उसने योआश को परमेश्वर के वाचा की एक प्रति भी
दिया और उसे राजा घोषित किया। उन्होंने उसका अभिषेक किया और तालियाँ बजाकर
चिल्लाने लगे “राजा चिरायु हो।”
जब अतल्याह ने रक्षकों और लोगों की आवाज सुनी तो वह देखने के लिये मंदिर की
ओर भागी के वहाँ क्या हो रहा हैं। और उसने खंबे के पास अधिकार के स्थान पर नए राजा
को खड़ा हुआ देखा जो मुकुट पहने हुए था।यह सब कुछ परंपरा के अनुसार हुआ था।अधिकारी
और तुरही फूँकने वाले उसके आसपास खड़े थे, और देशभर से आए हुए लोग आनंद कर
रहे थे और तुरहियाँ फूँक रहे थे। जब अतल्याह ने यह सब देखी तो निराशा में अपने वस्त्र
फाड़ी और चिल्ला पड़ी, “धोखा! धोखा!” तब यहोयादा याजक ने सेना के कमांडरों को आज्ञा
दिया कि, “उसे मंदिर से बाहर निकालो, और जो उसे बचाने आए उसे मार डालो। अतल्याह
को परमेश्वर के मंदिर में मत मारो।” इसलिये उन्होंने उसे बंदी बनाया और उसे फाटक के
बाहर ले गए जहाँ से छोटे महल में प्रवेश करते हैं और वहाँ उसे मार डाला।
8) योआश (2 राजा 11:21 - 13:13; 2 इतिहास 24)
योआश ने शासन की शुरूवात अच्छी तरह किया और तब तक करता रहा जब तक
यहोयादा याजक जीवित था और उसका मार्गदर्शन किया। जब वह राजा बना तो 7 वर्ष का
था। योआश के शासनकाल सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो पूरा किया था वह मंदिर की मरम्मत था
जो जर्जर हो गया था और अतल्याह के दुष्ट परिवार ने तोड़ डाला था। मंदिर की मरम्मत
के लिये राजा द्वारा बनाई गई धनार्जन की योजना विफल हुई। उसने याजकों को कहा,
“परमेश्वर के मंदिर में लाए जानेवाले सभी पवित्र दानों को इकट्ठा करो। उसी में से याजक
लोग थोड़ा धन लेकर मंदिर की मरम्मत के लिये खर्च करें।” परंतु योआश के शासन के 23वें
वर्ष तक याजक लोग मंदिर के मरम्मत का कार्य शुरू नहीं कर पाए। लेकिन यहोयादा याजक
द्वारा बनाई गई योजना कारगर सिद्ध हुई। उसने एक बड़े संदूक के ढक्कन पर एक छेद किया
और उसे वेदी की दाहिनी और रख दिया जो परमेश्वर के मंदिर के प्रवेश द्वार के पास था।
जो याजक प्रवेश द्वार पर खड़े रहकर रक्षा करते थे, वे लोगों से दान लेकर उस संदूक में
डाल देते थे। जब भी संदूक भर जाता था, धन को गिना जाता था और उसे परमेश्वर के
मंदिर में लाकर मरम्मत के कार्य के लिये उपयोग में लाया जाता था। इस प्रकार मरम्मत का
कार्य तेजी से पूरा हो गया।
जब यहोयादा 130 वर्ष की लंबी आयु के बाद मर गया और उसे सम्मान के साथ राजाओं
के संग गाड़ा गया तब देश ने एक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति को खो दिया था।
तब राजा योआश 30 वर्ष की आयु से ज्यादा का था। बचपन से ही वह एक अच्छे
याजक की आज्ञाओं के अधीन था तो उसे लोगों को ईश्वर का मार्ग बताने के काबिल होना
ही था। इसके विपरीत यहोयादा की मृत्यु के बाद, उसने उन राजकुमारों की बातों को सुना जो
हृदय से मूर्तिपूजक थे और जल्द ही परमेश्वर का घर मूर्तियों से भर गया। परिणामस्वरूप,
परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़क उठा। परमेश्वर ने अपनी दया के कारण उनके
पास भविष्यद्वक्ताओं को भेजा परंतु वे उन्हें नहीं सुने।
जब अराम के राजा हजाएल ने यरूशलेम पर हमला किया, तब मदद के लिये योआश
ने परमेश्वर को नहीं पुकारा। इसके विपरीत उसने मंदिर के खजाने को अरामी राजा को दे
दिया। वह घूस लेकर थोडे़ समय तक संतुष्ट रहा।
जब परमेश्वर ने उन्हें वापस लौटने के लिये भविष्यद्वक्ताओं को भेजा तो लोगों ने उनकी
नहीं सुना। तब परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह पर उतरा। वह लोगों
के बीच खड़ा हुआ और बोला, परमेश्वर यों कहता है कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्यों
टालते हों? ऐसा करके तुम्हारा भला नहीं हो सकता। देखो, तुमने तो यहोवा को त्याग दिया
है, इस कारण उसने भी तुम को त्याग दिया है।"
अगुवों ने जकर्याह को मार डालने का षड़यंत्र रचा और स्वयं योआश राजा के आदेश
से उन्होंने उसे मंदिर के आंगन में ही पथराव करके मार डाला। यही तरीका था जिसके द्वारा
योआश राजा ने यहोयादा के प्रेम और वफादारी का बदला दिया था - उसने यहोयादा के पुत्र
को मार डाला था। मरते समय जकर्याह के अंतिम शब्द थे, यहोवा इस पर दृष्टि करके इसका
लेखा ले।" इस प्रकार योआश ने आदर और कृतज्ञता के सभी गुण त्याग चुका था।
शहीद याजक के खून का बदला लिया गया। उसी वर्ष अराम के राजा हजाएल के द्वारा
सभी राजकुमार मारे गए और फिर योआश उसी के दासों द्वारा मारा गया और उसे राजाओं
के कब्रस्तान में दफनाने से इन्कार कर दिया गया (2 इतिहास 24:25-27)।
9) अमस्याह (2 राजा 14:1-16; 2 इतिहास 25)
जब अमस्याह सिंहासन पर बैठा तब वह 25 वर्ष का जवान था। और उसने अपना शासन
अच्छी तरह शुरू किया। कहा जाता है कि उसने वही किया जो परमेश्वर की दृष्टि में ठीक था,
परंतु उसके पिता दाऊद के समान नहीं। परमेश्वर हमेशा हृदय को देखता है, यद्यपि अमस्याह के
शासन के आरंभिक वर्ष सही थे, उसका ह्रदय दाऊद के समान परमेश्वर के साथ सिद्ध नहीं था।
अमस्याह को परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति सम्मान था। वह इस बात की वास्तविकता
में देखा जाता है कि जब उसने उन दासों को मारा जिन्होंने उसके पिता की हत्या किया था,
तो उसने उनके बच्चों को नहीं मारा, जिसकी अनुमति परमेश्वर की व्यवस्था नहीं देती।
(व्यवस्थाविरण 24:16)। शायद परमेश्वर की व्यवस्था के प्रति उसका ज्ञान और सम्मान
उसकी माँ के प्रभाव के कारण था। अच्छे याजक यहोजादा ने ही उसे अमस्याह के पिता की
पत्नी होने के लिये चुना था। (2 इतिहास 24:3) और यह हो नहीं सकता कि भले याजक
ने धर्मी स्त्री को छोड़ किसी और को यहूदा की रानी होने के लिये चुना होता।
अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के बाद अमस्याह एदोम से युद्ध करने गया। जाहिर
है कि उसने अपनी सेना को एदोमियों को हराने के लिये सशक्त नहीं पाया, क्योंकि उसने
इस्त्राएल से भी 1,00,000 सैनिकों को किराए पर लिया था जो उसकी अपनी सेना का 1/3
हिस्सा थे। इन सैनिकों की सेवा के लिये उसने चांदी के 100 किक्कार अदा किया था।
अमस्याह ने एदोमियों के विरुद्ध यह युद्ध परमेश्वर की सम्मति लिये बिना ही किया
था जो उस संदेश से प्रगट है जो उसे परमेश्वर के द्वारा भेजा गया था। लेकिन उसने उस रकम
को छोड़ देना उचित समझा बजाए परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध कार्य करने के। उसके लिये
यही सही था। “जब भी विश्वासी परमेश्वर के साथ और उसके वचन के साथ सच्चे रहने
में नुकसान झेलते हैं तो उन्हें यह याद रखना चाहिये कि परमेश्वर जिसका इस तरह आदर
किया जाता है वह उन्हें इस नुकसान से भी ज्यादा लौटा सकता है।”
एदोमियों पर अमस्याह की विजय पूरी और दयाहीन थी। इसी बीच इस्राएल की वह
सेना जिसे वापस भेज दिया गया था, उन्होंने वापस भेजे जाने के अपमान का बदला यहूदा के
नगरों को लूटने के द्वारा लिया।
यह अमस्याह के जीवन का परिवर्तन बिंदु था। एदोम के विरुद्ध उसकी सफलता ने उसे
न ही घमंड से भर दिया था परंतु वह एदोम के मूर्तियों से इतना मोहित हो गया था कि वह
स्वयँ भी मूर्तिपूजक बन गया था। परमेश्वर के संदेशवाहक के प्रति उसकी नीति पर गौर करें।
उसकी मूर्तिपूजा और परमेश्वर की चेतावनी को मानने से इन्कार ने उसे तबाह कर दिया।
(2 इतिहास 25:15-16)।
हाल की सैन्य विजय के घमंड से प्रेरित होकर, और इस्राएल की वापस भेजी गई सेना
द्वारा किए गए नुकसान का बदला लेने के लिये अमस्याह ने इस्राएल के राजा यहोआश को
युद्ध के लिये ललकारा। शायद उसके भ्रम में उसने इस्राएल के राज्य को हथियाने की सोचा
था जो उसके अपने राज्य से तीन गुणा बड़ा था, उसने उसे भी यहूदा में पुनः मिलाने की सोचा।
लेकिन इस्राएल के राजा जो बड़ी सेना से सुरक्षित था, उसने अमस्याह की ललकार को हल्की
तौर पर लिया और उसे एक दृष्टांत द्वारा जवाब दिया और उसे कड़ी सलाह दिया कि घर
पर ही रहे और प्राप्त विजयों में ही संतुष्ट रहे। शायद जो सलाह अमस्याह ने लिया था वह
उसी के सम्मतिदाताओं की थी।
उस दृष्टांत में जिसके द्वारा यहोआश ने अमस्याह को उत्तर दिया था उसने स्वयं को देवदारु के
समान और अमस्याह को गोखरू के समान तुलना किया था। “जंगली जानवर” स्पष्ट रूप से
उसकी अपनी सेना को दिखाता है जिसे वह यकीन के साथ सोचता था कि वह यहूदा को आसानी
से मसल देगी। और वह यरूशलेम आया, यरूशलेम की दीवार को तोड़ा जो एप्रैम के फाटक
से कोने के फाटक तक जो 400 सौ हाथ थी। अमस्याह की पूरी हार हो चुकी थी और परमेश्वर
के कहे अनुसार उसे मूर्तिपूजा की सज़ा मिली थी।
यद्यपि अमस्याह उसके विजेता इस्राएल के राजा की मृत्यु के बाद 15 वर्ष और जीवित रहा, वे
सूखे वर्ष रहे। जब से उसने परमेश्वर को छोड़ा, उसकी प्रजा का हृदय भी उससे दूर हो गया।
यरूशलेम में उसके विरुद्ध एक षड़यंत्र रचा गया और जब वह लाकीश को भाग रहा था,
उसका पीछा करके उसे मार डाला गया।
10) अजर्याह (उज्जियाह) 2 राजा 15:1-7; 2 इतिहास 26
उज्जियाह अजर्याह भी कहलाता था। उसे 16 वर्ष की आयु में राजा बनाया गया और उसने 51
वर्ष तक शासन किया। उसके शासनकाल को दो अवधियों में बाँटा जा सकता है:
पहला, जब उसने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया और उन्नति किया।
दूसरा, जब उसने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और दंडित हुआ। लेकिन दोनों में से
पहली अवधि ज्यादा समय की थी।
उज्जियाह ने अपनी उन्नति का श्रेय परमेश्वर को दिया (2 इतिहास 26:5)। उन कई तरीकों को
देखें जिनसे उसने तरक्की किया:
क) उसके युद्धों के द्वारा (2 इतिहास 26:6-8)
ख) अपनी रक्षा द्वारा। उसकी राजधानी की सुरक्षा के लिए मीनारें बनाकर। ( 2 इतिहास 26:9)
ग) उसके कृषि उद्योग द्वारा ( 2 इतिहास 26:10)
घ) उसकी सेनाओं द्वारा ( 2 इतिहास 26:11-15)
अब उस अपशकुन शब्द को देखें जिससे 2 इतिहास 26:16 शुरू होता है। वचन में यह छोटा
शब्द “परन्तु” कई बार आया है तब भी जब किसी व्यक्ति के विषय काफी अच्छी बातें कही गई
हों। यह पद उज्जियाह के शासन के दूसरे चरण की शुरुवात को दर्शाता है, जिसमें उसने
परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और दंडित हुआ।
उज्जियाह के हृदय में घमंड आ गया। अत्याधिक उन्नति और सम्मान ने उसके सिर को घूमा दिया
और ऐसा लगता था मानो वह सोचता था कि कुछ भी उसके लिए ज्यादा भला या अच्छा नहीं
है, और यह कि वह जो चाहता है, वह नहीं कर सकता। इसलिए उसने निडरता से याजक के
कार्यालय पर धावा बोला और याजक के बार-बार चेतावनी देने के बावजूद उसने मंदिर में धूप
जलाना शुरू किया। मूसा के निर्देशानुसार यह परमेश्वर की इच्छा का सीधा उल्लंघन था,
राजा और याजकीय सेवाएँ परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार अलग किए गए थे और उन्हें सिवाय
मसीहा की देह के, फिर से जोड़ा नहीं जा सकता था।" राजा उज्जियाह का दंड तत्काल और
भयानक था। उसके माथे पर अचानक कोढ़ हो गया। जब अजर्याह और अन्य याजकों ने कोढ़
को देखा तो उसे तुरंत बाहर निकाल दिया। और राजा स्वयं भी बाहर निकल जाने को आतुर
था क्योंकि उसे परमेश्वर ने मारा था। उसे उसकी मृत्यु के दिन तक कोढ़ रहा। वह एकाकी
रहता था, और परमेश्वर के मंदिर से हटाया या निष्काशित किया हुआ था। उसका बेटा योताम
शाही महल का अधिकारी बनाया गया और उसने देश के लोगों पर राज्य किया।
क्योंकि उज्जियाह को कोढ़ हो गया था, उसका पुत्र योताम लोगों का न्याय करता था, और जब
वह मरा तब उसे बिना सम्मान अर्पित किए ही दफनाया गया।
11) योताम (2 राजा 15:21-32:38; 2 इतिहास 27)
योताम जब राजा बना तब वह 25 वर्ष का था, और उसने यरूशलेम पर 16 वर्ष शासन किया।
उसकी माता का नाम यरूशा था जो सादोक की बेटी थी। उसने उसके पिता उज्जियाह के समान
वही किया जो परमेश्वर की दृष्टि में ठीक था। परंतु उसके विपरीत योताम परमेश्वर के मंदिर के
उपरी फाटक को फिर से बनाया और ओपोल की शहरपनाह पर बहुत कुछ बनाया। उसने
यहूदा के पहाड़ी देश में नगरों को बनाया और जंगल क्षेत्रों में किले और मीनारें बनाया।
योताम ने अममोनियों के विरुद्ध युद्ध घोषित किया और उन पर विजय हासिल किया। अगले
तीन वर्षों तक उसने उनसे चांदी, गेंहूँ और जब की भेंट प्राप्त किया। वह इसलिए शक्तिशाली
बना क्योंकि वह उसके परमेश्वर की आज्ञापालन के विषय सतर्क रहता था। उसने यरूशलेम
पर 16 वर्ष शासन किया। जब वह मरा तो उसे दाऊद के नगर में दफनाया गया, और उसका
पुत्र आहाज अगला राजा बन गया।
बाइबल अध्यन
2 राजा अध्याय 8:(16-24) 16 इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र योराम के पांचवें वर्ष में, जब यहूदा का राजा यहोशापात जीवित था, तब यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा पर राज्य करने लगा। 17 जब वह राजा हुआ, तब बत्तीस वर्ष का था, और आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 18 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता था, क्योंकि उसकी स्त्री अहाब की बेटी थी; और वह उस काम को करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 19 तौभी यहोवा ने यहूदा को नाश करना न चाहा, यह उसके दास दाऊद के कारण हुआ, क्योंकि उसने उसको वचन दिया था, कि तेरे वंश के निमित्त मैं सदा तेरे लिये एक दीपक जलता हुआ रखूंगा। 20 उसके दिनों में एदोम ने यहूदा की आधीनता छोड़कर अपना एक राजा बना लिया। 21 तब योराम अपने सब रथ साथ लिये हुए साईर को गया, ओर रात को उठ कर उन एदोमियों को जो उसे घेरे हुए थे, और रथों के प्रधानों को भी मारा; और लोग अपने अपने डेरे को भाग गए। 22 यों एदोम यहूदा के वश से छूट गया, और आज तक वैसा ही है। उस समय लिब्ना ने भी यहूदा की आधीनता छोड़ दी। 23 योराम के और सब काम और जो कुछ उसने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 24 निदान योराम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उनके बीच दाऊदपुर में उसे मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र अहज्जाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
2 इतिहास अध्याय 21 1 निदान यहोशापात अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यहोराम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 2 इसके भाई जो यहोशापात के पुत्र थे, ये थे, अर्थात अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह; ये सब इस्राएल के राजा यहोशापात के पुत्र थे। 3 और उनके पिता ने उन्हे चान्दी सोना और अनमोल वस्तुएं और बड़े बड़े दान और यहूदा में गढ़ वाले नगर दिए थे, परन्तु यहोराम को उसने राज्य दे दिया, क्योंकि वह जेठा था। 4 जब यहोराम अपने पिता के राज्य पर नियुक्त हुआ और बलवन्त भी हो गया, तब उसने अपने सब भाइयों को और इस्राएल के कुछ हाकिमों को भी तलवार से घात किया। 5 जब यहोराम राजा हुआ, तब वह बत्तीस वर्ष का था, और वह आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 6 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता था, क्योंकि उसकी पत्नी अहाब की बेटी थी। और वह उस काम को करता था, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 7 तौभी यहोवा ने दाऊद के घराने को नाश करना न चाहा, यह उस वाचा के कारण था, जो उसने दाऊद से बान्धी थी। और उस वचन के अनुसार था, जो उसने उसको दिया था, कि में ऐसा करूंगा कि तेरा और तेरे वंश का दीपक कभी न बुझेगा। 8 उसके दिनों में एदोम ने यहूदा की आधीनता छोड़ कर अपने ऊपर एक राजा बना लिया। 9 सो यहोराम अपने हाकिमों और अपने सब रथों को साथ ले कर उधर गया, और रथों के प्रधानों को मारा। 10 यों एदोम यहूदा के वश से छूट गया और आज तक वैसा ही है। उसी समय लिब्ना ने भी उसकी आधीनता छोड़ दी, यह इस कारण हुआ, कि उसने अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया था। 11 और उसने यहूदा के पहाड़ों पर ऊंचे स्थान बनाए और यरूशलेम के निवासियों व्यभिचार कराया, और यहूदा को बहका दिया। 12 तब एलिय्याह नबी का एक पत्र उसके पास आया, कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि तू जो न तो अपने पिता यहोशापात की लीक पर चला है और न यहूदा के राजा आसा की लीक पर, 13 वरन इस्राएल के राजाओं की लीक पर चला है, और अहाब के घराने की नाईं यहूदियों और यरूशलेम के निवासियों व्यभिचार कराया है और अपने पिता के घराने में से अपने भाइयों को जो तुझ से अच्छे थे, घात किया है, 14 इस कारण यहोवा तेरी प्रजा, पुत्रों, स्त्रियों और सारी सम्मत्ति को बड़ी मार से मारेगा। 15 और तू अंतडिय़ों के रोग से बहुत पीड़ित हो जाएगा, यहां तक कि उस रोग के कारण तेरी अंतडिय़ां प्रतिदिन निकलती जाएंगी। 16 और यहोवा ने पलिश्तियों को और कूशियों के पास रहने वाले अरबियों को, यहोराम के विरुद्ध उभारा। 17 और वे यहूदा पर चढ़ाई कर के उस पर टूट पड़े, और राजभवन में जितनी सम्पत्ति मिली, उस सब को और राजा के पुत्रों और स्त्रियों को भी ले गए, यहां तक कि उसके लहुरे बेटे यहोआहाज को छोड़, उसके पास कोई भी पुत्र न रहा। 18 इन सब के बाद यहोवा ने उसे अंतडिय़ों के असाध्यरोग से पीड़ित कर दिया। 19 और कुछ समय के बाद अर्थात दो वर्ष के अन्त में उस रोग के कारण उसकी अंतडिय़ां निकल पड़ीं, ओर वह अत्यन्त पीड़ित हो कर मर गया। और उसकी प्रजा ने जैसे उसके पुरखाओं के लिये सुगन्धद्रव्य जलाया था, वैसा उसके लिये कुछ न जलाया। 20 वह जब राज्य करने लगा, तब बत्तीस वर्ष का था, और यरूशलेम में आठ वर्ष तक राज्य करता रहा; और सब को अप्रिय हो कर जाता रहा। और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
2 राजा अध्याय 8:18 18 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता था, क्योंकि उसकी स्त्री अहाब की बेटी थी; और वह उस काम को करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।
2 इतिहास अध्याय 21:6 6 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता था, क्योंकि उसकी पत्नी अहाब की बेटी थी। और वह उस काम को करता था, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।
2 राजा अध्याय 8:(25-29) 25 अहाब के पुत्र इस्राएल के राजा योराम के बारहवें वर्ष में यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राज्य करने लगा। 26 जब अहज्याह राजा बना, तब बाईस वर्ष का था, और यरूशलेम में एक ही वर्ष राज्य किया। और उसकी माता का नाम अतल्याह था, जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती थी। 27 वह अहाब के घराने की सी चाल चला, और अहाब के घराने की नाईं वह काम करता था, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि वह अहाब के घराने का दामाद था। 28 और वह अहाब के पुत्र योराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया, और अरामियों ने योराम को घायल किया। 29 सो राजा योराम इसलिये लौट गया, कि यिज्रैल में उन घावों का इलाज कराए, जो उसको अरामियों के हाथ से उस समय लगे, जब वह हजाएल के साथ लड़ रहा था। और अहाब का पुत्र योराम तो यिज्रैल में रोगी रहा, इस कारण यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहजयाह उसको देखने गया
2 इतिहास अध्याय 22:(1-7) 1 तब यरूशलेम के निवासियों ने उसके लहुरे पुत्र अहज्याह को उसके स्थान पर राजा बनाया; क्योंकि जो दल अरबियों के संग छावनी में आया था, उसने उसके सब बड़े बड़े बेटों को घात किया था सो यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राजा हुआ। 2 जब अहज्याह राजा हुआ, तब वह बयालीस वर्ष का था, और यरूशलेम में एक ही वर्ष राज्य किया, और उसकी माता का ताम अतल्याह था, जो ओम्री की पोती थी। 3 वह अहाब के घराने की सी चाल चला, क्योंकि उसकी माता उसे दुष्टता करने की सम्मति देती थी। 4 और वह अहाब के घराने की नाईं वह काम करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि उसके पिता की मृत्यु के बाद वे उसको ऐसी सम्मति देते थे, जिस से उसका विनाश हुआ। 5 और वह उनकी सम्मति के अनुसार चलता था, और इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया और अरामियों ने यहोराम को घायल किया। 6 सो राजा यहोराम इसलिये लौट गया कि यिज्रेल में उन घावों का इलाज कराए जो उसको अरामियों के हाथ से उस समय लगे थे जब वह हजाएल के साथ लड़ रहा था। और अहाब का पुत्र यहोराम जो यिज्रेल में रोगी था, इस कारण से यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह उसको देखने गया। 7 और अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से हुआ, क्योंकि वह यहोराम के पास गया था। और जब वह वहां पहुंचा, तब यहोराम के संग निमशी के पुत्र येहू का साम्हना करने को निकल गया, जिसका अभिषेक यहोवा ने इसलिये कराया था कि वह अहाब के घराने को नाश करे।
2 राजा अध्याय 11:(1-16) 1 जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा, कि मेरा पुत्र मर गया, तब उसने पूरे राजवंश को नाश कर डाला। 2 परन्तु यहोशेबा जो राजा योराम की बेटी, और अहज्याह की बहिन थी, उसने अहज्याह के पुत्र योआश को घात होने वाले राजकुमारों के बीच में से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। और उन्होंने उसे अतल्याह से ऐसा छिपा रखा, कि वह मारा न गया। 3 और वह उसके पास यहोवा के भवन में छ:वर्ष छिपा रहा, और अतल्याह देश पर राज्य करती रही। 4 सातवें वर्ष में यहोयादा ने जल्लादों और पहरुओं के शतपतियों को बुला भेजा, और उन को यहोवा के भवन में अपने पास ले आया; और उन से वाचा बान्धी और यहोवा के भवन में उन को शपथ खिला कर, उन को राजपुत्र दिखाया। 5 और उसने उन्हें आज्ञा दी, कि एक काम करो: अर्थात तुम में से एक तिहाई लोग जो विश्रामदिन को आने वाले हों, वह राजभवन के पहरे की चौकसी करें। 6 और एक तिहाई लोग सूर नाम फाटक में ठहरे रहें, और एक तिहाई लोग पहरुओं के पीछे के फाटक में रहें; यों तुम भवन की चौकसी कर के लोगों को रोके रहना। 7 और तुम्हारे दो दल अर्थात जितने विश्राम दिन को बाहर जाने वाले हों वह राजा के आसपास हो कर यहोवा के भवन की चौकसी करें। 8 और तुम अपने अपने हाथ में हथियार लिये हुए राजा के चारों ओर रहना, और जो कोई पांतियों के भीतर घुसना चाहे वह मार डाला जाए, और तुम राजा के आते-जाते समय उसके संग रहना। 9 यहोयादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार शतपतियों ने किया। वे विश्रामदिन को आने वाले और जाने वाले दोनों दलों के अपने अपने जनों को संग ले कर यहोयादा याजक के पास गए। 10 तब याजक ने शतपतियों को राजा दाऊद के बर्छे, और ढालें जो यहोवा के भवन में थीं दे दीं। 11 इसलिये वे पहरुए अपने अपने हाथ में हथियार लिए हुए भवन के दक्खिनी कोने से ले कर उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारों ओर उसकी आड़ कर के खड़े हुए। 12 तब उसने राजकुमार को बाहर ला कर उसके सिर पर मुकुट, और साक्षीपत्र धर दिया; तब लोगों ने उसका अभिषेक कर के उसको राजा बनाया; फिर ताली बजा बजा कर बोल उठे, राजा जीवित रहे। 13 जब अतल्याह को पहरुओं और लोगों का हलचल सुन पड़ा, तब वह उनके पास यहोवा के भवन में गई। 14 और उसने क्या देखा कि राजा रीति के अनुसार खम्भे के पास खड़ा है, और राजा के पास प्रधान और तुरही बजाने वाले खड़े हैं। और लोग आनन्द करते और तुरहियां बजा रहे हैं। तब अतल्याह अपने वस्त्र फाड़कर राजद्रोह राजद्रोह यों पुकारने लगी। 15 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिकारी शतपतियों को आज्ञा दी कि उसे अपनी पांतियों के बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले उसे तलवार से मार डालो। क्योंकि याजक ने कहा, कि वह यहोवा के भवन में न मार डाली जाए। 16 इसलिये उन्होंने दोनों ओर से उसको जगह दी, और वह उस मार्ग के बीच से चली गई, जिस से घोड़े राजभवन में जाया करते थे; और वहां वह मार डाली गई।
2 इतिहास अध्याय 23:(12-15) 12 जब अतल्याह को उन लोगों का हल्ला, जो दौड़ते और राजा को सराहते थे सुन पड़ा, तब वह लोगों के पास यहोवा के भवन में गई। 13 और उसने क्या देखा, कि राजा द्वार के निकट खम्भे के पास खड़ा है और राजा के पास प्रधान और तुरही बजाने वाले खड़े हैं, और सब लोग आनन्द कर रहे हैं और तुरहियां बजा रहे हैं और गाने बजाने वाले बाजे बजाते और स्तुति करते हैं। तब अतल्याह अपने वस्त्र फाड़ कर पुकारने लगी, राजद्रोह, राजद्रोह! 14 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिकारी शतपतियों को बाहर लाकर उन से कहा, कि उसे अपनी पांतियों के बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले, वह तलवार से मार डाला जाए। याजक ने कहा, कि उसे यहोवा के भवन में न मार डालो। 15 तब उन्होंने दोनों ओर से उसको जगह दी, और वह राजभवन के घोड़ाफाटक के द्वार तक गई, और वहां उन्होंने उसको मार डाला।
2 राजा अध्याय 11:21 21 जब योआश राजा हुआ, उस समय वह सात पर्ष का था।
2 राजा अध्याय 13:13 13 निदान योआश अपने पुरखाओं के संग सो गया और यारोबाम उसकी गद्दी पर विराजमान हुआ; और योआश को शोमरोन में इस्रा एल के राजाओं के बीच मिट्टी दी गई।
2 इतिहास अध्याय 24 1 जब योआश राजा हुआ, तब वह सात वर्ष का था, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम सिब्या था, जो बेर्शेबा की थी। 2 और जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा, तब तक योआश वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 3 और यहोयादा ने उसके दो ब्याह कराए और उस से बेटे-बेटियां उत्पन्न हुई। 4 इसके बाद योआश के मन में यहोवा के भवन की मरम्मत करने की मनसा उपजी। 5 तब उसने याजकों और लेवियों को इकट्ठा कर के कहा, प्रति वर्ष यहूदा के नगरों में जा जा कर सब इस्राएलियों से रुपये लिया करो जिस से तुम्हारे परमेश्वर के भवन की मरम्मत हो; देखो इस काम में फुतीं करो। तौभी लेवियों ने कुछ फुतीं न की। 6 तब राजा ने यहोयादा महायाजक को बुलवा कर पूछा, क्या कारण है कि तू ने लेवियों को दृढ़ आज्ञा नहीं दी कि वे यहूदा और यरूशलेम से उस चन्दे के रुपए ले आएं जिसका नियम यहोवा के दास मूसा और इस्राएल की मण्डली ने साक्षीपत्र के तम्बू के निमित्त चलाया था। 7 उस दुष्ट स्त्री अतल्याह के बेटों ने तो परमेश्वर के भवन को तोड़ दिया और यहोवा के भवन की सब पवित्र की हुई वस्तुएं बाल देवताओं को दे दी थीं। 8 और राजा ने एक सन्दूक बनाने की आज्ञा दी और वह यहोवा के भवन के फाटक के पास बाहर रखा गया। 9 तब यहूदा और यरूशलेम में यह प्रचार किया गया कि जिस चन्दे का नियम परमेश्वर के दास मूसा ने जंगल में इस्राएल में चलाया था, उसके रुपए यहोवा के निमित्त ले आओ। 10 तो सब हाकिम और प्रजा के सब लोग आनन्दित हो रुपए लाकर जब तक चन्दा पूरा न हुआ तब तक सन्दूक में डालते गए। 11 और जब जब वह सन्दूक लेवियों के हाथ से राजा के प्रधानों के पास पहुंचाया जाता और यह जान पड़ता था कि उस में रुपए बहुत हैं, तब तब राजा के प्रधान और महायाजक का नाइब आकर सन्दूक को खाली करते और तब उसे फिर उसके स्थान पर रख देते थे। उन्होंने प्रतिदिन ऐसा किया और बहुत रुपए इकट्ठा किए। 12 तब राजा और यहोयादा ने वह रुपए यहोवा के भवन में काम करने वालों को दे दिए, और उन्होंने राजों और बढ़इयों को यहोवा के भवन के सुधारने के लिये, और लोहारों और ठठेरों को यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिये मजदूरी पर रखा। 13 और कारीगर काम करते गए और काम पूरा होता गया और उन्होंने परमेश्वर का भवन जैसा का तैसा बना कर दृढ़ कर दिया। 14 जब उन्होंने वह काम निपटा दिया, तब वे शेष रुपए राजा और यहोयादा के पास ले गए, और उन से यहोवा के भवन के लिये पात्र बनाए गए, अर्थात सेवा टहल करने और होमबलि चढ़ाने के पात्र और धूपदान आदि सोने चान्दी के पात्र। और जब तक यहोयादा जीवित रहा, तब तक यहोवा के भवन में होमबलि नित्य चढ़ाए जाते थे। 15 परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु हो कर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का था। 16 और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उसने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया था। 17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमों ने राजा के पास जा कर उसे दण्डवत की, और राजा ने उनकी मानी। 18 तब वे अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरों और मूरतों की उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 19 तौभी उसने उनके पास नबी भेजे कि उन को यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्होंने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्होंने कान न लगाया। 20 और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्थान पर खड़ा हो कर लोगों से कहने लगा, परमेश्वर यों कहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्यों टालते हो? ऐसा कर के तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उसने भी तुम को त्याग दिया। 21 तब लोगों ने उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया। 22 यों राजा योआश ने वह प्रीति भूल कर जो यहोयादा ने उस से की थी, उसके पुत्र को घात किया। और मरते समय उसने कहा यहोवा इस पर दृष्टि कर के इसका लेखा ले। 23 नए वर्ष के लगते अरामियों की सेना ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदा ओर यरूशलेम आकर प्रजा में से सब हाकिमों को नाश किया और उनका सब धन लूट कर दमिश्क के राजा के पास भेजा। 24 अरामियों की सेना थोड़े ही पुरुषों की तो आई, पन्तु यहोवा ने एक बहुत बड़ी सेना उनके हाथ कर दी, क्योंकि उन्होंने अपने पितरो के परमेश्वर को त्याग दिया था। और योआश को भी उन्होंने दण्ड दिया। 25 और जब वे उसे बहुत ही रोगी छोड़ गए, तब उसके कर्मचारियों ने यहोयादा याजक के पुत्रों के खून के कारण उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, उसे उसके बिछौने पर ही ऐसा मारा, कि वह मर गया; और उन्होंने उसको दाऊद पुर में मिट्टी दी, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। 26 जिन्होंने उस से राजद्रोह की गोष्ठी की, वे ये थे, अर्थात अम्मोनिन, शिमात का पुत्र जाबाद और शिम्रित, मोआबिन का पुत्र यहोजाबाद। 27 उसके बेटों के विषय और उसके विरुद्ध, जो बड़े दण्ड की नबूवत हुई, उसके और परमेश्वर के भवन के बनने के विषय ये सब बातें राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्थान पर राजा हुआ।
2 राजा अध्याय 14:(1-16) 1 इस्राएल के राजा यहोआहाज के पुत्र योआश के दूसरे वर्ष में यहूदा के राजा योआश का पुत्र असस्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा। तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यहोअद्दीन था, जो यरूशलेम की थी। 3 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था तौभी अपने मूल पुरुष दाऊद की नाईं न किया; उसने ठीक अपने पिता योआश के से काम किए। 4 उसके दिनों में ऊंचे स्थान गिराए न गए; लोग तब भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 5 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला, जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था। 6 परन्तु उन खूनियों के लड़के-बालों को उसने न मार डाला, क्योंकि यहोवा की यह आज्ञा मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और पिता के कारण पुत्र न मार डाला जाए: जिसने पाप किया हो, वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 7 उसी अमस्याह ने लोन की तराई में दस हजार एदोमी पुरुष मार डाले, और सेला नगर से युद्ध कर के उसे ले लिया, और उसका नाम योक्तेल रखा, और वह नाम आज तक चलता है। 8 तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा योआश के पास जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था दूतों से कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 9 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदारु के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन में का एक बनपशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला। 10 तू ने एदोमियों को जीता तो है इसलिये तू फूल उठा है। उसी पर बड़ाई मारता हुआ घर रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ उठाता है, जिस से तू क्या वरन यहूदा भी नीचा खाएगा? 11 परन्तु अमस्याह ने न माना। तब इस्राएल के राजा योआश ने चढाई की, और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामहना किया। 12 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और एक एक अपने अपने डेरे को भागा। 13 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को जो अहज्याह का पोता, और योआश का पुत्र था, बेतशेमेश में पकड़ लिया, और यरूशलेम को गया, और यरूशलेम की शहरपनाह में से एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 14 और जितना सोना, चान्दी और जितने पात्र यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारों में मिले, उन सब को और बन्धक लोगों को भी ले कर वह शोमरोन को लौट गया। 15 योआश के और काम जो उसने किए, ओर उसकी वीरता और उसने किस रीति यहूदा के राजा अमस्याह से युद्ध किया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 16 निदान योआश अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे इस्राएल के राजाओं के बीच शोमरोन में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यारोबाम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
2 इतिहास अध्याय 25 1 जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअद्दान था, जो यरूशलेम की थी। 2 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया। 3 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया, तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था। 4 परन्तु उसने उनके लड़के वालों को न मारा क्योंकि उसने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए, जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 5 और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियों और बिन्यामीनियों को इकट्ठा कर के उन को, पितरों के घरानों के अनुसार सहस्रपतियों और शतपतियों के अधिकार में ठहराया; और उन में से जितनों की अवस्था बीस वर्ष की अथवा उस से अधिक थी, उनकी गिनती कर के तीन लाख भाला चलाने वाले और ढाल उठाने वाले बड़े बड़े योद्धा पाए। 6 फिर उसने एक लाख इस्राएली शूरवीरों को भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा। 7 परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साथ जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्थात एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता। 8 यदि तू जा कर पुरुषार्थ करे; और युद्ध के लिये हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहायता करने और गिरा देने दोनों में परमेश्वर सामथीं है। 9 अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है। 10 तब अमस्याह ने उन्हें अर्थात उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया था, अलग कर दिया, कि वे अपने स्थान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित हो कर अपने स्थान को लौट गए। 11 परन्तु अमस्याह हियाव बान्ध कर अपने लोगों को ले चला, और लोन की तराई में जा कर, दस हजार सेईरियों को मार डाला। 12 और यहूदियों ने दस हजार को बन्धुआ कर के चट्टान की चोटी पर ले गए, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए। 13 परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साथ युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथोरोन तक यहूदा के सब नगरों पर टूट पड़े, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली। 14 जब अमस्याह एदोनियों का संहार कर के लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता कर के खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दण्डवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा। 15 तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उसने उसके पास एक नबी भेजा जिसने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है? 16 वह उस से कह ही रहा था कि उसने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कह कर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी। 17 तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति ले कर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था, यों कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 18 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यों कहला भेजा, कि लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपनी बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला। 19 तू कहता है, कि मैं ने एदोमियों को जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है! अपने घर में रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहां क्यों हाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा। 20 परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे। 21 तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया। 22 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपने अपने डेरे को भागा। 23 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्र था, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से एप्रैमी फाटक से कोने वाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 24 और जितना सोना चान्दी और जितने पात्र परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन में जितना खजाना था, उस सब को और बन्धक लोगों को भी ले कर वह शोमरोन को लौट गया। 25 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा। 26 आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 27 जिस समय अमस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़ कर फिर गया था उस समय से यरूशलेम में उसके विरुद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतों ने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला। 28 तब वह घोड़ों पर रख कर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई।
व्यवस्थाविवरण अध्याय 24:16 16 पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए॥
2 इतिहास अध्याय 24 :3 3 और यहोयादा ने उसके दो ब्याह कराए और उस से बेटे-बेटियां उत्पन्न हुई।
2 इतिहास अध्याय 25:15-16 15 तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उसने उसके पास एक नबी भेजा जिसने उस से कहा, जो देवता अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्यों लगा है? 16 वह उस से कह ही रहा था कि उसने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कह कर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी।
2 राजा अध्याय 15 :(1-7) 1 इस्राएल के राजा यारोबाम के सताईसवें वर्ष में यहूदा के राजा अमस्याह का पुत्र अजर्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा, तब सोलह वर्ष का था, और यरूशलेम में बावन वर्ष राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम यकोल्याह था, जो यरूशलेम की थी। 3 जैसे उसका पिता अमस्याह किया करता था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था, वैसे ही वह भी करता था। 4 तौभी ऊंचे स्थान गिराए न गए; प्रजा के लोग उस समय भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 5 और यहोवा ने उस राजा को ऐसा मारा, कि वह मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और अलग एक घर में रहता था। और योताम नाम राजपुत्र उसके घराने के काम पर अधिकारी हो कर देश के लोगों का न्याय करता था। 6 अजर्याह के और सब काम जो उसने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में तहीं लिखे हैं? 7 निदान अजर्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया और उस को दाऊदपुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र योताम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
2 इतिहास अध्याय 26 1 तब सब यहूदी प्रजा ने उज्जिय्याह को ले कर जो सोलह वर्ष का था, उसके पिता अमस्याह के स्थान पर राजा बनाया। 2 जब राजा अमस्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया तब उज्जिय्याह ने एलोत नगर को दृढ़ कर के यहूदा में फिर मिला लिया। 3 जब उज्जिय्याह राज्य करने लगा, तब वह सोलह वर्ष का था। और यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम यकील्याह था, जो यरूशलेम की थी। 4 जैसे उसका पिता अमस्याह, किया करता था वैसा ही उसने भी किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 5 और जकर्याह के दिनों में जो परमेश्वर के दर्शन के विषय समझ रखता था, वह परमेश्वर की खोज में लगा रहता था; और जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा। 6 तब उसने जा कर पलिश्तियों से युद्ध किया, और गत, यब्ने और अशदोद की शहरपनाहें गिरा दीं, और अशदोद के आसपास और पलिश्तियों के बीच में नगर बसाए। 7 और परमेश्वर ने पलिश्तियों और गूर्बालवासी, अरबियों और मूनियों के विरुद्ध उसकी सहायता की। 8 और अम्मोनी उज्जिय्याह को भेंट देने लगे, वरन उसकी कीर्ति मिस्र के सिवाने तक भी फैल गई्र, क्योंकि वह अत्यन्त सामथीं हो गया था। 9 फिर उज्जिय्याह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर गुम्मट बनवा कर दृढ़ किए। 10 और उसके बहुत जानवर थे इसलिये उसने जंगल में और नीचे के देश और चौरस देश में गुम्मट बनवाए और बहुत से हौद खुदवाए, और पहाड़ों पर और कर्म्मेल में उसके किसान और दाख की बारियों के माली थे, क्योंकि वह खेती किसानी करने वाला था। 11 फिर उज्जिय्याह के योद्धाओं की एक सेना थी जिनकी गिनती यीएल मुंशी और मासेयाह सरदार, हनन्याह नामक राजा के एक हाकिम की आज्ञा से करते थे, और उसके अनुसार वह दल बान्ध कर लड़ने को जाती थी। 12 पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरुष जो शूरवीर थे, उनकी पूरी गिनती दो हजार छ: सौ थी। 13 और उनके अधिकार में तीन लाख साढ़े सात हजार की एक बड़ी बड़ी सेना थी, जो शत्रुओं के विरुद्ध राजा की सहायता करने को बड़े बल से युद्ध करने वाले थे। 14 इनके लिये अर्थात पूरी सेना के लिये उज्जिय्याह ने ढालें, भाले, टोप, झिलम, धनुष और गोफन के पत्थर तैयार किए। 15 फिर उसने यरूशलेम में गुम्मटों और कंगूरों पर रखने को चतुर पुरुषों के निकाले हुए यन्त्र भी बनवाए जिनके द्वारा तीर और बड़े बड़े पत्थर फेंके जाते थे। और उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अदभुत सहायता यहां तक मिली कि वह सामथीं हो गया। 16 परन्तु जब वह सामथीं हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उसने बिगड़ कर अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया, अर्थात वह धूप की वेदी पर धूप जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया। 17 और अजर्याह याजक उसके बाद भीतर गया, और उसके संग यहोवा के अस्सी याजक भी जो वीर थे गए। 18 और उन्होंने उज्जिय्याह राजा का साम्हना कर के उस से कहा, हे उज्जिय्याह यहोवा के लिये धूप जलाना तेरा काम नहीं, हारून की सन्तान अर्थात उन याजकों ही का काम है, जो धूप जलाने को पवित्र किए गए हैं। तू पवित्र स्थान से निकल जा; तू ने विश्वासघात किया है, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह तेरी महिमा का कारण न होगा। 19 तब उज्जिय्याह धूप जलाने को धूपदान हाथ में लिये हुए झुंझला उठा। और वह याजकों पर झुंझला रहा था, कि याजकों के देखते देखते यहोवा के भवन में धूप की वेदी के पास ही उसके माथे पर कोढ़ प्रगट हुआ। 20 और अजर्याह महायाजक और सब याजकों ने उस पर दृष्टि की, और क्या देखा कि उसके माथे पर कोढ़ निकला है! तब उन्होंने उसको वहां से झटपट निकाल दिया, वरन यह जान कर कि यहोवा ने मुझे कोढ़ी कर दिया है, उसने आप बाहर जाने को उतावली की। 21 और उज्जिय्याह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता था, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता था। और उसका पुत्र योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगों का न्याय भी करता था। 22 आदि से अन्त तक उज्जिय्याह के और कामों का वर्णन तो आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने लिखा है। 23 निदान उज्जिय्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के निकट राजाओं के मिट्टी देने के खेत में मिट्टी दी गई क्योंकि उन्होंने कहा, कि वह कोढ़ी है। और उसका पुत्र योताम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।
2 राजा अध्याय 15:21 21 मनहेम के उौर काम जो उसने किए, वे सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?
2 इतिहास अध्याय 27 1 जब योताम राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यरूशा था, जो सादोक की बेठी थी। 2 उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, अर्थात जैसा उसके पिता उज्जिय्याह ने किया था, ठीक वैसा ही उसने भी किया: तौभी वह यहोवा के मन्दिर में न घुसा। और प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे। 3 उसी ने यहोवा के भवन के ऊपर वाले फाटक को बनाया, और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत कुछ बनवाया। 4 फिर उसने यहूदा के पहाड़ी देश में कई नगर दृढ़ किए, और जंगलों में गढ़ और गुम्मट बनाए। 5 और वह अम्मोनियों के राजा से युद्ध कर के उन पर प्रबल हो गया। उसी वर्ष अम्मोनियों ने उसको सौ किक्कार चांदी, और दस दस हजार कोर गेहूं और जव दिया। और फिर दूसरे और तीसरे वर्ष में भी उन्होंने उसे उतना ही दिया। 6 यों योताम सामथीं हो गया, क्योंकि वह अपने आप को अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख जान कर सीधी चाल चलता था। 7 योताम के और काम और उसके सब युद्ध और उसकी चाल चलन, इन सब बातों का वर्णन इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास में लिखा है। 8 जब वह राजा हुआ, तब पच्चीस वर्ष का था; और वह यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 9 निदान योताम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र आहाज उसके स्थान पर राज्य करने लगा।