पाठ 7 : सुलैमान का मंदिर
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सारांश
सुलैमान का मंदिर राजाओं के वृतांत में सुलैमान का मंदिर मुख्य विषय है। 1 राजा में उसके निर्माण का विवरण लिखा गया है, जबकि 2 राजा में उसके विनाश का विवरण है। इस्राएल के इतिहास में हम तीन मंदिरों को देखते हैं। पहला, सुलैमान का मंदिर (जो ईसापूर्व वर्ष 960 में बनाया गया और 800 वर्ष तक बना रहा)। इस मंदिर का निर्माण कार्य मिस्त्र से निर्गमन के 480 वर्ष बाद शुरू किया गया ऐसा बताया जाता है। दूसरा मंदिर जरूबाब्बेल द्वारा (जो ईसापूर्व वर्ष 515 में बनाया गया और 500 वर्षों तक बना रहा) बनाया गया था, और तीसरा हेरोदेस का मंदिर (जो ईसापूर्व वर्ष 20 में बनाया गया और 90 वर्ष तक बना रहा) था। इस्राएल के जीवन में मंदिरों की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका क्यों थी? इसका एक अच्छा उत्तर मंदिर से पूर्व निर्मित मिलापवाले तंबू में पाया जाता है परमेश्वर ने मिलापवाले तंबू के प्रतीकों के माध्यम से स्वयं को और उसके लोगों के छुटकारे के कार्य को ज्यादा दिखाया है। एक महत्वपूर्ण सत्य यह था कि केवल उसे ही इस्राएल के जीवन का केंद्र होना चाहिये और इस्राएल को केवल उसी की आराधना और सेवा करना चाहिये। इस्राएल के समयसारिणी के अनुसार वह समय था जब मिलापवाले तंबू की जगह एक मंदिर बनाया जाए। दाऊद इस मंदिर को बनाना चाहता था परंतु इस्राएल देश को उसके शत्रुओं से छुटकारा दिलाने के लिये उसकी जवाबदारी सैन्य के प्रति ज्यादा थी। अब जब कि राज्य का विस्तार हो चुका था और आंतरिक एकता और शांति स्थापित हो चुकी थी, सुलैमान द्वारा इमारत बनाने का समय आ गया था। करीब-करीब उसके राजा बनते ही सुलैमान ने मंदिर बनाने की विस्तृत तैयारियाँ शुरू कर दिया था। सोर के राजा के साथ उसका आदान-प्रदान, 30000 लोगों से वसूला जानेवाला कर, कार्य की विस्तृत रूपरेखा की तैयारी, सामग्रियों का तैयार किया जाना और उन्हें मंदिर बनाने के स्थान पर लाना इन सब कार्यों के लिये कम से कम 3 वर्ष का समय लगा होगा, क्योंकि हम पढते हैं कि सुलैमान के शासन के चैथे वर्ष निर्माण का वास्तविक कार्य शुरू किया गया था। हमें यह भी नही भूलना चाहिये कि दाऊद ने भी परमेश्वर के भवन के निर्माण की बड़ी तैयारियाँ किया था। उसकी मृत्यु के पहले ही उसने काफी सोना, चांदी, बहुमूल्य पत्थर और संगमरमर इकट्ठा कर लिया था जो इमारत के निर्माण के लिये आवश्यक थीं। मंदिर 90 फुट लंबा, 30 फुट चैड़ा और 45 फुट ऊँचा था। यह दो भागों में विभक्त था। पहला कमरा पवित्रस्थान था जो 60 फुट लंबा, 30 फुट चैड़ा और 45 फुट ऊँचा था। दूसरा कमरा भीतरी पवित्रस्थान था, जो 30 फुट लंबा, 30 फुट चैड़ा, और 30 फुट उँचा था। पूर्व में ओसारा 30 फुट और लंबा था और जमीन से 15 फुट ऊँचा था। मंदिर के उत्तर, पश्चिम और दक्षिण बाजुओं में कमरों की तीन मंजिले थीं जो याजकों के लिये थी। ये मंदिर की दीवाल के विपरीत थे। मंदिर के लिये सभी तख्ते और पत्थर उचित नाप में यरूशलेम में लाने से पहले खदान में ही बना कर तैयार कर लिये गए थे ताकि उन्हें लोहे के औजारों के उपयोग किए बिना ही जोड़ा जा सके। इस प्रकार मंदिर का बांधकाम बिना किसी शोरगुल के पूरा किया गया ठीक वैसे ही जैसे आज परमेश्वर के जीवते मंदिर का निर्माण किया जाता है। इमारत का भीतरी भाग देवदारू के तख्तों से बना था जिस पर शुद्ध सोना मढ़ा हुआ था। भीतरी पवित्रस्थान में दो करूब बने थे जो सोने से मढे़ थे और संदूक के दोनों ओर खड़े थे। उनके फेले हुए पंख एक दीवाल से दूसरी दीवाल तक थे। ये दया के सिंहासन वाले करूब के समान नहीं थे। मंदिर के भीतर कुछ और नहीं केवल सोना ही दिख पड़ता था। भीतरी पवित्र स्थान में प्रवेश के लिये सुलैमान ने जैतून की लकड़ी के पाँच बाजूवाले दोहरे दरवाजे बनाया। इन दरवाजों को करूबों, खजूर के पेड़ों खुले फूलों की आकृतियाँ तराशकर बनाया गया था और सोने से मढ़ा गया था। कमरों को परदों से विभाजित किया गया था जो भीतरी पवित्र स्थान के दरवाजों पर टंगे थे। मंदिर के सामने याजकों का भीतरी आंगन था। उसके बीच में एक निचली दीवार थी और बाहरी आंगन था। यह दीवाल तराशे गये पत्थरों की तीन कतारों से बनी थी और एक कतार देवदारू के खंबों से बनी थी। भीतरी आंगन में बलि चढ़ाने के लिये पीतल की वेदियाँ बनी थी, एक ढाला हुआ हौज (एक बड़ा हौज 1 राजा 7:23-26) जिसका शुद्धिकरण के लिये याजकों द्वारा उपयोग किया जाता था। इसके अलावा इस उद्देश्य के लिये दस और छोटे हौज बनाए गये थे। बाहरी आंगन लोगों के लिये था। मंदिर न केवल आराधना का स्थान था, परंतु सर्वशक्तिमान का वास्तविक निवास स्थान भी था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि सुलैमान ने कहा कि यह महान और अद्भुत होगा, यहाँ तक कि दाऊद ने भी कहा था, जो भवन यहोवा के लिये बनाना है, उसे अत्यंत तेजोमय और सब देशों में प्रसिद्ध और शोभायमान होना चाहिये।" (1 इतिहास 22:5)। सुलैमान के मंदिर की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- मंदिर का निर्माण कार्य ईसापूर्व वर्ष 966 में शुरू किया गया था। मंदिर को बनाने में सात वर्ष लगे।
- इस इमारत की रूपरेखा दाऊद को परमेश्वर के द्वारा दी गई थी (1 इतिहास 28:19) और दाऊद ने उसे सुलैमान को दिया था (1 इतिहास 28:11-12,2 इतिहास 3:3)।
- अपने संपूर्ण आकार में मंदिर मिलापवाले तंबू के समान ही था। मंदिर और तंबू दोनों में दो समान मुख्य क्षेत्र थे, जिसे पवित्रस्थान और अति पवित्र स्थान या अति पवित्र कहा जाता था।
- मंदिर के सामने के दो खंबे यकिन “वही स्थिर करेगा” और बोअज “उसी में सामर्थ” थे।
- पात्र (1 राजा 7:48) भी उन्हीं के समान थे जो तंबू में रखे गये थे, परंतु आकर और गिनती में अंतर था। तंबू में एक हौज था, एक धूपदानी और पवित्र रोटी की एक मेज थी। मंदिर के लिये बताए गये सभी बर्तन बड़े पैमाने पर बनाए गए थे और वे तंबू में रखे बर्तनों की संख्या से ज्यादा थे।
- यद्यपि सुलैमान ने पीतल की नई वेदी, नए धूपदान, मेजें, हौज, बर्तन, पावडे,और हुक्स मंदिर के लिये बनवाए थे, लेकिन उसने वाचा का संदूक नया नहीं बनाया। वाचा का वह संदूक जिसे मंदिर में लाया गया था वही था जो सीनै पर्वत पर था।
- सुलैमान का अपना घर कई घरों से मिलकर बना था (1 राजा 7:1-12); लबानोन के जंगल का घर (ऐसा इसलिये कहा जाता है क्योंकि देवदारू की लकडियाँ लबानोन से ही आती थीं) खंबों का कमरा, सिंहासन का कमरा (न्याय का कमरा) उसका व्यक्तिगत शाही आंगन, और उसकी पत्नी के लिये महल। मंदिर की अर्पण विधि अविस्मरणीय घटना थी। इस पवित्र विधि की बारीकियाँ कितनी प्रभावशाली रही होगी। सुलैमान ने इस्राएल के सभी बुजुर्गों और प्रधानों को प्रभु के संदूक को मंदिर में लाने के लिय बुलवाया था। राजा और बुजुर्गों द्वारा चढ़ाए गए बलिदानों को बहुतायात के कारण गिना नहीं जा सकता था। श्वेत वस्त्र पहने याजक, गायक और संगीतज्ञों ने परमेश्वर की स्तुति के गीत गाए। और फिर जब सभी लोगों ने मंदिर की ओर देखा और प्रत्येक हृदय से निकलनेवाली स्तुति ऊपर उठी तब स्वयं परमेश्वर उतर आया और मंदिर में समा गया, बादलों में अपनी उपस्थिति प्रगट किया और उस महिमा से जो पूरे भवन में फैल गई थी। इस बात ने इस्राएल देश के इतिहास को रचा जब राजा, याजक, अगुवे और लोगों को एक मन को उनके मध्य उनके कर्ता छुड़ानेहारे और महाराजा का स्वागत किया। जिस मंदिर को सुलैमान ने बनाया था वह पहली विशाल इमारत थी जो किसी इस्राएली शासक ने बनाया था। मंदिर के निर्माण की निगरानी सुलैमान की जितनी बड़ी जिम्मेदारी थी, उससे बढकर लोगों के प्रति उसकी आत्मिक अगुवाई की जवाबदारी थी। परमेश्वर ने कहा कि इस्राएल की संतानों के मध्य उसका डेरा सुलैमान की विश्वासयोग्यता पर आधारित था। परंतु सुलैमान जैसा महान और बुद्धिमान वह था, परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्यता में चूक गया, और जिस मूर्तिपूजा को उसने बाद में प्रचलित किया उसने सारे देश को परमेश्वर के विषय अविश्वासयोग्य बना दिया।
बाइबल अध्यन
1 राजा अध्याय 7 1 और सुलैमान ने अपने महल को बनाया, और उसके पूरा करने में तेरह वर्ष लगे। 2 और उसने लबानोनी वन नाम महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी; वह तो देवदारु के खम्भों की चार पांति पर बना और खम्भों पर देवदारु की कडिय़ां धरी गईं। 3 और खम्भों के ऊपर देवदारु की छत वाली पैंतालीस कोठरियां अर्थात एक एक महल में पन्द्रह कोठरियां बनीं। 4 तीनों महलों में कडिय़ां धरी गई, और तीनों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 5 और सब द्वार और बाजुओं की कडिय़ां भी चौकोर थी, और तीनों महलों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 6 और उसने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की थी, और इन खम्भों के साम्हने एक खम्भे वाला ओसारा और उसके साम्हने डेवढ़ी बनाई। 7 फिर उसने न्याय के सिंहासन के लिये भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उस में ऐक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदारु की तख्ताबन्दी थी। 8 और उसी के रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आंगन में बना, वह भी उसी ढब से बना। फिर उसी ओसारे के ढब से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिये जिस को उसने ब्याह लिया था, एक और भवन बनाया। 9 ये सब घर बाहर भीतर नेव से मुंढेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्थरों के बने जो नापकर, और आरों से चीरकर तैयार किये गए थे और बाहर के आंगन से ले बड़े आंगन तक लगाए गए। 10 उसकी नेव तो बड़े मोल के बड़े बड़े अर्थात दस दस और आठ आठ हाथ के पत्थरों की डाली गई थी। 11 और ऊपर भी बड़े मोल के पत्थर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदारु की लकड़ी भी थी। 12 और बड़े आंगन के चारों ओर के घेरे में गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और देवदारु की कडिय़ों का एक परत था, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतर वाले आंगन और भवन के ओसारे में लगे थे। 13 फिर राजा सुलैमान ने सोर से हीराम को बुलवा भेजा। 14 वह नप्ताली के गोत्र की किसी विधवा का बेटा था, और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा था, और वह पीतल की सब प्रकार की कारीगरी में पूरी बुद्धि, निपुणता और समझ रखता था। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा। 15 उसने पीतल ढालकर अठारह अठारह हाथ ऊंचे दो खम्भे बनाए, और एक एक का घेरा बारह हाथ के सूत का था। 16 और उसने खम्भों के सिरों पर लगाने को पीतल ढालकर दो कंगनी बनाईं; एक एक कंगनी की ऊंचाई, पांच पांच हाथ की थी। 17 और खम्भों के सिरों पर की कंगनियों के लिये चारखाने की सात सात जालियां, और सांकलों की सात सात झालरें बनीं। 18 और उसने खम्भों को भी इस प्रकार बनाया; कि खम्भों के सिरों पर की एक एक कंगनी के ढांपने को चारों ओर जालियों की एक एक पांति पर अनारों की दो पांतियां हों। 19 और जो कंगनियां ओसारों में खम्भो के सिरों पर बनीं, उन में चार चार हाथ ऊंचे सोसन के फूल बने हुए थे। 20 और एक एक खम्भे के सिरे पर, उस गोलाई के पास जो जाली से लगी थी, एक और कंगनी बनी, और एक एक कंगनी पर जो अनार चारों ओर पांति पांति करके बने थे वह दो सौ थे। 21 उन खम्भों को उसने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया, और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाईं ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम बोआज़ रखा। 22 और खम्भों के सिरों पर सोसन के फूल का काम बना था खम्भों का काम इसी रीति हुआ। 23 फिर उसने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर था। 24 और उसके चारों ओर मोहड़े के नीचे एक एक हाथ में दस दस इन्द्रायन बने, जो हौज को घेरे थीं; जब वह ढाला गया; तब ये इन्द्रायन भी दो पांति करके ढाले गए। 25 और वह बारह बने हुए बैलों पर रखा गया जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन, और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज था, और उन सभों का पिछला अंग भीतर की ओर था। 26 और उसका दल चौबा भर का था, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाईं सोसन के फूलों के काम से बना था, और उस में दो हज़ार बत की समाई थी। 27 फिर उसने पीतल के दस पाये बनाए, एक एक पाये की लम्बाई चार हाथ, चौड़ाई भी चार हाथ और ऊंचाई तीन हाथ की थी। 28 उन पायों की बनावट इस प्रकार थी; उनके पटरियां थीं, और पटरियों के बीचोंबीच जोड़ भी थे। 29 और जोड़ों के बीचों बीच की पटरियों पर सिंह, बैल, और करूब बने थे और जोड़ों के ऊपर भी एक एक और पाया बना और सिंहों और बैलों के नीचे लटकते हुए हार बने थे। 30 और एक एक पाये के लिये पीतल के चार पहिये और पीतल की धुरियां बनी; और एक एक के चारों कोनों से लगे हुए कंधे भी ढाल कर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुंचते थे, और एक एक कंधे के पास हार बने हुए थे। 31 और हौदी का मोहड़ा जो पाये की कंगनी के भीतर और ऊपर भी था वह एक हाथ ऊंचा था, और पाये का मोहड़ा जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी, वह पाये की बनावट के समान गोल बना; और पाये के उसी मोहड़े पर भी कुछ खुदा हुआ काम था और उनकी पटरियां गोल नहीं, चौकोर थीं। 32 और चारों पहिये, पटरियो के नीचे थे, और एक एक पाये के पहियों में धुरियां भी थीं; और एक एक पहिये की ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी। 33 पहियों की बनावट, रथ के पहिये की सी थी, और उनकी धुरियां, पुट्ठियां, आरे, और नाभें सब ढाली हुई थीं। 34 और एक एक पाये के चारों कोनों पर चार कंधे थे, और कंधे और पाये दोनों एक ही टुकड़े के बने थे। 35 और एक एक पाये के सिरे पर आध हाथ ऊंची चारों ओर गोलाई थी, और पाये के सिरे पर की टेकें और पटरियां पाये से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे। 36 और टेकों के पाटों और पटरियों पर जितनी जगह जिस पर थी, उस में उसने करूब, और सिंह, और खजूर के वृक्ष खोद कर भर दिये, और चारों ओर हार भी बनाए। 37 इसी प्रकार से उसने दसों पायों को बनाया; सभों का एक ही सांचा और एक ही नाप, और एक ही आकार था। 38 और उसने पीतल की दस हौदी बनाईं। एक एक हौदी में चालीस चालीस बत की समाई थी; और एक एक, चार चार हाथ चौड़ी थी, और दसों पायों में से एक एक पर, एक एक हौदी थी। 39 और उसने पांच हौदी भवन की दक्खिन की ओर, और पांच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्थात पूर्व की ओर, और दक्खिन के साम्हने धर दिया। 40 और हीराम ने हौदियों, फावडिय़ों, और कटोरों को भी बनाया। सो हीराम ने राजा सुलैमान के लिये यहोवा के भवन में जितना काम करना था, वह सब निपटा दिया, 41 अर्थात दो खम्भे, और उन कंगनियों की गोलाइयां जो दोनों खम्भों के सिरे पर थीं, और दोनों खम्भों के सिरों पर की गोलाइयों के ढांपने को दो दो जालियां, और दोनों जालियों के लिय चार चार सौ अनार, 42 अर्थात खम्भों के सिरों पर जो गोलाइयां थीं, उनके ढांपने के लिये अर्थात एक एक जाली के लिये अनारों की दो दो पांति; 43 दस पाये और इन पर की दस हौदी, 44 एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल, और हंडे, फावडिय़ां, 45 और कटोरे बने। ये सब पात्र जिन्हें हीराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिये बनाया, वह झलकाये हुए पीतल के बने। 46 राजा ने उन को यरदन की तराई में अर्थात सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टी वाली भूमि में ढाला। 47 और सुलैमान ने सब पात्रों को बहुत अधिक होने के कारण बिना तौले छोड़ दिया, पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका। 48 यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्थात सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी, 49 और चोखे सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पांच तो दक्खिन की ओर, और पांच उत्तर की ओर रखी गई; और सोने के फूल, 50 दीपक और चिमटे, और चोखे सोने के तसले, कैंचियां, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतर वाला भवन जो परमपवित्र स्थान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनों के किवाड़ों के लिये सोने के कब्जे बने। 51 निदान जो जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये किया, वह सब पूरा किया गया। तब सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने चांदी और पात्रों को भीतर पहुंचा कर यहोवा के भवन के भणडारों में रख दिया।
2 शमूएल 7:2 2 तब राजा नातान नाम भविष्यद्वक्ता से कहने लगा, देख, मैं तो देवदारु के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु परमेश्वर का सन्दूक तम्बू में रहता है।
2 शमूएल 7:12-13 12 जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी, और तू अपने पुरखाओं के संग सो जाएगा, तब मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूंगा। 13 मेरे नाम का घर वही बनवाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा।
1 राजा 7:23-26 23 फिर उसने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा था, उसका आकार गोल था, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की थी, और उसके चारों ओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर था। 24 और उसके चारों ओर मोहड़े के नीचे एक एक हाथ में दस दस इन्द्रायन बने, जो हौज को घेरे थीं; जब वह ढाला गया; तब ये इन्द्रायन भी दो पांति करके ढाले गए। 25 और वह बारह बने हुए बैलों पर रखा गया जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन, और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज था, और उन सभों का पिछला अंग भीतर की ओर था। 26 और उसका दल चौबा भर का था, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाईं सोसन के फूलों के काम से बना था, और उस में दो हज़ार बत की समाई थी।
1 इतिहास 22:5 5 और दाऊद ने कहा, मेरा पुत्र सुलैमान सुकुमार और लड़का है, और जो भवन यहोवा के लिये बनाना है, उसे अत्यन्त तेजोमय और सब देशों में प्रसिद्ध और शोभायमान होना चाहिये; इसलिये मैं उसके लिये तैयारी करूंगा। सो दाऊद ने मरने से पहिले बहुत तैयारी की।
1 इतिहास 28:19 19 मैं ने यहोवा की शक्ति से जो मुझ को मिली, यह सब कुछ बूझ कर लिख दिया है।
1 इतिहास 28:11-12 11 तब दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान को मन्दिर के ओसारे, कोठरियों, भण्डारों अटारियों, भीतरी कोठरियों, और प्रायश्चित के ढकने से स्थान का नमूना, 12 और यहोवा के भवन के आंगनों और चारों ओर की कोठरियों, और परमेश्वर के भवन के भण्डारों और पवित्र की हुई वस्तुओं के भण्डारों के, जो जो नमूने ईश्वर के आत्मा की प्रेरणा से उसको मिले थे, वे सब दे दिए।
2 इतिहास 3:3 3 परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढब है, अर्थात उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की थी।
1 राजा 7:48 48 यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्थात सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी,
1 राजा 7:1-12 1 और सुलैमान ने अपने महल को बनाया, और उसके पूरा करने में तेरह वर्ष लगे। 2 और उसने लबानोनी वन नाम महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी; वह तो देवदारु के खम्भों की चार पांति पर बना और खम्भों पर देवदारु की कडिय़ां धरी गईं। 3 और खम्भों के ऊपर देवदारु की छत वाली पैंतालीस कोठरियां अर्थात एक एक महल में पन्द्रह कोठरियां बनीं। 4 तीनों महलों में कडिय़ां धरी गई, और तीनों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 5 और सब द्वार और बाजुओं की कडिय़ां भी चौकोर थी, और तीनों महलों में खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 6 और उसने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की थी, और इन खम्भों के साम्हने एक खम्भे वाला ओसारा और उसके साम्हने डेवढ़ी बनाई। 7 फिर उसने न्याय के सिंहासन के लिये भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उस में ऐक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदारु की तख्ताबन्दी थी। 8 और उसी के रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आंगन में बना, वह भी उसी ढब से बना। फिर उसी ओसारे के ढब से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिये जिस को उसने ब्याह लिया था, एक और भवन बनाया। 9 ये सब घर बाहर भीतर नेव से मुंढेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्थरों के बने जो नापकर, और आरों से चीरकर तैयार किये गए थे और बाहर के आंगन से ले बड़े आंगन तक लगाए गए। 10 उसकी नेव तो बड़े मोल के बड़े बड़े अर्थात दस दस और आठ आठ हाथ के पत्थरों की डाली गई थी। 11 और ऊपर भी बड़े मोल के पत्थर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदारु की लकड़ी भी थी। 12 और बड़े आंगन के चारों ओर के घेरे में गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और देवदारु की कडिय़ों का एक परत था, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतर वाले आंगन और भवन के ओसारे में लगे थे।