पाठ 39 : 1, 2 और 3 यूहन्ना का सर्वेक्षण
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सारांश
यूहन्ना की पहली, दूसरी और तीसरी पत्री का सर्वेक्षण
1 यूहन्ना
यूहन्ना ने यह पुस्तक करीब सन 90 में इफिसुस से लिखा जहाँ वह आसिया
की कलीसियाओं में सेवा कर रहा था। पतरस, पौलुस और अन्य प्रेरित सताने वालों
के हाथों मार डाले गए थे। केवल यूहन्ना ही अंतिम जीवित प्रेरित रह गया था।
यूहन्ना की पहली पत्री उसके सुसमाचार पर ही आधारित है। यूहन्ना ने उसका
सुसमाचार इसलिये लिखा कि वे विश्वास करें कि यीशु मसीहा है, परमेश्वर का पुत्र
है और यह भी कि उस पर विश्वास करने के द्वारा उन्हें जीवन प्राप्त होगा
(यूहन्ना 20:31)। उसने पहली पत्री इसलिये लिखा कि जो विश्वास करते हैं वे अनंतजीवन
के विषय निश्चित रहें (1यूहन्ना 5:13)। जब हम उसके साथ उसकी संगति में चलते
हैं, तब हम उसके चरित्र को प्रदर्शित करते हैं और हमारे पास किसी भी झूठी शिक्षा
का तिरस्कार करने का हियाव होता है जो हमें परमेश्वर से दूर ले जा सकती हैं।
परमेश्वर ज्योति है, परमेश्वर प्रेम है, और परमेश्वर जीवन है। यूहन्ना ऐसे
परमेश्वर के साथ संगति का आनंद ले रहा है जो ज्योति है, प्रेम है और जीवन है,
और वह हृदय से चाहता है कि उसके आत्मिक बच्चे भी उसी संगति का आनंद लें।
परमेश्वर ज्योति है
इसलिये उसके साथ संगति में जुड़ने के लिये हमें ज्योति में चलना होगा अंधकार
में नहीं। “ज्योति में चलने” का हमारा प्रमाण परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना और
प्रेम के साथ हमारे हृदय से उस कड़वाहट या घृणा को निकालना है जो हम अपने
किसी भाई के विषय रखते हैं। इस संगति में बाधक दो बड़ी रूकावटें संसार के प्रेम
में पड़ना और झूठे शिक्षकों के झूठ में फँसना है।
परमेश्वर प्रेम है
चूँकि हम उसकी संतानें हैं हमें प्रेम में चलना चाहिये। वास्तव में यूहन्ना कहता
है कि यदि हम प्रेम न करें तो हम परमेश्वर को नहीं जानते। इतना ही नहीं, हमारा
प्रेम व्यवहारिक होना चाहिये। प्रेम मात्र शब्दों से बढ़कर है, यह कार्यों में होता है।
प्रेम देना है, पाना नहीं। बायबल का प्रेम स्वभाव से शर्तहीन है। मसीह के प्रेम ने उन
गुणों को पूरा किया और जब यह प्रेम हमारे जीवनों से दिख पड़ता है, तब हम
आत्म-दोष से स्वतंत्र होंगे और परमेश्वर के सामने हमें हियाव होगा।
परमेश्वर जीवन है
जो उसकी संगति करते हैं उनमें उसके जीवन के गुण होना चाहिये। आत्मिक
जीवन आत्मिक जनम के साथ शुरू होता है। आत्मिक जन्म मसीह यीशु में विश्वास
के द्वारा होता है। यीशु मसीह में विश्वास हमें परमेश्वर के जीवन से भर देता है -
अनंत जीवन से। इसलिये जो परमेश्वर की संगति में चलता है वह ज्योति, प्रेम और
जीवन में चलेगा।
यूहन्ना उसकी पत्री को विश्वास के शब्दों के साथ खत्म करता है, क्योंकि
विश्वास संसार और उसके झूठ पर विजय पाने की कुँजी है। विश्वास का सत्य यह
है “कि यीशु ही मसीह है” (5:1)। हमारे विश्वास का प्रमाण परमेश्वर के लिये हमारा
प्रेम है, दूसरों के लिये प्रेम और परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन है (पद 2)। विश्वास
का परिणाम संसार पर विजय है (पद 4-5)। और हमारे विश्वास की पुष्टि आत्मा
की गवाही है (पद 6-10)। फिर हम परमेश्वर की अनंत प्रतिज्ञाओं के विषय पढ़ते
हैं (पद 11-13) जो हमें हमारी प्रार्थनाओं में यकीन दिलाती है (पद 14-15), दूसरों
को पाप से निकालने में हियाव देती हैं (पद 16-17),शैतान के विरुद्ध हियाव बंधाती
है (पद 18), संसार की ताकतों के विरोध में हियाव बंधाती है (पद 19), और
परमेश्वर के साथ हमारे संबंध का यकीन दिलाती है (पद 20)।
यह पत्र एक चेतावनी के साथ खत्म होता है, “हे बालको, अपने आपको मूरतों
से बचाए रखो” (पद 21)। यूहन्ना किस मूर्ति के विषय कह रहा है? मसीही जीवन
में मूर्ति कुछ भी हो सकती है जो परमेश्वर को हमारे जीवन के केंद्र से हटाती है।
आधुनिक मूर्तियाँ धन, भौतिक सामग्रियाँ, शक्ति/अधिकार, लोग या प्रसिद्धि हो सकते
हैं। वे विचार या लोग भी हो सकते हैं जो परमेश्वर का स्थान ले लेते हैं। मूर्तिपूजा
का विरुद्धार्थी शब्द मसीह में विश्वास है - उस पर पूरी निर्भरता जो हमें अनंतजीवन
देता है और हमें परमेश्वर की व्यक्तिगत संगति में आमंत्रित करता है जो शुद्ध ज्योति
और अचूक प्रेम है।
2 यूहन्ना
यह छोटी पत्री 1 यूहन्ना के समान ही है जिसमें झूठे शिक्षकों का खतरे के
विषय चेतावनी भी सम्मिलित है जो यह सिखाते हैं कि यीशु “शरीर में होकर नहीं
आया” (पद 7)। यूहन्ना पाठकों को प्रोत्साहित करता है कि वे प्रेम में चलें परंतु
उन्हें उनके प्रेम की अभिव्यक्ति को भी परखने की चेतावनी देता है।
वह इसी पत्री को “चुनी हुई महिला और उसके बच्चों को” संबोधित करता
है। एक विवाद है कि वह “महिला” और बच्चे वास्तविक लोग हैं। कलीसिया और
उसके सदस्यों के रूपक हैं। नए नियम में अन्य स्थान पर कलीसिया को एक स्त्री
के रूप में चित्रित किया गया है (इफिसियों 5:22-32; प्रकाशितवाक्य 19:7) और
यूहन्ना अपने पाठकों को अक्सर “बालको” कहता है। लेकिन व्यक्तिगत संदर्भ जैसे
“महिला” (2 यूहन्ना 5)
उसका “घर” (पद 10) और उसकी बहन (पद 13) दर्शाते हैं कि यूहन्ना किसी
वास्तविक महिला को लिख रहा था। इस पत्री को 4 भागों में बाँटा जा सकता है:
परिचय (2 यूहन्ना 1-3)
सच्चाई और प्रेम में चलने का प्रोत्साहन (पद 4-6), गलत के विरुद्ध खड़े रहने
का निर्देश (पद 7-11); और समाप्ति (पद 12-13)
परिचय (2 यूहन्ना 1-3)
पौलुस अपने पाठकों के प्रति गहरी भावनाओं को व्यक्त करता है। उनके लिये
उसका प्रेम “सत्य” की बुनियाद पर है। यह उचित और शुद्ध है। यह मसीह की
वास्तविकता को प्रतिबिंबित करता है। वह “सत्य के खातिर” लिखता है जो
परमेश्वर के समान ही अनंत है। फिर वह उसके पाठकों को परमेश्वर की आशीष
देता है। अनुग्रह, दया और शांति की आशीषें पिता और पुत्र से होकर सत्य और
प्रेम से प्रवाहित होती हैं। उसी प्रकार सत्य और प्रेम वे माध्यम होने चाहिये जिनके
द्वारा हम दूसरों को आशीष देते हैं।
सत्य और प्रेम में चलने का प्रोत्साहन (पद 4-6)
आगे यूहन्ना प्रशंसा करता है कि कुछ लोग सत्य में चल रहे हैं। स्पष्ट है कि
अन्य लोग सत्य में नही चल रहे हैं - और समस्या यहीं पाई जाती है। (पद 5-6)
में वह उन्हें दूसरों से प्रेम करने की स्मरण दिलाता है - परंतु उस तरीके से जैसा
मसीह ने कहा है, “उसकी आज्ञा के अनुसार।” प्रेम वचन की आज्ञाओं के विरोध में
नहीं होता। सच्चा प्रेम अपने पैमाने (स्तर) के साथ कभी समझौता नहीं करता।
गलत के विरुद्ध खड़े रहने का निर्देश (पद 7:11)
यद्यपि झूठे शिक्षक मसीह के विषय आदर से कहते हैं, वे उसके विषय सत्य
से इन्कार करते थे और इस प्रकारवे वास्तव में उसके और उसकी शिक्षा के विरोध
में थे। वे मसीह की शिक्षा से बाहर गए, अपने विचारों को मिलाए और उसके शब्दों
में तोड़-मरोड़ किया। परिणामस्वरूप परमेश्वर के साथ उनका कोई संबंध नहीं था
और परमेश्वर का उनसे कोई संबंध नहीं था। इन झूठे शिक्षकों के प्रति प्रेम दिखाकर,
वास्तव में हम शत्रु को स्वीकार करते हैं। कुछ लोग इस विचार का उपयोग उनके
प्रेम रहित व्यवहार को उचित बताने के लिये करते हैं। लेकिन प्रेरित उन झूठे शिक्षकों
के विषय कह रहा है जो हमारी कलीसियाओं में मसीह के विषय उनके झूठ के साथ
घुस जाते हैं और लोगों को उनके विश्वास से डगमगा देते हैं। उन्हें स्वीकार करने
का मतलब उनके गुनाह में शामिल होना है। हमारी और जिनसे हम प्रेम करते हैं
उनकी भलाई के लिये उचित होगा कि सीमा रेखा खींच दे और सत्य पर स्थिर रहें।
निष्कर्ष: (पद 12-13)
उसके विशेष गर्मजोशी के साथ यूहन्ना अपने पत्री को आशा और आनंद के
साथ खत्म करता है। “मुझे बहुत सी बातें लिखनी हैं, पर कागज और स्याही से
लिखना नहीं चाहता, पर आशा है कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा और आमने सामने
बातचीत करूँगा, जिससे तुम्हारा आनंद पूरा हो।”
आपेक्षिता और सहनशीलता के दिनों में यूहन्ना की पत्री हमें उत्साही बनने के
लिये प्रेरित करती हैं। उस बात के लिये खड़े रहें जिसे परमेश्वर उचित कहता है!
किसी से सत्य कहना कठिन बात होगी, परंतु आगे चलकर यही सबसे अच्छा कार्य
होगा।
3 यूहन्ना
कई तरीकों से यूहन्ना की तीसरी पत्री, दूसरी पत्री के समान है। वे एक बराबर
के ही हैं एक ही समय के दौरान लिखी गईं, यात्री शिक्षकों के विषय कलीसिया की
नीति के मुद्दे को सुलझाती है और सत्य और प्रेम के विषय पर आधारित है। यद्यपि
वे एक समान हैं, फिर भी वे विपरीत हैं।
जबकि 2 यूहन्ना मूलतः झूठे शिक्षकों का स्वागत/स्वीकार करने के विरोध में चेतावनी है;
3 यूहन्ना सच्चे संगी मसीहियों और सुसमाचार के राजदूतों का तिरस्कार करने के विरुद्ध
चेतावनी है। 2 यूहन्ना में प्रेम को संतुलित करने के लिये सत्य की आवश्यकता थी;
3 यूहन्ना में सत्य को संतुलित करने के लिये प्रेम की जरूरत थी।
यूहन्ना की तीसरी पत्री तीन व्यक्तियों पर केंद्रित है। पहला गयुस है जो पत्री
को पाता है और यूहन्ना का घनिष्ट मित्र है। वह अनुग्रही, उदार और दयालु और
बाहरी जरूरतमंद लोगों के लिये बाहें फैलाने को हमेशा इच्छुक रहता था।
दूसरा व्यक्ति दियुत्रिकेस है, वह व्यक्ति जो समस्याएँ खड़ी करता है। यद्यपि
वह अच्छे परिवार से था, वह घमंडी, पहुनाई न करनेवाला और अकेला रहनेवाला था।
तीसरा व्यक्ति दिमेत्रियुस है, जो संभवतः संदेशवाहक था और उसी ने पत्र
पहुँचाया था और गयुस और दियुत्रिकेस के समक्ष यूहन्ना को प्रस्तुत करने का
महत्वपूर्ण कार्य किया था।
गयुस की प्रशंसा (पद 1-8)
यूहन्ना 4 बार गयुस को “प्रिय” कहता है - 2 बार पद 1 और 2 में और
2 बार पद 5 और 11 में। गयुस के साथ यूहन्ना की मित्रता “सत्य में” आधारित
है, अर्थात सुसमाचार का सत्य जो सभी विश्वासियों को मसीह में एक करता है।
वह प्रार्थना करता है कि गयुस शारीरिक रीति से भी वैसी ही उन्नति करे जैसे वह
आत्मिकता में कर रहा है। शायद उसकी प्रार्थना उस रिपोर्ट के आधार पर है कि
गयुस बीमार था।
गयुस ऐसा व्यक्ति है जो प्रत्येक शब्द को तौलता है, हर कार्य को मसीह के
मापदंड पर परखता है। वह सत्य में विश्वासयोग्य है - जो अच्छे शिष्य की प्रथम
आवश्यकता है। वह प्रेम में भी विश्वासयोग्य है। इन गुणों के कारण वह यात्री शिक्षकों
की वैधता को परखने में योग्य है। फिर प्रेम की बाहों के साथ वह “परमेश्वर की
उचित रीति” से उनकी मदद करता है (पद 6)। वे मसीह के खातिर सेवक थे -
राजाओं के राजा के गुप्तचर। यूहन्ना कहता है कि जब हम ऐसे लोगों की मदद करते
हैं तो हम “सत्य के पक्ष में उनके सहकर्मी” हो जाते हैं (पद 8)। हम उसके सहभागी
हो जाते हैं “जो सत्य लेागों के हृदयों और जीवनों में प्राप्त करता है।”
दियुत्रिफेस का सामना (पद 9-11)
गयुस के विपरीत, दियुत्रिफेस “परमेश्वर के कार्य की उन्नति के बजाय अपनी
ही उन्नति में ज्यादा रूचि रखता है।” अब यूहन्ना दियुत्रिफेस के काले छवी को
उजागर करता है। उसने यूहन्ना की शिक्षा और प्रेरिताई अधिकार का तिरस्कार किया
था। इतना ही नही उसने प्रेरित पर झूठा आरोप लगाया था और उसके संदेश वाहकों
के लिये द्वार बंद कर दिया था। यहाँ तक कि वह उसे भी कलीसिया के बहिष्कृत
करता था जो यूहन्ना को स्वीकार करता था।
एक अगुवा किस कारण से इतना इष्र्यालु बन सकता था? पद 9 में, यूहन्ना
मुख्य समस्या पर उंगली रखता है: दियुत्रिफेस “प्रथम होना चाहता है।” इसलिये
यूहन्ना गयुस से आग्रह करता है कि वह स्वयं की इस रोग से रक्षा करे और भलाई
करता रहे। वह दिमेत्रियुस का स्वागत करने के द्वारा, एक भला आदमी जो अच्छे
स्वागत करने के योग्य है, उसे एक मौका प्रदान करता है कि वही करे जो उचित
है।
दिमेत्रियुस की गवाही (पद 12)
शायद दिमेत्रियुस उन “भाइयों” में से एक है जिसके साथ दियुत्रिफेस ने बुरा
व्यवहार किया था। इसलिये वह उसे तीन प्रभावशाली संदर्भों के साथ भेजता है।
पहला, उसने हर किसी से अच्छी गवाही प्राप्त किया है। दूसरा, उसका जीवन सत्य
की राह पर है जो उसके बदले गवाही देता है और तीसरा यूहन्ना उसी अपनी
व्यक्तिगत स्वीकृति प्रदान करता है।
विदाई के शब्द (पद 13-14)
अपने पत्री के अंतिम पदों में यूहन्ना गयुस से मिलने की तीव्र इच्छा व्यक्त
करता है। जब तक वह आ नहीं जाता, वह कलीसिया में परमेश्वर की शांति स्थापित
करने के लिये प्रार्थना करता है। “मुझे तुझको बहुत कुछ लिखना तो था परंतु स्याही
और कलम से लिखना नहीं चाहता। पर मुझे आशा है कि तुझ से शीघ्र भेंट करूंगा,
तब हम आमने-सामने बातचीत करेंगे। तुझे शांति मिलती रहे। यहाँ के मित्र तुझे
नमस्कार कहते हैं। वहाँ के मित्रों से नाम ले लेकर नमस्कार कह देना।”
हर कलीसिया में कम से कम एक दियुत्रिफेस रहता है जो सेवकाई को रोकने
का प्रयास करेगा अनुचित रीति से अगुवों पर दोष लगाएगा, जरूरतमंद लोगों को
नजरअंदाज करेगा और कलीसिया के सदस्यों में समस्याएँ पैदा करेगा। परमेश्वर की
स्तुति हो कि उसने गयुस और दिमेत्रियुस जैसों को भी रखा है जो पहुनाई करते,
उदारता, ईमानदारी और शुद्धता बनाए रखते हैं। आइये हम इन आदर्शों का
अनुकरण करें क्योंकि वे उनकी पहचान रखते हैं जो सत्य में चलते हैं।
बाइबल अध्यन
1 यूहन्ना अध्याय 1 1 उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आंखों से देखा, वरन जिसे हम ने ध्यान से देखा; और हाथों से छूआ। 2 (यह जीवन प्रगट हुआ, और हम ने उसे देखा, और उस की गवाही देते हैं, और तुम्हें उस अनन्त जीवन का समाचार देते हैं, जो पिता के साथ था, और हम पर प्रगट हुआ)। 3 जो कुछ हम ने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिये कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ, और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है। 4 और ये बातें हम इसलिये लिखते हैं, कि हमारा आनन्द पूरा हो जाए॥ 5 जो समाचार हम ने उस से सुना, और तुम्हें सुनाते हैं, वह यह है; कि परमेश्वर ज्योति है: और उस में कुछ भी अन्धकार नहीं। 6 यदि हम कहें, कि उसके साथ हमारी सहभागिता है, और फिर अन्धकार में चलें, तो हम झूठे हैं: और सत्य पर नहीं चलते। 7 पर यदि जैसा वह ज्योति में है, वैसे ही हम भी ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं; और उसके पुत्र यीशु का लोहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है। 8 यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं। 9 यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। 10 यदि कहें कि हम ने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है॥
1 यूहन्ना(अध्याय 2) 1 हे मेरे बालकों, मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात धार्मिक यीशु मसीह। 2 और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी। 3 यदि हम उस की आज्ञाओं को मानेंगे, तो इस से हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं। 4 जो कोई यह कहता है, कि मैं उसे जान गया हूं, और उस की आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है; और उस में सत्य नहीं। 5 पर जो कोई उसके वचन पर चले, उस में सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है: हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उस में हैं। 6 सो कोई यह कहता है, कि मैं उस में बना रहता हूं, उसे चाहिए कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह चलता था। 7 हे प्रियों, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं लिखता, पर वही पुरानी आज्ञा जो आरम्भ से तुम्हें मिली है; यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम ने सुना है। 8 फिर मैं तुम्हें नई आज्ञा लिखता हूं; और यह तो उस में और तुम में सच्ची ठहरती है; क्योंकि अन्धकार मिटता जाता है और सत्य की ज्योति अभी चमकने लगी है। 9 जो कोई यह कहता है, कि मैं ज्योति में हूं; और अपने भाई से बैर रखता है, वह अब तक अन्धकार ही में है। 10 जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता। 11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्धकार में है, और अन्धकार में चलता है; और नहीं जानता, कि कहां जाता है, क्योंकि अन्धकार ने उस की आंखे अन्धी कर दी हैं॥ 12 हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए। 13 हे पितरों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि जो आदि से है, तुम उसे जानते हो: हे जवानों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है: हे लड़कों मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि तुम पिता को जान गए हो। 14 हे पितरों, मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि जो आदि से है तुम उसे जान गए हो: हे जवानो, मैं ने तुम्हें इसलिये लिखा है, कि तुम बलवन्त हो, और परमेश्वर का वचन तुम में बना रहता है, और तुम ने उस दुष्ट पर जय पाई है। 15 तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। 16 क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। 17 और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा॥ 18 हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आने वाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इस से हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है। 19 वे निकले तो हम ही में से, पर हम में के थे नहीं; क्योंकि यदि हम में के होते, तो हमारे साथ रहते, पर निकल इसलिये गए कि यह प्रगट हो कि वे सब हम में के नहीं हैं। 20 और तुम्हारा तो उस पवित्र से अभिषेक हुआ है, और तुम सब कुछ जानते हो। 21 मैं ने तुम्हें इसलिये नहीं लिखा, कि तुम सत्य को नहीं जानते, पर इसलिये, कि उसे जानते हो, और इसलिये कि कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं। 22 झूठा कौन है? केवल वह, जो यीशु के मसीह होने का इन्कार करता है; और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता का और पुत्र का इन्कार करता है। 23 जो कोई पुत्र का इन्कार करता है उसके पास पिता भी नहीं: जो पुत्र को मान लेता है, उसके पास पिता भी है। 24 जो कुछ तुम ने आरम्भ से सुना है वही तुम में बना रहे: जो तुम ने आरम्भ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे, तो तुम भी पुत्र में, और पिता में बने रहोगे। 25 और जिस की उस ने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है। 26 मैं ने ये बातें तुम्हें उन के विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं। 27 और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उस की ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इस का प्रयोजन नही, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन जैसे वह अभिषेक जो उस की ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह सच्चा है, और झूठा नहीं: और जैसा उस ने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उस में बने रहते हो। 28 निदान, हे बालकों, उस में बने रहो; कि जब वह प्रगट हो, तो हमें हियाव हो, और हम उसके आने पर उसके साम्हने लज्ज़ित न हों। 29 यदि तुम जानते हो, कि वह धार्मिक है, तो यह भी जानते हो, कि जो कोई धर्म का काम करता है, वह उस से जन्मा है।
1 यूहन्ना(अध्याय 3) 1 देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएं, और हम हैं भी: इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उस ने उसे भी नहीं जाना। 2 हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उस को वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। 3 और जो कोई उस पर यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है, जैसा वह पवित्र है। 4 जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है; ओर पाप तो व्यवस्था का विरोध है। 5 और तुम जानते हो, कि वह इसलिये प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसके स्वभाव में पाप नहीं। 6 जो कोई उस में बना रहता है, वह पाप नहीं करता: जो कोई पाप करता है, उस ने न तो उसे देखा है, और न उस को जाना है। 7 हे बालकों, किसी के भरमाने में न आना; जो धर्म के काम करता है, वही उस की नाईं धर्मी है। 8 जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि शैतान आरम्भ ही से पाप करता आया है: परमेश्वर का पुत्र इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे। 9 जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज उस में बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है। 10 इसी से परमेश्वर की सन्तान, और शैतान की सन्तान जाने जाते हैं; जो कोई धर्म के काम नहीं करता, वह परमेश्वर से नहीं, और न वह, जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता। 11 क्योंकि जो समाचार तुम ने आरम्भ से सुना, वह यह है, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। 12 और कैन के समान न बनें, जो उस दुष्ट से था, और जिस ने अपने भाई को घात किया: और उसे किस कारण घात किया? इस कारण कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम धर्म के थे॥ 13 हे भाइयों, यदि संसार तुम से बैर करता है तो अचम्भा न करना। 14 हम जानते हैं, कि हम मृत्यु से पार होकर जीवन में पहुंचे हैं; क्योंकि हम भाइयों से प्रेम रखते हैं: जो प्रेम नहीं रखता, वह मृत्यु की दशा में रहता है। 15 जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह हत्यारा है; और तुम जानते हो, कि किसी हत्यारे में अनन्त जीवन नहीं रहता। 16 हम ने प्रेम इसी से जाना, कि उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए। 17 पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को कंगाल देख कर उस पर तरस न खाना चाहे, तो उस में परमेश्वर का प्रेम क्योंकर बना रह सकता है? 18 हे बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें। 19 इसी से हम जानेंगे, कि हम सत्य के हैं; और जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे। 20 क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है। 21 हे प्रियो, यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्वर के साम्हने हियाव होता है। 22 और जो कुछ हम मांगते हैं, वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं; और जो उसे भाता है वही करते हैं। 23 और उस की आज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें और जैसा उस ने हमें आज्ञा दी है उसी के अनुसार आपस में प्रेम रखें। 24 और जो उस की आज्ञाओं को मानता है, वह उस में, और वह उन में बना रहता है: और इसी से, अर्थात उस आत्मा से जो उस ने हमें दिया है, हम जानते हैं, कि वह हम में बना रहता है॥
1 यूहन्ना(अध्याय 4) 1 हे प्रियों, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। 2 परमेश्वर का आत्मा तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। 3 और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिस की चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आने वाला है: और अब भी जगत में है। 4 हे बालको, तुम परमेश्वर के हो: और तुम ने उन पर जय पाई है; क्योंकि जो तुम में है, वह उस से जो संसार में है, बड़ा है। 5 वे संसार के हैं, इस कारण वे संसार की बातें बोलते हैं, और संसार उन की सुनता है। 6 हम परमेश्वर के हैं: जो परमेश्वर को जानता है, वह हमारी सुनता है; जो परमेश्वर को नहीं जानता वह हमारी नहीं सुनता; इसी प्रकार हम सत्य की आत्मा और भ्रम की आत्मा को पहचान लेते हैं। 7 हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है; और परमेश्वर को जानता है। 8 जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। 9 जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं। 10 प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर ने प्रेम किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा। 11 हे प्रियो, जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए। 12 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्वर हम में बना रहता है; और उसका प्रेम हम में सिद्ध हो गया है। 13 इसी से हम जानते हैं, कि हम उस में बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उस ने अपने आत्मा में से हमें दिया है। 14 और हम ने देख भी लिया और गवाही देते हैं, कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता करके भेजा है। 15 जो कोई यह मान लेता है, कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है: परमेश्वर उस में बना रहता है, और वह परमेश्वर में। 16 और जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, उस को हम जान गए, और हमें उस की प्रतीति है; परमेश्वर प्रेम है: जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में बना रहता है; और परमेश्वर उस में बना रहता है। 17 इसी से प्रेम हम में सिद्ध हुआ, कि हमें न्याय के दिन हियाव हो; क्योंकि जैसा वह है, वैसे ही संसार में हम भी हैं। 18 प्रेम में भय नहीं होता, वरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय से कष्ट होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ। 19 हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया। 20 यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिस उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता। 21 और उस से हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई अपने परमेश्वर से प्रेम रखता है, वह अपने भाई से भी प्रेम रखे॥
1 यूहन्ना(अध्याय 5) 1 जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है और जो कोई उत्पन्न करने वाले से प्रेम रखता है, वह उस से भी प्रेम रखता है, जो उस से उत्पन्न हुआ है। 2 जब हम परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, और उस की आज्ञाओं को मानते हैं, तो इसी से हम जानते हैं, कि परमेश्वर की सन्तानों से प्रेम रखते हैं। 3 और परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं। 4 क्योंकि जो कुछ परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जय प्राप्त करता है, और वह विजय जिस से संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है। 5 संसार पर जय पाने वाला कौन है केवल वह जिस का यह विश्वास है, कि यीशु, परमेश्वर का पुत्र है। 6 यही है वह, जो पानी और लोहू के द्वारा आया था; अर्थात यीशु मसीह: वह न केवल पानी के द्वारा, वरन पानी और लोहू दोनों के द्वारा आया था। 7 और जो गवाही देता है, वह आत्मा है; क्योंकि आत्मा सत्य है। 8 और गवाही देने वाले तीन हैं; आत्मा, और पानी, और लोहू; और तीनों एक ही बात पर सहमत हैं। 9 जब हम मनुष्यों की गवाही मान लेते हैं, तो परमेश्वर की गवाही तो उस से बढ़कर है; और परमेश्वर की गवाही यह है, कि उस ने अपने पुत्र के विषय में गवाही दी है। 10 जो परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है, वह अपने ही में गवाही रखता है; जिस ने परमेश्वर को प्रतीति नहीं की, उस ने उसे झूठा ठहराया; क्योंकि उस ने उस गवाही पर विश्वास नहीं किया, जो परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है। 11 और वह गवाही यह है, कि परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है: और यह जीवन उसके पुत्र में है। 12 जिस के पास पुत्र है, उसके पास जीवन है; और जिस के पास परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है॥ 13 मैं ने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिये लिखा है; कि तुम जानो, कि अनन्त जीवन तुम्हारा है। 14 और हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो हमारी सुनता है। 15 और जब हम जानते हैं, कि जो कुछ हम मांगते हैं वह हमारी सुनता है, तो यह भी जानते हैं, कि जो कुछ हम ने उस से मांगा, वह पाया है। 16 यदि कोई अपने भाई को ऐसा पाप करते देखे, जिस का फल मृत्यु न हो, तो बिनती करे, और परमेश्वर, उसे, उन के लिये, जिन्हों ने ऐसा पाप किया है जिस का फल मृत्यु न हो, जीवन देगा। पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है: इस के विषय में मैं बिनती करने के लिये नहीं कहता। 17 सब प्रकार का अधर्म तो पाप है, परन्तु ऐसा पाप भी है, जिस का फल मृत्यु नहीं॥ 18 हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; पर जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता है: और वह दुष्ट उसे छूने नहीं पाता। 19 हम जानते हैं, कि हम परमेश्वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है। 20 और यह भी जानते हैं, कि परमेश्वर का पुत्र आ गया है और उस ने हमें समझ दी है, कि हम उस सच्चे को पहचानें, और हम उस में जो सत्य है, अर्थात उसके पुत्र यीशु मसीह में रहते हैं: सच्चा परमेश्वर और अनन्त जीवन यही है। 21 हे बालको, अपने आप को मुरतों से बचाए रखो॥
2 यूहन्ना अध्याय 1 1 मुझ प्राचीन की ओर से उस चुनी हुई श्रीमती और उसके लड़के बालों के नाम जिन से मैं उस सच्चाई के कारण सत्य प्रेम रखता हूं, जा हम में स्थिर रहती है, और सर्वदा हमारे साथ अटल रहेगी। 2 और केवल मैं ही नहीं, वरन वह सब भी प्रेम रखते हैं, जो सच्चाई को जानते हैं॥ 3 परमेश्वर पिता, और पिता के पुत्र यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, और दया, और शान्ति, सत्य, और प्रेम सहित हमारे साथ रहेंगे॥ 4 मैं बहुत आनन्दित हुआ, कि मैं ने तेरे कितने लड़के-बालों को उस आज्ञा के अनुसार, जो हमें पिता की ओर से मिली थी सत्य पर चलते हुए पाया। 5 अब हे श्रीमती, मैं तुझे कोई नई आज्ञा नहीं, पर वही जो आरम्भ से हमारे पास है, लिखता हूं; और तुझ से बिनती करता हूं, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। 6 और प्रेम यह है कि हम उस की आज्ञाओं के अनुसार चलें: यह वही आज्ञा है, जो तुम ने आरम्भ से सुनी है और तुम्हें इस पर चलना भी चाहिए। 7 क्योंकि बहुत से ऐसे भरमाने वाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया: भरमाने वाला और मसीह का विरोधी यही है। 8 अपने विषय में चौकस रहो; कि जो परिश्रम हम ने किया है, उस को तुम न बिगाड़ो: वरन उसका पूरा प्रतिफल पाओ। 9 जो कोई आगे बढ़ जाता है, और मसीह की शिक्षा में बना नहीं रहता, उसके पास परमेश्वर नहीं: जो कोई उस की शिक्षा में स्थिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी। 10 यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिक्षा न दे, उसे न तो घर मे आने दो, और न नमस्कार करो। 11 क्योंकि जो कोई ऐसे जन को नमस्कार करता है, वह उस के बुरे कामों में साझी होता है॥ 12 मुझे बहुत सी बातें तुम्हें लिखनी हैं, पर कागज और सियाही से लिखना नहीं चाहता; पर आशा है, कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा, और सम्मुख होकर बातचीत करूंगा: जिस से तुम्हारा आनन्द पूरा हो। 13 तेरी चुनी हुई बहिन के लड़के-बाले तुझे नमस्कार करते हैं।
3 यूहन्ना अध्याय 1 1 मुझ प्राचीन की ओर से उस प्रिय गयुस के नाम, जिस से मैं सच्चा प्रेम रखता हूं॥ 2 हे प्रिय, मेरी यह प्रार्थना है; कि जैसे तू आत्मिक उन्नति कर रहा है, वैसे ही तू सब बातों मे उन्नति करे, और भला चंगा रहे। 3 क्योंकि जब भाइयों ने आकर, तेरे उस सत्य की गवाही दी, जिस पर तू सचमुच चलता है, तो मैं बहुत ही आनन्दित हुआ। 4 मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं। 5 हे प्रिय, जो कुछ तू उन भाइयों के साथ करता है, जो परदेशी भी हैं, उसे विश्वासी की नाईं करता है। 6 उन्होंने मण्डली के साम्हने तेरे प्रेम की गवाही दी थी: यदि तू उन्हें उस प्रकार विदा करेगा जिस प्रकार परमेश्वर के लोगों के लिये उचित है तो अच्छा करेगा। 7 क्योंकि वे उस नाम के लिये निकले हैं, और अन्यजातियों से कुछ नहीं लेते। 8 इसलिये ऐसों का स्वागत करना चाहिए, जिस से हम भी सत्य के पक्ष में उन के सहकर्मी हों॥ 9 मैं ने मण्डली को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उन में बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। 10 सो जब मैं आऊंगा, तो उसके कामों की जो वह कर रहा है सुधि दिलाऊंगा, कि वह हमारे विषय में बुरी बुरी बातें बकता है; और इस पर भी सन्तोष न करके आप ही भाइयों को ग्रहण नहीं करता, और उन्हें जो ग्रहण करना चाहते हैं, मना करता है: और मण्डली से निकाल देता है। 11 हे प्रिय, बुराई के नहीं, पर भलाई के अनुयायी हो, जो भलाई करता है, वह परमेश्वर की ओर से है; पर जो बुराई करता है, उस ने परमेश्वर को नहीं देखा। 12 देमेत्रियुस के विषय में सब ने वरन सत्य ने भी आप ही गवाही दी: और हम भी गवाही देते हैं, और तू जानता है, कि हमारी गवाही सच्ची है॥ 13 मुझे तुझ को बहुत कुछ लिखना तो था; पर सियाही और कलम से लिखना नहीं चाहता। 14 पर मुझे आशा है कि तुझ से शीघ्र भेंट करूंगा: तब हम आम्हने साम्हने बातचीत करेंगे: तुझे शान्ति मिलती रहे। यहां के मित्र तुझे नमस्कार करते हैं: वहां के मित्रों से नाम ले लेकर नमस्कार कह देना॥
इफिसियों अध्याय 5:(22-32) 22 हे पत्नियों, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। 23 क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है। 24 पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें। 25 हे पतियों, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया। 26 कि उस को वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए। 27 और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बना कर अपने पास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्तु हो, वरन पवित्र और निर्दोष हो। 28 इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखें। जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। 29 क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है 30 इसलिये कि हम उस की देह के अंग हैं। 31 इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे। 32 यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूं। 33 पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने॥
प्रकाशित वाक्य अध्याय 19:7 7 आओ, हम आनन्दित और मगन हों, और उस की स्तुति करें; क्योंकि मेम्ने का ब्याह आ पहुंचा: और उस की पत्नी ने अपने आप को तैयार कर लिया है।S