पाठ 38 : याकूब और यहूदा का सर्वेक्षण

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सारांश

याकूब और यहूदा की पत्रियों का सर्वेक्षण क) याकूब क्या यह कारगर होगा? यह वह प्रश्न है जो हम सभी किसी वस्तु को खरीदने के समय पूछते हैं। यह निश्चित है कि विज्ञापन कई अच्छी विशेषताओं का बखान करते हैं, परंतु वे उत्पादन किस तरह कार्य करते हैं? अंततः कोई भी व्यक्ति उस कंप्यूटर के दाम क्यों चुकाएगा यदि वह केवल सिद्धांतों में ही अच्छा जान पड़े? उसी प्रकार कौन उस विश्वास को स्वीकार करेगा जो किसी व्यक्ति में वास्तविक परिवर्तन न ला सके? याकूब के अनुसार कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है। उचित विश्वास, विश्वासी के जीवन में अच्छे कार्यों को उत्पन्न करता है। क्या आप किसी प्रोत्साहन की खोज में हैं ताकि आपका विश्वास सचमुच कार्य करे? कि आपका विश्वास कठिन समयों में भी बना रहे या बढ़े? ठीक है। तो आइये हम याकूब की पत्री को देखें - और जाने किस तरह यीशु मरा और पुन जी उठा, न केवल हमें परमेश्वर के क्रोध से छुड़ाने परंतु हमें उसके स्वरूप विकसित करने के लिये। लेखक: नए नियम में चार लोगों का नाम याकूब है: (1) यूहन्ना का भाई जो जबदी के पुत्रों में से एक था (मरकुस 1:19), (2) हल्फई का पुत्र (मरकुस 3:18), (3) यहूदा का पिता (इस्करियोति नहीं) (लूका 6:16), और (4) यीशु का भाई (गलातियों 1:19)। हल्फई का पुत्र, यद्यपि उसे शिष्य बनाया गया है, आनुपातिक रूप से अस्पष्ट है जैसे कि यहूदा का पिता याकूब अस्पष्ट है। जबदी का पुत्र याकूब और यूहन्ना का भाई, यीशु के घनिष्ट शिष्यों में से एक था, परंतु सन 44 में उसकी शहादत (प्रेरितों के काम 12:2) इस बात को कम ही संभावित करते हैं कि उसी ने यह पत्री लिखा। इसलिये इस पत्री को लिखने वाला सर्वोत्तम व्यक्ति प्रभु का आधा भाई याकूब ही है। यद्यपि यह बात स्पष्ट है कि यीशु के किसी भी भाई ने उसकी संसारिक सेवकाई के दौरान उस पर विश्वास नहीं किया था (यूहन्ना 7:5), लेकिन अंत में याकूब ने उस पर विश्वास किया शायद प्रभु के पुनरूत्थान के बाद (1 कुरि 15:7)। याकूब आगे चलकर “कलीसिया के खंबों” में से एक बन गया था (गलातियों 2:9)। बहुत से विद्वानों का मानना है कि याकूब ने इस पत्र को सन 45 से 49 के बीच लिखा था जो उसे नए नियम की सबसे प्राचीन पुस्तक बनाता है। फिर भी पूरे समय, यह पत्री उसके मूल पाठकों के समान हम पर भी लागू होती है। याकूब की पत्री नए नियम का नीतिवचन है क्योंकि इसे बुद्धि के साहित्य के रूप में लिखा गया है। यह बात प्रमाणित है कि याकूब पुराने नियम से और पहाड़ी उपदेश से गहन रीति से प्रभावित था। इस पत्र की रूप रेखा इस तरह है: (1) विश्वास की परीक्षा (1:1-18); (2) विश्वास की विशेषताएँ (1:19-5:6); और विश्वास की विजय (5:7-20)। (1) विश्वास की परीक्षा (1:1-18) पत्री का पहला भाग परिक्षाओं के समय उचित विश्वास के गुणों को विकसित करता है। इब्री मसीहियों का अभिवादन करने के बाद याकूब तुरंत अपने पहले विषय को बताता है, अर्थात विश्वास की बाह्य परीक्षा। ये परीक्षाएँ परिपक्व सहनशीलता और परमेश्वर पर निर्भरता के लिये होती है, जिसकी ओर विश्वासी बुद्धि और बल प्राप्ति के लिये फिरता है। भीतरी परीक्षाएँ या प्रलोभन उसकी ओर से नहीं आते जो “हर अच्छे वरदान” देता है (1:17)। बुराई करने की ये इच्छाएँ शुरूवात में ही परखी जानी चाहिये अन्यथा वे विध्वंसकारी परिणामों को लाएंगी। (2) विश्वास की विशेषताएँ (1:19-5:6) परीक्षा के विषय धर्मी अनुक्रिया यह मांग करती है कि हम सुनने में तत्पर, और बोलने में धीर और क्रोध में धीमे हों। (1ः19) और यही बात बाकी पत्री का सारांश है। सुनने में तत्परता, परमेश्वर के वचन का आज्ञापालन के प्रति अनुक्रिया को सम्मिलित करती है (1ः19-27)। सच्चा सुनना मलतब मात्र सुन लेने से बढ़कर होता है, वचन को ग्रहण करके उस पर अमल किया जाना चाहिये। सच्चे विश्वास का परिणाम कार्य होना चाहिये। विश्वास के कई स्पष्टीकरण देने के बाद, अब याकूब पुस्तक के मुख्य उद्देश्य को बताता है: वास्तविक विश्वास वैध कार्यों को उत्पन्न करता है। बचाने वाला विश्वास क्रियात्मक विश्वास है (पद 14)। यह शब्दों से बढ़कर है और जरूरतमंद तक पहुँचता है। जो विश्वास अच्छे कार्य उत्पन्न नहीं करता वह मृतक और निरूपयोगी है। जरूरी नहीं कि परमेश्वर पर विश्वास की मात्र घोषणा सच्चे विश्वास का प्रतीक है। ऐसा तो दुष्टात्माएँ भी करती हैं (पद 19)। अब्राहम यद्यपि बहुत पहले ही बचाया गया था, परमेश्वर ने उसे इसहाक को बलि चढ़ाने को कहा, “उसने आज्ञा पालन के द्वारा विश्वास को प्रगट किया (पद 21-23)। यरीहो की रहाब वेश्या ने अपना विश्वास इस्राएली भेदियों की सहायता करने के द्वारा प्रगट की (पद 25)। कर्म उद्धार पैदा नहीं करते, परंतु उद्धार कर्म को पैदा करता है (पद 24) (इफिसियों 2:8-10 भी पढ़ें)। एक कार्य से दूसरे कार्य पर जाते हुए याकूब बताता है कि किस तरह एक जीवित विश्वास जीभ को नियंत्रित करता है (बोलने में धीमा)। जीभ छोटी होती है, परंतु उसमें बड़ी भलाई या उतनी ही बड़ी बुराई करने की शक्ति होती है। केवल क्रियाशील विश्वास के द्वारा ही परमेश्वर की सामर्थ जीभ को नियंत्रित कर सकती है (3:1-12)। ठीक जैसे जीभ के दुष्ट और धर्मी उपयोग होते हैं, उसी प्रकार बुद्धि या ज्ञान के भी शैतानी या ईश्वरीय प्रगटीकरण होते हैं (3:13-18)। याकूब मानवीय बुद्धि को ईश्वरीय बुद्धि के सात गुणों से तुलना करता है। संसारिकता और धनसंपत्ति विवादों को जन्म देते हैं जो विश्वास के लिये नुकसानदायक होते हैं। संसारिक प्रणालियाँ परमेश्वर के विरोध में हैं , और इन आनंद की बातों का पीछा या लगाव लोभ, इष्र्या, झगड़े और अहंकार उत्पन्न करते हैं। विश्वास का एकमात्र पर्याय नम्र और पश्चातापी आत्मा के साथ परमेश्वर को समर्पण है। यह दूसरों के प्रति भी परिवर्तित नीति को जन्म देगी (4:7-12)। समर्पण और नम्रता की यह आत्मा धन संचय के प्रयासों पर लागू की जानी चाहिये विशेषकर इसिलये क्योंकि धन घमंड, अन्याय और स्वार्थ को बढ़ावा दे सकता है। 3) विश्वास की विजय (5:7-20) याकूब उसके पाठकों को वर्तमान जीवन के क्लेशों को धीरज से सह लेने के लिये प्रोत्साहित करता है क्योंकि उसके बाद प्रभु के आने की आशा भी है (5:7-12)। धनी उन्हें सताएंगे और परिस्थितियाँ उनके विपरीत हो जाएंगी, परंतु जैसा कि अय्यूब का उदाहरण सिखाता है, विश्वासियों को यह निश्चय हो जाना चाहिये कि उनके साथ परमेश्वर की कोई अनुग्रहकारी योजना जुड़ी है। याकूब इस पत्री को प्रार्थना और मेल-मिलाप पर कुछ व्यवहारिक शब्दों के साथ बंद करता है (5:13-20)। धर्मी व्यक्तियों की प्रार्थना विश्वासियों की चंगाई और मेलमिलाप के लिये काफी है। यदि पाप पर विजय नहीं पाई गई तो वह बीमारी और मृत्यु भी ला सकता है। हमें यह याद रखने की जरूरत है कि हममें से कोई भी व्यक्ति ऐसे कार्य नहीं करता जो मसीह में हमारे विश्वास को परखते हों। फिर भी हमारी आशा हमारी अपनी धार्मिकता में नहीं परंतु प्रभु में है (2 कुरि 5:21)। हमारा उद्धार उसी में सुरक्षित हैं, और केवल उसी में (यूहन्ना 10:27-29)। हम मसीह के क्रूस पर किए गए सिद्ध कार्य में विश्राम पाते हैं। चूँकि हम उसके हैं, वह हमेशा पश्चातापी उड़ाऊ पुत्रों को वापस अपने घर में लेने के लिये तत्पर रहता है। कया मसीहत कारगर होती है? बेशक होती है। और इसकी जीवनभर की गारंटी होती है - अनंतकालीन जीवनभर के लिये। ख) यहूदा विश्वास के लिये लड़ो। ये शब्द यहूदा के छोटे परंतु प्रभावशाली पत्र में युद्ध की पुकार के समान गूँजते हैं। एक अनुभवी कमांडर के समान यहूदा सेना को झूठे सिद्धांतों के विरुद्ध दृढ़ता से खड़े रहने और मसीह की सच्चाई का बचाव करने को कहता है। वास्तव में यहूदा ने अपनी कलम भिन्न प्रकार के पत्र को लिखने के लिये उठाया था। वह सामान्य मसीही विश्वास के विषय लिखना चाहता था। लेकिन पवित्र आत्मा ने उसे उस विश्वास के लिये यत्न करने को लिखने के लिये प्रेरित किया जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौपा गया।” (पद 3)। खतरा उनसे हुआ जो कलीसिया के भीतर ही झूठी शिक्षाओं को बढ़ावा दे रहे थे। यहूदा सच्चे विश्वास के लिये यत्न करने की आज्ञा देता है। लेखक यहूदा स्वयं को यीशु मसीह का बंधुआ दास और याकूब का भाई कहकर परिचित कराता है (याकूब 1 क)। यह याकूब वही व्यक्ति है जिसने याकूब की पुस्तक लिखा और ये दोनों भी यीशु के आधे भाई थे (मत्ती 13:55, मरकुस 6:3)। यहूदा ने अपना संबंध यीशु से क्यों नहीं बताया? निश्चय सादगी और आदर के कारण। लेकिन वह स्वयं को यीशु का दास बताता है। इस पत्र को चार भागों में बाँटा जा सकता है: (1) यहूदा का उद्देश्य (पद 1-4); (2) झूठे शिक्षकों का वर्णन (पद 5-16), (3) झूठे शिक्षकों से बचाव (पद 17-23); और (4) आशीर्वाद वचन (पद 24-25)।

  1. यहूदा का उद्देश्य (पद 1-4) यहूदा अपना पत्र उन विश्वासियों को संबोधित करता है जो “बुलाए गए” “पवित्र किए गए” और “सुरक्षित” किए हैं और उन्हें तीन प्रकार की आशीषें देता है दया, शांति और प्रेम (पद 1,2)। अभिवादन करने के बाद वह अपने लिखने का कारण बताता है। “हे प्रियो, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यंत परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिसमें हम सहभागी हैं तो मैंने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था। क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं जिनके इस दंड का वर्णन पुराने समय में पहले ही से लिखा गया था, ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं और हमारे एकमात्र स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं।” विश्वास के शत्रु चुपके से कलीसिया में घुस गए थे और दो तरीकों से मसीही विश्वास के केन्द्र का दुरूपयोग कर रहे थे। पहला, उन्होंने परमेश्वर के अनुग्रह को संसारिक भोगविलास में लिप्त होने के लिये बदल लिया था। दूसरा, उन्होंने इन्कार किया कि यीशु शरीर में परमेश्वर था और सिखाया कि उसने केवल परमेश्वर के पास जाने के कई मार्गों में से एक मार्ग दिखाया। यहूदा पाठकों को प्रोत्साहित करता है कि वे झूठे शिक्षकों का सामना ऐसे करें जैसे एक कुश्ती लड़नेवाला हिम्मत न हारने के लिये दृढ़ संकल्प रखता है। वह उन्हें हिम्मत से यत्न करने को कहता है।
  2. झूठे शिक्षकों का वर्णन (पद 5-16) इस खण्ड में यहूदा नास्तिक शिक्षकों को पाँच कारण बताकर उजागर करता है कि उन्हें ऐसे झूठे शिक्षकों के पीछे क्यों नहीं जाना चाहिये। (क) क्योंकि वे परमेश्वर के दंड के अधीन हैं (5-7) झूठे शिक्षक न्याय दंड के मार्ग पर हैं - वही दंड जो अविश्वासी इस्राएलियों, पतित स्वर्गदूतों और सदोम और अमोरा के लोगों को मिला था। ऐसे लोगों के पीछे चलने वाले हम सचमुच मूर्ख होंगे। (ख) क्योंकि वे निंदा करनेवाले हैं (8-10): वे उनके विचारों को ईश्वरीय सत्य से नहीं परंतु अपने स्वप्नों और राय से बनाते हैं। वे शरीर को अपवित्र करते और अधिकार का इन्कार करते हैं और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं।" (पद 8) (ग) क्योंकि उनकी आत्मिकता खोखली है (11-13): वह इन लोगों की तुलना तीन आत्मिक विद्रोहियों के साथ करता है उत्पत्ति के कैन और गिनती के बालाम और कोरह - जो परमेश्वर द्वारा दोषी ठहराए गए। वह उनके चरित्र को प्रकृति के पाँच रूपकों द्वारा संक्षेप में बताता है। (घ) क्योंकि उनके मार्ग अधर्मी हैं (14-16) यहूदा, हनोक का संदर्भ देकर ऐसे लोगों पर परमेश्वर के दंड की पुष्टि करता है। फिर वह उनकी कुछ गतिविधियों के विषय बताता है (पद 16)
  3. झूठे शिक्षकों से बचाव (पद 17-23) शत्रु का असली स्वभाव उजागर करने के बाद, यहूदा यह कहकर उसके पाठकों को सीधे संबोधित करता है, “पर हे प्रियो, इन बातों को स्मरण रखो” और उस प्रेरिताई चेतावनी की याद दिलाता है कि ऐसे लोग आएंगे और उन्हें ऐसे घातक नास्तिकता के हमले से बचने को कहता है। अगुवों को चाहिये कि वे अपने विश्वास मे परिपक्व हो जाएँ ताकि वे उन्हें बचा सकें जो छले या बहकाए जाते हैं या गलती से फंदे में फँस चुके है।
  4. यहूदा का आशीर्वाद (पद 24-25) यहूदा अपने पत्र को चकित कर देनेवाले आशीर्वाद के साथ बंद करता है जो परमेश्वर की अचूक सुरक्षा को बताता है, “अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी से सामने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है, उस एकमात्र परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा और गौरव और पराक्रम और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन।”

बाइबल अध्यन

याकूब अध्याय 1 1 परमेश्वर के और प्रभु यीशु मसीह के दास याकूब की ओर से उन बारहों गोत्रों को जो तित्तर बित्तर होकर रहते हैं नमस्कार पहुंचे॥ 2 हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो 3 तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है। 4 पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे॥ 5 पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। 6 पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। 7 ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा। 8 वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है॥ 9 दीन भाई अपने ऊंचे पद पर घमण्ड करे। 10 और धनवान अपनी नीच दशा पर: क्योंकि वह घास के फूल की नाईं जाता रहेगा। 11 क्योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सुखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उस की शोभा जाती रहती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने मार्ग पर चलते चलते धूल में मिल जाएगा। 12 धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है। 13 जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है। 14 परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंच कर, और फंस कर परीक्षा में पड़ता है। 15 फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है। 16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ। 17 क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है। 18 उस ने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों॥ 19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो। 20 क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है। 21 इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। 22 परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। 23 क्योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है। 24 इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था। 25 पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर नहीं, पर वैसा ही काम करता है। 26 यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है। 27 हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें॥\

याकूब(अध्याय 2) 1 हे मेरे भाइयों, हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु मसीह का विश्वास तुम में पक्षपात के साथ न हो। 2 क्योंकि यदि एक पुरूष सोने के छल्ले और सुन्दर वस्त्र पहिने हुए तुम्हारी सभा में आए और एक कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहिने हुए आए। 3 और तुम उस सुन्दर वस्त्र वाले का मुंह देख कर कहो कि तू वहां अच्छी जगह बैठ; और उस कंगाल से कहो, कि तू यहां खड़ा रह, या मेरे पांव की पीढ़ी के पास बैठ। 4 तो क्या तुम ने आपस में भेद भाव न किया और कुविचार से न्याय करने वाले न ठहरे? 5 हे मेरे प्रिय भाइयों सुनो; क्या परमेश्वर ने इस जगत के कंगालों को नहीं चुना कि विश्वास में धनी, और उस राज्य के अधिकारी हों, जिस की प्रतिज्ञा उस ने उन से की है जो उस से प्रेम रखते हैं 6 पर तुम ने उस कंगाल का अपमान किया: क्या धनी लोग तुम पर अत्याचार नहीं करते? और क्या वे ही तुम्हें कचहिरयों में घसीट घसीट कर नहीं ले जाते? 7 क्या वे उस उत्तम नाम की निन्दा नहीं करते जिस के तुम कहलाए जाते हो? 8 तौभी यदि तुम पवित्र शास्त्र के इस वचन के अनुसार, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख, सचमुच उस राज व्यवस्था को पूरी करते हो, तो अच्छा ही करते हो। 9 पर यदि तुम पक्षपात करते हो, तो पाप करते हो; और व्यवस्था तुम्हें अपराधी ठहराती है। 10 क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहरा। 11 इसलिये कि जिस ने यह कहा, कि तू व्यभिचार न करना उसी ने यह भी कहा, कि तू हत्या न करना इसलिये यदि तू ने व्यभिचार तो नहीं किया, पर हत्या की तौभी तू व्यवस्था का उलंघन करने वाला ठहरा। 12 तुम उन लोगों की नाईं वचन बोलो, और काम भी करो, जिन का न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार होगा। 13 क्योंकि जिस ने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा: दया न्याय पर जयवन्त होती है॥ 14 हे मेरे भाइयों, यदि कोई कहे कि मुझे विश्वास है पर वह कर्म न करता हो, तो उस से क्या लाभ? क्या ऐसा विश्वास कभी उसका उद्धार कर सकता है? 15 यदि कोई भाई या बहिन नगें उघाड़े हों, और उन्हें प्रति दिन भोजन की घटी हो। 16 और तुम में से कोई उन से कहे, कुशल से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो; पर जो वस्तुएं देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ? 17 वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है। 18 वरन कोई कह सकता है कि तुझे विश्वास है, और मैं कर्म करता हूं: तू अपना विश्वास मुझे कर्म बिना तो दिखा; और मैं अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा तुझे दिखाऊंगा। 19 तुझे विश्वास है कि एक ही परमेश्वर है: तू अच्छा करता है: दुष्टात्मा भी विश्वास रखते, और थरथराते हैं। 20 पर हे निकम्मे मनुष्य क्या तू यह भी नहीं जानता, कि कर्म बिना विश्वास व्यर्थ है? 21 जब हमारे पिता इब्राहीम ने अपने पुत्र इसहाक को वेदी पर चढ़ाया, तो क्या वह कर्मों से धामिर्क न ठहरा था? 22 सो तू ने देख लिया कि विश्वास ने उस के कामों के साथ मिल कर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ। 23 और पवित्र शास्त्र का यह वचन पूरा हुआ, कि इब्राहीम ने परमेश्वर की प्रतीति की, और यह उसके लिये धर्म गिना गया, और वह परमेश्वर का मित्र कहलाया। 24 सो तुम ने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, वरन कर्मों से भी धर्मी ठहरता है। 25 वैसे ही राहाब वेश्या भी जब उस ने दूतों को अपने घर में उतारा, और दूसरे मार्ग से विदा किया, तो क्या कर्मों से धामिर्क न ठहरी? 26 निदान, जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है॥

याकूब(अध्याय 3) 1 हे मेरे भाइयों, तुम में से बहुत उपदेशक न बनें, क्योंकि जानते हो, कि हम उपदेशक और भी दोषी ठहरेंगे। 2 इसलिये कि हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है; और सारी देह पर भी लगाम लगा सकता है। 3 जब हम अपने वश में करने के लिये घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं, तो हम उन की सारी देह को भी फेर सकते हैं। 4 देखो, जहाज भी, यद्यपि ऐसे बड़े होते हैं, और प्रचण्ड वायु से चलाए जाते हैं, तौभी एक छोटी सी पतवार के द्वारा मांझी की इच्छा के अनुसार घुमाए जाते हैं। 5 वैसे ही जीभ भी एक छोटा सा अंग है और बड़ी बड़ी डींगे मारती है: देखो, थोड़ी सी आग से कितने बड़े वन में आग लग जाती है। 6 जीभ भी एक आग है: जीभ हमारे अंगों में अधर्म का एक लोक है और सारी देह पर कलंक लगाती है, और भवचक्र में आग लगा देती है और नरक कुण्ड की आग से जलती रहती है। 7 क्योंकि हर प्रकार के बन-पशु, पक्षी, और रेंगने वाले जन्तु और जलचर तो मनुष्य जाति के वश में हो सकते हैं और हो भी गए हैं। 8 पर जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं; वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है। 9 इसी से हम प्रभु और पिता की स्तुति करते हैं; और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्वरूप में उत्पन्न हुए हैं श्राप देते हैं। 10 एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं। 11 हे मेरे भाइयों, ऐसा नहीं होना चाहिए। 12 क्या सोते के एक ही मुंह से मीठा और खारा जल दोनों निकलते हैं? हे मेरे भाइयों, क्या अंजीर के पेड़ में जैतून, या दाख की लता में अंजीर लग सकते हैं? वैसे ही खारे सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता॥ 13 तुम में ज्ञानवान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो वह अपने कामों को अच्छे चालचलन से उस नम्रता सहित प्रगट करे जो ज्ञान से उत्पन्न होती है। 14 पर यदि तुम अपने अपने मन में कड़वी डाह और विरोध रखते हो, तो सत्य के विरोध में घमण्ड न करना, और न तो झूठ बोलना। 15 यह ज्ञान वह नहीं, जो ऊपर से उतरता है वरन सांसारिक, और शारीरिक, और शैतानी है। 16 इसलिये कि जहां डाह और विरोध होता है, वहां बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्कर्म भी होता है। 17 पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है। 18 और मिलाप कराने वालों के लिये धामिर्कता का फल मेल-मिलाप के साथ बोया जाता है॥

याकूब(अध्याय 4) 1 तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं? 2 तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं; तुम हत्या और डाह करते हो, ओर कुछ प्राप्त नहीं कर सकते; तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिये नहीं मिलता, कि मांगते नहीं। 3 तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो। 4 हे व्यभिचारिणयों, क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है। 5 क्या तुम यह समझते हो, कि पवित्र शास्त्र व्यर्थ कहता है जिस आत्मा को उस ने हमारे भीतर बसाया है, क्या वह ऐसी लालसा करता है, जिस का प्रतिफल डाह हो? 6 वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। 7 इसलिये परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा। 8 परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा: हे पापियों, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगों अपने हृदय को पवित्र करो। 9 दुखी होओ, और शोक करा, और रोओ: तुम्हारी हंसी शोक में और तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए। 10 प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा। 11 हे भाइयों, एक दूसरे की बदनामी न करो, जो अपने भाई की बदनामी करता है, या भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है, और व्यवस्था पर दोष लगाता है; और यदि तू व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलने वाला नहीं, पर उस पर हाकिम ठहरा। 12 व्यवस्था देने वाला और हाकिम तो एक ही है, जिसे बचाने और नाश करने की सामर्थ है; तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है? 13 तुम जो यह कहते हो, कि आज या कल हम किसी और नगर में जाकर वहां एक वर्ष बिताएंगे, और व्यापार करके लाभ उठाएंगे। 14 और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा: सुन तो लो, तुम्हारा जीवन है ही क्या? तुम तो मानो भाप समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है, फिर लोप हो जाती है। 15 इस के विपरीत तुम्हें यह कहना चाहिए, कि यदि प्रभु चाहे तो हम जीवित रहेंगे, और यह या वह काम भी करेंगे। 16 पर अब तुम अपनी ड़ींग पर घमण्ड करते हो; ऐसा सब घमण्ड बुरा होता है। 17 इसलिये जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिये यह पाप है॥

याकूब(अध्याय 5) 1 हे धनवानों सुन तो लो; तुम अपने आने वाले क्लेशों पर चिल्ला-चिल्लाकर रोओ। 2 तुम्हारा धन बिगड़ गया और तुम्हारे वस्त्रों को कीड़े खा गए। 3 तुम्हारे सोने-चान्दी में काई लग गई है; और वह काई तुम पर गवाही देगी, और आग की नाईं तुम्हारा मांस खा जाएगी: तुम ने अन्तिम युग में धन बटोरा है। 4 देखो, जिन मजदूरों ने तुम्हारे खेत काटे, उन की वह मजदूरी जो तुम ने धोखा देकर रख ली है चिल्ला रही है, और लवने वालों की दोहाई, सेनाओं के प्रभु के कानों तक पहुंच गई है। 5 तुम पृथ्वी पर भोग-विलास में लगे रहे और बड़ा ही सुख भोगा; तुम ने इस वध के दिन के लिये अपने हृदय का पालन-पोषण करके मोटा ताजा किया। 6 तुम ने धर्मी को दोषी ठहरा कर मार डाला; वह तुम्हारा साम्हना नहीं करता॥ 7 सो हे भाइयों, प्रभु के आगमन तक धीरज धरो, देखो, गृहस्थ पृथ्वी के बहुमूल्य फल की आशा रखता हुआ प्रथम और अन्तिम वर्षा होने तक धीरज धरता है। 8 तुम भी धीरज धरो, और अपने हृदय को दृढ़ करो, क्योंकि प्रभु का शुभागमन निकट है। 9 हे भाइयों, एक दूसरे पर दोष न लगाओ ताकि तुम दोषी न ठहरो, देखो, हाकिम द्वार पर खड़ा है। 10 हे भाइयो, जिन भविष्यद्वक्ताओं ने प्रभु के नाम से बातें की, उन्हें दुख उठाने और धीरज धरने का एक आदर्श समझो। 11 देखो, हम धीरज धरने वालों को धन्य कहते हैं: तुम ने अय्यूब के धीरज के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु की ओर से जो उसका प्रतिफल हुआ उसे भी जान लिया है, जिस से प्रभु की अत्यन्त करूणा और दया प्रगट होती है। 12 पर हे मेरे भाइयों, सब से श्रेष्ठ बात यह है, कि शपथ न खाना; न स्वर्ग की न पृथ्वी की, न किसी और वस्तु की, पर तुम्हारी बातचीत हां की हां, और नहीं की नहीं हो, कि तुम दण्ड के योग्य न ठहरो॥ 13 यदि तुम में कोई दुखी हो तो वह प्रार्थना करे: यदि आनन्दित हो, तो वह स्तुति के भजन गाए। 14 यदि तुम में कोई रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें। 15 और विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उस को उठा कर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी। 16 इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ; धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है। 17 एलिय्याह भी तो हमारे समान दुख-सुख भोगी मनुष्य था; और उस ने गिड़िगड़ा कर प्रार्थना की; कि मेंह न बरसे; और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर मेंह नहीं बरसा। 18 फिर उस ने प्रार्थना की, तो आकाश से वर्षा हुई, और भूमि फलवन्त हुई॥ 19 हे मेरे भाइयों, यदि तुम में कोई सत्य के मार्ग से भटक जाए, और कोई उस को फेर लाए। 20 तो वह यह जान ले, कि जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा, और अनेक पापों पर परदा डालेगा॥

यहूदा अध्याय 1 1 यहूदा की ओर से जो यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई है, उन बुलाए हुओं के नाम जो परमेश्वर पिता में प्रिय और यीशु मसीह के लिये सुरक्षित हैं॥ 2 दया और शान्ति और प्रेम तुम्हें बहुतायत से प्राप्त होता रहे॥ 3 हे प्रियो, जब मैं तुम्हें उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिस में हम सब सहभागी हैं; तो मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था। 4 क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं, जिन के इस दण्ड का वर्णन पुराने समय में पहिले ही से लिखा गया था: ये भक्तिहीन हैं, और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं॥ 5 पर यद्यपि तुम सब बात एक बार जान चुके हो, तौभी मैं तुम्हें इस बात की सुधि दिलाना चाहता हूं, कि प्रभु ने एक कुल को मिस्र देश से छुड़ाने के बाद विश्वास न लाने वालों को नाश कर दिया। 6 फिर जो र्स्वगदूतों ने अपने पद को स्थिर न रखा वरन अपने निज निवास को छोड़ दिया, उस ने उन को भी उस भीषण दिन के न्याय के लिये अन्धकार में जो सदा काल के लिये है बन्धनों में रखा है। 7 जिस रीति से सदोम और अमोरा और उन के आस पास के नगर, जो इन की नाईं व्यभिचारी हो गए थे और पराये शरीर के पीछे लग गए थे आग के अनन्त दण्ड में पड़ कर दृष्टान्त ठहरे हैं। 8 उसी रीति से ये स्वप्नदर्शी भी अपने अपने शरीर को अशुद्ध करते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं; और ऊंचे पद वालों को बुरा भला कहते हैं। 9 परन्तु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब शैतान से मूसा की लोथ के विषय में वाद-विवाद करता था, तो उस को बुरा भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; पर यह कहा, कि प्रभु तुझे डांटे। 10 पर ये लोग जिन बातों को नहीं जानते, उन को बुरा भला कहते हैं; पर जिन बातों को अचेतन पशुओं की नाईं स्वभाव ही से जानते हैं, उन में अपने आप को नाश करते हैं। 11 उन पर हाय! कि वे कैन की सी चाल चले, और मजदूरी के लिये बिलाम की नाईं भ्रष्ट हो गए हैं: और कोरह की नाईं विरोध करके नाश हुए हैं। 12 यह तुम्हारी प्रेम सभाओं में तुम्हारे साथ खाते-पीते, समुद्र में छिपी हुई चट्टान सरीखे हैं, और बेधड़क अपना ही पेट भरने वाले रखवाले हैं; वे निर्जल बादल हैं; जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है; पतझड़ के निष्फल पेड़ हैं, जो दो बार मर चुके हैं; और जड़ से उखड़ गए हैं। 13 ये समुद्र के प्रचण्ड हिलकोरे हैं, जो अपनी लज्ज़ा का फेन उछालते हैं: ये डांवाडोल तारे हैं, जिन के लिये सदा काल तक घोर अन्धकार रखा गया है। 14 और हनोक ने भी जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, इन के विषय में यह भविष्यद्ववाणी की, कि देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आया। 15 कि सब का न्याय करे, और सब भक्तिहीनों को उन के अभक्ति के सब कामों के विषय में, जो उन्होंने भक्तिहीन होकर किये हैं, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो भक्तिहीन पापियों ने उसके विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए। 16 ये तो असंतुष्ट, कुड़कुड़ाने वाले, और अपने अभिलाषाओं के अनुसार चलने वाले हैं; और अपने मुंह से घमण्ड की बातें बोलते हैं; और वे लाभ के लिये मुंह देखी बड़ाई किया करते हैं॥ 17 पर हे प्रियों, तुम उन बातों को स्मरण रखो; जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरित पहिले कह चुके हैं। 18 वे तुम से कहा करते थे, कि पिछले दिनों में ऐसे ठट्ठा करने वाले होंगे, जो अपनी अभक्ति के अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे। 19 ये तो वे हैं, जो फूट डालते हैं; ये शारीरिक लोग हैं, जिन में आत्मा नहीं। 20 पर हे प्रियोंतुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए। 21 अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो; और अनन्त जीवन के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा देखते रहो। 22 और उन पर जो शंका में हैं दया करो। 23 और बहुतों को आग में से झपट कर निकालो, और बहुतों पर भय के साथ दया करो; वरन उस वस्त्र से भी घृणा करो जो शरीर के द्वारा कलंकित हो गया है॥ 24 अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है, और अपनी महिमा की भरपूरी के साम्हने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है। 25 उस अद्वैत परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा, और गौरव, और पराक्रम, और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन॥

1 कुरिन्थियों अध्याय 15:7 7 फिर याकूब को दिखाई दिया तब सब प्रेरितों को दिखाई दिया।

इफिसियों अध्याय 2:(8-10) 8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। 10 क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया॥

2 कुरिन्थियों अध्याय 5:21 21 जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं॥

यूहन्ना अध्याय 10:(27-29) 27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूं, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं। 28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश न होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। 29 मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।