पाठ 36 : 1 तीमुथियुस, तीतुस और 2 तीमुथियुस का सर्वेक्षण

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सारांश

1 तीमुथियुस, तीतुस और 2 तीमुथियुस का सर्वेक्षण क) 1 तीमुथियुस यह पत्र स्पष्ट रूप से प्रेरित पौलुस को इसका लेखक बताता है। यह विश्वास किया जाता है कि पौलुस ने इसे मकिदुनिया से रोम में सन् 62-65 के बीच उसकी पहली और दूसरी बार बंदी बनाए जाने के बीच लिखा था। इस समय के दौरान वह कई स्थानों में गया। फिर भी हम उसके यात्रा के सही क्रम को नहीं जानते। हम इसे अच्छी तरह “पौलुस की चैथी मिश्नरी यात्रा कह सकते हैं।” वह अवश्य ही निम्नलिखित स्थानों में गया रहा होगा:

  1. कुलुस्से और इफिसुस। (फिलेमोन 22)
  2. मकिदुनिया (1 तीमुथियुस 1:3; फिलिप्पियों 1:25; 2:24)
  3. इफिसुस। (1 तीमुथियुस 3:14)
  4. स्पेन। (रोमियों 15:24)
  5. क्रेते। (तीतुस 1:5)
  6. कुरिन्थ। (2 तीमुथियुस 4:20)
  7. मिलेतुस (2 तीमुथियुस 4:20)
  8. निकुपुलिस में जाड़ा बिताया। (तीतुस 3:12)
  9. त्रोआस (2 तीमुथियुस 4:13) तीमुथियुस एक यूनानी पिता और यहूदी माता का बेटा था (प्रेरितों के काम 161)। उसके पिता के मसीही होने का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, परंतु उसकी माता यूनीके और उसकी नानी लोईस दोनों उनके सच्चे विश्वास के लिये जाने जाते थे (2 तीमुथियुस 1:5)। जब पौलुस उसकी पहली यात्रा में उस शहर में गया तब पौलुस लुस्त्रा में रहता था (प्रेरितों के काम 12:6; 16:1)। पौलुस ने तीमुथियुस को यीशु पर विश्वास करने में अगुवाई किया था। इस प्रकार वह उसका आत्मिक पिता बना (1 तीमुथियुस 1:2; 2 तीमु 1:2; फिलिप्पियों 2:22)। पौलुस ने उसे सहयात्री के समान साथ रखा (प्रेरितों के काम 16:3,4) और वह प्रेरित का सबसे अधिक विश्वासयोग्य संगी कर्मी बना (रोमियों 16:21, 1 थिस्स 3:2,6)। पौलुस ने उसकी पत्रियों में अभिवादन में तीमुथियुस के नाम को भी सम्मिलित किया। उसके अंतिम दिनों में चाहा कि उसका विश्वास का पुत्र उसके साथ रहे (2 तीमुथियुस 1:4, 4:9,21)। पहली बार रोमी बंदीगृह से स्वतंत्र किए जाने के बाद (प्रेरितों के काम 28), पौलुस ने तीमुथियुस के साथ प्रत्यक्ष रूप से एशिया की कुछ कलीसियाओं को भेंट दिया जिसमें इफिसुस का भी समावेश है। जब पौलुस ने इफिसुस छोड़ा, संभवतः मकिदुनिया जाने के लिये, उसने तीमुथियुस को कलीसिया की अगुवाई करने के लिये पीछे छोड़ दिया इस आशा में कि वह जल्द ही लौट जाएगा। लेकिन उसकी वापसी में देरी हो गई। इसलिये उसने तीमुथियुस को एक पत्र लिखा: वही पत्र 1 तीमुथियुस है। पौलुस के जीवन के अंति समय में उसके द्वारा लिखे गए तीन पत्र तीमुथियुस और तीतुस को संबोधित किए गए थे। केवल ये ही वे पत्र हैं जिन्हें पौलुस ने व्यक्ति विशेष को लिखा (फिलेमोन मूलतः उसके नाममात्र था, परंतु वह दूसरों को भी लिखा गया था) और उन्हें तीमुथियुस और तीतुस को उनकी कलीसियाओं को मजबूत बनाने की सेवकाई में प्रोत्साहित करने के लिये थीं, वे कलीसियाएँ जो इफिसुस और क्रेते में थीं। इसलिये इन पत्रियों को पास्तरीय पत्रियों के नाम से जाना गया। पास्तरीय पत्रियाँ अगुवाई के सिद्धांतों और धर्मी जीवन से परिपूर्ण हैं। सिद्धांत के विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 1) अभिवादन के बाद पौलुस तीमुथियुस को झूठे सिद्धांतों की समस्या के विषय चेतावनी देता है। फिर प्रेरित मसीह के लिये उसके परिवर्तन को याद करता है और सेवकाई के लिये उसकी बुलाहट को भी याद किया। तीमुथियुस को भी ईश्वरीय बुलाहट मिली थी और पौलुस उसे सिद्धांतों या आचरण में बिना हेराफेरी किये पूरी करने की चेतावनी देता है। (1:18-20)। सार्वजनिक आराधना के विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 2 और 3) इस खंड में पौलुस कलीसियाई आराधना और अगुवाई के मुद्दों पर लिखता है। वह कलीसिया में पुरुषों और स्त्रियों की विभिन्न भूमिकाओं के विषय कहता है। फिर वह प्राचीनों और बिशपों की कई योग्यताओं के विषय सूची जारी करता है। डीकनों के लिये वह 3:8-13 में योग्यताएँ लिखता है। झूठे शिक्षकों के विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 4) पत्री के इस अंतिम आधे भाग में पौलुस तीमुथियुस के व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान केंद्रित करता है, और उसे झूठी शिक्षा से सावधान रहने, धार्मिकता के लिये स्वयँ को अनुशासित करने और झुण्ड की जरूरतों पर नज़दीकी से ध्यान देने के लिये प्रोत्साहित करता है। इस अध्याय में पौलुस विवाह, भोजन, और व्यायाम के विषय सतर्कता से सलाह देता है। अंत में, वह तीमुथियुस को प्राप्त आत्मिक वरदानों के विषय लापरवाही न करने की सलाह देता है। कलीसियाई अनुशासन से विषय पौलुस की चेतावनी (अध्याय 5) जवान सेवक के लिये पास्तरीय सेवकाई की सबसे बड़ी कठिनाई होती है कलीसियाई अनुशासन में अगुवाई करना। पौलुस उसे सलाह देता है कि वह कलीसिया के सभी सदस्यों के साथ एक परिवार का सा व्यवहार करे। वह विधवाओं और बुजुर्गों के प्रति तीमुथियुस की जवाबदारी पर व्यवहारिक निर्देश देता है। सिद्धांत और व्यक्तिगत सच्चाई के विश पौलुस की चेतावनी (अध्याय 6) व्यक्तिगत सच्चाई के साथ सैद्धांतिक सच्चाई भी होना चाहिये। आत्मिक अगुवों को चाहिये कि वे जीवन की आवश्यकताओं में ही संतुष्ट रहें। इस खंड में पौलुस तीमुथियुस को संसारिक अभिलाओं से भागने और ईश्वर की बातों का पीछा करने को कहता है और साथ ही उन्हें भी आग्रह करता है जिनके पास धन है कि वे उनके धन को परमेश्वर की ओर से दान समझें और जरूरतमंदों की सहायता का स्त्रोत समझें। पौलुस के अंतिम शब्द फिर से सही सिद्धातों के महत्व पर है, “हे तीमुथियुस, इस धरोहर की रखवाली कर; और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवास और विरोध की बातों से परे रह। कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके विश्वास से भटक गए हैं। तुम पर अनुग्रह होता रहे।” (पद 20-21) तीतसु तीतुस एक यूनानी था (गलातियों 2:3) जिसे पौलुस ने मसीह के पास लाया था (तीतुस 1:4)। वह पौलुस का सबसे घनिष्ट और सबसे अधिक विश्वासयोग्य साथी था। उसने आखिरकार स्वयं को विश्वासयोग्य और योग्य सेवक सिद्ध कर दिया, इसलिये तीतुथियुस के समान महत्वपूर्ण सेवकाई की उसे भी जवाबदारी दी गई। सेवकाई समस्याओं और चुनौतियों से भरपूर थी। तीतुस को उसके आत्मिक पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। क्रेते एक भूमध्यासागरीय टापू है और उसके प्रथम शताब्दी के रहवासी झूठ और अनैतिकता के कारण उपद्रवी थे। पिन्तेकुसत के दिन (प्रेरितों के काम 2:11) पतरस के उपदेश के समय क्रेते से भी कई यहूदी उपस्थित थे और उनमें से कुछ लोगों ने मसीह पर विश्वास किया होगा और उनके देश के लोगों को सुसमाचार सुनाया होगा। रोम को जाते समय पौलुस ने क्रेते में अल्प विराम किया था (प्रेरितों के काम 27:7-13)। उसने रोमी कैद से छूटने के बाद क्रेते के शहरों में सुसमाचार फैलाया और तीतुस को वहीं छोड़ दिया कि वह कलीसियाओं का गठन पूरा करे। क्रेतियों के मध्य अनैतिकता की समस्या के कारण तीतुस के लिये जरूरी था कि वह मसीही जीवन में धार्मिकता की आवश्यकता पर जोर दे। पौलुस ने यह पत्र सन 64 में लिखा था। तीतुस की पत्री पढ़ने में सरल है और इसे 3 अध्यायों में बांटा जा सकता है। पहले अध्याय में पौलुस तीतुस से प्राचीनों की नियुक्ति करने को कहता है और झूठे शिक्षकों का निडरता से सामना करने को कहता है। दूसरा अध्याय अच्छे कार्यों द्वारा मसीही जीवन की सच्चाई के जीने के महत्व पर बल देता है। तीसरा अध्याय अच्छे कार्य करने के द्वारा सच्चे मसीही जीवन जीने के महत्व पर बल देता है। प्राचीन नियुक्त करे (अध्याय 1) अभिवादन में पौलुस स्वयं को प्रेरित और मसीह का बंधुआदास, जीवन देनेवाले सुसमाचार का सेवक और तीतुस को सामान्य विश्वास में सच्ची सन्तान बताता है। फिर वह तीतुस को क्रेते में उसकी जवाबदारी की याद दिलाता है। पौलुस उसे प्राचीनों की नियुक्ति करने के द्वारा क्रेते में कलीसियाओं का गठन करने को कहता है और उन आत्मिक अगुवों की योग्यताओं के विषय निर्देश देता है (पढे 1:6-9)। यह झूठे शिक्षकों के द्वारा पैदा की गई गड़बड़ियों के कारण महत्वपूर्ण है। इन शिक्षकों को सुधारा जाना जरूरी है और संभव हो सके तो उन्हें सच्चे विश्वास में वापस लाना जरूरी है, ताकि वे यहूदी कथाओं और मनुष्यों के आज्ञाओं द्वारा भटकने न पाएँ।" (पद 14) सभी बातों को व्यवस्थित करें (अध्याय 2 और 3) अब पौलुस सही सिद्धांत पर अमल करने के विषय कहता है। वह कलीसिया में कई समूहों के प्रति तीतुस की भूमिका के विषय बताता है जिसमें बुजुर्गों, बूढ़ी स्त्रियों, जवान स्त्रियों, जवान पुरुषों और दासों का भी समावेश है। मसीह का ज्ञान इन सभी समूहों को परिवर्तन करना चाहिये ताकि उनकी गवाही “परमेश्वर के सिद्धांतों की प्रशंसा करे।” यीशु ने हमें बचाया और अपना बनाया। इसलिये हमें भी उसी के अनुसार जीना है। हमारे पास “धन्य आशा” की पवित्र प्रतिज्ञा है कि वह हमारे लिये आएगा। पौलुस तीतुस से आग्रह करता है कि वह अधिकारपूर्वक इन सत्यों की घोषणा करें। तीतुस को इस विषय निर्देश देकर कि लोगों के विभिन्न समूहों को कैसी शिक्षा दी जाए, अब पौलुस नागरिक अधिकारियों और सामान्य लोगों के प्रति कलीसिया की जवाबदारी के विषय कहता है। नागरिक के रूप में विश्वासियों का व्यवहार उनके नए जन्म और पवित्र आतमा के द्वारा नए किये जाने के कारण अविश्वासियों से भिन्न होना चाहिये। आगे वह दया प्रेम और परमेश्वर की करूणा पर बदल देता है जो हमें बचाते हैं, “हमारे धार्मिकता के काम नहीं।” लेकिन अच्छे कार्यों की आवश्यकता जो उद्धार के परिणाम है इस बात पर तीतुस के तीन अध्यायों में बल दिया गया है (1:16; 2:7; 14; 3:1;18,14)। पौलुस तीतुस को उनसे सख्ती से सामना करने को कहता है जो फूट और विवाद पैदा कर सकते हैं। पौलुस अपने अंतिम शब्दों में दूसरों की ओर से अभिवादन देता है और अच्छे कार्यों के महत्व की याद दिलाता है। पौलुस इस प्रगट इच्छा के साथ बंद करता है, “तुम सब पर अनुग्रह होता रहे।” यह बहुवचन इस बात को दर्शाता है कि ये निर्देश केवल तीतुस के लिये नहीं थे। वे सारी कलीसिया के लिये हैं। 2 तीमुथियुस क्या कोई बंदीगृह से उत्साहवर्धक पत्र की अपेक्षा कर सकता है? परंतु वहीं से पौलुस का तीमुथियुस को दूसरा पत्र लिखा जाता है। रोम का नेरो सम्राट ही मसीहियों के रोमी सताव की शुरूवात का जिम्मेदार था। आधा रोम आग के द्वारा सन 64 में नाश कर दिया गया था। स्थिति को और बुरी बनाने के लिये नेरो ने लोगों को यकीन दिला दिया था कि स्वयं मसीहियों ने ही बड़ी आग लगाई थी। अब मसीही लोग राज्य के अधिकारिक शत्रु थे, जिन्हे खुले आम यातना दी जाती और उनका वध किया जाता था। पौलुस के एशिया वापस लौटने तक, उसके शत्रु उनके आधिकारिक अधिकार का मसीहियों के विरुद्ध उपयोग कर रहे थे। संभवतः उसे त्रोआस में बंदी बनाया गया था और रोम लाया गया था। अपने जीवन को खतरे में देख विश्वासी लोग उसे बंदी बनाए जाने के बाद उसकी मदद नहीं कर पाए (1:15) और किसी ने भी अदालत में उसका बचाव नहीं किया (4:16)। करीब-करीब सभी के द्वारा त्याग देने के बाद प्रेरित पौलुस ने स्वयं को उसके पहले रोमी बंदी बनाए जाने में काफी भिन्न स्थिति में पाया (प्रेरितों के काम 28:16-31)। उस समय वह केवल नजरबंद था, लोग उससे स्वतंत्रता से मिल सकते थे और उसे छूट जाने की आशा थी। अब वह एक ठंडे रोमी कक्ष में था (4:13), उसे “बुरे काम करनेवाला” समझा गया (2:9), उसके शुरूवाती सफल बचाव के बावजूद उसे छूटने की आशा नहीं थी (4:6-8, 17-18)। इन परिस्थितियों में पौलुस ने यह पत्री सन 67 में लिखा, इस आशा से कि शीतकाल शुरू होने से पहले तीमुथियुस उससे मिलने आएगा (4:21)। इस पत्र के लिखे जाने के समय तीमुथियुस इफिसुस में था (1:18, 4:19) और रोम जाते समय वह त्रोआस और मकिदुनिया से होकर जानेवाला था। तिखिकुस ही इस पत्र का वाहक रहा होगा। “धरोहर की रक्षा कर! क्लेश उठा।” (अध्याय 1 और 2) “प्रिय पुत्र” के अभिवादन के बाद (1:2) पौलुस तीमुथियुस के उचित विश्वास के प्रति धन्यवाद व्यक्त करता है (1:5)। फिर वह तीमुथियुस को सुसमाचार की सामर्थ में स्थिर बने रहने, और विरोध की स्थिति में किसी भी प्रकार के डर पर विजय पाने के लिये प्रोत्साहित करता है। फिर पौलुस उसके आत्मिक पुत्र को प्रोत्साहित करता है कि उसने मसीह से जो पाया है वह दूसरों के जीवन में भी उत्पन्न करे। (2:2 में चार पीढ़ियाँ बताई गई हैं।) वह पौलुस के धीरज का अनुकरण करते हुए कठिन परिश्रम करने और स्वयं को एक शिक्षक के समान, सैनिक, किसान, कर्मी और दास के समान अनुशासित करने के लिये जिम्मेदार है (2:1-13)। दूसरों के साथ उसके व्यवहार में तीमुथियुस को झूठी बातों, झूठे झगड़ों, जवानी की अभिलाषाओं, में नहीं फँसना चाहिये जो उसकी गवाही को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसके विपरीत उसे धार्मिकता, विश्वास प्रेम और शांति का पीछा करने को कहा जाता है (2:22) “आगे बढ़कर सुसमाचार का प्रचार कर!” (अध्याय 3 और 4) पौलुस ऐसे समय की कल्पना करता है जब नास्तिकता और दुष्टता बढ़ जाएगी और पुरुष और स्त्री झूठी शिक्षाओं में भटक जाएँगे। हठीलापन और अधार्मिकता का परिणाम केवल धोखा होगा, परंतु तीमुथियुस को इन झूठे सिद्धांतों और नैतिक बुराईयों से निपटने में वचन के उपयोग में डरने की आवश्यकता नहीं है (3:10-17)। वचन प्रेरणा से लिखे गए हैं (परमेश्वर की सांस/प्रेरणा द्वारा) और उनके साथ तीमुथियुस सुसज्जित किया गया है कि वही सेवकाई करे जिसके लिये वह बुलाया गया है। पौलुस एक अच्छी “कुश्ती लड़ चुका है” (4:7)। वह अलग होने और परमेश्वर के साथ होने को तैयार है। और जवान तीमुथियुस को अनुग्रह के सुसमाचार के लिये लड़ाई जारी रखना होगा। अंतिम शब्द “मेरे पास आने का हर प्रयास कर।” पौलुस के अधिकांश संगी लोगों ने या तो उसे छोड़ दिया है, या वे कहीं और सेवकाई में लगे हुए हैं। अब पौलुस के साथ केवल लूका जो इमानदार वैद्य है, बचा है। इसलिये पौलुस तीमुथियुस को देखने को लालायित है जिसे वह उसके कुछ व्यक्तिगत सामान साथ लाने को कहता है - एक बागा जो उसके शरीर को गर्म रख सके चर्मपत्र जो उसके प्राण को गर्म रख सके। यहाँ तक कि वह तीमुथियुस से मरकुस को भी साथ लाने को कहता है जिसने उसे उसकी आरंभिक सेवकाई में छोड़ दिया था, परंतु वह परिपक्व हो गया है और “उपयोगी” बन गया है। लेकिन परमेश्वर ने पौलुस को नहीं छोड़ा है। वह उसके साथ खड़ा रहता है और उसे बल देता है। उसे इस बात का हमेशा यकीन रहता था कि प्रभु उसे सुरक्षित रीति से उसके स्वर्गीय राज्य में ले लेगा। अंत में पौलुस अपनी और अन्य विश्वासियों की ओर से इफिसुस के प्रिय जनों को शुभकामनाएँ देता है और तीमुथियुस से आग्रह करता है कि वह “शीतकाल के पहले” आ जाए (पद 21)।

बाइबल अध्यन

1 तीमुथियुस अध्याय 1 1 पौलुस की ओर से जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, और हमारी आशा-स्थान मसीह यीशु की आज्ञा से मसीह यीशु का प्रेरित है, तिमुथियुस के नाम जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है॥ 2 पिता परमेश्वर, और हमारे प्रभु मसीह यीशु से, तुझे अनुग्रह और दया, और शान्ति मिलती रहे॥ 3 जैसे मैं ने मकिदुनिया को जाते समय तुझे समझाया था, कि इफिसुस में रहकर कितनों को आज्ञा दे कि और प्रकार की शिक्षा न दें। 4 और उन ऐसी कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर मन न लगाएं, जिन से विवाद होते हैं; और परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार नहीं, जो विश्वास से सम्बन्ध रखता है; वैसे ही फिर भी कहता हूं। 5 आज्ञा का सारांश यह है, कि शुद्ध मन और अच्छे विवेक, और कपट रहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो। 6 इन को छोड़ कर कितने लोग फिर कर बकवाद की ओर भटक गए हैं। 7 और व्यवस्थापक तो होना चाहते हैं, पर जो बातें कहते और जिन को दृढ़ता से बोलते हैं, उन को समझते भी नहीं। 8 पर हम जानते हैं, कि यदि कोई व्यवस्था को व्यवस्था की रीति पर काम में लाए, तो वह भली है। 9 यह जानकर कि व्यवस्था धर्मी जन के लिये नहीं, पर अधमिर्यों, निरंकुशों, भक्तिहीनों, पापीयों, अपवित्रों और अशुद्धों, मां-बाप के घात करने वालों, हत्यारों। 10 व्याभिचारियों, पुरूषगामियों, मनुष्य के बेचने वालों, झूठों, और झूठी शपथ खाने वालों, और इन को छोड़ खरे उपदेश के सब विरोधियों के लिये ठहराई गई है। 11 यही परमधन्य परमेश्वर की महिमा के उस सुसमाचार के अनुसार है, जो मुझे सौंपा गया है॥ 12 और मैं, अपने प्रभु मसीह यीशु का, जिस ने मुझे सामर्थ दी है, धन्यवाद करता हूं; कि उस ने मुझे विश्वास योग्य समझकर अपनी सेवा के लिये ठहराया। 13 मैं तो पहिले निन्दा करने वाला, और सताने वाला, और अन्धेर करने वाला था; तौभी मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैं ने अविश्वास की दशा में बिन समझे बूझे, ये काम किए थे। 14 और हमारे प्रभु का अनुग्रह उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, बहुतायत से हुआ। 15 यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है, कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया, जिन में सब से बड़ा मैं हूं। 16 पर मुझ पर इसलिये दया हुई, कि मुझ सब से बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्वास करेंगे, उन के लिये मैं एक आदर्श बनूं। 17 अब सनातन राजा अर्थात अविनाशी अनदेखे अद्वैत परमेश्वर का आदर और महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन॥ 18 हे पुत्र तीमुथियुस, उन भविष्यद्वाणियों के अनुसार जो पहिले तेरे विषय में की गई थीं, मैं यह आज्ञा सौंपता हूं, कि तू उन के अनुसार अच्छी लड़ाई को लड़ता रहे। 19 और विश्वास और उस अच्छे विवेक को थामें रहे जिसे दूर करने के कारण कितनों का विश्वास रूपी जहाज डूब गया। 20 उन्हीं में से हुमिनयुस और सिकन्दर हैं जिन्हें मैं ने शैतान को सौंप दिया, कि वे निन्दा करना न सीखें॥

1 तीमुथियुस(अध्याय 2) 1 अब मैं सब से पहिले यह उपदेश देता हूं, कि बिनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिये किए जाएं। 2 राजाओं और सब ऊंचे पद वालों के निमित्त इसलिये कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गम्भीरता से जीवन बिताएं। 3 यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता, और भाता भी है। 4 वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहिचान लें। 5 क्योंकि परमेश्वर एक ही है: और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है। 6 जिस ने अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उस की गवाही ठीक समयों पर दी जाए। 7 मैं सच कहता हूं, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया॥ 8 सो मैं चाहता हूं, कि हर जगह पुरूष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठा कर प्रार्थना किया करें। 9 वैसे ही स्त्रियां भी संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से, पर भले कामों से। 10 क्योंकि परमेश्वर की भक्ति ग्रहण करने वाली स्त्रियों को यही उचित भी है। 11 और स्त्री को चुपचाप पूरी आधीनता में सीखना चाहिए। 12 और मैं कहता हूं, कि स्त्री न उपदेश करे, और न पुरूष पर आज्ञा चलाए, परन्तु चुपचाप रहे। 13 क्योंकि आदम पहिले, उसके बाद हव्वा बनाई गई। 14 और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकाने में आकर अपराधिनी हुई। 15 तौभी बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएंगी, यदि वे संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर रहें॥

1 तीमुथियुस(अध्याय 3) 1 यह बात सत्य है, कि जो अध्यक्ष होना चाहता है, तो वह भले काम की इच्छा करता है। 2 सो चाहिए, कि अध्यक्ष निर्दोष, और एक ही पत्नी का पति, संयमी, सुशील, सभ्य, पहुनाई करने वाला, और सिखाने में निपुण हो। 3 पियक्कड़ या मार पीट करने वाला न हो; वरन कोमल हो, और न झगड़ालू, और न लोभी हो। 4 अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करता हो, और लड़के-बालों को सारी गम्भीरता से आधीन रखता हो। 5 जब कोई अपने घर ही का प्रबन्ध करना न जानता हो, तो परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली क्योंकर करेगा? 6 फिर यह कि नया चेला न हो, ऐसा न हो, कि अभिमान करके शैतान का सा दण्ड पाए। 7 और बाहर वालों में भी उसका सुनाम हो ऐसा न हो कि निन्दित होकर शैतान के फंदे में फंस जाए। 8 वैसे ही सेवकों को भी गम्भीर होना चाहिए, दो रंगी, पियक्कड़, और नीच कमाई के लोभी न हों। 9 पर विश्वास के भेद को शुद्ध विवेक से सुरक्षित रखें। 10 और ये भी पहिले परखे जाएं, तब यदि निर्दोष निकलें, तो सेवक का काम करें। 11 इसी प्रकार से स्त्रियों को भी गम्भीर होना चाहिए; दोष लगाने वाली न हों, पर सचेत और सब बातों में विश्वास योग्य हों। 12 सेवक एक ही पत्नी के पति हों और लड़के बालों और अपने घरों का अच्छा प्रबन्ध करना जानते हों। 13 क्योंकि जो सेवक का काम अच्छी तरह से कर सकते हैं, वे अपने लिये अच्छा पद और उस विश्वास में, जो मसीह यीशु पर है, बड़ा हियाव प्राप्त करते हैं॥ 14 मैं तेरे पास जल्द आने की आशा रखने पर भी ये बातें तुझे इसलिये लिखता हूं। 15 कि यदि मेरे आने में देर हो तो तू जान ले, कि परमेश्वर का घर, जो जीवते परमेश्वर की कलीसिया है, और जो सत्य का खंभा, और नेव है; उस में कैसा बर्ताव करना चाहिए। 16 और इस में सन्देह नहीं, कि भक्ति का भेद गम्भीर है; अर्थात वह जो शरीर में प्रगट हुआ, आत्मा में धर्मी ठहरा, स्वर्गदूतों को दिखाई दिया, अन्यजातियों में उसका प्रचार हुआ, जगत में उस पर विश्वास किया गया, और महिमा में ऊपर उठाया गया॥

1 तीमुथियुस(अध्याय 4) 1 परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है, कि आने वाले समयों में कितने लोग भरमाने वाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे। 2 यह उन झूठे मनुष्यों के कपट के कारण होगा, जिन का विवेक मानों जलते हुए लोहे से दागा गया है। 3 जो ब्याह करने से रोकेंगे, और भोजन की कुछ वस्तुओं से परे रहने की आज्ञा देंगे; जिन्हें परमेश्वर ने इसलिये सृजा कि विश्वासी, और सत्य के पहिचानने वाले उन्हें धन्यवाद के साथ खाएं। 4 क्योंकि परमेश्वर की सृजी हुई हर एक वस्तु अच्छी है: और कोई वस्तु अस्वीकार करने के योग्य नहीं; पर यह कि धन्यवाद के साथ खाई जाए। 5 क्योंकि परमेश्वर के वचन और प्रार्थना से शुद्ध हो जाती है॥ 6 यदि तू भाइयों को इन बातों की सुधि दिलाता रहेगा, तो मसीह यीशु का अच्छा सेवक ठहरेगा: और विश्वास और उस अच्छे उपदेश की बातों से, जा तू मानता आया है, तेरा पालन-पोषण होता रहेगा। 7 पर अशुद्ध और बूढिय़ों की सी कहानियों से अलग रह; और भक्ति के लिये अपना साधन कर। 8 क्योंकि देह की साधना से कम लाभ होता है, पर भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आने वाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिये है। 9 और यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है। 10 क्योंकि हम परिश्रम और यत्न इसी लिये करते हैं, कि हमारी आशा उस जीवते परमेश्वर पर है; जो सब मनुष्यों का, और निज करके विश्वासियों का उद्धारकर्ता है। 11 इन बातों की आज्ञा कर, और सिखाता रह। 12 कोई तेरी जवानी को तुच्छ न समझने पाए; पर वचन, और चाल चलन, और प्रेम, और विश्वास, और पवित्रता में विश्वासियों के लिये आदर्श बन जा। 13 जब तक मैं न आऊं, तब तक पढ़ने और उपदेश और सिखाने में लौलीन रह। 14 उस वरदान से जो तुझ में है, और भविष्यद्वाणी के द्वारा प्राचीनों के हाथ रखते समय तुझे मिला था, निश्चिन्त न रह। 15 उन बातों को सोचता रह, और इन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो। अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रख। 16 इन बातों पर स्थिर रह, क्योंकि यदि ऐसा करता रहेगा, तो तू अपने, और अपने सुनने वालों के लिये भी उद्धार का कारण होगा॥

1 तीमुथियुस(अध्याय 5) 1 किसी बूढ़े को न डांट; पर उसे पिता जान कर समझा दे, और जवानों को भाई जान कर; बूढ़ी स्त्रियों को माता जान कर। 2 और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जान कर, समझा दे। 3 उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर। 4 और यदि किसी विधवा के लड़के बाले या नाती पोते हों, तो वे पहिले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव करना, और अपने माता-पिता आदि को उन का हक देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्वर को भाता है। 5 जो सचमुच विधवा है, और उसका कोई नहीं; वह परमेश्वर पर आशा रखती है, और रात दिन बिनती और प्रार्थना में लौलीन रहती है। 6 पर जो भोगविलास में पड़ गई, वह जीते जी मर गई है। 7 इन बातों की भी आज्ञा दिया कर, ताकि वे निर्दोष रहें। 8 पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है। 9 उसी विधवा का नाम लिखा जाए, जो साठ वर्ष से कम की न हो, और एक ही पति की पत्नी रही हो। 10 और भले काम में सुनाम रही हो, जिस ने बच्चों का पालन-पोषण किया हो; पाहुनों की सेवा की हो, पवित्र लोगों के पांव धोए हो, दुखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो। 11 पर जवान विधवाओं के नाम न लिखना, क्योंकि जब वे मसीह का विरोध करके सुख-विलास में पड़ जाती हैं, तो ब्याह करना चाहती हैं। 12 और दोषी ठहरती हैं, क्योंकि उन्होंने अपने पहिले विश्वास को छोड़ दिया है। 13 और इस के साथ ही साथ वे घर घर फिर कर आलसी होना सीखती है, और केवल आलसी नहीं, पर बकबक करती रहती और औरों के काम में हाथ भी डालती हैं और अनुचित बातें बोलती हैं। 14 इसलिये मैं यह चाहता हूं, कि जवान विधवाएं ब्याह करें; और बच्चे जनें और घरबार संभालें, और किसी विरोधी को बदनाम करने का अवसर न दें। 15 क्योंकि कई एक तो बहक कर शैतान के पीछे हो चुकी हैं। 16 यदि किसी विश्वासिनी के यहां विधवाएं हों, तो वही उन की सहायता करे, कि कलीसिया पर भार न हो ताकि वह उन की सहायता कर सके, जो सचमुच में विधवाएं हैं॥ 17 जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते हैं, विशेष करके वे जो वचन सुनाने और सिखाने में परिश्रम करते हैं, दो गुने आदर के योग्य समझे जाएं। 18 क्योंकि पवित्र शास्त्र कहता है, कि दांवने वाले बैल का मुंह न बान्धना, क्योंकि मजदूर अपनी मजदूरी का हक्कदार है। 19 कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहों के उस को न सुन। 20 पाप करने वालों को सब के साम्हने समझा दे, ताकि और लोग भी डरें। 21 परमेश्वर, और मसीह यीशु, और चुने हुए स्वर्गदूतों को उपस्थित जान कर मैं तुझे चितौनी देता हूं कि तू मन खोल कर इन बातों को माना कर, और कोई काम पक्षपात से न कर। 22 किसी पर शीघ्र हाथ न रखना और दूसरों के पापों में भागी न होना: अपने आप को पवित्र बनाए रख। 23 भविष्य में केवल जल ही का पीने वाला न रह, पर अपने पेट के और अपने बार बार बीमार होने के कारण थोड़ा थोड़ा दाखरस भी काम में लाया कर। 24 कितने मनुष्यों के पाप प्रगट हो जाते हैं, और न्याय के लिये पहिले से पहुंच जाते हैं, पर कितनों के पीछे से आते हैं। 25 वैसे ही कितने भले काम भी प्रगट होते हैं, और जो ऐसे नहीं होते, वे भी छिप नहीं सकते॥

1 तीमुथियुस(अध्याय 6) 1 जितने दास जूए के नीचे हैं, वे अपने अपने स्वामी को बड़े आदर के योग्य जानें, ताकि परमेश्वर के नाम और उपदेश की निन्दा न हो। 2 और जिन के स्वामी विश्वासी हैं, इन्हें वे भाई होने के कारण तुच्छ न जानें; वरन उन की और भी सेवा करें, क्योंकि इस से लाभ उठाने वाले विश्वासी और प्रेमी हैं: इन बातों का उपदेश किया कर और समझाता रह॥ 3 यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है; और खरी बातों को, अर्थात हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है। 4 तो वह अभिमानी हो गया, और कुछ नहीं जानता, वरन उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिन से डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे बुरे सन्देह। 5 और उन मनुष्यों में व्यर्थ रगड़े झगड़े उत्पन्न होते हैं, जिन की बुद्धि बिगड़ गई है और वे सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति कमाई का द्वार है। 6 पर सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है। 7 क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं। 8 और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए। 9 पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। 10 क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटक कर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है॥ 11 पर हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से भाग; और धर्म, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धीरज, और नम्रता का पीछा कर। 12 विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिस के लिये तू बुलाया, गया, और बहुत गवाहों के साम्हने अच्छा अंगीकार किया था। 13 मैं तुझे परमेश्वर को जो सब को जीवित रखता है, और मसीह यीशु को गवाह कर के जिस ने पुन्तियुस पीलातुस के साम्हने अच्छा अंगीकार किया, यह आज्ञा देता हूं, 14 कि तू हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने तक इस आज्ञा को निष्कलंक और निर्दोष रख। 15 जिसे वह ठीक समयों में दिखाएगा, जो परमधन्य और अद्वैत अधिपति और राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु है। 16 और अमरता केवल उसी की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है, और न उसे किसी मनुष्य ने देखा, और न कभी देख सकता है: उस की प्रतिष्ठा और राज्य युगानुयुग रहेगा। आमीन॥ 17 इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है। 18 और भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें, और उदार और सहायता देने में तत्पर हों। 19 और आगे के लिये एक अच्छी नेव डाल रखें, कि सत्य जीवन को वश में कर लें॥ 20 हे तीमुथियुस इस थाती की रखवाली कर और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवाद और विरोध की बातों से परे रह। 21 कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके, विश्वास से भटक गए हैं॥ तुम पर अनुग्रह होता रहे॥

2 तीमुथियुस(अध्याय 1 अध्याय 1 1 पौलुस की ओर से जो उस जीवन की प्रतिज्ञा के अनुसार जो मसीह यीशु में है, परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है। 2 प्रिय पुत्र तीमुथियुस के नाम॥ परमेश्वर पिता और हमारे प्रभु मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और दया और शान्ति मिलती रहे॥ 3 जिस परमेश्वर की सेवा मैं अपने बाप दादों की रीति पर शुद्ध विवेक से करता हूं, उसका धन्यवाद हो कि अपनी प्रार्थनाओं में तुझे लगातार स्मरण करता हूं। 4 और तेरे आंसुओं की सुधि कर कर के रात दिन तुझ से भेंट करने की लालसा रखता हूं कि आनन्द से भर जाऊं। 5 और मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहिले तेरी नानी लोइस, और तेरी माता यूनीके में थी, और मुझे निश्चय हुआ है, कि तुझ में भी है। 6 इसी कारण मैं तुझे सुधि दिलाता हूं, कि तू परमेश्वर के उस वरदान को जो मेरे हाथ रखने के द्वारा तुझे मिला है चमका दे। 7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है। 8 इसलिये हमारे प्रभु की गवाही से, और मुझ से जो उसका कैदी हूं, लज्ज़ित न हो, पर उस परमेश्वर की सामर्थ के अनुसार सुसमाचार के लिये मेरे साथ दुख उठा। 9 जिस ने हमारा उद्धार किया, और पवित्र बुलाहट से बुलाया, और यह हमारे कामों के अनुसार नहीं; पर अपनी मनसा और उस अनुग्रह के अनुसार है जो मसीह यीशु में सनातन से हम पर हुआ है। 10 पर अब हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु के प्रगट होने के द्वारा प्रकाश हुआ, जिस ने मृत्यु का नाश किया, और जीवन और अमरता को उस सुसमाचार के द्वारा प्रकाशमान कर दिया। 11 जिस के लिये मैं प्रचारक, और प्रेरित, और उपदेशक भी ठहरा। 12 इस कारण मैं इन दुखों को भी उठाता हूं, पर लजाता नहीं, क्योंकि मैं उसे जिस की मैं ने प्रतीति की है, जानता हूं; और मुझे निश्चय है, कि वह मेरी थाती की उस दिन तक रखवाली कर सकता है। 13 जो खरी बातें तू ने मुझ से सुनी हैं उन को उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख। 14 और पवित्र आत्मा के द्वारा जो हम में बसा हुआ है, इस अच्छी थाती की रखवाली कर॥ 15 तू जानता है, कि आसिया वाले सब मुझ से फिर गए हैं, जिन में फूगिलुस और हिरमुगिनेस हैं। 16 उनेसिफुरूस के घराने पर प्रभु दया करे, क्योंकि उस ने बहुत बार मेरे जी को ठंडा किया, और मेरी जंजीरों से लज्ज़ित न हुआ। 17 पर जब वह रोमा में आया, तो बड़े यत्न से ढूंढ कर मुझ से भेंट की। 18 (प्रभु करे, कि उस दिन उस पर प्रभु की दया हो)। और जो जो सेवा उस ने इफिसुस में की है उन्हें भी तू भली भांति जानता है॥

2 तीमुथियुस(अध्याय 2) 1 इसलिये हे मेरे पुत्र, तू उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है, बलवन्त हो जा। 2 और जो बातें तू ने बहुत गवाहों के साम्हने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो औरों को भी सिखाने के योग्य हों। 3 मसीह यीशु के अच्छे योद्धा की नाईं मेरे साथ दुख उठा। 4 जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करने वाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फंसाता 5 फिर अखाड़े में लड़ने वाला यदि विधि के अनुसार न लड़े तो मुकुट नहीं पाता। 6 जो गृहस्थ परिश्रम करता है, फल का अंश पहिले उसे मिलना चाहिए। 7 जो मैं कहता हूं, उस पर ध्यान दे और प्रभु तुझे सब बातों की समझ देगा। 8 यीशु मसीह को स्मरण रख, जो दाऊद के वंश से हुआ, और मरे हुओं में से जी उठा; और यह मेरे सुसमाचार के अनुसार है। 9 जिस के लिये मैं कुकर्मी की नाईं दुख उठाता हूं, यहां तक कि कैद भी हूं; परन्तु परमेश्वर का वचन कैद नहीं। 10 इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूं, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में हैं अनन्त महिमा के साथ पाएं। 11 यह बात सच है, कि यदि हम उसके साथ मर गए हैं तो उसके साथ जीएंगे भी। 12 यदि हम धीरज से सहते रहेंगे, तो उसके साथ राज्य भी करेंगे: यदि हम उसका इन्कार करेंगे तो वह भी हमारा इन्कार करेगा। 13 यदि हम अविश्वासी भी हों तौभी वह विश्वास योग्य बना रहता है, क्योंकि वह आप अपना इन्कार नहीं कर सकता॥ 14 इन बातों की सुधि उन्हें दिला, और प्रभु के साम्हने चिता दे, कि शब्दों पर तर्क-वितर्क न किया करें, जिन से कुछ लाभ नहीं होता; वरन सुनने वाले बिगड़ जाते हैं। 15 अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्ज़ित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो। 16 पर अशुद्ध बकवाद से बचा रह; क्योंकि ऐसे लोग और भी अभक्ति में बढ़ते जाएंगे। 17 और उन का वचन सड़े-घाव की नाईं फैलता जाएगा: हुमिनयुस और फिलेतुस उन्हीं में से हैं। 18 जो यह कह कर कि पुनरुत्थान हो चुका है सत्य से भटक गए हैं, और कितनों के विश्वास को उलट पुलट कर देते हैं। 19 तौभी परमेश्वर की पड़ी नेव बनी रहती है, और उस पर यह छाप लगी है, कि प्रभु अपनों को पहिचानता है; और जो कोई प्रभु का नाम लेता है, वह अधर्म से बचा रहे। 20 बड़े घर में न केवल सोने-चान्दी ही के, पर काठ और मिट्टी के बरतन भी होते हैं; कोई कोई आदर, और कोई कोई अनादर के लिये। 21 यदि कोई अपने आप को इन से शुद्ध करेगा, तो वह आदर का बरतन, और पवित्र ठहरेगा; और स्वामी के काम आएगा, और हर भले काम के लिये तैयार होगा। 22 जवानी की अभिलाषाओं से भाग; और जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम लेते हैं, उन के साथ धर्म, और विश्वास, और प्रेम, और मेल-मिलाप का पीछा कर। 23 पर मूर्खता, और अविद्या के विवादों से अलग रह; क्योंकि तू जानता है, कि उन से झगड़े होते हैं। 24 और प्रभु के दास को झगड़ालू होना न चाहिए, पर सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण, और सहनशील हो। 25 और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहिचानें। 26 और इस के द्वारा उस की इच्छा पूरी करने के लिये सचेत होकर शैतान के फंदे से छूट जाएं॥

2 तीमुथियुसअध्याय 3 1 पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। 2 क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालने वाले, कृतघ्न, अपवित्र। 3 दयारिहत, क्षमारिहत, दोष लगाने वाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। 4 विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास ही के चाहने वाले होंगे। 5 वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना। 6 इन्हीं में से वे लोग हैं, जो घरों में दबे पांव घुस आते हैं और छिछौरी स्त्रियों को वश में कर लेते हैं, जो पापों से दबी और हर प्रकार की अभिलाषाओं के वश में हैं। 7 और सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचतीं। 8 और जैसे यन्नेस और यम्ब्रेस ने मूसा का विरोध किया था वैसे ही ये भी सत्य का विरोध करते हैं: ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है और वे विश्वास के विषय में निकम्मे हैं। 9 पर वे इस से आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि जैसे उन की अज्ञानता सब मनुष्यों पर प्रगट हो गई थी, वैसे ही इन की भी हो जाएगी। 10 पर तू ने उपदेश, चाल चलन, मनसा, विश्वास, सहनशीलता, प्रेम, धीरज, और सताए जाने, और दुख उठाने में मेरा साथ दिया। 11 और ऐसे दुखों में भी जो अन्ताकिया और इकुनियुम और लुस्त्रा में मुझ पर पड़े थे और और दुखों में भी, जो मैं ने उठाए हैं; परन्तु प्रभु ने मुझे उन सब से छुड़ा लिया। 12 पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे। 13 और दुष्ट, और बहकाने वाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे। 14 पर तू इन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं और प्रतीति की थी, यह जानकर दृढ़ बना रह; कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था 15 और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है। 16 हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। 17 ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए॥

2 तीमुथियुस(अध्याय 4) 1 परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह कर के, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, उसे और उसके प्रगट होने, और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे चिताता हूं। 2 कि तू वचन को प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डांट, और समझा। 3 क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। 4 और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे। 5 पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर। 6 क्योंकि अब मैं अर्घ की नाईं उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है। 7 मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। 8 भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं॥ 9 मेरे पास शीघ्र आने का प्रयत्न कर। 10 क्योंकि देमास ने इस संसार को प्रिय जान कर मुझे छोड़ दिया है, और थिस्सलुनीके को चला गया है, और क्रेसकेंस गलतिया को और तीतुस दलमतिया को चला गया है। 11 केवल लूका मेरे साथ है: मरकुस को लेकर चला आ; क्योंकि सेवा के लिये वह मेरे बहुत काम का है। 12 तुखिकुस को मैं ने इफिसुस को भेजा है। 13 जो बागा मैं त्रोआस में करपुस के यहां छोड़ आया हूं, जब तू आए, तो उसे और पुस्तकें विशेष करके चर्मपत्रों को लेते आना। 14 सिकन्दर ठठेरे ने मुझ से बहुत बुराइयां की हैं प्रभु उसे उसके कामों के अनुसार बदला देगा। 15 तू भी उस से सावधान रह, क्योंकि उस ने हमारी बातों का बहुत ही विरोध किया। 16 मेरे पहिले प्रत्युत्तर करने के समय में किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया, वरन सब ने मुझे छोड़ दिया था: भला हो, कि इस का उन को लेखा देना न पड़े। 17 परन्तु प्रभु मेरा सहायक रहा, और मुझे सामर्थ दी: ताकि मेरे द्वारा पूरा पूरा प्रचार हो, और सब अन्यजाति सुन ले; और मैं तो सिंह के मुंह से छुड़ाया गया। 18 और प्रभु मुझे हर एक बुरे काम से छुड़ाएगा, और अपने स्वर्गीय राज्य में उद्धार कर के पहुंचाएगा: उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन॥ 19 प्रिसका और अक्विला को, और उनेसिफुरूस के घराने को नमस्कार। 20 इरास्तुस कुरिन्थुस में रह गया, और त्रुफिमुस को मैं ने मीलेतुस में बीमार छोड़ा है। 21 जाड़े से पहिले चले आने का प्रयत्न कर: यूबूलुस, और पूदेंस, और लीनुस और क्लौदिया, और सब भाइयों का तुझे नमस्कार॥ 22 प्रभु तेरी आत्मा के साथ रहे: तुम पर अनुग्रह होता रहे॥

तीतुस(अध्याय 1) 1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर का दास और यीशु मसीह का प्रेरित है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के विश्वास, और उस सत्य की पहिचान के अनुसार जो भक्ति के अनुसार है। 2 उस अनन्त जीवन की आशा पर, जिस की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है। 3 पर ठीक समय पर अपने वचन को उस प्रचार के द्वारा प्रगट किया, जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार मुझे सौंपा गया। 4 तीतुस के नाम जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है: परमेश्वर पिता और हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु से अनुग्रह और शान्ति होती रहे॥ 5 मैं इसलिये तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारे, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर नगर प्राचीनों को नियुक्त करे। 6 जो निर्दोष और एक ही पत्नी के पति हों, जिन के लड़के बाले विश्वासी हो, और जिन्हें लुचपन और निरंकुशता का दोष नहीं। 7 क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मार पीट करने वाला, और न नीच कमाई का लोभी। 8 पर पहुनाई करने वाला, भलाई का चाहने वाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो। 9 और विश्वासयोग्य वचन पर जो धर्मोपदेश के अनुसार है, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा से उपदेश दे सके; और विवादियों का मुंह भी बन्द कर सके॥ 10 क्योंकि बहुत से लोग निरंकुश बकवादी और धोखा देने वाले हैं; विशेष करके खतना वालों में से। 11 इन का मुंह बन्द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखा कर घर के घर बिगाड़ देते हैं। 12 उन्हीं में से एक जन ने जो उन्हीं का भविष्यद्क्ता है, कहा है, कि क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं। 13 यह गवाही सच है, इसलिये उन्हें कड़ाई से चितौनी दिया कर, कि वे विश्वास में पक्के हो जाएं। 14 और वे यहूदियों की कथा कहानियों और उन मनुष्यों की आज्ञाओं पर मन न लगाएं, जो सत्य से भटक जाते हैं। 15 शुद्ध लोगों के लिये सब वस्तु शुद्ध हैं, पर अशुद्ध और अविश्वासियों के लिये कुछ भी शुद्ध नहीं: वरन उन की बुद्धि और विवेक दोनों अशुद्ध हैं। 16 वे कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं: परअपने कामों से उसका इन्कार करते हैं, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न मानने वाले हैं: और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं॥

तीतुस(अध्याय 2) 1 पर तू ऐसी बातें कहा कर, जो खरे उपदेश के योग्य हैं। 2 अर्थात बूढ़े पुरूष, सचेत और गम्भीर और संयमी हों, और उन का विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का हो। 3 इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगाने वाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सिखाने वाली हों। 4 ताकि वे जवान स्त्रियों को चितौनी देती रहें, कि अपने पतियों और बच्चों से प्रीति रखें। 5 और संयमी, पतिव्रता, घर का कारबार करने वाली, भली और अपने अपने पति के आधीन रहने वाली हों, ताकि परमेश्वर के वचन की निन्दा न होने पाए। 6 ऐसे ही जवान पुरूषों को भी समझाया कर, कि संयमी हों। 7 सब बातों में अपने आप को भले कामों का नमूना बना: तेरे उपदेश में सफाई, गम्भीरता 8 और ऐसी खराई पाई जाए, कि कोई उसे बुरा न कह सके; जिस से विरोधी हम पर कोई दोष लगाने का अवसर न पाकर लज्ज़ित हों। 9 दासों को समझा, कि अपने अपने स्वामी के आधीन रहें, और सब बातों में उन्हें प्रसन्न रखें, और उलट कर जवाब न दें। 10 चोरी चालाकी न करें; पर सब प्रकार से पूरे विश्वासी निकलें, कि वे सब बातों में हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर के उपदेश को शोभा दें। 11 क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह प्रगट है, जो सब मनुष्यों के उद्धार का कारण है। 12 और हमें चिताता है, कि हम अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेर कर इस युग में संयम और धर्म और भक्ति से जीवन बिताएं। 13 और उस धन्य आशा की अर्थात अपने महान परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रगट होने की बाट जोहते रहें। 14 जिस ने अपने आप को हमारे लिये दे दिया, कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले, और शुद्ध करके अपने लिये एक ऐसी जाति बना ले जो भले भले कामों में सरगर्म हो॥ 15 पूरे अधिकार के साथ ये बातें कह और समझा और सिखाता रह: कोई तुझे तुच्छ न जानने पाए॥

तीतुस(अध्याय 3) 1 लोगों को सुधि दिला, कि हाकिमों और अधिकारियों के आधीन रहें, और उन की आज्ञा मानें, और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार रहें। 2 किसी को बदनाम न करें; झगडालू न हों: पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें। 3 क्योंकि हम भी पहिले, निर्बुद्धि, और आज्ञा न मानने वाले, और भ्रम में पड़े हुए, और रंग रंग के अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्व में थे, और बैरभाव, और डाह करने में जीवन निर्वाह करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे। 4 पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की कृपा, और मनुष्यों पर उसकी प्रीति प्रगट हुई। 5 तो उस ने हमारा उद्धार किया: और यह धर्म के कामों के कारण नहीं, जो हम ने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नए जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ। 6 जिसे उस ने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उंडेला। 7 जिस से हम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस बनें। 8 यह बात सच है, और मैं चाहता हूं, कि तू इन बातों के विषय में दृढ़ता से बोले इसलिये कि जिन्हों ने परमेश्वर की प्रतीति की है, वे भले-भले कामों में लगे रहने का ध्यान रखें: ये बातें भली, और मनुष्यों के लाभ की हैं। 9 पर मूर्खता के विवादों, और वंशावलियों, और बैर विरोध, और उन झगड़ों से, जो व्यवस्था के विषय में हों बचा रह; क्योंकि वे निष्फल और व्यर्थ हैं। 10 किसी पाखंडी को एक दो बार समझा बुझाकर उस से अलग रह। 11 यह जानकर कि ऐसा मनुष्य भटक गया है, और अपने आप को दोषी ठहराकर पाप करता रहता है॥ 12 जब मैं तेरे पास अरतिमास या तुखिकुस को भेजूं, तो मेरे पास नीकुपुलिस आने का प्रयत्न करना: क्योंकि मैं ने वहीं जाड़ा काटने की ठानी है। 13 जेनास व्यवस्थापक और अपुल्लोस को यत्न करके आगे पहुंचा दे, और देख, कि उन्हें किसी वस्तु की घटी न होने पाए। 14 और हमारे लोग भी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अच्छे कामों में लगे रहना सीखें ताकि निष्फल न रहें॥ 15 मेरे सब साथियों का तुझे नमस्कार और जो विश्वास के कारण हम से प्रीति रखते हैं, उन को नमस्कार॥ तुम सब पर अनुग्रह होता रहे॥

प्रेरितों के काम अध्याय 12:6 6 और जब हेरोदेस उसे उन के साम्हने लाने को था, तो उसी रात पतरस दो जंजीरों से बन्धा हुआ, दो सिपाहियों के बीच में सो रहा था: और पहरूए द्वार पर बन्दीगृह की रखवाली कर रहे थे।

प्रेरितों के काम अध्याय 16:(1-3) 1 फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और देखो, वहां तीमुथियुस नाम एक चेला था, जो किसी विश्वासी यहूदिनी का पुत्र था, परन्तु उसका पिता यूनानी था। 2 वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था। 3 पौलुस ने चाहा, कि यह मेरे साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उन के कारण उसे लेकर उसका खतना किया; क्योंकि वे सब जानते था, कि उसका पिता यूनानी था।

फिलिप्पियों अध्याय 2:22 22 पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है, कि जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया।

रोमियो अध्याय16:21 21 तीमुथियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियों का, तुम को नमस्कार।

1 थिस्सलुनीकियों अध्याय3:2,6 2 और हम ने तीमुथियुस को जो मसीह के सुसमाचार में हमारा भाई, और परमेश्वर का सेवक है, इसलिये भेजा, कि वह तुम्हें स्थिर करे; और तुम्हारे विश्वास के विषय में तुम्हें समझाए। 6 परअभी तीमुथियुस ने जो तुम्हारे पास से हमारे यहां आकर तुम्हारे विश्वास और प्रेम का सुसमाचार सुनाया और इस बात को भी सुनाया, कि तुम सदा प्रेम के साथ हमें स्मरण करते हो, और हमारे देखने की लालसा रखते हो, जैसा हम भी तुम्हें देखने की।

गलातियों अध्याय 2:3 3 परन्तु तितुस भी जो मेरे साथ था और जो यूनानी है; खतना कराने के लिये विवश नहीं किया गया।

प्रेरितों के काम अध्याय 27:(7-13) 7 और जब हम बहुत दिनों तक धीरे धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के साम्हने पहुंचे, तो इसलिये कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, सलमोने के साम्हने से होकर क्रेते की आड़ में चले। 8 और उसके किनारे किनारे कठिनता से चलकर शुभ लंगरबारी नाम एक जगह पहुंचे, जहां से लसया नगर निकट था॥ 9 जब बहुत दिन बीत गए, और जल यात्रा में जोखिम इसलिये होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया। 10 कि हे सज्ज़नो मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि न केवल माल और जहाज की वरन हमारे प्राणों की भी होने वाली है। 11 परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातों से मांझी और जहाज के स्वामी की बढ़कर मानी। 12 और वह बन्दर स्थान जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिये बहुतों का विचार हुआ, कि वहां से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके, तो फीनिक्स में पहुंचकर जाड़ा काटें: यह तो क्रेते का एक बन्दर स्थान है जो दक्खिन-पच्छिम और उत्तर-पच्छिम की ओर खुलता है। 13 जब कुछ कुछ दक्खिनी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा मतलब पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे।