पाठ 35 : फिलेमोन और फिलिप्पियों का सर्वेक्षण

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सारांश

फिलेमोन और फिलिप्पियों की पत्री का सर्वेक्षण क) फिलेमोन का सर्वेक्षण: अनुग्रह और क्षमा का आग्रह नए नियम में पौलुस द्वारा लिखी गई 14 पत्रियों में (इब्रानियों को मिलाकर) फिलेमोन सबसे छोटी पत्री है जिसमें केवल 25 पद हैं। यह एक पोस्टकार्ड के समान है। परंतु पत्री की लंबाई आपको धोखा न देने पाए। यद्यपि आकार में वह छोटी है, सच्चाई में लंबी है। रोम से लिखते समय, पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया में पौलुस ने अपने एक मित्र को लिखा जिसका नाम फिलेमोन था। पौलुस के लिखने का उद्देश्य एक टूटे हुए संबंध को पुनः बहाल करना था। उसने फिलेमोन से आग्रह किया कि वह उसके भागे हुए दास को पुनः रख ले जिसका नाम उनेसिमुस था, जो पौलुस की सेवकाई द्वारा मसीही बन गया था। क्षमा के इस चित्रण के पोस्टकार्ड में सबके लिए एक संदेश है - दया दिखाने के द्वारा दूसरा मौका देने का संदेश। सामाजिक सीमाओं को खत्म करने के लिये मसीह में समानता और सुसमाचार की सामर्थ का संदेश। इन सब के उपर अनुग्रह के विषय संदेश है। पाश्र्वभूमिका: पौलुस रोम में नजरबंद था, और कैसर के सामने मुकद्दमे की पेशी की बाट जोह रहा था। यद्यपि वह सांकलों से बंधा था फिर भी उसे उसके पास आने वालों के साथ सुसमाचार बाँटने की स्वतंत्रता थी जिनमें उसके पहरेदार सिपाही भी शामिल थे और उनेसिमुस नामक एक जवान दास भी था। उनेसिमुस मात्र दास नहीं था, परंतु वह एक भगोड़ा और चोर भी था। ऐसा दिख पड़ता है कि फिलेमोन उसके स्वामी के पास से भागने से पहले, उसने उसका कुछ चुराया भी था, संभवतः यात्रा के लिये पैसे चुराया था। सौभाग्यवश परमेश्वर के पास उसके लिये स्वतंत्रता थी जो उसकी बाट जोह रही थी जो किसी भी बात से बढ़कर उँची और बड़ी थी, जिसके विषय उसने कभी स्वप्न में भी न सोचा था। परमेश्वर ने उनेसिमुस को पौलुस तक लाने का प्रबंध किया जिसने उसका परिचय उद्धारकर्ता से कराया। जब उनेसिमुस ने विश्वास किया डर और लज्जा की उसकी बेड़ियाँ टूट गई। मसीह में इस भगोड़े ने क्षमा प्राप्त किया। अब वह सचमुच स्वतंत्र था। मसीह में स्वतंत्रता का अर्थ संसार के सभी कर्ज और जवाबदारियों से छुटकारा नहीं होता। उनेसिमुस मसीह की दृष्टि में धर्मी बनाया गया था, परंतु पौलुस जानता था कि अब उसे फिलेमोन के साथ भी संबंध ठीक करना होगा। अपने स्वामी के पास लौटने का अर्थ दो जोखिम भरे मामलों का सामना करना था। (1) पहला संपत्ति का नुकसान था। जब उनेसिमुस भागा था तो उसके द्वारा चोरी की गई वस्तुओं और उसी को खरीदने की कीमत जो अदा की गई थी, उसका नुकसान स्वामी को हुआ था। इस प्रकार उनेसिमुस ने न केवल टूटे संबंध छोड़ आया था परंतु उस पर कर्ज भी था जो अदा नहीं किया गया था। (2) दूसरा विषय स्वामी का क्रोध भी था। मसीह ने उनेसिमुस को क्षमा कर दिया था…परंतु क्या फिलेमोन करेगा? क्या वह मसीही स्वामी उस पश्चातापी दास को एक विश्वासी भाई के रूप में स्वीकार करेगा? यह मसीही संगति और सुसमाचार की सामर्थ की सामाजिक दीवारों को तोड़ने की परीक्षा थी। इन दो मुद्दों को लेकर पौलुस फिलेमोन को पत्र लिखने बैठा कि वह उनेसिमुस को स्वतंत्र कर दे। जब हम पौलुस के पोस्टकार्ड को देखते हैं तो चार बातें सामने आती हैं: अभिवादन, प्रशंसा, आग्रह और प्रतिज्ञा। अभिवादन: (पद 1-3) पौलुस अपना पत्र नम्र और स्नेहपूर्ण अभिवादन के साथ शुरू करता है। वह स्वयं को “मसीह यीशु का कैदी” बताता है, बजाए एक प्रेरित होने के। उसने मसीह के लिये अपने जीवन को समर्पित किया है जैसे फिलेमोन ने जो कुलुस्से में रहनेवाले पौलुस द्वारा परिवर्तित लोगों में से एक है। इतने बड़े घर की मिल्कियत के साथ जिसमें आराधना के लिये भी स्थान था और एक दास के साथ, शायद फिलेमोन समृद्ध व्यक्ति था। अफफिया (संभवतः उसकी पत्नी) और अरखिप्पुस (संभवतः उसका पुत्र) भी सेवकाई में सहभागी थे। फिर पौलुस परमेश्वर से कहता है कि वह फिलेमोन पर “अनुग्रह” और “शांति” दिखाए। वह यह आग्रह परमेश्वर से करता है ताकि वह उसके मित्र को उनेसिमुस के साथ अनुग्रह और शांति की आत्मा का प्रदर्शन करे। प्रशंसा (पद 4-7) अपना आग्रह रखने के पहले पौलुस फिलेमोन के प्रति अपना आभार प्रदर्शन करता है। उसके साथ वह अच्छे व्यवहार का आधार बनाता है इससे पहले कि वह उनेसिमुस की चर्चा शुरू करे, वह चापलूसी के एक शब्द का भी उपयोग नहीं करता। उसका उद्देश्य मसीह में उसके भाई को प्रोत्साहित करना था और उसी समय उसे उच्च नैतिकता का आव्हान देना था - वह स्तर जो फिलेमोन उसके प्रेमी व्यवहार में प्रदर्शित कर रहा था। आग्रह (पद 8-17) अब प्रेम के आधार पर पौलुस फिलेमोन से आग्रह करता है। फिलेमोन के लिये उनेसिमुस नाम ने बेइमानी और बर्बादी का कटु अनुभव छोड़ गया था। पौलुस यहाँ पहली बार उसे यह कहकर प्रस्तुत करता है, “मेरा पुत्र जो मुझसे मेरी कैद में जन्मा है।” उनेसिमुस नाम का अर्थ “उपयोगी फायदेमंद” होता है। पौलुस उसके नाम का अर्थ का उपयोग करते हुए, मसीह में नए जन्म के कारण उनेसिमुस में आए आमूल परिवर्तन का उल्लेख करता है। फिलेमोन के मन में जो एक चित्रण था वह पुराने निरूपयोगी उनेसिमुस का था - एक भगोड़े और चोर उनेसिमुस का चित्रण। लेकिन एक अंतिम चित्रण जो पौलुस प्रस्तुत करता है, आनेवाले पदों में वह उनेसिमुस को एक उपयोगी व्यक्ति - एक सेवक और सहभागी के रूप में प्रस्तुत करता है। प्रतिज्ञा (पद 18-25) पौलुस से कम किसी ने भी सहायता की मांग नहीं किया था। परंतु अब वह एक मांग करता है अपने लिये नहीं, परंतु उनेसिमुस के लिये, मसीह के लिये और कलीसिया के लिये। पौलुस शब्दों का दूसरी बार भिन्न उपयोग करता है। जैसे उपयोगी होना उनेसिमुस के नाम का अर्थ है, “फायदेमंद”, वह कहता है, “मैं उनेसिमुस को वापस भेजकर तेरा लाभ करवा रहा हूँ, जिसका हर कर्ज माफ किया गया है। अब बदले में उसे क्षमा करने की तेरी इच्छा के द्वारा तू मुझे लाभ पहुँचा। फिर पौलुस यकीन के शब्द कहता है कि फिलेमोन ठीक ही करेगा। यह रोम में उसके साथ के अन्य विश्वासियों की ओर से भी शुभकामनाएँ भेजता है। अंतिम शब्दों में, वह फिलेमोन को यह आशीर्वाद देता है: “प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा पर होता रहे।” अनुग्रह। दास हो या स्वतंत्र, अमीर हो या गरीब, कमजोर हो या सामर्थी मसीह का अनुग्रह सब कुछ समान कर देता है ताकि जो कोई उसे ग्रहण करता है, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सके। यदि ऐसा वरदान हमें मिल जाए तो आज पौलुस कहा होता कि हम इसे दूसरों तक कैसे पहुँचा सकते हैं? ख) फिलिप्पियों: फिलिप्पियों कीपुस्तक प्रेरित पौलुस की ओर से फिलिप्पी के भाइयों कोधन्यवादी संदेश है जो उनकी सहायता के विषय है और वह इस अवसर का उपयोग कुछ निर्देश देने के लिये भी करता है। वह उनके क्लेश में उन्हें प्रोत्साहन देता है। वह उन्हें ‘स्थिर रहने’ और आनंद करने के लिये कहता है। वह उन्हें उन शत्रुओं के विषय भी चेतावनी देता है जो बड़ी बारीकी से कलीसिया में घुस गए हैं। एक और कारण जो पौलुस ने लिखा वह कलीसिया की एकता को मजबूत बनाने के लिये था। वह इन सभी निर्देशों को एक केंद्रीय विचार के इर्द-गिर्द ही रखता है, अर्थात मसीह में आनंद। दूसरे शब्दों में केवल मसीह में ही वास्तविक एकता और आनंद संभव है। नम्रता और सेवा के हमारे आदर्श के रूप में मसीह के साथ हम उद्देश्य की एकरूपता, नीति, लक्ष्य और श्रम का आनंद ले सकते हैं - एक सत्य जिसे पौलुस अपने ही जीवन से समझाता है। फिलिप्पियों काप्रत्येक अध्याय मसीह काएक भिन्न पहलू प्रगट करती है। अध्याय 1 में वह मेरा जीवन है, अध्याय 2 में वह मेरा आदर्श हैं, अध्याय 3 में वह मेरा लक्ष्य है, और अध्याय 4 में वह मेरा संतोष है। हमारे जीवन को मसीह पर केंद्रित करने के द्वारा हम एक आनंद को अनुभव कर सकते हैं जो हमारे आसपास के लोगों के जीवन को प्रभावित करता है और एकता, प्रेम और आशा लाता है। फिलिप्पियों की पत्री का यही संदेश है। यह पत्री एक कैदी - पौलुस के द्वारा लिखी गई थी जो रोम में नजरबंद था (प्रेरितों के काम 28:16,30; 1:12-14)। उसकी कलाई एक रोमी सुरक्षाकर्मी से हमेशा सांकल से बंधी थी। तब भी कोई भी बात उसे फिलिप्पी की कलीसिया के विषय मसीह द्वारा दिये गए आनंद से बांधकर वंचित नहीं कर सकी थी। फिलिप्पियों का समय : ईसा पूर्व 358 वे वर्ष में मकिदुनिया के राजा फिलिप (सिकंदर महान का पिता) ने इस शहर पर कब्जा किया और उसका विस्तार किया और उसका नाम बदलकर फिलिप्पी रखा। बाद में रोमियों ने उस पर कब्जा कर लिया और उसे रोमी बस्ती में बदल दिया। इस बस्ती के नागरिक रोम के नागरिक कहलाते थे, और उन्हें कई विशेष सुविधाएँ उपलब्ध थीं। चूँकि यह व्यवसायिक केंद्र नहीं था, वहाँ आराधनालय के लिये पर्याप्त यहूदी नहीं थे जिस समय पौलुस वहाँ पहुँचा था (प्रेरितों के काम 16:13)। पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा के दौरान पौलुस की “मकिदुनिया की बुलाहट” ने उसकी सेवकाई को फिलिप्पी तक ले गई जहाँ लुदिया और अन्य लोगों का परिवर्तन हुआ। पौलुस और सिलास को पीटा गया और उन्हें बंदी बनाया गया, परंतु इसका परिणाम फिलिप्पी दरोगा का परिवर्तन हुआ। एक रोमी नागरिक को मुकदमा चलाए बिना उसे मारने-पीटने के कारण हाकिमों की स्थिति खतरे में पड़ गई थी। पौलुस ने उसकी तीसरी मिश्नरी यात्रा में फिर से फिलिप्पी को भेंट दिया (प्रेरितों.20:1,6)। जब उन्होंने उसके रोमी हिरासत के विषय सुना तो फिलिप्पी कलीसिया ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से उसे आर्थिक सहायता भेजा (4:18); इसी तरीकेसे उन्होंने उसकी दो बार से अधिक और भी मदद किया था (4:16)। रोम पहुँचने के बार इपफ्रुदीतुस बीमारी के करीब-करीब मर ही चुका था। उसके अच्छे हो जाने के बाद पौलुस ने इस पत्र को उसके साथ फिलिप्पी भेजा। पुस्तक का सर्वेक्षण: मसीह के लिए जीने का आनंद (अध्याय 1) पहले अध्याय में पौलुस अपने ही अनुभव से जो उसे बंदीगृह मे आया था, समझाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी मसीह में आनंद किस तरह संभव है। मसीह के लिये जीना आनंद का रहस्य है। वह लिखता है, “मेरे लिए जीना मसीह और मरना लाभ है।” उसके उदाहरण के प्रकाश में पौलुस उन्हें आव्हान देता है, “तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो।” (पद 27 क) एकता में मसीह की सेवा का आनंद (अध्याय 2) दूसरे अध्याय में पौलुस हमसे आग्रह करता है कि हम दूसरे विश्वासियों के साथ एकता बनाने में आनंद पाएँ। वह उन्हें नम्रता की भावना का आलिंगन करने के लिये उत्साहित करता है जो मसीह के आने और क्रूस पर चढाए जाने का सबसे बड़ा उदाहरण है, ताकि वे एकता की भावना रखें और एक दूसरे की फिक्र करें। पौलुस फिलिप्पियों से कहता है कि वे इस नीति को अपने जीवन में लागू करें और वह तीमुथियुस और इपफ्रुदीतुस की सेवकाइयों द्वारा त्याग के दो और उदाहरण देता देता है। मसीह का जानने को आनंद (अध्याय 3) तीसरे अध्याय में पौलुस गवाही देता है कि जीवन का सबसे बड़ा आनंद मसीह को जानना है क्योंकि उसी में परमेश्वर की धार्मिकता है जो अनंत जीवन की ओर ले जाती है। “प्रभु में आनंदित रहो” पौलुस इस घोषवाक्य की घोषणा करने में कभी नहीं थकता। यहूदियों के समान पुराना फरीसी के रूप में पौलुस की अपनी “धार्मिकता” की महिमा या बड़ाई करने के कई कारण है। परंतु वह सब कुछ जिसे उसने किसी समय इकट्ठा कर रखा था - उसका नाम, शीर्षक, उपलब्धियाँ उन सबको उसने कूडे़ मे फेंक दिया था ताकि उससे भी ज्यादा मूल्यवान वस्तु को प्राप्त कर सके: “मेरे प्रभु यीशु मसीह को जानना।” (पद 8)। मसीह को जानने मे आनंद की प्राप्ति है। अन्य लोग संसारिक आनंद की प्राप्ति में अपना जीवन बिता सकते हैं, परंतु “हमारी नागरिकता स्वर्ग की है।” हम उँचे और बेहतर स्थान के हैं और बड़े आनंद की लालसा करते हैं - महिमा में मसीह की समानता में परिवर्तित होने का आनंद। मसीह में स्थिर रहने का आनंद (अध्याय 4) 4थे अध्याय में पौलुस हमें बताता है कि आनंदित होने के लिये हमें मसीह में स्थिर रहना सीखना चाहिये। प्रोत्साहन की श्रंखला में पौलुस फिलिप्पियों से आग्रह करता है कि वे एकता, प्रार्थनामय निर्भरता और पवित्रता की जीवनशैली अपनाने के द्वारा भाइयों के साथ शांति रखें। आगे वह परमेश्वर की शांति पाने और परमेश्वर के सत्य मेल करने का रहस्य बताता है। फिर वह उनके वरदान के विषय आनंदित होता है, परंतु समझाता है कि मसीह की सामथ्र्य उसे परिस्थितियों के उपर जीने में सहायता करती है। पत्र पौलुस द्वारा परमेश्वर की महिमा और उसके पाठकों को प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह की आशीष देने के साथ खत्म होता है। महिमा और अनुग्रह - ये वे दो शब्द हैं जो पौलुस के जीवन और सेवकाई का सिद्व सार है।

बाइबल अध्यन

फिलेमोन अध्याय 1 1 पौलुस की ओर से जो मसीह यीशु का कैदी है, और भाई तिमुथियुस की ओर से हमारे प्रिय सहकर्मी फिलेमोन। 2 और बहिन अफिफया, और हमारे साथी योद्धा अरखिप्पुस और फिलेमोन के घर की कलीसिया के नाम॥ 3 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे॥ 4 मैं तेरे उस प्रेम और विश्वास की चर्चा सुन कर, जो सब पवित्र लोगों के साथ और प्रभु यीशु पर है। 5 सदा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं; और अपनी प्रार्थनाओं में भी तुझे स्मरण करता हूं। 6 कि तेरा विश्वास में सहभागी होना तुम्हारी सारी भलाई की पहिचान में मसीह के लिये प्रभावशाली हो। 7 क्योंकि हे भाई, मुझे तेरे प्रेम से बहुत आनन्द और शान्ति मिली, इसलिये, कि तेरे द्वारा पवित्र लोगों के मन हरे भरे हो गए हैं॥ 8 इसलिये यद्यपि मुझे मसीह में बड़ा हियाव तो है, कि जो बात ठीक है, उस की आज्ञा तुझे दूं। 9 तौभी मुझ बूढ़े पौलुस को जो अब मसीह यीशु के लिये कैदी हूं, यह और भी भला जान पड़ा कि प्रेम से बिनती करूं। 10 मैं अपने बच्चे उनेसिमुस के लिये जो मुझ से मेरी कैद में जन्मा है तुझ से बिनती करता हूं। 11 वह तो पहिले तेरे कुछ काम का न था, पर अब तेरे और मेरे दोनों के बड़े काम का है। 12 उसी को अर्थात जो मेरे हृदय का टुकड़ा है, मैं ने उसे तेरे पास लौटा दिया है। 13 उसे मैं अपने ही पास रखना चाहता था कि तेरी ओर से इस कैद में जो सुसमाचार के कारण है, मेरी सेवा करे। 14 पर मैं ने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा कि तेरी यह कृपा दबाव से नहीं पर आनन्द से हो। 15 क्योंकि क्या जाने वह तुझ से कुछ दिन तक के लिये इसी कारण अलग हुआ कि सदैव तेरे निकट रहे। 16 परन्तु अब से दास की नाईं नहीं, वरन दास से भी उत्तम, अर्थात भाई के समान रहे जो शरीर में भी और विशेष कर प्रभु में भी मेरा प्रिय हो। 17 सो यदि तू मुझे सहभागी समझता है, तो उसे इस प्रकार ग्रहण कर जैसे मुझे। 18 और यदि उस ने तेरी कुछ हानि की है, या उस पर तेरा कुछ आता है, तो मेरे नाम पर लिख ले। 19 मैं पौलुस अपने हाथ से लिखता हूं, कि मैं आप भर दूंगा; और इस के कहने की कुछ आवश्यकता नहीं, कि मेरा कर्ज जो तुझ पर है वह तू ही है। 20 हे भाई यह आनन्द मुझे प्रभु में तेरी ओर से मिले: मसीह में मेरे जी को हरा भरा कर दे। 21 मैं तेरे आज्ञाकारी होने का भरोसा रखकर, तुझे लिखता हूं और यह जानता हूं, कि जो कुछ मैं कहता हूं, तू उस से कहीं बढ़कर करेगा। 22 और यह भी, कि मेरे लिये उतरने की जगह तैयार रख; मुझे आशा है, कि तुम्हारी प्रार्थनाओं के द्वारा मैं तुम्हें दे दिया जाऊंगा॥ 23 इपफ्रास जो मसीह यीशु में मेरे साथ कैदी है। 24 और मरकुस और अरिस्तर्खुस और देमास और लूका जो मेरे सहकर्मी है इन का तुझे नमस्कार॥ 25 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा पर होता रहे। आमीन॥फिलेमोन

फिलिप्पियों(अध्याय 1) 1 मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुथियुस की ओर से सब पवित्र लोगों के नाम, जो मसीह यीशु में होकर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यक्षों और सेवकों समेत। 2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे॥ 3 मैं जब जब तुम्हें स्मरण करता हूं, तब तब अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं। 4 और जब कभी तुम सब के लिये बिनती करता हूं, तो सदा आनन्द के साथ बिनती करता हूं। 5 इसलिये, कि तुम पहिले दिन से लेकर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो। 6 और मुझे इस बात का भरोसा है, कि जिस ने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। 7 उचित है, कि मैं तुम सब के लिये ऐसा ही विचार करूं क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी हो। 8 इस में परमेश्वर मेरा गवाह है, कि मैं मसीह यीशु की सी प्रीति करके तुम सब की लालसा करता हूं। 9 और मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए। 10 यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ। 11 और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे॥ 12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है। 13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं। 14 और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं। 15 कितने तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से। 16 कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं। 17 और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्लेश उत्पन्न करें। 18 सो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्दित हूं, और आनन्दित रहूंगा भी। 19 क्योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा। 20 मैं तो यही हादिर्क लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं या मर जाऊं। 21 क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है। 22 पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिये लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं। 23 क्योंकि मैं दोनों के बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है। 24 परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है। 25 और इसलिये कि मुझे इस का भरोसा है सो मैं जानता हूं कि मैं जीवित रहूंगा, वरन तुम सब के साथ रहूंगा जिस से तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उस में आनन्दित रहो। 26 और जो घमण्ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए। 27 केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूं, चाहे न भी आऊं, तुम्हारे विषय में यह सुनूं, कि तुम एक ही आत्मा में स्थिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिये परिश्रम करते रहते हो। 28 और किसी बात में विरोधियों से भय नहीं खाते यह उन के लिये विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिये उद्धार का, और यह परमेश्वर की ओर से है। 29 क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिये दुख भी उठाओ। 30 और तुम्हें वैसा ही परिश्रम करना है, जैसा तुम ने मुझे करते देखा है, और अब भी सुनते हो, कि मैं वैसा ही करता हूं॥

फिलिप्पियों(अध्याय 2) 1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है। 2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। 3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। 4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे। 5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। 6 जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। 7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। 8 और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। 9 इस कारण परमेश्वर ने उस को अति महान भी किया, और उस को वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है। 10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। 11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है॥ 12 सो हे मेरे प्यारो, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य पूरा करते जाओ। 13 क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस न अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है। 14 सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो। 15 ताकि तुम निर्दोष और भोले होकर टेढ़े और हठीले लोगों के बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, (जिन के बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकों की नाईं दिखाई देते हो)। 16 कि मसीह के दिन मुझे घमण्ड करने का कारण हो, कि न मेरा दौड़ना और न मेरा परिश्रम करना व्यर्थ हुआ। 17 और यदि मुझे तुम्हारे विश्वास के बलिदान और सेवा के साथ अपना लोहू भी बहाना पड़े तौभी मैं आनन्दित हूं, और तुम सब के साथ आनन्द करता हूं। 18 वैसे ही तुम भी आनन्दित हो, और मेरे साथ आनन्द करो॥ 19 मुझे प्रभु यीशु में आशा है, कि मैं तीमुथियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूंगा, ताकि तुम्हारी दशा सुनकर मुझे शान्ति मिले। 20 क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वाभाव का कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे। 21 क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की। 22 पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है, कि जैसा पुत्र पिता के साथ करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साथ परिश्रम किया। 23 सो मुझे आशा है, कि ज्योंही मुझे जान पड़ेगा कि मेरी क्या दशा होगी, त्योंही मैं उसे तुरन्त भेज दूंगा। 24 और मुझे प्रभु में भरोसा है, कि मैं आप भी शीघ्र आऊंगा। 25 पर मैं ने इपफ्रदीतुस को जो मेरा भाई, और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातों में मेरी सेवा टहल करने वाला है, तुम्हारे पास भेजना अवश्य समझा। 26 क्योंकि उसका मन तुम सब में लगा हुआ था, इस कारण वह व्याकुल रहता था क्योंकि तुम ने उस की बीमारी का हाल सुना था। 27 और निश्चय वह बीमार तो हो गया था, यहां तक कि मरने पर था, परन्तु परमेश्वर ने उस पर दया की; और केवल उस ही पर नहीं, पर मुझ पर भी, कि मुझे शोक पर शोक न हो। 28 इसलिये मैं ने उसे भेजने का और भी यत्न किया कि तुम उस से फिर भेंट करके आनन्दित हो जाओ और मेरा भी शोक घट जाए। 29 इसलिये तुम प्रभु में उस से बहुत आनन्द के साथ भेंट करना, और ऐसों का आदर किया करना। 30 क्योंकि वही मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे॥

फिलिप्पियों(अध्याय 3) 1 निदान, हे मेरे भाइयो, प्रभु में आनन्दित रहो: वे ही बातें तुम को बार बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इस में तुम्हारी कुशलता है। 2 कुत्तों से चौकस रहो, उन बुरे काम करने वालों से चौकस रहो, उन काट कूट करने वालों से चौकस रहो। 3 क्योंकि खतना वाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्मा की अगुवाई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते। 4 पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूं यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उस से भी बढ़कर रख सकता हूं। 5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्त्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूं; इब्रानियों का इब्रानी हूं; व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं। 6 उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सताने वाला; और व्यवस्था की धामिर्कता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष था। 7 परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है। 8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं। 9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है। 10 और मैं उस को और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं। 11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं। 12 यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था। 13 हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ। 14 निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है। 15 सो हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा। 16 सो जहां तक हम पहुंचे हैं, उसी के अनुसार चलें॥ 17 हे भाइयो, तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो, और उन्हें पहिचान रखो, जो इस रीति पर चलते हैं जिस का उदाहरण तुम हम में पाते हो। 18 क्योंकि बहुतेरे ऐसी चाल चलते हैं, जिन की चर्चा मैं ने तुम से बार बार किया है और अब भी रो रोकर कहता हूं, कि वे अपनी चालचलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं। 19 उन का अन्त विनाश है, उन का ईश्वर पेट है, वे अपनी लज्ज़ा की बातों पर घमण्ड करते हैं, और पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं। 20 पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आने ही बाट जोह रहे हैं। 21 वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिस के द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा॥

फिलिप्पियों(अध्याय 4) 1 इसलिये हे मेरे प्रिय भाइयों, जिन में मेरा जी लगा रहता है जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयो, प्रभु में इसी प्रकार स्थिर रहो॥ 2 मैं यूओदिया को भी समझाता हूं, और सुन्तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें। 3 और हे सच्चे सहकर्मी मैं तुझ से भी बिनती करता हूं, कि तू उन स्त्रियों की सहयता कर, क्योंकि उन्होंने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे उन और सहकिर्मयों समेत परिश्रम किया, जिन के नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं। 4 प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो। 5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। 6 किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। 7 तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी॥ 8 निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। 9 जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा॥ 10 मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं। 12 मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 13 जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं। 14 तौभी तुम ने भला किया, कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए। 15 और हे फिलप्पियो, तुम आप भी जानते हो, कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैं ने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी मण्डली ने लेने देने के विषय में मेरी सहयता नहीं की। 16 इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन दो बार कुछ भेजा था। 17 यह नहीं कि मैं दान चाहता हूं परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूं, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए। 18 मेरे पास सब कुछ है, वरन बहुतायत से भी है: जो वस्तुएं तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पाकर मैं तृप्त हो गया हूं, वह तो सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है। 19 और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा। 20 हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन॥ 21 हर एक पवित्र जन को जो यीशु मसीह में हैं नमस्कार कहो। जो भाई मेरे साथ हैं तुम्हें नमस्कार कहते हैं। 22 सब पवित्र लोग, विशेष करके जो कैसर के घराने के हैं तुम को नमस्कार कहते हैं॥ 23 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्मा के साथ रहे॥

प्रेरितों के काम(अध्याय 28:16) 16 जब हम रोम में पहुंचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उस की रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई॥

प्रेरितों के काम(अध्याय 1:12-14) 12 तब वे जैतून नाम के पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे। 13 और जब वहां पहुंचे तो वे उस अटारी पर गए, जहां पतरस और यूहन्ना और याकूब और अन्द्रियास और फिलेप्पुस और थोमा और बरतुलमाई और मत्ती और हलफई का पुत्र याकूब और शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे। 14 ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे॥