पाठ 34 : इफिसियों और कुलुसियों का सर्वेक्षण

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सारांश

इफिसियों और कुलुस्सियों का सर्वेक्षण प्रेरित पौलुस पत्र की शुरूवात मसीही के स्वर्गीय बैंक खाते के साथ शुरू करता है: लेपालकपन, स्वीकृति, छुटकारा, क्षमा, बुद्धि, उत्तराधिकार, पवित्र आत्मा की मुहर, जीवन, अनुग्रह, नागरिकता संक्षेप में प्रत्येक आत्मिक आशीष। वह हमें हमारे उद्देश्य और बुलाहट के विषय मसीह की देह के रूप में नया दर्शन देता है, और बताता है कि हम उस प्रकार कैसे जी सकते हैं। इफिसियों एशिया को रोमी प्रांत की कलीसियाओं को लिखा गया सामान्य पत्र है। पौलुस ने इस पत्री को करीब सन 61 में रोम में लिखा था, जब वह कैसर के सामने मुकदमें की सुनवाई के लिये नजरबंद किया गया था (पढ़े प्रेरितों के काम 28)। यद्यपि सिपाहियों द्वारा उसकी निगरानी की जाती थी, वह स्वतंत्रता के साथ अतिथियों का स्वागत करता, सुसमाचार का प्रचार करता था और कलीसियाओं को लिखता था। इफिसियों के अलावा, इसी दौरान उसने तीन अन्य पत्रियाँ भी लिखा:फिलिप्पियों, कुलुस्सियों और फिलेमोन। अब इफिसी कलीसिया का निर्माण किस तरह हुआ था? इसका उत्तर देने के लिये हमें पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा के समय में पीछे जाना होगा। उस यात्रा के दौरान उसकी मुलाकात तंबू बनानेवाले प्रिसकिल्ला और अक्विला से हुई जो कुरिन्थ से गुजर रहे थे। वह जल्द ही उनका मित्र बन गया और व्यवसाय में सहभागी बन गया और कुछ समय तक उनके साथ रहकर तंबू बनाने लगा और आराधनालय में प्रचार करने लगा। वे उसके साथ इफिसुस गए, जहाँ उसने उन्हें छोड़कर कैसरिया और अंताकिया के लिये यात्रा किया। इफिसुस एक प्रसिद्ध बंदरगाह का शहर था जो विश्व के सात अजूबों में एक का स्थान था, प्रसिद्ध डायना का मंदिर (जो अरतिमिस भी कहलाता है)। उसकी तीसरी मिश्नरी यात्रा में पौलुस इफिसुस को लौटा और फिर से शहर में रूक गया और पहले आराधनालय में और फिर तरन्नुस की पाठशाला में सिखाने लगा। वहाँ पौलुस ने विश्वासियों के साथ करीब तीन वर्ष बिताया जो किसी अन्य स्थानीय कलीसिया में बिताए हुए समय से ज्यादा था। पवित्र आत्मा ने पौलुस के इफिसियों के विषय घनिष्ट ज्ञान का उपयोग किया कि वह उस पत्री के संदेशों को लिखे। पत्री को दो खंडों में बाँटा जा सकता है: सैद्धांतिक और व्यवहारिक। अध्याय 1-3 दिखाते हैं कि अपने मृत्यु, पुनरूत्थान और महिमा के द्वारा मसीह ने हमारा परमेश्वर से मेल-मिलाप कराया, और यहूदी और अन्यजातियों को एक देह बनाया, जिसका यीशु सिर है। यह खंड सैद्धांतिक है और मसीह में हमारी स्थिति को बताता है। अध्याय 4-6 हमें निर्देश देते हैं कि हमें अपनी स्थिति के लिये किस तरह प्रकाश या ज्योति में जीना है - मसीह में हमारी नई पहचान के अनुसार। यह खंड व्यवहारिक है, जो परमेश्वर के कार्य को पूरा करने में हमारी भूमिका को समझाता है।पौलुस सात बातों के तीन समूह भी बनाता है: मसीह में सात आशीषें (अध्याय1) मसीह की देह में सात एकताएँ (अध्याय 4)और हथियार के सात भाग (अध्याय 6)। मसीह के साथ हमारी एकता: मसीह ने हमारे लिये क्या किया? (पौलुस 1:4-14) में उसके द्वारा दिए गए हमारे सात गुणा आशीषों की सूची बताता है:

  1. हमें सृष्टि के पहले ही पवित्र और निर्दोष होने के लिये चुन लिया गया है। (पद 4)
  2. हमें परमेश्वर की संतान होने के लिये लेपालक बनाया गया है (पद 5)
  3. हमें छुडाया गया है (पद 7 क)
  4. हमें हमारे पापों की क्षमा दी गई है (पद 7 ख)
  5. हमें परमेश्वर की अनंत योजना बताई गई है (पद 9-10)
  6. हमने मीरास पाई है (पद 11)
  7. हम पर पवित्र आत्मा की मुहर दी गई है और मीरास का यकीन दिलाया गया है (पद 13 ख-14) मसीह ने हमारे भीतर क्या किया? मसीह में हम छुडाए गए हैं और नए उद्देश्य के लिये हमारा मेल-मिलाप किया गया है, ताकि हम माध्यम बने जिसके द्वारा परमेश्वर उसके अनुग्रह का बहुतायात को उजागर कर सके और उस कार्य को पूरा कर सके जिसके लिये उसने हमें पहले से ही ठहराया है। (पद 7,10)। मसीह ने हमारे मध्य क्या किया है? मसीह ने न केवल लोगों का परमेश्वर से पुनः मेल कराया है, उसने लोगों का भी आपस में मेलमिलाप कराया है। मसीह शांति का मध्यस्थ बना, यहूदियों को अन्यजातियों से जोड़ा ताकि एक नई देह बन सकें - अर्थात कलीसिया। यह नया समुदाय एक जीवित मंदिर है “आत्मा में परमेश्वर का निवास।” अध्याय 3 में पौलुस इस नए परिवार के निर्माण में उसकी अनोखी भूमिका को समझाता है। अन्यजातियों के लिये प्रेरित के रूप में, उसके जीवन का उद्देश्य उन्हें परमेश्वर के परिवार में लाना था। परमेश्वर पिता से अपनी प्रार्थना में वह मांगता है कि वे मसीह की आत्मा की सामर्थ को जाने, उसकी बसनेवाली उपस्थिति को और उसके उमंडते प्रेम की “चौड़ाई, लंबाई और ऊँचाई और गहराई” को जानें। परमेश्वर के भावह्निल करनेवाले अनुग्रह से प्रभावित होकर पौलुस ने अपनी प्रार्थना का अंत स्तुति से किया: “अब जो ऐसा सामर्थी है कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हममें कार्य करता है, कलीसिया में और मसीह यीशु ने उसकी महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।” (3:20,21) एक दूसरे के साथ हमारी एकता: पौलुस का “आमीन” 4थे अध्याय में सीधे “इसलिये” से शुरूवात करता है क्योंकि वह सिद्धांत से लागूकरण की ओर बढ़ता है। वह हमारी नई एकता के विषय कहता है।वह इस नई प्राप्त आत्मिक एकता को बनाए रखने के लिये मेल के बंधन में प्रयास करने का प्रोत्साहन देता है। यहाँ सात बातों का दूसरा समूह प्रगट होता है जो इस एकता की संपूर्णता पर बल देता है - एक देह, एक आत्मा, एक आशा, एक प्रभु, एक विश्वास, एक बपतिस्मा, एक ही परमेश्वर और सबका पिता। यद्यपि हम एकजुट हैं, फिर भी हम एक समान नहीं हैं। एक ही परमेश्वर है जिसने हमें कई आत्मिक वरदान दिया है जो मिलकर मसीह की देह का निर्माण करते हैं। मसीह में हमारी नई चाल हमें इस खंड के, कुँजी विचार पर ले जाती है, “इसलिये प्रिय बालकों के समान परमेश्वर का अनुकरण करो, और प्रेम में चलो जैसे मसीह ने भी तुम सेप्रेम किया और हमारे लिये अपने आपको सुखदायक सुगंध के लिये परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया।” (5:1-2)। 6वें अध्याय में पौलुस हमारी नई शक्ति के विषय कहता है। क्या संसार उठकर परमेश्वर के नए आत्मिक समाज की प्रशंसा करेगा? नहीं। मतभेद आएँगे क्योंकि मात्र मानवीय सीमाओं के पीछे ताकतें परमेश्वर का विरोध करती हैं। पृथ्वी पर मसीह के देह के रूप में हमें अपने स्थान पर स्थिर रहना है - क्योंकि यह बचाए जाने के सत्य का आधार है। उसने अनुग्रह द्वारा हमें उसका “सारा हथियार” दे दिया है जो पौलुस द्वारा बताए गए सात हथियारों में दिख पड़ते हैं: (1) सत्य (2) धार्मिकता (3) परमेश्वर के साथ मेल, विश्वास (4) उद्धार (5) आत्मा परमेश्वर का वचन और (6) प्रार्थना (6:10-18)। पौलुस उसके पत्र को उसके पाठकों को शांति देते हुए खत्म करता है, कि वह उनके पास अपना व्यक्तिगत संदेश वाहक भेजेगा यह बताने के लिये की बंदीगृह में उसकी क्या दशा थी। फिर वह उन्हें आशीष देता है और जो मसीह के देह के अंग है उनसे अनुग्रह की प्रतिज्ञा करता है जो प्रभु यीशु से सच्चा प्रेम रखते है: “परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयों को शांति और विश्वास सहित प्रेम मिले। जो हमारे प्रभु यीशु में सच्चा प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे।"(6:23-24)। आइये हम उसके प्रेम की ज्योति में चलें ख) कुलुस्सियोंः शायद कुलुस्सियों की पुस्तक बाइबल में मसीह पर सर्वाधिक आधारित पुस्तक है। इसमें पौलुस मसीह के व्यक्तित्व पर जोर देता है जो पहले से ही मौजूद है और उसके द्वारा दिए जानेवाली संपूर्णता को भी बताता है ताकि बढ़ती नास्तिकता से निपटा जा सके जो कुलुस्से की कलीसिया के लिये खतरा थी। कुलुस्से की कलीसिया: इफिसुस से 100 मील पूर्व में स्थित कुलुस्से किसी समय समृद्ध और प्रसिद्ध शहर था जो लूकस नदी की घाटी में बसा हुआ था। लेकिन बाद में कुलुस्से का व्यापार घट गया। पौलुस के समय तक यह शहर एक महत्वहीन बाजार बनकर रह गया था। यद्यपि यह छोटा स्थान था फिर भी यह एक बढ़ती कलीसिया का घर था जो इपफ्रास नामक व्यक्ति द्वारा शुरू की गई थी, शायद इफिसुस में पौलुस के 3 वर्ष रहने के दौरान। बाद में जब रोम में पौलुस नजरबंद किया गया था, उस समय इपफ्रास यह खबर लेकर उसके पास आया था कि कलीसिया के द्वारा एक खतरनाक शिक्षा फैल रही थी। यीशु मसीह जो मसीही विश्वास का केंद्र है, दाँव पर लगा था। पौलुस ने कुलुस्सियों को लिखा था कि वे इस नास्तिकता को खत्म करें इससे पहले कि वह नियंत्रण के बाहर हो जाए। यह नास्तिकता क्या थी? कुलुस्से के झूठे शिक्षकों ने सिखाया कि मसीह पर विश्वास करना पर्याप्त नहीं था। उन्होंने सिखाया कि सच्चा उद्धार आत्मिक प्रबोधन या ज्ञानवर्धन द्वारा, यहूदी धार्मिक शिक्षा द्वारा, त्यौहारों और संस्कारों तथा अन्य ज्योतिष विद्या और रहस्यमय बातों के द्वारा मिलता है। मसीहत के मिलेजुले रूप ने मसीह को स्थान तो दिया, परंतु उसका सर्वोच्च स्थान नहीं। यह पत्र स्वयँ को मसीह के विषय सत्य और उस सच्चाई के प्रति हमारी अनुक्रिया के बीच विभाजित करता है। प्रथम दो अध्यायों में पौलुस मसीह की सर्वोच्चता के विषय खुलकर लिखता है और उसके प्रायश्चित की भरपूरी के विषय भी। यहाँ बल यीशु के व्यक्तित्व और कार्य पर दिया गया है। अंतिम दो अध्यायों में पौलुस का लक्ष्य यीशु मसीह की शांति और उपस्थिति पर है। मसीह की सर्वोच्चता : पौलुस अभिवादन के बाद कुलुस्से के विश्वासियों की ओर से धन्यवाद देता है। पौलुस उसकी चिंता व्यक्त करता है कि कुलुस्सियों को मसीह के व्यक्तित्व और सामर्थ को घनिष्टता से जानना जरूरी है। वह सृष्टि और छुटकारा दोनों में ही सर्वोच्च है। अन्यजातियों को पौलुस उसकी अपनी अद्भुत सेवकाई की घोषणा का वर्णन करता है, “मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है” (1:27) और उन्हें यकीन दिलाता है कि यद्यपि वह उनसे व्यक्तिगत रीति से नहीं मिला है, फिर भी उसकी तीव्र इच्छा है कि वे केवल मसीह में ही जड़ पकड़ें जो कलीसिया में सर्वप्रधान है। यह झूठे शिक्षकों के कारण अति महत्वपूर्ण है जो उन्हें मौलिकता, व्यर्थ की दार्शनिकता, बाध्य संस्कारों, अनुचित रहस्यवाद और व्यर्थ के सन्यास या साधना द्वारा धोखा देकर फुसला सकते थे। प्रत्येक मामले में पौलुस गलती को मसीह की सच्चाई बताकर खंडन करता है। मसीह को समपर्ण : मसीह की मृत्यु, पुनरूत्थान और महिमा में विश्वासी का मेल वह बुनियाद है जिस पर उसका संसारिक जीवन आधारित होना चाहिये। मसीह के साथ उसकी मृत्यु के कारण, मसीही को चाहिये कि वह स्वयं को पाप के लिये मरा समझे। मसीह के साथ उसके पुनरूत्थान के कारण विश्वासी को चाहिये कि वह स्वयं को प्रभु के लिये उसकी धार्मिकता में जीवित समझे, और नए गुणों को अपनाए जो मसीही प्रेम के फल हैं। परमेश्वर की हर संतान में मसीह रहता है, जब परमेश्वर हमें देखता है तो वह मसीह के द्वारा देखता है और हम उसी में संपूर्ण हैं। (1:27; 2:9-11)। विश्वासी अब व्यवस्था के अधीन नहीं है परंतु वे परमेश्वर की स्वतंत्र संतानें हैं। वे उसके अनुग्रह और प्रेम द्वारा मसीह के साथ जोड़े हुए हैं। यह पत्री उसके ले जाने वालों (तुखिकुस और उनेसिमुस) के विषय कथन, अभिवादन और निर्देशों तथा विदाई के शब्दों के साथ खत्म होती है।

बाइबल अध्यन

इफिसियों अध्याय 1 1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित है, उन पवित्र और मसीह यीशु में विश्वासी लोगों के नाम जो इफिसुस में हैं॥ 2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे॥ 3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो, कि उस ने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आशीष दी है। 4 जैसा उस ने हमें जगत की उत्पति से पहिले उस में चुन लिया, कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों। 5 और अपनी इच्छा की सुमति के अनुसार हमें अपने लिये पहिले से ठहराया, कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों, 6 कि उसके उस अनुग्रह की महिमा की स्तुति हो, जिसे उस ने हमें उस प्यारे में सेंत मेंत दिया। 7 हम को उस में उसके लोहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है। 8 जिसे उस ने सारे ज्ञान और समझ सहित हम पर बहुतायत से किया। 9 कि उस ने अपनी इच्छा का भेद उस सुमति के अनुसार हमें बताया जिसे उस ने अपने आप में ठान लिया था। 10 कि समयों के पूरे होने का ऐसा प्रबन्ध हो कि जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे। 11 उसी में जिस में हम भी उसी की मनसा से जो अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहिले से ठहराए जाकर मीरास बने। 12 कि हम जिन्हों ने पहिले से मसीह पर आशा रखी थी, उस की महिमा की स्तुति के कारण हों। 13 और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। 14 वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी मीरास का बयाना है, कि उस की महिमा की स्तुति हो॥ 15 इस कारण, मैं भी उस विश्वास का समाचार सुनकर जो तुम लोगों में प्रभु यीशु पर है और सब पवित्र लोगों पर प्रगट है। 16 तुम्हारे लिये धन्यवाद करना नहीं छोड़ता, और अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण किया करता हूं। 17 कि हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्वर जो महिमा का पिता है, तुम्हें अपनी पहचान में, ज्ञान और प्रकाश का आत्मा दे। 18 और तुम्हारे मन की आंखें ज्योतिर्मय हों कि तुम जान लो कि उसके बुलाने से कैसी आशा होती है, और पवित्र लोगों में उस की मीरास की महिमा का धन कैसा है। 19 और उस की सामर्थ हमारी ओर जो विश्वास करते हैं, कितनी महान है, उस की शक्ति के प्रभाव के उस कार्य के अनुसार। 20 जो उस ने मसीह के विषय में किया, कि उस को मरे हुओं में से जिलाकर स्वर्गीय स्यानोंमें अपनी दाहिनी ओर। 21 सब प्रकार की प्रधानता, और अधिकार, और सामर्थ, और प्रभुता के, और हर एक नाम के ऊपर, जो न केवल इस लोक में, पर आने वाले लोक में भी लिया जाएगा, बैठाया। 22 और सब कुछ उसके पांवों तले कर दिया: और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया। 23 यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है, जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है॥

इफिसियों(अध्याय 2) 1 और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 2 जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है। 3 इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। 4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया। 5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) 6 और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया। 7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। 8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 9 और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। 10 क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया॥ 11 इस कारण स्मरण करो, कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो, (और जो लोग शरीर में हाथ के किए हुए खतने से खतना वाले कहलाते हैं, वे तुम को खतना रहित कहते हैं)। 12 तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्त्राएल की प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्वर रहित थे। 13 पर अब तो मसीह यीशु में तुम जो पहिले दूर थे, मसीह के लोहू के द्वारा निकट हो गए हो। 14 क्योंकि वही हमारा मेल है, जिस ने दोनों को एक कर लिया: और अलग करने वाली दीवार को जो बीच में थी, ढा दिया। 15 और अपने शरीर में बैर अर्थात वह व्यवस्था जिस की आज्ञाएं विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया, कि दोनों से अपने में एक नया मनुष्य उत्पन्न करके मेल करा दे। 16 और क्रूस पर बैर को नाश करके इस के द्वारा दानों को एक देह बनाकर परमेश्वर से मिलाए। 17 और उस ने आकर तुम्हें जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दानों को मेल-मिलाप का सुसमाचार सुनाया। 18 क्योंकि उस ही के द्वारा हम दोनों की एक आत्मा में पिता के पास पंहुच होती है। 19 इसलिये तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए। 20 और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नेव पर जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही है, बनाए गए हो। 21 जिस में सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है। 22 जिस में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवास स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो॥

इफिसियों(अध्याय 3) 1 इसी कारण मैं पौलुस जो तुम अन्यजातियों के लिये मसीह यीशु का बन्धुआ हूं 2 यदि तुम ने परमेश्वर के उस अनुग्रह के प्रबन्ध का समाचार सुना हो, जो तुम्हारे लिये मुझे दिया गया। 3 अर्थात यह, कि वह भेद मुझ पर प्रकाश के द्वारा प्रगट हुआ, जैसा मैं पहिले संक्षेप में लिख चुका हूं। 4 जिस से तुम पढ़ कर जान सकते हो, कि मैं मसीह का वह भेद कहां तक समझता हूं। 5 जो और और समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया है। 6 अर्थात यह, कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लाग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं। 7 और मैं परमेश्वर के अनुग्रह के उस दान के अनुसार, जो उसकी सामर्थ के प्रभाव के अनुसार मुझे दिया गया, उस सुसमाचार का सेवक बना। 8 मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूं, यह अनुग्रह हुआ, कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊं। 9 और सब पर यह बात प्रकाशित करूं, कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्वर में आदि से गुप्त था। 10 ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का नाना प्रकार का ज्ञान, उन प्रधानों और अधिकारियों पर, जो स्वर्गीय स्थानों में हैं प्रगट किया जाए। 11 उस सनातन मनसा के अनुसार, जो उस ने हमारे प्रभु मसीह यीशु में की थी। 12 जिस में हम को उस पर विश्वास रखने से हियाव और भरोसे से निकट आने का अधिकार है। 13 इसलिये मैं बिनती करता हूं कि जो क्लेश तुम्हारे लिये मुझे हो रहे हैं, उनके कारण हियाव न छोड़ो, क्योंकि उन में तुम्हारी महिमा है॥ 14 मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं, 15 जिस से स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है। 16 कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्व में सामर्थ पाकर बलवन्त होते जाओ। 17 और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़ कर और नेव डाल कर। 18 सब पवित्र लोगों के साथ भली भांति समझने की शक्ति पाओ; कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है। 19 और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ॥ 20 अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है, 21 कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन॥

इफिसियों(अध्याय 4) 1 सो मैं जो प्रभु में बन्धुआ हूं तुम से बिनती करता हूं, कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो। 2 अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो। 3 और मेल के बन्ध में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो। 4 एक ही देह है, और एक ही आत्मा; जैसे तुम्हें जो बुलाए गए थे अपने बुलाए जाने से एक ही आशा है। 5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा। 6 और सब का एक ही परमेश्वर और पिता है, जो सब के ऊपरऔर सब के मध्य में, और सब में है। 7 पर हम में से हर एक को मसीह के दान के परिमाण से अनुग्रह मिला है। 8 इसलिये वह कहता है, कि वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुवाई को बान्ध ले गया, और मनुष्यों को दान दिए। 9 (उसके चढ़ने से, और क्या पाया जाता है केवल यह, कि वह पृथ्वी की निचली जगहों में उतरा भी था। 10 और जो उतर गया यह वही है जो सारे आकाश से ऊपर चढ़ भी गया, कि सब कुछ परिपूर्ण करे)। 11 और उस ने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। 12 जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। 13 जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं। 14 ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों। 15 वरन प्रेम में सच्चाई से चलते हुए, सब बातों में उस में जो सिर है, अर्थात मसीह में बढ़ते जाएं। 16 जिस से सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक भाग के परिमाण से उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए॥ 17 इसलिये मैं यह कहता हूं, और प्रभु में जताए देता हूं कि जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ की रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। 18 क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। 19 और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें। 20 पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई। 21 वरन तुम ने सचमुच उसी की सुनी, और जैसा यीशु में सत्य है, उसी में सिखाए भी गए। 22 कि तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमाने वाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो। 23 और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ। 24 और नये मनुष्यत्व को पहिन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धामिर्कता, और पवित्रता में सृजा गया है॥ 25 इस कारण झूठ बोलना छोड़कर हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं। 26 क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। 27 और न शैतान को अवसर दो। 28 चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; वरन भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे; इसलिये कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो। 29 कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुनने वालों पर अनुग्रह हो। 30 और परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिस से तुम पर छुटकारे के दिन के लिये छाप दी गई है। 31 सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। 32 और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो॥

इफिसियों(अध्याय 5) 1 इसलिये प्रिय, बालकों की नाईं परमेश्वर के सदृश बनो। 2 और प्रेम में चलो; जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया; और हमारे लिये अपने आप को सुखदायक सुगन्ध के लिये परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया। 3 और जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। 4 और न निर्लज्ज़ता, न मूढ़ता की बातचीत की, न ठट्ठे की, क्योंकि ये बातें सोहती नहीं, वरन धन्यवाद ही सुना जाएं। 5 क्योंकि तुम यह जानते हो, कि किसी व्यभिचारी, या अशुद्ध जन, या लोभी मनुष्य की, जो मूरत पूजने वाले के बराबर है, मसीह और परमेश्वर के राज्य में मीरास नहीं। 6 कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे; क्योंकि इन ही कामों के कारण परमेश्वर का क्रोध आज्ञा ने मानने वालों पर भड़कता है। 7 इसलिये तुम उन के सहभागी न हो। 8 क्योंकि तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, सो ज्योति की सन्तान की नाईं चलो। 9 (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धामिर्कता, और सत्य है)। 10 और यह परखो, कि प्रभु को क्या भाता है 11 और अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन उन पर उलाहना दो। 12 क्योंकि उन के गुप्त कामों की चर्चा भी लाज की बात है। 13 पर जितने कामों पर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है, वह ज्योति है। 14 इस कारण वह कहता है, हे सोने वाले जाग और मुर्दों में से जी उठ; तो मसीह की ज्योति तुझ पर चमकेगी॥ 15 इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियों की नाईं नहीं पर बुद्धिमानों की नाईं चलो। 16 और अवसर को बहुमोल समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। 17 इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्छा क्या है? 18 और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ। 19 और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो। 20 और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो। 21 और मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो॥ 22 हे पत्नियों, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। 23 क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है। 24 पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें। 25 हे पतियों, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया। 26 कि उस को वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए। 27 और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बना कर अपने पास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्तु हो, वरन पवित्र और निर्दोष हो। 28 इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखें। जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। 29 क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है 30 इसलिये कि हम उस की देह के अंग हैं। 31 इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे। 32 यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूं। 33 पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने॥

इफिसियों(अध्याय 6) 1 हे बालकों, प्रभु में अपने माता पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। 2 अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। 3 कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे। 4 और हे बच्चे वालों अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो॥ 5 हे दासो, जो लोग शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, अपने मन की सीधाई से डरते, और कांपते हुए, जैसे मसीह की, वैसे ही उन की भी आज्ञा मानो। 6 और मनुष्यों को प्रसन्न करने वालों की नाईं दिखाने के लिये सेवा न करो, पर मसीह के दासों की नाईं मन से परमेश्वर की इच्छा पर चलो। 7 और उस सेवा को मनुष्यों की नहीं, परन्तु प्रभु की जानकर सुइच्छा से करो। 8 क्योंकि तुम जानते हो, कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे दास हो, चाहे स्वतंत्र; प्रभु से वैसा ही पाएगा। 9 और हे स्वामियों, तुम भी धमकियां छोड़कर उन के साथ वैसा ही व्यवहार करो, क्योंकि जानते हो, कि उन का और तुम्हारा दोनों का स्वामी स्वर्ग में है, और वह किसी का पक्ष नहीं करता॥ 10 निदान, प्रभु में और उस की शक्ति के प्रभाव में बलवन्त बनो। 11 परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्तियों के साम्हने खड़े रह सको। 12 क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। 13 इसलिये परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो, कि तुम बुरे दिन में साम्हना कर सको, और सब कुछ पूरा करके स्थिर रह सको। 14 सो सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मीकता की झिलम पहिन कर। 15 और पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर। 16 और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको। 17 और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। 18 और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिये जागते रहो, कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार बिनती किया करो। 19 और मेरे लिये भी, कि मुझे बोलने के समय ऐसा प्रबल वचन दिया जाए, कि मैं हियाव से सुसमाचार का भेद बता सकूं जिस के लिये मैं जंजीर से जकड़ा हुआ राजदूत हूं। 20 और यह भी कि मैं उस के विषय में जैसा मुझे चाहिए हियाव से बोलूं॥ 21 और तुखिकुस जो प्रिय भाई और प्रभु में विश्वासयोग्य सेवक है तुम्हें सब बातें बताएगा, कि तुम भी मेरी दशा जानो कि मैं कैसा रहता हूं। 22 उसे मैं ने तुम्हारे पास इसी लिये भेजा है, कि तुम हमारी दशा को जानो, और वह तुम्हारे मनों को शान्ति दे॥ 23 परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयों को शान्ति और विश्वास सहित प्रेम मिले। 24 जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से सच्चा प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे॥

कुलुस्सियों अध्याय 1 1 पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से। 2 मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं॥ हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे॥ 3 हम तुम्हारे लिये नित प्रार्थना करके अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्थात परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। 4 क्योंकि हम ने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगों से प्रेम रखते हो। 5 उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी हुई है, जिस का वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो। 6 जो तुम्हारे पास पहुंचा है और जैसा जगत में भी फल लाता, और बढ़ता जाता है; अर्थात जिस दिन से तुम ने उस को सुना, और सच्चाई से परमेश्वर का अनुग्रह पहिचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है। 7 उसी की शिक्षा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिये मसीह का विश्वास योग्य सेवक है। 8 उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्मा में है हम पर प्रगट किया॥ 9 इसी लिये जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ। 10 ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहिचान में बढ़ते जाओ। 11 और उस की महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त होते जाओ, यहां तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको। 12 और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिस ने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ मीरास में समभागी हों। 13 उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। 14 जिस में हमें छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा प्राप्त होती है। 15 वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। 16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। 17 और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं। 18 और वही देह, अर्थात कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। 19 क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उस में सारी परिपूर्णता वास करे। 20 और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं का उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की। 21 और उस ने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया जो पहिले निकाले हुए थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे। 22 ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे। 23 यदि तुम विश्वास की नेव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिस का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिस का मैं पौलुस सेवक बना॥ 24 अब मैं उन दुखों के कारण आनन्द करता हूं, जो तुम्हारे लिये उठाता हूं, और मसीह के क्लेशों की घटी उस की देह के लिये, अर्थात कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूं। 25 जिस का मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा पूरा प्रचार करूं। 26 अर्थात उस भेद को जो समयों और पीढिय़ों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। 27 जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है। 28 जिस का प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित करें। 29 और इसी के लिये मैं उस की उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूं।

कुलुस्सियों(अध्याय 2) 1 मैं चाहता हूं कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उन के जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिये जिन्हों ने मेरा शारीरिक मुंह नहीं देखा मैं कैसा परिश्रम करता हूं। 2 ताकि उन के मनों में शान्ति हो और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात मसीह को पहिचान लें। 3 जिस में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं। 4 यह मैं इसलिये कहता हूं, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभाने वाली बातों से धोखा न दे। 5 क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूं, तौभी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूं, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूं॥ 6 सो जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो। 7 और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो॥ 8 चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न करे ले, जो मनुष्यों के परम्पराई मत और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार हैं, पर मसीह के अनुसार नहीं। 9 क्योंकि उस में ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है। 10 और तुम उसी में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है। 11 उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, अर्थात मसीह का खतना, जिस से शारीरिक देह उतार दी जाती है। 12 और उसी के साथ बपतिस्मा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिस ने उस को मरे हुओं में से जिलाया, उसके साथ जी भी उठे। 13 और उस ने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारिहत दशा में मुर्दा थे, उसके साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया। 14 और विधियों का वह लेख जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उस को क्रूस पर कीलों से जड़ कर साम्हने से हटा दिया है। 15 और उस ने प्रधानताओं और अधिक्कारों को अपने ऊपर से उतार कर उन का खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जय-कार की ध्वनि सुनाई॥ 16 इसलिये खाने पीने या पर्व या नए चान्द, या सब्तों के विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे। 17 क्योंकि ये सब आने वाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएं मसीह की हैं। 18 कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतों की पूजा करके तुम्हें दौड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातों में लगा रहता है और अपनी शारीरिक समझ पर व्यर्थ फूलता है। 19 और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिस से सारी देह जोड़ों और पट्ठों के द्वारा पालन-पोषण पाकर और एक साथ गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है॥ 20 जब कि तुम मसीह के साथ संसार की आदि शिक्षा की ओर से मर गए हो, तो फिर उन के समान जो संसार में जीवन बिताते हैं मनुष्यों की आज्ञाओं और शिक्षानुसार 21 और ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो कि यह न छूना, उसे न चखना, और उसे हाथ न लगाना? 22 (क्योंकि ये सब वस्तु काम में लाते लाते नाश हो जाएंगी)। 23 इन विधियों में अपनी इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन से कुछ भी लाभ नहीं होता॥

कुलुस्सियों(अध्याय 3) 1 सो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। 2 पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। 3 क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है। 4 जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे। 5 इसलिये अपने उन अंगो को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्ति पूजा के बराबर है। 6 इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न मानने वालों पर पड़ता है। 7 और तुम भी, जब इन बुराइयों में जीवन बिताते थे, तो इन्हीं के अनुसार चलते थे। 8 पर अब तुम भी इन सब को अर्थात क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा, और मुंह से गालियां बकना ये सब बातें छोड़ दो। 9 एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डाला है। 10 और नए मनुष्यत्व को पहिन लिया है जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिये नया बनता जाता है। 11 उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारिहत, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र: केवल मसीह सब कुछ और सब में है॥ 12 इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। 13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। 14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो। 15 और मसीह की शान्ति जिस के लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो। 16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ। 17 और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो॥ 18 हे पत्नियों, जेसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने अपने पति के आधीन रहो। 19 हे पतियों, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो। 20 हे बालको, सब बातों में अपने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है। 21 हे बच्चे वालो, अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए। 22 हे सेवकों, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातों में उन की आज्ञा का पालन करो, मनुष्यों को प्रसन्न करने वालों की नाईं दिखाने के लिये नहीं, परन्तु मन की सीधाई और परमेश्वर के भय से। 23 और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझ कर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो। 24 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इस के बदले प्रभु से मीरास मिलेगी: तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो। 25 क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपनी बुराई का फल पाएगा; वहां किसी का पक्षपात नहीं।

कुलुस्सियों(अध्याय 4) 1 हे स्वामियों, अपने अपने दासों के साथ न्याय और ठीक ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है॥ 2 प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहो। 3 और इस के साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो, कि परमेश्वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिस के कारण मैं कैद में हूं। 4 और उसे ऐसा प्रगट करूं, जैसा मुझे करना उचित है। 5 अवसर को बहुमूल्य समझ कर बाहर वालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो। 6 तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए। 7 प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा। 8 उसे मैं ने इसलिये तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे हृदयों को शान्ति दे। 9 और उसके साथ उनेसिमुस को भी भेजा है जो विश्वास योग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, ये तुम्हें यहां की सारी बातें बता देंगे॥ 10 अरिस्तर्खुस जो मेरे साथ कैदी है, और मरकुस जो बरनबा का भाई लगता है। (जिस के विषय में तुम ने आज्ञा पाई थी कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उस से अच्छी तरह व्यवहार करना।) 11 और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगों में से केवल ये ही परमेश्वर के राज्य के लिये मेरे सहकर्मी और मेरी शान्ति का कारण रहे हैं। 12 इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम से नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहो। 13 मैं उसका गवाह हूं, कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया और हियरापुलिस वालों के लिये बड़ा यत्न करता रहता है। 14 प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार। 15 लौदीकिया के भाइयों को और तुमफास और उन के घर की कलीसिया को नमस्कार कहना। 16 और जब यह पत्र तुम्हारे यहां पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना। 17 फिर अखिर्प्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साथ पूरी करना॥ 18 मुझ पौलुस का अपने हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरों को स्मरण रखना; तुम पर अनुग्रह होता रहे। आमीन॥