पाठ 29 : पौलुस रोम में

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सारांश

पौलुस रोम में अंततः परमेश्वर ने पौलुस को रोम पहुँचा दिया। संगी विश्वासियों के स्वागत ने उसे प्रोत्साहित किया। वे अप्पियुस के मार्ग से चले जो “क्वीन ऑफ द लॉग रोडस” कहलाता था और रोम पहुँचे। चूंकि पौलुस एक विश्वासयोग्य कैदी था उसे एक रक्षक सैनिक के साथ रहने की अनुमति दी गई। उसका घर एक किराए का घर था। अपनी रीति के अनुसार पौलुस ने पहले यहूदियों से बातचीत किया। उसने रोमी यहूदियों को उससे मिलने को कहा क्योंकि वह उनके आराधनालयों में नहीं जा सकता था। जब वे इकट्ठे हुए तो उसने उन्हें अपनी स्थिति के विषय बताया। उसने उन्हें बताया कि यद्यपि उसने यहूदियों के विरुद्ध कुछ नहीं किया था, फिर भी उन्होंने उसे मुकदमें के लिये रोमियों के हाथों सौंप दिया था। वे भी उसने कोई दोष न पा सके थे और उसे स्वतंत्र करना चाहते थे। लेकिन यहूदियों ने इस आदेश के विरुद्ध चिल्लाया और प्रेरित को कैसर की दोहाई देना पड़ा। यहूदी अगुवे पौलुस से और अधिक जानना चाहते थे। बाद में बड़ी संख्या में यहूदी लोग पौलुस के किराए के घर में मिलने गए। पौलुस ने मौके का फायदा उठाने की सोचा और यीशु के विषय बताने के विषय भी। मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की बातें याद दिलाकर उसने उन्हें सिद्ध करके बता दिया कि यीशु ही मसीह है। कुछ लोगों ने संदेश पर विश्वास किया और कुछ ने नहीं किया। जब पौलुस ने देखा कि फिर एक बार यहूदी राष्ट्र द्वारा सुसमाचार तिरस्कृत किया गया है तो उसने यशायाह 6:9 और 10 के विषय बताया जहाँ भविष्यद्वक्ता को उन लोगों को संदेश देने को कहा गया था जिनके हृदय ढीले, कान बहरे और आँखें बंधी हो गई थीं। फिर से एक बार प्रेरित को उन्हें सुसमाचार सुनाने के विषय दुख हुआ जो उसे सुनना नहीं चाहते थे। फिर पौलुस रोम में पूरे दो वर्ष रहा। वह किराए के घर में रहा और अतिथियों को सुसमाचार सुनाता रहा। इसी दौरान उसने वह लिखा जिन्हें हम बंदीगृह की पत्रियाँ कहते हैं (इफिसियों, फिलिप्पियों, कुलुस्सियों और फिलमोन)। उसे लोगों का सत्कार करने और उन्हें सुसमाचार सुनाने की काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी। किसी ने भी उसकी सेवकाई में बाधा नहीं डाला। सामान्यतः ऐसा विश्वास किया जाता है कि रोम में उसके दो वर्षों के बाद, उसका मामला नेरो के समक्ष आया और उसे रिहा कर दिया गया। फिर वह निकल पड़ा जिसे पौलुस की चैथी मिश्नरी यात्रा कहलाती है। संभवतः वह कुलुस्से, इफिसुस, मकिदुनिया, क्रेते, कुरिन्थ, मिलेतुस, नीकुपुलिस, स्पेन और त्रोआस गया। यह यात्रा करीब चार वर्षों तक चली रही होगी। इसी समय के दौरान उसने तीमुथियुस और तीतुस को पत्र लिखा था जिन्हें पासबानों को पत्री कहा जाता है (1 तीमुथियुस, तीतुस और 2 तीमुथियुस) पौलुस अंतिम बार या तो निकुपुलिस या त्रोआस में सन 66 में बंदी बनाया गया था और उसे रोम लाया गया था। इस बार उसे जंजीर से जकड़कर घोर यातनामय रीति से रखा गया था, एक सम्माननीय नागरिक की तरह नहीं परंतु उसे एक जघन्य अपराधी के समान सांकलों से बांधा गया था। उसे उसके अधिकांश मित्रों ने भी त्याग दिया था और वह जान गया था कि उसकी मृत्यु का समय निकट है। पौलुस का मुकदमा नेरों के दरबार में चला था और उसे मृत्युदंड दिया गया था। रोमी नागरिक होने के कारण उसे क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया था। परंपरा बताती है कि उसकी शहादत सन 67 में हुई थी। “क्योंकि अब मैं अर्ध के समान उंडेला जाता हूँ, और मेरे कूच का समय आ पहुँचा है। मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैंने अपनी छोड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं वरन उन सबको भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।”

बाइबल अध्यन

प्रेरितों के काम अध्याय 28:(16-30) 16 जब हम रोम में पहुंचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उस की रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई॥ 17 तीन दिन के बाद उस ने यहूदियों के बड़े लोगों को बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उन से कहा; हे भाइयों, मैं ने अपने लोगों के या बाप दादों के व्यवहारों के विरोध में कुछ भी नहीं किया, तौभी बन्धुआ होकर यरूशलेम से रोमियों के हाथ सौंपा गया। 18 उन्होंने मुझे जांच कर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न था। 19 परन्तु जब यहूदी इस के विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दोहाई देनी पड़ी: न यह कि मुझे अपने लागों पर कोई दोष लगाना था। 20 इसलिये मैं ने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूं और बातचीत करूं; क्योंकि इस्त्राएल की आशा के लिये मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूं। 21 उन्होंने उस से कहा; न हम ने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियां पाईं, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा। 22 परन्तु तेरा विचार क्या है वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें कहते हैं॥ 23 तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत लोग उसके यहां इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भाविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा समझाकर भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा। 24 तब कितनों ने उन बातों को मान लिया, और कितनों ने प्रतीति न की। 25 जब आपस में एक मत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, कि पवित्र आत्मा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे बाप दादों से अच्छा कहा, कि जाकर इन लोगों से कह। 26 कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे, और देखते तो रहोगे, परन्तु न बुझोगे। 27 क्योंकि इन लोगों का मन मोटा, और उन के कान भारी हो गए, और उन्होंने अपनी आंखें बन्द की हैं, ऐसा न हो कि वे कभी आंखों से देखें, और कानों से सुनें, और मन से समझें और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं। 28 सो तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे। 29 जब उस ने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहां से चले गए॥

2 तीमुथियुस अध्याय 4:(7-8) 7 मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। 8 भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं॥