पाठ 28 : यात्रा और जहाज का टूटना

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सारांश

पौलुस की यात्रा और जहाज का टूटना जहाज पलिस्तीन के किनारे से उत्तर की ओर चला और सिदोन पहुँचा। यूलियस सूबेदार ने पौलुस को किनारे जाकर उसके मित्रों से मिलने की अनुमति दिया। सिदोन से वे साइप्रस गए और द्वीप के किनारे से तूफानों से बचते हुए निकले। विपरीत तूफानी हवाओं के बावजूद जहाज एशिया मायनर के दक्षिण तट से निकला और फिर किलिकिया और पंफूलिया से होकर मूरा पहुँचा जो लूसिया का बंदरगाह है। वहाँ सूबेदार ने कैदियों को दूसरे जहाज में बिठाया, क्योंकि पहला जहाज इटली नहीं ले जा सकता था। दूसरा जहाज सिकंदरिया से था। उसमें 276 लोग, चालक दल और यात्री दोनों तथा गेहूँ था। सिकंदरिया से वह जहाज उत्तर की ओर भूमध्य सागर से होते हुए मूरा की तरफ चला था और अब पश्चिम में इटली की ओर जा रहा था। विपरीत हवाओं के कारण प्रवास कई दिनों तक धीमा रहा। बड़ी मुश्किल से मल्लाहों ने जहाज को कनिदुस के सामने लाया, एक बंदरगाह जो एशिया मायनर के दक्षिणपूर्व में स्थित है। चूंकि हवाएँ उनके विरुद्ध थी, वे दक्षिण की ओर क्रेते टापू के पूर्व से निकले। सलमोन के सामने से होकर वे पश्चिम की ओर मुड़ गए और जब तक वे लसिया के शुभलंगरबारी न पहुँच गए।यहएक बंदरगाह है जो क्रेते के दक्षिण-मध्य तट पर लसिया शहर के पास है। अबतक विपरीत स्थितियों के कारण काफी समय बर्बाद हो चुका था। शीतकाल के आगमन के कारण आगे की यात्रा खतरनाक हो चुकी थी। पौलुस ने मल्लाहों को चिता दिया था कि आगे की यात्रा असुरक्षित थी और यदि यात्रा जारी रखी गई तो सामान और जहाज के नुकसान का खतरा है, और जहाज में सवार कुछ लोगों के जीवन को भी खतरा है। फिर भी जहाज का मालिक आगे बढ़ना चाहता था। सूबेदार और कई अन्य लोगों ने भी उनसे सहमति जताया। उन्होंने समझा कि बंदरगाह जाड़ा काटने के लिये फिनिक्स के समान उचित नहीं था। फीनिक्स शुभलंगरबारी ते 40 कि.मी दूर था। जब दक्षिणी हवाएँ धीरे धीरे बहने लगी तो मल्लाहों ने सोचा कि वे फिनिक्स की यात्रा कर सकेंगे। उन्होंने लंगर उठा लिये और किनारे-किनारे पश्चिम की ओर जाने लगे। फिर यूरकुलीन नामक आंधी जमीन की ओर से उठी। जहाज को अपने मन के अनुसार न चला सकने के कारण उन्होंने उसे हवा की दिशा में बहने दिया। बहते हुए वे दक्षिण-पश्चिम में एक छोटे द्वीप कौदा में पहुँचे। जो क्रेते से 20 से 30 मील दूर है। जब वे द्वीप के सुरक्षित क्षेत्र में पहुँचे तो उन्हें जहाज की डोंगी को नियंत्रित करने में कठिनाई हुई। एक दिन आँधी के थपेड़ों के भरोसे रहने के बाद उन्होंने जहाज के सामानों को फेंकना शुरू किया। तीसरे दिन उन्होंने जहाज से वह सब कुछ फेंक दिया जो अनावश्यक था। चूँकि जहाज में पानी घुस रहा था, जहाज को डूबने से बचाने के लिये उनका वजन कम करना जरूरी था। कई दिनों तक असहाय रीति से हिलकोरे खाते रहे। अंततः बचने की उम्मीद खो दी गई। लोगों ने कई दिनों से खाना नहीं खाया था। निसंदेह वे जहाज की रक्षा करने और पानी फेंकने में व्यस्त थे। शायद बीमारी डर और निराशा ने उनकी भूख चुरा ली थी। वहाँ भोजन की कमी नहीं थी, परंतु खाने की इच्छा भी नहीं थी। फिर पौलुस आशा के संदेश के साथ उनके मध्य खड़ा हुआ। सबसे पहले उसने नम्रता से उन्हें बताया कि उन्हें क्रेते से नहीं आना चाहिये था। फिर उसने उन्हें ढांढस बंधाया कि यदि जहाज का नुकसान हो भी जाए तौभी प्राण हानि नहीं होगी। उसे कैसे पता चला? उस रात प्रभु का एक दूत उसे दर्शन दिया था और उसे यकीन दिलाया था कि रोम में कैसर के सामने खड़ा होना पड़ेगा। परमेश्वर ने बताया कि प्रेरित के साथ जितने लोग यात्रा कर रहे थे वे सब सुरक्षित रहेंगे। इसलिये वे आनंद करें। पौलुस ने विश्वास किया कि यदि किसी द्वीप पर जहाज टूट भी जाए तौभी सब कुछ ठीक ही रहेगा। जब से उन्होंने शुभलंगरवारी छोड़ा था, 14 दिन बीत चुके थे। अब वे असहाय रीति से यूनान,इटली और अफ्रीका के बीच के अद्रिया समुद्र मे भटक रहे थे।मध्य रात्रि के समय मल्लाहों को आभास हुआ कि वे किसी भूमि के पास पहुँच रहे थे। जहाज के जमीन से टकराव को बचाने के लिये उन्होंने चार लंगर डाले और दिन निकलने की राह देखने लगे। अपने जीवन के विषय डर के कारण कुछ मल्लाहों ने छोटी नावों से किनारे जाने की योजना बनाया। दिन निकलने के थोड़ा पहले ही पौलुस ने लोगों को कुछ खाने को कहा, और याद दिलाया कि उन्होंने दो सप्ताहों से कुछ नहीं खाया था। भोजन करने का समय आ गया था, उनकी भलाई इसी में थी। प्रेरित ने उन्हें यकीन दिलाया कि उनका एक बाल भी बाँका न होगा। फिर उसने रोटी लेकर सबके सामने धन्यवाद देते हुए उसे खाकर उनके सामने आदर्श रखा। इस बात ने दूसरों को भी प्रोत्साहित किया और उन्होंने भी भोजन लिया। भोजन के पश्चात् उन्होने गेहूँ को समुद्र में फेंकर जहाज का वजन कम किया। जमीन नजदीक ही थी परंतु वे उसे पहचान नहीं पाए। निर्णय लिया गया कि जहाज को जमीन के पास ले जाया जाए। उन्होंने लंगर समुद्र में डाल दिए। सैनिकों का विचार कैदियों को मार डालने का था ताकि वे भाग न जाएँ, परंतु सूबेदार पौलुस को बचाना चाहता था। इसलिये उसने आज्ञा दिया कि जो तैरकर किनारे जा सकते थे चले जाएँ। बाकी लोगों को लकड़ी के तख्ते पर बैठकर बढ़ने को कहा। इस प्रकार चालक दल का हर सदस्य और यात्री सभी सुरक्षित रीति से जमीन पर पहुँच गए। जैसे ही यात्री और चालक दल किनारे पहुँचे उन्होंने पाया कि वे माल्टाद्वीप पर थे। उस टापू के रहवासियों ने जहाज को टूटते देखा था और पीड़ितों को तैरकर किनारे आता देखा था। उन्होंने दयालुता के साथ उनके लिये आग जलाया। जब पौलुस आग जलाने के लिये लकडियाँ इकट्ठी कर रहा था उसे एक जहरीलें साँप न डस लिया। उसे काटने के लिये साँप ने उसके हाथ को लपेट लिया था। उसने अपना हाथ आग पर झटक दिया। पहले तो द्वीप के लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि प्रेरित अवश्य ही कोई खूनी होगा। यद्यपि वह जहाज के टूटने से बच गया था, फिर भी न्याय उसे छोड़ नहीं रहा था, और अब वह जल्द ही जहर के कारण सूज जाएगा और गिरकर मर जाएगा। लेकिन जब पौलुस पर सर्प दंश का कोई बुरा प्रभाव नहीं दिखा तो उन्होंने अपने विचार बदले और निर्णय लिया कि जरूर यह कोई देवता था। उस भूमि के पास ही वहाँ के एक प्रसिद्ध व्यक्ति की जमीन थी जिसका नाम पुबलियुस था जिसने उनका स्वागत किया और तीन दिनों तक उनकी पहुनाई किया। ऐसा हुआ कि पुबलिथुस का पिता बिस्तर पर था, और उसे बार-बार ज्वर आता था और उसे आँव लहू की तकलीफ थी पौलुस उसे देखने गया और जब उसने उसके लिये प्रार्थना किया उस पर हाथ रखा तो वह वृद्ध व्यक्ति चंगा हो गया। इस घटना के बाद उस टापू के अन्य लोगों ने भी जो बीमार थे आकर चंगाई प्राप्त किया। शीत के तीन माह के बाद, यात्रा शुरू की गई। इसलिये कैदियों के साथ सूबेदार सिकंदरिया के जहाज पर सवार हुआ जो शीतकाल में वहीं रूका था। माल्टा से वे सिसली की राजधानी सूरकूसा आए। वहाँ पर जहाज 3 दिनों तक रूका रहा और रेगियुम को चल पड़ा। एक दिन के बाद वहाँ सहायक दक्षिणी हवा चली जिससे दल को पुतियुली पहुँचने में सहायता मिली जो नेपल्स की खाडी के उत्तर में है। यहाँ पौलुस को कुछ मसीही भाई मिले जिनके साथ उसे 7 दिनों तक संगति करने की अनुमति दी गई। जब रोम के विश्वासियों ने पुतियाली में उनके आने की खबर सुना तो अप्पियुस के चैक और तीन सराए तक उससे भेंट करने चले आए। जब पौलुस ने उन्हें देखा उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया और ढाढ़स बांधा।

बाइबल अध्यन

प्रेरितों के काम अध्याय 27 1 जब यह ठहराया गया, कि हम जहाज पर इतालिया को जाएं, तो उन्होंने पौलुस और कितने और बन्धुओं को भी यूलियुस नाम औगुस्तुस की पलटन के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। 2 और अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हम ने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नाम थिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साथ था। 3 दूसरे दिन हम ने सैदा में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहां जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। 4 वहां से जहाज खोलकर हवा विरूद्ध होने के कारण हम कुप्रुस की आड़ में होकर चले। 5 और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। 6 वहां सूबेदार को सिकन्दिरया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उस ने हमें उस पर चढ़ा दिया। 7 और जब हम बहुत दिनों तक धीरे धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के साम्हने पहुंचे, तो इसलिये कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, सलमोने के साम्हने से होकर क्रेते की आड़ में चले। 8 और उसके किनारे किनारे कठिनता से चलकर शुभ लंगरबारी नाम एक जगह पहुंचे, जहां से लसया नगर निकट था॥ 9 जब बहुत दिन बीत गए, और जल यात्रा में जोखिम इसलिये होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया। 10 कि हे सज्ज़नो मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि न केवल माल और जहाज की वरन हमारे प्राणों की भी होने वाली है। 11 परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातों से मांझी और जहाज के स्वामी की बढ़कर मानी। 12 और वह बन्दर स्थान जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिये बहुतों का विचार हुआ, कि वहां से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके, तो फीनिक्स में पहुंचकर जाड़ा काटें: यह तो क्रेते का एक बन्दर स्थान है जो दक्खिन-पच्छिम और उत्तर-पच्छिम की ओर खुलता है। 13 जब कुछ कुछ दक्खिनी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा मतलब पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे। 14 परन्तु थोड़ी देर में वहां से एक बड़ी आंधी उठी, जो यूरकुलीन कहलाती है। 15 जब यह जहाज पर लगी, तब वह हवा के साम्हने ठहर न सका, सो हम ने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। 16 तब कौदा नाम एक छोटे से टापू की आड़ में बहते बहते हम कठिनता से डोंगी को वश मे कर सके। 17 मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बान्धा, और सुरितस के चोरबालू पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर, बहते हुए चले गए। 18 और जब हम ने आंधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे। और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का सामान फेंक दिया। 19 और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का सामान फेंक दिया। 20 और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आंधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। 21 जब वे बहुत उपवास कर चुके, तो पौलुस ने उन के बीच में खड़ा होकर कहा; हे लोगो, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत और हानि उठाते। 22 परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूं, कि ढाढ़स बान्धो; क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, केवल जहाज की। 23 क्योंकि परमेश्वर जिस का मैं हूं, और जिस की सेवा करता हूं, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा। 24 हे पौलुस, मत डर; तुझे कैसर के साम्हने खड़ा होना अवश्य है: और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है। 25 इसलिये, हे सज्ज़नों ढाढ़स बान्धो; क्योंकि मैं परमेश्वर की प्रतीति करता हूं, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा। 26 परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा॥ 27 जब चौदहवीं रात हुई, और हम अद्रिया समुद्र में टकराते फिरते थे, तो आधी रात के निकट मल्लाहों ने अटकल से जाना, कि हम किसी देश के निकट पहुंच रहे हैं। 28 और थाह लेकर उन्होंने बीस पुरसा गहरा पाया और थोड़ा आगे बढ़कर फिर थाह ली, तो पन्द्रह पुरसा पाया। 29 तब पत्थरीली जगहों पर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज की पिछाड़ी चार लंगर डाले, और भोर का होना मनाते रहे। 30 परन्तु जब मल्लाह जहाज पर से भागना चाहते थे, और गलही से लंगर डालने के बहाने डोंगी समुद्र में उतार दी। 31 तो पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियों से कहा; यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम नहीं बच सकते। 32 तब सिपाहियों ने रस्से काटकर डोंगी गिरा दी। 33 जब भोर होने पर थी, तो पौलुस ने यह कहके, सब को भोजन करने को समझाया, कि आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया। 34 इसलिये तुम्हें समझाता हूं; कि कुछ खा लो, जिस से तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर पर एक बाल भी न गिरेगा। 35 और यह कहकर उस ने रोटी लेकर सब के साम्हने परमेश्वर का धन्यवाद किया; और तोड़कर खाने लगा। 36 तब वे सब भी ढाढ़स बान्धकर भोजन करने लगे। 37 हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे। 38 जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेंहू को समुद्र में फेंक कर जहाज हल्का करने लगे। 39 जब बिहान हुआ, तो उन्होंने उस देश को नहीं पहिचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिस का चौरस किनारा था, और विचार किया, कि यदि हो सके, तो इसी पर जहाज को टिकाएं। 40 तब उन्होंने लंगरों को खोलकर समुद्र में छोड़ दिया और उसी समय पतवारों के बन्धन खोल दिए, और हवा के साम्हने अगला पाल चढ़ाकर किनारे की ओर चले। 41 परन्तु दो समुद्र के संगम की जगह पड़कर उन्होंने जहाज को टिकाया, और गलही तो धक्का खाकर गड़ गई, और टल न सकी; परन्तु पिछाड़ी लहरों के बल से टूटने लगी। 42 तब सिपाहियों का यह विचार हुआ, कि बन्धुओं को मार डालें; ऐसा न हो, कि कोई तैर के निकल भागे। 43 परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने को इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका, और यह कहा, कि जो तैर सकते हैं, पहिले कूदकर किनारे पर निकल जाएं। 44 और बाकी कोई पटरों पर, और कोई जहाज की और वस्तुओं के सहारे निकल जाएं, और इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले॥

प्रेरितों के काम अध्याय 28 1 जब हम बच निकले, तो जाना कि यह टापू मिलिते कहलाता है। 2 और उन जंगली लोगों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा था और जाड़े के कारण उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया। 3 जब पौलुस ने लकिडय़ों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक सांप आंच पाकर निकला और उसके हाथ से लिपट गया। 4 जब उन जंगलियों ने सांप को उसके हाथ में लटके हुए देखा, तो आपस में कहा; सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है, कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तौभी न्याय ने जीवित रहने न दिया। 5 तब उस ने सांप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुंची। 6 परन्तु वे बाट जोहते थे, कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिर के मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे, और देखा, कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा; यह तो कोई देवता है॥ 7 उस जगह के आसपास पुबलियुस नाम उस टापू के प्रधान की भूमि थी: उस ने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्र भाव से पहुनाई की। 8 पुबलियुस का पिता ज्वर और आंव लोहू से रोगी पड़ा था: सो पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया। 9 जब ऐसा हुआ, तो उस टापू के बाकी बीमार आए, और चंगे किए गए। 10 और उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमें अवश्य था, जहाज पर रख दिया॥ 11 तीन महीने के बाद हम सिकन्दिरया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस टापू में जाड़े भर रहा था; और जिस का चिन्ह दियुसकूरी था। 12 सुरकूसा में लंगर डाल करके हम तीन दिन टिके रहे। 13 वहां से हम घूमकर रेगियुम में आए: और एक दिन के बाद दक्खिनी हवा चली तब हम दुसरे दिन पुतियुली में आए। 14 वहां हम को भाई मिले, और उन के कहने से हम उन के यहां सात दिन तक रहे; और इस रीति से रोम को चले। 15 वहां से भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराए तक हमारी भेंट करने को निकल आए जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बान्धा॥ 16 जब हम रोम में पहुंचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उस की रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई॥ 17 तीन दिन के बाद उस ने यहूदियों के बड़े लोगों को बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उन से कहा; हे भाइयों, मैं ने अपने लोगों के या बाप दादों के व्यवहारों के विरोध में कुछ भी नहीं किया, तौभी बन्धुआ होकर यरूशलेम से रोमियों के हाथ सौंपा गया। 18 उन्होंने मुझे जांच कर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न था। 19 परन्तु जब यहूदी इस के विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दोहाई देनी पड़ी: न यह कि मुझे अपने लागों पर कोई दोष लगाना था। 20 इसलिये मैं ने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूं और बातचीत करूं; क्योंकि इस्त्राएल की आशा के लिये मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूं। 21 उन्होंने उस से कहा; न हम ने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियां पाईं, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा। 22 परन्तु तेरा विचार क्या है वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें कहते हैं॥ 23 तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत लोग उसके यहां इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भाविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा समझाकर भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा। 24 तब कितनों ने उन बातों को मान लिया, और कितनों ने प्रतीति न की। 25 जब आपस में एक मत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, कि पवित्र आत्मा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे बाप दादों से अच्छा कहा, कि जाकर इन लोगों से कह। 26 कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे, और देखते तो रहोगे, परन्तु न बुझोगे। 27 क्योंकि इन लोगों का मन मोटा, और उन के कान भारी हो गए, और उन्होंने अपनी आंखें बन्द की हैं, ऐसा न हो कि वे कभी आंखों से देखें, और कानों से सुनें, और मन से समझें और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं। 28 सो तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे। 29 जब उस ने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहां से चले गए॥ 30 और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा। 31 और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा॥