पाठ 27 : कैसरिया में पौलुस का बंदी बनाया जाना
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सारांश
कैसरिया में पौलुस का बंदी बनाया जाना शुरू में पौलुस का यरूशलेम आना सराहा गया। अगले दिन याकूब और अन्य प्राचीनों के साथ सभा आयोजित की गई। पौलुस ने विस्तारपूर्वक बताया कि उसकी सेवकाई के द्वारा परमेश्वर ने अन्यजातियों के मध्य क्या किया था। जब यरूशलेम की कलीसिया के अगुवों ने इसके विषय सुना तो उन्होंने प्रभु की स्तुति किया। जब पौलुस की रिपोर्ट पर आनंद मनाया जा रहा था, विश्वासी यहूदियों में जो व्यवस्था के प्रति जोशीले थे, उन्हें पौलुस के प्रभाव के विषय संदेह था। पौलुस के विषय एक झूठी रिपोर्ट प्रचलित थी। यह सच है कि पौलुस ने अन्यजातियों को सिखाया था कि यदि वे उनके पुत्रों का खतना न भी करें तो यह बात महत्वपूर्ण नहीं थीं और उसने उन्हें यहूदी प्रथाएँ नहीं सिखाया। लेकिन उसने यहूदियों को नहीं सिखाया कि वे खतना न करें या कि वे यहूदी प्रथाओं की उपेक्षा करें। याकूब और प्राचीनों ने पौलुस को सलाह दिया कि वह चार पुरुषों के शुद्धिकरण विधि में सम्मिलित होवे जिन्होंने शपथ खाई थीं और उनके लिये खर्चा दे। यह यहूदी विश्वासियों को शांत करने के लिये था।1 जब करीब सात दिन बीत चुके तब कुछ अविश्वासी यहूदियों ने जो आसिया के थे उसे मंदिर में देख लिया और एक भीड़ को उसके विरुद्ध भड़काने लगे। सारा शहर दुविधा में था। भीड़ ने पौलुस को पकड़कर मंदिर के आहाते से बाहर निकाला। और जब वे उसे मार डालने की तैयारी कर रहे थे, तो रोमी सेना के प्रधान तक यह बात पहुँची कि सारा यरूशलेम दुविधा में था। वह जल्दी जल्दी कुछ सिपाहियों को लेकर आया और पौलुस को उग्र भीड़ से बचाया, उसे दो सांकलों से बांधा और उससे पूछा कि वह कौन था, और उसने क्या किया था। भीड़ के कुछ लोग कह रहे थे और अन्य लोग कुछ और कह रहे थे और जब सेना अधिकारी असली कारण को नहीं समझ सका तो उसने उसे गढ़ में ले जाने को कहा। भीड़ के कारण सिपाहियों द्वारा पौलुस को उपर ले जाया गया। जब पौलुस को गढ़ पर पहुँचाया ही जा रहा था, उसने सूबेदार से कहा, “क्या मैं तुझ से कुछ कह सकता हूँ?” पौलुस को यूनानी बोलते हुए सुनकर सूबेदार चैंक गया। पौलुस ने उसे बताया कि वह तरसुस जो सिलिकिया में है, वहाँ का एक यहूदी है। और वह ऐसे शहर का रहवासी या नागरिक है जो संस्कृति, शिक्षा, और व्यवसाय के लिये प्रसिद्ध है। प्रेरित ने लोगों से बात करने की अनुमति मांगा। और जब उसे अनुमति दी गई, तो पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर, “हाथ हिलाकर लोगों को शांत किया और जब वहाँ शांति स्थापित हो गई तो उसने उनसे इब्री भाषा में बोलना शुरू किया। सबसे पहले उसने उसकी परंपरा, अति आदरणीय गमलिएल के द्वारा उसके प्रशिक्षण, व्यवस्था के पालन के प्रति उसके अनुग्रह और मसीहत को नाश करने के प्रति उसके जुनून के विषय कहा। फिर उसने दमिश्क के मार्ग के अनुभव के विषय कहा। उस वृत्तांत के दौरान उसने बताया कि प्रभु ने उससे क्या करने को कहा था। “और उसने मुझसे कहा, “पौलुस ने आगे कहा” जा क्योंकि मैं तुझे दूर अन्याजातियों के बीच भेजता हूँ” इस समय तक भीड़ ने उसे सुना और फिर उन्होंने चिल्लाकर कहा, “ऐसे व्यक्ति का अंत करो।” यह देखकर पलटन के सरदार ने यह कहकर उसे गढ़ में लाने की आज्ञा दिया कि उसे कोड़े मारकर यह जाना जाएगा कि लोग किस कारण इस तरह उसके विरोध में चिल्ला रहे हैं। जब वे उसके पास ही खड़ा था, कहा, “क्या यह उचित है कि तुम एक रोमी मनुष्य और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए, कोडे़ मारो? जब सूबेदार ने यह सुना तो वह पलटन के सरकार के पास गया और इस विषय कह दिया। सरदार ने आकर उससे पूछा, “मुझे बता क्या तू रोमी है?” पौलुस ने कहा, “हाँ”। सरदार ने कहा, “मैंने रोमी नागरिक होने का पद बहुत रुपये देकर पाया है।” पौलुस ने कहा, परंतु मैं जन्म से रोमी हूँ। यह सुनते ही उन लोगों ने जो उसे जांचने पर थे उसे खोल दिया, और यह जानने के बाद कि वह एक रोमी था, सरदार भी डर गया, क्योंकि उसी ने उसे बेड़ियों से बांधा था। अगले दिन यह निश्चित रूप से जानने के लिये कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगा रहे हैं, उसने उसे छोड़ दिया और प्रधान याजकों और सारी महासभा को इकट्ठा होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया। महासभा के सामने खड़े होकर पौलुस ने कहा कि उसने सारा जीवन सच्चे विवेक से बिताया है। महायाजक हनन्याह ने इसे अपमानजनक समझा और उसने उसके पास खड़े थे उन्हें उसके मुँह पर थप्पड़ मारने को कहा। पौलुस ने उससे कहा, “हे चुना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा। तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरुद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है?” जो लोग पौलुस के पास खड़े थे, उससे कहा, “क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा भला कहता है?” और पौलुस ने कहा, “हे भाइयो, मैं नही जानता था कि यह महायाजक है, क्योंकि लिखा है अपने लोगों के प्रधान को बुरा न कह।” पौलुस हनन्याह को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता था। महासभा से उसका काफी समय से संबंध नहीं था और उस समय महायाजक ने अपनी आधिकारिक पोषाख नहीं पहना होगा। जब स्थिति बिगड़ती गई तो पौलुस ने यह जानकर कि एक भाग सदूकियों और दूसरा भाग फरिसियों का है वह सभा में बोल पड़ा, “हे भाइयो, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ मरे हुओं की आशा और पुनरूत्थान के विषय में मेरा मुकदमा हो रहा है।” इस कथन ने दो समूहों में फूट डाल दिया और सदूकी चिल्लाने लगे कि न पुनरूत्थान है, न स्वर्गदूत, और न आत्मा है, और फरीसी बल देकर कह रहे थे कि यह सब है। वहाँ बड़ा शोरगुल होने लगा। और फरीसियों के कुछ शास्त्री उठे और यह तर्क देने लगे, हम इस मनुष्य में कोई बुराई नहीं पाते। जब भारी मतभेद हो रहा था तब सरदार डर गया कि कहीं वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डाले, पलटन को आज्ञा दी कि उतरकर उसे उनके बीच में से जबरदस्ती निकालें और गढ़ में ले जाएँ। उस रात जब पौलुस बंदीगृह में अकेला पड़ा था, प्रभु उसके पास खड़ा हुआ और कहा, हे पौलुस ढाढ़स बांध, क्योंकि जैसी तूने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी। अगली सुबह, 40 यहूदियों ने पौलुस की हत्या करने का षड़यंत्र किया। वास्तव में उन्होंने शपथ खाई कि जब तक वे पौलुस का मार न डालेंगे, वे कुछ नहीं खाएंगे या पीएंगे। जब षड़यंत्रकारी गुप्त योजना बना रहे थे तब पौलुस की बहन के पुत्र ने इस षड़यंत्र को सुन लिया और गढ़ जाकर पौलुस को इसकी सूचना दिया। पौलुस ने एक सूबेदार को बुलाकर कहा, “इस जवान को पलटन के सरदार के पास ले जा यह उसे कुछ बताना चाहता है।” वह सूबेदार उसे सरदार के पास ले गया। पौलुस के भांजे ने न केवल षडयंत्र का पूरा ब्यौरा दिया परंतु उससे आग्रह भी किया कि वह यहूदियों की मांग के आगे न झुके। जब सरदार ने पूरी बात सुन लिया तो उसने निर्देश देकर उस जवान को लौटा दिया कि वह उससे हुए मुलाकात के विषय किसी से कुछ न कहे। उसने तुरंत ही दो सूबेदारों को बुलाया और सेना के निरीक्ष में प्रेरित को कैसरिया भेज दिया। सुरक्षा प्रबंध 200 सैनिकों, 70 घुड़सवारों और 200 भालाधारियों का था। यात्रा रात के 9 बजे शुरू होनेवाली थी। कैसरिया के हाकिम फेलिक्स के नाम पत्र के साथ पौलुस को अन्य जांच के लिये भेजा गया। काफिला यरूशलेम के पहाड़ी इलाके से होकर रात भर यात्रा करके अंन्तिपत्रिस पहुँचा। वहाँ से आधे सैनिक यरूशलेम को लौट गए,और बाकी आधे सैनिकों ने पौलुस को कैसरिया के मार्ग पर ले चले। जब वे कैसरिया पहुँचे तो उन्होने फेलिक्स को पत्र दिया और पौलुस को उसके सामने प्रस्तुत किया। पत्र पढ़ने के बाद फेलिक्स ने पौलुस से पूछा कि वह कहाँ का रहनेवाला है। “किलिकिया” पौलुस ने कहा। “जब तेरे मुद्दई भी आएंगे, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूंगा।” हाकिम ने उसे हेरोदेस के किले में पहरे में रखने की आज्ञा दिया। पौलुस द्वारा कैसरिया के लिये यरूशलेम छोड़ने के पाँच दिन बाद महायाजक भी हनन्याह महासभा के कुछ सदस्यों के साथ वहाँ पहुँचा। उन्होंने तिरतुल्लुस नामक एक रोमी वकील को नियुक्त किया कि वह फेलिक्स के सामने खड़े रहकर पौलुस के विरुद्ध आरोप लगाए। जब फेलिक्स ने मामले को सुना तो वह दुविधा में पड़ गया। उसके सामने खड़ा कैदी स्पष्टतः रोमी कानून के किसी भी उल्लंघन से निर्दोष था। फिर भी यदि वह पौलुस को छोड़ देता तो यहूदियों का क्रोध उस पर भड़क उठा होता। इसलिये उसने कहा कि वह लूसियात सरदार के कैसरिया आने तक रूकना चाहता है। वास्तव में यह कारवाई में विलंब करने का तरीका था। फेलिक्स ने कहा कि यद्यपि पौलुस को बंदी रखा जाए, परंतु उसे उचित स्वतंत्रता दी जाए और उसे उसके मित्रों से भी मिलने दिया जाए। बाद में फेलिक्स और उसकी पत्नी द्रुसिल्ला ने प्रेरित के साथ निजी मुलाकात का प्रबंध किया ताकि मसीही विश्वास के विषय ज्यादा जान सके। लेकिन जब पौलुस ने धार्मिकता, आत्मसंयम और आनेवाले न्याय के विषय में कहा तो फेलिक्स डर गया। क्योंकि वह डर गया था, उसने उद्धारकर्ता पर विश्वास नहीं किया। उसने पौलुस से कहा, “अभी तो जा; अवसर पाकर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।” दुर्भाग्य से उचित समय कभी नहीं आया। फिर भी यह अंतिम मुलाकात नहीं थी। वास्तव में, फेलिक्स ने आशा किया था कि पौलुस के कुछ मित्र उसे रिश्वत के रूप में धन देंगे ताकि वह उसे छोड़ दे। दो वर्षों के बाद फेस्तुस, फेलिक्स के स्थान पर आया। यहूदियों की सहायता करने के इरादे से फेलिक्स ने पौलुस को कैसरिया में बंदी बना कर रख दिया। तीन दिनों के बाद फेस्तुस कैसरिया से यरूशलेम गया। यद्यपि पौलुस को कैसरिया में बंदी बनाकर रखे दो वर्ष भी नहीं हुए थे, फिर भी यहूदी उसे भूले नहीं थे। महायाजक और यहूदी अगुवे हाकिम से मिले और पौलुस के विरुद्ध आरोप प्रस्तुत करके उसकी जाँच करने हेतु उसे महासभा के सामने यरूशलेम लाने की मांग करने लगे। परंतु उनकी वास्तविक योजना उसे मार्ग में ही रोककर उसे मार डालने की थी। जाहिर है कि फेस्तुस को उनका यह आग्रह अनुचित लगा इसलिये उसने कैसरिया में ही मुकद्दमें को पुनः शुरूवात करने की प्रतिज्ञा किया। जब पौलुस ने उस पर लगाए गए आरोपों का इन्कार कर दिया तो फेस्तुस ने उससे पूछा कि क्या वह अन्य जाँच के लिये यरूशलेम जाना चाहता है? उसे ऐसा लगा कि इस बात से यहूदी संतुष्ट हो जाएँगे। लेकिन पौलुस का जवाब था, “मैं कैसर के न्याय आसान के सामने खड़ा हूँ, मेरे मुकदमें का यही फैसला होना चाहिये।” रोमी नागरिक होने के नाते, पौलुस को अधिकार था कि वह कैसर द्वारा ही न्याय की मांग करे। इस बात ने फेस्तुस को उसकी योजना पर पुनः विचार करने पर बाध्य किया। उसने उसके मंत्रियों की सभा में बातें करके उत्तर दिया, “तूने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के ही पास जाएगा।” अब जरूरत थी कि फेस्तुस सम्राट को मामले की रिपोर्ट के साथ आरोपी पौलुस को भी भेजे। चूंकि वह यहूदी रीति-रिवाजों से सुपरिचित नहीं था, वह समझ नहीं पाया कि क्या करे। उसी समय राजा हेरोदेस अग्रिप्पा-2 और उसकी बहन बिरनीके फेस्तुस की नई नियुक्ति के अवसर पर बधाई देने कैसरिया आए थे। अग्रिप्पा, हेरोदेस अग्रिप्पा-1 का पुत्र था जिसने याकूब की हत्या किया था और पतरस को बंदीगृह में डाला था। फेस्तुस ने अग्रिप्पा को पौलुस उसके मुकद्दमें और कैसर से उसके आग्रह के विषय बताया। अगले दिन एक औपचारिक सुनवाई का इंतजाम किया गया। अग्रिप्पा और बिरनीके बड़े ठाठ-बाट से आए। उनके साथ सरदार और शहर के प्रसिद्ध लोग भी थे। फिर पौलुस को लाया गया। अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुम्हें अपने विषय में बोलने की आज्ञा है।” तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा। उसकी बात पूरी करने के पहले ही अग्रिप्पा ने जोर से कहा, “हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।” पौलुस ने कहा, “हे महामहिम फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परंतु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ। राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है और मुझे विश्वास है कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि यह घटना किसी कोने में नहीं हुई। हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ कि तू विश्वास करता है।” अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है।” पौलुस ने कहा, परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है कि क्या थोडे़ में क्या बहुत से, केवल तू ही नहीं परंतु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं; इन बंधनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ। यह दृष्य, फेस्तुस, अग्रिप्पा, और बिरनीके द्वारा पौलुस के विषय आपसी चर्चा में समाप्त हुआ। “यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता जो मृत्युदंड या बंदीगृह में डाले जाने के योग्य हो” उन्होंने एक दूसरे से कहा। तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि यह मनुष्य कैसर की दोहाई न करता, तो छूट सकता था।” फेस्तुस ने पौलुस को यूलियस नामक सूबेदार के हाथों सौंप दिया औगस्तुस के लिये काम करता था, जिसके अधिकारी और लोग यात्रा करके सारे राज्य में सुरक्षा और सामान लाने ले जाने का कार्य करते थे। रोमी नागरिक होने के कारण पौलुस को अनुमति दी गई कि वह अपने साथ दो दासों को ले जा सके; अरिस्तर्खुस और वैद्य लूका। यहाँ से प्रेरित की कैसरिया से माल्टा तक की रोमांचक यात्रा शुरू हुई जिसके विषय हम अगले पाठ में पढेंगे।
बाइबल अध्यन
प्रेरितों के काम अध्याय 22 1 हे भाइयों, और पितरो, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे साम्हने कहता हूं॥ 2 वे यह सुनकर कि वह हम से इब्रानी भाषा में बोलता है, और भी चुप रहे। तब उस ने कहा; 3 मैं तो यहूदी मनुष्य हूं, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पांवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बाप दादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो। 4 और मैं ने पुरूष और स्त्री दोनों को बान्ध बान्धकर, और बन्दीगृह में डाल डालकर, इस पंथ को यहां तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला। 5 इस बात के लिये महायाजक और सब पुरिनये गवाह हैं; कि उन में से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियां लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहां हों उन्हें भी दण्ड दिलाने के लिये बान्धकर यरूशलेम में लाऊं। 6 जब मैं चलते चलते दमिश्क के निकट पहुंचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी। 7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है? 8 उस ने मुझ से कहा; मैं यीशु नासरी हूं, जिस तू सताता है। 9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझ से बोलता था उसका शब्द न सुना। 10 तब मैने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ने मुझ से कहा; उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा। 11 जब उस ज्योति के तेज के मारे मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया। 12 और हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहां के रहने वाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया। 13 और खड़ा होकर मुझ से कहा; हे भाई शाऊल फिर देखने लग: उसी घड़ी मेरे नेत्र खुल गए और मैं ने उसे देखा। 14 तब उस ने कहा; हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने तुझे इसलिये ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने। 15 क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्यों के साम्हने उन बातों का गवाह होगा, जो तू ने देखी और सुनी हैं। 16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल। 17 जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया। 18 और उस ने देखा कि मुझ से कहता है; जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा: क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे। 19 मैं ने कहा; हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करने वालों को बन्दीगृह में डालता और जगह जगह आराधनालय में पिटवाता था। 20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लोहू बहाया जा रहा था तब मैं भी वहां खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके घातकों के कपड़ों की रखवाली करता था। 21 और उस ने मुझ से कहा, चला जा: क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियों के पास दूर दूर भेजूंगा॥ 22 वे इस बात तक उस की सुनते रहे; तब ऊंचे शब्द से चिल्लाए, कि ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहता उचित नहीं। 23 जब वे चिल्लाते और कपड़े फेंकते और आकाश में धूल उड़ाते थे; 24 तो पलटन के सूबेदार ने कहा; कि इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मार कर जांचो, कि मैं जानूं कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं। 25 जब उन्होंने उसे तसमों से बान्धा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो पास खड़ा था कहा, क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो? 26 सूबेदार ने यह सुनकर पलटन के सरदार के पास जाकर कहा; तू यह क्या करता है? यह तो रोमी है। 27 तब पलटन के सरदार ने उसके पास आकर कहा; मुझे बता, क्या तू रोमी है? उस ने कहा, हां। 28 यह सुनकर पलटन के सरदार ने कहा; कि मैं ने रोमी होने का पद बहुत रूपये देकर पाया है: पौलुस ने कहा, मैं तो जन्म से रोमी हूं। 29 तब जो लोग उसे जांचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और पलटन का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और मैं ने उसे बान्धा है, डर गया॥ 30 दूसरे दिन वह ठीक ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगाते हैं, उसके बन्धन खोल दिए; और महायाजकों और सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उन के साम्हने खड़ा कर दिया॥
प्रेरितों के काम अध्याय 23 अध्याय 23 1 पौलुस ने महासभा की ओर टकटकी लगाकर देखा, और कहा, हे भाइयों, मैं ने आज तक परमेश्वर के लिये बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया। 2 हनन्याह महायाजक ने, उन को जो उसके पास खड़े थे, उसके मूंह पर थप्पड़ मारने की आज्ञा दी। 3 तब पौलुस ने उस से कहा; हे चूना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा: तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरूद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है? 4 जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा कहता है? 5 पौलुस ने कहा; हे भाइयों, मैं नहीं जानता था, कि यह महायाजक है; क्योंकि लिखा है, कि अपने लोगों के प्रधान को बुरा न कह। 6 तब पौलुस ने यह जानकर, कि कितने सदूकी और कितने फरीसी हैं, सभा में पुकारकर कहा, हे भाइयों, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूं, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है। 7 जब उस ने यह बात कही तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा; और सभा में फूट पड़ गई। 8 क्योंकि सदूकी तो यह कहते हैं, कि न पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा है; परन्तु फरीसी दोनों को मानते हैं। 9 तब बड़ा हल्ला मचा और कितने शास्त्री जो फरीसियों के दल के थे, उठकर यों कह कर झगड़ने लगे, कि हम इस मनुष्य में कुछ बुराई नहीं पाते; और यदि कोई आत्मा या स्वर्गदूत उस से बोला है तो फिर क्या? 10 जब बहुत झगड़ा हुआ, तो पलटन के सरदार ने इस डर से कि वे पौलुस के टुकड़े टुकड़े न कर डालें पलटन को आज्ञा दी, कि उतरकर उस को उन के बीच में से बरबस निकालो, और गढ़ में ले आओ। 11 उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा; हे पौलुस, ढ़ाढ़स बान्ध; क्योंकि जैसी तू ने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी॥ 12 जब दिन हुआ, तो यहूदियों ने एका किया, और शपथ खाई कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक खांए या पीएं तो हम पर धिक्कार। 13 जिन्हों ने आपस में यह शपथ खाई थी, वे चालीस जनों के ऊपर थे। 14 उन्होंने महायाजकों और पुरनियों के पास आकर कहा, हम ने यह ठाना है; कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ चखें भी, तो हम पर धिक्कार पर है। 15 इसलिये अब महासभा समेत पलटन के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक जांच करना चाहते हो, और हम उसके पहुंचने से पहिले ही उसे मार डालने के लिये तैयार रहेंगे। 16 और पौलुस के भांजे न सुना, कि वे उस की घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया। 17 पौलुस ने सूबेदारों में से एक को अपने पास बुलाकर कहा; इस जवान को पलटन के सरदार के पास ले जाओ, यह उस से कुछ कहना चाहता है। 18 सो उस ने उस को पलटन के सरदार के पास ले जाकर कहा; पौलुस बन्धुए ने मुझे बुलाकर बिनती की, कि यह जवान पलटन के सरदार से कुछ कहना चाहता है; उसे उसके पास ले जा। 19 पलटन के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और अलग ले जाकर पूछा; मुझ से क्या कहना चाहता है? 20 उस ने कहा; यहूदियों ने एका किया है, कि तुझ से बिनती करें, कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उस की जांच करना चाहता है। 21 परन्तु उन की मत मानना, क्योंकि उन में से चालीस के ऊपर मनुष्य उस की घात में हैं, जिन्हों ने यह ठान लिया है, कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक खाएं, पीएं, तो हम पर धिक्कार; और अभी वे तैयार हैं और तेरे वचन की आस देख रहे हैं। 22 तब पलटन के सरदार ने जवान को यह आज्ञा देकर विदा किया, कि किसी से न कहना कि तू ने मुझ को ये बातें बताई हैं। 23 और दो सूबेदारों को बुलाकर कहा; दो सौ सिपाही, सत्तर सवार, और दो सौ भालैत, पहर रात बीते कैसरिया को जाने के लिये तैयार कर रखो। 24 और पौलुस की सवारी के लिये घोड़े तैयार रखो कि उसे फेलिक्स हाकिम के पास कुशल से पहुंचा दें। 25 उस ने इस प्रकार की चिट्ठी भी लिखी; 26 महाप्रतापी फेलिक्स हाकिम को क्लौदियुस लूसियास को नमस्कार; 27 इस मनुष्य को यहूदियों ने पकड़कर मार डालना चाहा, परन्तु जब मैं ने जाना कि रोमी है, तो पलटन लेकर छुड़ा लाया। 28 और मैं जानना चाहता था, कि वे उस पर किस कारण दोष लगाते हैं, इसलिये उसे उन की महासभा में ले गया। 29 तब मैं ने जान लिया, कि वे अपनी व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बान्धे जाने के योग्य उस में कोई दोष नहीं। 30 और जब मुझे बताया गया, कि वे इस मनुष्य की घात में लगे हैं तो मैं ने तुरन्त उस को तेरे पास भेज दिया; और मुद्दइयों को भी आज्ञा दी, कि तेरे साम्हने उस पर नालिश करें॥ 31 सो जैसे सिपाहियों को आज्ञा दी गई थी वैसे ही पौलुस को लेकर रातों-रात अन्तिपत्रिस में लाए। 32 दूसरे दिन वे सवारों को उसके साथ जाने के लिये छोड़कर आप गढ़ को लौटे। 33 उन्होंने कैसरिया में पहुंचकर हाकिम को चिट्ठी दी: और पौलुस को भी उसके साम्हने खड़ा किया। 34 उस ने पढ़कर पूछा यह किस देश का है? 35 और जब जान लिया कि किलकिया का है; तो उस से कहा; जब तेरे मुद्दई भी आएगें, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूंगा: और उस ने उसे हेरोदेस के किले में, पहरे में रखने की आज्ञा दी॥
प्रेरितों के काम अध्याय 24 1 पांच दिन के बाद हनन्याह महायाजक कई पुरनियों और तिरतुल्लुस नाम किसी वकील को साथ लेकर आया; उन्होंने हाकिम के साम्हने पौलुस पर नालिश की। 2 जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उस पर दोष लगाकर कहने लगा, कि, हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिये कितनी बुराइयां सुधरती जाती हैं। 3 इस को हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साथ मानते हैं। 4 परन्तु इसलिये कि तुझे और दुख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले। 5 क्योंकि हम ने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियों में बलवा कराने वाला, और नासरियों के कुपन्थ का मुखिया पाया है। 6 उस ने मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा, और हम ने उसे पकड़ लिया। [ हमने उसे अपनी व्यवस्था के अनुसार दण्ड दिया होता; 7 परन्तु पलटन के सरदार लूसियास ने उसे ज़बर्दस्ती हमारे हाथ से छीन लिया, 8 और मुद्दईयों को तेरे सामने आने की आज्ञा दी। ] इन सब बातों को जिन के विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू आप ही उस को जांच कर के जान लेगा। 9 यहूदियों ने भी उसका साथ देकर कहा, ये बातें इसी प्रकार की हैं। 10 तब हाकिम ने पौलुस को बोलने के लिये सैन किया तो उस ने उत्तर दिया, मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षों से इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूं। 11 तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में भजन करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए। 12 और उन्होंने मुझे न मन्दिर में न सभा के घरों में, न नगर में किसी से विवाद करते या भीड़ लगाते पाया। 13 और न तो वे उन बातों को, जिन का वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे साम्हने सच ठहरा सकते हैं। 14 परन्तु यह मैं तेरे साम्हने मान लेता हूं, कि जिस पन्थ को वे कुपन्थ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपने बाप दादों के परमेश्वर की सेवा करता हूं: और जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी है, उन सब की प्रतीति करता हूं। 15 और परमेश्वर से आशा रखता हूं जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा। 16 इस से मैं आप भी यतन करता हूं, कि परमेश्वर की, और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे। 17 बहुत वर्षों के बाद मैं अपने लोगों को दान पहुंचाने, और भेंट चढ़ाने आया था। 18 उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में बिना भीड़ के साथ, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया - हां आसिया के कई यहूदी थे - उन को उचित था, 19 कि यदि मेरे विरोध में उन की कोई बात हो तो यहां तेरे साम्हने आकर मुझ पर दोष लगाते। 20 या ये आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के साम्हने खड़ा था, तो उन्होंने मुझ से कौन सा अपराध पाया? 21 इस एक बात को छोड़ जो मैं ने उन के बीच में खड़े होकर पुकार कर कहा था, कि मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे साम्हने मुकद्दमा हो रहा है॥ 22 फेलिक्स ने जो इस पन्थ की बातें ठीक ठीक जानता था, उन्हें यह कहकर टाल दिया, कि जब पलटन का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूंगा। 23 और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को सुख से रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रों में से किसी को भी उस की सेवा करने से न रोकना॥ 24 कितने दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया; और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उस से सुना। 25 और जब वह धर्म और संयम और आने वाले न्याय की चर्चा करता था, तो फेलिक्स ने भयमान होकर उत्तर दिया, कि अभी तो जा: अवसर पाकर मैं तुझे फिर बुलाऊंगा। 26 उसे पौलुस से कुछ रूपये मिलने की भी आस थी; इसलिये और भी बुला बुलाकर उस से बातें किया करता था। 27 परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरिकयुस फेस्तुस फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्धुआ छोड़ गया॥
प्रेरितों के काम अध्याय 25 1 फेस्तुस उस प्रान्त में पहुंचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया। 2 तब महायाजकों ने, और यहूदियों के बड़े लोगों ने, उसके साम्हने पौलुस की नालिश की। 3 और उसे से बिनती करके उसके विरोध में यह वर चाहा, कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात लगाए हुए थे। 4 फेस्तुस ने उत्तर दिया, कि पौलुस कैसरिया में पहरे में है, और मैं आप जल्द वहां आऊंगा। 5 फिर कहा, तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएं॥ 6 और उन के बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस के लाने की आज्ञा दी। 7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस पास खड़े होकर उस पर बहुतेरे भारी दोष लगाए, जिन का प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। 8 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, कि मैं ने न तो यहूदियों की व्यवस्था का और न मन्दिर का, और न कैसर का कुछ अपराध किया है। 9 तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहां मेरे साम्हने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए? 10 पौलुस ने कहा; मैं कैसर के न्याय आसन के साम्हने खड़ा हूं: मेरे मुकद्दमें का यहीं फैसला होना चाहिए: जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैं ने कुछ अपराध नहीं किया। 11 यदि अपराधी हूं और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है; तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उन में से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उन के हाथ नहीं सौंप सकता: मैं कैसर की दोहाई देता हूं। 12 तब फेस्तुस ने मन्त्रियों की सभा के साथ बातें करके उत्तर दिया, तू ने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के पास जाएगा॥ 13 और कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। 14 और उन के बहुत दिन वहां रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस की कथा राजा को बताई; कि एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्धुआ छोड़ गया है। 15 जब मैं यरूशलेम में था, तो महायाजक और यहूदियों के पुरनियों ने उस की नालिश की; और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। 16 परन्तु मैं ने उन को उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक मुद्दाअलैह को अपने मुद्दइयों के आमने सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। 17 सो जब वे यहां इकट्ठे हुए, तो मैं ने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। 18 जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था। 19 परन्तु अपने मत के, और यीशु नाम किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उस को जीवित बताता था, विवाद करते थे। 20 और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊं इसलिये मैं ने उस से पूछा, क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहां इन बातों का फैसला हो? 21 परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी, कि मेरे मुकद्दमें का फैसला महाराजाधिराज के यहां हो; तो मैं ने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूं, उस की रखवाली की जाए। 22 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, मैं भी उस मनुष्य की सुनना चाहता हूं: उस ने कहा, तू कल सुन लेगा॥ 23 सो दूसरे दिन, जब अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम से आकर पलटन के सरदारों और नगर के बड़े लोगों के साथ दरबार में पहुंचे, तो फेस्तुस ने आज्ञा दी, कि वे पौलुस को ले आएं। 24 फेस्तुस ने कहा; हे महाराजा अग्रिप्पा, और हे सब मनुष्यों जो यहां हमारे साथ हो, तुम इस मनुष्य को देखते हो, जिस के विषय में सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहां भी चिल्ला चिल्लाकर मुझ से बिनती की, कि इस का जीवित रहना उचित नहीं। 25 परन्तु मैं ने जान लिया, कि उस ने ऐसा कुछ नहीं किया कि मार डाला जाए; और जब कि उस ने आप ही महाराजाधिराज की दोहाई दी, तो मैं ने उसे भेजने का उपाय निकाला। 26 परन्तु मैं ने उसके विषय में कोई ठीक बात नहीं पाई कि अपने स्वामी के पास लिखूं, इसलिये मैं उसे तुम्हारे साम्हने और विशेष करके हे महाराजा अग्रिप्पा तेरे साम्हने लाया हूं, कि जांचने के बाद मुझे कुछ लिखने को मिले। 27 क्योंकि बन्धुए को भेजना और जो दोष उस पर लगाए गए, उन्हें न बताना, मुझे व्यर्थ समझ पड़ता है॥
प्रेरितों के काम अध्याय 26 1 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा; तुझे अपने विषय में बोलने की आज्ञा है: तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा, कि, 2 हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे साम्हने उन का उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूं। 3 विशेष करके इसलिये कि तू यहूदियों के सब व्यवहारों और विवादों को जानता है, सो मैं बिनती करता हूं, धीरज से मेरी सुन ले। 4 जैसा मेरा चाल चलन आरम्भ से अपनी जाति के बीच और यरूशलेम में था, यह सब यहूदी जानते हैं। 5 वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहिचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपने धर्म के सब से खरे पन्थ के अनुसार चला। 6 और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे बाप दादों से की थी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है। 7 उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहों गोत्र अपने सारे मन से रात दिन परमेश्वर की सेवा करते आए हैं: हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं। 8 जब कि परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है, तो तुम्हारे यहां यह बात क्यों विश्वास के योग्य नहीं समझी जाती? 9 मैं ने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए। 10 और मैं ने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और महायाजकों से अधिकार पाकर बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाल, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उन के विरोध में अपनी सम्मति देता था। 11 और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहां तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया, कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था। 12 इसी धुन में जब मैं महायाजकों से अधिकार और परवाना लेकर दमिश्क को जा रहा था। 13 तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैं ने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति अपने और अपने साथ चलने वालों के चारों ओर चमकती हुई देखी। 14 और जब हम सब भूमि पर गिर पड़े, तो मैं ने इब्रानी भाषा में, मुझ से यह कहते हुए यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है। 15 मैं ने कहा, हे प्रभु तू कौन है? प्रभु ने कहा, मैं यीशु हूं: जिसे तू सताता है। 16 परन्तु तू उठ, अपने पांवों पर खड़ा हो; क्योंकि मैं ने तुझे इसलिये दर्शन दिया है, कि तुझे उन बातों का भी सेवक और गवाह ठहराऊं, जो तू ने देखी हैं, और उन का भी जिन के लिये मैं तुझे दर्शन दूंगा। 17 और मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूंगा, जिन के पास मैं अब तुझे इसलिये भेजता हूं। 18 कि तू उन की आंखे खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर, और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, मीरास पाएं। 19 सो हे राजा अग्रिप्पा, मैं ने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली। 20 परन्तु पहिले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहने वालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिर कर मन फिराव के योग्य काम करो। 21 इन बातों के कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़ के मार डालने का यत्न करते थे। 22 सो परमेश्वर की सहायता से मैं आज तक बना हूं और छोटे बड़े सभी के साम्हने गवाही देता हूं और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होने वाली हैं। 23 कि मसीह को दुख उठाना होगा, और वही सब से पहिले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा॥ 24 जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा था, तो फेस्तुस ने ऊंचे शब्द से कहा; हे पौलुस, तू पागल है: बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है। 25 परन्तु उस ने कहा; हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूं। 26 राजा भी जिस के साम्हने मैं निडर होकर बोल रहा हूं, ये बातें जानता है, और मुझे प्रतीति है, कि इन बातों में से कोई उस से छिपी नहीं, क्योंकि यह घटना तो कोने में नहीं हुई। 27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं की प्रतीति करता है? हां, मैं जानता हूं, कि तू प्रतीति करता है। 28 अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है? 29 पौलुस ने कहा, परमेश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि क्या थोड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएं॥ 30 तब राजा और हाकिम और बिरनीके और उन के साथ बैठने वाले उठ खड़े हुए। 31 और अलग जाकर आपस में कहने लगे, यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु या बन्धन के योग्य हो। 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा; यदि यह मनुष्य कैसर की दोहाई न देता, तो छूट सकता था॥