पाठ 25 : पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा ( आगे )
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सारांश
पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा (आगे) एथेन्स सुकरात, प्लेटो और अरस्तु का घर रहा है - जो महान प्राचीन दार्शनिक थे। वास्तव में पूरा शहर अतीत की बौद्धिक उपलब्धियों की प्रस्तुति या नमूना था। लेकिन एथेन्स के लोग अब भी आत्मिक बातों के भूखे थे। यही वह बात थी जिसे पौलुस ने सबसे पहले देखा, जिस बात ने उसके आत्मा को दुखित किया। फिलिप्पी से लूका के और बिरीया के सीलास और तीमुथियुस से आकर उससे मिलने की बाट जोहने के दौरान, मूर्तियों से भरे शहर को देखकर पौलुस की आत्मा भीतर से जल उठी। इस अंधकारमय मूर्तिपूजक शहर में परमेश्वर की सच्चाई को स्थापित करने के निश्चय से, पौलुस अपनी आदत के अनुसार एक स्थानीय आराधनालय में गया। वहाँ उसने यहूदियों और परमेश्वर का भय माननेवाले अन्यजातियों के साथ पुराने नियम से सिद्ध करने के लिये तर्क वितर्क किया कि यीशु ही मसीहा था। फिर वह बाजारों में गया और जो उसकी सुनते थे उन्हें प्रचार किया। कम समय में ही विचारकों के दो समूह इस रोचक मनुष्य की बातों और उसकी शिक्षाओं पर प्रतिक्रिया करने लगे, वे इपिकूरी और स्तोइकी थे। इपिकूरी एक दार्शनिक के अनुयायी थे जिसका नाम इपिक्यूरस था जिसने यह सिखाया कि ज्ञान नहीं परंतु आनंद ही जीवन का अंतिम मुख्य उद्देश्य है। दूसरी ओर स्तोइकी, हर चीज में ईश्वर को देखते थे। जब इन दो समूहों ने पौलुस को सुना तो उन्होंने पौलुस को बकवादी और विदेशी इश्वरों का प्रचारक समझा क्योंकि वह उन्हें यीशु और उसके पुनरुत्थान के विषय प्रचार करता था। उन्होंने उसे अरियुपगुस (जो मार्स हिल भी कहलाता है) ले जाने की सोचा। उस स्थान पर पहुँचकर उन्होंने उससे पूछा, “क्या हम जान सकते हैं कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है।” (इसलिये कि सब एथेन्सवासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे, नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।) पौलुस ने अपने आसपास खड़े लोगों को देखा। मसीह का बकवादी अच्छी तरह जानता था कि उसे क्या करना है। उसने उन्हें स्पष्टरूप से कहा, दार्शनिकता के विषय नहीं, परंतु उसके विषय कहा जिसे दार्शनिकता खोजती है: यीशु मसीह। पौलुस के संदेश में पाँच बातें दिखती हैं जिन्हें हम याद रखने के लिये अच्छी तरह करना होगा।
- उसने वहीं से शुरूवात किया जहाँ वे थे। पौलुस ने बोलना शुरू किया, “हे एथेन्स के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो। क्योंकि मैं फिरते हुए जब तुम्हारी पूजने की वस्तुए देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, अनजाने ईश्वर के लिये।” उसने उनके पसंद के विषय से शुरूवात किया: धर्म। वह उनकी चापलूसी या झूठी प्रशंसा नहीं कर रहा था। वह केवल उस वास्तविकता को बता रहा था कि जिस शहर में इतनी मूर्तियाँ हो तो वहाँ धर्म में रूचि वाले लोग भी अवश्य होंगे।
- उसने परिचित का उपयोग अपरिचित से परिचय कराने के लिये किया: उसने धर्म का विषय लिया और अनजाने ईश्वर की वेदी को लिया ताकि अपरिचित की ओर उनका ध्यान आकर्षण कर सके, जिसे वे नहीं जानते थे।
- उसने अपने मुद्दे को सामथ्र्यशाली और स्पष्ट रूप से विकसित किया उसने परमेश्वर के विषय चार कुंजी या मुख्य वास्तविकताओं को प्रगट किया। पहली, सृष्टिकर्ता, होने के कारण परमेश्वर को किसी चीज में नहीं रखा जा सकता (पद 24)। दूसरी, मूल होने के कारण उसकी कोई आवश्यकता नहीं है (पद 25)। तीसरी, बुद्धिमान होने के कारण उसकी निश्चित योजना है (पद 26,27)। चैथी, संरक्षक होने के कारण, वह किसी पर निर्भर नहीं है (पद 28क)।
- उसने संदर्भागत स्पष्टीकरणों द्वारा उनका ध्यान खींचे रखा: पौलुस ने उनको नए विचारों की समझ के लिये उदाहरणों का उपयोग किया। अरातुस के विषय बताकर जो एक यूनानी कवि था, उसने उन्हें यकीन दिलाया कि परमेश्वर ही उनका सृष्टिकर्ता है।
- उसने व्यक्तिगत रीति से संदेश को लागू किया: फिर पौलुस ने अपने सत्य को इन शब्दों के द्वारा उन्हें समझाया, “इसलिये परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है। जब उन्होंने पौलुस द्वारा किसी व्यक्ति के पुनरूत्थान के विषय सुना जो मर गया था तो कुछ कुछ लोगों ने हँस दिया और अन्य लोगों ने कहा कि “यह बात हम तुझ से फिर सुनेंगे” अप्रत्यक्ष रूप से वे उसे बात बंद करने के लिये कह रहे थे। वहाँ उनके साथ पौलुस की बातचीत खत्म हो गई। लेकिन कुछ लोग उसके साथ हो लिये और विश्वासी बन गए। उनमें दियुनुसियुस था जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नामक एक स्त्री थी और उनके साथ और भी लोग थे। पौलुस एथेन्स छोड़कर कुरिन्थ आ गया। वहाँ उसने एक दंपत्ति के साथ मित्रता किया जिनका नाम अक्विल्ला और प्रिसकिल्ला था। अक्विला पुन्तुस का एक यहूदी था। वह और उसकी पत्नी रोम में रहते थे, परंतु उन्हें क्लौदियुस कैसर के आदेशानुसार सभी यहूदियों के साथ रोम से बाहर निकाल दिया गया था। चूँकि कुरिन्थ रोम के पूर्व के मार्ग पर बसा हुआ था, वे वहीं रूक गए और तंबू बनाने का व्यवसाय करने लगे। पेशे से पौलुस तंबू बनाने वाला था, और वह उनके रहा और कार्य किया। इस पेशे ने उसे सप्ताह भर व्यस्त रखा परंतु सप्ताहाँत में अर्थात हर सब्त के दिन उसे आराधनालय में तर्क करते और यहूदियों और यूनानियों को यह समझाते देखा गया कि यीशु ही वास्तव में परमेश्वर का मसीह है। पौलुस जब एथेन्स आया था तो उसने सीलास और तीमुथियुस को बिरिया में छोड़ा था। बाद में वे कुरिन्थ में उससे आ मिले। उनके आ जाने के बाद पौलुस ने अपना पूरा समय प्रचार में लगाया। लेकिन जब यहूदियों ने विरोध किया और निंदा किया तो उसने अपने वस्त्र झटके और उनसे कहा, “तुम्हारा लहू तुम्हारी ही गर्दन पर रहे! मैं निर्दोष हूँ! अब से मैं अन्यजातियों के पास जाऊँगा।” (प्रेरितो के काम 18:6)। और वह उनसे विदा लेकर तीतुस युस्तुस के घर आया जो परमेश्वर का भक्त था और उसका घर आराधनालय के पास लगा हुआ था। क्रिसपुस जो आराधनालय का सरदार था उसने और उसके परिवार ने प्रभु पर विश्वास किया और जब कई कुरिन्थियों ने भी सुना तो उन्होंने भी विश्वास किया और उन्हें बपतिस्मा दिया गया। एक रात प्रभु ने पौलुस को दर्शन देकर कहा, “मत डर वरन कहे जा और चुप मत रह; क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” इसलिये पौलुस वहाँ डेढ़ वर्ष तक रहा और परमेश्वर की सच्चाई के विषय सिखाता रहा। उस समय गल्लियो अखाया देश का हाकिम था। यहूदियों ने एकमत होकर पौलुस का विरोध किया और उसे न्याय आसन के सामने ले आए। पौलुस के कुछ कहने से पहले गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “हे यहूदियो, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित था कि मैं तुम्हारी सुनता। परंतु यदि यह वाद-विवाद शब्दों और नामों और तुम्हारे यहाँ की व्यवस्था में है तो तुम ही जानो, क्योंकि मैं इन बातों का न्यायी नहीं बनना चाहता।” यह कहकर उसने उन्हें न्याय सिंहासन के सामने से निकाल दिया। और यहूदियों ने आराधनालय के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ के न्याय आसन के सामने मारा। परंतु गल्लियो ने इन बातों की कुछ भी चिंता न की। इन घटनाओं के बाद पौलुस कई दिनों तक कुरिन्थ में रहा। इसी दौरान उसने थिस्सलुनीकियों को पत्री लिखा था। अंततः उसने प्रिसकिल्ला और अक्विला के साथ कुरिन्थ छोड़ा और सीरिया के जहाज से चल पड़ा। जब वे इफिसुस के बंदरगाह पहुँचे, पौलुस आराधनालय में गया और यहूदियों से तर्क किया। वे चाहते थे कि वह उनके साथ और रहे परंतु उसे मालुम था कि वह और समय नहीं खो सकता। उसने प्रतिज्ञा किया कि यदि परमेश्वर ने अनुमति दिया तो वह बाद में जरूर इफिसुस लौटेगा, और अपनी यात्रा शुरू किया। लेकिन अक्विला और प्रिसकिल्ला वहीं रूक गए और शहर में एक व्यवसाय शुरू किये। पौलुस का जहाज कैसरिया पहुँचा। वहाँ से प्रेरित पौलुस आगे गया और यरूशलेम की कलीसिया का अभिवादन किया। फिर वह अंताकिया गया। इस प्रकार पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा खत्म हुई।
बाइबल अध्यन
प्रेरितों के काम अध्याय 17 1 फिर वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीके में आए, जहां यहूदियों का एक आराधनालय था। 2 और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उन के पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्र शास्त्रों से उन के साथ विवाद किया। 3 और उन का अर्थ खोल खोलकर समझाता था, कि मसीह को दुख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; और यही यीशु जिस की मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं, मसीह है। 4 उन में से कितनों ने, और भक्त यूनानियों में से बहुतेरों ने और बहुत सी कुलीन स्त्रियों ने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साथ मिल गए। 5 परन्तु यहूदियों ने डाह से भरकर बजारू लोगों में से कई दुष्ट मनुष्यों को अपने साथ में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगों के साम्हने लाना चाहा। 6 और उन्हें न पाकर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कितने और भाइयों को नगर के हाकिमों के साम्हने खींच लाए, कि ये लोग जिन्हों ने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहां भी आए हैं। 7 और यासोन ने उन्हें अपने यहां उतारा है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं। 8 उन्होंने लोगों को और नगर के हाकिमों को यह सुनाकर घबरा दिया। 9 और उन्होंने यासोन और बाकी लोगों से मुचलका लेकर उन्हें छोड़ दिया॥ 10 भाइयों ने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया: और वे वहां पहुंचकर यहूदियों के आराधनालय में गए। 11 ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियोंसे भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों ही हैं, कि नहीं। 12 सो उन में से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से, और पुरूषों में से बहुतेरों ने विश्वास किया। 13 किन्तु जब थिस्सलुनीके के यहूदी जान गए, कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुनाता है, तो वहां भी आकर लोगों को उकसाने और हलचल मचाने लगे। 14 तब भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया, कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुथियुस वहीं रह गए। 15 पौलुस के पहुंचाने वाले उसे अथेने तक ले गए, और सीलास और तीमुथियुस के लिये यह आज्ञा लेकर विदा हुए, कि मेरे पास बहुत शीघ्र आओ॥ 16 जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। 17 सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। 18 तब इपिकूरी और स्तोईकी पण्डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बकवादी क्या कहना चाहता है परन्तु औरों ने कहा; वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। 19 तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? 20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इन का अर्थ क्या है? 21 (इसलिये कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहां रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। 22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा; हे अथेने के लोगों मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो। 23 क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, कि अनजाने ईश्वर के लिये। सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूं। 24 जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। 25 न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। 26 उस ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाईं हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिये बान्धा है। 27 कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोल कर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं! 28 क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि हम तो उसी के वंश भी हैं। 29 सो परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं, कि ईश्वरत्व, सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। 30 इसलिये परमेश्वर आज्ञानता के समयों में अनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। 31 क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है॥ 32 मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो ठट्ठा करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे। 33 इस पर पौलुस उन के बीच में से निकल गया। 34 परन्तु कई एक मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया, जिन में दियुनुसियुस अरियुपगी था, और दमरिस नाम एक स्त्री थी, और उन के साथ और भी कितने लोग थे॥
प्रेरितों के काम अध्याय 18 1 इस के बाद पौलुस अथेने को छोड़कर कुरिन्थुस में आया। 2 और वहां अक्विला नाम एक यहूदी मिला, जिस का जन्म पुन्तुस का था; और अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला समेत इतालिया से नया आया था, क्योंकि क्लौदियुस ने सब यहूदियों को रोम से निकल जाने की आज्ञा दी थी, सो वह उन के यहां गया। 3 और उसका और उन का एक ही उद्यम था; इसलिये वह उन के साथ रहा, और वे काम करने लगे, और उन का उद्यम तम्बू बनाने का था। 4 और वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था॥ 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है। 6 परन्तु जब वे विरोध और निन्दा करने लगे, तो उस ने अपने कपड़े झाड़कर उन से कहा; तुम्हारा लोहू तुम्हारी गर्दन पर रहे: मैं निर्दोष हूं: अब से मैं अन्यजातियों के पास जाऊंगा। 7 और वहां से चलकर वह तितुस युस्तुस नाम परमेश्वर के एक भक्त के घर में आया, जिस का घर आराधनालय से लगा हुआ था। 8 तब आराधनालय के सरदार क्रिस्पुस ने अपने सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्थी सुनकर विश्वास लाए और बपतिस्मा लिया। 9 और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, मत डर, वरन कहे जा, और चुप मत रह। 10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूं: और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं। 11 सो वह उन में परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा॥ 12 जब गल्लियो अखाया देश का हाकिम था तो यहूदी लोग एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे न्याय आसन के साम्हने लाकर, कहने लगे। 13 कि यह लोगों को समझाता है, कि परमेश्वर की उपासना ऐसी रीति से करें, जो व्यवस्था के विपरीत है। 14 जब पौलुस बोलने पर था, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा; हे यहूदियो, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित था कि मैं तुम्हारी सुनता। 15 परन्तु यदि यह वाद-विवाद शब्दों, और नामों, और तुम्हारे यहां की व्यवस्था के विषय में है, तो तुम ही जानो; क्योंकि मैं इन बातों का न्यायी बनना नहीं चाहता। 16 और उस ने उन्हें न्याय आसन के साम्हने से निकलवा दिया। 17 तब सब लोगों ने अराधनालय के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ के न्याय आसन के साम्हने मारा: परन्तु गल्लियो ने इन बातों की कुछ भी चिन्ता न की॥ 18 सो पौलुस बहुत दिन तक वहां रहा, फिर भाइयों से विदा होकर किंखि्रया में इसलिये सिर मुण्डाया क्योंकि उस ने मन्नत मानी थी और जहाज पर सूरिया को चल दिया और उसके साथ प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। 19 और उस ने इफिसुस में पहुंचकर उन को वहां छोड़ा, और आप ही अराधनालय में जाकर यहूदियों से विवाद करने लगा। 20 जब उन्होंने उस से बिनती की, कि हमारे साथ और कुछ दिन रह, तो उस ने स्वीकार न किया। 21 परन्तु यह कहकर उन से विदा हुआ, कि यदि परमेश्वर चाहे तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊंगा। 22 तब इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया, और कैसरिया में उतर कर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया। 23 फिर कुछ दिन रहकर वहां से चला गया, और एक ओर से गलतिया और फ्रूगिया में सब चेलों को स्थिर करता फिरा॥ 24 अपुल्लोस नाम एक यहूदी जिस का जन्म सिकन्दिरया में हुआ था, जो विद्वान पुरूष था और पवित्र शास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। 25 उस ने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता, और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था। 26 वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उस की बातें सुनकर, उसे अपने यहां ले गए और परमेश्वर का मार्ग उस को और भी ठीक ठीक बताया। 27 और जब उस ने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उस से अच्छी तरह मिलें, और उस ने पहुंच कर वहां उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्हों ने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। 28 क्योंकि वह पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे देकर, कि यीशु ही मसीह है; बड़ी प्रबलता से यहूदियों को सब के साम्हने निरूत्तर करता रहा॥
2 तीमुथियुस अध्याय 4:2 2 कि तू वचन को प्रचार कर; समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डांट, और समझा।