पाठ 24 : पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा ( आगे )
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सारांश
पौलुस की दूसरी मिश्नरी यात्रा (आगे) फिलिप्पी, जो मूलरूप से क्रेनिदेस (झरने) कहलाती थी मकिदुनिया के फिलिप द्वारा कब्जा किया गया। ईसापूर्व वर्ष 168 में वह रोम के अधीन हो गया। बाद में उसे रोमी बस्ती बनाया गया। ओक्टावियन (जो पहला रोमी सम्राट कैसर अगस्तुस बना) उसने पुराने सैनिकों को फिलिप्पी में बसाया। शहर में यहूदी जनसंख्या बहुत कम रही होगी क्योंकि वहाँ कोई आराधनालय नहीं था (प्रार्थना का स्थान)आराधनालय के लिये कम से कम दस यहूदी पुरुष होना चाहिये। फिर भी पौलुस और उसके साथी सब्त के दिन शहर के बाहर नदी के किनारे गए इस उम्मीद से कि उन्हें वहाँ कुछ यहूदी मिलेंगे जो प्रार्थना के लिये इकट्ठे होंगे। वहाँ जाकर उन्होंने स्त्रियों का एक समूह पाया। उन्होंने वहाँ बैठकर उन्हें सुसमाचार सुनाया। उस समूह में थुआथीरा की लुदिया नामक एक स्त्री थी जो महीन मलमल के कपड़े बेचती थी। वह परमेश्वर की आराधना करती थी। परमेश्वर ने पौलुस के संदेश के लिये उसके ॉदय को खोला। अपने हृदयों में प्रभु को ग्रहण करने के बाद उसे और उसके घराने को बपतिस्मा दिया गया। उसने न केवल अपना हृदय खोला, परंतु मिश्नरियों के लिये घर भी बनाई। उन्होंने उसकी पहुनाई का आनंद लिया। दूसरे दिन जब पौलुस और उसके साथी प्रार्थना के लिये जा रहे थे, तो उनकी मुलाकात दुष्टात्माग्रस्त एक लड़की से हुई। कुछ लोग उसका शोषण कर रहे थे और वह उनके लिये भविष्य बताकर काफी धन कमाकर देती थी। पौलुस और उसके साथियों का पीछा करते हुए को चिल्लाकर कहने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।” और, वह कई दिनों तक ऐसा ही करती रही। अंततः उस आत्मा से अप्रसन्न होकर पौलुस ने मुड़कर उससे कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ कि उसमें से निकल जा।” और वह उसी घड़ी निकल गई। जब उसके स्वामियों ने देखा कि उनकी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़ के चैक में प्रधानों के पास खींच लाए और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले गए और कहा, ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं, और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं जिन्हे ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं। तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उन्हें बेत मारने की आज्ञा दी। और जब वे उन्हें बहुत बेंत मार चुके उन्होंने उन्हें बंदीगृह में डाल दिया। और दरोगा को उनकी कड़ी निगरानी करते का आदेश दिया और उसने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। मध्यरात्रि के समय पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और परमेश्वर की स्तुति के गीत गा रहे थे। उनके दुख के बीच भी वे परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। अचानक वहाँ एक बड़ा भूकंप हुआ। बंदीगृह की नीवें हिल गई और तुरंत सभी दरवाजे खुल गए, और हर किसी की बेड़ियाँ खुल गई। दरोगा की व्यथा या घबराहट की कल्पना कीजिये - ये सब कैदी जिन्हें उसने निदर्यता से दुखदायी काठ में ठोंक दिया था वे सब अब स्वतंत्र थे। चूँकि भागने वाले किसी भी कैदी के लिये वही जिम्मेदार था, उसने स्वयं को मार डालने के लिये तलवार निकाला। परंतु जब पौलुस ने देखा कि क्या होनेवाला है तो उसने उँची आवाज में कहा, “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यही हैं।” दरोगा ने दीया मंगवाकर भीतर की तरफ दौड़ा और डर से काँपते हुए वह पौलुस और सिलास के सामने गिर पड़ा और उन्हें बाहर निकालकर उनसे पूछा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?” उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा। और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। फिर उसने रात को उसी घड़ी ले जाकर उनके घाव धोया, और उसे तुरंत बपतिस्मा दिया गया, और साथ में उसके पूरे परिवार को भी बपतिस्मा दिया गया। उसने उन्हें घर भी ले गया और उन्हें भोजन कराया। उसने परमेश्वर पर विश्वास करके आनंद किया और उसका परिवार भी आनंदित था। उसके बाद दरोगा ने पौलुस और सीलास को बंदीगृह में वापस लाया। अगले दिन हाकिमों ने सिपाहियों को कहला भेजा कि “उन मनुष्यों को छोड़ दो।” दरोगा ने ये बातें पौलुस से कहीं, लेकिन उन्होंने ऐसी स्थिति में वहाँ से जाने से इन्कार कर दिया। आखिर, सीलास और पौलुस, यद्यपि जन्म से यहूदी थे, वे रोम के नागरिक थे। उन्हें गैरकानूनी रीति से और सार्वजनिक रीति से पीटा गया था। पौलुस की प्रतिक्रिया यह थी, वे स्वयं आकर हमें निकालें।” जब सिपाहियों ने यह संदेश हाकिमों को कह सुनाया तो वे आए और उनसे आग्रह किया और जब उन्होंने उन्हें बाहर निकाला तो उन्होंने उनसे शहर छोड़कर जाने को कहा। और वे बंदीगृह से निकल कर लुदिया के घर गए, वहाँ इकट्ठे लोगों को प्रोत्साहित किया और फिर वहाँ से विदा हुए। उन्होंने बहुत चाहा कि फिलिप्पी मसीहियों की मदद के लिये लूका वही ठहर जाए। ऐसा इसलिये माना जाता है क्योंकि “हम” शब्द अचानक बदलकर “वे” हो गया था। इस प्रकार पौलुस, सीलास और तीमुथियुस ने लूका, और नए विश्वासियों को अलविदा कहा, और जब वे अम्फिपुलिस और अप्पुलोनिया से यात्रा कर चुके तो थिस्सलुनीके पहुंचे। इग्नेशियन के मार्ग से मकिदुनिया से होकर तीनों मिश्नरी शहर में पहुँचे। जैसे ही वे थिस्सलुनीके पहुँचे पौलुस सीधे यहूदियों के आराधनालय पहुँचा। वे यासोन नामक एक व्यक्ति के घर में रूके थे जो संभवतः पौलुस का एक रिश्तेदार था (रोमियों 16:21)। तीन सब्त के दिनों तक पौलुस उनके साथ वचन से तर्क वितर्क करता रहा और प्रमाण देकर समझाता रहा कि मसीह को क्लेश उठाना पड़ा, वह मृतकों में से फिर जी उठा। वचन से यह बात प्रमाणित करने के बाद उसने यह घोषणा किया कि नासरी यीशु वही मसीहा है जिसका लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। पौलुस ने अथक रीति से लोगों को मसीह की सच्चाई के विषय सिखाया। परिणामस्वरूप कुछ लोग पौलुस की शिक्षा से प्रभावित हुए और,कुछ लोगों ने विरोध किया। कुछ यहूदी तथा परमेश्वर का भय मानने वाले यूनानी और गणमान्य स्त्रियाँ पौलुस और सीलास के साथ मिल गई। परंतु बाकी के सभी यहूदियों ने ईर्ष्या के कारण बाजार से कुछ दुष्ट मनुष्यों को साथ लिया, बड़ी भीड़ इकट्ठा किया और बखेड़ा खड़ा किया और यासोन के घर पहुँचकर उन लोगों को बाहर लाने को कहा। पौलुस और उसके साथियों को खोज न पाने के कारण उन्होंने यासोन और कुछ भाइयों को खींचकर हाकिमों के सामने ले आए, और पुकारकर कहा, “ये लोग जिन्होंने जगत को उल्टा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आ गए हैं। यासोन ने उन्हें अपने यहाँ उतरा है। ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” इन शब्दों के साथ उन्होंने भीड़ को और नगर के हाकिमों को उकसाया। मिश्नरियों को दोषी ठहराया गया। जाहिर था कि उनके जीवन को बचाने के लिये यासोन को एक समझौते पर हस्ताक्षर करना था और इस बात की गारंटी देना था कि वे लोग उस स्थान को छोड़ देगें और कभी नहीं लौटेंगे। इस बात ने भीड़ को संतुष्ट कर दिया और उन्होंने यासोन और अन्य लोगों से समझौता लिया और उन्हें छोड़ दिया। और भाईयों ने पौलुस और सीलास को तुरंत रात में ही बिरीया भेज दिया। बिरिया एक छोटा शहर था जो थिस्सलुनीके से करीब 50 कि.मी दूर था। बिरीया के यहूदी थिस्सलुनीके के लोग से ज्यादा नम्र थे। उन्होंने बड़ी उत्सुकता से वचन को ग्रहण किया और देखने के लिये हर रोज वचन की जाँच करते रहे कि जो कहा गया था, वैसा ही है या नहीं। उनमें से कई लोगों ने विश्वास किया और उनमें कई प्रसिद्ध अन्यजातीय पुरुष और स्त्रियाँ भी शामिल थीं। थिस्सलुनीके के केवल कुछ यहूदियों ने ही विश्वास किया था, परंतु बिरीया के कई यहूदियों ने विश्वास किया। लेकिन जब थिस्सलुनीके के यहूदियों ने पाया कि बिरीया में भी पौलुस द्वारा परमेश्वर का वचन सुनाया गया था तो वे उपद्रव करते हुए वहाँ आए और भीड़ को उकसाया। और फिर भाइयों ने तुरंत ही पौलुस को रक्षक भाइयों के साथ समुद्र किनारे भेज दिया। सीलास और तीमुथियुस बिरीया में ही रूक गए। पौलुस और उसके साथी समुद्री यात्रा करके एथेन्स में छोड़कर जा रहे थे तब उसने उनके द्वारा सीलास और तीमुथियुस को खबर भेजा कि वे जितनी जल्दी हो सके उसके साथ हो जाए। लूका को फिलिप्पी में और सिलास और तीमुथियुस को बिरीया में छोड़ने के कारण पौलुस एथेन्स में स्वयं को एकदम अकेला पाया।
बाइबल अध्यन
प्रेरितों के काम अध्याय 16 1 फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और देखो, वहां तीमुथियुस नाम एक चेला था, जो किसी विश्वासी यहूदिनी का पुत्र था, परन्तु उसका पिता यूनानी था। 2 वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था। 3 पौलुस ने चाहा, कि यह मेरे साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उन के कारण उसे लेकर उसका खतना किया; क्योंकि वे सब जानते था, कि उसका पिता यूनानी था। 4 और नगर नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुंचाते जाते थे। 5 इस प्रकार कलीसिया विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गई। 6 और वे फ्रूगिया और गलतिया देशों में से होकर गए, और पवित्र आत्मा ने उन्हें ऐशिया में वचन सुनाने से मना किया। 7 और उन्होंने मूसिया के निकट पहुंचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया। 8 सो मूसिया से होकर वे त्रोआस में आए। 9 और पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरूष खड़ा हुआ, उस से बिनती करके कहता है, कि पार उतरकर मकिदुनिया में आ; और हमारी सहायता कर। 10 उसके यह दर्शन देखते ही हम ने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर, कि परमेश्वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है॥ 11 सो त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए। 12 वहां से हम फिलिप्पी में पहुंचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे। 13 सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए, कि वहां प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे। 14 और लुदिया नाम थुआथीरा नगर की बैंजनी कपड़े बेचने वाली एक भक्त स्त्री सुनती थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर चित्त लगाए। 15 और जब उस ने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उस ने बिनती की, कि यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो; और वह हमें मनाकर ले गई॥ 16 जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिस में भावी कहने वाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी। 17 वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी कि ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं। 18 वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस दु:खित हुआ, और मुंह फेर कर उस आत्मा से कहा, मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूं, कि उस में से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई॥ 19 जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़ कर चौक में प्राधानों के पास खींच ले गए। 20 और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा; ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं। 21 और ऐसे व्यवहार बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं। 22 तब भीड़ के लोग उन के विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उन के कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी। 23 और बहुत बेंत लगवाकर उन्हें बन्दीगृह में डाला; और दारोगा को आज्ञा दी, कि उन्हें चौकसी से रखे। 24 उस ने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उन के पांव काठ में ठोक दिए। 25 आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और बन्धुए उन की सुन रहे थे। 26 कि इतने में एकाएक बड़ा भुईडोल हुआ, यहां तक कि बन्दीगृह की नेव हिल गईं, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल पड़े। 27 और दारोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि बन्धुए भाग गए, सो उस ने तलवार खींचकर अपने आप को मार डालना चाहा। 28 परन्तु पौलुस ने ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा; अपने आप को कुछ हानि न पहुंचा, क्योंकि हम सब यहां हैं। 29 तब वह दीया मंगवाकर भीतर लपक गया, और कांपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा। 30 और उन्हें बाहर लाकर कहा, हे साहिबो, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं? 31 उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा। 32 और उन्होंने उस को, और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। 33 और रात को उसी घड़ी उस ने उन्हें ले जाकर उन के घाव धोए, और उस ने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया। 34 और उस ने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उन के आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया॥ 35 जब दिन हुआ तक हाकिमों ने प्यादों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो। 36 दारोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाईं, कि हाकिमों ने तुम्हारे छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, सो अब निकलकर कुशल से चले जाओ। 37 परन्तु पौलुस ने उस से कहा, उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहाराए बिना, लोगों के साम्हने मारा, और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या हमें चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएं। 38 प्यादों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए। 39 और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर बिनती की कि नगर से चले जाएं। 40 वे बन्दीगृह से निकल कर लुदिया के यहां गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए॥
प्रेरितों के काम अध्याय 17 1 फिर वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीके में आए, जहां यहूदियों का एक आराधनालय था। 2 और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उन के पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्र शास्त्रों से उन के साथ विवाद किया। 3 और उन का अर्थ खोल खोलकर समझाता था, कि मसीह को दुख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; और यही यीशु जिस की मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं, मसीह है। 4 उन में से कितनों ने, और भक्त यूनानियों में से बहुतेरों ने और बहुत सी कुलीन स्त्रियों ने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साथ मिल गए। 5 परन्तु यहूदियों ने डाह से भरकर बजारू लोगों में से कई दुष्ट मनुष्यों को अपने साथ में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगों के साम्हने लाना चाहा। 6 और उन्हें न पाकर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कितने और भाइयों को नगर के हाकिमों के साम्हने खींच लाए, कि ये लोग जिन्हों ने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहां भी आए हैं। 7 और यासोन ने उन्हें अपने यहां उतारा है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं। 8 उन्होंने लोगों को और नगर के हाकिमों को यह सुनाकर घबरा दिया। 9 और उन्होंने यासोन और बाकी लोगों से मुचलका लेकर उन्हें छोड़ दिया॥ 10 भाइयों ने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया: और वे वहां पहुंचकर यहूदियों के आराधनालय में गए। 11 ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियोंसे भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों ही हैं, कि नहीं। 12 सो उन में से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से, और पुरूषों में से बहुतेरों ने विश्वास किया। 13 किन्तु जब थिस्सलुनीके के यहूदी जान गए, कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुनाता है, तो वहां भी आकर लोगों को उकसाने और हलचल मचाने लगे। 14 तब भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया, कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुथियुस वहीं रह गए। 15 पौलुस के पहुंचाने वाले उसे अथेने तक ले गए, और सीलास और तीमुथियुस के लिये यह आज्ञा लेकर विदा हुए, कि मेरे पास बहुत शीघ्र आओ॥ 16 जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। 17 सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। 18 तब इपिकूरी और स्तोईकी पण्डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बकवादी क्या कहना चाहता है परन्तु औरों ने कहा; वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। 19 तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? 20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इन का अर्थ क्या है? 21 (इसलिये कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहां रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। 22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा; हे अथेने के लोगों मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो। 23 क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, कि अनजाने ईश्वर के लिये। सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूं। 24 जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। 25 न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। 26 उस ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाईं हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिये बान्धा है। 27 कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोल कर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं! 28 क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि हम तो उसी के वंश भी हैं। 29 सो परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं, कि ईश्वरत्व, सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। 30 इसलिये परमेश्वर आज्ञानता के समयों में अनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। 31 क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है॥ 32 मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो ठट्ठा करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे। 33 इस पर पौलुस उन के बीच में से निकल गया। 34 परन्तु कई एक मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया, जिन में दियुनुसियुस अरियुपगी था, और दमरिस नाम एक स्त्री थी, और उन के साथ और भी कितने लोग थे॥
रोमियो अध्याय 16:21 21 तीमुथियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियों का, तुम को नमस्कार।