पाठ 21 : तरसुस का शाऊल - उसके आरम्भिक दिन और परिवर्तन

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सारांश

तरसुस का शाऊल-उसके आरंभिक दिन और परिवर्तन परिचय ‘पौलुस’ नाम का मतलब छोटा या बौना होता है। हम पौलुस के जीवन की जानकारियों को प्रेरितों के काम पुस्तक से (प्रथम शताब्दी के मसीहियों के इतिहास) से और उसकी अपनी पत्रियों से इकट्ठा करते हैं। पौलुस का जन्म तरसुस के एक फरीसी परिवार में, जो सिलकिया शहर में रहता था, सन 1 में हुआ था। उसकी इब्री नाम शाऊल और रोमी नाम पौलुस था। जन्म से वह रोमी नागरिक था। उसका पिता बिन्यामीन के गोत्र का था। (फिलिप्पियों 3:5) और धार्मिक प्रतिबद्धता से फरीसी था।(प्रेरितों के काम 28:6)। उसके माता-पिता के विषय इससे ज्यादा जानकारी नहीं है। उसने अपने शुरूवाती वर्ष तरसुस में बिताया था जहाँ इब्री भाषा सामान्य थी। जब वह 15 वर्ष का था तब वह मूसा की व्यवस्था का अध्ययन करने यरूशलेम गया था जो उसे प्रसिद्ध इब्री गुरू गमलिएल से सीखना था। उसने 10 वर्षों तक व्यवस्था का अध्ययन किया होगा। स्नातक होने के बाद वह तरसुस लौट गया। इसी समय के दौरान उसने ‘खतना’ के विषय सिलिकिया के मंदिर में प्रचार किया रहा होगा (व्यवस्था, गलातियों 5:11)। यह यीशु की यहूदिया और गलील में सार्वजनिक सेवकाई का समय था और आखिरकार कलीसिया के जन्म का भी। कलीसिया प्रेरितों और प्रचारकों की सेवकाई से उन्नति कर रही थी। स्तिफनुस जो “विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण” था सुसमाचार प्रचारकों का मुखिया था। उसके प्रचार के परिणामस्वरूप और आराधनालयों में तर्क-वितर्क के कारण कई लोग कलीसिया से जुड़ गए थे। इसी बात पर वह शहीद हुआ। इस समय तक शाऊल जो एक जवान व्यक्ति था यरूशलेम लौटा और यहूदी धर्म की रक्षा की जवाबदारी लिया। वहाँ उसका स्तिफनुस से विवाद हो गया। इसलिये स्तिफनुस के पथराव किए जाने की घटनास्थल पर हम उसे हत्यारों के वस्त्र संभालते हुए देखते हैं (प्रेरितों के काम 7:57)। स्तिफनुस की मृत्यु के बाद घोर सताव शुरू हुआ। शाऊल ने विश्वासियों के विरुद्ध बीड़ा उठाया। इसके परिणामस्वरूप, विश्वासी आसपास के क्षेत्रों में भाग गए। लेकिन परमेश्वर ने इस सताव का उपयोग कलीसिया की उन्नति के लिये किया। शाऊल का परिवर्तन

  1. शाऊल का परिवर्तन (प्रेरितों के काम 9:1-9) पौलुस कलीसियाओं के सताव का अगुवा बन गया। मसीहियों को नष्ट करने की धमकी देकरवह यरूशलेम में महायाजक के पास गया कि दमिश्क के आराधनालयों के लिये अधिकार पत्र प्राप्त करे और यीशु के अनुयायियों को सांकलों से बांधकर मुकदमा चलाने और दंडित करने के लिये उन्हें यरूशलेम ले जाए। यह परमेश्वर की सर्वोच्च योजना थी कि कलीसिया के कुछ सतानेवालों को परिवर्तित करके मसीही बनाए। दोपहर के समय, दमिश्क के मार्ग पर जब वह शहर के करीब पहुँच चुका था, स्वर्ग से एक तेज रोशनी चमकी। वह भूमि पर गिर पड़ा और इब्री भाषा में यह वाणी सुना, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” उसने पूछा, “हे प्रभु तू कौन है?” उसने कहा, “मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है। परंतु अब उठकर नगर में जा, और जो तुझे करना है वह तुझसे कहा जाएगा।” जो मनुष्य उसके साथ थे, वे अवाक रह गए; क्योंकि शब्द को सुनते थे, परंतु किसी को देखते न थे। तब शाऊल भूमि पर से उठा, परंतु जब आँखें खोली तो उसे कुछ दिखाई न दिया, और वे उसका हाथ पकड़कर दमिश्क ले गए। वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया।
  2. शाऊल का पश्चाताप (प्रेरितों के काम 9:10-19) दमिश्क में हनन्याह नामक यीशु का एक चेला रहता था। प्रभु ने दर्शन देकर उससे कहा, “उठाकर उस गली में जा जो ‘सीधी’ कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नामक एक तरसुसवासी को पूछ; क्योंकि देख वह प्रार्थना कर रहा है। और उसने हनन्याह नामक एक पुरुष को भीतर आते और अपने उपर हाथ रखते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए।” हनन्याह ने घबराकर उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैंने इस मनुष्य के विषय बहुतों से सुना है कि इसने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी-बड़ी बुराईयाँ की है। और यहाँ भी इसको प्रधान याजकों की ओर से अधिकार मिला है कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सबको बांध ले।” परंतु प्रभु ने हनन्याह से कहा, “तू चला जा; क्योंकि वह तो अन्य जातियों और राजाओं और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है। और मैं उसे बताऊँगा कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा।” प्रभु के वचनों से समर्थ पाकर हनन्याह उस घर में गया और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, “हे भाई शाऊल, प्रभु अर्थात यीशु जो उस रास्ते में जिससे तू आया दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।” और तुरंत उसकी आखों से छिलके से गिरे और वह देखने लगा, और उठकर बपतिस्मा लिया, फिर भोजन करके बल पाया। शाऊल का अंगीकार (प्रेरितों के काम 9:19-22) हनन्याह ने शाऊल को दमिश्क में चेलों के एक समूह से परिचित करवाया और उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया। कई लोग चकित हुए जब शाऊल ने आराधनालयों में परमेश्वर के पुत्र के समान प्रचार किया। वह दमिश्क में तीन वर्ष तक रहा और परमेश्वर के अनुग्रह में अधिक और अधिक बढ़ता गया। उसने यह सिद्ध करते हुए कि यीशु ही इस्राएल का मसीहा है दमिश्क के लोगों को चकित कर दिया। शाऊल क विरुद्ध षड़यंत्र: (प्रेरितों के काम 9:23-31)
  3. दमिश्क में (प्रेरितों की काम 9:23-24, 2 कुरि 11:32-33, गलातियों 1:17-18)। परिवर्तन के बाद कुछ समय के लिये वह अरब गया और दमिश्क लौट गया। अरब में शाऊल को मौका मिला कि वह उन महान घटनाओं पर मनन करे जो उसके जीवन में घटी थी विशेषकर परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर जो उसे सौंपा गया था। दमिश्क में शाऊल की सार्वजनिक सेवकाई के कई दिनों बाद यहूदियों ने उसे मार डालने का षड़यंत्र रचा। रात और दिन उन्होंने शहर के चार फाटकों पर नजर रखा। परंतु उसके चेलों ने उसे रात के समय दीवाल पर ले गए और दीवाल से उसे एक टोकरी में बिठाकर उतार दिया।
  4. यरूशलेम में (प्रेरितों के काम 9:25, 6-30, गलातियों 1:19-20) शाऊल दमिश्क से यरूशलेम पहुँचा। वह पंद्रह दिन प्रेरित पौलुस के साथ उसे समझने के लिये रहा। उसने यरूशलेम के मसीही विश्वासियों के साथ जुड़ने की कोशिश किया परंतु वे सब शाऊल से डरते थे और उसे मसीह का चेला स्वीकार करने से इन्कार कर दिये। लेकिन बरनबास ने जो एक समर्पित और प्रसिद्ध विश्वासी था, शाऊल को प्रेरितों के पास लाया और उन्हें बताया कि किस तरह पौलुस ने पुनरूत्थित यीशु को दमिश्क के मार्ग पर देखा था और उसके बाद की घटनाओं को भी बताया। यरूशलेम में शाऊल ने यीशु के विषय निडरता से कहा। इसलिये यहूदियों ने उसे मार डालने की योजना बनाया। जब भाइयों ने उनके षड़यंत्र को समझ लिया, तो उन्होंने उसे कैसरिया लाया और उसके घर तरसुस भेज दिया। बरनबास आर शाऊल अंताकिया में (प्रेरितों के काम 11:25-26) इस समय तक अंताकिया, अराम (सीरिया) में कलीसिया का निर्माण हो चुका था। यरूशलेम की कलीसिया ने बरनबास को अंताकिया यह देखने के लिये भेजा कि वहाँ की सेवकाई किस तरह चल रही थी। अंताकिया पहुँचकर उसने वहाँ कुछ लाभदायक सेवकाई किया। उसने उन्हें पूरे हृदय से प्रभु के प्रति सच्चे बने रहने के लिये प्रोत्साहित किया। उसने यह जान लिया कि पौलुस ही अंताकिया के लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिये सही व्यक्ति था जो सांस्कृतिक रूप से यूनानी थे। इसलिये वह पौलुस को खोजने तरसुस गया और उसे खोजने के बाद उसे अंताकिया ले आया। उन्होंने मिलकर एक वर्ष कार्य किया, कलीसियाई सम्मेलनों में सहभागी हुए, और बड़ी संख्या में लोगों को वचन की शिक्षा दिया। अंताकिया में ही मसीह की शिष्यों को पहली बार मसीही नाम दिया गया था। सूखाग्रस्त में भेंट: इस सयम के दौरान यरूशलेम की कलीसिया से एक समूह ने अंताकिया को भेंट दिया। वे भविष्यद्वक्ता थे। अंताकिया की कलीसिया ने आनंद से उनको स्वीकार किया। भविष्यद्वक्ताओं में से एक का नाम अगबुस था। वह सभा में उठ खड़ा हुआ और आत्मा की प्रेरणा से भविष्यद्वाणी किया कि सारे संसार पर बड़ा अकाल पड़ने वाला था। यह क्लौदियुस के शासनकाल में पड़ा। इसी बीच अंताकिया के मसीहियों ने इसे ईश्वरीय प्रगटीकरण के रूप में लिया और यहूदिया के मसीहियों को राहत भेजने का निर्णय लिया। बरनबास और पौलुस के हाथों यरूशलेम की कलीसिया के प्राचीनों को राहत भेजी गई। इस भेंट को सामान्यतः “अकाल या सूखाग्रस्त में भेंट” कहा जाता है।

बाइबल अध्यन

प्रेरितों के काम अध्याय 9 1 और शाऊल जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और घात करने की धुन में था, महायाजक के पास गया। 2 और उस से दमिश्क की अराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियां मांगी, कि क्या पुरूष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बान्ध कर यरूशलेम में ले आए। 3 परन्तु चलते चलते जब वह दमिश्क के निकट पहुंचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारों ओर ज्योति चमकी। 4 और वह भूमि पर गिर पड़ा, और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? 5 उस ने पूछा; हे प्रभु, तू कौन है? उस ने कहा; मैं यीशु हूं; जिसे तू सताता है। 6 परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो कुछ करना है, वह तुझ से कहा जाएगा। 7 जो मनुष्य उसके साथ थे, वे चुपचाप रह गए; क्योंकि शब्द तो सुनते थे, परन्तु किसी को दखते न थे। 8 तब शाऊल भूमि पर से उठा, परन्तु जब आंखे खोलीं तो उसे कुछ दिखाई न दिया और वे उसका हाथ पकड़के दमिश्क में ले गए। 9 और वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया। 10 दमिश्क में हनन्याह नाम एक चेला था, उस से प्रभु ने दर्शन में कहा, हे हनन्याह! उस ने कहा; हां प्रभु। 11 तब प्रभु ने उस से कहा, उठकर उस गली में जा जो सीधी कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नाम एक तारसी को पूछ ले; क्योंकि देख, वह प्रार्थना कर रहा है। 12 और उस ने हनन्याह नाम एक पुरूष को भीतर आते, और अपने ऊपर आते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए। 13 हनन्याह ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, मैं ने इस मनुष्य के विषय में बहुतों से सुना है, कि इस ने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी बड़ी बुराईयां की हैं। 14 और यहां भी इस को महायाजकों की ओर से अधिकार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बान्ध ले। 15 परन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्त्राएलियों के साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है। 16 और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा कैसा दुख उठाना पड़ेगा। 17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात यीशु, जो उस रास्ते में, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए। 18 और तुरन्त उस की आंखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया; फिर भोजन कर के बल पाया॥ 19 और वह कई दिन उन चेलों के साथ रहा जो दमिश्क में थे। 20 और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है। 21 और सब सुनने वाले चकित होकर कहने लगे; क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता था, और यहां भी इसी लिये आया था, कि उन्हें बान्ध कर महायाजकों के पास ले आए? 22 परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दमिश्क के रहने वाले यहूदियों का मुंह बन्द करता रहा॥ 23 जब बहुत दिन बीत गए, तो यहूदियों ने मिलकर उसके मार डालने की युक्ति निकाली। 24 परन्तु उन की युक्ति शाऊल को मालूम हो गई: वे तो उसके मार डालने के लिये रात दिन फाटकों पर लगे रहे थे। 25 परन्तु रात को उसके चेलों ने उसे लेकर टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर से लटका कर उतार दिया॥ 26 यरूशलेम में पहुंचकर उस ने चेलों के साथ मिल जाने का उपाय किया: परन्तु सब उस से डरते थे, क्योंकि उन को प्रतीति न होता था, कि वह भी चेला है। 27 परन्तु बरनबा उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले जाकर उन से कहा, कि इस ने किस रीति से मार्ग में प्रभु को देखा, और इस ने इस से बातें कीं; फिर दमिश्क में इस ने कैसे हियाव से यीशु के नाम का प्रचार किया। 28 वह उन के साथ यरूशलेम में आता जाता रहा। 29 और निधड़क होकर प्रभु के नाम से प्रचार करता था: और यूनानी भाषा बोलने वाले यहूदियों के साथ बातचीत और वाद-विवाद करता था; परन्तु वे उसके मार डालने का यत्न करने लगे। 30 यह जानकर भाई उसे कैसरिया में ले आए, और तरसुस को भेज दिया॥ 31 सो सारे यहूदिया, और गलील, और समरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती थी॥

फिलिप्पियों अध्याय 1:21 21 क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।

फिलिप्पियों अध्याय 3:5 5 आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्त्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूं; इब्रानियों का इब्रानी हूं; व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं।

प्रेरितों के काम अध्याय 28:6 6 परन्तु वे बाट जोहते थे, कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिर के मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे, और देखा, कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा; यह तो कोई देवता है॥

गलातियों अध्याय5:11 11 परन्तु हे भाइयो, यदि मैं अब तक खतना का प्रचार करता हूं, तो क्यों अब तक सताया जाता हूं; फिर तो क्रूस की ठोकर जाती रही।

प्रेरितों के काम अध्याय 7:57 57 तब उन्होंने बड़े शब्द से चिल्लाकर कान बन्द कर लिए, और एक चित्त होकर उस पर झपटे।

गलातियों अध्याय1:(19-20) 19 परन्तु प्रभु के भाई याकूब को छोड़ और प्रेरितों में से किसी से न मिला। 20 जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूं, देखो परमेश्वर को उपस्थित जानकर कहता हूं, कि वे झूठी नहीं।

प्रेरितों के काम अध्याय11:(25-26) 25 तब वह शाऊल को ढूंढने के लिये तरसुस को चला गया। 26 और जब उन से मिला तो उसे अन्ताकिया में लाया, और ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते और बहुत लोगों को उपदेश देते रहे, और चेले सब से पहिले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए॥