पाठ 13 : इस्राएल का राजा

Media

Lesson Summary

Content not prepared yet or Work in Progress.


Lesson Prayer

Content not prepared yet or Work in Progress.


Song

Content not prepared yet or Work in Progress.


Instrumental

Content not prepared yet or Work in Progress.


सारांश

इस्राएल के राजा 8) अहज्याह (1 राजा 22:51; 2 राजा 1:1-18) दस गोत्रों के राज्य का आठवाँ राजा अहज्याह, आहाब का सबसे बड़ा बेटा था, अति दुष्ट मनुष्य जिसने दो वर्षों से कम राज्य किया। वह उस समय सामरिया के शाही महल में था जब वह छत से गिर गया था और गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस डर से कि कही उसकी चोटें घातक सिद्ध न हो जाएँ उसने पलिश्तियों के मुख्य शहरों में से एक एक्रोन में बालजबूब देवता से यह पूछने के लिये संदेश वाहकों को भेजा कि वह बचेगा या नहीं। अहज्याह द्वारा लोगों केा बालजबूब के पास भेजना जानबूझकर यहोवा का तिरस्कार करना था, और उसकी उपस्थिति और सामर्थ का अनादर था। इसी बीच परमेश्वर के दूत ने एलिया से कहा, “उठकर शमरोन के राजा के दूतों से मिलने को जा, और उनसे कह, क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तुम एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने जाते हो? इसलिये अब यहोवा तुझसे यों कहता है, जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परंतु मर ही जाएगा।” इसलिये एलिया यह संदेश देने को चला गया। संदेश वाहकों ने एलिया की आज्ञा का पालन किया और एक्रोन को गए बिना ही राजा के पास लौट गए। उन्हें अवश्य यकीन हो गया रहा होगा कि भविष्यद्वक्ता ने यह बात ईश्वरीय अधिकार से कहा होगा। जब अहज्याह ने उस व्यक्ति के बारे में वर्णन सुना जो संदेशवाहकों से मिला तो उसने तुरंत पहचान लिया कि वह एलिया ही था। इस संदेश से न घबराते हुए उसने क्रोध से भरकर एक सेना अधिकारी को 50 लोगों के साथ भेजा कि एलिया को बंदी बनाकर लाएँ। उन्होंने उसे एक पहाड़ी की चोटी पर बैठा हुआ पाया। सेना अधिकारी ने कहा, “हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है तू हमारे साथ चला आ।” परंतु एलिया ने उसे जवाब दिया, “यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले।” तब स्वर्ग से आग गिरी और प्रधान के साथ उसकी टुकड़ी जलकर भस्म हो गई। और अहज्याह द्वारा भेजी गई दूसरी टुकड़ी भी प्रधान के साथ आग में भस्म हो गई। तीसरा प्रधान और 51 लोगों की उसकी टुकडी दंड से बच गई क्योंकि परमेश्वर और उसके दास के प्रति उनकी नीति पूरी तरह भिन्न थी। एलिया उनके साथ गया और पहले के संदेश को व्यक्तिगत रीति से मृत्यु का संदेश सुना दिया। अहज्याह मर गया और चूँकि उसका कोई बेटा नहीं था, जो उसका उत्तराधिकारी बनता, उसका भाई यहोराम इस्राएल के सिंहासन पर बैठा। 9) यहोराम ( 2 राजा 1:17-9:24) यहोराम आहाब का दूसरा पुत्र था जिसने इस्राएल पर शासन किया। यहूदा के राजा के रूप में यहोशापात के 18वें वर्ष के शासन के बाद यहोराम इस्राएल का राजा बना। उसने 12 वर्ष शासन किया। यद्यपि वह दुष्ट था लेकिन वह उसके पिता आहाब और माँ यिजबेल से कुछ कम ही दुष्ट था। यहोराम ने आहाब द्वारा बनाए गए बाल के पवित्र पत्थर से छुटकारा पाया। परंतु बालदेवता की पूजा के विषय वह सहानुभूति रखता था और समर्थन देता था। आहाब के शासनकाल में मोआब का राजा इस्राएल को भेंट अर्पण किया करता था। लेकिन आहाब की मृत्यु के बाद मोआब ने इस्राएल के विरुद्ध विद्रोह करने का निर्णय किया। यहोराम ने तुरंत ही मोआब को नियंत्रित कर लिया। उसने यहोशापात को उसके विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित होने को कहा और मूर्खतापूर्ण रीति से यहोशापात मान गया। (1 राजा 22)। एदोम का राजा जो यहोशापात का दास था, वह भी दोनों के साथ मिल गया। जब वे मोआब पहुँचे, तो पानी की कमी हुई। यहोराम ने परमेश्वर को दोष देना शुरू किया, जबकि यहोशापात ने किसी भविष्यद्वक्ता से संपर्क करने की सलाह दिया। यहोशापात की बात मानकर एलीशा ने परमेश्वर की इच्छा जानने का प्रयास किया। उसी के अनुसार अगली सुबह घाटी में पानी बहने लगा और इस्राएल ने युद्ध जीत लिया। नामान जो अराम के राजा की सेना का एक प्रधान था, उसे अरामी राजा बेनह्दद के पत्र के साथ यहोराम के पास भेजा गया था कि उसका कोढ़ दूर करे। यहोराम चकित हो गया जब उसने पत्र को पढ़ा, और उसने चिंता और निराशा में अपने वस्त्र फाड़े। यहोराम को ऐसा लगा कि बेन्हदद उससे लड़ने का बहाना ढूँढ रहा है। उसे परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता एलीशा के विषय नहीं मालुम था जो उसके कोढ़ को दूर कर सकता था। जब एलीशा ने राजा की चिंता के विषय सुना तो उसने राजा को संदेश भेजा कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसने कहा कि यदि वह (यहोराम) नामान को उसके पास भेजे तो वह उसे अच्छा कर देगा। जल्द ही नामान उस घातक बीमारी से चंगा हो गया। उस समय अरामी लोग इस्राएल पर अचानक हमला करते थे। लेकिन उनकी योजनाएँ निष्फल हो गई जब परमेश्वर ने एलीशा को योजना के विषय बताया, और उसने इस्राएल के राजा यहोराम को चेतावनी के साथ बताया कि वह सतर्क रहे। यहोराम इस मुकाबले के लिये तैयार हो गया और उस गुप्त हमले का सामना किया। ऐसा कई बार हुआ। एक बार फिर से अराम के राजा ने उसके उसकी सारी राज्य की लड़ाकू सेना को इकट्ठी किया और सामरिया को घेर लिया। यद्यपि शहरपनाह ने लोगों को उस घेराबंदी से बचा लिया, परंतु अकाल से मृत्यु होने लगी। सामरिया में एलीशा ही एकमात्र व्यक्ति था जो छुटकारे के लिये परमेश्वर विश्वास करता था। और एक व्यक्ति के विश्वास ने आशीष लाया। एलीशा की दृष्टि सामरिया की जल की कमी पर नहीं थी परंतु उसे मुहैय्या कराने की परमेश्वर की योग्यता पर थी। और अगले दिन उसके विश्वास की पुष्टि हो गई। अदृश्य रथों और घोड़ों ने दुश्मनों को जान बचाकर भागनेपर मजबूर कर दिया।इसके परिणामस्वरूप प्रचुर मात्रा में भोजन सामग्रियाँ उपलब्ध हो गईं। अब समय आ गया था कि अहाब के घराने के विरुद्ध परमेश्वर की भविष्यद्वाणी पूरी हो जाए। परमेश्वर ने इस उद्देश के लिये येहू को चुना। उसने यहोराम को मार डाला और अहाब के घराने की प्रभुता का अंत कर दिया। 10) येहू ( 2 राजा 9:1-10:36) येहू पांचवी राजसत्ता का संस्थापक था, वह राजसत्ता जो 114 वर्षों तक चलने वाली थी, जो इस्राएल के किसी अन्य राजसत्ता से दुगनी थी। येहू और हजाएल जो अराम का राजा था अहाब के घराने को नष्ट करने के लिये चुना गया था। (1 राजा 19:15,17)। परमेश्वर ने अहाब के घराने के विनाश की घोषणा एलिया के द्वारा कर दिया था। अब एलिया के उत्तराधिकारी एलीशा का समय था कि उस पर अमल करे। (1 राजा 21:17-28)। एलीशा भी जानता था कि येहू परमेश्वर का साधन बनेगा। यहूदा का राजा अहज्याह इस्राएल के राजा यहोराम के साथ गया कि रामोत गिलाद में अराम के राजा हजाएल के विरुद्ध लड़े। अरामियों ने यहोराम को जख्मी कर दिया। इसलिये यहोराम राजा सुधरने के लिये यिज्रेल आ गया और उसे देखने अहज्याह गया। इसी बीच एलीशा ने एक जवान भविष्यद्वक्ता को रामोत गिलाद भेजा कि येहू को अभिषिक्त करे। यह एक अचानक और अनापेक्षित घोषणा थी और येहू को जल्दबाजी में राजा घोषित किया गया। उसे बाल के उपासकों का इश्वरीय दंड के अनुसार वध करने को नियुक्त किया गया, विशेषकर अहाब के दुष्ट घराने को। येहू उसे सौंपे गए कार्य के लिये यथोचित व्यक्ति था, वह निडर, निश्चयी, निर्भय, उत्साही और दयाहीन था। जिस दिन से भविष्यवक्ता रामोत-गिलाद में आया और परमेश्वर का संदेश दिया और उस दिन तक जब येहू ने इस्त्राएल से बाल की उपासना खत्म किया, वह समय मूर्तिपूजा के दंड का भयानक समय था। जैसे ही उसे राजा घोषित किया गया, उसने यहोराम राजा के विरुद्ध उसके षड़यंत्र की योजना को उजागर कर दिया। ऐसा ठहराया गया था कि एक छोटी टुकड़ी को लेकर येहू यिज्रेल को जाएगा, राजा पर अचानक हमला करेगा, उसे घात करेगा और उसके स्थान पर राज्य करेगा। यिज्रेल में दो राजा इस्राएल का यहोराम और यहूदा का अहज्याह इन्हें खतरे का कोई आभास नहीं था। जब यिज्रेल की मीनार से संतरी ने टुकड़ी को येहू के नेतृत्व में बेतहाशा भागकर आते देखा तो उन्होंने सोचा कि वह युद्ध क्षेत्र से कोई महत्वपूर्ण समाचार ला रहा है। शायद अरामियों ने रामोत-गिलाद पर फिर से कब्जा कर लिया था। उन्होंने जल्दबाजी में संदेशवाहकों को भेजा और जो हुआ उसके लिये वे तैयार नहीं थे। यहोराम का समय आ गया था, और येहू ने उसे धनुषबाण से मार डाला। यहूदा का राजा अहज्याह अहाब का पोता था और मूर्तिपूजक भी था। परिणामस्वरूप वह येहू के आदेशाधीन था। इसलिये यहोराम के साथ पाए जाने के कारण उसे भी उसकी सजा मिली। और अहज्याह का विनाश परमेश्वर की ओर से था।" (2 इतिहास 22:7) मरनेवाली अगली महिला इजेबेल थी। उसे नीचे फेंक दिया गया और उसे घोडों ने रौंद डाला इस प्रकार (1 राजा 21:23) में लिखी एलिया की भविष्यद्वाणी पूरी हुई। फिर अहाब के घराने पर दंड उतरा। यह कितना भयानक चित्रण है। अहाब के न केवल 70 पुत्र परंतु हर एक जो उसके घराने से जुड़ा था, उसके रिश्तेदार, बुजुर्ग और याजक सभी मारे गए। और हत्या अभी भी जारी थी, अहज्याह के वारीसदार मारे गए थे, और फिर येहू उस देश के सभी बाल उपासकों को खत्म करने निकला था। परमेश्वर ने उसकी सराहना किया कि उसने उसे सौपें हुए कार्य को पूरा किया। (2 राजा 10:30)। लेकिन इन सबके बावजूद उसका हृदय परमेश्वर के साथ ठीक नहीं था। उसने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की व्यवस्था पर पूर्ण मन से चलने की चैकसी न की, वरन यारोबाम जिसने इस्त्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार करने से वह अलग न हुआ। (2 राजा 10:31)। कुछ हद तक येहू ने ठीक किया था, उसने बाल उपासना को खत्म किया था। परंतु उसने सच्ची उपासना का समर्थन नहीं किया। सोने के बछड़ों को हटाया नहीं गया। लोगों को परमेश्वर की सच्ची उपासना में वापस लाने का उसका कोई इरादा नहीं था। उसने अपने राजसत्ता को परमेश्वर की आज्ञापालन से बढ़कर समझा इसलिये वह खो गया। येहू ने परमेश्वर की व्यवस्था पर चलने पर कोई ध्यान नहीं दिया और “उन दिनों यहोवा इस्त्राएल की सीमा को घटाने लगा।” (2 राजा 10:31-33)। येहू का करीब आधा राज्य जल्द ही अराम के राजा हजाएल को दे दिया गया। परमेश्वर ने विश्वासयोग्यता के साथ उसकी शर्तहीन प्रतिज्ञा कि वह येहू की पीढ़ियों को इस्राएल के सिंहासन पर बनाए रखेगा, पूरा किया। उसने अपने स्वार्थ के कारण स्वयं को कई आशीषों से वंचित कर लिया। येहू का अनुभव उन सबके लिये चेतावनी होना चाहिये जो परमेश्वर की सेवा को उनके फायदे तक ही आराधना करते हैं। और वह वास्तविक आज्ञाकारिता नहीं होती। 11) यहोआहाज ( 2 राजा 13ः1-9) येहू का पुत्र यहोआहाज 17 वर्ष तक इस्राएल का राजा था। उसने यहोवा और अशेरा की उपासना करके यारोबाम का अनुकरण किया। परमेश्वर ने अरामियों को इस्राएल के विरुद्ध भेजकर उसे दंडित किया। उन्होंने बड़ी संख्या में यहोआहाज की सेना को खत्म किया। जब उसने परमेश्वर से प्रार्थना किया तब परमेश्वर ने एक छुड़ाने वाला तैयार किया और उसने इस्राएल को अरामियों के हाथ से छुड़ाया। लेकिन वह यारोबाम के घराने के पापों से अलग नहीं हुआ, बल्कि उन्हीं में चलता रहा। जब यहोआहाज मर गया, उसे सामरिया में गाड़ा गया, और उसका बेटा यहोआश उसके बाद सिंहासन पर बैठा। 12) योआश (यहोआश) ( 2 राजा 13:10-14:16) योआश येहू को प्रतिज्ञा किये गए चार पीढ़ियों मे से दूसरी पीढ़ी था। वह अपने पिता के समान ही दुष्ट व्यक्ति था और उसने नाबात के पुत्र यारोबाम के पापों का अनुकरण किया। योआश स्वयँ परमेश्वर का उपासक नहीं था और दान और बेतेल के बछड़े उसके शासनकाल में भी पूजे जाते थे। लेकिन उसने यहोवा की उपासना को भी क्रियाशील रूप से विरोध नहीं किया। ऐसा दिख पड़ता है कि वह एलीशा के कार्यों की वास्तविक तारीफ करता था। उसने एलीशा को राज्य के महान रक्षक के रूप में देखा और उसकी मृत्यु पर शोक भी किया। एलिशा ने रोनेवाले राजा को अरामियों पर विजय का सांकेतिक यकीन दिलाया जिसमें उसने धनुष और तीर का उपयोग किया। यह ऐसा था मानो एलिशा कह रहा हो, मैं तो मर रहा हूँ, परंतु यहोवा जीता रहेगा। हिम्मत रख क्योंकि जब तू अरामियों से लड़ेगा वह तेरे साथ रहेगा। पूर्व की ओर बढ़ता हुआ यह तीर परमेश्वर के ओर से छुटकारा है।" (2 राजा 13:17)।जब एलीशा ने राजा के विश्वास को परखा तो उसे कम पाया।परिणामस्वरूप अधूरी विजय की ही प्रतिज्ञा की गई, और वह भी परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ। जब अराम का राजा हजाएल मर गया, बेन्हदाद उसका बेटा उसके स्थान पर राजा बना। फिर योआश ने जो यहोआहाज का बेटा था, बेन्हदद से उन नगरों को वापस ले लिया जिन्हें उसने उसके पिता यहोआहाज से युद्ध में जीत लिया था। योआश ने उसे तीन बार हराया, और इस तरह इस्राएली नगरों को वापस ले लिया। यहूदा का राजा अमस्याह ने योआश को युद्ध के लिये ललकारा। उसने इस्राएल के राज्य को जीतने की सोचा जो उसके अपने राज्य से तीन गुणा बड़ा था। और चाहा कि उसे यहूदा में मिला ले। लेकिन इस्राएल के राजा ने अमस्याह की चुनौती को एक दृष्टांत द्वारा उत्तर दिया और घर पर ही रहने, अपनी जीतों में संतुष्ट रहने की सलाह दिया। लड़ाई में अमस्याह हार गया और उसे परमेश्वर के कहे अनुसार मूर्तिपूजा के लिये दंडित किया गया। योआश ने कुल मिलाकर 16 वर्ष राज्य किया। लेकिन पाँच वर्षों के बाद योआश का पुत्र यारोबाम-2 भी उसके साथ समानांतर रूप से राज्य करने लगा था। 13) यारोबाम -2 (2 राजा 14:23-29) यारोबाम-2 ने इस्राएल के अन्य राजाओं से ज्यादा समय तक राज्य किया। उसने 40 वर्ष तक सिंहासन पर कब्जा बनाए रखा (कुछ समय योआश के साथ साझेदारी में) और इस दौरान उसने राज्य को इतना विशाल बढ़ाया जो सुलैमान के समय से उस समय तक नहीं बढ़ाया गया था। और फिर भी पवित्र आत्मा उसके शासनकाल को छः छोटी आयतों में कहता है, “मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है परंतु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है” (1 शमूएल 16:7)। जब मनुष्य यारोबाम-2 को देखता था तो वह एक महान राजा था, जब परमेश्वर उसे देखता तो वह एक खोया हुआ पापी था। (2 राजा 14:24)। बाहर से तो यारोबाम-2 काफी सफल था, भीतर से वह पूरी तरह असफल था। आमोस, होशे, और योना ने यारोबाम-2 के दिनों में भविष्यद्वाणी किया था। यह वही था जिसने परमेश्वर के वचन के अनुसार इस्राएल की सीमाओं को पुनः बहाल किया जिसके विषय इस्राएल के परमेश्वर ने अमितै के पुत्र योना के द्वारा कहा था जो गथेपेर का भविष्यद्वक्ता था। परमेश्वर ने देखा था कि इस्राएल क्या स्वतंत्र क्या गुलाम किस तरह पीड़ित थे, उनकी मदद करनेवाला कोई नहीं था। क्योंकि परमेश्वर ने नहीं कहा था कि वह स्वर्ग से इस्राएल का नाम मिटा डालेगा, उसने उन्हें यारोबाम के हाथों से बचाया। 14) जकर्याह ( 2 राजा 15:8-12) जहाँ से इस्राएल के अंतिम राजाओं की सूची शुरू होती है। यारोबाम-2 के बाद जकर्याह उत्तराधिकारी हुआ। उसने केवल 6 माह ही राज्य किया। उसके पहले के राजाओं के समान उसने दान और बेतेल में बछड़े की उपासना जारी रखा। परमेश्वर ने धीरज के साथ उन्हें उसकी ओर फिरने को कहा, परंतु व्यर्थ हुआ। जकर्याह, येहु राजसत्ता (राजवंश) का चौथा और अंतिम शासक था। इस बुरे शासन को केवल 6 माह तक ही चलने की अनुमति दी गई। उसका शल्लूम के द्वारा खुले आम कत्ल किया गया था। 15) शल्लूम (2 राजा 15:10-15) शल्लूम ने केवल एक माह के लिए ही सिंहासन पाया क्योंकि उसके साथ भी वही हुआ था जो उसने जकर्याह के साथ किया था। वह उसकी सेना कर प्रमुख मनहेस द्वारा मारा गया। मनहेस का मानना था कि सेना का प्रधान होने के कारण जकर्याह का उत्तराधिकारी उसे होना चाहिए था। उसने आखिरकार तिप्सह नामक स्थान पर हमला किया क्योंकि वहाँ के रहवासी उसे राजा नहीं मानते थे। सब कुछ अस्पष्ट था और इस्राएल में राजनैतिक अव्यवस्था थी। अंत आते तक स्थिति बिगड़ती ही गई। 16) मनोहस (2 राजा 15;16-22) मनोहस विशेषकर निष्ठुर और भयानक राजा था जो तिप्सह के लोगों के साथ बर्ताव के द्वारा दिख पड़ता है, जिन्होंने उसे समर्पण करने से इन्कार कर दिया था। उसने 10 वर्ष तक सरकार चलाया। उसी के शासनकाल में अश्शूर देश जिसका उपयोग बाद में परमेश्वर ने इस्राएल को दंडित करने के लिए किया था, चुनौतियों के साथ आगे बढ़ा था। इसी समय अश्शूर को 1 हजार किक्कार चाँदी (37 टन जिसकी कीमत 2 मिलियन डॉलर है) दी गई जिसे मनोहस ने उसके राज्य के धनी लोगों से कर के रूप में वसूल किया था। मनोहस की मृत्यु के बाद उसका पुत्र पकह्याह उत्तराधिकारी हुआ। 17) पकह्याह (2 राजा 15:23:25) इस राजा ने केवल 2 वर्ष ही राज्य किया। उसका चरित्र बुरा था, ठीक वैसे ही जैसे उसके पहले के राजाओं का था और वह उसी के एक सेना प्रधान के हाथों मारा गया था। पेकह 50 लोगों को लेकर सामरिया गया और राजा को मार डाला। राजकुमार भी मारे गए। यह किले के भीतर ही किया गया जो महल का सबसे सुरक्षित स्थान होता है। फिर पेकह ने इस्राएल का सिंहासन ले लिया। 18) पेकह (2 राजा 15:27-31) पेकह ने 20 वर्षों तक राज्य किया और उसके शासनकाल में अश्शूर फिर से इस्राएल की ओर बढ़ा, उससे पहले उसने अराम को नाश कर दिया था। गलीली और नप्ताली के देश जीत लिए गए और उस प्रांत के लोगों को बंदी बनाकर अश्शूर ले जाया गया। 19) होशे (2 राजा 17) होशे उत्तरी राज्य जा अंतिम शासक था, और उसके शासन के अंत में दस गोत्रों को अश्शूरियों द्वारा बंदी बनाकर ले जाया गया। उस समय अश्शूर का राजा शल्मनेसर था। उसने सामरिया पर इसलिए आक्रमण किया क्योंकि वसाल के रूप में होशे उसे वार्षिक भेंट नहीं दे सका और अश्शूरी जुए से स्वतंत्र होने के लिए उसने मिस्र के राजा से संधि कर लिया। फिर उसने पूरे इस्राएल देश में अपनी सेना के साथ घूम-घूमकर प्रांतों पर कब्जा किया। राजधानी सामरिया को जीतना कठिन था लेकिन तीन वर्ष तक घेरा डालने के बाद उसने उस पर कब्जा कर लिया और इस्राएलियों को बंधुवाई में अश्शूर ले गया जहाँ उसने उन्हें अलग अलग स्थानों में रखा। इसी तरीके से परमेश्वर ने इस्राएल को उसकी अनाज्ञाकारिता का दंड दिया इस प्रकार दुष्ट राजाओं के शासन के 200 वर्षों के राज्य का अंत हो गया।

बाइबल अध्यन

1 राजा अध्याय 22:51 51 यहूदा के राजा यहोशापत के सत्रहवें वर्ष में अहाब का पुत्र अहज्याह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक इस्राएल पर राज्य करता रहा।

2 राजा अध्याय 1:(1-18) 1 अहाब के मरने के बाद मोआब इस्राएल के विरुद्ध हो गया। 2 और अहज्याह एक झिलमिलीदार खिड़की में से, जो शोमरोन में उसकी अटारी में थी, गिर पड़ा, और बीमार हो गया। तब उसने दूतों को यह कह कर भेजा, कि तुम जा कर एक्रोन के बालजबूब नाम देवता से यह पूछ आओ, कि क्या मैं इस बीमारी से बचूंगा कि नहीं? 3 तब यहोवा के दूत ने तिशबी एलिय्याह से कहा, उठ कर शोमरोन के राजा के दूतों से मिलने को जा, और उन से कह, क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तुम एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने जाते हो? 4 इसलिये अब यहोवा तुझ से यों कहता है, कि जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। तब एलिय्याह चला गया। 5 जब अहज्याह के दूत उसके पास लौट आए, तब उसने उन से पूछा, तुम क्यों लौट आए हो? 6 उन्होंने उस से कहा, कि एक मनुष्य हम से मिलने को आया, और कहा, कि जिस राजा ने तुम को भेजा उसके पास लौटकर कहो, यहोवा यों कहता है, कि क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तू एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को भेजता है? इस कारण जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 7 उसने उन से पूछा, जो मनुष्य तुम से मिलने को आया, और तुम से ये बातें कहीं, उसका कैसा रंग-रूप था? 8 उन्होंने उसको उत्तर दिया, वह तो रोंआर मनुष्य था और अपनी कमर में चमड़े का फेंटा बान्धे हुए था। उसने कहा, वह तिशबी एलिय्याह होगा। 9 तब उसने उसके पास पचास सिपाहियों के एक प्रधान को उसके पचासों सिपाहियों समेत भेजा। प्रधान ने उसके पास जा कर क्या देखा कि वह पहाड़ की चोटी पर बैठा है। और उसने उस से कहा, हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि तू उतर आ। 10 एलिय्याह ने उस पचास सिपाहियों के प्रधान से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले। तब आकाश से आग उतरी और उसे उसके पचासों समेत भस्म कर दिया। 11 फिर राजा ने उसके पास पचास सिपाहियों के एक और प्रधान को, पचासों सिपाहियों समेत भेज दिया। प्रधान ने उस से कहा हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि फुतीं से तू उतर आ। 12 एलिय्याह ने उत्तर देकर उन से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे, तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले; तब आकाश से परमेश्वर की आग उतरी और उसे उसके पचासों समेत भस्म कर दिया। 13 फिर राजा ने तीसरी बार पचास सिपाहियों के एक और प्रधान को, पचासों सिपाहियों समेत भेज दिया, और पचास का वह तीसरा प्रधान चढ़ कर, एलिय्याह के साम्हने घुटनों के बल गिरा, और गिड़गिड़ा कर उस से कहने लगा, हे परमेश्वर के भक्त मेरा प्राण और तेरे इन पचास दासों के प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें। 14 पचास पचास सिपाहियों के जो दो प्रधान अपने अपने पचासों समेत पहिले आए थे, उन को तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे। 15 तब यहोवा के दूत ने उलिय्याह से कहा, उसके संग नीचे जा, उस से पत डर। तब एलिय्याह उठ कर उसके संग राजा के पास नीचे गया। 16 और उस से कहा, यहोवा यों कहता है, कि तू ने तो एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को दूत भेजे थे तो क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं कि जिस से तू पूछ सके? इस कारण तू जिस पलंग पर पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 17 यहोवा के इस वचन के अनुसार जो एलिय्याह ने कहा था, वह मर गया। और उसके सन्तान न होने के कारण यहोराम उसके स्थान पर यहूदा के राजा यहोशापात के पुत्र यहोराम के दूसरे वर्ष में राज्य करने लगा। 18 अहज्याह के और काम जो उसने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?

2 राजा अध्याय 9:24 24 तब येहू ने धनुष को कान तक खींच कर योराम के पखौड़ों के बीच ऐसा तीर मारा, कि वह उसका हृदय फोड़ कर निकल गया, और वह अपने रथ में झुक कर गिर पड़ा।

2 राजा अध्याय 9:1 1 तब एलीशा भविष्यद्वक्ता ने भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से एक को बुला कर उस से कहा, कमर बान्ध, और हाथ में तेल की यह कुप्पी ले कर गिलाद के रामोत को जा।

2 राजा अध्याय 10:36 36 येहू के शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने का समय तो अट्ठाईस वर्ष का था।

2 इतिहास अध्याय 22:7 7 और अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से हुआ, क्योंकि वह यहोराम के पास गया था। और जब वह वहां पहुंचा, तब यहोराम के संग निमशी के पुत्र येहू का साम्हना करने को निकल गया, जिसका अभिषेक यहोवा ने इसलिये कराया था कि वह अहाब के घराने को नाश करे।

1 राजा अध्याय 21:23 23 और ईज़ेबेल के विषय में यहोवा यह कहता है, कि यिज्रेल के किले के पास कुत्ते ईज़ेबेल को खा डालेंगे।

2 राजा अध्याय 10:(30-33) 30 और यहोवा ने येहू से कहा, इसलिये कि नू ने वह किया, जो मेरी दृष्टि में ठीक है, और अहाब के घराने से मेरी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया है, तेरे पर पोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर विराजती रहेगी। 31 परन्तु येहू ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की व्यवस्था पर पूर्ण मन से चलने की चौकसी न की, वरन यारोबाम जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार करने से वह अलग न हुआ। 32 उन दिनों यहोवा इस्राएल को घटाने लगा, इसलिये हजाएल ने इस्राएल के उन सारे देशों में उन को मारा: 33 यरदन से पूरब की ओर गिलाद का सारा देश, और गादी और रूबेनी और मनश्शेई का देश अर्थात अरोएर से ले कर जो अर्नोन की तराई के पास है, गिलाद और बाशान तक।

2 राजा अध्याय 13:(1-10) 1 अहज्याह के पुत्र यहूदा के राजा योआश के तेईसवें वर्ष में येहू का पुत्र यहोआहाज शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 और उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात नबात के पुत्र यारोबाम जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन को छोड़ न दिया। 3 इसलिये यहोवा का क्रोध इस्राएलियों के विरुद्ध भड़क उठा, और उसने उन को अराम के राजा हजाएल, और उसके पुत्र बेन्हदद के आधीन कर दिया। 4 तब यहोआहाज यहोवा के साम्हने गिड़गिड़ाया और यहोवा ने उसकी सुन ली; क्योंकि उसने इस्राएल पर अन्धेर देखा कि अराम का राजा उन पर कैसा अन्धेर करता था। 5 इसलिये यहोवा ने इस्राएल को एक छुड़ाने वाला दिया और वे अराम के वश से छूट गए; और इस्राएली अगले दिनों की नाईं फिर अपने अपने डेरे में रहने लगे। 6 तौभी वे ऐसे पापों से न फिरे, जैसे यारोबाम के घराने ने किया, और जिनके अनुसार उसने इस्राएल से पाप कराए थे: परन्तु उन में चलते रहे, और शोमरोन में अशेरा भी खड़ी रही। 7 अराम के राजा ने तो यहोआहाज की सेना में से केवल पचास सवार, दस रथ, और दस हजार प्यादे छोड़ दिए थे; क्योंकि उसने उन को नाश किया, और रौंद रौंद कर के धूलि में मिला दिया था। 8 यहोआहाज के और सब काम जो उसने किए, और उसकी वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 9 निदान यहोआहाज अपने पुरखाओं के संग सो गया और शोमरोन में उसे मिद्दी दी गई; और उसका पुत्र योआश उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 10 यहूदा के राजा योआश के राज्य के सैंतीसवें वर्ष में यहोआहाज का पुत्र यहोआश शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा।

2 राजा अध्याय 14:(16-29) 16 निदान योआश अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसे इस्राएल के राजाओं के बीच शोमरोन में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यारोबाम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 17 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। 18 अमस्याह के और काम क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 19 जब यरूशलेम में उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की गई, तब वह लाकीश को भाग गया। सो उन्होंने लाकीश तक उसका पीछा कर के उसको वहां मार डाला। 20 तब वह घोड़ों पर रख कर यरूशलेम में पहुंचाया गया, और वहां उसके पुरखाओं के बीच उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। 21 तब सारी यहूदी प्रजा ने अजर्याह को ले कर, जो सोलह वर्ष का था, उसके पिता अमस्याह के स्थान पर राजा नियुक्त कर दिया। 22 जब राजा अमस्याह अपने पुरखाओं के संग सो गया, उसके बाद अजर्याह ने एलत को दृढ़ कर के यहूदा के वश में फिर कर लिया। 23 यहूदा के राजा योआश के पुत्र अमस्याह के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में इस्राएल के राजा योआश का पुत्र यारोबाम शोमरोन में राज्य करने लगा, और एकतालीस वर्ष राज्य करता रहा। 24 उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था; अर्थात नबात के पुत्र यारोबाम जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 25 उसने इस्राएल का सिवाना हमात की घाटी से ले अराबा के ताल तक ज्यों का त्यों कर दिया, जैसा कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अमित्तै के पुत्र अपने दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था। 26 क्योंकि यहोवा ने इस्राएल का दु:ख देखा कि बहुत ही कठिन है, वरन क्या बन्धुआ क्या स्वाधीन कोई भी बचा न रहा, और न इस्राएल के लिये कोई सहायक था। 27 यहोवा ने नहीं कहा था, कि मैं इस्राएल का नाम घरती पर से मिटा डालूंगा। सो उसने योआश के पुत्र यारोबाम के द्वारा उन को छूटकारा दिया। 28 यारोबाम के और सब काम जो उसने किए, और कैसे पराक्रम के साथ उसने युद्ध किया, और दमिश्क और हमात को जो पहले यहूदा के राज्य में थे इस्राएल के वश में फिर मिला लिया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 29 निदान यारोबाम अपने पुरखाओं के संग जो इस्राएल के राजा थे सो गया, और उसका पुत्र जकर्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

2 राजा अध्याय 15:(8-31) 8 यहूदा के राजा अजर्याह के अड़तीसवें वर्ष में यारोबाम का पुत्र जकर्याह इस्राएल पर शोमरोन में राज्य करने लगा, और छ: महीने राज्य किया। 9 उसने अपने पुरखाओं की नाईं वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अर्थात नबात के पुत्र यारोबाम जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 10 और याबेश के पुत्र शल्लूम ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी कर के उसको प्रजा के साम्हने मारा, और उसका घात कर के उसके स्थान पर राजा हुआ। 11 जकर्याह के और काम इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12 यों यहोवा का वह वचन पूरा हुआ, जो उसने येहू से कहा था, कि तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बैठती जाएगी। और वैसा ही हुआ। 13 यहूदा के राजा उज्जिय्याह के उनतालीसवें वर्ष में याबेश का पुत्र शल्लूम राज्य करने लगा, और महीने भर शोमरोन में राज्य करता रहा। 14 क्योंकि गादी के पुत्र मनहेम ने, तिर्सा से शोमरोन को जा कर याबेश के पुत्र शल्लूम को वहीं मारा, और उसे घात कर के उसके स्थान पर राजा हुआ। 15 शल्लूम के और काम और उसने राजद्रोह की जो गोष्ठी की, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 16 तब मनहेम ने तिर्सा से जा कर, सब निवासियों और आस पास के देश समेत तिप्सह को इस कारण मार लिया, कि तिप्सहियों ने उसके लिये फाटक न खेले थे, इस कारण उसने उन्हें मार लिया, और उस में जितनी गर्भवती स्त्रियां थीं, उस सभों को चीर डाला। 17 यहूदा के राजा अजर्याह के उनतालीसवें वर्ष में गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दस वर्ष शोमरोन में राज्य करता रहा। 18 उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात नबात के पुत्र यारोबाम जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह जीवन भर अलग न हुआ। 19 अश्शूर के राजा पूल ने देश पर चढ़ाई की, और मनहेम ने उसको हजार किक्कार चान्दी इस इच्छा से दी, कि वह उसका सहायक हो कर राज्य को उसके हाथ में स्थिर रखे। 20 यह चान्दी अश्शूर के राजा को देने के लिये मनहेम ने बड़े बड़े धनवान इस्राएलियों से ले ली, एक एक पुरुष को पचास पचास शेकेल चान्दी देनी पड़ी; तब अश्शूर का राजा देश को छोड़ कर लौट गया। 21 मनहेम के उौर काम जो उसने किए, वे सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 22 निदान मनहेम अपने पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र पकहयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 23 यहूदा के राजा अजर्याह के पचासवें वर्ष में मनहेम का पुत्र पकह्याह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 24 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात नबात के पुत्र यारोबाम जिसने इस्राएल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 25 उसके सरदार रमल्याह के पुत्र पेकह ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी कर के, शोमरोन के राजभवन के गुम्मट में उसको और उसके संग अर्गोब और अर्ये को मारा; और पेकह के संग पचास गिलादी पुरुष थे, और वह उसका घात कर के उसके स्थान पर राजा बन गया। 26 पकह्याह के और सब काम जो उसने किए, वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 27 यहूदा के राजा अजर्याह के बावनवें वर्ष में रमल्याह का पुत्र पेकह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और बीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 28 उसने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, अर्थात नबात के पुत्र यारोबाम, जिसने इस्राऐल से पाप कराया था, उसके पापों के अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 29 इस्राएल के राजा पेकह के दिनों में अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आकर इय्योन, अबेल्बेत्माका, यानोह, केदेश और हासोर नाम नगरों को और गिलाद और गालील, वरन नप्ताली के पूरे देश को भी ले लिया, और उनके लोगों को बन्धुआ कर के अश्शूर को ले गया। 30 उजिय्याह के पुत्र योताम के बीसवें वर्ष में एला के पुत्र होशे ने रमल्याह के पुत्र पेकह से राजद्रोह की गोष्ठी कर के उसे मारा, और उसे घात कर के उसके स्थान पर राजा बन गया। 31 पेकह के और सब काम जो उसने किए वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं।

2 राजा अध्याय 17 1 यहूदा के राजा आहाज के बारहवें वर्ष में एला का पुत्र होशे शोमरोन में, इस्राएल पर राज्य करने लगा, और नौ वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उसने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था, परन्तु इस्राएल के उन राजाओं के बराबर नहीं जो उस से पहिले थे। 3 उस पर अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने चढ़ाई की, और होशे उसके आधीन हो कर, उसको भेंट देने लगा। 4 परन्तु अश्शूर के राजा ने होशे को राजद्रोह की गोष्ठी करने वाला जान लिया, क्योंकि उसने “सो” नाम मिस्र के राजा के पास दूत भेजे, और अश्शूर के राजा के पास सालियाना भेंट भेजनी छोड़ दी; इस कारण अश्शूर के राजा ने उसको बन्द किया, और बेड़ी डालकर बन्दीगृह में डाल दिया। 5 तब अश्शूर के राजा ने पूरे देश पर चढ़ाई की, और शोमरोन को जा कर तीन वर्ष तक उसे घेरे रहा। 6 होशे के नौवें वर्ष में अश्शूर के राजा ने शोमरोन को ले लिया, और इस्राएल को अश्शूर में ले जा कर, हलह में और गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियों के नगरों में बसाया। 7 इसका यह कारण है, कि यद्यपि इस्राएलियों का परमेश्वर यहोवा उन को मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ा कर मिस्र देश से निकाल लाया था, तौभी उन्होंने उसके विरुद्ध पाप किया, और पराये देवताओं का भय माना। 8 और जिन जातियों को यहोवा ने इस्राएलियों के साम्हने से देश से निकाला था, उनकी रीति पर, और अपने राजाओं की चलाई हुई रीतियों पर चलते थे। 9 और इस्राएलियों ने कपट कर के अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध अनुचित काम किए, अर्थात पहरुओं के गुम्मट से ले कर गढ़ वाले नगर तक अपनी सारी बस्तियों में ऊंचे स्थान बना लिए; 10 और सब ऊंची पहाडिय़ों पर, और सब हरे वृक्षों के तले लाठें और अशेरा खड़े कर लिए। 11 और ऐसे ऊंचे स्थानों में उन जातियों की नाईं जिन को यहोवा ने उनके साम्हने से निकाल दिया था, धूप जलाया, और यहोवा को क्रोध दिलाने के योग्य बुरे काम किए। 12 और मूरतों की उपासना की, जिसके विषय यहोवा ने उन से कहा था कि तुम यह काम न करना। 13 तौभी यहोवा ने सब भविष्यद्वक्ताओं और सब दशिर्यों के द्वारा इस्राएल और यहूदा को यह कह कर चिताया था, कि अपनी बुरी चाल छोड़ कर उस सारी व्यवस्था के अनुसार जो मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दी थी, और अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के हाथ तुम्हारे पास पहुंचाई है, मेरी आज्ञाओं और विधियों को माना करो। 14 परन्तु उन्होंने न माना, वरन अपने उन पुरखाओं की नाईं, जिन्होंने अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वास न किया था, वे भी हठीले बन गए। 15 और वे उसकी विधियों और अपने पुरखाओं के साथ उसकी वाचा, और जो चितौनियां उसने उन्हें दी थीं, उन को तुच्छ जान कर, निकम्मी बातों के पीछे हो लिए; जिस से वे आप निकम्मे हो गए, और अपने चारों ओर की उन जातियों के पीछे भी हो लिए जिनके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि उनके से काम न करना। 16 वरन उन्होंने अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को त्याग दिया, और दो बछड़ों की मूरतें ढाल कर बनाईं, और अशेरा भी बनाईं; और आकाश के सारे गणों को दण्डवत की, और बाल की उपासना की। 17 और अपने बेटे-बेटियों को आग में होम कर के चढाया; और भावी कहने वालों से पूछने, और टोना करने लगे; और जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था जिस से वह क्रोधित भी होता है, उसके करने को अपनी इच्छा से बिक गए। 18 इस कारण यहोवा इस्राएल से अति क्रोधित हुआ, और उन्हें अपने साम्हने से दूर कर दिया; यहूदा का गोत्र छोड़ और कोई बचा न रहा। 19 यहूदा ने भी अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं न मानीं, वरन जो विधियां इस्राएल ने चलाई थीं, उन पर चलने लगे। 20 तब यहोवा ने इस्राएल की सारी सन्तान को छोड़ कर, उन को दु:ख दिया, और लूटने वालों के हाथ कर दिया, और अन्त में उन्हें अपने साम्हने से निकाल दिया। 21 उसने इस्राएल को तो दाऊद के घराने के हाथ से छीन लिया, और उन्होंने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा बनाया; और यारोबाम ने इस्राएल को यहोवा के पीछे चलने से दूर खींच कर उन से बड़ा पाप कराया। 22 सो जैसे पाप यारोबाम ने किए थे, वैसे ही पाप इस्राएली भी करते रहे, और उन से अलग न हुए। 23 अन्त में यहोवा ने इस्राएल को अपने साम्हने से दूर कर दिया, जैसे कि उसने अपने सब दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। इस प्रकार इस्राएल अपने देश से निकाल कर अश्शूर को पहुंचाया गया, जहां वह आज के दिन तक रहता है। 24 और अश्शूर के राजा ने बाबेल, कूता, अब्वा हमात और सपवैंम नगरों से लोगों को लाकर, इस्राएलियों के स्थान पर शोमरोन के नगरों में बसाया; सो वे शोमरोन के अधिकारी हो कर उसके नगरों में रहने लगे। 25 जब वे वहां पहिले पहिले रहने लगे, तब यहोवा का भय न मानते थे, इस कारण यहोवा ने उनके बीच सिंह भेजे, जो उन को मार डालने लगे। 26 इस कारण उन्होंने अश्शूर के राजा के पास कहला भेजा कि जो जातियां तू ने उनके देशों से निकाल कर शोमरोन के नगरों में बसा दी हैं, वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानतीं, उस से उसने उसके मध्य सिंह भेजे हैं जो उन को इसलिये मार डालते हैं कि वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानते। 27 तब अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी, कि जिन याजकों को तुम उस देश से ले आए, उन में से एक को वहां पहुंचा दो; और वह वहां जा कर रहे, और वह उन को उस देश के देवता की रीति सिखाए। 28 तब जो याजक शोमरोन से निकाले गए थे, उन में से एक जा कर बेतेल में रहने लगा, और उन को सिखाने लगा कि यहोवा का भय किस रीति से मानना चाहिये। 29 तौभी एक एक जाति के लोगों ने अपने अपने निज देवता बना कर, अपने अपने बसाए हुए नगर में उन ऊंचे स्थानों के भवनों में रखा जो शोमरोनियों ने बसाए थे। 30 बाबेल के मनुष्यों ने तो सुक्कोतबनोत को, कूत के मनुष्यों ने नेर्गल को, हमात के मनुष्यों ने अशीमा को, 31 और अव्वियों ने निभज, और तर्त्ताक को स्थापित किया; और सपवैंमी लोग अपने बेटों को अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक नाम सपवैंम के देवताओं के लिये होम कर के चढ़ाने लगे। 32 यों वे यहावा का भय मानते तो थे, परन्तु सब प्रकार के लोगों में से ऊंचे स्थानों के याजक भी ठहरा देते थे, जो ऊंचे स्थानों के भवनों में उनके लिये बलि करते थे। 33 वे यहोवा का भय मानते तो थे, परन्तु उन जातियों की रीति पर, जिनके बीच से वे निकाले गए थे, अपने अपने देवताओं की भी उपासना करते रहे। 34 आज के दिन तक वे अपनी पहिली रीतियों पर चलते हैं, वे यहोवा का भय नहीं मानते। 35 न तो उपनी विधियों और नियमों पर और न उस व्यवस्था और आज्ञा के अनुसार चलते हैं, जो यहोवा ने याकूब की सन्तान को दी थी, जिसका नाम उसने इस्राएल रखा था। उन से यहोवा ने वाचा बान्धकर उन्हें यह आज्ञा दी थी, कि तुम पाराये देवताओं का भय न मानना और न उन्हें दण्डवत करना और न उनकी उपासना करना और न उन को बलि चढ़ाना। 36 परन्तु यहोवा जो तुम को बड़े बल और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मिस्त्र देश से निकाल ले आया, तुम उसी का भय मानना, उसी को दण्डवत करना और उसी को बलि चढ़ाना। 37 और उसने जो जो विधियां और नियम और जो व्यवस्था और आज्ञाएं तुम्हारे लिये लिखीं, उन्हें तुम सदा चौकसी से मानते रहो; और पराये देवताओं का भय न मानना। 38 और जो वाचा मैं ने तुम्हारे साथ बान्धी है, उसे न भूलना और पराये देवताओं का भय न मानना। 39 केवल अपने परमेश्वर यहोवा का भय पानना, वही तुम को तुम्हारे सब शत्रुओं के हाथ से बचाएगा। 40 तौभी उन्होंने न माना, परन्तु वे अपनी पहिली रीति के अनुसार करते रहे। 41 अतएव वे जातियां यहोवा का भय मानती तो थीं, परन्तु अपनी खुदी हुई मूरतों की उपासना भी करती रहीं, और जैसे वे करते थे वैसे ही उनके बेटे पोते भी आज के दिन तक करते हैं।