पाठ 10 : यहोशू और कालेब
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सारांश
यहोशु और कालेब मूसा के पश्चात् यहोशू एवं कालेब इस्राएल के महान अगुवे थे। सर्वसामर्थी परमेश्वर में उनका विश्वास दृढ़ था और इस विश्वास से उन्होंने साहस एवं विजय के साथ इस्त्राएल के युद्ध लड़े। उनका पहला उल्लेख गिनती 13 में है। मिस्त्र से उनकी यात्रा के दो वर्ष पश्चात, इस्राएली लोग कनान की सीमा, कादेश-बर्ने पहुँचे। उस देश की बहुतायत तथा वहाँ के प्रतिरोध को जानने के लिए वहाँ गुप्तचर भेजने पड़े थे। अतः मूसा ने इसके लिए प्रत्येक बारह गोत्र से एक एक अगुवे को चुना। यहोशू को नून का पुत्र होशे कहा जाता है, और कालेब भी उनमें से एक था। यहोशू एवं कालेब को छोड़ शेष सभी गुप्तचरों ने उस देश के निवासियों को विशाल तथा बलवान बताया। जबकि अन्य दस ने इस्राएलियों के मनों को शंका, भय एवं आंतक से भर दिया, यहोशू एवं कालेब ने दृढ़ता के साथ कहा कि परमेश्वर की सहायता से वे विजयी होंगे। लोगों ने अन्य दस पर विश्वास किया और इन दो पुरुषों को पत्थरवाह करने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्होंने सोचा कि वे उन्हें भ्रमित कर रहे थे। इस कारण परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का। वह अपने तेज़ के साथ मिलापवाले तम्बू में प्रकट हुआ और उनसे बात की। इस्त्राएलियों ने कितनी सहजता से मिस्र में हुए उन आश्चर्यकर्मों को भुला दिया था जिनका परिणाम बन्धुवाई से उनका छुटकारा था। उन्होंने कितनी शीघ्रता से उन आश्चर्यजनक कार्यों को भुला दिया था जिनके द्वारा परमेश्वर ने जंगल में उनकी अगुवाई की थी। वे अविश्वासी कुड़कुड़ाने वाले लोग बने रहे। अतः परमेश्वर ने घोषणा किया कि कालेब और यहोशू को छोड़ उनमें से कोई भी प्रतिज्ञात देश में प्रवेश नहीं करेगा (गिनती 14:29)। इस शाप को उन्होंने उनके अपने अविश्वास के द्वारा स्वयं पर लाया था। इसका परिणाम जंगल में और अड़तीस वर्ष तक भटकना हुआ। यरीहो के निकट मोआब पहुँचने पर मूसा ने लोगों की गणना की। कालेब और यहोशू को छोड़ उनमें कोई नहीं था जिनकी चालीस वर्ष पूर्व सीनै पर गिनती की गई थी (गिनती 26:63-65 और 32:10-12)। वे दृढ़ विश्वास के साथ मिस्र से निकले थे। फिर भी जब प्रतिज्ञात देश पर अधिकार करने का समय आया तो उन्होंने अपना विश्वास खो दिया। इसके अलावा वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले ही जंगल में मर गए। शेष लोगों से बिल्कुल विपरीत कालेब और यहोशू अपने विश्वास में स्थिर रहे। उन्हें उनकी दृढ़ता के लिए प्रतिफल दिया गया क्योंकि वे प्रतिज्ञात देश में गए और वहाँ अधिकार किया। कालेब यहूदा के गोत्र का था और यहोशू एप्रैम के। यहोशू को सीनै पर्वत पर मूसा के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पूर्व उल्लेखों में कालेब अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति प्रतीत होता है। कालेब ने ही उन दस अगुवों को उनके नकारात्मक कथन के लिए उलाहना दिया था (गिनती. 13:30)। जब अनिश्चितता बनी हुई थी यहोशू ने हस्तक्षेप किया (गिनती. 14:6-10)। फिर भी हम देखते हैं कि यह परमेश्वर की योजना में था कि मूसा की मृत्यु के पश्चात यहोशू अगुवा बने। यह ध्यान देने योग्य बात है कि कालेब इस द्वितीय पद को ग्रहण करने का विशाल हृदय था - एक और ऐसा गुण जो सराहनीय है। हम देखते हैं कि कालेब वृद्धावस्था तक अपने इस विश्वास में बना रहा। वह अपने मीरास के प्रदेश (हेब्रोन, जिसे किर्यत-अर्बा भी कहते हैं) में गया, वहाँ के निवासियों को निकाल भगाया और उस पर अधिकार किया (यहोशू 15:13-15, 65), जबकि उसके गोत्र के अन्य अनेक लोगों ने सोचा कि ऐसे बलवान शत्रुओं का सामना कठिन होगा। कालेब ने अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को ग्रहण किया, इसलिए वह परमेश्वर की योजना पर चलने और अपने अधिकारों का दावा करने से नहीं हिचकिचाया। यहोशू का नेतृत्व इस्त्राएलियों के इतिहास में एक बड़े महत्व का है क्योंकि उसी ने उन्हें प्रतिज्ञात देश में प्रवेश कराया और उनके शत्रुओं को पराजित किया, इस प्रकार उन्हें उस देश पर अधिकार दिलाया। वह कभी भी प्रभु के मार्गों से नहीं भटका। उसने विश्वस्तता के साथ अपने दायित्व को पूरा किया। जो महानता एवं पहचान इन दो अगुवों ने प्राप्त की उससे उन्हें घमण्ड नहीं हुआ। वे सच्चे तथा दीन बने रहे। अतः प्रभु ने उन्हें बहुत आशीष दी।
बाइबल अध्यन
गिनती अध्याय 13 1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 कनान देश जिसे मैं इस्त्राएलियों को देता हूं उसका भेद लेने के लिये पुरूषों को भेज; वे उनके पितरों के प्रति गोत्र का एक प्रधान पुरूष हों। 3 यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरूषों को पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्त्राएलियों के प्रधान थे। 4 उनके नाम ये हैं, अर्थात रूबेन के गोत्र में से जककूर का पुत्र शम्मू; 5 शिमोन के गोत्र में से होरी का पुत्र शापात; 6 यहूदा के गोत्र में से यपुन्ने का पुत्र कालेब; 7 इस्साकार के गोत्र में से योसेप का पुत्र यिगाल; 8 एप्रैम के गोत्र में से नून का पुत्र होशे; 9 बिन्यामीन के गोत्र में से रापू का पुत्र पलती; 10 जबूलून के गोत्र में से सोदी का पुत्र गद्दीएल; 11 यूसुफ वंशियों में, मनश्शे के गोत्र में से सूसी का पुत्र गद्दी; 12 दान के गोत्र में से गमल्ली का पुत्र अम्मीएल; 13 आशेर के गोत्र में से मीकाएल का पुत्र सतूर; 14 नप्ताली के गोत्र में से वोप्सी का पुत्र नहूबी; 15 गाद के गोत्र में से माकी का पुत्र गूएल। 16 जिन पुरूषों को मूसा ने देश का भेद लेने के लिये भेजा था उनके नाम ये ही हैं। और नून के पुत्र होशे का नाम उसने यहोशू रखा। 17 उन को कनान देश के भेद लेने को भेजते समय मूसा ने कहा, इधर से, अर्थात दक्षिण देश हो कर जाओ, 18 और पहाड़ी देश में जा कर उस देश को देख लो कि कैसा है, और उस में बसे हुए लोगों को भी देखो कि वे बलवान् हैं वा निर्बल, थोड़े हैं वा बहुत, 19 और जिस देश में वे बसे हुए हैं सो कैसा है, अच्छा वा बुरा, और वे कैसी कैसी बस्तियों में बसे हुए हैं, और तम्बुओं में रहते हैं वा गढ़ वा किलों में रहते हैं, 20 और वह देश कैसा है, उपजाऊ है वा बंजर है, और उस में वृक्ष हैं वा नहीं। और तुम हियाव बान्धे चलो, और उस देश की उपज में से कुछ लेते भी आना। वह समय पहली पक्की दाखों का था। 21 सो वे चल दिए, और सीन नाम जंगल से ले रहोब तक, जो हमात के मार्ग में है, सारे देश को देखभालकर उसका भेद लिया। 22 सो वे दक्षिण देश हो कर चले, और हेब्रोन तक गए; वहां अहीमन, शेशै, और तल्मै नाम अनाकवंशी रहते थे। हेब्रोन तो मिस्र के सोअन से सात वर्ष पहिले बसाया गया था। 23 तब वे एशकोल नाम नाले तक गए, और वहां से एक डाली दाखों के गुच्छे समेत तोड़ ली, और दो मनुष्य उस एक लाठी पर लटकाए हुए उठा ले चले गए; और वे अनारोंऔर अंजीरों में से भी कुछ कुछ ले आए। 24 इस्त्राएली वहां से जो दाखों का गुच्छा तोड़ ले आए थे, इस कारण उस स्थान का नाम एशकोल नाला रखा गया। 25 चालीस दिन के बाद वे उस देश का भेद ले कर लौट आए। 26 और पारान जंगल के कादेश नाम स्थान में मूसा और हारून और इस्त्राएलियों की सारी मण्डली के पास पहुंचे; और उन को और सारी मण्डली को संदेशा दिया, और उस देश के फल उन को दिखाए। 27 उन्होंने मूसा से यह कहकर वर्णन किया, कि जिस देश में तू ने हम को भेजा था उस में हम गए; उस में सचमुच दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और उसकी उपज में से यही है। 28 परन्तु उस देश के निवासी बलवान् हैं, और उसके नगर गढ़ वाले हैं और बहुत बड़े हैं; और फिर हम ने वहां अनाकवंशियों को भी देखा। 29 दक्षिण देश में तो अमालेकी बसे हुए हैं; और पहाड़ी देश में हित्ती, यबूसी, और एमोरी रहते हैं; और समुद्र के किनारे किनारे और यरदन नदी के तट पर कनानी बसे हुए हैं। 30 पर कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगों को चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़ के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है। 31 पर जो पुरूष उसके संग गए थे उन्होंने कहा, उन लोगों पर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान् हैं। 32 और उन्होंने इस्त्राएलियों के साम्हने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया था यह कहकर निन्दा भी की, कि वह देश जिसका भेद लेने को हम गये थे ऐसा है, जो अपने निवासियों निगल जाता है; और जितने पुरूष हम ने उस में देखे वे सब के सब बड़े डील डौल के हैं। 33 फिर हम ने वहां नपीलों को, अर्थात नपीली जाति वाले अनाकवंशियों को देखा; और हम अपनी दृष्टि में तो उनके साम्हने टिड्डे के सामान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे॥
गिनती अध्याय 14 6 और नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब, जो देश के भेद लेने वालों में से थे, अपने अपने वस्त्र फाड़कर,
गिनती अध्याय 14 24 परन्तु इस कारण से कि मेरे दास कालिब के साथ और ही आत्मा है, और उसने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिस में वह हो आया है पहुंचाऊंगा, और उसका वंश उस देश का अधिकारी होगा। 29 तुम्हारी लोथें इसी जंगल में पड़ी रहेंगी; और तुम सब में से बीस वर्ष की वा उससे अधिक अवस्था के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बुड़बुड़ाते थे, 30 उस में से यपुन्ने के पुत्र कालिब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैं ने शपथ खाई है कि तुम को उस में बसाऊंगा।
गिनती अध्याय 26 63 मूसा और एलीआजर याजक जिन्होंने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर इस्त्राएलियों को गिन लिया, उनके गिने हुए लोग इतने ही थे। 64 परन्तु जिन इस्त्राएलियों को मूसा और हारून याजक ने सीनै के जंगल में गिना था, उन में से एक पुरूष इस समय के गिने हुओं में न था। 65 क्योंकि यहोवा ने उनके विषय कहा था, कि वे निश्चय जंगल में मर जाएंगे, इसलिये यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़, उन में से एक भी पुरूष नहीं बचा॥
गिनती अध्याय 32 10 इसलिये उस समय यहोवा ने कोप करके यह शपथ खाई कि, 11 नि:सन्देह जो मनुष्य मिस्र से निकल आए हैं उन में से, जितने बीस वर्ष के वा उससे अधिक अवस्था के हैं, वे उस देश को देखने न पाएंगे, जिसके देने की शपथ मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई है, क्योंकि वे मेरे पीछे पूरी रीति से नहीं हो लिये; 12 परन्तु यपुन्ने कनजी का पुत्र कालेब, और नून का पुत्र यहोशू, ये दोनों जो मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिये हैं ये तो उसे देखने पाएंगे।
गिनती अध्याय 13 30 पर कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगों को चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़ के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है।
गिनती अध्याय 14 6 और नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब, जो देश के भेद लेने वालों में से थे, अपने अपने वस्त्र फाड़कर, 7 इस्त्राएलियों की सारी मण्डली से कहने लगे, कि जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है। 8 यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमे दे देगा। 9 केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरुद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो। 10 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इन को पत्थरवाह करो। तब यहोवा का तेज सब इस्त्राएलियों पर प्रकाशमान हुआ॥
यहोशू अध्याय 15 13 और यपुन्ने के पुत्र कालेब को उसने यहोवा की आज्ञा के अनुसार यहूदियों के बीच भाग दिया, अर्थात किर्यतर्बा जो हेब्रोन भी कहलाता है (वह अर्बा अनाक का पिता था)। 14 और कालेब ने वहां से शेशै, अहीमन, और तल्मै नाम, अनाक के तीनों पुत्रों को निकाल दिया। 15 फिर वहां से वह दबीर के निवासियों पर चढ़ गया; पूर्वकाल में तो दबीर का नाम किर्यत्सेपेर था।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1. परमेश्वर द्वारा यहोशू को क्या कार्य दिया गया था ?
उ 1 :मूसा के बाद इस्राएलियों का नेतृत्व करने के लिए परमेश्वर ने यहोशू को नियुक्त किया था । यरदन नदी के पार कनान देश में प्रवेश कराने और देश में दिया हर एक गोत्र को हिस्सा बांटकर देने का अधिकार दिया था।प्र 2. समस्त इस्राएल के विरुद्ध कौन सी बात में यहोशू और कालेब एक साथ खड़े हुए ?
उ 2:यहोशू एवं कालेब को छोड़ शेष सभी गुप्तचरों ने उस देश के निवासियों को विशाल तथा बलवान बताया। जबकि अन्य दस नेइस्राएलियों के मनों को शंका, भय एवं आंतक से भर दिया, यहोशू एवंकालेब ने दृढ़ता के साथ कहा कि परमेश्वर की सहायता से वे विजयी होंगे।प्र 3. कालेब के चरित्र के मुख्य गुणों पर टिप्पणी कीजीए ?
उ 3 :कालेब के चरित्र के मुख्य गुण इस प्रकार है ,[a ] कालेब परमेश्वर पर विश्वास करके यहोशू के साथ खड़ा रहा। [b ]जब परमेश्वर ने मूसा के बाद यहोशू को इस्राएलियों का नेतृत्व करें तो उस ने ख़ुशी से स्वीकार किया था। [c ]बुज़ुर्ग हालत में भी परमेश्वर के नाम से लड़ाई जितनें में कालेब तैयार था।प्र 4. कालेब की मीरास का स्थान कौन सा था ?
उ 4 वह अपने मीरास के प्रदेश (हेब्रोन, जिसे किर्यत-अर्बा भी कहते हैं)में गया, वहाँ के निवासियों को निकाल भगाया और उस पर अधिकार किया ।