पाठ 36 : यीशु और सामरी स्त्री
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सारांश
यीशु के दिनों में पलिस्तीन तीन भागों में बँटा था। उत्तर में गलील था। दक्षिण में सामरिया और एकदम नीचे दक्षिण में यहूदिया था। यहूदी सामरियांे से घृणा करते थे। इसलिये वे सामान्यतः उत्तर या दक्षिण की ओर यात्रा करते समय सामरिया से होकर गुजरने से कतराते थे। एकमात्र मार्ग यरदन नदी को पार करके नदी की पूर्वी ओर जाना था और सामरिया से न जाने के कारण फिर से यरदन पार करना होता था और फिर गलील में प्रवेश होता था। (नक्शा देखें)। बेशक, यहूदिया से गलील जाने का सबसे छोटा रास्ता सामरिया से ही जाता था। गलील जाने के लिये यीशु ने इसी मार्ग को चुना।वह सामरिया के एक नगर सूखार में आया जो भूमी के उस भाग के पास है जिसे याकूब ने उसके पुत्र यूसुफ को दिया था और जहाँ याकूब का कुआँ भी है। जब चेले भोजन खरीदने गये थे यीशु कुएँ पर ही रूक गया। वहाँ एक सामरी स्त्री कुएँ से पानी भरने आई। ‘‘मुझे पानी पिला’’ यीशु ने उससे कहा। ‘‘यह कैसे हो सकता है,’’ स्त्री ने पूछी, ‘‘तू यहूदी होकर मुझे सामरी स्त्री से पानी क्यों मांगता है?’’ यीशु ने कहा, ‘‘यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझसे कहता है, ‘‘मुझे पानी पिला’ तो तू उससे मांगती और वह तुझे जीवन का जल देता।’’ स्त्री समझ नहीं पाई की प्रभु क्या कह रहा था। इसलिये वह बोली, ‘‘हे प्रभु तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं और कुआँ गहरा है। तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया?’’ उसने फिर पूछी, ‘‘क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है जिसने हमें यह कुआँ दिया और आप ही अपनी सन्तान,और अपने पशुओं समत इसमें से पीया?’’ यीशु ने कहा, ‘‘जो कोई यह जल पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनंतकाल तक प्यासा न होगा, वरन जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनंत जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।’’ चकित होकर वह बोली, ‘‘हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊँ और न जल भरने की इतनी दूर आऊँ।’’उसने उससे कहा, ‘‘जा अपने पति को यहाँ बुला ला।’’ मैं बिना पति की हूँ वह बोली। यीशु ने उससे कहा, ‘‘तू ठीक कहती है, परंतु सत्य यह है कि तेरे पाँच पति है , और जिस पुरुष के साथ तू रहती है, वह भी तेरा पति नहीं है।’’ हे प्रभु, मुझे लगता है कि तू भविष्यवक्ता है। उसने तुरंत ही यीशु के सर्वज्ञानी होने को स्वीकार कर ली और यह मान ली कि वह एक भविष्यवक्ता है। फिर बातचीत का विषय बदलते हुए वह बोली, ‘‘हमारे बापदादों ने इसी पहाड़ पर आराधना की, और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ आराधना करनी चाहिये यरूशलेम में है।’’ यहाँ हम उसके द्वारा अपने पाप के अंगीकार की स्वीकृति और उसके विषय चर्चा करने मे संकोच को देखते हैं। इसके विपरीत यह आराधना के विषय बात करती है।अपने पापों का सामना करने की बजाय धार्मिक विषयों पर बात करना आसान होता है। इस पर यीशु ने कहा, ‘‘हे नारी, मेरी बात का विश्वास कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता की आराधना करोगे, न यरूशलेम में। तुम जिसे नहीं जानते, उसकी आराधना करते हो, और हम जिसे जानते हैं उसकी आराधना करते हैं, क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है। परंतु वह समय आता है, परंतु अब भी है जिसमें सच्चे भक्त पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही आराधकों को ढूंढता है।’’स्त्री बोली, ‘‘मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिस्त कहलाता है, आनेवाला है। जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।’’ तब यीशु ने कहा, ‘‘मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ। तब स्त्री अपना घडा छोड़कर नगर में चली गई और लोगों से कहने लगी, ‘‘आओ एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैंने किया, मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?’’वे नगर के बाहर आए और उसे देखने चल पड़े। उस नगर के कई सामरियों ने स्त्री की गवाही के कारण उस पर विश्वास किया कि ‘‘जो कुछ मैंने किया मुझे बता दिया।’’ इसलिये जब सामरी उसके पास आए, उन्होंने उसे उनके साथ दो दिन ठहरने की विनती किया। और उसके वचन के कारण बहुत से लोगों ने विश्वास किया। उन्होनें स्त्री से कहा, ‘‘अब हम तेरे कहने से ही विश्वास नहीं करते, क्योंकि हम ने आप ही सुन लिया और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता हैं।’’यह आकस्मिक बात नहीं थी कि यीशु ने गलील जाने के लिये सामरिया का मार्ग चुना। यह इश्वरीय योजना थी। प्रभु ऐसी स्त्री से बात करना चाहता था जिसे उसके अनैतिक जीवनके कारण समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था। उसने सामाजिक प्रथाओं को हटाकर उससे ‘जीवन के जल’ के विषय बात किया। हमारा प्रभु सर्वोत्तम शिक्षक है। विद्वान नीकुदेमुस के लिये, उसने ‘नए जन्म’ के विषय कहा, जबकि उस स्त्री से जो पानी भरने कुएँ पर आई थी, उसने ‘‘जीवन का जल’’ के विषय कहा। बातचीत के दौरान उसने उसे बताया कि वह कौन था, वह क्या देना चाहता था, और वह उसे कैसे पा सकती थी। यहाँ अनंतकालीन परमेश्वर, एक बहिष्कृत पापी को अनंत जीवन दे रहा था। लेकिन पाने के लिये उसे तैयार होना था। उसे उसके पाप की याद दिलाने की आवश्यकता थी। इसलिये प्रभु ने उसे कहा कि वह अपने पति को बुला लाए। इस बात ने उसे यह स्वीकार करने के लिये अगुवाई प्रदान किया कि वह एक पापिनी थी जो व्यक्ति उससे बात कर रहा था वह सच्चा ‘‘मसीहा’’ था।उसकी अज्ञानता के बावजूद, सचमुच ही उसके हृदय में ‘‘मसीहा’’ के आने की आशा थी। फिर यीशु ने कहा, ‘‘मैं जो तुझसे बोल रहा हूँ, वही हूँ।’’ यही वह समय था जब उस स्त्री ने यीशु पर विश्वास की। वह अपना विश्वास तुरंत ही दूसरों के साथ बाँटना चाहती थीं, इसलिये वह उसके गाँव में गई और पुरुषों को बताई कि उसकी मुलाकात मसीह से हुई है। परमेश्वर ने उसकी सरल गवाही का उपयोग किया और कई लोग यीशु से मिलने कुएँ पर आए।यह घटना स्पष्टतः बताती है कि यीशु बुरे से बुरे पापी को भी बचा सकता है। जैसा कि किसी ने कहा है, यीशु ‘‘सबसे निचले स्तर के पापी को भी बचा सकता है।
बाइबल अध्यन
यूहन्ना अध्याय 4 6 और याकूब का कूआं भी वहीं था; सो यीशु मार्ग का थका हुआ उस कूएं पर यों ही बैठ गया, और यह बात छठे घण्टे के लगभग हुई। 7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई: यीशु ने उस से कहा, मुझे पानी पिला। 8 क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे। 9 उस सामरी स्त्री ने उस से कहा, तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों मांगता है? (क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते)। 10 यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है; मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता। 11 स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआं गहिरा है: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहां से आया? 12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कूआं दिया; और आप ही अपने सन्तान, और अपने ढोरों समेत उस में से पीया? 13 यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा। 14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा। 15 स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊं और न जल भरने को इतनी दूर आऊं। 16 यीशु ने उस से कहा, जा, अपने पति को यहां बुला ला। 17 स्त्री ने उत्तर दिया, कि मैं बिना पति की हूं: यीशु ने उस से कहा, तू ठीक कहती है कि मैं बिना पति की हूं। 18 क्योंकि तू पांच पति कर चुकी है, और जिस के पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तू ने सच कहा है। 19 स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, मुझे ज्ञात होता है कि तू भविष्यद्वक्ता है। 20 हमारे बाप दादों ने इसी पहाड़ पर भजन किया: और तुम कहते हो कि वह जगह जहां भजन करना चाहिए यरूशलेम में है। 21 यीशु ने उस से कहा, हे नारी, मेरी बात की प्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में। 22 तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है। 23 परन्तु वह समय आता है, वरन अब भी है जिस में सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही भजन करने वालों को ढूंढ़ता है। 24 परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें। 25 स्त्री ने उस से कहा, मैं जानती हूं कि मसीह जो ख्रीस्तुस कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा। 26 यीशु ने उस से कहा, मैं जो तुझ से बोल रहा हूं, वही हूं॥ 27 इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; तौभी किसी ने न कहा, कि तू क्या चाहता है? या किस लिये उस से बातें करता है। 28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी। 29 आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया: कहीं यह तो मसीह नहीं है? 30 सो वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे। 31 इतने में उसके चेले यीशु से यह बिनती करने लगे, कि हे रब्बी, कुछ खा ले। 32 परन्तु उस ने उन से कहा, मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते। 33 तब चेलों ने आपस में कहा, क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है? 34 यीशु ने उन से कहा, मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजने वाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं। 35 क्या तुम नहीं कहते, कि कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं? देखो, मैं तुम से कहता हूं, अपनी आंखे उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं। 36 और काटने वाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है; ताकि बोने वाला और काटने वाला दोनों मिलकर आनन्द करें। 37 क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है कि बोने वाला और है और काटने वाला और। 38 मैं ने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा, जिस में तुम ने परिश्रम नहीं किया: औरों ने परिश्रम किया और तुम उन के परिश्रम के फल में भागी हुए॥ 39 और उस नगर के बहुत सामरियों ने उस स्त्री के कहने से, जिस ने यह गवाही दी थी, कि उस ने सब कुछ जो मैं ने किया है, मुझे बता दिया, विश्वास किया। 40 तब जब ये सामरी उसके पास आए, तो उस से बिनती करने लगे, कि हमारे यहां रह: सो वह वहां दो दिन तक रहा। 41 और उसके वचन के कारण और भी बहुतेरों ने विश्वास किया। 42 और उस स्त्री से कहा, अब हम तेरे कहने ही से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हम ने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1. यात्रा के दौरान यहूदी लोग सामरिया में प्रवेश करने से क्यों संकोच करते थे ?
उप्र 2. जब चेले भोजन खरीदने गए तो आराम करने के लिए यीशु कहाँ बैठा था ?
उप्र 3. सामरी स्त्री उस स्थान में क्यों आई थी ? वह किस समय में आई थी ?
उप्र 4. वह किस प्रकार की स्त्री थी ?
उप्र 5. यीशु और सामरी स्त्री के बीच की बातचीत को संक्षेप में लिखे ?
उप्र 6. उसने कैसे यकीन किया की यीशु 'मसीह ' है ? फिर उसने क्या की ?
उप्र 7. 'जीवन का जल ' देनेवाला कौन है ? यह व्यक्ति के जीवन में किस तरह काम करता है ?
उप्र 8. सच्चे आराधक कौन है ?
उ
संगीत
मेरी सारी कमियां जानकर भी हमेशा प्रेम किया! मालिक, गुणाह सारे माफ करना, पापियों की आशा सिर्फ तू है मसीह।
नम्र नमन प्रभुजी, रहमत से रक्षा किया पुरा दिन प्रसन्न दिल से धन्यवाद करता हूं प्रेमी पिता मैं सदा।