पाठ 31 : यीशु के दृष्टांत - 3
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सारांश
फरीसी और शास्त्री यीशु के विरुद्ध कुड़कुड़ाते थे क्योंकि वह चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ मिलता-जुलता था। वास्तव में ऐसे लोग थे जिन्हें उद्धारकर्ता की आवश्यकता थी।
यीशु मसीह इस संसार में खोए हुओं को ढूंढ़ने और बचाने आया। इस सत्य को समझाने के लिये, उसने यह दृष्टांत कहा, ‘‘उड़ाऊ पुत्र का दृष्टांत।
एक व्यक्ति था जिसके दो पुत्र थे। छोटे पुत्र ने अपने पिता से कहा, ‘‘पिताजी, मुझे अपनी संपत्ति में से मेरा हिस्सा दे दीजिये। जाहिर है कि वह एक विद्रोही पुत्र था। वह उसके पिता
की मृत्यु होने तक नहीं रूक सका। इस प्रेमी पिता ने संपत्ति को उनके बीच बाँट दिया। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि छोटे बेटे ने अपनी सारी संपत्ति इकट्ठा किया और दूर देश चला
गया जहाँ उसने उसे मोजमस्ती के जीवन में खर्च कर दिया। जब उसने सब धन खर्च कर डाला, तो उसी समय उस पूरे देश में भयानक अकाल पड़ा और उसे कमी होने लगी। इसलिये
उसने उस देश के एक नागरिक से मिलकर बात किया जिसने उसे खेतों में सुअर चराने का काम दिया। वहाँ उसके लिये जीवन सचमुच दूभर था। वह अपना पेट उन फल्लियों से
भरने पर मजबूर था जिस फल्ली को सूअर खाते थे, परंत किसी ने उसे अच्छा भोजन नहीं दिया।
तब वह अपने आपे में आया, ‘‘मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ। मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और
उससे कहूँगा कि पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ, मुझे एक मजदूर के समान रख ले।’’ तब वह
उठा और उसके पिता के पास गया। परंतु जब वह कुछ दूर ही था, उसके पिता ने उसे देख लिया और उसका दिल उसके लिये तरस से भर गया। वह दौड़कर उसके पुत्र के पास गया,
उसे आलिंगन किया और चूमा। ‘‘पुत्र ने उससे कहा, ‘‘पिताजी, मैंने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है, और अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊँ।’’ परंतु
पिता ने अपने दासों से कहा, ‘‘झट से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहनाओ और उसके हाथ में अंगूठी और पावों में जूतियाँ पहिनाओ और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम
खाएँ और आनंद मनाएँ। क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी उठा है; खो गया था अब मिल गया है।’’ इसलिये वे आनंद करने लगे। इसी बीच उसका जेष्ठ पुत्र खेत में था।
जब वह आते हुए घर के निकट पहुँचा, तो उसने गाने-बजाने और नाचने का शब्द सुना।अतः उसने एक दास को बुलाकर पूछा, ‘‘यह क्या हो रहा है?’’ ‘‘तेरा भाई आया है’’ उसने
कहा, ‘‘और तेरे पिता ने उसे भला चंगा पाया है।’’ बड़ा पुत्र क्रोध से भर गया और भीतर जाना न चाहा। इसलिये उसका पिता बाहर आया और उसे भीतर आने के लिये मनाने लगा।
परंतु उसने पिता को उत्तर दिया, ‘‘देख मैं इतने वर्ष से तेरी सेवा कर रहा हूँ और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, तौभी तूने मुझे कभी बकरी का एक बच्चा भी न दिया कि मैं अपने मित्रों
के साथ आनंद करता। परंतु जब तेरा यह पुत्र जिसने तेरी संपत्ति वेश्याओं में उड़ा दी हैं, आया तो उसके लिये तू ने पला हुआ बछड़ा कटवाया।’’ ‘‘देख प्रिय पुत्र,’’ पिता ने कहा, ‘‘तू सर्वदा
मेरे साथ है और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। परंतु अब आनंद करना और मगन होना चाहिये क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था, फिर जी गया है, खो गया था, अब मिल गया है।’’बाइबल में यह एकदम मानवीय कहानी है और सामान्य अनुभव की है। हमारे घरों, नगरों
और देश में उड़ाऊ पुत्र पापी का चित्रण है। उड़ाऊ पुत्र जो लौट आया, परमेश्वर की संतान को दिखाता है। बाइबल कहती है कि हमारे पाप जैसे पूरब से पश्चिम दूर है उसी प्रकार हम
से दूर किये गये हैं (भजन 103:12)। पाप जो लाल रंग के थे, हिम के समान श्वेत किये गए हैं (यशायाह 1:18)। उड़ाऊ पुत्र ने तब ही पश्चाताप किया जब उसने सब कुछ खो दिया
था। जवान लोग अक्सर ऐसे ही होते हैं। जब वे अपने जीवन का आनंद लेते हैं, वे परमेश्वर के विषय नहीं सोचते, घर या माता-पिता के विषय नहीं सोचते, परंतु जब वे मुसीबतों का
सामना करते हैं, तब वे उनके बारे में सोचना शुरू करते हैं। सभोपदेशक में प्रचारक कहता है, ‘‘अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इससे पहले कि विपत्ति के
दिन और वे वर्ष आएँ जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता।’’ वह विश्वास से पतित विश्वासी के विषय भी उदाहरण है जिसने पश्चाताप किया और परमेश्वर के पास लौट
गया। इसके विपरीत, बड़े पुत्र में हम अपने आपको धर्मी समझने वाले पापी को देखते हैं, जो उसके उड़ाऊ भाई के लौटने से खुश नहीं था।
फरीसी आर चुंगी लेने वाले का दृष्टांत
लूका 18:10-14
यीशु के दिनों में, फरीसी एक संप्रदाय के रूप में उनके पाखंड और उनकी अपनी धार्मिकता के कारण उदंड थे। उनके वास्तविक चरित्र को उजागर करने के लिये यीशु ने यह
दृष्टांत कहा।दो व्यक्ति मंदिर में प्रार्थना करने के लिये गए, एक फरीसी और एक चुंगी लेने वाला। फरीसी ने खड़े होकर अपने मन में यह प्रार्थना किया, ‘‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि
मैं दूसरे मनुष्यों के समान अंधेर करनेवाला, अन्यायी, और व्यभिचारी नहीं - और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूँ। मैं सप्ताह में दो बार उपवास रखता हूँ, मैं अपनी सब कमाई
का दसवाँ अंश भी देता हूँ। परंतु चूंगी लेनेवाले ने दूर खडे़ होकर स्वर्ग की ओर आँखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट-पीट कर कहा, ‘‘हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर।’’
यीशु ने अंत में कहा, ‘‘मैं तुमसे कहता हूँ कि वह दूसरा नहीं परंतु यही मनुष्य धर्मी ठहराकर घर गया। क्योंकि जो कोई अपने आपको बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा, और जो
अपने आपको छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।कुछ लोग अपने आपको धर्मी ठहराकर घमंड करते है और स्वाभाविक है कि दूसरों को कम
समझकर तुच्छ मानते हैं। यद्यपि फरीसी ‘प्रार्थना’ कर रहा था, जैसे हर प्रार्थना की जानी चाहिये। दूसरी ओर, वह अपने नैतिक और धार्मिक उपलब्धियों के विषय डींग मार रहा था।
परमेश्वर के मापदंड से स्वयँ की तुलना करके अपनी पापी अवस्था को जानने की बजाय उसने दूसरों से तुलना किया और उनसे बेहतर होने की बात पर आनंदित हुआ। कुरिन्थियों
को लिखे गये अपने पत्र में पौलुस ऐसे लोगों के विषय कहता है, ‘‘…जो अपनी प्रशंसा आप करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से मिलान करके मूर्ख ठहरते
हैं’’ (2 कुरि.10:12)। फरीसी के विपरीत, चुंगी लेनेवाले ने अपनी अयोग्यता को समझा और स्वर्ग की ओर देखना भी न चाहा। उसने रोते हुए अपनी छाती पीटकर कहा, ‘‘प्रभु
मुझ पापी पर दया कर।’’ कुछ आश्चर्य की बात है कि चुंगी लेने वाला ही था जो धर्मी ठहराया गया।
निदयीर्स व्यक्ति का दृष्टांत
मत्ती 18:23-35
पतरस ने यीशु से पूछा कि यदि कोई भाई उसके विरुद्ध पाप करे तो उसे कितनी बार क्षमा करना चाहिये। शायद उसने सोचा होगा कि सात बार जरूरत से भी ज्यादा होगा। लेकिन
प्रभु का जवाब था, ‘‘सात बार तक नहीं परंतु सात बार से सत्तर गुने तक।’’ इसे समझाने के लिये यीशु ने यह दृष्टांत कहा।स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। जब वह लेखा
लेने लगा तो एक जन उसके सामने लाया गया जो दस हजार तोड़े का कर्जदार था। क्योंकि वह कर्ज अदा नहीं कर सकता था, स्वामी ने आदेश दिया कि उसका कर्ज अदा करने के
लिये उसकी पत्नी, बच्चों को और जो कुछ उसका है, बेच दिया जाए। इस पर वह दास उसके सामने मुँह के बल गिर पड़ा। ‘‘मुझ पर दया कर’’ उसने विनती किया। ‘‘मैं सब कुछ चुका
दूँगा।’’ दास के स्वामी ने उस पर दया किया, उसका कर्ज माफ कर दिया और उसे जाने दिया। दास आनंदित हृदय से बाहर निकला। रास्ते में उसे उसका एक संगी दास मिल गया
जो उसके सौ दिनार का कर्जदार था। उसने उसे पकड़कर गला घोंटा और कहा, ‘‘जो कुछ तुझ पर कर्ज है, भर दे।’’ उसका संगी दास उसके पैरों पर गिर पड़ा और बिनती करने लगा,
‘‘धीरज धर मैं सब भर दूंगा।’’ परंतु वह न माना। इसके विपरीत वह गया और जाकर इस व्यक्ति को बंदीगृह में डाल दिया जब तक वह कर्ज अदा न कर दें, वहीं रहे। जब अन्य संगी
दासों जो कुछ हुआ था देखा तो वे बहुत दुखी हुए और जाकर स्वामी से बता दिया। तब स्वामी ने उस पहले दास को भीतर बुलाया। ‘‘हे दुष्ट दास’’ उसने कहा, ‘‘तूने जो मुझसे
विनती की, तो मैंने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया नहीं करना चाहिये था?’’ क्रोध में आकर उसके स्वामी ने उसे दंड देनेवालों के हाथ में सौंप दिया
कि जब तक वह सब कर्ज भर न दे, तब तक उनके हाथ में रहे।‘‘इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा तो मेरा पिता
जो स्वर्ग में है, तुमसे भी वैसा ही करेगा।’’‘‘सात बार के सत्तर गुने को शाब्दिक रूप में नहीं लेना चाहिये। हमारे प्रभु का उद्देश्य यह नहीं था कि हम हमारे भाई को केवल 490 बार ही माफ करें। यह संख्यकी तरीका था कि
हमें असीमित रूप से माफ करना चाहिये। इस दृष्टांत से हम सीखते हैं कि हमें हमारे अनगिनित पापों के लिये क्षमा किया गया है, इसलिये हमें अपने भाइयों को भी क्षमा करना
चाहिये। व्यक्ति को क्षमा प्राप्ति के लिये दूसरों को क्षमा करना चाहिये। ‘‘धन्य हैं वे जो दयावंत है, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।’’ (मत्ती 5:7)
बाइबल अध्यन
लूका अध्याय 15 11 फिर उस ने कहा, किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। 12 उन में से छुटके ने पिता से कहा कि हे पिता संपत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए। उस ने उन को अपनी संपत्ति बांट दी। 13 और बहुत दिन न बीते थे कि छुटका पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहां कुकर्म में अपनी संपत्ति उड़ा दी। 14 जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। 15 और वह उस देश के निवासियों में से एक के यहां जा पड़ा : उस ने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिये भेजा। 16 और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; और उसे कोई कुछ नहीं देता था। 17 जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, कि मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहां भूखा मर रहा हूं। 18 मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊंगा और उस से कहूंगा कि पिता जी मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। 19 अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले। 20 तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला: वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। 21 पुत्र ने उस से कहा; पिता जी, मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊं। 22 परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा; फट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहिनाओ, और उसके हाथ में अंगूठी, और पांवों में जूतियां पहिनाओ। 23 और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खांए और आनन्द मनावें। 24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है : खो गया था, अब मिल गया है: और वे आनन्द करने लगे। 25 परन्तु उसका जेठा पुत्र खेत में था : और जब वह आते हुए घर के निकट पहुंचा, तो उस ने गाने बजाने और नाचने का शब्द सुना। 26 और उस ने एक दास को बुलाकर पूछा; यह क्या हो रहा है? 27 उस ने उस से कहा, तेरा भाई आया है; और तेरे पिता ने पला हुआ बछड़ा कटवाया है, इसलिये कि उसे भला चंगा पाया है। 28 यह सुनकर वह क्रोध से भर गया, और भीतर जाना न चाहा : परन्तु उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। 29 उस ने पिता को उत्तर दिया, कि देख; मैं इतने वर्ष से तरी सेवा कर रहा हूं, और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, तौभी तू ने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपने मित्रों के साथ आनन्द करता। 30 परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी संपत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिये तू ने पला हुआ बछड़ा कटवाया। 31 उस ने उस से कहा; पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। 32 परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था फिर जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है॥
भजन संहिता अध्याय 103 12 उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उसने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है।
यशायाह अध्याय 1 18 यहोवा कहता है, आओ, हम आपस में वादविवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम की नाईं उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएंगे।
लूका अध्याय 18 10 कि दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्थना करने के लिये गए; एक फरीसी था और दूसरा चुंगी लेने वाला। 11 फरीसी खड़ा होकर अपने मन में यों प्रार्थना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्यों की नाईं अन्धेर करने वाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेने वाले के समान हूं। 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपनी सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं। 13 परन्तु चुंगी लेने वाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंखें उठाना भी न चाहा, वरन अपनी छाती पीट-पीटकर कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर। 14 मैं तुम से कहता हूं, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जाकर अपने घर गया; क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा॥
2 कुरिन्थियों अध्याय 10 12 क्योंकि हमें यह हियाव नहीं कि हम अपने आप को उन में से ऐसे कितनों के साथ गिनें, या उन से अपने को मिलाएं, जो अपनी प्रशंसा करते हैं, और अपने आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से मिलान करके मूर्ख ठहरते हैं।
मत्ती अध्याय 1823 इसलिये स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिस ने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। 24 जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके साम्हने लाया गया जो दस हजार तोड़े धारता था। 25 जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्वामी ने कहा, कि यह और इस की पत्नी और लड़के बाले और जो कुछ इस का है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए। 26 इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा; हे स्वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूंगा। 27 तब उस दास के स्वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका धार क्षमा किया। 28 परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उस को मिला, जो उसके सौ दीनार धारता था; उस ने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा, और कहा; जो कुछ तू धारता है भर दे। 29 इस पर उसका संगी दास गिरकर, उस से बिनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूंगा। 30 उस ने न माना, परन्तु जाकर उसे बन्दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे। 31 उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जाकर अपने स्वामी को पूरा हाल बता दिया। 32 तब उसके स्वामी ने उस को बुलाकर उस से कहा, हे दुष्ट दास, तू ने जो मुझ से बिनती की, तो मैं ने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। 33 सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था? 34 और उसके स्वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्ड देने वालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उन के हाथ में रहे। 35 इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा॥
मत्ती अध्याय 5 7 धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
प्रश्न-उत्तर
प्र1. उड़ाऊ पुत्र अपने आपे में कब आया ? फिर उसने क्या निर्णय लिया ?
उप्र 2. दृष्टांत का आत्मिक अर्थ बताएँ ?
उप्र 3. फरीसी ने किस तरह की प्रार्थना किया ?
उप्र 4. चुंगी लेने वाले ने किस तरह की प्रार्थना किया ?
उप्र 5. धर्मी ठहराए जाकर कौन लौटा और क्यों ?
उप्र 6. राजा के दास पर उसका कितना कर्ज था ?
उप्र 7. जब उसके दास ने दया की विनती किया तो राजा ने क्या किया ?
उप्र 8. राजा के दास ने , मार्ग में मिले अपने संगी दास के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उप्र 9. इस दृष्टांत से हम क्या सबक सीखते है ?
उ
संगीत
यीशु के पीछे मैं चलने लगा (3)
न लौटूंगा। (2)
1 गर कोई मेरे साथ न आवे (3) न लौटूंगा । (2)
2 संसार को छोडकर सलीब को लेकर (3) न लौटूंगा। (2)
3 संसार में सबसे प्रभु है कीमती (3)
न छोडूंगा। (2)
4 अगर मैं उसका इन्कार न करूं (3) ताज पाऊंगा। (2)