पाठ 28 : यीशु प्रकृति पर अपना अधिकार प्रगट करता है

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सारांश

गलील के काना में एक विवाह था। यीशु की माता मरियम वहाँ थी। यीशु और उसके चेलों को भी उस समारोह में आमंत्रित किया गया था। बेशक यह खुशी का अवसर था। लेकिन जल्द ही कुछ गड़बड़ हो गई। भोज के दौरान दाखरस खत्म हो गया। यह बडे़ शर्म की बात थी। मरियम ने यीशु को इस समस्या के विषय बताई। ‘‘उनके पास दाखरस नहीं रहा’’ वह बोली, ‘‘हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? उसने पूछा, ‘‘अभी मेरा समय नहीं आया।’’ यह जानकर कि यीशु इस विषय कुछ न कुछ करेगा, मरियम दासों से बोली, ‘‘जो कुछ वह तुमसे कहे, वही करना।’’ वहाँ पर छः मटके धरे थे जिन्हें समारोह में यहूदी लोग धोने के लिये पानी भरते थे। उनमें प्रत्येक में सत्तर लीटर से कम पानी नहीं आता था। यीशु ने उन्हें पानी से भर देने को कहा। ‘‘अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।’’ उन्होंने वैसा ही किया जैसा उसने उनको करने को कहा था। जब भोज के प्रधान ने उसे चखा और नहीं जानता था कि वह कहाँ से लाया गया है, तो उसने दूल्हे को बुलाकर कहा, ‘‘हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है और लोग जब पीकर छक जाते हैं तब मध्यम देता है, परंतु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।’’ काना में यह आश्चर्यजनक चिन्ह यीशु की महिमा का पहला प्रदर्शन था। और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया। यह बात ध्यान देने योग्य है कि वह आनंद मनाने का समय था जब यीशु ने अपना पहला चमत्कार किया। हमारा प्रभु दुख से परिचित था परंतु वह आनंद के समय को भी जानता था। स्थिति चाहे दुख की हो या खुशी की, तब भी वह हमारा प्रभु होता है। इस आश्चर्यकर्म ने शिष्यों के विश्वास को मजबूत बना दिया। दूसरे लोग उससे प्रभावित होंगे, परंतु केवल वे जो उससे प्रेम करते और उस पर विश्वास करते हैं, वास्तव में उसके विषय सत्य को समझते हैं। दाखरस आनंद को दर्शाता है। (भजन 104:15)। जीवन में हम कभी-कभी इसकी कमी महसूस करते हैं। लेकिन हमारा प्रभु अद्भुत रीति से हमारे जीवन में मिठास ला सकता है। 2. पाँच हजार को खिलाना मत्ती 14:15-21। (मरकुस 6:30-44, लूका 9:10-17, यूहन्ना 6:1-14 भी देखें)। यह आश्चर्यकर्म चारों सुसमाचारों में लिखा गया है। लूका के अनुसार यह चमत्कार बैतहसदा के क्षेत्र में हुआ। यह मालुम होते ही कि यीशु वहाँ है, एक बड़ी भीड़ उसके पास गई। वह उनके प्रति तरस से भर गया क्योंकि वे चरवाहे के बिना भेडों के समान थे। उसने उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय बताया और बीमारों को चंगा किया। दोपहर के बाद चेले उसके पास आए कहने लगे, ‘‘इन लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें और रात को टिक सकें।’’ यीशु ने फिलिप्पुस से कहा, ‘‘हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ।’’ वह उसे परख रहा था, क्योंकि वह स्वयँ जानता था कि वह क्या करने वाला था। फिलिप्पुस ने उसे उत्तर दिया, ‘‘दो सौ दीनार10 की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।’’ शिमौन पतरस के भाई अंद्रियास ने कहा, ‘‘यहाँ एक लड़का है जिसके पास जौ कि पाँच रोटी और दो मछलियाँ है, परंतु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं? यीशु ने उसके चेलों से कहा, लोगों को 50-50 की पंक्ति में बिठा दो।’’ (वहाँ करीब पांच हजार लोग थे)। वह एक घासवाला स्थान था। चेलों ने वैसा ही किया। सब लोग बैठ गए। पाँच रोटी और दो मछलियों को धन्यवाद दिया।और उसे तोड़ा। फिर उसने उन्हें चेलों को दिया कि लोगों को बाँटे। उन सबने पेट भर खाया और तृप्त हो गए। तब यीशु ने चेले से कहा, ‘‘जो टुकडे़ बच गए हैं उन्हें बटोर लो।’’ ‘‘तब चेलों ने टुकड़ों से भरी बारह टोकरियाँ उठाया। एक अन्य अवसर पद यीशु ने चार हजार पुरुषों को जो स्त्रियों और बच्चों को छोड़कर थे, सात रोटी और कुछ मछलियों में से खिलाया और चेलों ने टुकड़ों की सात टोकरियाँ को अंत में बटोरा।यह आनंदमय बात है कि किस तरह यीशु ने भीड़ का स्वागत किया। वह उनके प्रति तरस से भर गया था। इस आश्चर्यकर्म में हम प्रभु के कार्य करने के तरीके को देखते हैं। पहले उसने चेलों को उनके सीमित स्त्रोत को लाने को कहा। फिर उसने अद्भुत रीति से उनके योगदान को बहुगुणित किया और भीड़ को बांटने के लिये उन्हें भी लौटा दिया। आज वह लोगों की जरूरत को पूरा करने के लिये हमारा उपयोग करना चाहता है। वह कहता है कि हमारे पास थोड़ा जो कुछ है, उसे हम उसके पास लाएँ। वह उन्हें अपने अनोखे तरीके से आशीषित करता है, और हमें लौटा देता है। 3. यीशु पानी पर चलता है मत्ती 14:22,23 (मरकुस 6:45-56 भी देखें) पाँच हजार लोगों को खिलाने के बाद यीशु ने चेलों को नाव में बैठकर झील के उस पार जाने को कहा। जब वह भीड़ को विदा कर चुका तो वह स्वंय पहाड़ पर प्रार्थना करने चला गया। जब संध्या हुई वह यहाँ अकेला था। उस समय तक नाव झील के बीच में थी और आंधी उसके विपरीत थी। परिणामस्वरूप, नाव डोलने लगी थी। रात के चैथे पहर11 के दौरान यीशु झील पर चलते हुए उनके पास आया। जब चेलों ने उसे पानी पर चलते देखा तो वे घबरा गए। ‘‘यह भूत है’’ उन्होंने कहा, और डर कर चिल्ला पड़े। परंतु यीशु ने उन्हें तुरंत कहा, ‘‘ढाढ़स बाँधो, मैं हूँ डरो मत।’’ इस पर पतरस बहुत चकित हुआ। उसके जिज्ञासु स्वभाव के कारण उसने यीशु से कहा, ‘‘हे प्रभु यदि तू ही है तो मुझे अपने पास पानी पर चलकर आने की आज्ञा दे।’’ ‘‘आ’’ यीशु ने कहा। तब पतरस नाव से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा। परंतु जब उसने ऊँची लहरों के चारों तरफ देखा तो डर गया और डूबने लगा। ‘‘हे प्रभु मुझे बचा,’’ वह चिल्ला पड़ा। यीशु ने तुरंत हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया और उससे कहा, ‘‘हे अल्प विश्वासी, तूने क्यों संदेह किया?’’ और जब वे नाव पर चढ़ गये तब हवा थम गई। तब जो नाव में थे उन्होंने यह कहकर दंडवत किया,‘‘सचमुच, तू परमेश्वर का पुत्र है।हमारे प्रभु ने बारहों को नाव में भेज दिया। वह स्वयँ पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। चेलों ने उसकी आज्ञा का पालन किया था। फिर भी उन्हें तूफान का सामना करना पड़ा। फिर भी हमारा प्रभु उन्हें शांति देने और शक्ति देने के लिये वहाँ था। अशांत लहरें उसके पैरों के लिये चांदी का मार्ग बन गई। हम पतरस को भी उसके साथ चलते देखते हैं। वह विश्वास से निकल पड़ा परंतु डर के आगे झुक गया। उसे केवल यीशु की ओर ही देखना था।(इब्रानियों 12:2)। उनका डर प्रभु की उपस्थिति से दूर हो गया, और तूफान उसकी सामर्थ द्वारा शांत हो गया।10. करीब-करीब यह मजदूर की आठ माह की मजदूरी होती है। 4. यीशु तूफान को शांत करता है मत्ती 8:23-26; (मरकुस 4:36-41; लूका 8:22-25 भी )। एक दिन यीशु अपने शिष्यों के साथ एक नाव में गलील के समुद्र के पार गया। उनकी यात्रा के दौरान, एक भयानक तूफान उठा और ऊँची लहरों ने नाव को डगमगाना शुरू कर दिया। परंतु यीशु सो रहा था। शिष्यों ने जाकर उसे उठाया, ‘‘प्रभु, हमें बचा, हम नष्ट हुए जाते हैं।’’ उसने कहा, ‘‘हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो?’’ फिर वह उठा और आँधी और पानी को डाँटा। तूफान शांत हो गया और बड़ी शांति हो गई। वे लोग चकित हो गए, ‘‘यह कैसा मनुष्य है कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं।’’ हमारा प्रभु हमारी भी संसार की इस तीर्थ यात्रा में हमारे साथ है। वह हमारे साथ है और हमें शांत किनारे पर ले जाएगा। हम इस प्रार्थना गीत को अच्छी तरह गाएँगे। ‘‘हे स्वर्गीय पिता हमारी अगुवाई कर,संसार की परीक्षाओं के समुद्र में, हमारी रक्षा कर, मार्गदर्शन कर, संभाल और हमें तृप्त कर, क्योंकि हमारा कोई सहायक नहीं सिवाय तेरे,फिर भी हम सारी आशीषें पाते हैं यदि परमेश्वर हमारा पिता हो।’’

बाइबल अध्यन

यूहन्ना अध्याय 2 1 फिर उस से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को ऊपर जाते और मनुष्य के पुत्रा के ऊपर उतरते देखोगे।। 2 फिर तीसरे दिन गलील के काना में किसी का ब्याह था, और यीशु की माता भी वहां थी। 3 और यीशु और उसके चेले भी उस ब्याह में नेवते गए थे। 4 जब दाखरस घट गया, तो यीशु की माता ने उस से कहा, कि उन के पास दाखरस नहीं रहा। 5 यीशु ने उस से कहा, हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी मेरा समय नहीं आया। 6 उस की माता ने सेवकों से कहा, जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना। 7 वहां यहूदियों के शुद्ध करने की रीति के अनुसार पत्थर के छ: मटके धरे थे, जि में दो दो, तीन तीन मन समाता था। 8 यीशु ने उन से कहा, अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ। 9 वे ले गए, जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था, और नहीं जानता था, कि वह कहां से आया हे, ( परन्तु जिन सेवकों ने पानी निकाला था, वे जानते थे) तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उस से कहा। 10 हर एक मनुष्य पहिले अच्छा दाखरस देता है और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तू ने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है। 11 यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहिला चिन्ह दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया॥

भजन संहिता अध्याय 104 15 और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्न जिस से वह सम्भल जाता है।

मत्ती अध्याय 14 15 जब सांझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा; यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें। 16 यीशु ने उन से कहा उन का जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो। 17 उन्होंने उस से कहा; यहां हमारे पास पांच रोटी और दो मछिलयों को छोड़ और कुछ नहीं है। 18 उस ने कहा, उन को यहां मेरे पास ले आओ। 19 तब उस ने लोगों को घास पर बैठने को कहा, और उन पांच रोटियों और दो मछिलयों को लिया; और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियां तोड़ तोड़कर चेलों को दीं, और चेलों ने लोगों को। 20 और सब खाकर तृप्त हो गए, और उन्होंने बचे हुए टुकड़ों से भरी हुई बारह टोकिरयां उठाईं। 21 और खाने वाले स्त्रियों और बालकों को छोड़कर पांच हजार पुरूषों के अटकल थे॥

मरकुस अध्याय 6 30 प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उस को बता दिया। 31 उस ने उन से कहा; तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो; क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था। 32 इसलिये वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। 33 और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहिचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहां पैदल दौड़े और उन से पहिले जा पहुंचे। 34 उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। 35 जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे; यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। 36 उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गांवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें। 37 उस ने उन्हें उत्तर दिया; कि तुम ही उन्हें खाने को दो: उन्हों ने उस से कहा; क्या हम सौ दीनार की रोटियां मोल लें, और उन्हें खिलाएं? 38 उस ने उन से कहा; जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं? उन्होंने मालूम करके कहा; पांच और दो मछली भी। 39 तब उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर पांति पांति से बैठा दो। 40 वे सौ सौ और पचास पचास करके पांति पांति बैठ गए। 41 और उस ने उन पांच रोटियों को और दो मछिलयों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियां तोड़ तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछिलयां भी उन सब में बांट दीं। 42 और सब खाकर तृप्त हो गए। 43 और उन्होंने टुकडों से बारह टोकिरयां भर कर उठाई, और कुछ मछिलयों से भी। 44 जिन्हों ने रोटियां खाईं, वे पांच हजार पुरूष थे॥

लूका अध्याय 9 10 फिर प्रेरितों ने लौटकर जो कुछ उन्होंने किया था, उस को बता दिया, और वह उन्हें अलग करके बैतसैदा नाम एक नगर को ले गया। 11 यह जानकर भीड़ उसके पीछे हो ली: और वह आनन्द के साथ उन से मिला, और उन से परमेश्वर के राज्य की बातें करने लगा: और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया। 12 जब दिन ढलने लगा, तो बारहों ने आकर उससे कहा, भीड़ को विदा कर, कि चारों ओर के गावों और बस्तियों में जाकर टिकें, और भोजन का उपाय करें, क्योंकि हम यहां सुनसान जगह में हैं। 13 उस ने उन से कहा, तुम ही उन्हें खाने को दो: उन्होंने कहा, हमारे पास पांच रोटियां और दो मछली को छोड़ और कुछ नहीं: परन्तु हां, यदि हम जाकर इन सब लोगों के लिये भोजन मोल लें, तो हो सकता है: वे लोग तो पांच हजार पुरूषों के लगभग थे। 14 तब उस ने अपने चेलों से कहा, उन्हें पचास पचास करके पांति में बैठा दो। 15 उन्होंने ऐसा ही किया, और सब को बैठा दिया। 16 तब उस ने वे पांच रोटियां और दो मछली लीं, और स्वर्ग की और देखकर धन्यवाद किया, और तोड़ तोड़कर चेलों को देता गया, कि लोगों को परोसें। 17 सो सब खाकर तृप्त हुए, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरी भरकर उठाईं॥

यूहन्ना अध्याय 6 1 इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात तिबिरियास की झील के पास गया। 2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्य कर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उन को देखते थे। 3 तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहां बैठा। 4 और यहूदियों के फसह के पर्व निकट था। 5 तब यीशु ने अपनी आंखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलेप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिये कहां से रोटी मोल लाएं? 6 परन्तु उस ने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह आप जानता था कि मैं क्या करूंगा। 7 फिलेप्पुस ने उस को उत्तर दिया, कि दो सौ दीनार की रोटी उन के लिये पूरी भी न होंगी कि उन में से हर एक को थोड़ी थोड़ी मिल जाए। 8 उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उस से कहा। 9 यहां एक लड़का है जिस के पास जव की पांच रोटी और दो मछिलयां हैं परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं? 10 यीशु ने कहा, कि लोगों को बैठा दो। उस जगह बहुत घास थी: तब वे लोग जो गिनती में लगभग पांच हजार के थे, बैठ गए: 11 तब यीशु ने रोटियां लीं, और धन्यवाद करके बैठने वालों को बांट दी: और वैसे ही मछिलयों में से जितनी वे चाहते थे बांट दिया। 12 जब वे खाकर तृप्त हो गए तो उस ने अपने चेलों से कहा, कि बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए। 13 सो उन्होंने बटोरा, और जव की पांच रोटियों के टुकड़े जो खाने वालों से बच रहे थे उन की बारह टोकिरयां भरीं। 14 तब जो आश्चर्य कर्म उस ने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।

मत्ती अध्याय 14 22 और उस ने तुरन्त अपने चेलों को बरबस नाव पर चढ़ाया, कि वे उस से पहिले पार चले जाएं, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। 23 वह लोगों को विदा करके, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया; और सांझ को वहां अकेला था।

मरकुस अध्याय 6

45 तब उस ने तुरन्त अपने चेलों को बरबस नाव पर चढाया, कि वे उस से पहिले उस पार बैतसैदा को चले जांए, जब तक कि वह लोगों को विदा करे। 46 और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया। 47 और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था। 48 और जब उस ने देखा, कि वे खेते खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरूद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उन के पास आया; और उन से आगे निकल जाना चाहता था। 49 परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। 50 पर उस ने तुरन्त उन से बातें कीं और कहा; ढाढ़स बान्धो: मैं हूं; डरो मत। 51 तब वह उन के पास नाव पर आया, और हवा थम गई: और वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। 52 क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में ने समझे थे परन्तु उन के मन कठोर हो गए थे॥ 53 और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुंचे, और नाव घाट पर लगाई। 54 और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उस को पहचान कर। 55 आसपास के सारे देश में दोड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहां जहां समाचार पाया कि वह है, वहां वहां लिए फिरे। 56 और जहां कहीं वह गांवों, नगरों, या बस्तियों में जाता था, तो लोग बीमारों को बाजारों में रखकर उस से बिनती करते थे, कि वह उन्हें अपने वस्त्र के आंचल ही को छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे॥

इब्रानियों अध्याय 12 2 और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा।

मत्ती अध्याय 8 23 जब वह नाव पर चढ़ा, तो उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 24 और देखो, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढंपने लगी; और वह सो रहा था। 25 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं। 26 उस ने उन से कहा; हे अल्पविश्वासियों, क्यों डरते हो? तब उस ने उठकर आन्धी और पानी को डांटा, और सब शान्त हो गया।

मरकुस अध्याय 4 36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं। 37 तब बड़ी आन्धी आई, और लहरें नाव पर यहां तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी। 38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उस से कहा; हे गुरू, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं? 39 तब उस ने उठकर आन्धी को डांटा, और पानी से कहा; “शान्त रह, थम जा”: और आन्धी थम गई और बड़ा चैन हो गया। 40 और उन से कहा; तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं? 41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले; यह कौन है, कि आन्धी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं?

लूका अध्याय 8 22 फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उस ने उन से कहा; कि आओ, झील के पार चलें: सो उन्होंने नाव खोल दी। 23 पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया: और झील पर आन्धी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। 24 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा; हे स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं: तब उस ने उठकर आन्धी को और पानी की लहरों को डांटा और वे थम गए, और चैन हो गया। 25 और उस ने उन से कहा; तुम्हारा विश्वास कहां था? पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, यह कौन है जो आन्धी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उस की मानते हैं॥

प्रश्न-उत्तर

प्र 1. हमारे प्रभु का पहला चमत्कार क्या था ? वह कहाँ हुआ था ?
प्र 2. यीशु ने घर के दासों से क्या करने को कहा ?
प्र 3. भोज के स्वामी की क्या प्रतिक्रिया थी जब उसने नया दाखरस चखा ? इस चमत्कार से हम क्या सबक सीखते है ?
प्र 4. हमारे प्रभु द्वारा पाँच हजार लोगों को खिलाए जाने के विषय बताएँ ?
प्र 5. शिष्यों को गलील के समुन्द्र पार भेजने के बाद यीशु कहाँ गया और क्यों ?
प्र 6. जब यीशु पानी पर चला , तब नाव पर शिष्यों ने क्या सोचा ?
प्र 7. 'प्रभु हमें बचा | हम डूब रहे है |' संदर्भ बताएँ |
प्र 8. 'हमारे प्रभु के पास प्रकृति पर अधिकार है |' इस पाठ से दो उदाहरण दे ?

संगीत

नेरियां झगडां नाल तुफानी बेड़ी गोते खांदी सी, डरदे रोला पौंदे चेले जिन्द सी मुकदी जान्दी सी, बचा लिया तू ओन्हा नू-(2), ओह गल्लां करदे हां ।

दूर जंगल विच पहाड़ा ओथे डेरा लाया सी, पंज रोटियां दो मच्छियां लैके पंज हजार रजाया सी, बारां टोकरे बच गए ओथे-(2), बरकतां मांगदे हां ।

धानवाद करदे हां, यीशु जी तेरा धानवाद करदे हां,
तू मौत शैतान ते फतेह पाई-(2), असी तेरे कोलों डरदे हां ।