पाठ 2 : याकूब और उसके पुत्र मिस्र में
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सारांश
याकूब को उसकी दो पत्नियों और दो दासियों से बारह पुत्र और एक पुत्री थे। वे - रूबेन,शिमौन, लेवी, यहूदा, दान, नप्ताली, गाद, आशेर, इस्साकार, जबूलून, यूसुफ और बिन्यामीन, और पुत्री दीना थे। इस्त्राएल यूसुफ से प्रेम करता था, जो उसके बुढ़ापे का पुत्र था और उसने उसे एक रंगबिरंगा अंगरखा दिया। इस बात ने उसके भाइयों में उसके प्रति इष्र्या उत्पन्न किया। इसके अलावा जब उन्होंने उन दो स्वप्नों के विषय सुना जो यूसुफ ने देखा था, वे उससे और भी घृणा करने लगे। एक दिन याकूब ने उसके प्रिय पुत्र यूसुफ को उसके भाइयों का हालचाल देखने भेजा जो शेकेम में भेड़-बकरियाँ चरा रहे थे और यह भी जानने भेजा कि उसके पशुओं की क्या स्थिति थी। उसी के अनुसार यूसुफ हेब्रोन की घाटी से अपनी यात्रा शुरू किया और लंबी यात्रा करते हुए उनसे शेकेम में नहीं परंतु दोतान में जाकर मिला। जब वह उनके पास पहुँचा तो उन्होंने उसका अंगरखा उतार लिया और उसे सूखे गड़हे में डाल दिया। बाद में उन्होंने यूसुफ को गड़हे से निकाला और उसे इश्माएलियों के एक समूह को चांदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया।वे यूसुफ को मिस्त्र ले गए। वहाँ उसे फिरौन के सुरक्षाकर्मियों के प्रधान के पास बेच दिया गया। परमेश्वर ने यूसुफ के कारण उस मिस्त्री परिवार को आशीषित किया। धर्मी व्यक्ति होने के कारण यूसुफ पोतीकर की पत्नी के दुष्ट फंदे में नहीं फँसा। इस बात से क्रोधित होकर उसने उसे बंदीगृह में डलवा दी, परंतु परमेश्वर उसके साथ था। यूसुफ के बंदीगृह के दिनों में फिरौन ने एक स्वप्न देखा। उस स्वप्न का अर्थ केवल यूसुफ ही बता सकता था। फिरौन बहुत खुश हुआ और उसने यूसुफ को सारे मिस्त्र पर प्रधान ठहराया। अच्छी फसल के प्रथम सात वर्ष में यूसुफ ने काफी भोजन सामग्रियाँ जमा करके शहरों में सुरक्षित रखवा दिया। बहुतायात के इन सात वर्षों के बाद पूरे संसार में भयानक अकाल के सात वर्षों की शुरूवात हुई। इसलिये सभी देश के लोग अनाज खरीदने के लिये मिस्त्र आए। उनमें यूसुफ के अपने भाई भी थे। जब वे अनाज लेने उसके पास फिर से आए तब यूसुफ ने स्वयँ को प्रगट किया और अपने पिता और उसके परिवार को मिस्त्र लाने के लिये रथ भेजा। जब इस्त्राएल को पता चला कि उसका प्रिय पुत्र जीवित था, तो उसने उसके पूरे परिवार के साथ - कुल 70 सदस्य के साथ आनंद मनाया और वह मिस्त्र में जाकर गोशेन में बस गया। 17 वर्षों के पश्चात याकूब बीमार हो गया। जब उसके सब बच्चे उसके बिछौने के आसपास जमा थे,उसने उन्हें आशीष दिया और उनके साथ भविष्य में क्या होगा उसके विषय उन्हें बताया। यहूदा के विषय उसने कहा कि, ‘‘जब तक शीलो3 न आए तब तक न तो यहूदा से राजदंड छूटेगा, न उसके वंशज से व्यवस्था देनेवाला अलग होगा।’’यीशु मसीह का जन्म यहूदा के गोत्र में और दाऊद के वंश में हुआ। ठीक जैसे यूसुफ को उसके भाइयों द्वारा तिरस्कृत किया गया था, यीशु मसीह भी उसके लोगों के द्वारा तिरस्कृत किया गया था। जैसे यूसुफ अकाल में उसके लोगों को छुड़ाने वाला बना था, उसी प्रकार हमारा प्रभु यीशु मसीह भी पाप और उसकी सजा से हमारा बचानेवाला उद्धारकर्ता है। जो लोग यूसुफ के पास खाली हाथ गए थे, वे अनाज के बोरे लेकर लौटे थे। उसी प्रकार वे सब जो प्रभु के पास जाते हैं, स्वर्गीय आशीषों को लेकर लौटेंगे। क्या आज आप उसके पास जाएँगे? वह जल्द ही राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु बनकर लौटेगा।
बाइबल अध्यन
उत्पति
अध्याय 46
1 तब इस्राएल अपना सब कुछ ले कर कूच करके बेर्शेबा को गया, और वहां अपने पिता इसहाक के परमेश्वर को बलिदान चढ़ाए।
2 तब परमेश्वर ने इस्राएल से रात को दर्शन में कहा, हे याकूब हे याकूब। उसने कहा, क्या आज्ञा।
3 उसने कहा, मैं ईश्वर तेरे पिता का परमेश्वर हूं, तू मिस्र में जाने से मत डर; क्योंकि मैं तुझ से वहां एक बड़ी जाति बनाऊंगा।
4 मैं तेरे संग संग मिस्र को चलता हूं; और मैं तुझे वहां से फिर निश्चय ले आऊंगा; और यूसुफ अपना हाथ तेरी आंखों पर लगाएगा।
5 तब याकूब बेर्शेबा से चला: और इस्राएल के पुत्र अपने पिता याकूब, और अपने बाल-बच्चों, और स्त्रियों को उन गाडिय़ों पर, जो फिरौन ने उनके ले आने को भेजी थी, चढ़ाकर चल पड़े।
6 और वे अपनी भेड़-बकरी, गाय-बैल, और कनान देश में अपने इकट्ठा किए हुए सारे धन को ले कर मिस्र में आए।
7 और याकूब अपने बेटे-बेटियों, पोते-पोतियों, निदान अपने वंश भर को अपने संग मिस्र में ले आया॥
8 याकूब के साथ जो इस्राएली, अर्थात उसके बेटे, पोते, आदि मिस्र में आए, उनके नाम ये हैं: याकूब का जेठा तो रूबेन था।
9 और रूबेन के पुत्र, हनोक, पललू, हेस्रोन, और कर्म्मी थे।
10 और शिमोन के पुत्र, यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर, और एक कनानी स्त्री से जन्मा हुआ शाऊल भी था।
11 और लेवी के पुत्र, गेर्शोन, कहात, और मरारी थे।
12 और यहूदा के एर, ओनान, शेला, पेरेस, और जेरह नाम पुत्र हुए तो थे; पर एर और ओनान कनान देश में मर गए थे। और पेरेस के पुत्र, हेस्त्रोन और हामूल थे।
13 और इस्साकार के पुत्र, तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन थे।
14 और जबूलून के पुत्र, सेरेद, एलोन, और यहलेल थे।
15 लिआ: के पुत्र, जो याकूब से पद्दनराम में उत्पन्न हुए थे, उनके बेटे पोते ये ही थे, और इन से अधिक उसने उसके साथ एक बेटी दीना को भी जन्म दिया: यहां तक तो याकूब के सब वंश वाले तैंतीस प्राणी हुए।
16 फिर गाद के पुत्र, सिय्योन, हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी, और अरेली थे।
17 और आशेर के पुत्र, यिम्ना, यिश्वा, यिस्त्री, और बरीआ थे, और उनकी बहिन सेरह थी। और बरीआ के पुत्र, हेबेर और मल्कीएल थे।
18 जिल्पा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी लिआ: को दिया था, उसके बेटे पोते आदि ये ही थे; सो उसके द्वारा याकूब के सोलह प्राणी उत्पन्न हुए॥
19 फिर याकूब की पत्नी राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे।
20 और मिस्र देश में ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से यूसुफ के ये पुत्र उत्पन्न हुए, अर्थात मनश्शे और एप्रैम।
21 और बिन्यामीन के पुत्र, बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम, और आर्द थे।
22 राहेल के पुत्र जो याकूब से उत्पन्न हुए उनके ये ही पुत्र थे; उसके ये सब बेटे पोते चौदह प्राणी हुए।
23 फिर दान का पुत्र हुशीम था।
24 और नप्ताली के पुत्र, यहसेल, गूनी, सेसेर, और शिल्लेम थे।
25 बिल्हा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी राहेल को दिया, उस के बेटे पोते ये ही हैं; उसके द्वारा याकूब के वंश में सात प्राणी हुए।
26 याकूब के निज वंश के जो प्राणी मिस्र में आए, वे उसकी बहुओं को छोड़ सब मिलकर छियासठ प्राणी हुए।
27 और यूसुफ के पुत्र, जो मिस्र में उससे उत्पन्न हुए, वे दो प्राणी थे: इस प्रकार याकूब के घराने के जो प्राणी मिस्र में आए सो सब मिलकर सत्तर हुए॥
28 फिर उसने यहूदा को अपने आगे यूसुफ के पास भेज दिया, कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए।
29 तब यूसुफ अपना रथ जुतवाकर अपने पिता इस्राएल से भेंट करने के लिये गोशेन देश को गया, और उससे भेंट करके उसके गले से लिपटा और कुछ देर तक उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा।
30 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मैं अब मरने से भी प्रसन्न हूं, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुंह देख लिया।
31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से और अपने पिता के घराने से कहा, मैं जा कर फिरौन को यह समाचार दूंगा, कि मेरे भाई और मेरे पिता के सारे घराने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं।
32 और वे लोग चरवाहे हैं, क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिये वे अपनी भेड़-बकरी, गाय-बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं।
33 जब फिरौन तुम को बुलाके पूछे, कि तुम्हारा उद्यम क्या है?
34 तब यह कहना कि तेरे दास लड़कपन से ले कर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे। इस
से तुम गोशेन देश में रहने पाओगे; क्योंकि सब चरवाहों से मिस्री लोग घृणा करते हैं॥
प्रेरतों के काम अध्याय 7 5 और उस को कुछ मीरास वरन पैर रखने भर की भी उस में जगह न दी, परन्तु प्रतिज्ञा की कि मैं यह देश, तेरे और तेरे बाद तेरे वंश के हाथ कर दूंगा; यद्यपि उस समय उसके कोई पुत्र भी न था। 6 और परमेश्वर ने यों कहा; कि तेरी सन्तान के लोग पराये देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएंगे, और चार सौ वर्ष तक दुख देंगे। 7 फिर परमेश्वर ने कहा; जिस जाति के वे दास होंगे, उस को मैं दण्ड दूंगा; और इस के बाद वे निकल कर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे। 8 और उस ने उस से खतने की वाचा बान्धी; और इसी दशा में इसहाक उस से उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। 9 और कुलपतियों ने यूसुफ से डाह करके उसे मिसर देश जाने वालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। 10 और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिसर के राजा फिरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, और उस ने उसे मिसर पर और अपने सारे घर पर हाकिम ठहराया। 11 तब मिसर और कनान के सारे देश में अकाल पडा; जिस से भारी क्लेश हुआ, और हमारे बाप दादों को अन्न नहीं मिलता था। 12 परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिसर में अनाज है, हमारे बाप दादों को पहिली बार भेजा। 13 और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट को गया, और यूसुफ की जाति फिरौन को मालूम हो गई। 14 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पछत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा। 15 तब याकूब मिसर में गया; और वहां वह और हमारे बाप दादे मर गए।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1. इस्राएल के गोत्रों के मुखिया कौन बनें ? वे कितने लोग थे ?
उप्र 2. बताएँ कि यूसुफ मिसत्र में कैसा पहुँचा ?
उप्र 3. यूसुफ किस तरह मिसत्र देश का मंत्री बनाया गया ?
उप्र 4. इस्राएली लोग किस तरह मिसत्र में रहने के लिए आए ?
उप्र .5 यूसुफ और यीशु मसीह के बीच कौनसी तुलनात्मक बातें हैं ?
उ
संगीत
एक छोटा दिया प्रभु का दूर चमकने दो 3 हर जगह हर समय रोशनी दो।
1 जा के उसको फूंक दूं क्या, नहीं चमकने दो। (3) हर जगह हर समय रोशनी दो।
2 टोकरी के नीचे रख दूं क्या नहीं चमकने दो। (3) हर जगह हर समय रोशनी दो।