पाठ 15 : पवित्र स्थान
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सारांश
तंबू के पवित्र स्थान में रखी हुई वस्तुओं में से एक धूप जलाने की वेदी थी। यह बबूल के लकड़ी की बनी थी जिस पर सोने का मुकुट चारों और लगा था। जबकि बलि की वेदी बबूल की लकड़ी और पीतल की बनी थी, धूप की वेदी बबूल की लकड़ी और सोने की बनी थी। जबकि पीतल के वेदी पर लगातार लहू चढ़ाया जाता था, उसी समय धूप की वेदी पर धूप जलाया जाता था। जबकि पीतल की वेदी हमारे प्रभु को दर्शाती है जिसने अपने आपको हमारे लिये बलिदान होने के लिये दे दिया, धूप की वेदी हमें पुनरूत्थित मसीह की याद दिलाती है जो महिमा में रहता है। बबूल हमारे प्रभु को मनुष्य रूप में दिखाता है, परंतु सोना यीशु मसीह को उसकी स्वर्गीय महिमा में दिखाता है। तम्बू में सोना कभी बाहर नहीं रखा गया। यीशु मसीह इस संसार में एक दास के समान रहा, एक मनुष्य के रूप में, परंतु साथ ही वह सामर्थी परमेश्वर भी था। धूप की वेदी पर उसके चारों तरफ सोने का मुकुट था। ‘‘परंतु हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहने हुए देखते हैं’’ (इब्रानियों 2:9)। हर सुबह हारून सुगंधित धूप जलाया करता था। (निर्गमन 30:7)। ‘‘इसलिये हम उसके द्वारा स्तूति रूपी बलिदान, अर्थात उन ओठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर को सर्वदा चढ़ाया करें।’’ (इब्रानियों 13:15)। यीशु मसीह बलि की वेदी है और विश्वासी याजक हैं और स्वर्ग आराधना का स्थान है। तंबू और मंदिर पृथ्वी पर आराधना के स्थान थे, परंतु क्रूस पर मसीह की मृत्यु के बाद पृथ्वी पर आराधना की कोई विशेष जगह नहीं है। हमारी सुनहरा वेदी स्वर्ग में है। हम विश्वास के द्वारा स्वर्ग में प्रवेश करते हैं और यीशु मसीह के द्वारा स्वर्ग में प्रवेश करते हैं और यीशु मसीह के द्वारा आत्मा और सच्चाई से परमेश्वर की आराधना करते हैं। सुगंधित धूप को धूप की वेदी पर जलाया जाता था। परमेश्वर द्वारा बताए गए तरीके के अनुसार चार प्रकार के धूप तैयार किये जाते थे। जो कोई अपनी इच्छानुसार बनाने की कोशिश करता था, उसे लोगों द्वारा तिरस्कृत कर दिया जाता था। धूप जलाने के लिये आग को बलि की वेदी से लिया जाता था। वहाँ किसी अन्य प्रकार की आग का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी। उसी प्रकार, नए नियम के विश्वासियों की आराधना में मसीह का क्रूस हमेशा केन्द्रीय विषय होना चाहिये। इसमें मानव निर्मित विधियों का कोई स्थान नहीं है।दूसरी वस्तु पवित्र मेज थी जिस पर रोटियाँ रखी जाती थीं। यह दो हाथ लंबी, एक हाथ चैड़ी और डेढ़ हाथ उँची थी। यह बबूल की लकड़ी से बना था, जो सोने से मढ़ा था और उसके चारों तरफ सोने का मुकुट था। उसके लिये चार अंगुल चैड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिये सोने की एक बाड़ बनी थी। रोटी को हर रोज मेज पर रख दिया जाता था।यह रोटी मैदे से बनी होती थी । हर सप्ताह के अंत में, ताजी रोटियों को रखकर पुरानी रोटियाँ हटा ली जाती थीं। इस प्रकार हटाई हुई रोटियों को याजक खाया करते थे। यह इस बात को दिखाता है जो नए नियम के विश्वासी करते हैं, जब वे यीशु मसीह की देह को खाते हैं। ‘‘पराए कुल का जन किसी पवित्र वस्तु को न खाने पाए, चाहे वह याजक का अतिथि हो या मजदूर हो।’’ (लैव्यवस्था 22:10)। इसका अर्थ यह हुआ कि जो परमेश्वर की संतान नहीं है उन्हें यह नहीं खाना चाहिये। यहाँ तक कि यदि कोई याजक अपवित्र हो तौभी उसे इसमें शामिल नहीं होना चाहिये। हर सब्त के दिन, याजक मेज के पास इकट्ठे होते थे और प्रभु को नई रोटी चढ़ाते थे और मेज से पुरानी रोटी हटा लेते थे। यीशु के चेले सप्ताह के पहले दिन रोटी तोड़ने और उसे याद करने के लिये इकट्ठे होते थे। पवित्र स्थान में तीसरी वस्तु सोने की दीवट थी। यह शुद्ध सोने की बनी होती थी। उसकी डण्डी, शाखाएँ, कटोरे,गांठ और फूल सभी एक ही टुकड़े से बने थे। बत्तियों में से एक बीच में था। हर तरफ तीन शाखाएँ थीं। प्रत्येक बत्ती में एक गांठ और एक फूल था। यहाँ तक कि उसके गुलतराश और गुलदान भी सोने के थे।यीशु मसीह जीवन है। वह ज्योति भी है। हम ज्योति की संतानें हैं। दीवट, सिर मसीह की पवित्र एकता को दिखाता है और विश्वासियों को भी जो कलीसिया के सदस्य हैं। यह एक किक्कार सोने का बना था। ‘‘सोने को ढालकर बनाने’’ की प्रक्रिया मसीह के क्लेश को दिखाता है। यदि परमेश्वर का पुत्र क्लेश न उठाता तो कलीसिया का निर्माण नहीं हुआ होता। जैसे याकूब की संतानें पैदा हुई थीं, दीवट की शाखाएँ उसकी डंडी से बनाई गई, और कलीसिया मसीह से है।शाखाओं को डण्डी से जोड़ा नहीं गया था, परंतु वे उसी के भाग थे। मसीह और विश्वासियों के बीच भी ऐसा ही संबंध है। यह संबंध अनंतकालीन और अटूट है। कटोरे जो बादाम जैसे दिखते थे, वे पुनरूत्थित मसीह के विषय बताते हैं। बत्तियों को शुद्ध जैतून के तेल से भरा जाता था। यह विश्वासियों के पवित्र आत्मा से भरे जाने को बताता है। बत्तियों का इस संसार में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है जो अंधकार में छिपा है। हमें उसे इस अंधकारमय संसार में प्रज्वलित करना है।
बाइबल अध्यन
निर्गमन अध्याय 30 1 फिर धूप जलाने के लिये बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना। 2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएं। 3 और वेदी के ऊपर वाले पल्ले और चारों ओर की अलंगों और सींगों को चोखे सोने से मढ़ना, और इसकी चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाना। 4 और इसकी बाड़ के नीचे इसके दानों पल्ले पर सोने के दो दो कड़े बनाकर इसके दोनों ओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डों के खानों का काम देंगे। 5 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाकर उन को सोने से मढ़ना। 6 और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साक्षीपत्र के सन्दूक के साम्हने है, अर्थात प्रायश्चित्त वाले ढकने के आगे जो साक्षीपत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूंगा। 7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए, 8 तब गोधूलि के समय जब हारून दीपकों को जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के साम्हने तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में नित्य जलाया जाए। 9 और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना। 10 और हारून वर्ष में एक बार इसके सींगों पर प्रायश्चित्त करे; और तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित्त लिया जाए; यह यहोवा के लिये परमपवित्र है॥
निर्गमन अध्याय 25 23 फिर बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाना; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की हो। 24 उसे चोखे सोने से मढ़वाना, और उसके चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 25 और उसके चारों ओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाना, और इस पटरी के चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 26 और सोने के चार कड़े बनवाकर मेज के उन चारों कोनों में लगवाना जो उसके चारों पायों में होंगे। 27 वे कड़े पटरी के पास ही हों, और डण्डों के घरों का काम दें कि मेज़ उन्हीं के बल उठाई जाए। 28 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनवाकर सोने से मढ़वाना, और मेज़ उन्हीं से उठाई जाए। 29 और उसके परात और धूपदान, और चमचे और उंडेलने के कटोरे, सब चोखे सोने के बनवाना। 30 और मेज़ पर मेरे आगे भेंट की रोटियां नित्य रखा करना॥ 31 फिर चोखे सोने की एक दीवट बनवाना। सोना ढलवाकर वह दीवट, पाये और डण्डी सहित बनाया जाए; उसके पुष्पकोष, गांठ और फूल, सब एक ही टुकड़े के बनें; 32 और उसकी अलंगों से छ: डालियां निकलें, तीन डालियां तो दीवट की एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई हों; 33 एक एक डाली में बादाम के फूल के समान तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल हों; दीवट से निकली हुई छहों डालियों का यही आकार या रूप हो; 34 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान चार पुष्पकोष अपनी अपनी गांठ और फूल समेत हों; 35 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो दो डालियों के नीचे एक एक गांठ हो, वे दीवट समेत एक ही टुकड़े के बने हुए हों। 36 उनकी गांठे और डालियां, सब दीवट समेत एक ही टुकड़े की हों, चोखा सोना ढलवाकर पूरा दीवट एक ही टुकड़े का बनवाना। 37 और सात दीपक बनवाना; और दीपक जलाए जाएं कि वे दीवट के साम्हने प्रकाश दें। 38 और उसके गुलतराश और गुलदान सब चोखे सोने के हों। 39 वह सब इन समस्त सामान समेत किक्कार भर चोखे सोने का बने। 40 और सावधान रहकर इन सब वस्तुओं को उस नमूने के समान बनवाना, जो तुझे इस पर्वत पर दिखाया गया है॥
निर्गमन अध्याय 30 7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए,
इब्रानियों अध्याय 2 9 पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।
इब्रानियों अध्याय 13 15 इसलिये हम उसके द्वारा स्तुति रूपी बलिदान, अर्थात उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिये सर्वदा चढ़ाया करें।
लैव्यव्यवस्था अध्याय 22 10 पराए कुल का जन किसी पवित्र वस्तु को न खाने पाए, चाहे वह याजक का पाहुन हो वा मजदूर हो, तौभी वह कोई पवित्र वस्तु न खाए।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1. पवित्र स्थान में कौन सी वस्तुएं रखी हुई थी ?
उप्र 2. धूप की वेदी किस चीज से बनी थी ?
उप्र 3. धूप की वेदी से हम क्या सबक सीखते है ?
उप्र 4. रोटियों वाली मेज किस बात को दर्शाती है ?
उप्र 5. दीवट बनाने के लिए कितना सोना उपयोग में लाया गया था ?यह किस बात को दर्शाता है ?
उप्र 6. दीवट को ढालकर बनाया गया था और उसमें कोई जोड़ नहीं था | यह किस बात को दिखाता है ?
उसंगीत
प्रभु तू है चांदी से भी कीमती,
प्रभु तू है सोने से महंगा,
प्रभु तू है हीरों भी सुन्दर,
और तुझसे बढ़कर कुछ नहीं चाहूं।
1 प्रभु तू है मेरे दिल से भी कीमती,
प्रभु तू है जीवन से महंगा,
प्रभु तू है सृष्टि से भी सुन्दर,
और तुझसे बढ़कर कुछ नहीं चाहूं।