पाठ 11 : चट्टान जिस पर मारा
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सारांश
इस्त्राएल की संताने सीन नामक जंगल से निकली और रपीदीम में अपना डेरा डाली। जब उन्हें पानी नहीं मिला तो उन्होंने यह कहकर मूसा से झगड़ा किया, ‘‘हमें पीने का पानी दे।’’उन्होंने उससे यह भी पूछा कि ‘‘तू हमें बाल-बच्चों और पशुओं समेत प्यासा मार डालने के लिये मिस्त्र से क्यों ले आया है?’’ तब मूसा ने परमेश्वर की दोहाई दिया और परमेश्वर ने उसे यह कहकर उत्तर दिया, ‘‘इस्त्राएल के वृद्ध लोगों में से कुछ को अपने साथ ले ले; और जिस लाठी से तूने नील नदी को मारा था, उसे अपने हाथ में लेकर लोगों के आगे बढ़ चल। देख, मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूँगा, और तू उस चट्टान पर मारना, तब उसमें से पानी निकलेगा, जिससे ये लोग पीएँ। मूसा ने वैसा ही किया जैसा कहा गया था। चट्टान से भरपूर पानी निकल आया और इस्त्राएलियों की छावनी के पास से बहने लगा। मूसा ने उस स्थान का नाम मस्सा और मरीबा रखा क्योंकि इस्त्राएलियों ने वहाँ वादविवाद किया था और परमेश्वर की परीक्षा किया था। मसीह वह चट्टान है जिस पर मारा गया था। उसमें से निकलने वाला पानी जीवन के जल को दिखाता है। यदि चट्टान को मारा न जाता तो पानी नहीं निकला होता। हमारे प्रभु को सजा दी गई, मारा गया, कुचला गया, यातनाएँ दी गईं और उसे पापबलि बनाया गया। परंतु वह विजयी रहा, उसने मृत्यु पर विजय पाया और मृतकों में से जी उठा। अब जीवन का जल हमारे लिये उपलब्ध है।उनकी जंगल की यात्रा के अंत के करीब, ऐसी ही एक घटना घटी जब वे कादेश में थे। इस स्थान में भी उन्हें पीने का पानी नहीं मिला था। लोगों ने इकट्ठे होकर मूसा और हारून के विरोध में कहा। उन्होंने कहा, ‘‘प्रभु के लोगों को तूने इस जंगल में क्यों ले आया कि हम और हमारे भेड़-बकरियाँ मर जाएँ? इस स्थान में अंजीर, अंगूर या अनार नहीं है, न ही पीने के लिये पानी है। मूसा और हारून मिलापवाले तंबू के द्वार पर जाकर मुँह के बल गिर पड़े। परमेश्वर की महिमा उन पर प्रगट हुई। परमेश्वर ने मूसा से कहा, ‘‘अपनी छड़ी लो, और तू और तेरा भाई हारून सब लोगों को इकट्ठा करो। उनके देखते हुए उस चट्टान से बात करो और वह अपना पानी बहा देगी।’’ तब मूसा ने लोगों को इकट्ठा किया और कहा, ‘‘हे दंगा करने वालो, सुनो, क्या हमको इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?’’ फिर उसने अपना हाथ उठाया और दो बार चट्टान पर मारा। प्रचुर मात्रा में पानी निकल पड़ा। लोगों ने और उनके पशुओं ने पानी पीया और संतुष्ट हुए। परंतु चूँकि मूसा ने परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन किया था, और जिस रीति से चट्टान पर मारा था, बजाए इसके कि वह परमेश्वर की आज्ञानुसार चट्टान से बात करता, परमेश्वर ने मूसा और हारून से कहा, ‘‘तुमने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिये तुम इस मंडली को उस देश में पहुँचाने न पाओगे जिसे मैंने उन्हें दिया है।’’ यहाँ यह बात स्पष्ट हो जाती है कि परमेश्वर विश्वासियों के पाप को नजरअंदाज नहीं कर सकता, चाहे वे हमारी दृष्टि में कितने भी छोटे पाप क्यों न दिखते हों।पानी पवित्र आत्मा को भी दर्शाता है। पर्व के अंतिम और महान दिन में, यीशु खड़ा हुआ और उँची आवाज में बोला, ‘‘यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए।’’वचन कहता है कि ‘‘जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र आत्मा में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी।’’ इसके द्वारा अभिप्राय पवित्र आत्मा था जिसे वे उस पर विश्वास करने के द्वारा पाने वाले थे। (यूहन्ना 7:37-38)। पौलुस कहता है ‘‘सबने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे जो उनके साथ-साथ चलती थी।’’ (1 कुरि 10:4)। ‘‘क्योंकि तुम सब उस विश्वास के द्वारा जो मसीह यीशु पर है परमेश्वर की संतान हो।’’ (गलातियों 3:26)। कादेश में परमेश्वर ने मूसा से कहा, ‘‘चट्टान से बात कर। वह अपना जल दे देगी।’’ परंतू मूसा ने क्रोध में आकर चट्टान पर मारा, एक बार नहीं दो बार। जिस चट्टान पर एक बार मारा गया था उसे दोबारा मारने की जरूरत नहीं थी। हमारा प्रभु हमारे लिये एक बार दुख उठाया, उसके बाद पवित्र आत्मा इस संसार में आया। प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार पवित्र आत्मा पेन्तिकुस्त के दिन इस पृथ्वी पर उतरा। ‘‘आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है कि हम परमेश्वर की संतान हैं।’’ (रोमियों 8:16)। अब वह विश्वासियों का पोषण करता और उन्हें सामर्थी बनाता है। अब पवित्र आत्मा आने के लिये फिर से प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है। पवित्र आत्मा हमारे साथ हमेशा वैसे ही रहता है जैसे ‘‘सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता।’’ (यशायाह 58:11)। ‘‘युगों की चट्टान मेरे लिये तोड़ी गई, मुझे अपने भीतर छिपन दे, पानी और लहू जो तेरी नदी से बह निकला, पापों को दोहरा शुद्ध करे, और मुझे उसके दोष और शक्ति से शुद्ध कर।’’
बाइबल अध्यन
निर्गमन अध्याय 17 1 फिर इस्राएलियों की सारी मण्डली सीन नाम जंगल से निकल चली, और यहोवा के आज्ञानुसार कूच करके रपीदीम में अपने डेरे खड़े किए; और वहां उन लोगों को पीने का पानी न मिला। 2 इसलिये वे मूसा से वादविवाद करके कहने लगे, कि हमें पीने का पानी दे। मूसा ने उन से कहा, तुम मुझ से क्यों वादविवाद करते हो? और यहोवा की परीक्षा क्यों करते हो? 3 फिर वहां लोगों को पानी की प्यास लगी तब वे यह कहकर मूसा पर बुड़बुड़ाने लगे, कि तू हमें लड़के बालोंऔर पशुओं समेत प्यासों मार डालने के लिये मिस्र से क्यों ले आया है? 4 तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और कहा, इन लोगों से मैं क्या करूं? ये सब मुझे पत्थरवाह करने को तैयार हैं। 5 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्राएल के वृद्ध लोगों में से कुछ को अपने साथ ले ले; और जिस लाठी से तू ने नील नदी पर मारा था, उसे अपने हाथ में ले कर लोगों के आगे बढ़ चल। 6 देख मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूंगा; और तू उस चट्टान पर मारना, तब उस में से पानी निकलेगा जिससे ये लोग पीएं। तब मूसा ने इस्राएल के वृद्ध लोगों के देखते वैसा ही किया। 7 और मूसा ने उस स्थान का नाम मस्सा और मरीबा रखा, क्योंकि इस्राएलियों ने वहां वादविवाद किया था, और यहोवा की परीक्षा यह कहकर की, कि क्या यहोवा हमारे बीच है वा नहीं?
गिनती अध्याय 20 1 पहिले महीने में सारी इस्त्राएली मण्डली के लोग सीनै नाम जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहां मरियम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई। 2 वहां मण्डली के लोगों के लिये पानी न मिला; सो वे मूसा और हारून के विरुद्ध इकट्ठे हुए। 3 और लोग यह कहकर मूसा से झगड़ने लगे, कि भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के साम्हने मर गए! 4 और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्यों ले आए हो, कि हम अपने पशुओं समेत यहां मर जाए? 5 और तुम ने हम को मिस्र से क्यों निकाल कर इस बुरे स्थान में पहुंचाया है? यहां तो बीज, वा अंजीर, वा दाखलता, वा अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है। 6 तब मूसा और हारून मण्डली के साम्हने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जा कर अपने मुंह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उन को दिखाई दिया। 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 8 उस लाठी को ले, और तू अपने भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा करके उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिये जल निकाल कर मण्डली के लोगों और उनके पशुओं को पिला। 9 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके साम्हने से लाठी को ले लिया। 10 और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के साम्हने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उससे कह, हे दंगा करनेवालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा? 11 तब मूसा ने हाथ उठा कर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उस में से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपने पशुओं समेत पीने लगे। 12 परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिये तुम इस मण्डली को उस देश में पहुंचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है। 13 उस सोते का नाम मरीबा पड़ा, क्योंकि इस्त्राएलियों ने यहोवा से झगड़ा किया था, और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया॥
यूहन्ना अध्याय 7 37 फिर पर्व के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए। 38 जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है उसके ह्रृदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेंगी।
1 कुरिन्थियों अध्याय 10 4 और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे, जो उन के साथ-साथ चलती थी; और वह चट्टान मसीह था।
गलातियों अध्याय 3 26 क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो।
रोमियो अध्याय 8 16 आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।
यशायाह अध्याय 58 11 और यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और काल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियों को हरी भरी करेगा; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1. रपीदीम में इस्राएलियों ने कौनसी कठिनाई का सामना किया ?
उप्र 2. उन्होनें मूसा से क्या कहा जब वे उससे झगड़ा कर रहे थे ?
उप्र 3. परमेश्वर ने उन्हे पीने का पानी किस तरह दिया ?
उप्र 4. चट्टान किस बात को दर्शाती है ?
उप्र 5. परमेश्वर ने मूसा और हारून को प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने देने से क्यों इन्कार कर दिया ?
उ
संगीत
वचन का मन्ना खिलाया हमें, पानी चट्टान से पिलाया हमें, आत्मा को तृप्त है किया, प्रभुजी, दिल में तू शांति लाया ।
कोः- धन्य धन्य, धन्य प्रभु को जिसने मुक्ति दी हमको, शरण में अपनी लाया, प्रभु जी, दिन रात हैं संभाला।