पाठ 10 : मन्ना
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सारांश
जंगल में रहते हुए इस्त्राएल की संतानों को खाने के लिये मन्ना मिला था। यह अचूक रीति से उनके विश्वासयोग्य परमेश्वर की ओर से मिला था। सब्त के दिन को छोड़कर यह मन्ना उन्हें चालीस वर्ष तक हर सुबह मिलता रहा था। यह तब तक नहीं बंद हुआ जब तक वे प्रतिज्ञा की भूमि पर नहीं पहुँच गये, फिर भी वे कुड़कुड़ाते थे। मन्ना उस दिन बंद हुआ जब उन्होंने भूमि की उपज में से खाया (यहोशू 5:12)। परमेश्वर की संताने जिनका नया जन्म हुआ है, उन्हें आत्मिक भूख होती है। मन्ना (परमेश्वर का वचन) उनके आत्मिक पोषण के लिये आवश्यक है। परमेश्वर की संतान को इस संसार की बातों के पीछे नहीं जाना चाहिये जो उनके आत्मिक स्वास्थ को नुकसान पहुंचा सकते हैं, या विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं। यह परमेश्वर की प्रत्येक संतान का कर्तव्य है कि वह निश्चित करे कि उसका ‘‘नया मनुष्यत्व’’ उचित रीति से पोषित किया जाए। निर्गमन का 16वां अध्याय इस्त्राएल की संतानों की कुड़कुड़ाहट से शुरू होता है जब उन्हें भरपूर भोजन नहीं मिला था। जब मिस्त्र से लाया हुआ उनका सारा भोजन खत्म हो गया था, तो जो वे कर सकते थे, वह यह था कि वे सहायता के लिये परमेश्वर की ओर देखें। उनके सब कुड़कुड़ाहट और हठीलेपन के बावजूद, उनके प्रति परमेश्वर का प्रेम खत्म नहीं हुआ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने स्वर्ग खोलकर उनके लिये मन्ना बरसाया। जब उन्होंने भूमि पर छिलके पालों के आकार की वस्तुएँ देखा तो उन्होंने एक दूसरे से पूछा कि यह क्या है, और फिर उन्होंने उसे ‘‘मन्ना’’ कहा जिसका अर्थ है ‘यह क्या है?’ यह धनिया के बीज जैसा था, सफेद रंग और आकार में गोल वैसे ही जैसे शहद से बनी वस्तु हो। ‘‘वचन’’ देहधारी होकर मनुष्य बना और हमारे बीच में रहा। उसे तुच्छ जाना गया और मनुष्य द्वारा तिरस्कृत किया गया। वह प्रभु यीशु मसीह है जो जीवन देने वाला मन्ना है। मन्ना की सफेदी हमारे प्रभु के पापरहित जीवन को दिखाता है। शहद से मीठा कुछ और है तो वह परमेश्वर का वचन है। वह मन्ना जो जंगल में प्राप्त हुआ था उसे उठाकर सोने के पात्र में रखकर वाचा के संदूक में रखा गया था। इस्त्राएल के हर संतान ने अपनी आवश्यकता के अनुसार मन्ना इकट्ठा किया। जो लोग परमेश्वर के वचन के प्रति लापरवाही करते हैं, उनकी आत्मिक उन्नति नहीं होती। उसी समय, जो लोग परमेश्वर का वचन पढ़ते और उस पर रोज मनन करते हैं, वे आत्मिक पोषण पाएंगे। मन्ना हर रोज सुबह इकट्ठा किया जाता था क्योंकि वह सूर्योदय के बाद पिघल जाता था।सुलैमान लिखता है, ‘‘जो मुझको यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं वे मुझे पाते हैं’’ (नीतिवचन 8:17)। वह हमें हर सुबह उठा देता है। ‘‘भोर के वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनूँ।’’ (यशायाह 50:4)। अक्सर हम सुबह घरेलू कार्यों में बिताते हैं, पेपर पढ़ते हैं, और ऐसे ही अन्य कार्य करते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम परमेश्वर की उपस्थिति में बैठें और उसके वचन पर मनन करें। वह आज हमसे उसके वचन द्वारा ही बातचीत करता है। मरियम को याद करें जो प्रभु के चरणों के पास उसके अनुग्रही वचनों को सुनने के लिये बैठी थी (लूका 10:39)। इस्त्राएल की संतानों को हर सुबह मन्ना बटोरना होता था। उन्हें कहा गया था कि वे उसे दूसरे दिन के लिये न रखें। जब उन्होंने दूसरे दिन के लिये रखा तो उसमें कीड़े पाया और वह बसाने लगा था। गिनती की पुस्तक के ग्यारहवें अध्याय में हम पढ़ते हैं कि इस्त्राएल की संतानों ने किस तरह मन्ना की स्वर्गीय आशीष को तुच्छ जाना था। ‘‘हमें वे मछलियाँ स्मरण हैं जो हम मिस्त्र में सेंतमेत खाया करते थे, और वे खीरे और खरबूजे, और गंदने और प्याज, और लहसुन भी, परंतु अब हमारा जी घबरा गया है, यहाँ पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।’’ (गिनती 11:5-6)। इस संसार मे मसीह को छोड़ हमें और किस बात की जरूरत है? वह सर्व संपन्न है। वह जीवन की रोटी है। (यूहन्ना 6:35)।गिनती 21:5 में हम पढ़ते हैं कि इस्त्राएलियों की संतान ने क्या कहा, ‘‘क्योंकि यहाँ न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।’’ यद्यपि वे मिस्त्र से बाहर थे फिर भी उनके दिमाग में मिस्त्र ही था। इस बात ने उन पर परमेश्वर का दंड लाया। उसने लोगों के बीच जहरीले सांप भेजा जिन्होंने उन्हें काट लिया। परिणाम स्वरूप कई लोग मर गए। परमेश्वर की संतानों को संसार से प्रेम नहीं करना चाहिये। प्रेरित यूहन्ना कहता है, ‘‘तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो।’’ (1 यूहन्ना 2:15)।
बाइबल अध्यन
निर्गमन अध्याय 16 1 फिर एलीम से कूच करके इस्राएलियों की सारी मण्डली, मिस्र देश से निकलने के महीने के दूसरे महीने के पंद्रहवे दिन को, सीन नाम जंगल में, जो एलीम और सीनै पर्वत के बीच में है, आ पहुंची। 2 जंगल में इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा और हारून के विरुद्ध बकझक करने लगी। 3 और इस्राएली उन से कहने लगे, कि जब हम मिस्र देश में मांस की हांडियों के पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम यहोवा के हाथ से मार डाले भी जाते तो उत्तम वही था; पर तुम हम को इस जंगल में इसलिये निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखों मार डालो। 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, देखो, मैं तुम लोगों के लिये आकाश से भोजन वस्तु बरसाऊंगा; और ये लोग प्रतिदिन बाहर जा कर प्रतिदिन का भोजन इकट्ठा करेंगे, इस से मैं उनकी परीक्षा करूंगा, कि ये मेरी व्यवस्था पर चलेंगे कि नहीं। 5 और ऐसा होगा कि छठवें दिन वह भोजन और दिनों से दूना होगा, इसलिये जो कुछ वे उस दिन बटोरें उसे तैयार कर रखें। 6 तब मूसा और हारून ने सारे इस्राएलियों से कहा, सांझ को तुम जान लोगे कि जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह यहोवा है। 7 और भोर को तुम्हें यहोवा का तेज देख पडेगा, क्योंकि तुम जो यहोवा पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं, कि तुम हम पर बुड़बुड़ाते हो? 8 फिर मूसा ने कहा, यह तब होगा जब यहोवा सांझ को तुम्हें खाने के लिये मांस और भोर को रोटी मनमाने देगा; क्योंकि तुम जो उस पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है। 9 फिर मूसा ने हारून से कहा, इस्राएलियों की सारी मण्डली को आज्ञा दे, कि यहोवा के साम्हने वरन उसके समीप आवे, क्योंकि उसने उनका बुड़बुड़ाना सुना है। 10 और ऐसा हुआ कि जब हारून इस्राएलियों की सारी मण्डली से ऐसी ही बातें कर रहा था, कि उन्होंने जंगल की ओर दृष्टि करके देखा, और उन को यहोवा का तेज बादल में दिखलाई दिया। 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 12 इस्राएलियों का बुड़बुड़ाना मैं ने सुना है; उन से कह दे, कि गोधूलि के समय तुम मांस खाओगे और भोर को तुम रोटी से तृप्त हो जाओगे; और तुम यह जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 13 और ऐसा हुआ कि सांझ को बटेरें आकर सारी छावनी पर बैठ गईं; और भोर को छावनी के चारों ओर ओस पड़ी। 14 और जब ओस सूख गई तो वे क्या देखते हैं, कि जंगल की भूमि पर छोटे छोटे छिलके छोटाई में पाले के किनकों के समान पड़े हैं। 15 यह देखकर इस्राएली, जो न जानते थे कि यह क्या वस्तु है, सो आपस में कहने लगे यह तो मन्ना है। तब मूसा ने उन से कहा, यह तो वही भोजन वस्तु है जिसे यहोवा तुम्हें खाने के लिये देता है। 16 जो आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है, कि तुम उस में से अपने अपने खाने के योग्य बटोरा करना, अर्थात अपने अपने प्राणियों की गिनती के अनुसार, प्रति मनुष्य के पीछे एक एक ओमेर बटोरना; जिसके डेरे में जितने हों वह उन्हीं भर के लिये बटोरा करे। 17 और इस्राएलियों ने वैसा ही किया; और किसी ने अधिक, और किसी ने थोड़ा बटोर लिया। 18 और जब उन्होंने उसको ओमेर से नापा, तब जिसके पास अधिक था उसके कुछ अधिक न रह गया, ओर जिसके पास थोड़ा था उसको कुछ घटी न हुई; क्योंकि एक एक मनुष्य ने अपने खाने के योग्य ही बटोर लिया था। 19 फिर मूसा ने उन से कहा, कोई इस में से कुछ बिहान तक न रख छोड़े। 20 तौभी उन्होंने मूसा की बात न मानी; इसलिये जब किसी किसी मनुष्य ने उस में से कुछ बिहान तक रख छोड़ा, तो उस में कीड़े पड़ गए और वह बसाने लगा; तब मूसा उन पर क्रोधित हुआ। 21 और वे भोर को प्रतिदिन अपने अपने खाने के योग्य बटोर लेते थे, ओर जब धूप कड़ी होती थी, तब वह गल जाता था। 22 और ऐसा हुआ कि छठवें दिन उन्होंने दूना, अर्थात प्रति मनुष्य के पीछे दो दो ओमेर बटोर लिया, और मण्डली के सब प्रधानों ने आकर मूसा को बता दिया। 23 उसने उन से कहा, यह तो वही बात है जो यहोवा ने कही, कयोंकि कल परमविश्राम, अर्थात यहोवा के लिये पवित्र विश्राम होगा; इसलिये तुम्हें जो तन्दूर में पकाना हो उसे पकाओ, और जो सिझाना हो उसे सिझाओ, और इस में से जितना बचे उसे बिहान के लिये रख छोड़ो। 24 जब उन्होंने उसको मूसा की इस आज्ञा के अनुसार बिहान तक रख छोड़ा, तब न तो वह बसाया, और न उस में कीड़े पड़े। 25 तब मूसा ने कहा, आज उसी को खाओ, क्योंकि आज यहोवा का विश्रामदिन है; इसलिये आज तुम को मैदान में न मिलेगा। 26 छ: दिन तो तुम उसे बटोरा करोगे; परन्तु सातवां दिन तो विश्राम का दिन है, उस में वह न मिलेगा। 27 तौभी लोगों में से कोई कोई सातवें दिन भी बटोरने के लिये बाहर गए, परन्तु उन को कुछ न मिला। 28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तुम लोग मेरी आज्ञाओं और व्यवस्था को कब तक नहीं मानोगे? 29 देखो, यहोवा ने जो तुम को विश्राम का दिन दिया है, इसी कारण वह छठवें दिन को दो दिन का भोजन तुम्हें देता है; इसलिये तुम अपने अपने यहां बैठे रहना, सातवें दिन कोई अपने स्थान से बाहर न जाना। 30 लोगों ने सातवें दिन विश्राम किया। 31 और इस्राएल के घराने वालों ने उस वस्तु का नाम मन्ना रखा; और वह धनिया के समान श्वेत था, और उसका स्वाद मधु के बने हुए पुए का सा था। 32 फिर मूसा ने कहा, यहोवा ने जो आज्ञा दी वह यह है, कि इस में से ओमेर भर अपने वंश की पीढ़ी पीढ़ी के लिये रख छोड़ो, जिससे वे जानें कि यहोवा हम को मिस्र देश से निकाल कर जंगल में कैसी रोटी खिलाता था। 33 तब मूसा ने हारून से कहा, एक पात्र ले कर उस में ओमेर भर ले कर उसे यहोवा के आगे धर दे, कि वह तुम्हारी पीढिय़ों के लिये रखा रहे। 34 जैसी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसी के अनुसार हारून ने उसको साक्षी के सन्दूक के आगे धर दिया, कि वह वहीं रखा रहे। 35 इस्राएली जब तक बसे हुए देश में न पहुंचे तब तक, अर्थात चालीस वर्ष तक मन्ना को खाते रहे; वे जब तक कनान देश के सिवाने पर नहीं पहुंचे तब तक मन्ना को खाते रहे। 36 एक ओमेर तो एपा का दसवां भाग है।
यहोशू अध्याय 5 12 और जिस दिन वे उस देश की उपज में से खाने लगे, उसी दिन बिहान को मन्ना बन्द हो गया; और इस्राएलियों को आगे फिर कभी मन्ना न मिला, परन्तु उस वर्ष उन्होंने कनान देश की उपज में से खाई॥
नीतिवचन अध्याय 8 17 जो मुझ से प्रेम रखते हैं, उन से मैं भी प्रेम रखती हूं, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठ कर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं।
यशायाह अध्याय 50 4 प्रभु यहोवा ने मुझे सीखने वालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनूं।
लूका अध्याय 10 39 और मरियम नाम उस की एक बहिन थी; वह प्रभु के पांवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी।
गिनती अध्याय 11 5 हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी; 6 परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।
यूहन्ना अध्याय 6 35 यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।
गिनती अध्याय 21 सो वे परमेश्वर के विरुद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।
1 यूहन्ना अध्याय 2 15 तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1. इस्राएलियों का भोजन क्या था ? आज परमेश्वर की संतानों का आत्मिक भोजन क्या है ?
उप्र 2. मन्ना का रंग , आकार और स्वाद कैसा था ?
उप्र 3 . 'मन्ना' शब्द का क्या अर्थ है ?
उप्र 4. परमेश्वर ने इस्राएल की छावनियों में जहरीले सांप क्यों भेजा था ?
उप्र 5. 'मन्ना प्रभु यीशु मसीह का चित्रण है 'टिप्पणी करें |
उ
संगीत
जीवन की रोटी वह है, जीवन का पानी वह है, जो उसमें से खाता पीता अनन्त जीवन पाता है।
सब कुछ यीशु है मेरा , सब कुछ यीशु है, इस दुनिया में मेरे लिए , सब कुछ यीशु है।