पाठ 5 : याकूब के अंतिम दिन

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सारांश

गुरूवार, 21 दिसंबर 1899 को, कॅन्सास शहर की एक सभा को जल्द समाप्त करके, तबियत खराबी के साथ लौटते हुए डी.एल मूडी ने उनके परिवार से कहा, ‘‘मैं निराश नहीं हूँ। मैं तब तक जीना चाहता हूँ जब तक मैं उपयोगी हूँ, परंतु जब मेरा काम खत्म हो जाए, तो मैं उठा लिया जाना चाहता हूँ।’’ अगले दिन मूडी व्याकुल रात बिताने के बाद उठे। नपे-तुले सावधानीपूर्वक शब्दों में उन्होंने कहा, ‘‘पृथ्वी हिल रही है, स्वर्ग मेरे सामने खुल गया है।’’ उनके पुत्र विल ने सोचा कि उनके पिता स्वप्न देख रहे है। ‘‘नहीं, यह कोई स्वप्न नहीं हैं,’’ मूडी ने कहा। विल, यह बहुत सुन्दर दृष्य है। यह एक समाधि लेने के समान है। यदि यह मृत्यु है, तो यह मधुर है। यहाँ कोई घाटी नहीं है। परमेश्वर मुझे बुला रहा है, और मुझे अवश्य जाना चाहिये।’’ यहोवा के भक्तों की मृत्यु उसकी दृष्टि में अनमोल है। आइये हम देखें कि याकूब के अंतिम दिन कैसे थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में याकूब अपने परिवार के साथ मिस्त्र में रहता था। वह ऐसा रहता था जिसका मिस्त्र का राजा भी सम्मान करता था। याकूब द्वारा फिरौन को दिया गया जवाब कि उसकी उम्र कितनी है, उसने कहा था, ‘‘मेरी यात्रा के वर्ष 130 है।’’ सचमुच, जो व्यक्ति उसके जीवन को एक तीर्थयात्रा समझता है, उसने इस संसार को अपना वास्तविक घर नहीं माना था। हम भी इस संसार में यात्री हैं। हमारा वास्तविक घर यहाँ नहीं है। यह जानना कि स्वर्ग ही हमारा घर है, आनंद की बात है। आइये हम इस संसार में यह सोचकर जीएँ कि हम केवल यात्री ही हैं। सत्रह वर्षों के बाद याकूब मिस्त्र में मर गया और अपनी यात्रा पूरी किया। उत्पत्ति की पुस्तक 47 से 50 अध्याय याकूब के अंतिम दिनों के बहुत से विवरण देते हैं, उसकी मृत्यु और दफन के भी। उसके पितरों का भी ऐसा विवरण नहीं दिया गया है। अब्राहम और इसहाक के विषय केवल इतना लिखा है कि वे दीर्घायु होकर मरे थे (उत्पत्ति 25:8,35:29)। जब याकूब जान गया कि उसका अंत निकट था तो उसने यूसुफ को बुलाया और कहा कि उसे मिस्त्र में नहीं परंतु उसे वापस कनान में दफनाए जहाँ उसके पितरों को दफनाया गया था। यूसुफ ने उसके पिता से प्रतिज्ञा किया कि वह ऐसा ही करेगा। यूसुफ के दो बेटे थे, मनश्शे और एप्रैम। यूसुफ ने उन्हें अपने पिता के पास लाया कि वह उन्हें आशीष दे। उन्हें आशीष देने के पहले याकूब ने उन्हें अपने पुत्र स्वीकार किया। इसीलिये जब इस्त्राएल के गोत्रों के विषय कहा जाता है तब एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों का नाम भी अन्य गोत्रों के साथ लिया जाता है। प्रधान मंत्री के पुत्र होने के कारण उन्हें वहाँ उच्च स्थान मिल सकता था, परंतु याकूब अच्छी तरह जानता था कि उनके लिये उनके भाइयों के साथ गिना जाना बेहतर था जो परमेश्वर के चुने हुए लोग थे, बजाय मिस्त्र में महान बनने के। यूसुफ भी इस बात से सहमत था। कई वर्षों के बाद मूसा ने भी मिस्त्र की गद्दी के वारिसदार होने के हक को छोड़ दिया और परमेश्वर के लोगों के साथ दुख उठाना बेहतर समझा (इब्रानियों 11:24)। याद रखें कि मसीह की फटकार संसार की समृद्धियों से बेहतर है। जब याकूब ने लड़कों को आशीष दे दिया तब उसने अपने हाथों को उन पर ऐसा रखा कि उसका दायाँ हाथ एप्रैम पर और बायाँ हाथ मनश्शे के सिर पर था। यूसुफ ने सोचा कि उसके पिता ने गलती किया, परंतु याकूब जानता था कि वह क्या कर रहा है। परमेश्वर ने छोटे लड़के को बड़ी आशीष के लिये चुना था जैसे उसने याकूब को उसके बड़े भाई एसाव के सामने चुना गया। जब परमेश्वर चुनता है, वह केवल बाहरी रूप नहीं देखता। वह हर्दय को देखता है। (1 शमुएल 16:7)। याकूब ने अपने अन्य पुत्रों को भी आशीष दिया। उसके अंतिम शब्द उनके गोत्रों के विषय भविष्यवाणियाँ थीं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणी यहूदा के विषय थी। इस आशीष में उसने शीलोह के आने की बात कहा था। यह हमारे प्रभु यीशु मसीह के आगमन के विषय थी जो यहूदा के गोत्र से जन्म लेने वाला था। याकूब ने उसके पुत्रों को याद दिलाया कि परमेश्वर उनके पास आएगा और उन्हें उस देश में ले जाएगा जिसकी प्रतिज्ञा उसने उसके पितरों से किया था (उत्पत्ति 48:21)। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर याकूब के मजबूत विश्वास को देखें फिर याकूब ने अंतिम सांस लिया। वह कितनी महिमामय मृत्यु थी। अपने रिश्तेदारों और मित्रों को पीछे छोड़कर, परमेश्वर की संतानों की मृत्यु उस स्थान की यात्रा है जहाँ मसीह रहता है। यह परमेश्वर की दृष्टि में अनमोल है। मिस्त्र के वैद्यों ने याकूब के शरीर को खाली कर रासायनिक पदार्थों से लेप लगाकर सुरक्षित किया। ऐसा शरीर बिना सड़े लंबे समय के लिये सुरक्षित रहता है। बड़े शोक के साथ याकूब के पुत्रों ने उसके शरीर को उसके निर्देशानुसार कनान ले गए और उसे मकपेला की गुफा में दफना दिया। यहीं पर अब्राहम और उसकी पत्नी सारा, इसहाक और उसकी पत्नी रिबका और याकूब और उसकी पत्नी लिया दफन थे (उत्पत्ति 23;49:31-33)।

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति अध्याय 49 फिर याकूब ने अपने पुत्रों को यह कहकर बुलाया, कि इकट्ठे हो जाओ, मैं तुम को बताऊंगा, कि अन्त के दिनों में तुम पर क्या क्या बीतेगा। 2 हे याकूब के पुत्रों, इकट्ठे हो कर सुनो, अपने पिता इस्राएल की ओर कान लगाओ। 3 हे रूबेन, तू मेरा जेठा, मेरा बल, और मेरे पौरूष का पहिला फल है; प्रतिष्ठा का उत्तम भाग, और शक्ति का भी उत्तम भाग तू ही है। 4 तू जो जल की नाईं उबलने वाला है, इसलिये औरों से श्रेष्ट न ठहरेगा; क्योंकि तू अपने पिता की खाट पर चढ़ा, तब तू ने उसको अशुद्ध किया; वह मेरे बिछौने पर चढ़ गया॥ 5 शिमोन और लेवी तो भाई भाई हैं, उनकी तलवारें उपद्रव के हथियार हैं। 6 हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल; क्योंकि उन्होंने कोप से मनुष्यों को घात किया, और अपनी ही इच्छा पर चलकर बैलों की पूंछें काटी हैं॥ 7 धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड था; और उनके रोष को, जो निर्दय था; मैं उन्हें याकूब में अलग अलग और इस्राएल में तित्तर बित्तर कर दूंगा॥ 8 हे यहूदा, तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे, तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गर्दन पर पड़ेगा; तेरे पिता के पुत्र तुझे दण्डवत करेंगे॥ 9 यहूदा सिंह का डांवरू है। हे मेरे पुत्र, तू अहेर करके गुफा में गया है: वह सिंह वा सिंहनी की नाईं दबकर बैठ गया; फिर कौन उसको छेड़ेगा॥ 10 जब तक शीलो न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्था देनेवाला अलग होगा; और राज्य राज्य के लोग उसके आधीन हो जाएंगे॥ 11 वह अपने जवान गदहे को दाखलता में, और अपनी गदही के बच्चे को उत्तम जाति की दाखलता में बान्धा करेगा ; उसने अपने वस्त्र दाखमधु में, और अपना पहिरावा दाखों के रस में धोया है॥ 12 उसकी आंखे दाखमधु से चमकीली और उसके दांत दूध से श्वेत होंगे॥ 13 जबूलून समुद्र के तीर पर निवास करेगा, वह जहाजों के लिये बन्दरगाह का काम देगा, और उसका परला भाग सीदोन के निकट पहुंचेगा 14 इस्साकार एक बड़ा और बलवन्त गदहा है, जो पशुओं के बाड़ों के बीच में दबका रहता है॥ 15 उसने एक विश्रामस्थान देखकर, कि अच्छा है, और एक देश, कि मनोहर है, अपने कन्धे को बोझ उठाने के लिये झुकाया, और बेगारी में दास का सा काम करने लगा॥ 16 दान इस्राएल का एक गोत्र हो कर अपने जातिभाइयों का न्याय करेगा॥ 17 दान मार्ग में का एक सांप, और रास्ते में का एक नाग होगा, जो घोड़े की नली को डंसता है, जिस से उसका सवार पछाड़ खाकर गिर पड़ता है॥ 18 हे यहोवा, मैं तुझी से उद्धार पाने की बाट जोहता आया हूं॥ 19 गाद पर एक दल चढ़ाई तो करेगा; पर वह उसी दल के पिछले भाग पर छापा मारेगा॥ 20 आशेर से जो अन्न उत्पन्न होगा वह उत्तम होगा, और वह राजा के योग्य स्वादिष्ट भोजन दिया करेगा॥ 21 नप्ताली एक छूटी हुई हरिणी है; वह सुन्दर बातें बोलता है॥ 22 यूसुफ बलवन्त लता की एक शाखा है, वह सोते के पास लगी हुई फलवन्त लता की एक शाखा है; उसकी डालियां भीत पर से चढ़कर फैल जाती हैं॥ 23 धनुर्धारियों ने उसको खेदित किया, और उस पर तीर मारे, और उसके पीछे पड़े हैं॥ 24 पर उसका धनुष दृढ़ रहा, और उसकी बांह और हाथ याकूब के उसी शक्तिमान ईश्वर के हाथों के द्वारा फुर्तीले हुए, जिसके पास से वह चरवाहा आएगा, जो इस्राएल का पत्थर भी ठहरेगा॥ 25 यह तेरे पिता के उस ईश्वर का काम है, जो तेरी सहायता करेगा, उस सर्वशक्तिमान को जो तुझे ऊपर से आकाश में की आशीषें, और नीचे से गहिरे जल में की आशीषें, और स्तनों, और गर्भ की आशीषें देगा॥ 26 तेरे पिता के आशीर्वाद मेरे पितरों के आशीर्वाद से अधिक बढ़ गए हैं और सनातन पहाडिय़ों की मन- चाही वस्तुओं की नाईं बने रहेंगे: वे यूसुफ के सिर पर, जो अपने भाइयों में से न्यारा हुआ, उसी के सिर के मुकुट पर फूले फलेंगे॥ 27 बिन्यामीन फाड़नेहारा हुण्डार है, सवेरे तो वह अहेर भक्षण करेगा, और सांझ को लूट बांट लेगा॥ 28 इस्राएल के बारहों गोत्र ये ही हैं: और उनके पिता ने जिस जिस वचन से उन को आशीर्वाद दिया, सो ये ही हैं; एक एक को उसके आशीर्वाद के अनुसार उसने आशीर्वाद दिया। 29 तब उसने यह कहकर उन को आज्ञा दी, कि मैं अपने लोगों के साथ मिलने पर हूं: इसलिये मुझे हित्ती एप्रोन की भूमिवाली गुफा में मेरे बापदादों के साथ मिट्टी देना, 30 अर्थात उसी गुफा में जो कनान देश में मम्रे के साम्हने वाली मकपेला की भूमि में है; उस भूमि को तो इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसी निमित्त मोल लिया था, कि वह कबरिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो। 31 वहां इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई; और वहीं इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई; और वहीं मैं ने लिआ: को भी मिट्टी दी। 32 वह भूमि और उस में की गुफा हित्तियों के हाथ से मोल ली गई। 33 यह आज्ञा जब याकूब अपने पुत्रों को दे चुका, तब अपने पांव खाट पर समेट प्राण छोड़े, और अपने लोगों में जा मिला। अध्याय 50 तब यूसुफ अपने पिता के मुंह पर गिरकर रोया और उसे चूमा। 2 और यूसुफ ने उन वैद्यों को, जो उसके सेवक थे, आज्ञा दी, कि मेरे पिता की लोथ में सुगन्धद्रव्य भरो; तब वैद्यों ने इस्राएल की लोथ में सुगन्धद्रव्य भर दिए। 3 और उसके चालीस दिन पूरे हुए। क्योंकि जिनकी लोथ में सुगन्धद्रव्य भरे जाते हैं, उन को इतने ही दिन पूरे लगते हैं: और मिस्री लोग उसके लिये सत्तर दिन तक विलाप करते रहे॥ 4 जब उसके विलाप के दिन बीत गए, तब यूसुफ फिरौन के घराने के लोगों से कहने लगा, यदि तुम्हारी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो मेरी यह बिनती फिरौन को सुनाओ, 5 कि मेरे पिता ने यह कहकर, कि देख मैं मरने पर हूं, मुझे यह शपथ खिलाई, कि जो कबर तू ने अपने लिये कनान देश में खुदवाई है उसी में मैं तुझे मिट्टी दूंगा इसलिये अब मुझे वहां जा कर अपने पिता को मिट्टी देने की आज्ञा दे, तत्पश्चात् मैं लौट आऊंगा। 6 तब फिरौन ने कहा, जा कर अपने पिता की खिलाई हुई शपथ के अनुसार उन को मिट्टी दे। 7 सो यूसुफ अपने पिता को मिट्टी देने के लिये चला, और फिरौन के सब कर्मचारी, अर्थात उसके भवन के पुरनिये, और मिस्र देश के सब पुरनिये उसके संग चले। 8 और यूसुफ के घर के सब लोग, और उसके भाई, और उसके पिता के घर के सब लोग भी संग गए; पर वे अपने बालबच्चों, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों को गोशेन देश में छोड़ गए। 9 और उसके संग रथ और सवार गए, सो भीड़ बहुत भारी हो गई। 10 जब वे आताद के खलिहान तक, जो यरदन नदी के पार है पहुंचे, तब वहां अत्यन्त भारी विलाप किया, और यूसुफ ने अपने पिता के सात दिन का विलाप कराया। 11 आताद के खलिहान में के विलाप को देखकर उस देश के निवासी कनानियों ने कहा, यह तो मिस्रियों का कोई भारी विलाप होगा, इसी कारण उस स्थान का नाम आबेलमिस्रैम पड़ा, और वह यरदन के पार है। 12 और इस्राएल के पुत्रों ने उससे वही काम किया जिसकी उसने उन को आज्ञा दी थी: 13 अर्थात उन्होंने उसको कनान देश में ले जाकर मकपेला की उस भूमिवाली गुफा में, जो मम्रे के साम्हने हैं, मिट्टी दी; जिस को इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इस निमित्त मोल लिया था, कि वह कबरिस्तान के लिये उसकी निज भूमि हो॥ 14 अपने पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपने भाइयोंऔर उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिये उसके संग गए थे, मिस्र में लौट आया। 15 जब यूसुफ के भाइयों ने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, कदाचित यूसुफ अब हमारे पीछे पड़े, और जितनी बुराई हम ने उससे की थी सब का पूरा पलटा हम से ले। 16 इसलिये उन्होंने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, कि तेरे पिता ने मरने से पहिले हमें यह आज्ञा दी थी, 17 कि तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम बिनती करते हैं, कि तू अपने भाइयों के अपराध और पाप को क्षमा कर; हम ने तुझ से बुराई तो की थी, पर अब अपने पिता के परमेश्वर के दासों का अपराध क्षमा कर। उनकी ये बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा। 18 और उसके भाई आप भी जाकर उसके साम्हने गिर पड़े, और कहा, देख, हम तेरे दास हैं। 19 यूसुफ ने उन से कहा, मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूं? 20 यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिस से वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं। 21 सो अब मत डरो: मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन पोषण करता रहूंगा; इस प्रकार उसने उन को समझा बुझाकर शान्ति दी॥ 22 और यूसुफ अपने पिता के घराने समेत मिस्र में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा। 23 और यूसुफ एप्रैम के परपोतों तक देखने पाया: और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न हो कर यूसुफ से गोद में लिए गए। 24 और यूसुफ ने अपने भाइयों से कहा मैं तो मरने पर हूं; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकाल कर उस देश में पहुंचा देगा, जिसके देने की उसने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाई थी। 25 फिर यूसुफ ने इस्राएलियों से यह कहकर, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उन को इस विषय की शपथ खिलाई, कि हम तेरी हड्डियों को वहां से उस देश में ले जाएंगे। 26 निदान यूसुफ एक सौ दस वर्ष का हो कर मर गया: और उसकी लोथ में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और वह लोथ मिस्र में एक सन्दूक में रखी गई॥ भजन संहिता 116:15 15 यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है। उत्पत्ति 25:8 8 और इब्राहीम का दीर्घायु होने के कारण अर्थात पूरे बुढ़ापे की अवस्था में प्राण छूट गया। और वह अपने लोगों में जा मिला। उत्पत्ति 35:29 29 और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का हो कर अपने लोगों में जा मिला: और उसके पुत्र ऐसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी॥ इब्रानियों 11:24 24 विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। उत्पत्ति 48:21 21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, देख, मैं तो मरने पर हूं: परन्तु परमेश्वर तुम लोगों के संग रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरों के देश में फिर पहुंचा देगा। उत्पत्ति 23 रा तो एक सौ सत्ताईस बरस की अवस्था को पहुंची; और जब सारा की इतनी अवस्था हुई; 2 तब वह किर्यतर्बा में मर गई। यह तो कनान देश में है, और हेब्रोन भी कहलाता है: सो इब्राहीम सारा के लिये रोने पीटने को वहां गया। 3 तब इब्राहीम अपने मुर्दे के पास से उठ कर हित्तियों से कहने लगा, 4 मैं तुम्हारे बीच पाहुन और परदेशी हूं: मुझे अपने मध्य में कब्रिस्तान के लिये ऐसी भूमि दो जो मेरी निज की हो जाए, कि मैं अपने मुर्दे को गाड़ के अपने आंख की ओट करूं। 5 हित्तियों ने इब्राहीम से कहा, 6 हे हमारे प्रभु, हमारी सुन: तू तो हमारे बीच में बड़ा प्रधान है: सो हमारी कब्रों में से जिस को तू चाहे उस में अपने मुर्दे को गाड़; हम में से कोई तुझे अपनी कब्र के लेने से न रोकेगा, कि तू अपने मुर्दे को उस में गाड़ने न पाए। 7 तब इब्राहीम उठ कर खड़ा हुआ, और हित्तियों के सम्मुख, जो उस देश के निवासी थे, दण्डवत करके कहने लगा, 8 यदि तुम्हारी यह इच्छा हो कि मैं अपने मुर्दे को गाड़ के अपनी आंख की ओट करूं, तो मेरी प्रार्थना है, कि सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिये बिनती करो, 9 कि वह अपनी मकपेला वाली गुफा, जो उसकी भूमि की सीमा पर है; उसका पूरा दाम ले कर मुझे दे दे, कि वह तुम्हारे बीच कब्रिस्तान के लिये मेरी निज भूमि हो जाए। 10 और एप्रोन तो हित्तियों के बीच वहां बैठा हुआ था। सो जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से हो कर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने उसने इब्राहीम को उत्तर दिया, 11 कि हे मेरे प्रभु, ऐसा नहीं, मेरी सुन; वह भूमि मैं तुझे देता हूं, और उस में जो गुफा है, वह भी मैं तुझे देता हूं; अपने जाति भाइयों के सम्मुख मैं उसे तुझ को दिए देता हूं: सो अपने मुर्दे को कब्र में रख। 12 तब इब्राहीम ने उस देश के निवासियों के साम्हने दण्डवत की। 13 और उनके सुनते हुए एप्रोन से कहा, यदि तू ऐसा चाहे, तो मेरी सुन: उस भूमि का जो दाम हो, वह मैं देना चाहता हूं; उसे मुझ से ले ले, तब मैं अपने मुर्दे को वहां गाडूंगा। 14 एप्रोन ने इब्राहीम को यह उत्तर दिया, 15 कि, हे मेरे प्रभु, मेरी बात सुन; एक भूमि का दाम तो चार सौ शेकेल रूपा है; पर मेरे और तेरे बीच में यह क्या है? अपने मुर्दे को कब्र में रख। 16 इब्राहीम ने एप्रोन की मानकर उसको उतना रूपा तौल दिया, जितना उसने हित्तियों के सुनते हुए कहा था, अर्थात चार सौ ऐसे शेकेल जो व्यापारियों में चलते थे। 17 सो एप्रोन की भूमि, जो माम्रे के सम्मुख की मकपेला में थी, वह गुफा समेत, और उन सब वृक्षों समेत भी जो उस में और उसके चारोंऔर सीमा पर थे, 18 जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से हो कर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने इब्राहीम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई। 19 इसके पश्चात इब्राहीम ने अपनी पत्नी सारा को, उस मकपेला वाली भूमि की गुफा में जो माम्रे के अर्थात हेब्रोन के साम्हने कनान देश में है, मिट्टी दी। 20 और वह भूमि गुफा समेत, जो उस में थी, हित्तियों की ओर से कब्रिस्तान के लिये इब्राहीम के अधिकार में पक्की रीति से आ गई। उत्पत्ति 49:31-33 31 वहां इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई; और वहीं इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई; और वहीं मैं ने लिआ: को भी मिट्टी दी। 32 वह भूमि और उस में की गुफा हित्तियों के हाथ से मोल ली गई। 33 यह आज्ञा जब याकूब अपने पुत्रों को दे चुका, तब अपने पांव खाट पर समेट प्राण छोड़े, और अपने लोगों में जा मिला।