पाठ 31 : बीज बोने वाले का दृष्टांत
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सारांश
प्रभु ने परमेश्वर के राज्य के विषय सत्य को लघु कथाओं और दृष्टांतों के द्वारा सिखाया। बीज बोनेवाले का दृष्टांत उन्हीं में से एक है। यह दृष्टांत उसने गलील के समुद्र के किनारे एक नाव पर बैठकर कहा। क्योंकि लोग हजारों की संख्या में उसके आसपास इकट्ठे हो जाते थे, वह सभी का ध्यान अपनी ओर नहीं खींच सकता था। इसलिये, इस बार वह एक नाव पर चढ़ा और वहाँ से समुद्र किनारे इकट्ठे लोगों से बात किया। शायद प्रभु ने यह दृष्टांत वंसत ऋतु में बताया था क्योंकि वह थोड़ी दूर पर किसानों को कंधे पर थैलियाँ लटकाए खेतों में बीज बोते देख सकता था। इस दृष्टांत में प्रभु ने बताया कि बीज तीन प्रकार की भूमियों पर गिरे,
- मार्ग के किनारे
- पथरीली भूमि पर
- झाड़ियो में
- अच्छी भूमि पर
- मार्ग के किनारे केरल के खेत में छोटे-छोटे मेंड़ होते हैं जो गीली भूमि को अलग-अलग विभागों में बाटते हैं। उन्हें मार्ग के रूप में भी वापरा जाता है। पलिस्तीन के खेतों में ऐसे ही मेड़ थीं जो पैरों के नियमित दबाव के कारण सख्त पड़ गए थे। जो बीज उस पर गिरे थे वे अंकुरित नहीं हो सकते थे। क्योंकि वे मिट्टी के भीतर नहीं गए थे इसलिये चिड़िया आईं और उन बीजों को चुग गइंर्।
- पथरीली भूमि पर इन स्थानों पर पत्थरों के बीच थोड़ी सी ही मिट्टी थी। यहाँ जो बीज गिरे थे वे जल्द ही अंकुरित हो गये क्योंकि वहाँ की मिट्टी गहरी नहीं थी। लेकिन जब सूर्य निकला तो वे मुरझा गये क्योंकि उनकी जड़ें गहराई तक नही पहुँची थी।
- झाडियों में झाडियाँ किसी भी प्रकार की भूमि पर ऊग जाती हैं। वे जल्दी बढ़तीं, फैल जातीं और दूसरे पौधों को दबा देती हैं।
- अच्छी भूमि पर यहाँ भूमि अच्छी होती है। इसके नीचे पत्थर नहीं होता। यहाँ बीज अंकुरित होता है, बढ़ता है और तीस गुना से सौ गुणा फल जाते हैं। प्रभु ने स्वयँ ही चेलों को इस दृष्टांत का मतलब बताया। बीज परमेश्वर का वचन है, या सुसमाचार है। (परमेश्वर के वचन की तुलना याकूब की पत्री 1:21 में भी बीज के साथ की गई)। बीज बोनेवाले वे हैं जो वचन का प्रचार करते हैं। जैसे बीच चार प्रकार की भूमियों में गिरता है, उसी प्रकार वचन के सुनने वाले भी परमेश्वर के वचन को चार तरीकों से सुनते हैं।
- कुछ लोग कानों से सुनते है परंतु वचन उनके हृदय में नहीं उतरता। उसे शैतान उठा ले जाता है, और सुनने वाले को वचन भुला देता है। ‘‘शारिरिक मनुष्य परमेश्वर की आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता’’ (1 कुरि 2:14)।
- कुछ लोग जो वचन सुनते हैं, उसे तुरंत आनंद से ग्रहण कर लेते हैं, परंतु वह उनके हृदय में गहराई से नहीं उतरता। लूका कहता है कि वे थोड़े समय के लिये विश्वास करते हैं, परंतु जब परीक्षाएँ आती हैं तब तब वे गिर जाते हैं। हम पढ़ते हैं कि पौधे धूप में झुलस गये। सूर्य की गरमी पौधे की वृद्धि के लिये अच्छी होती है। यदि उसकी जड़ें नीचे गीली मिट्टी में हों। जागृति सभा के समय कुछ लोग कहते हैं कि वे मसीह पर विश्वास करते हैं, परंतु यदि सताव आता है तो उनका विश्वास गायब हो जाता है। कारण यह है कि वे परमेश्वर के वचन से पोषण नहीं पाते। पौधों को पानी की आवश्यकता होती है। 1 कुरि 3:6 में पौलुस कहता है ‘‘मैंने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परंतु परमेश्वर ने बढ़ाया।’’ जब कोई मित्र सुसमाचार में रूचि लेता है, तब हमें उसे अवश्य ही परमेश्वर का वचन सिखाना चाहिये। इस प्रकार उस बीज को पानी देना चाहिये जो उसके हृदय में पड़ा था
- तीसरे समूह ने वचन सुना परंतु संसार की चिंताओं , धन के लोभ और शरीर की अभिलाषा ने वचन को दबा दिया और उसे फलहीन बना दिया। तीन काँटेदार झाडियाँ जो पौधों को दबा देते हैं वे चिंताएँ, समृद्धि और सुख वैभव हैं। इन्हीं बातों पर विजय पाने के लिये ही हमें परमेश्वर के वचन की तलवार दी गई है। हमारा प्रभु कहता है, ‘‘इसलिये तुम चिंता करके यह न कहना कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएँगे? (मत्ती 6:31)। ‘‘लोभ से अपने आप को बचाए रखो।’’ (लूका 12:15)
- चौथा समूह परमेश्वर का वचन सुनकर उस पर विश्वास करता है। इस दृष्टांत के तीन भागों की तुलना करने से हम पाते हैं कि ये सुनने वाले 4 बातें करते हैं : (क) सुनते हैं, (ख) समझते या ग्रहण करते हैं (ग) अपने पास रखते हैं (घ) फल लाते है। हम यह भी पढ़ते हैं कि वे धीरज के साथ फल लाते हैं। यदि परमेश्वर के वचन को हमारे हृदय में गहराई से जड़ पकड़ना हो और फल लाना हो, तो हमें धीरज रखना होगा। गलातियों 5:22-23 में हम पाते हैं कि अच्छी भूमि से आनेवाला फल : प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं’’ (रोमियों 6:22 भी देखें) जब आप संडे स्कूल में पढते हें तब परमेश्वर का वचन आपके हृदयों में बोया जाता है। परमेश्वर बीज को आशीषित करे ताकि वह सौ गुणा फल लाए। नोट : ‘‘इस संसार की चिंताएँ’’ : यूनानी भाषा में इस अभिव्यक्ति को ‘‘युग की चिंता’’ अनुवादित किया जा सकता है। इसलिये इसे युग के अनुरूप की समस्याएँ और बोझ समझा जा सकता है।
बाइबल अध्यन
मत्ती 13:3-8 3 और उस ने उन से दृष्टान्तों में बहुत सी बातें कही, कि देखो, एक बोने वाला बीज बोने निकला। 4 बोते समय कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे और पक्षियों ने आकर उन्हें चुग लिया। 5 कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरे, जहां उन्हें बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण वे जल्द उग आए। 6 पर सूरज निकलने पर वे जल गए, और जड़ न पकड़ने से सूख गए। 7 कुछ झाड़ियों में गिरे, और झाड़ियों ने बढ़कर उन्हें दबा डाला। 8 पर कुछ अच्छी भूमि पर गिरे, और फल लाए, कोई सौ गुना, कोई साठ गुना, कोई तीस गुना। मत्ती 18:2,3 2 इस पर उस ने एक बालक को पास बुलाकर उन के बीच में खड़ा किया। 3 और कहा, मैं तुम से सच कहता हूं, यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। मरकुस 4:1-20 वह फिर झील के किनारे उपदेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह झील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और सारी भीड़ भूमि पर झील के किनारे खड़ी रही। 2 और वह उन्हें दृष्टान्तों में बहुत सी बातें सिखाने लगो, और अपने उपदेश में उन से कहा। 3 सुनो: देखो, एक बोनेवाला, बीज बाने के लिये निकला! 4 और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पक्षियों ने आकर उसे चुग लिया। 5 और कुछ पत्थरीली भूमि पर गिरा जहां उस को बहुत मिट्टी न मिली, और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण जल्द उग आया। 6 और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। 7 और कुछ तो झाड़ियों में गिरा, और झाड़ियों ने बढ़कर उसे दबा लिया, और वह फल न लाया। 8 परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया। 9 और उस ने कहा; जिस के पास सुनने के लिये कान हों वह सुन ले॥ 10 जब वह अकेला रह गया, तो उसके साथियों ने उन बारह समेत उस से इन दृष्टान्तों के विषय में पूछा। 11 उस ने उन से कहा, तुम को तो परमेश्वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहर वालों के लिये सब बातें दृष्टान्तों में होती हैं। 12 इसलिये कि वे देखते हुए देखें और उन्हें सुझाई न पड़े और सुनते हुए सुनें भी और न समझें; ऐसा न हो कि वे फिरें, और क्षमा किए जाएं। 13 फिर उस ने उन से कहा; क्या तुम यह दृष्टान्त नहीं समझते? तो फिर और सब दृष्टान्तों को क्योंकर समझोगे? 14 बोने वाला वचन बोता है। 15 जो मार्ग के किनारे के हैं जहां वचन बोया जाता है, ये वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उन में बोया गया था, उठा ले जाता है। 16 और वैसे ही जो पत्थरीली भूमि पर बोए जाते हैं, ये वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। 17 परन्तु अपने भीतर जड़ न रखने के कारण वे थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इस के बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं। 18 और जो झाडियों में बोए गए ये वे हैं जिन्होंने वचन सुना। 19 और संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और और वस्तुओं का लोभ उन में समाकर वचन को दबा देता है। और वह निष्फल रह जाता है। 20 और जो अच्छी भूमि में बोए गए, ये वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा॥ लूका 8:4-15 4 जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उस ने दृष्टान्त में कहा। 5 कि एक बोने वाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया। 6 और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु तरी न मिलने से सूख गया। 7 कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ साथ बढ़कर उसे दबा लिया। 8 और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया: यह कहकर उस ने ऊंचे शब्द से कहा; जिस के सुनने के कान होंवह सुन ले॥ 9 उसके चेलों ने उस से पूछा, कि यह दृष्टान्त क्या है? उस ने कहा; 10 तुम को परमेश्वर के राज्य के भेदोंकी समझ दी गई है, पर औरों को दृष्टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिये कि वे देखते हुए भी न देखें, और सुनते हुए भी न समझें। 11 दृष्टान्त यह है; बीज तो परमेश्वर का वचन है। 12 मार्ग के किनरे के वे हैं, जिन्हों ने सुना; तब शैतान आकर उन के मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएं। 13 चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और परीक्षा के समय बहक जाते हैं। 14 जो झाड़ियों में गिरा, सो वे हैं, जो सुनते हैं, पर होते होते चिन्ता और धन और जीवन के सुख विलास में फंस जाते हैं, और उन का फल नहीं पकता। 15 पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं॥ भजन 126:5 5 जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे। याकूब 1:21 21 इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। मत्ती 6:25 25 इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे? क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? गलातियों 5:22-23 22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, 23 और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं। रोमियों 6:22 22 क्योंकि उन का अन्त तो मृत्यु है परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है।
संगीत
आ गया एक बीज बोने वाला। (2)
1 पहला बीज तो रास्ते के ऊपर
चिड़ियों ने आकर उठा लिया।
2 दूसरा बीज तो पत्थर के ऊपर
सूरज निकलकर जला दिया।
3 तीसरा बीज तो कांटों के बीच में
कांटों ने उसको दबा दिया ।
4 चैथा बीज तो अच्छी जमीन पर
फल लाया, कुछ तीस गुणा,
कुछ साठ गुणा, और सौ गुणा ।