पाठ 30 : विधवा की दमड़ियाँ
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सारांश
क्रूस पर चढ़ाए जाने के चार या पाँच दिन पहले यीशु यरूशलेम के मंदिर में बैठे थे। हमने देखा कि सुलैमान द्वारा बनाए गए मंदिर को बेबीलोनीयों ने नष्ट कर दिया था। वे यहूदी जो बंधुआई से लौटे थे उन्होंने मंदिर को फिर से बनाया। क्योंकि उनका अगुवा जरूबाब्बेल था, वह जरूबाब्बेल का मंदिर के नाम से जाना गया। वह करीब 500 वर्ष तक बना रहा। बाद में वह राजा जो हेरोद महान के नाम से जाना गया, उसने इसे फिर से बनाया। जिस मंदिर में यीशु बैठा था वह हेरोद का मंदिर था। इस मंदिर में एक जगह थी जो स्त्रियों का आंगन कहलाती थी। आंगन में पीतल की बनी दान की पेटियाँ दीवालों के पास रखी गईथीं। जो आराधना करने आते थे वे अपना दान इन पेटियों में डाल देते थे। प्रभु उन लोगों को देख रहा था जो पेटी में दान डाल रहे थे। शिष्य भी विशाल पत्थरों के आसपास खड़े रहकर मंदिर की सुन्दरता को देखकर आश्चर्य कर रहे थे (मरकुस 13:1)। कई धनी व्यक्तियों ने धन की बड़ी-बड़ी राशि मंदिर के खजाने में डाल दिया। एक गरीब स्त्री आई और उसने दो दमड़ियाँ डाल दी (उन दिनों का तांबे का सबसे छोटा सिक्का)। जब प्रभु ने इस स्त्री को दो दमड़ियाँ डालते देखा तो उसने शिष्यों को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘इस गरीब विधवा ने सबसे बढ़कर डाली है।’’ देखो, प्रभु छोटे से दान को भी कितना महत्व देता है कि वह अपने शिष्यों को बुलाकर इसके विषय कहता है। जब भी प्रभु ने कुछ महत्वपूर्ण बात कहा, उसने अक्सर कहा, ‘‘मैं तुमसे सच कहता हूँ।’’ इस संदर्भ में उसके द्वारा उपयोग किये गये शब्द का मतलब ‘‘सचमुच’’ है। वह कहता है कि इस स्त्री ने अपनी जीविका ही डाल दी थी। परमेश्वर के प्रति प्रेम के कारण उसके पास जो कुछ था उसने वह डाल दी थी। अन्य लोग उनकी संपत्ति में से देते हैं, कुछ इतना जो वे आसानी से दे सकते हैं। क्योंकि उसने सबकुछ दे दिया था , उसकी अपनी जरूरतों के लिये उसके पास कुछ भी नहीं बचा था। हम हमारे दान को वैसा देखते हैं जो हमने दिया है, परंतु परमेश्वर देखता है कि हमने कितना रखा है। हम हमारी जरूरतों के पूरा होने के बाद बचत में से कुछ परमेश्वर को देते हैं। कुछ बच्चे संडे स्कूल तब जाते हैं जब उनके पास करने के लिये कुछ और नहीं होता। यदि उनके पास पढ़ने को कोई और पुस्तक न हो तब वे बाइबल पढ़ते हैं। यदि खरीदी करने के बाद कुछ चिल्लर बच जाए तब वे उसे परमेश्वर को देते हैं। परमेश्वर की महिमा ऐसे दानों से नहीं होती। हमें अपनी जरूरतों को भूलकर प्रेम से परमेश्वर को देना चाहिये (1 कुरि 16:2)।सामरिया की स्त्री की कहानी को याद करें। वह अपना घड़ा छोड़कर भागी, पानी की अपनी जरूरत को भूलकर ताकि मसीह के विषय आनंद का समाचार दूसरों को दे। क्या हम यीशु को संसार की अन्य बातों से ज्यादा प्रेम करते हैं? विधवा ने अपनी सारी जीविका ही प्रभु को दे दी थी। हमें ने केवल अपनी संपत्ति परमेश्वर को देना चाहिये परंतु अपना जीवन भी देना चाहिये। वह आपका हृदय चाहता है। वह आपके हृदय के द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता है और कहता है ‘‘देख मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इन शब्दों का मतलब घनिष्ट संगति और आपस में बाँटना है। क्या आप यीशु की संगति का आनंद लेते हैं? क्या वह आपका मित्र और साथी है? नोट : पद 42 में ‘दमड़ी’ यूनानी शब्द ‘लेप्टन’ का अनुवाद है।
बाइबल अध्यन
मरकुस 12:41-44 41 और वह मन्दिर के भण्डार के साम्हने बैठकर देख रहा था, कि लोग मन्दिर के भण्डार में किस प्रकार पैसे डालते हैं, और बहुत धनवानों ने बहुत कुछ डाला। 42 इतने में एक कंगाल विधवा ने आकर दो दमडिय़ां, जो एक अधेले के बराबर होती है, डालीं। 43 तब उस ने अपने चेलों को पास बुलाकर उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। 44 क्योंकि सब ने अपने धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात अपनी सारी जीविका डाल दी है। लूका 21:1-4 र उस ने आंख उठाकर धनवानों को अपना अपना दान भण्डार में डालते देखा। 2 और उस ने एक कंगाल विधवा को भी उस में दो दमडिय़ां डालते देखा। 3 तब उस ने कहा; मैं तुम से सच कहता हूं कि इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। 4 क्योंकि उन सब ने अपनी अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है॥ 2 कुरिन्थियों 9:7 7 हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देने वाले से प्रेम रखता है। प्रकाशितवाक्य 3:20 20 देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ कर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ।