पाठ 29 : जन्म का अंधा

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सारांश

हमने देखा कि यीशु ने किस तरह 38 वर्ष से बीमार व्यक्ति को चंगा किया। अब हम देखेंगे कि उसने एक जन्म से अंधे व्यक्ति को किस तरह दृष्टि दिया। उस व्यक्ति की तकलीफों के विषय सोचें जो देख नहीं सकता। वह हमेशा अंधियारे में रहता है। वह प्रकृति की सुन्दरता का आनंद नहीं ले सकता अर्थात, रंगीन फूल, हरे वृक्ष, पहाड़ियाँ और घाटियाँ। परंतु उस व्यक्ति का जीवन जो आत्मिक रीति से अंधा है, इससे भी बदतर है। वह ऐसे परमेश्वर को नहीं जानता जो भला और प्रेमी है। वह नहीं जानता कि वह एक पापी है और उसे उद्धारकर्ता की आवश्कयता है। चूँकि सभी मनुष्य पापी जन्में है, हम यह कह सकते हैं कि सभी लोग आत्मिक अंधे हैं, जब तक परमेश्वर उनकी आँखों को न खोले। केवल यीशु मसीह ही उन लोगों को दृष्टि दे सकता है जो आत्मिक अंधकार में हैं। जब शिष्यों ने इस अंधे व्यक्ति को देखा तो उन्हें लगा था कि उसका अंधापन उसके या उसके माता-पिता के पाप के कारण था। एक सामान्य मान्यता है कि सभी बीमारियों का कारण पाप होता है। जब अय्यूब क्लेश सह रहा था, तो उसके मित्रों ने ऐसा ही सोचा था। यह सच है कि मृत्यु और बीमारियाँ संसार में पाप के कारण ही आई, परंतु हमें यह नहीं सोचना चाहिये कि सभी कष्ट पापों के कारण आते हैं। प्रभु ने कहा कि वह इसलिये अंधा पैदा हुआ था कि परमेश्वर के कार्य उसके द्वारा प्रगट हों। दुख उठानेवालों को शांति देना परमेश्वर का काम है। हम हमारे इर्द-गिर्द जो दुख और क्लेश देखते हैं, वे परमेश्वर का कार्य करने के लिये हमारे लिये अवसर होते हैं। हमें यह बात याद रखना चाहिये और समय बर्बाद किये बिना दूसरों की मदद करना चाहिये, और ऐसा करने के लिये नैतिक कारण ढूँढना चाहिये। यीशु ने भूमि पर थूका, उससे मिट्टी गीली किया और उसे अंधे व्यक्ति की आँखों पर लगाया। उसने उसे जाकर शीलोह के कुण्ड में धोने को कहा। अन्य समयों पर भी यीशु ने चंगाई के लिये थूक का उपयोग किया (मरकुस 7:33, 8:23)। प्रभु ने कुछ लोगों को उसके वचन से और कुछ को उसके स्पर्श से चंगा किया। हम नहीं जानते कि उसने स्पर्श से चंगा किया। हम नहीं जानते कि उसने यहाँ इस विशेष तरीके का उपयोग क्यों किया। स्पर्श और अभिषेक मनुष्य के विश्वास को बढ़ाने के लिये रहे होंगे। हमारा प्रभु कम विश्वासवालों को भी इन्कार नहीं करता (यशायाह 42:3; मत्ती 14:32)। यीशु की आज्ञा के पालन में, अंधा व्यक्ति शीलोह के कुण्ड में गया और दृष्टि पाकर लौटा। उसने आज्ञापालन इसलिये किया क्योंकि वह परमेश्वर के वचन पर विश्वास करता था। आपको नामान की कहानी याद होगी। जब एलिशा ने उसे यरदन नदी में डुबकी लगाने को कहा था तो उसने तुरंत विश्वास नहीं किया। उनके आपस में बहुत मतभेद हुआ। फरीसियों ने उसके माता-पिता से ऐसे प्रश्न किये जैसे न्यायालय में किये जाते हैं। जब वह अंधा था, किसी ने उसकी चिंता नहीं किया था। जब उसकी आखें खुलीं तभी उन्होंने उस पर ध्यान दिया। इन दिनों में भी लोग ऐसा ही करते हैं। जब कोई व्यक्ति जो बहुत बुरा जीवन जी रहा था, परिवर्तित हो जाता है, तब दूसरे उसमें रूचि लेने लगते हैं और उसे सताने की कोशिश करते हैं। यद्यपि वह अनपढ़ और अंधा था, इस व्यक्ति ने फरीसियों को बुद्धिमानी से जवाब दिया। जब वे उससे वाद-विवाद करने की कोशिश कर रहे थे, तो उसने कहा, मैं एक ही बात जानता हूँ, मैं अंधा था, परंतु अब मैं देखता हूँ।’’ हो सकता है आप दूसरों के साथ आपके उद्धार के विषय वाद-विवाद न कर सकते हों या उनके सभी प्रश्नों का उत्तर न दे सकते हों, परंतु आप यह कह सकते हैं : ‘‘मैं एक पापी था, परंतु अब मैं जानता हूँ कि मेरे पाप क्षमा किये जा चुके हैं।’’ जब हम अपना खुद का अनुभव बताते हैं तब कोई भी उससे इन्कार नहीं कर सकता। यहूदियों ने उसे आराधनालय से निकाल दिया (पद 34)। जब यीशु ने यह सुना तो वह उसके पास आया। जब संसार हमें छोड़ देता है, तब प्रभु हमारे साथ रहेगा। सबसे पहले तो उस मनुष्य ने सोचा कि यीशु एक भविष्यद्वक्ता है (पद 17)। अब यीशु ने उसे बताया कि वह परमेश्वर का पुत्र है। तुरंत ही उसने विश्वास किया और उसको दंडवत किया (पद 38)। पहले उसने दृष्टि पाया, फिर उसकी आत्मिक आखें खुल गइंर्। जो लोग प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं और आत्मिक दृष्टि पाते हैं, उन्हें चाहिये कि वे उसकी आरा धना करें। इसलिये परमेश्वर की संतानें प्रभु को याद करने के लिये सप्ताह के पहले दिन इकट्ठे होते हैं। नोट : शीलोह (इब्री शीलोह) - भेजा। किदोन की घाटी में यरूशलेम के पूर्वी फाटकों के बाहर एक झरना था जिसका नाम गिहोन था (नहेम्याह 3:15)। इसी झरने से यरूशलेम तक पानी ले जाया जाता था। हिजकिय्याह राजा ने गिहोन से शीलोह के कुंड तक पानी पहुँचाने के लिये ओपेल पहाड़ी से होकर 1700 फीट लंबी नहर बनाया था (2 इतिहास 32:30; 2 राजा 20:20)। पानी का बहाव कम था (यशायाह 8:6)। यह नहेम्याह का ‘‘राजा का कुण्ड’’ था (2:14)। फरीसी - अलग किया हुआ फरीसी लोग व्यवस्था के शब्दों को ज्यादा महत्व देते थे, बजाय उसके मतलब को

बाइबल अध्यन

यूहन्ना अध्याय 9 फिर जाते हुए उस ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म का अन्धा था। 2 और उसके चेलों ने उस से पूछा, हे रब्बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने? 3 यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया था, न इस के माता पिता ने: परन्तु यह इसलिये हुआ, कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों। 4 जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है: वह रात आनेवाली है जिस में कोई काम नहीं कर सकता। 5 जब तक मैं जगत में हूं, तब तक जगत की ज्योति हूं। 6 यह कहकर उस ने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्धे की आंखों पर लगाकर। 7 उस से कहा; जा शीलोह के कुण्ड में धो ले, (जिस का अर्थ भेजा हुआ है) सो उस ने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया। 8 तब पड़ोसी और जिन्हों ने पहले उसे भीख मांगते देखा था, कहने लगे; क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख मांगा करता था? 9 कितनों ने कहा, यह वही है: औरों ने कहा, नहीं; परन्तु उसके समान है: उस ने कहा, मैं वही हूं। 10 तब वे उस से पूछने लगे, तेरी आंखें क्योंकर खुल गईं? 11 उस ने उत्तर दिया, कि यीशु नाम एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आंखों पर लगाकर मुझ से कहा, कि शीलोह में जाकर धो ले; सो मैं गया, और धोकर देखने लगा। 12 उन्होंने उस से पूछा; वह कहां है? उस ने कहा; मैं नहीं जानता॥ 13 लोग उसे जो पहिले अन्धा था फरीसियों के पास ले गए। 14 जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उस की आंखे खोलीं थी वह सब्त का दिन था। 15 फिर फरीसियों ने भी उस से पूछा; तेरी आंखें किस रीति से खुल गईं? उस न उन से कहा; उस ने मेरी आंखो पर मिट्टी लगाई, फिर मैं ने धो लिया, और अब देखता हूं। 16 इस पर कई फरीसी कहने लगे; यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता। औरों ने कहा, पापी मनुष्य क्योंकर ऐसे चिन्ह दिखा सकता है? सो उन में फूट पड़ी। 17 उन्होंने उस अन्धे से फिर कहा, उस ने जो तेरी आंखे खोलीं, तू उसके विषय में क्या कहता है? उस ने कहा, यह भविष्यद्वक्ता है। 18 परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अन्धा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिस की आंखे खुल गईं थी, बुलाकर। 19 उन से न पूछा, कि क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अन्धा जन्मा था? फिर अब क्योंकर देखता है? 20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया; हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अन्धा जन्मा था। 21 परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब क्योंकर देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उस की आंखे खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा। 22 ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिये कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योंकि यहूदी एका कर चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए। 23 इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, कि वह सयाना है; उसी से पूछ लो। 24 तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अन्धा था दूसरी बार बुलाकर उस से कहा, परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है। 25 उस ने उत्तर दिया: मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं: मैं एक बात जानता हूं कि मैं अन्धा था और अब देखता हूं। 26 उन्होंने उस से फिर कहा, कि उस ने तेरे साथ क्या किया? और किस तेरह तेरी आंखें खोलीं? 27 उस ने उन से कहा; मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने ना सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो? 28 तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहां का है। 30 उस ने उन को उत्तर दिया; यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहां का है तौभी उस ने मेरी आंखें खोल दीं। 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उस की सुनता है। 32 जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अन्धे की आंखे खोली हों। 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता। 34 उन्होंने उस को उत्तर दिया, कि तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है? और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया॥ 35 यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उसे भेंट हुई तो कहा, कि क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है? 36 उस ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु; वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूं? 37 यीशु ने उस से कहा, तू ने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है। 38 उस ने कहा, हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं: और उसे दंडवत किया। 39 तब यीशु ने कहा, मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूं, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएं। 40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुन कर उस से कहा, क्या हम भी अन्धे हैं? 41 यीशु ने उन से कहा, यदि तुम अन्धे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिये तुम्हारा पाप बना रहता है॥

संगीत

हम है लाचार और गिरे हुए, जग में निर्बल और दबे हुए तुम हो शक्तिमान प्रभु, हम चरण तुम्हारे आए है।

मेरी आँखें खोलो यीशु मसीह मैं भटक रहा अन्धियारे में,
ज्योति दिलाओ प्यारे प्रभुजी ले आओ उजियारे में।