पाठ 20 : एस्तेर रानी
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सारांश
पाठ 18 के अंत में हमने देखा कि बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम पर चढ़ाई की और मंदिर को नष्ट कर दिया। उस समय उसने हजारों यहूदियों को बंदी बनाकर बेबीलोन ले गया। जब नबूकदनेस्सर का नाती बेलशस्सर मारा गया तब दारा मादी ने राज्य ले लिया। बाद में उस पर फारसी राजाओं ने राज्य किया जिनमें क्षयर्ष एक था। उसने 127 प्रांतों में राज्य किया जो भारत से इथिओपिया तक था और यहूदी इन सभी देशों में बिखरे हुए थे। उसके राज्य के तीसरे वर्ष में, अपनी महिमा और प्रभुत्व के प्रदर्शन के लिये क्षयर्ष ने शूशन के कुलीनों और अधिकारियों को भोज दिया जो सात दिन तक चला। भोज के अंतिम दिन राजा ने अपनी रानी वशती को बुलावा भेजा कि वह उसकी सुंदरता हाकिमों (राजकुमारों) और लोगों को दिखाए। चूंकि एक कुलीन स्त्री को सार्वजनिक रूप से अपना प्रदर्शन करना शोभा नहीं देता था, वशती ने आने से इन्कार कर दिया। क्षयर्ष राजा दाखमधु के कारण उत्तेजित था, वह क्रोधित हो गया। शराब व्यक्ति के भली समझ को भी नष्ट कर देती है, और इस प्रकार का सेवन संसार में कई दुर्घटनाएं और गुनाह करवाता है। गुस्से में आकर राजा ने वशती को रानी के पद से हटा दिया क्योंकि उसने उसकी आज्ञा का उलंघन किया था। उन दिनों में आज के हमारे न्यायालयों जैसे न्यायालय नहीं थे। शासक वही करते थे जैसा वे चाहते थे। करीब चार वर्ष के बाद राजा ने नई रानी खोजना शुरू किया। सभी लड़कियों में से जो राजा के सामने प्रस्तुत की गई थीं, राजा ने एस्तेर को चुना, वह लड़की जो एक यहूदी परिवार से थी। एस्तेर बहुत सुंदर थी और उसका चरित्र भी इतना अच्छा था कि उसने उसका हृदय जीत लिया । उसका पहला नाम हदस्सा था। वह मोर्दकै की चचेरी बहन थी जो राजमहल में एक अधिकारी था। जब एस्तेर के माता-पिता मर गये थे तब मौर्दकै ने उसे अपनी बेटी मान लिया था राजा के अधिकारियों में एक दुष्ट व्यक्ति था जिसका नाम हामान था। दुष्ट लोग, चालबाजी या घूस देकर, संसार में उच्च स्थान पा लेते हैं। हामान को पदोन्नति और सम्मान मिला था। वह चाहता था कि हर कोई उसके सामने झुके, परंतु यहूदी मौर्दकै जो जीवते परमेश्वर की सेवा करता था,हामान के सामने नहीं झुका। इस बात से हामान बहुत क्रोधित हुआ। उसने योजना बनाया न केवल मौर्दकै को परंतु राज्य के सभी यहूदियों को मृत्युदंड देने के लिये। हामान जो अंधविश्वासी था, इस षडयंत्र को अंजाम देने के लिये सर्वोत्तम दिन खोजने के लिये ‘चिट्ठी’ डलवाया। फिर वह एक कहानी बनाकर राजा के पास गया कि कुछ लोग जो उसके पूरे राज्य में फैले हैं दूसरों से भिन्न हैं, और केवल अपने ही नियमों को मानते हैं। उसने उन लोगों के नाम नहीं बताए और न ही राजा समझ पाया कि वे एस्तेर उसकी रानी के लोग थे हामान ने राजा के खजाने में विशाल धन राशि भी देने की प्रतिज्ञा की इस शर्त पर कि राजा उसे यह आदेश लिखने दे कि इन लोगों को नाश कर दिया जाए। बिना कोई प्रश्न पूछे राजा ने अपनी अंगूठी और अनुमति हामान को दे दी कि वह जैसा चाहे वैसा करे। हामान ने तुरंत लेखकों को बुलाया कि वे उस आदेश को लिखे कि सभी यहूदी मार डाले जाएँ और उसने उन पत्रों को राजा की अंगूठी से मुहरबंद किया। यहाँ तक कि उसने फाँसी का एक फंदा भी बनवाया जिस पर वह मौर्दकै को लटकाना चाहता था जब मौर्दकै ने यह सुना तो उसने टाट ओढ़ा और जोर से रो पड़ा। वह अपने लोगों से बहुत प्रेम करता था। कुछ लोग जब उच्च पद पा लेते हैं तब वे अपने गरीब मित्रों और रिश्तेदारों को भूल जाते हैं, परंतु मौर्दकै ने अपने भाइयों को बचाने जो परमेश्वर के लोग थे, अपनी सारी शक्ति लगा दी। जब यहूदियों ने राजा का आदेश सुना तो उनमें मातम छा गया। उन्होंने उपवास और प्रार्थना की। एस्तेर ने सुनी कि मोर्दकै ने टाट ओढ़ा था। रानी बनने के बाद भी वह अपने चचेरे भाई के विषय पूछताछ करती रहती थी। फिर उसे उस बुराई के विषय मालूम हुआ जो उसके लोगों पर आने वाली थी। वह सोच सकती थी कि रानी होने के नाते वह सुरक्षित थी और उसे दूसरों के विषय चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, परंतु उसने ऐसा नहीं सोचीजैसा मूसा ने फिरौन के राजमहल में रहने की बजाय मिस्त्र में उसके भाइयों के साथ क्लेश उठाना उचित समझकर निर्णय लिया, वैसे ही एस्तेर ने भी उसके लोगों के दुख में भागी होना बेहतर समझा। वह और उसकी सहेलियों ने तीन दिनों तक उपवास की। मौर्दकै के समान उसने भी अपने उच्च पद का उपयोग उसके लोगों की भलाई के लिये किया । हमें भी अपने गुणों, अवसरों और प्रभावों का जो परमेश्वर हमें देता है, भलाई के लिये उपयोग करना चाहिये। उस समय एक नियम था कि कोई भी व्यक्ति जो बिना बुलाए राजा के सामने आ जाता था, उसे मार डाला जाता था, परंतु एस्तेर ने अपनी जान को खतरे में डालकर अपने लोगों के लिये याचना करने के लिए राजा की उपस्थिति में चली गई। राजा ने उसके साथ दयालुता का व्यवहार किया और उसकी प्रार्थना को सुना। उसने तुरंत ही यहूदियों की सुरक्षा के आदेश जारी किया। हामान जिसने उन्हें नाश करने की कोशिश कि थी उसे फाँसी के फंदे पर लटकाया गया जो उसने मौर्दकै के लिये तैयार किया था। यहूदा आज भी उनके देश के छुटकारे को मनाते हैं। यह पुरिम त्योहार कहलाता है। परमेश्वर निश्चित रूप से उसके दासों को प्रतिफल देता है जो भलाई करते और उसके नाम के लिये क्लेश उठाते हैं। दुष्टों को भी उनकी योग्य सजा मिलेगी । नोट : एस्तेर - तारा (फारसी) यद्यपि एस्तेर की पुस्तक में ‘‘परमेश्वर’’ शब्द नहीं दिखता, लेकिन परमेश्वर के लोगों के लिये उसकी सुरक्षा और देखभाल को शुरू से अंत तक देख सकते हैं। नये नियम में पुरिम त्योहार के विषय नहीं बताया गया है परंतु यूहन्ना 5ः1 में चर्चित त्योहार यही हो सकता है
बाइबल अध्यन
एस्तेर अध्याय 1 क्षयर्ष नाम राजा के दिनों में ये बातें हुईं: यह वही क्षयर्ष है, जो एक सौ सताईस प्रान्तों पर, अर्थात हिन्दुस्तान से ले कर कूश देश तक राज्य करता था। 2 उन्हीं दिनों में जब क्षयर्ष राजा अपनी उस राजगद्दी पर विराजमान था जो शूशन नाम राजगढ़ में थी। 3 वहां उसने अपने राज्य के तीसरे वर्ष में अपने सब हाकिमों और कर्मचारियों की जेवनार की। फ़ारस और मादै के सेनापति और प्रान्त- प्रान्त के प्रधान और हाकिम उसके सम्मुख आ गए। 4 और वह उन्हें बहुत दिन वरन एक सौ अस्सी दिन तक अपने राजविभव का धन और अपने माहात्म्य के अनमोल पदार्थ दिखाता रहा। 5 इतने दिनों के बीतने पर राजा ने क्या छोटे क्या बड़े उन सभों की भी जो शूशन नाम राजगढ़ में इकट्ठे हुए थे, राजभवन की बारी के आंगन में सात दिन तक जेवनार की। 6 वहां के पर्दे श्वेत और नीले सूत के थे, और सन और बैंजनी रंग की डोरियों से चान्दी के छल्लों में, संगमर्मर के खम्भों से लगे हुए थे; और वहां की चौकियां सोने-चान्दी की थीं; और लाल और श्वेत और पीले और काले संगमर्मर के बने हुए फ़र्श पर धरी हुई थीं। 7 उस जेवनार में राजा के योग्य दाखमधु भिन्न भिन्न रूप के सोने के पात्रें में डाल कर राजा की उदारता से बहुतायत के साथ पिलाया जाता था। 8 पीना तो नियम के अनुसार होता था, किसी को बरबस नहीं पिलाया जाता था; क्योंकि राजा ने तो अपने भवन के सब भणडारियों को आज्ञा दी थी, कि जो पाहुन जैसा चाहे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना। 9 रानी वशती ने भी राजा क्षयर्ष के भवन में स्त्रियों की जेवनार की। 10 सातवें दिन, जब राजा का मन दाखमधु में मग्न था, तब उसने महूमान, बिजता, हर्बोना, बिगता, अबगता, जेतेर और कर्कस नाम सातों खोजों को जो क्षयर्ष राजा के सम्मुख सेवा टहल किया करते थे, आाज्ञा दी, 11 कि रानी वशती को राजमुकुट धारण किए हुए राजा के सम्मुख ले आओ; जिस से कि देश देश के लोगों और हाकिमों पर उसकी सुन्दरता प्रगट हो जाए; क्योंकि वह देखने में सुन्दर थी। 12 खोजों के द्वारा राजा की यह आज्ञा पाकर रानी वशती ने आने से इनकार किया। इस पर राजा बड़े क्रोध से जलने लगा। 13 तब राजा ने समय समय का भेद जानने वाले पणिडतों से पुछा (राजा तो नीति और न्याय के सब ज्ञानियों से ऐसा ही किया करता था। 14 और उसके पास कर्शना, शेतार, अदमाता, तर्शीश, मेरेस, मर्सना, और ममूकान नाम फ़ारस, और मादै के सातों खोजे थे, जो राजा का दर्शन करते, और राज्य में मुख्य मुख्य पदों पर नियुक्त किए गए थे। ) 15 राजा ने पूछा कि रानी वशती ने राजा क्षयर्ष की खोजों द्वारा दिलाई हुई आज्ञा का उलंघन किया, तो नीति के अनुसार उसके साथ क्या किया जाए? 16 तब ममूकान ने राजा और हाकिमों की उपस्थिति में उत्तर दिया, रानी वशती ने जो अनुचित काम किया है, वह न केवल राजा से परन्तु सब हाकिमों से और उन सब देशों के लोगों से भी जो राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में रहते हैं। 17 क्योंकि रानी के इस काम की चर्चा सब स्त्रियों में होगी और जब यह कहा जाएगा, कि राजा क्षयर्ष ने रानी वशती को अपने साम्हने ले आने की आज्ञा दी परन्तु वह न आई, तब वे भी अपने अपने पति को तुच्छ जानने लगेंगी। 18 और आज के दिन फ़ारसी और मादी हाकिमों की स्त्रियां जिन्होंने रानी की यह बात सुनी है तो वे भी राजा के सब हाकिमों से ऐसा ही कहने लगेंगी; इस प्रकार बहुत ही घृणा और क्रोध उत्पन्न होगा। 19 यदि राजा को स्वीकार हो, तो यह आज्ञा निकाले, और फासिर्यों और मादियों के कानून में लिखी भी जाए, जिस से कभी बदल न सके, कि रानी वशती राजा क्षयर्ष के सम्मुख फिर कभी आने न पाए, और राजा पटरानी का पद किसी दूसरी को दे दे जो उस से अच्छी हो। 20 और जब राजा की यह आज्ञा उसके सारे राज्य में सुनाईं जाएगी, तब सब पत्नियां छोटे, बड़े, अपने अपने पति का आदरमान करती रहेंगी। 21 यह बात राजा और हाकिमों को पसन्द आई और राजा ने ममूकान की सम्मति मान ली और अपने राज्य में, 22 अर्थात प्रत्येक प्रान्त के अक्षरों में और प्रत्येक जाति की भाषा में चिट्ठियां भेजीं, कि सब पुरुष अपने अपने घर में अधिकार चलाएं, और अपनी जाति की भाषा बोला करें। अध्याय 2 इन बातों के बाद जब राजा क्षयर्ष की जलजलाहट ठंडी हो गई, तब उसने रानी वशती की, और जो काम उसने किया था, और जो उसके विषय में आज्ञा निकली थी उसकी भी सुधि ली। 2 तब राजा के सेवक जो उसके टहलुए थे, कहने लगे, राजा के लिये सुन्दर तथा युवती कुंवारियां ढूंढी जाएं। 3 और राजा ने अपने राज्य के सब प्रान्तों में लोगों को इसलिये नियुक्त किया कि वे सब सुन्दर युवती कुंवारियों को शूशन गढ़ के रनवास में इकट्ठा करें और स्त्रियों के रखवाले हेगे को जो राजा का खोजा था सौप दें; और शुद्ध करने के योग्य वस्तुएं उन्हें दी जाएं। 4 तब उन में से जो कुंवारी राजा की दृष्टि में उत्तम ठहरे, वह रानी वशती के स्थान पर पटरानी बनाई जाए। यह बात राजा को पसन्द आई और उसने ऐसा ही किया। 5 शूशन गढ़ में मोर्दकै नाम एक यहूदी रहता था, जो कीश नाम के एक बिन्यामीनी का परपोता, शिमी का पोता, और याईर का पुत्र था। 6 वह उन बन्धुओं के साथ यरूशलेम से बन्धुआई में गया था, जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर, यहूदा के राजा यकोन्याह के संग बन्धुआ कर के ले गया था। 7 उसने हदस्सा नाम अपनी चचेरी बहिन को, जो एस्तेर भी कहलाती थी, पाला-पोसा था; क्योंकि उसके माता-मिता कोई न थे, और वह लड़की सुन्दर और रूपवती थी, और जब उसके माता-पिता मर गए, तब मोर्दकै ने उसको अपनी बेटी कर के पाला। 8 जब राजा की आज्ञा और नियम सुनाए गए, और बहुत सी युवती स्त्रियां, शूशन गढ़ में हेगे के अधिकार में इकट्ठी की गई, तब एस्तेर भी राजभवन में स्त्रियों के रखवाले हेगे के अधिकार में सौंपी गई। 9 और वह युवती स्त्री उसकी दृष्टि में अच्छी लगी; और वह उस से प्रसन्न हुआ, तब उसने बिना विलम्ब उसे राजभवन में से शुद्ध करने की वस्तुएं, और उसका भोजन, और उसके लिये चुनी हुई सात सहेलियां भी दीं, और उसको और उसकी सहेलियों को रनवास में सब से अच्छा रहने का स्थान दिया। 10 एस्तेर ने न अपनी जाति बताई थी, न अपना कुल; क्योंकि मोर्दकै ने उसको आज्ञा दी थी, कि उसे न बताना। 11 मोर्दकै तो प्रतिदिन रनवास के आंगन के साम्हने टहलता था ताकि जाने की एस्तेर कैसी है और उसके साथ क्या होगा? 12 जब एक एक कन्या की बारी हुई, कि वह क्षयर्ष राजा के पास जाए, ( और यह उस समय हुउा जब उसके साथ स्त्रियों के लिये ठहराए हुए नियम के अनुसार बारह माह तक व्यवहार किया गया था; अर्थात उनके शुद्ध करने के दिन इस रीति से बीत गए, कि छ: माह तक गन्धरस का तेल लगाया जाता था, और छ: माह तक सुगन्धदव्य, और स्त्रियों के शुद्ध करने का और और सामान लगाया जाता था )। 13 इस प्रकार से वह कन्या जब राजा के पास जाती थी, तब जो कुछ वह चाहती कि रनवास से राजभवन में ले जाए, वह उसको दिया जाता था। 14 सांझ को तो वह जाती थी और बिहान को वह लौट कर रनवास के दूसरे घर में जा कर रखेलियों के रखवाले राजा के खोजे शाशगज के अधिकार में हो जाती थी, और राजा के पास फिर नहीं जाती थी। और यदि राजा उस से प्रसन्न हो जाता था, तब वह नाम ले कर बुलाई जाती थी। 15 जब मोर्दकै के चाचा अबीहैल की बेटी एस्तेर, जिस को मोर्दकै ने बेटी मान कर रखा था, उसकी बारी आई कि राजा के पास जाए, तब जो कुछ स्त्रियों के रखवाले राजा के खोजे हेगे ने उसके लिये ठहराया था, उस से अधिक उसने और कुछ न मांगा। और जितनों ने एस्तेर को देखा, वे सब उस से प्रसन्न हुए। 16 यों एस्तेर राजभवन में राजा क्षयर्ष के पास उसके राज्य के सातवें वर्ष के तेबेत नाम दसवें महीने में पहुंचाई गई। 17 और राजा ने एस्तेर को और सब स्त्रियों से अधिक प्यार किया, और और सब कुंवारियों से अधिक उसके अनुग्रह और कृपा की दृष्टि उसी पर हुई, इस कारण उसने उसके सिर पर राजमुकुट रखा और उसको वशती के स्थान पर रानी बनाया। 18 तब राजा ने अपने सब हाकिमों और कर्मचारियों की बड़ी जेवनार कर के, उसे एस्तेर की जेवनार कहा; और प्रान्तोंमें छुट्टी दिलाई, और अपनी उदारता के योग्य इनाम भी बांटे। 19 जब कुंवारियां दूसरी बार इकट्ठी की गई, तब मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा था। 20 और एस्तेर ने अपनी जाति और कुल का पता नहीं दिया था, क्योंकि मोर्दकै ने उसको ऐसी आज्ञा दी थी कि न बताए; और एस्तेर मोर्दकै की बात ऐसी मानती थी जैसे कि उसके यहां अपने पालन पोषण के समय मानती थी। 21 उन्हीं दिनों में जब मोर्दकै राजा के राजभवन के फाटक में बैठा करता था, तब राजा के खोजे जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिकतान और तेरेश नाम दो जनों ने राजा क्षयर्ष से रूठकर उस पर हाथ चलाने की युक्ति की। 22 यह बात मोर्दकै को मालूम हुई, और उसने एस्तेर रानी को यह बात बताई, और एस्तेर ने मोर्दकै का नाम ले कर राजा को चितौनी दी। 23 तब जांच पड़ताल होने पर यह बात सच निकली और वे दोनों वृक्ष पर लटका दिए गए, और यह वृत्तान्त राजा के साम्हने इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया। अध्याय 3 इन बातों के बाद राजा क्षयर्ष ने अगामी हम्मदाता के पुत्र हामान को उच्च पद दिया, और उसको महत्व देकर उसके लिये उसके साथी हाकिमों के सिंहासनों से ऊंचा सिंहासन ठहराया। 2 और राजा के सब कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, वे हामान के साम्हने झुककर दण्डवत किया करते थे क्योंकि राजा ने उसके विषय ऐसी ही आज्ञा दी थी; परन्तु मोर्दकै न तो झुकता था और न उसको दण्डवत करता था। 3 तब राजा के कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, उन्होंने मोर्दकै से पूछा, 4 तू राजा की आज्ञा क्यों उलंघन करता है? जब वे उस से प्रतिदिन ऐसा ही कहते रहे, और उसने उनकी एक न मानी, तब उन्होंने यह देखने की इच्छा से कि मोर्दकै की यह बात चलेगी कि नहीं, हामान को बता दिया; उसने तो उन को बता दिया था कि मैं यहूदी हूँ। 5 जब हामान ने देखा, कि मोर्दकै नहीं झुकता, और न मुझ को दण्डवत करता है, तब हामान बहुत ही क्रोधित हुआ। 6 उसने केवल मोर्दकै पर हाथ चलाना अपनी मर्यादा के नीचे जाना। क्योंकि उन्होंने हामान को यह बता दिया था, कि मोर्दकै किस जाति का है, इसलिये हामान ने क्षयर्ष के साम्राज्य में रहने वाले सारे यहूदियों को भी मोर्दकै की जाति जानकर, विनाश कर डालने की युक्ति निकाली। 7 राजा क्षयर्ष के बारहवें वर्ष के नीसान नाम पहिले महीने में, हामान ने अदार नाम बारहवें महीने तक के एक एक दिन और एक एक महीने के लिये “पूर” अर्थात चिट्ठी अपने साम्हने डलवाई। 8 और हामान ने राजा क्षयर्ष से कहा, तेरे राज्य के सब प्रान्तों में रहने वाले देश देश के लोगों के मध्य में तितर बितर और छिटकी हुई एक जाति है, जिसके नियम और सब लोगों के नियमों से भिन्न हैं; और वे राजा के कानून पर नहीं चलते, इसलिये उन्हें रहने देना राजा को लाभदायक नहीं है। 9 यदि राजा को स्वीकार हो तो उन्हें नष्ट करने की आज्ञा लिखी जाए, और मैं राज के भणडारियों के हाथ में राजभणडार में पहुंचाने के लिये, दस हजार किक्कार चान्दी दूंगा। 10 तब राजा ने अपनी अंगूठी अपने हाथ से उतार कर अगागी हम्मदाता के पुत्र हामान को, जो यहूदियों का वैरी था दे दी। 11 और राजा ने हामान से कहा, वह चान्दी तुझे दी गई है, और वे लोग भी, ताकि तू उन से जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही व्यवहार करे। 12 यों उसी पहिले महीने के तेरहवें दिन को राजा के लेखक बुलाए गए, और हामान की आज्ञा के अनुसार राजा के सब अधिपतियों, और सब प्रान्तों के प्रधानों, और देश देश के लोगों के हाकिमों के लिये चिट्ठियां, एक एक प्रान्त के अक्षरों में, और एक एक देश के लोगों की भाषा में राजा क्षयर्ष के नाम से लिखी गई; और उन में राजा की अंगूठी की छाप लगाई गई। 13 और राज्य के सब प्रान्तों में इस आशय की चिट्ठियां हर डाकियों के द्वारा भेजी गई कि एक ही दिन में, अर्थात अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या बालक, सब यहूदी विध्वंसघात और नाश किए जाएं; और उनकी धन सम्मत्ति लूट ली जाए। 14 उस आज्ञा के लेख की नकलें सब प्रान्तों में खुली हुई भेजी गई कि सब देशों के लोग उस दिन के लिये तैयार हो जाएं। 15 यह आज्ञा शूशन गढ़ में दी गई, और डाकिए राजा की आज्ञा से तुरन्त निकल गए। और राजा और हामान तो जेवनार में बैठ गए; परन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गई। एस्तेर 4:14 14 क्योंकि जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो और किसी न किसी उपाय से यहूदियों का छुटकारा और उद्धार हो जाएगा, परन्तु तू अपने पिता के घराने समेत नाश होगी। फिर क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिये राजपद मिल गया हो? यूहन्ना 5:1 इन बातों के पीछे यहूदियों का एक पर्व हुआ और यीशु यरूशलेम को गया॥
संगीत
जाना है तुझको मसीही जवान,
पुकारे तुझे आज सारा जहान,
तू मत सोच तेरा ठिकाना कहाँ,
सूली के साये तले। -2
बढ़ा चल, बढ़ा चल, मसीही जवान सूली के साये तले, सूली के साये तले।