पाठ 18 : सुलैमान का मंदिर

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सारांश

परमेश्वर का दास दाऊद राजा परमेश्वर के लिए एक मंदिर बनाना चाहता था और इसलिये उसने इस कार्य के लिये बहुत सा सामान जमा किया (1 इतिहास 22:14)। परंतु परमेश्वर ने उससे कहा कि चूँकि उसने कई लड़ाईयाँ लड़ी है। और लहू बहाया है, वह परमेश्वर के नाम से मंदिर नहीं बनाएगा परंतु उसका बेटा बनाएगा। दाऊद की मृत्यु के बाद उसका बेटा सुलैमान इस्राएल का राजा बना। उसे कोई लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी। सभी ओर शांति थी। सुलैमान ने शांति के उन वर्षों का उपयोग प्रभु के लिये मंदिर बनाने के लिये किया । उस समय हीराम सोर का राजा था। लबानोन की पहाड़ियाँ जो केदार के लिये प्रसिद्ध थे, हीराम के सीमा में ही थी। सुलैमान को मंदिर बनाने के लिये केदार की लकड़ियों की जरूरत थी।क्योंकि सोर के लोग लकड़ी के व्यवसाय में लगे थे,उनके पास लकड़ी से संबंधित कुशल लोग थे। क्योंकि हीराम उसका मित्र था, सुलैमान ने मंदिर बनाने में उसकी मदद मांगी। हीराम ने सुलैमान को मंदिर बनाने के लिये लकड़ी दी, परंतु जिस तरह से उसने उत्तर दिया वह रोचक है। हीराम ने कहा, ‘‘आज यहोवा धन्य है जिसने दाऊद को उस बड़ी जाति पर राज्य करने के लिये एक बुद्धिमान पुत्र दिया है।’’ हीराम ने दाऊद और सुलैमान के साथ दोस्ती द्वारा जीवते परमेश्वर के विषय अवश्य सुना रहा होगा। लोगों के साथ आपकी दोस्ती उनके साथ सुसमाचार बाँटने में सहायक होनी चाहिये। इस कार्य में कई विदेशी श्रमिक सम्मिलित किये गये थे (1 राजा 9:20; 1 इतिहास 3:7-9) जब मंदिर बनाया जा रहा था, तब उस स्थान पर किसी हथौड़ी, छेनी या किसी लोहे की आवाज नहीं आ रही थी। केवल काटे गए चौकोन पत्थर ही उपयोग में लाए जा रहे थे। सुलैमान ने मंदिर बनाने का कार्य, इस्राएलियों के मिस्त्र से निकलने के 480 वर्ष बाद शुरू किया था। वह मोरिय्याह पर्वत पर बनाया गया था जो यबूसी ओनोन के खलिहान का स्थान था (2 इतिहास 3:1)। यह स्थान यरूशलेम का एक भाग था और यह वही स्थान था जहाँ सुलैमान के पिता दाऊद को परमेश्वर ने दर्शन दिया था। यह वही स्थान है जहाँ अब्राहम को उसके पुत्र इसहाक को बलि चढ़ाने को कहा गया था। हम यह नहीं कह सकते कि मंदिर बहुत बड़ी इमारत थी। उसकी लंबाई 60 हाथ और चौड़ाई 20 हाथ थी, परंतु वह बहुत सुंदर मंदिर था। मंदिर के दो मुख्य भाग पवित्र स्थान और सबसे अधिक अति पवित्र स्थान थे। उस कार्य को पूरा करने के लिये सात वर्ष लग गए। दीवारेंऔर फर्श सुन्दर लकड़ियों द्वारा ढाँके गये थे। कई भागों में सोना मढ़ा गया था। मंदिर वह स्थान है जहाँ परमेश्वर रहता है। चूँकि परमेश्वर विश्वासी के हृदय में रहता है, वह मनुष्य परमेश्वर का मंदिर है। हमारे सभी कमजोरियों और कुरूपताओं को उसकी पवित्रता से ढाँपने के बाद ही वह हमारे हृदयों में रहता है। यह मंदिर एक चर्च का ही प्रकार है। 1 कुरि 3:16 में हम पढ़ते हैं ‘‘तुम परमेश्वर के मंदिर हो।’’ हम परमेश्वर की संतानें उस इमारत के जीवित पत्थर हैं (1 पतरस 2:4-5)। ईसा पूर्व 587 वर्ष में, अर्थात सुलैमान द्वारा इस मंदिर को बनाए जाने के 400 वर्ष बाद, बेबीलोन के राजा नबुकदनेस्सर के अंगरक्षकों का प्रधान नबूजरदान ने इस मंदिर को पूरी तरह जला दिया (2 राजा 25:9)। उसने सोना, चांदी, और पीतल को बेबीलोन ले गया। परमेश्वर ने इस मंदिर को नष्ट करने दिया क्योंकि इस्त्राएल ने इसे पवित्र स्थान को अपवित्र कर दिया था। यदि आपका हृदय जो परमेश्वर का मंदिर है पाप के कारण गंदा किया जाए तो सजा मिलना निश्चित है। नोट : सुलैमान का मंदिर जिस स्थान पर है अब वह स्थान हरन-इ-शरीफ कहलाता है। अब यह मुसलमानों का पवित्र स्थान है। अब वहाँ पर डोम ऑफ रॉक नामक इमारत पाई जाती है

बाइबल अध्यन

1 राजा अध्याय 5 और सोर नगर के हीराम राजा ने अपने दूत सुलैमान के पास भेजे, क्योंकि उसने सुना था, कि वह अभिषिक्त हो कर अपने पिता के स्थान पर राजा हुआ है: और दाऊद के जीवन भर हीराम उसका मित्र बना रहा। 2 और सुलैमान ने हीराम के पास यों कहला भेजा, कि तुझे मालूम है, 3 कि मेरा पिता दाऊद अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन इसलिये न बनवा सका कि वह चारों ओर लड़ाइयों में तब तक बझा रहा, जब नक यहोवा ने उसके शत्रुओं को उसके पांव तल न कर दिया। 4 परन्तु अब मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझे चारों ओर से विश्राम दिया है और न तो कोई विरोधी है, और न कुछ विपत्ति देख पड़ती है। 5 मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाने को ठाना है अर्थात उस बात के अनुसार जो यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कही थी; कि तेरा पुत्र जिसे मैं तेरे स्थान में गद्दी पर बैठाऊंगा, वही मेरे नाम का भवन बनवाएगा। 6 इसलिये अब तू मेरे लिये लबानोन पर से देवदारु काटने की आज्ञा दे, और मेरे दास तेरे दासों के संग रहेंगे, और जो कुछ मज़दूरी तू ठहराए, वही मैं तुझे तेरे दासों के लिये दूंगा, तुझे मालूम तो है, कि सीदोनियों के बराबर लकड़ी काटने का भेद हम लोगों में से कोई भी नहीं जानता। 7 सुलैमान की ये बातें सुनकर, हीराम बहुत आनन्दित हुआ, और कहा, आज यहोवा धन्य है, जिसने दाऊद को उस बड़ी जाति पर राज्य करने के लिये एक बुद्धिमान पुत्र दिया है। 8 तब हीराम ने सुलैमान के पास यों कहला भेजा कि जो तू ने मेरे पास कहला भेजा है वह मेरी समझ में आ गया, देवदारू और सनोवर की लकड़ी के विषय जो कुछ तू चाहे, वही मैं करूंगा। 9 मेरे दास लकड़ी को लबानोन से समुद्र तक पहुंचाएंगे, फिर मैं उनके बेड़े बनवा कर, जो स्थान तू मेरे लिये ठहराए, वहीं पर समुद्र के मार्ग से उन को पहुंचवा दूंगा: वहां मैं उन को खोल कर डलवा दूंगा, और तू उन्हें ले लेना: और तू मेरे परिवार के लिये भोजन देकर, मेरी भी इच्छा पूरी करना। 10 इस प्रकार हीराम सुलैमान की इच्छा के अनुसार उसको देवदारू और सनोवर की लकड़ी देने लगा। 11 और सुलैमान ने हीराम के परिवार के खाने के लिये उसे बीस हज़ार कोर गेहूं और बीस कोर पेरा हुआ तेल दिया; इस प्रकार सुलैमान हीराम को प्रति वर्ष दिया करता था। 12 और यहोवा ने सुलैमान को अपने वचन के अनुसार बुद्धि दी, और हीराम और सुलैमान के बीच मेल बना रहा वरन उन दोनों ने आपस में वाचा भी बान्ध ली। 13 और राजा सुलैमान ने पूरे इस्राएल में से तीन हज़ार पुरुष बेगार लगाए, 14 और उन्हें लबानोन पहाड़ पर पारी पारी करके, महीने महीने दस हज़ार भेज दिया करता था और एक महीना तो वे लबानोन पर, और दो महीने घर पर रहा करते थे; और बेगारियों के ऊपर अदोनीराम ठहराया गया। 15 और सुलैमान के सत्तर हज़ार बोझ ढोने वाले और पहाड़ पर अस्सी हज़ार वृक्ष काटने वाले और पत्थर निकालने वाले थे। 16 इन को छोड़ सुलैमान के तीन हज़ार तीन सौ मुखिये थे, जो काम करने वालों के ऊपर थे। 17 फिर राजा की आज्ञा से बड़े बड़े अनमोल पत्थर इसलिये खोदकर निकाले गए कि भवन की नेव, गढ़े हुए पत्थरों से डाली जाए। 18 और सुलैमान के कारीगरों और हीराम के कारीगरों और गबालियों ने उन को गढ़ा, और भवन के बनाने के लिये लकड़ी और पत्थर तैयार किए। अध्याय 6 इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नाम दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। 2 और जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी। 3 और भवन के मन्दिर के साम्हने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के साम्हने थी, वह दस हाथ की थी। 4 फिर उसने भवन में स्थिर झिलमिलीदार खिड़कियां बनाईं। 5 और उसने भवन के आसपास की भीतों से सटे हुए अर्थात मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों भीतों के आसपास उसने मंजिलें और कोठरियां बनाईं। 6 सब से नीचे वाली मंजिल की चौड़ाई पांच हाथ, और बीच वाली की छ: हाथ, और ऊपर वाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उसने भवन के आसपास भीत को बाहर की ओर कुसींदार बनाया था इसलिये कि कडिय़ां भवन की भीतों को पकड़े हुए न हों। 7 और बनते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहां ले आने से पहिले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े वसूली वा और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाईं नहीं पड़ा। 8 बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी अलंग में था, और लोग चक्करदार सीढिय़ों पर हो कर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उन से ऊपर वाली कोठरियों पर जाया करते थे। 9 उसने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदारु की कडिय़ों और तख्तों से बनी थी। 10 और पूरे भवन से लगी हुई जो मंज़िलें उसने बनाईं वह पांच हाथ ऊंची थीं, और वे देवदारु की कड़ियों द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। 11 तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुंचा, कि यह भवन जो तू बना रहा है, 12 यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूंगा। 13 और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूंगा, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूंगा। 14 सो सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। 15 और उसने भवन की भीतों पर भीतरवार देवदारु की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक भीतों में भीतरवार लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उसने सनोवर के तख्तों से बनाया। 16 और भवन की पिछली अलंग में भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले भीतों के ऊपर तक देवदारु की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाईं। 17 उसके साम्हने का भवन अर्थात मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। 18 और भवन की भीतों पर भीतरवार देवदारु की लकड़ी की तख्ताबंदी थी, और उस में इत्द्रायन और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदारु ही था: पत्भर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। 19 भवन के भीतर उस ने एक दर्शन स्थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। 20 और उस दर्शन-स्थान की लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई बीस बीस हाथ की थी; और उसने उस पर चोखा सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदारु से की। 21 फिर सुलैमान ने भवन को भीतर भीतर चोखे सोने से मढ़वाया, और दर्शन-स्थान के साम्हने सोने की सांकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। 22 और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका पूरा काम निपटा दिया। और दर्शन-स्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। 23 दर्शन-स्थान में उसने दस दस हाथ ऊंचे जलपाई की लकड़ी के दो करूब बना रखे। 24 एक करूब का एक पंख पांच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पांच हाथ का था, एक पंख के सिरे से, दूसरे पंख के सिरे तक दस हाथ थे। 25 और दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। 26 एक करूब की ऊंचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। 27 और उसने करूबों को भीतर वाले स्थान में धरवा दिया; और करूबोंके पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक भीत से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी भीत से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे से लगे हुए थे। 28 और करूबों को उसने सोने से मढ़वाया। 29 और उसने भवन की भीतों में बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाए। 30 और भवन के भीतर और बाहर वाले फर्श उसने सोने से मढ़वाए। 31 और दर्शन-स्थान के द्वार पर उसने जलपाई की लकड़ी के किवाड़ लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की लंबाई भवन की चौड़ाई का पांचवां भाग थी। 32 दोनों किवाड़ जलपाई की लकड़ी के थे, और उसने उन में करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। 33 इसी की रीति उसने मन्दिर के द्वार के लिये भी जलपाई की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए और वह भवन की चौड़ाई की चौथाई थी। 34 दोनों किवाड़ सनोवर की लकड़ी के थे, जिन में से एक किवाड़ के दो पल्ले थे; और दूसरे किवाड़ के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। 35 और उन पर भी उसने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। 36 और उसने भीतर वाले आंगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और एक परत देवदारू की कडिय़ां लगा कर बनाया। 37 चौथे वर्ष के जीव नाम महीने में यहोवा के भवन की नेव डाली गई। 38 और ग्यारहवें वर्ष के बूल नाम आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उस में उचित समझा गया बन चुका: इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे। इफिसियों 2:22 22 जिस में तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवास स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो॥ 1 इतिहास 22:14 14 सुन, मैं ने अपने क्लेश के समय यहोवा के भवन के लिये एक लाख किक्कार सोना, और दस लाख किक्कार चान्दी, और पीतल और लोहा इतना इकट्ठा किया है, कि बहुतायत के कारण तौल से बाहर है; और लकड़ी और पत्थर मैं ने इकट्ठे किए हैं, और तू उन को बढ़ा सकेगा। 1 कुरिन्थियों 3:16 16 क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है? 2 राजा 25:9 9 और उसने यहोवा के भवन और राजभवन और यरूशलेम के सब घरों को अर्थात हर एक बड़े घर को आग लगा कर फूंक दिया।

संगीत

मूसा को तू ने पास बुलाया, स्वर्गलोक का भवन दिखाया, महापवित्र स्थान में रहकर, आप ही उसे संभाला।

मन मन्दिर में बसने वाला यीशु तू है निराला।