पाठ 9 : सोने का बछड़ा
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सारांश
जब कनान देश के मार्ग में इस्राएलियों ने सीनै पर्वत के नीचे छावनी डाली , तब थोड़ी परमेश्वर ने मूसा को पर्वत के ऊपर बुलाया । वहीं पर मूसा ने परमेश्वर के साथ चालिस दिन और चालिस रात बिताया । इस्राएली लोग मूसा के वापस नहीं लौटने का कारण नहीं समझ पा रहे थे । इससे वे बहुत ही चिंतित हो गये और मूसा के भाई हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे कि हमारे लिए एक देवता बना जो हमारी अगुवाई करे वास्तव में वे कितने मूर्ख थे ! हारून ने भी जो किया वह अजीब था , उसने मिस्र में परमेश्वर के कार्यों को देखा था और अच्छी तरह जानता भी था । उसे वहाँ कहना चाहिए था कि यहोवा को छोड़कर कोई भी परमेश्वर नहीं है, परन्तु इसके विपरीत हारून ने औरतों से कहा कि अपने-अपने सोने के गहने उतार कर मेरे पास ले आओ । उसने उन्हें लेकर और उसे ढालकर एक सोने का बछड़ा बनाया जैसा कि उन्होंने मिस्र देश में देखा था । तब लोग उसके चारो ओर इकट्ठे होकर नाचने और गाने लगे तथा यह प्रचार करने लगे , कि यह वही परमेश्वर है जिसने उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया है । इसके लिए उन्होंने एक वेदी बनाई और यह प्रचार किया कि कल इसके लिए पर्व होगा । जब यह घटना घट रही थी उस समय मूसा पर्वत के ऊपर था , तब परमेश्वर ने उससे कहा “नीचे उतर जा क्योंकि तेरी प्रजा के लोग बिगड़ गए हैं ।” परमेश्वर उन्हें नाश कर , उनके बदले मूसा को एक महान राष्ट्र बनाना चाह रहा था । परन्तु मूसा ने परमेश्वर को अब्राहम, इसहाक और याकूब को दिया गया वायदा स्मरण करा कर अपने लोगो के लिए क्षमा की विनती लगा । परमेश्वर ने मूसा की सुन ली और उनको नाश नही किया परन्तु उनको दण्ड दिया । आप जानते हैं, जब हम पाप करते हैं तो परमेश्वर इसे नज़र अंदाज नहीं कर सकते । पाप का दण्ड मिलता ही है । क्या आपको माता-पिता दण्डित नहीं करते जब आप उनकी आज्ञाओं को नहीं मानते हैं ? जब मूसा नीचे उतरा और देखा कि लोग क्या कर रहे हैं , तो वह बहुत क्रोधित हुआ । उसने पत्थर की तख्तियों को नीचे पटक कर तोड़ डाला और उसने सोने के बछड़े को लेकर जला डाला और उसे चूर-चूरकर उनके पीने के पानी में फेंकवा दिया । तब मूसा ने लोगों से कहा “जो कोई यहोवा की ओर है, वह मेरे पास आए” और लेवी गोत्र के सारे लोग उसके पास इकट्ठे हो गये । मूसा ने उनको तलवार दिया और उनको मूर्तिपूजकों के पास भेजा। उस दिन तीन हजार के लगभग इस्राएली मारे गये ।
बाइबल अध्यन
निर्गमन 32:1-28 1 जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे हो कर कहने लगे, अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 2 हारून ने उन से कहा, तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियां है उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ। 3 तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए। 4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टांकी से गढ़ा; तब वे कहने लगे, कि हे इस्त्राएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है। 5 यह देखके हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, कि कल यहोवा के लिये पर्ब्ब होगा। 6 और दूसरे दिन लोगों ने तड़के उठ कर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठ कर खेलने लगे॥ 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, सो बिगड़ गए हैं; 8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उन को दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, कि हे इस्त्राएलियों तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है। 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, मैं ने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं। 10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा। 11 तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? 12 मिस्री लोग यह क्यों कहने पाए, कि वह उन को बुरे अभिप्राय से, अर्थात पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपने भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुचाने से फिर जा। 13 अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपनी ही किरिया खाकर यह कहा था, कि मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें। 14 तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उस ने कहा था पछताया॥ 15 तब मूसा फिरकर साक्षी की दानों तख्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियों के तो इधर और उधर दोनों अलंगों पर कुछ लिखा हुआ था। 16 और वे तख्तियां परमेश्वर की बनाईं हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्वर का लिखा हुआ था॥ 17 जब यहोशू को लोगों के कोलाहल का शब्द सुनाईं पड़ा, तब उसने मूसा से कहा, छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाईं देता है। 18 उसने कहा, वह जो शब्द है वह न तो जीतने वालों का है, और न हारने वालों का, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है। 19 छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उसने तख्तियों को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला। 20 तब उसने उनके बनाए हुए बछड़े को ले कर आग में डालके फूंक दिया। और पीसकर चूर चूर कर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्त्राएलियों को उसे पिलवा दिया। 21 तब मूसा हारून से कहने लगा, उन लोगों ने तुझ से क्या किया कि तू ने उन को इतने बड़े पाप में फंसाया? 22 हारून ने उत्तर दिया, मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगों को जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं। 23 और उन्होंने मुझ से कहा, कि हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 24 तब मैं ने उन से कहा, जिस जिसके पास सोने के गहनें हों, वे उन को तोड़कर उतार लाएं; और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा 25 हारून ने उन लोगों को ऐसा निरंकुश कर दिया था कि वे अपने विरोधियों के बीच उपहास के योग्य हुए, 26 उन को निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े हो कर कहा, जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए; तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए। 27 उसने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि अपनी अपनी जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपने अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों घात करो। 28 मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियों ने किया और उस दिन तीन हजार के अटकल लोग मारे गए।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : मूसा पहाड़ के ऊपर परमेश्वर के साथ कितने दिन रहा ?
उ 1 : मूसा पहाड़ के ऊपर परमेश्वर के साथ चालीस दिन और चालीस रात रहा ।प्र 2 : इस्राएलियों का भयंकर पाप क्या था ?
उ 2 : इस्राएलियों का भयंकर पाप यह था कि हारून ने स्त्रीयों से उनके सोने के आभूषण लिए और उसे पिघलाकर एक बछड़ा बनाया । लोग उनके चारों ओर एकत्र होकर नाचने -गाने लगे ,और यह घोषणा की ,कि यही वह ईश्वर है जो उन्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है । उन्होंने उसके लिए वेदी बनाई और अगले दिन पर्व की घोषणा कर दी।प्र 3 : उन्होंने कौन सी आज्ञा का उल्लंघन किया ?
उ 3 : उन्होंने दस आज्ञाओं की पहली और दूसरी आज्ञा का उल्लंघन किया जो था , (1) तू मुझे छोड़ दूसरों को इश्वर करके ना मानना। (2) तू अपने लिए कोई मूर्ति खोदकर ना बनाना , ना उसको दण्डवत करना और ना उसकी उपासना करना ।प्र 4 : परमेश्वर ने उन्हें उनके पापों का दण्ड कैसे दिया ?
उ 4 :मूसा ने बछड़े को लेकर आग मे डालकर फूँक दिया और पीसकर चूर-चूर कर डाला और पानी में डालकर उन्हें पिलवा दिया । फिर मूसा ने लेवी गोत्र के लोगों को तलवार देकर उन मूर्तिपूजकों को मार डालने के लिये भेज दिया । उस दिन तीन हज़ार लोग मारे गए ।प्र 5 : परमेश्वर ने पूरी जाती को नष्ट क्यों नहीं किया ?
उ 5 : परमेश्वर ने पूरी जाती को नष्ट इसलिए नहीं किया क्योंकि मूसा ने इस्राएलियों के लिए दोहाई दी थी।
संगीत
एक ही दरवाजा है उसकी तरफ दो,
अंदर तरफ बाहर तरफ
तुम किस तरफ हो ?
एक ही दरवाजा है उसकी तरफ दो,
मैं अंदर तरफ हूँ तुम किस तरफ हो?
2 एक ही मार्ग है उसके रास्ते दो सच्चाई का बुराई का तुम किस मार्ग पर हो ? एक ही मार्ग है उसके रास्ते दो मैं सच्चाई के मार्ग पर हूँ तुम किस मार्ग पर हो?