पाठ 20 : हामान
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सारांश
उसके देश में कई सारे राष्ट्रों के बन्दी निवास करते थे । उनमें एस्तेर नाम एक जवान यहूदी लड़की भी थी । एस्तेर अनाथ थी, इस कारण वह अपने चाचा मोर्दकै के साथ रहती थी । एस्तेर भी उन लड़कियों में थी, जिन्हें राजभवन में लाया गया था, ताकि राजा उनमें से एक को अपनी पत्नी के रूप में चुनाव करे । जब राजा ने एस्तेर को देखा, तो उसने अन्य सभी लड़कियों से सर्वाधिक उसे ही पसंद किया । इसलिए उसने उसे अपनी पटरानी बनाया । मोर्दकै तो राजभवन के फाटक के पास बैठा करता था, ताकि वह जान सके कि उसकी भतीजी, राजभवन में कैसी है । एक दिन मोर्दकै ने छिपकर दो जनों को राजा को मार डालने की गुप्त योजना बनाते हुए सुना । तब शीघ्र ही उसने इस बात की सूचना एस्तेर को दे दी, और उसने उसका नाम लेकर राजा को उस गुप्त योजना के संबंध में बता दिया, जिसका पता मोर्दकै ने लगाया था । वे दोनों पकड़े गये और उन्हें मृत्यु-दण्ड दिया गया, तथा इस वृतांत को पूर्ण विवरण सहित इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया । हम्मदाता का पुत्र हामान राजा का सबसे प्रिय एवं मुख्य सलाहकार था । इसलिए राजा ने घोषणा की थी, कि हर कोई हामान के साम्हने झुककर दण्डवत करेगा । यहूदी मोर्दकै को छोड़कर बाकी सभी लोग ऐसा ही करने लगे । इससे हामान बहुत क्रोधित हुआ और उसने एक यहूदी व्यक्ति पर हाथ चलाना छोटी बात जानकर, उसके बदले सम्पूर्ण यहूदी जाति को ही नाश करने का निर्णय लिया । वह राजा के पास एक चतुर योजना के साथ गया । उसने कहा कि तेरे राज्य के सब प्रान्तों में रहनेवाले देश-देश के लोगों के मध्य एक येसी जाति है जो तेरे नियमों पर नहीं चलती परन्तु वे अपने ही नियमों पर चलते हैं । इसलिए उन्हे रहने देना लाभदायक नहीं है । अतः कृपा कर मुझे उन्हें नाश करने की अनुमति दे, और मैं राजभण्डार में पहुँचाने के लिए दस हजार किक्कार चाँदी दूंगा । तब राजा ने अपनी अँगूठी अपने हाथ से उतारकर हामान को दिया और उससे कहा, कि जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही कर । तब हामान ने चिट्ठी लिखवाकर घोषणा कराया, कि बारहवें महीने के तेरहवें दिन सभी यहूदी नाश किए जाऐं और उस पर राजा की अँगूठी की छाप लगाकर, राजा के अधीन सभी एक सौ सताइस प्रान्तों में पढ़ा गया । यह खबर सुनकर मोर्दकै विलाप करने लगा । उसने अपने वस्त्र फाड़ डाले और सिर पर राख डालकर गलियों में रोने-चिल्लाने लगा । एस्तेर और उसकी सहेलियों ने तीन दिन तक उपवास और प्रार्थना किया । तत्पश्चात वह तैयार होकर राजभवन के आँगन में गई । राजा ने उसे खड़ा देखकर, उसकी ओर सोने का राजदण्ड बढ़ाया और उससे पूछा, कि वह क्या चाहती है ? उसने राजा एवं हामान को अपने घर जेवनार में आने का निमंत्रण दिया । हामान बहुत आनन्दित और गर्वित हुआ, कि रानी ने उसे आमंत्रित किया है और वह बड़ी प्रसन्नता के साथ रानी के महल में गया । फिर जेवनार में राजा ने एस्तेर से पूछा, कि वह क्या चाहती है, पर उसने केवल यह ही कहा, कि कल फिर राजा और हामान उसकी जेवनार में आएँ । हामान इससे और भी गर्वित हुआ, परन्तु जैसे ही वह बाहर निकला उसने मोर्दकै को राजभवन के फाटक के पास बैठे देखा, तो वह फिर क्रोध से भर गया । उसकी पत्नी एवं उसके मित्रों ने उसे फाँसी का खम्भा बनवाकर, उसपर राजा की आज्ञा से मोर्दकै को लटकाने की सलाह दी । हामान को यह सलाह पसंद आयी और उसने अपने लोगों को शीघ्र ही फाँसी का एक खम्भा बनाने का आदेश दिया । उस रात राजा को नींद नहीं आई, इसलिए उसने इतिहास की पुस्तक मँगवाकर उसे पढ़ने के लिए कहा । जैसे ही उसने सुना, कि मोर्दकै ने उसके प्राण को बचाया था, पर उसे इस कार्य के लिए पुरस्कृत नहीं किया गया था । तो उसने इस विषय में कुछ करने का निर्णय लिया। जब हामान दूसरे दिन उसके पास आया, तो उसने पूछा कि किसी मनुष्य की प्रतिष्ठा करने के लिए क्या करना चाहिए । हामान ने सोचा कि राजा मुझे ही प्रतिष्ठित करने के लिए सोच रहा है, इसलिए उसने कहा कि उस मनुष्य को राजभवन में लाया जाए, उसे राजकीय वस्त्र पहनाया जाए, उसके सिर पर राजकीय मुकुट धरा जाए और उसे राजा के घोड़े पर सवार कर, किसी बड़े हाकिम के साथ नगर में फिराते हुए, उसके आगे-आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा । तब राजा ने हामान से कहा ‘जा और मोर्दकै के लिए सब कुछ वैसा ही कर जो मेरे राजभवन के फाटक के पास बैठा करता है । हामान ने वैसा ही किया जैसा कि उसने कहा था और वह इससे काफी शोकित और क्रोधित हुआ । जब वह घर पहुँचा, तो उसे रानी महल में जाने का दूसरा निमंत्रण प्राप्त हुआ । रात्रिभोज के पश्चात रानी ने अपना निवेदन राजा को सुनाया । उसने अपने एवं अपने लोगों को जीवन का दान देने के लिए कहा, क्योंकि उन्हें नाश करने की आज्ञा निकल चुकी थी । तब राजा ने उससे पूछा, कि किसने ऐसा करने की मनसा की है, और उसने उत्तर दिया, जिसने ऐसा आदेश जारी किया वह हामान है । राजा बहुत क्रोधित हो गया और हामान को बुलावाया । एक सेवक ने राजा से कहा, कि एक फाँसी का खम्भा हामान द्वारा मोर्दकै को मार डालने के लिए बनवाया गया है, तब राजा ने कहा “उस पर हामान को लटका दो।”
बाइबल अध्यन
एस्तेर अध्याय 3 1 इन बातों के बाद राजा क्षयर्ष ने अगामी हम्मदाता के पुत्र हामान को उच्च पद दिया, और उसको महत्व देकर उसके लिये उसके साथी हाकिमों के सिंहासनों से ऊंचा सिंहासन ठहराया। 2 और राजा के सब कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, वे हामान के साम्हने झुककर दण्डवत किया करते थे क्योंकि राजा ने उसके विषय ऐसी ही आज्ञा दी थी; परन्तु मोर्दकै न तो झुकता था और न उसको दण्डवत करता था। 3 तब राजा के कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, उन्होंने मोर्दकै से पूछा, 4 तू राजा की आज्ञा क्यों उलंघन करता है? जब वे उस से प्रतिदिन ऐसा ही कहते रहे, और उसने उनकी एक न मानी, तब उन्होंने यह देखने की इच्छा से कि मोर्दकै की यह बात चलेगी कि नहीं, हामान को बता दिया; उसने तो उन को बता दिया था कि मैं यहूदी हूँ। 5 जब हामान ने देखा, कि मोर्दकै नहीं झुकता, और न मुझ को दण्डवत करता है, तब हामान बहुत ही क्रोधित हुआ। 6 उसने केवल मोर्दकै पर हाथ चलाना अपनी मर्यादा के नीचे जाना। क्योंकि उन्होंने हामान को यह बता दिया था, कि मोर्दकै किस जाति का है, इसलिये हामान ने क्षयर्ष के साम्राज्य में रहने वाले सारे यहूदियों को भी मोर्दकै की जाति जानकर, विनाश कर डालने की युक्ति निकाली। 7 राजा क्षयर्ष के बारहवें वर्ष के नीसान नाम पहिले महीने में, हामान ने अदार नाम बारहवें महीने तक के एक एक दिन और एक एक महीने के लिये “पूर” अर्थात चिट्ठी अपने साम्हने डलवाई। 8 और हामान ने राजा क्षयर्ष से कहा, तेरे राज्य के सब प्रान्तों में रहने वाले देश देश के लोगों के मध्य में तितर बितर और छिटकी हुई एक जाति है, जिसके नियम और सब लोगों के नियमों से भिन्न हैं; और वे राजा के कानून पर नहीं चलते, इसलिये उन्हें रहने देना राजा को लाभदायक नहीं है। 9 यदि राजा को स्वीकार हो तो उन्हें नष्ट करने की आज्ञा लिखी जाए, और मैं राज के भणडारियों के हाथ में राजभणडार में पहुंचाने के लिये, दस हजार किक्कार चान्दी दूंगा। 10 तब राजा ने अपनी अंगूठी अपने हाथ से उतार कर अगागी हम्मदाता के पुत्र हामान को, जो यहूदियों का वैरी था दे दी। 11 और राजा ने हामान से कहा, वह चान्दी तुझे दी गई है, और वे लोग भी, ताकि तू उन से जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही व्यवहार करे। 12 यों उसी पहिले महीने के तेरहवें दिन को राजा के लेखक बुलाए गए, और हामान की आज्ञा के अनुसार राजा के सब अधिपतियों, और सब प्रान्तों के प्रधानों, और देश देश के लोगों के हाकिमों के लिये चिट्ठियां, एक एक प्रान्त के अक्षरों में, और एक एक देश के लोगों की भाषा में राजा क्षयर्ष के नाम से लिखी गई; और उन में राजा की अंगूठी की छाप लगाई गई। 13 और राज्य के सब प्रान्तों में इस आशय की चिट्ठियां हर डाकियों के द्वारा भेजी गई कि एक ही दिन में, अर्थात अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या बालक, सब यहूदी विध्वंसघात और नाश किए जाएं; और उनकी धन सम्मत्ति लूट ली जाए। 14 उस आज्ञा के लेख की नकलें सब प्रान्तों में खुली हुई भेजी गई कि सब देशों के लोग उस दिन के लिये तैयार हो जाएं। 15 यह आज्ञा शूशन गढ़ में दी गई, और डाकिए राजा की आज्ञा से तुरन्त निकल गए। और राजा और हामान तो जेवनार में बैठ गए; परन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गई।
अध्याय 4 1 जब मोर्दकै ने जान लिया कि क्या क्या किया गया है तब मोर्दकै वस्त्र फाड़, टाट पहिन, राख डालकर, नगर के मध्य जा कर ऊंचे और दुखभरे शब्द से चिल्लाने लगा; 2 और वह राजभवन के फाटक के साम्हने पहुंचा, परन्तु टाट पहिने हुए राजभवन के फाटक के भीतर तो किसी के जाने की आज्ञा न थी। 3 और एक एक प्रान्त में, जहां जहां राजा की आज्ञा और नियम पहुंचा, वहां वहां यहूदी बड़ा विलाप करने और उपवास करने और रोने पीटने लगे; वरन बहुतेरे टाट पहिने और राख डाले हुए पड़े रहे। 4 और एस्तेर रानी की सहेलियों और खोजों ने जा कर उसको बता दिया, तब रानी शोक से भर गई; और मोर्दकै के पास वस्त्र भेज कर यह कहलाया कि टाट उतारकर इन्हें पहिन ले, परन्तु उसने उन्हें न लिया। 5 तब एस्तेर ने राजा के खोजों में से हताक को जिसे राजा ने उसके पास रहने को ठहराया था, बुलवा कर आज्ञा दी, कि मोर्दकै के पास जा कर मालूम कर ले, कि क्या बात है और इसका क्या कारण है। 6 तब हताक नगर के उस चौक में, जो राजभवन के फाटक के साम्हने था, मोर्दकै के पास निकल गया। 7 मोर्दकै ने उसको सब कुछ बता दिया कि मेरे ऊपर क्या क्या बीता है, और हामान ने यहूदियों के नाश करने की अनुमति पाने के लिये राजभणडार में कितनी चान्दी भर देने का वचन दिया है, यह भी ठीक ठीक बतला दिया। 8 फिर यहूदियों को विनाश करने की जो आज्ञा शूशन में दी गई थी, उसकी एक नकल भी उसने हताक के हाथ में, एस्तेर को दिखाने के लिये दी, और उसे सब हाल बताने, और यह आज्ञा देने को कहा, कि भीतर राजा के पास जा कर अपने लोगों के लिये गिड़गिड़ाकर बिनती करे। 9 तब हताक ने एस्तेर के पास जा कर मोर्दकै की बातें कह सुनाईं। 10 तब एस्तेर ने हताक को मोर्दकै से यह कहने की आज्ञा दी, 11 कि राजा के सब कर्मचारियों, वरन राजा के प्रान्तों के सब लोगों को भी मालूम है, कि क्या पुरुष क्या स्त्री कोई क्यों न हो, जो आज्ञा बिना पाए भीतरी आंगन में राजा के पास जाएगा उसके मार डालने ही की आज्ञा है; केवल जिसकी ओर राजा सोने का राजदण्ड बढ़ाए वही बचता है। परन्तु मैं अब तीस दिन से राजा के पास नहीं बुलाई गई हूँ। 12 एस्तेर की ये बातें मोर्दकै को सुनाईं गई। 13 तब मोर्दकै ने एस्तेर के पास यह कहला भेजा, कि तू मन ही मन यह विचार न कर, कि मैं ही राजभवन में रहने के कारण और सब यहूदियों में से बची रहूंगी। 14 क्योंकि जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो और किसी न किसी उपाय से यहूदियों का छुटकारा और उद्धार हो जाएगा, परन्तु तू अपने पिता के घराने समेत नाश होगी। फिर क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिये राजपद मिल गया हो? 15 तब एस्तेर ने मोर्दकै के पास यह कहला भेजा, 16 कि तू जा कर शूशन के सब यहूदियों को इकट्ठा कर, और तुम सब मिलकर मेरे निमित्त उपवास करो, तीन दिन रात न तो कुछ खाओ, और न कुछ पीओ। और मैं भी अपनी सहेलियों सहित उसी रीति उपवास करूंगी। और ऐसी ही दशा में मैं नियम के विरुद्ध राजा के पास भीतर जाऊंगी; और यदि नाश हो गई तो हो गई। 17 तब मोर्दकै चला गया और एस्तेर की आज्ञा के अनुसार ही उसने किया।
अध्याय 5 1 तीसरे दिन एस्तेर अपने राजकीय वस्त्र पहिनकर राजभवन के भीतरी आंगन में जा कर, राजभवन के साम्हने खड़ी हो गई। राजा तो राजभवन में राजगद्दी पर भवन के द्वार के साम्हने विराजमान था; 2 और जब राजा ने एस्तेर रानी को आंगन में खड़ी हुई्र देखा, तब उस से प्रसन्न हो कर सोने का राजदण्ड जो उसके हाथ में था उसकी ओर बढ़ाया। तब एस्तेर ने निकट जा कर राजदण्ड की लोक छुई। 3 तब राजा ने उस से पूछा, हे एसतेर रानी, तुझे क्या चाहिये? और तू क्या मांगती है? मांग और तुझे आधा राज्य तक दिया जाएगा। 4 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो, तो आज हामान को साथ ले कर उस जेवनार में आए, जो मैं ने राजा के लिये तैयार की है। 5 तब राजा ने आज्ञा दी कि हामान को तुरन्त ले आओ, कि एस्तेर का निमंत्रण ग्रहण किया जाए। सो राजा और हामान एस्तेर की तैयार की हुई जेवनार में आए। 6 जेवनार के समय जब दाखमधु पिया जाता था, तब राजा ने एस्तेर से कहा, तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, ओर आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 7 एस्तेर ने उत्तर दिया, मेरा निवेदन और जो मैं मांगती हूँ वह यह है, 8 कि यदि राजा मुझ पर प्रसन्न है और मेरा निवेदन सुनना और जो वरदान मैं मांगूं वही देना राजा को स्वीकार हो, तो राजा और हामान कल उस जेवनार में आएं जिसे मैं उनके लिये करूंगी, और कल मैं राजा के इस वचन के अनुसार करूंगी। 9 उस दिन हामान आनन्दित ओर मन में प्रसन्न हो कर बाहर गया। परन्तु जब उसने मोर्दकै को राजभवन के फाटक में देखा, कि वह उसके साम्हने न तो खड़ा हुआ, और न हटा, तब वह मोर्दकै के विरुद्ध क्रोध से भर गया। 10 तौभी वह अपने को रोककर अपने घर गया; और अपने मित्रों और अपनी स्त्री जेरेश को बुलवा भेजा। 11 तब हामान ने, उन से अपने धन का वैभव, और अपने लड़के-बालों की बढ़ती और राजा ने उसको कैसे कैसे बढ़ाया, और और सब हाकिमों और अपने और सब कर्मचारियों से ऊंचा पद दिया था, इन सब का वर्णन किया। 12 हामान ने यह भी कहा, कि एस्तेर रानी ने भी मुझे छोड़ और किसी को राजा के संग, अपनी की हुई जेवनार में आने न दिया; और कल के लिये भी राजा के संग उसने मुझी को नेवता दिया है। 13 तौभी जब जब मुझे वह यहूदी मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा हुआ दिखाई पड़ता है, तब तब यह सब मेरी दृष्टि में व्यर्थ है। 14 उसकी पत्नी जेरेश और उसके सब मित्रों ने उस से कहा, पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा, बनाया जाए, और बिहान को राजा से कहना, कि उस पर मोर्दकै लटका दिया जाए; तब राजा के संग आनन्द से जेवनार में जाना। इस बात से प्रसन्न हो कर हामान ने बैसा ही फांसी का एक खम्भा बनवाया।
अध्याय 6 1 उस रात राजा को नींद नहीं आई, इसलिये उसकी आज्ञा से इतिहास की पुस्तक लाई गई, और पढ़कर राजा को सुनाई गई। 2 और यह लिखा हुआ मिला, कि जब राजा क्षयर्ष के हाकिम जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिगताना और तेरेश नाम दो जनों ने उस पर हाथ चलाने की युक्ति की थी उसे मोर्दकै ने प्रगट किया था। 3 तब राजा ने पूछा, इसके बदले मोर्दकै की क्या प्रतिष्ठा और बड़ाई की गई? राजा के जो सेवक उसकी सेवा टहल कर रहे थे, उन्होंने उसको उत्तर दिया, उसके लिये कुछ भी नहीं किया गया। 4 राजा ने पूछा, आंगन में कौन है? उसी समय तो हामान राजा के भवन से बाहरी आंगन में इस मनसा से आया था, कि जो खम्भा उसने मोर्दकै के लिये तैयार कराया था, उस पर उसको लटका देने की चर्चा राजा से करे। 5 तब राजा के सेवकों ने उस से कहा, आंगन में तो हामान खड़ा है। राजा ने कहा, उसे भीतर बुलवा लाओ। 6 जब हामान भीतर आया, तब राजा ने उस से पूछा, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो तो उसके लिये क्या करना उचित होगा? हामान ने यह सोच कर, कि मुझ से अधिक राजा किस की प्रतिष्ठा करना चाहता होगा? 7 राजा को उत्तर दिया, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहे, 8 तो उसके लिये राजकीय वस्त्र लाया जाए, जो राजा पहिनता है, और एक घोड़ा भी, जिस पर राजा सवार होता है, ओर उसके सिर पर जो राजकीय मुकुट धरा जाता है वह भी लाया जाए। 9 फिर वह वस्त्र, और वह घोड़ा राजा के किसी बड़े हाकिम को सौंपा जाए, और जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो, उसको वह वस्त्र पहिनाया जाए, और उस घोड़े पर सवार कर के, नगर के चौक में उसे फिराया जाए; और उसके आगे आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। 10 राजा ने हामान से कहा, फुतीं कर के अपने कहने के अनुसार उस वस्त्र और उस घोड़े को ले कर, उस यहूदी मोर्दकै से जो राजभवन के फाटक में बैठा करता है, वैसा ही कर। जैसा तू ने कहा है उस में कुछ भी कमी होने न पाए। 11 तब हामान ने उस वस्त्र, और उस घोड़े को ले कर, मोर्दकै को पहिनाया, और उसे घोड़े पर चढ़ा कर, नगर के चौक में इस प्रकार पुकारता हुआ घुमाया कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा। 12 तब मोर्दकै तो राजभवन के फाटक में लौट गया परन्तु हामान शोक करता हुआ और सिर ढांपे हुए फट अपने घर को गया। 13 और हामान ने अपनी पत्ती जेरेश और अपने सब मित्रों से सब कुछ जो उस पर बीता था वर्णन किया। 14 तब उसके बुद्धिमान मित्रों और उसकी पत्नी जेरेश ने उस से कहा, मोर्दकै जिसे तू नीचा दिखना चाहता है, यदि वह यहूदियों के वंश में का है, तो तू उस पर प्रबल न होने पाएगा उस से पूरी रीति नीचा ही खएगा। वे उस से बातें कर ही रहे थे, कि राजा के खोजे आकर, हामान को एस्तेर की की हुई जेवनार में फुतीं से लिवा ले गए।
अध्याय 7 1 सो राजा और हामान एस्तेर रानी की जेवनार में आगए। 2 और राजा ने दूसरे दिन दाखमधु पीते-पीते एस्तेर से फिर पूछा, हे एस्तेर रानी! तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, और आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 3 एस्तेर रानी ने उत्तर दिया, हे राजा! यदि तू मुझ पर प्रसन्न है, और राजा को यह स्वीकार हो, तो मेरे निवेदन से मुझे, और मेरे मांगने से मेरे लोगों को प्राणदान मिले। 4 क्योंकि मैं और मेरी जाति के लोग बेच डाले गए हैं, और हम सब विध्वंसघात और नाश किए जाने वाले हैं। यदि हम केवल दास-दासी हो जाने के लिये बेच डाले जाते, तो मैं चुप रहती; चाहे उस दशा में भी वह विरोधी राजा की हानि भर न सकता। 5 तब राजा क्षयर्ष ने एस्तेर रानी से पूछा, वह कौन है? और कहां है जिसने ऐसा करने की मनसा की है? 6 एस्तेर ने उत्तर दिया है कि वह विरोधी और शत्रु यही दुष्ट हामान है। तब हामान राजा-रानी के साम्हने भयभीत हो गया। 7 राजा तो जलजलाहट में आ, मधु पीने से उठ कर, राजभवन की बारी में निकल गया; और हामान यह देखकर कि राजा ने मेरी हानि ठानी होगी, एस्तेर रानी से प्राणदान मांगने को खड़ा हुआ। 8 जब राजा राजभवन की बारी से दाखमधु पीने के स्थान में लौट आया तब क्या देखा, कि हामान उसी चौकी पर जिस पर एस्तेर बैठी है पड़ा है; और राजा ने कहा, क्या यह घर ही में मेरे साम्हने ही रानी से बरबस करना चाहता है? राजा के मुंह से यह वचन निकला ही था, कि सेवकों ने हामान का मुंह ढांप दिया। 9 तब राजा के साम्हने उपस्थित रहने वाले खोजों में से हर्वोना नाम एक ने राजा से कहा, हामान को यहां पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा खड़ा है, जो उसने मोर्दकै के लिये बनवाया है, जिसने राजा के हित की बात कही थी। राजा ने कहा, उसको उसी पर लटका दो। 10 तब हामान उसी खम्भे पर जो उसने मोर्दकै के लिये तैयार कराया था, लटका दिया गया। इस पर राजा की जलजलाहट ठंडी हो गई।
अध्याय 8 1 उसी दिन राजा क्षयर्ष ने यहूदियों के विरोधी हामान का घरबार एस्तेर रानी को दे दिया। और मोर्दकै राजा के साम्हने आया, क्योंकि एस्तेर ने राजा को बताया था, कि उस से उसका क्या नाता था 2 तब राजा ने अपनी वह अंगूठी जो उसने हामान से ले ली थी, उतार कर, मोर्दकै को दे दी। और एसतेर ने मोर्दकै को हामान के घरबार पर अधिकारी नियुक्त कर दिया। 3 फिर एस्तेर दूसरी बार राजा से बोली; और उसके पांव पर गिर, आंसू बहा बहाकर उस से गिड़गिड़ाकर बिन्ती की, कि अगागी हामान की बुराई और यहूदियों की हानि की उसकी युक्ति निष्फल की जाए। 4 तब राजा ने एस्तेर की ओर सोने का राजदण्ड बढ़ाया। 5 तब एस्तेर उठ कर राजा के साम्हने खड़ी हुई; और कहने लगी कि यदि राजा को स्वीकार हो और वह मुझ से प्रसन्न है और यह बात उसको ठीक जान पड़े, और मैं भी उसको अच्छी लगती हूँ, तो जो चिट्ठियां हम्मदाता अगागी के पुत्र हामान ने राजा के सब प्रान्तों के यहूदियों को नाश करने की युक्ति कर के लिखाई थीं, उन को पलटने के लिये लिखा जाए। 6 क्योंकि मैं अपने जाति के लोगों पर पड़ने वाली उस विपत्ति को किस रीति से देख सकूंगी? और मैं अपने भाइयों के विनाश को क्योंकर देख सकूंगी? 7 तब राजा क्षयर्ष ने एस्तेर रानी से और मोर्दकै यहूदी से कहा, मैं हामान का घरबार तो एस्तेर को दे चुका हूँ, और वह फांसी के खम्भे पर लटका दिया गया है, इसलिये कि उसने यहूदियों पर हाथ बढ़ाया था। 8 सो तुम अपनी समझ के अनुसार राजा के नाम से यहूदियों के नाम पर लिखो, और राजा की अंगूठी की छाप भी लगाओ; क्योंकि जो चिट्ठी राजा के नाम से लिखी जाए, और उस पर उसकी अंगूठी की छाप लगाई जाए, उसको कोई भी पलट नहीं सकता। 9 सो उसी समय अर्थात सीवान नाम तीसरे महीने के तेईसवें दिन को राजा के लेखक बुलवाए गए और जिस जिस बात की आज्ञा मोर्दकै ने उन्हें दी थी उसे यहूदियों और अधिपतियोंऔर हिन्दुस्तान से ले कर कूश तक, जो एक सौ सत्ताईस प्रान्त हैं, उन सभों के अधिपतियों और हाकिमों को एक एक प्रान्त के अक्षरों में और एक एक देश के लोगों की भाषा में, और यहूदियों को उनके अक्षरों और भाषा में लिखी गई। 10 मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के नाम से चिट्ठियां लिखा कर, और उन पर राजा की अंगूठी की छाप लगाकर, वेग चलने वाले सरकारी घोड़ों, खच्चरोंऔर सांड़नियों की डाक लगा कर, हरकारों के हाथ भेज दीं। 11 इन चिट्ठियों में सब नगरों के यहूदियों को राजा की ओर से अनुमति दी गई, कि वे इकट्ठे हों और अपना अपना प्राण बचाने के लिये तैयार हो कर, जिस जाति वा प्रान्त से लोग अन्याय कर के उन को वा उनकी स्त्रियों और बाल-बच्चों को दु:ख देना चाहें, उन को विध्वंसघात और नाश करें, और उनकी धन सम्मत्ति लूट लें। 12 और यह राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में एक ही दिन में किया जाए, अर्थात अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को। 13 इस आज्ञा के लेख की नकलें, समस्त प्रान्तों में सब देशें के लोगों के पास खुली हुई भेजी गईं; ताकि यहूदी उस दिन अपने शत्रुओं से पलटा लेने को तैयार रहें। 14 सो हरकारे वेग चलने वाले सरकारी घोड़ों पर सवार हो कर, राजा की आज्ञा से फुतीं कर के जल्दी चले गए, और यह आज्ञा शूशन राजगढ़ में दी गई थी। 15 तब मोर्दकै नीले और श्वेत रंग के राजकीय वस्त्र पहिने और सिर पर सोने का बड़ा मुमुट धरे हुए और सूक्ष्मसन और बैंजनी रंग का बागा पहिने हुए, राजा के सम्मुख से निकला, और शूशन नगर के लोग आनन्द के मारे ललकार उठे। 16 और यहूदियों को आनन्द और हर्ष हुआ और उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई। 17 और जिस जिस प्रान्त, और जिस जिस नगर में, जहां कहीं राजा की आज्ञा और नियम पहुंचे, वहां वहां यहूदियों को आनन्द और हर्ष हुआ, और उन्होंने जेवनार कर के उस दिन को खुशी का दिन माना। और उस देश के लोगों में से बहुत लोग यहूदी बन गए, क्योंकि उनके मन में यहूदियों का डर समा गया था।
अध्याय 9 1 अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, जिस दिन राजा की आज्ञा और नियम पूरे होने को थे, और यहूदियों के शत्रु उन पर प्रबल होने की आशा रखते थे, परन्तु इसके उलटे यहूदी अपने बैरियों पर प्रबल हुए, उस दिन, 2 यहूदी लोग राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में अपने अपने नगर में इकट्ठे हुए, कि जो उनकी हानि करने का यत्न करे, उन पर हाथ चलाए। और कोई उनका साम्हना न कर सका, क्योंकि उनका भय देश देश के सब लोगों के मन में समा गया था। 3 वरन प्रान्तों के सब हाकिमों और अधिपतियों और प्रधानों और राजा के कर्मचारियों ने यहूदियों की सहायता की, क्योंकि उनके मन में मोर्दकै का भय समा गया था। 4 मोर्दकै तो राजा के यहां बहुत प्रतिष्ठित था, और उसकी कीर्ति सब प्रान्तों में फैल गई; वरन उस पुरुष मोर्दकै की महिमा बढ़ती चली गई। 5 और यहूदियों ने अपने सब शत्रुओं को तलवार से मार कर और घात कर के नाश कर डाला, और अपने बैरियों से अपनी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया। 6 और शूशन राजगढ़ में यहूदियों ने पांच सौ मनुष्यों को घात कर के नाश किया। 7 और उन्होंने पर्शन्दाता, दल्पोन, अस्पाता, 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता, 9 पर्मशता, अरीसै, अरीदै और वैजाता, 10 अर्थात हम्मदाता के पुत्र यहूदियों के विरोधी हामान के दसों पुत्रों को भी घात किया; परन्तु उनके धन को न लूटा। 11 उसी दिन शूशन राजगढ़ में घात किए हुओं की गिनती राजा को सुनाई गई। 12 तब राजा ने एस्तेर रानी से कहा, यहूदियों ने शूशन राजगढ़ ही में पांच सौ मनुष्य और हामान के दसों पुत्रों को भी घात कर के नाश किया है; फिर राज्य के और और प्रान्तों में उन्होंने न जाने क्या क्या किया होगा! अब इस से अधिक तेरा निवेदन क्या है? वह भी पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? वह भी तुझे दिया जाएगा। 13 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो तो शूशन के यहूदियों को आज की नाईं कल भी करने की आज्ञा दी जाए, और हामान के दसों पुत्र फांसी के खम्भें पर लटकाए जाएं। 14 राजा ने कहा, ऐसा किया जाए; यह आज्ञा शूशन में दी गई, और हामान के दसों पुत्र लटकाए गए। 15 और शूशन के यहूदियों ने अदार महीने के चौदहवें दिन को भी इकट्ठे हो कर शूशन में तीन सौ पुरुषों को घात किया, परन्तु धन को न लूटा। 16 राज्य के और और प्रान्तों के यहूदी इकट्ठे हो कर अपना अपना प्राण बचाने के लिये खड़े हुए, और अपने बैरियों में से पचहत्तर हजार मनुष्यों को घात कर के अपने शत्रुओं से विश्राम पाया; परन्तु धन को न लूटा। 17 यह अदार महीने के तेरहवें दिन को किया गया, और चौदहवें दिन को उन्होंने विश्राम कर के जेवनार की और आनन्द का दिन ठहराया। 18 परन्तु शूशन के यहूदी अदार महीने के तेरहवें दिन को, और उसी महीने के चौदहवें दिन को इकट्ठे हुए, और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने विश्राम कर के जेवनार का और आनन्द का दिन ठहराया। 19 इस कारण देहाती यहूदी जो बिना शहरपनाह की बस्तियों में रहते हैं, वे अदार महीने के चौदहवें दिन को आनन्द ओर जेवनार और खुशी और आपस में बैना भेजने का दिन नियुक्त कर के मानते हैं। 20 इन बातों का वृत्तान्त लिखकर, मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में, क्या निकट क्या दूर रहने वाले सारे यहूदियों के पास चिट्ठियां भेजीं, 21 और यह आज्ञा दी, कि अदार महीने के चौदहवें और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को प्रति वर्ष माना करें। 22 जिन में यहूदियों ने अपने शत्रुओं से विश्राम पाया, और यह महीना जिस में शोक आनन्द से, और विलाप खुशी से बदला गया; (माना करें) और उन को जेवनार और आनन्द और एक दूसरे के पास बैना भेजने ओर कंगालों को दान देने के दिन मानें। 23 और यहूदियों ने जैसा आरम्भ किया था, और जैसा मोर्दकै ने उन्हें लिखा, वैसा ही करने का निश्चय कर लिया। 24 क्योंकि हम्मदाता अगागी का पुत्र हामान जो सब यहूदियों का विरोधी था, उसने यहूदियों के नाश करने की युक्ति की, और उन्हें मिटा डालने और नाश करने के लिये पूर अर्थात चिट्ठी डाली थी। 25 परन्तु जब राजा ने यह जान लिया, तब उसने आज्ञा दी और लिखवाई कि जो दुष्ट युक्ति हामान ने यहूदियों के विरुद्ध की थी वह उसी के सिर पर पलट आए, तब वह और उसके पुत्र फांसी के खम्भों पर लटकाए गए। 26 इस कारण उन दिनों का नाम पूर शब्द से पूरीम रखा गया। इस चिट्ठी की सब बातों के कारण, और जो कुछ उन्होंने इस विषय में देखा और जो कुछ उन पर बीता था, उसके कारण भी 27 यहूदियों ने अपने अपने लिये और अपनी सन्तान के लिये, और उन सभों के लिये भी जो उन में मिल गए थे यह अटल प्रण किया, कि उस लेख के अनुसार प्रति वर्ष उसके ठहराए हुए समय में वे ये दो दिन मानें। 28 और पीढ़ी पीढ़ी, कुल कुल, प्रान्त प्रान्त, नगर नगर में ये दिन स्मरण किए और माने जाएंगे। और पूरीम नाम के दिन यहूदियों में कभी न मिटेंगे और उनका स्मरण उनके वंश से जाता न रहेगा। 29 फिर अबीहैल की बेटी एस्तेर रानी, और मोर्दकै यहूदी ने, पूरीम के विषय यह दूसरी चिट्ठी बड़े अधिकार के साथ लिखी। 30 इसकी नकलें मोर्दकै ने क्षयर्ष के राज्य के, एक सौ सत्ताईसों प्रान्तों के सब यहूदियों के पास शान्ति देने वाली और सच्ची बातों के साथ इस आशय से भेजीं, 31 कि पूरीम के उन दिनों के विशेष ठहराए हुए समयों में मोर्दकै यहूदी और एस्तेर रानी की आज्ञा के अनुसार, और जो यहूदियों ने अपने और अपनी सन्तान के लिये ठान लिया था, उसके अनुसार भी उपवास और विलाप किए जाएं। 32 और पूरीम के विष्य का यह नियम एस्तेर की आज्ञा से भी स्थिर किया गया, और उनकी चर्चा पुस्तक में लिखी गई।
अध्याय 10 1 और राजा क्षयर्ष ने देश और समुद्र के टापू दोनों पर कर लगाया। 2 और उसके माहात्म्य और पराक्रम के कामों, और मोर्दकै की उस बड़ाई का पूरा ब्योरा, जो राजा ने उसकी की थी, क्या वह मादै और फारस के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 3 निदान यहूदी मोर्दकै, क्षयर्ष राजा ही के नीचे था, और यहूदियों की दृष्टि में बड़ा था, और उसके सब भाई उस से प्रसन्न थे, क्योंकि वह अपने लोगों की भलाई की खोज में रहा करता था और अपने सब लोगों से शान्ति की बातें कहा करता था।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : राजा क्षयर्ष का जीवन काल और शासन काल कौन सा था ?
उ 1 : पाँचवी सदी ईसा पूर्व के आरंभ में राजा क्षयर्ष का जीवन काल और शासन काल था ।प्र 2 : राज भवन में हामान की पदवी क्या थी ?
उ 2 : राज भवन में हामान राजा का मुख्य सलाहकार था ।प्र 3 : वह कौन सी महान भलाई थी जो मोर्दकै ने राजा से की ?
उ 3 : एक दिन जब मोर्दकै राज महल के फाटक में बैठा था तब उसने दो लोगों की बातें सुनी , जो राजा को मार डालना चाहते थे । उसने तुरंत एस्तेर को बता दी ,और एस्तेर ने राजा को बताया कि यह बात मोर्दकै के कारण पता चली है। यह एक महान भलाई थी जो मोर्दकै ने राजा से की थी ।प्र 4 : हामान यहूदियों से क्यों घृणा करता था ?
उ 4 : हामान राजा का मुख्य सलाहकार था जो राजा को बहुत प्रिय लगता था इस कारण राजा की आज्ञा थी कि सब लोग हामान को झुककर दण्डवत कार्य लेकिन मोर्दकै कभी भी उसे झुककर दण्डवत नहीं करता था जिससे हामान यहूदियों से घृणा करता था ।प्र 5 : एस्तेर ने किस प्रकार अपने लोगों को बचाया ?
उ 5 : जब हमान ने यह घोषणा कारवाई कि सभी यहूदी बारहवें महीने के तेरहवें दिन को मार डाले जाएंगें और उस चिट्ठी पर राजा की अंगूठी की मुहर लगाकर क्षयर्ष के प्रांत के एक सौ सताईस प्रांतों मे भेजी गई , तब एस्तेरऔर सहेलियों ने तीन दिन उपवास किया और प्रार्थना की । उसके बाद वह राजमहल गई और राजा और हामान दोनों को भोज मे निमंत्रण किया। उस रात राजा को याद आया कि जब मोर्दकै ने उसकी जान बचाई थी तब उसको कोई प्रतिफल नहीं दिया गया है और राजा मोर्दकै के बारे में सोचने लगा। जब दूसरी बार फिर एस्तेर ने राजा और हामान को भोज में बुलाया तब एस्तेर ने खुल कर राजा से निवेदन की कि उसको और उसके लोगों को प्राणदान मिले । राजा ने तब एस्तेर से विस्तार में पूछा तब एस्तेर ने कहा कि वह विरोधी और शत्रू हामान ही है और हमान को फाँसी दी गई । इस प्रकार एस्तेर ने किस प्रकार अपने लोगों को बचाया ।
संगीत
We Shall overcome, we shall overcome, We shall overcome someday;
Oh, deep in my heart, I do believe,
We shall overcome someday.
We’ll walk hand in hand(3) ..
The truth shall make us free (3) ..
Christ shall come again (3)..