पाठ 1 : अब्राहम और स्वर्ग के दूत

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Instrumental

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सारांश

अब्राहम अपने परिवार के साथ तम्बू में रहता था । हमारे समान पक्के मकानों में नही। वह अपने तम्बू के द्वार पर बैठा ही था, की उसने देखा, की तीन पुरूष उसके सामने खड़े हैं । वह उनसे भेंट करने के लिए दौड़ा और उनको दण्डवत् कर उसने उनका अभिवादन किया। वह एक नम्र और सभ्य व्यक्ति था । आप अपने शिक्षक का अभिवादन कैसे करते हैं ? क्या आप अपने सिर को झुकाकर उनको नमस्कार नहीं करते ? ऐसा करना ही शिष्टता है और यह नम्रता को प्रकट करता है । अब्राहम दौड़कर उनके पास गया, दण्डवत किया और उन्हें “मेरे प्रभु” कहकर सम्बोधित किया । अब्राहम बहुत ही धनी व्यक्ति था और एक अपरिचित को उसे ऐसा कहकर सम्बोधित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, परन्तु अब्राहम एक नम्र व्यक्ति था और उसने अपने सभी अतिथियों का आदर सत्कार किया । उसने उनसे कहा कि, “हे प्रभु अपने दास के पास से चले न जाना । मैं थोड़ा सा जल लाता हूँ और अपने पाँव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें । फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊँ और उससे आप अपने जीव को तृप्त करें।” अतः वे वृक्ष की छाया तले बैठ गये, तब अब्राहम सभी आवश्यक प्रबंध करने के लिए अतिशीघ्रता से तम्बु में गया । आप क्या कल्पना करते हैं, उसने अपने अतिथियों को क्या दिया होगा ? उसने अपनी पत्नी सारा से मैदे के फुलके बनाने के लिए कहा । उसने इसे बनाकर दूध एवं मक्खन के साथ परोसा । इसी बीच एक सेवक ने कुछ माँस पकाकर लाया, औसे उसे भी परोसा । तब अब्राहम इन सभी चीजों को लेकर अपने अतिथियों के पास गया और स्वयं उन्हें उनके लिए परोसा । यद्यपि वह नहीं जानता था, कि उसके अतिथिगण वास्तव में स्वर्गदूत या परमेश्वर के संदेशवाहक है, तौभी उसने यह सब कुछ उनके लिए किया । नये नियम में यह कहा गया है, कि उसने स्वर्गदूतों की पहुनाई की यह बिना जाने कि वे कौन हैं । तब वे खाकर और विश्रामकर अब्राहम से बात चीत करने लगे । उन्होंने अब्राहम से उसकी पत्नि सारा के विषय में पूछा जो तम्बू में थी और अतिथियों का अभिवादन करने नहीं आयी थी । स्वर्गदूतों ने सारा को आशिष देने का वायदा किया और कहा कि “मैं वसन्त ऋतू में निश्चय तेरे पास आऊँगा ; तेरी पत्नि सारा का एक पुत्र उत्पन्न होगा ।” यह सुनकर सारा हँसी क्योंकि उसकी कोई संतान न थी और वह नव्बे वर्ष की थी । तब स्वर्गदूत ने इब्राहीम से पूछा “सारा क्यों हँसी ? क्या यहोवा के लिए कोई काम कठिन है ? नियत समय में मैं तेरे पास फिर आऊँगा, और सारा का एक पुत्र उत्पन्न होगा ।” तत्पश्चात् अतिथि अपने मार्ग में शीघ्रता से चल पड़े । अब्राहम अपने रीति के अनुसार उनके संग मार्ग में थोड़ी दूर तक गया । उसके लौटने के समय में परमेश्वर ने उससे बातचीत की । आप कल्पना करें की परमेश्वर ने उससे क्या कहा होगा ? वह बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश था ।

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति 18:1-15 1 इब्राहीम माम्रे के बांजो के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था, तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया: 2 और उसने आंख उठा कर दृष्टि की तो क्या देखा, कि तीन पुरूष उसके साम्हने खड़े हैं: जब उसने उन्हे देखा तब वह उन से भेंट करने के लिये तम्बू के द्वार से दौड़ा, और भूमि पर गिरकर दण्डवत की और कहने लगा, 3 हे प्रभु, यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं बिनती करता हूं, कि अपने दास के पास से चले न जाना। 4 मैं थोड़ा सा जल लाता हूं और आप अपने पांव धोकर इस वृक्ष के तले विश्राम करें। 5 फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊं और उससे आप अपने जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्चात आगे बढें: क्योंकि आप अपने दास के पास इसी लिये पधारे हैं। उन्होंने कहा, जैसा तू कहता है वैसा ही कर। 6 सो इब्राहीम ने तम्बू में सारा के पास फुर्ती से जा कर कहा, तीन सआ मैदा फुर्ती से गून्ध, और फुलके बना। 7 फिर इब्राहीम गाय बैल के झुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा ले कर अपने सेवक को दिया, और उसने फुर्ती से उसको पकाया। 8 तब उसने मक्खन, और दूध, और वह बछड़ा, जो उसने पकवाया था, ले कर उनके आगे परोस दिया; और आप वृक्ष के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे। 9 उन्होंने उससे पूछा, तेरी पत्नी सारा कहां है? उसने कहा, वह तो तम्बू में है। 10 उसने कहा मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊंगा; और तब तेरी पत्नी सारा के एक पुत्र उत्पन्न होगा। और सारा तम्बू के द्वार पर जो इब्राहीम के पीछे था सुन रही थी। 11 इब्राहीम और सारा दोनो बहुत बूढ़े थे; और सारा का स्त्रीधर्म बन्द हो गया था 12 सो सारा मन में हंस कर कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूं, और मेरा पति भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा? 13 तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, सारा यह कहकर क्योंहंसी, कि क्या मेरे, जो ऐसी बुढिय़ा हो गई हूं, सचमुच एक पुत्र उत्पन्न होगा? 14 क्या यहोवा के लिये कोई काम कठिन है? नियत समय में, अर्थात वसन्त ऋतु में, मैं तेरे पास फिर आऊंगा, और सारा के पुत्र उत्पन्न होगा। 15 तब सारा डर के मारे यह कह कर मुकर गई, कि मैं नहीं हंसी। उसने कहा, नहीं; तू हंसी तो थी॥

प्रश्न-उत्तर

प्र 1 : इब्राहीम ने अपने अतिथियों का स्वागत कैसे किया ?उ 1 : एक दिन जब इब्राहीम अपने तंबू के द्वार पर बैठा था तब उसने कुछ दूर तीन पुरुषों को खड़े देखा । वह उनसे मिलने दौड़ कर गया और झुककर उनका अभिवादन किया और उनके अगुए को "मेरे प्रभु " कहा ।
प्र 2 : इब्राहीम ने अपने अतिथियों को भोजन क्या दिया ?उ 2 : इब्राहीम ने अपने अतिथियों को भोजन में रोटी को दूध और मक्खन के साथ परोसा , और माँस भी पकाकर खिलाया ।
प्र 3 : परमेश्वर ने इब्राहीम को कौन सी दो महत्वपूर्ण बातें बताई ?उ 3 : परमेश्वर ने इब्राहीम को दो महत्वपूर्ण बातें बताई, पहली बात यह थी कि अगले वर्ष इसी समय इब्राहीम से सारा को एक पुत्र उत्पन्न होगा और दूसरी बात यह थी कि परमेश्वर दो शहरों को नष्ट करने वाला था क्योंकि उनमें रहने वाले मनुष्य बहुत दुष्ट थे ।
प्र 4 : हमें परमेश्वर की आज्ञा क्यों माननी चाहिए ?उ 4 : हमें परमेश्वर की आज्ञा इसलिए माननी चाहिए क्योंकि जो परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं उनको परमेश्वर आशीष देता है और परमेश्वर उन स्वर्गदूतों का भी विनाश करते हैं जो उनकी आज्ञा का पालन नहीं करते ।

संगीत

It’s a great thing to praise the Lord,(3) walking in the light of God.

walk, walk, walk, walk in the light, (3) walking in the light of God.

It’s a great thing to Love the Lord,(3) walking in the light of God.

It’s a great thing to Serve the Lord,(3) walking in the light of God.

It’s a great thing to Thank the Lord,(3) walking in the light of God.