पाठ 7 : याकूब बेतेल में

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सारांश

पिछले पाठ में हमने सिखा कि रिबका चाहती थी कि याकूब अपने मामा के यहाँ पद्दनराम चला जाए ताकि एसाव के क्रोध से बच सके |

इसहाक ने याकूब को बुलाकर फिर से वह सारी आशीषें दीं जिसका वायदा परमेश्वर ने इब्राहीम से किया था ,और उसे यह चेतावनी भी दी ,कि किसी कनानी लड़की को अपनी पत्नी मत बनाना ,क्योंकि वे लोग परमेश्वर की आराधना नहीं करते ,परन्तु अपने मामा लाबान की एक बेटी से विवाह करना |याकूब चल दिया और सूर्यस्त होने पर लूज नामक एक स्थान पर पहुँचा ,और खुली जगह पर एक पत्थर को तकिया बनाकर सो गया |वहाँ उसने एक विचित्र स्वपन देखा |

उसने देखा कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है ,और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुँचा है ,और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं और उसने परमेश्वर को खड़े होकर यह कहते सुना ," मैं यहोवा ,तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर ,और इसहाक का भी परमेश्वर हूँ |जिस भूमि पर तू पड़ा है , उसे मैं तुझे और तेरे वंश को दूँगा |तेरा वंश भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत होगा ,और हर दिशा में फैलता जाएगा ,और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएंगें |मैं तेरे संग रहूँगा और तुझे सुरक्षित रखूँगा और इस देश में वापस लाऊँगा |"

नींद से जागने पर याकूब ने कहा ," निश्चये इस स्थान में परमेश्वर हैं ,और मैं यह नहीं जानता था |" उसने वह पत्थर उठाया जिसे तकिया बनाकर वह सोया था ,और उसे खंभा बनाकर खड़ा कर दिया ,उस पर तेल डालकर उस स्थान का नाम रखा -बेतेल ,क्योंकि उसने कहा ,“यह परमेश्वर का भवन है "

फिर याकूब ने एक मन्नत माँगी ,और कहा ,“यदि परमेश्वर मेरे साथ रहकर इस यात्रा में मेरी रक्षा करे ,और मुझे खाने के लिए रोटी और पहनने के लिए कपड़ा दे ,और मैं अपने पिता के घर में सुरक्षित लौट आऊँ ,तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा |और यह पत्थर जिसका मैंने खंभा खड़ा किया है , परमेश्वर का भवन ठहरेगा , और जो कुछ तू मुझे दे ,उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूँगा |” इस स्वपण के बाद ,जो वास्तव में परमेश्वर की ओर से एक दर्शन था ,याकूब ने अपनी यात्रा जारी रखी

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति अध्याय 28 1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, कि तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। 2 पद्दनराम में अपने नाना बतूएल के घर जा कर वहां अपने मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना। 3 और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फुला-फला कर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो। 4 और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी हो कर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम को दिया था, उसका अधिकारी हो जाए। 5 और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के उस पुत्र लाबान के पास चला, जो याकूब और ऐसाव की माता रिबका का भाई था। 6 जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी ब्याह लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, कि तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना; 7 और याकूब माता पिता की मान कर पद्दनराम को चल दिया; 8 तब ऐसाव यह सब देख के और यह भी सोच कर, कि कनानी लड़कियां मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, 9 इब्राहीम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन थी, ब्याह कर अपनी पत्नियों में मिला लिया॥ 10 सो याकूब बेर्शेबा से निकल कर हारान की ओर चला। 11 और उसने किसी स्थान में पहुंच कर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया था; सो उसने उस स्थान के पत्थरों में से एक पत्थर ले अपना तकिया बना कर रखा, और उसी स्थान में सो गया। 12 तब उसने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है: और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। 13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा हो कर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं: जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा। 14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत होगा, और पच्छिम, पूरब, उत्तर, दक्खिन, चारों ओर फैलता जाएगा: और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाएंगे। 15 और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रक्षा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा: मैं अपने कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोडूंगा। 16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्थान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता था। 17 और भय खा कर उसने कहा, यह स्थान क्या ही भयानक है! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा। 18 भोर को याकूब तड़के उठा, और अपने तकिए का पत्थर ले कर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिरे पर तेल डाल दिया। 19 और उसने उस स्थान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहिले लूज था। 20 और याकूब ने यह मन्नत मानी, कि यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रक्षा करे, और मुझे खाने के लिये रोटी, और पहिनने के लिये कपड़ा दे, 21 और मैं अपने पिता के घर में कुशल क्षेम से लौट आऊं: तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा। 22 और यह पत्थर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा: और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा॥

प्रश्न-उत्तर

प्र :1 याकूब पद्दनराम क्यों गया ?उ : याकूब इसलिये पद्दनराम इसलिये को भाग गया क्योंकि वह एसाव के क्रोध से बच सके ।
प्र 2: याकूब ने स्वपन मे क्या देखा?उ 2 : याकूब ने स्वपन मे यह देखा कि एक सीढ़ी पृथ्वी पर खड़ी है और उसका सिरा स्वर्ग पर पहुँचा है । परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं और परमेश्वर को उसके ऊपर खड़े होकर कुछ कह रहा है।
प्र 3 : परमेश्वर ने याकूब से क्या प्रतिज्ञा की ?उ 3 : परमेश्वर ने याकूब से यह प्रतिज्ञा की कि जिस भूमि पर याकूब सोया था परमेश्वर उसे याकूब को और उसके वंश को देगा। याकूब का वंश भूमि के धूल के किनकों के समान होगा जो हर दिशा मे फैलता जाएगा । याकूब और उसके वंश के कारण पृथ्वी के सारे कुल आशीष पायेगे। परमेश्वर याकूब के संग रहेगा और उसे सुरक्षित रखेगा और इस देश मे वापस लाएगा ।
प्र 4 : याकूब ने उस स्थान का नाम बेतेल क्यों रखा ,जहां वह सोया था ?उ 4 : याकूब ने उस स्थान का नाम , जहां वह सोया था , इसलिये बेतेल रखा क्योंकि याकूब को लगा कि उस स्थान पर परमेश्वर जरूर है जिसने उससे बात की ।
प्र 5 : याकूब के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं ?उ 5 : याकूब के जीवन से हम यह सीख सकते हैं कि हमे परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिये और उसकी आशीषों की प्रतीक्षा करनी चाहिए । यदि हम अपना हृदय और आपना जीवन प्रभु ईशऊ को देंगे तो वह यह बताएगा कि आपके जीवन के लिये उसकी क्या योजना है, और वह आपके साथ रहगें और और आपको आशीष देंगे ।

संगीत

याकूब की सीढ़ी,चढ़ते है हम (3) क्रूस के सिपाही ।

करता निगरानी साथ में रहकर (3) क्रूस के सिपाही ।

ऊँचा ही ऊँचा चढ़ता हर कदम (3) क्रूस के सिपाही ।