पाठ 6 : याकूब बरकत का वारिस बना

Media

Lesson Summary

Content not prepared yet or Work in Progress.


Lesson Prayer

Content not prepared yet or Work in Progress.


Song

Content not prepared yet or Work in Progress.


Instrumental

Content not prepared yet or Work in Progress.


सारांश

इशहाक जब बूढ़ा हो गया और उसे धुंधला दिखने लगा ,तब उसने अपने बड़े पुत्र एसाव को बुलाया आऊईर कहा ,“बेटा ,मैं बूढ़ा हूँ ,और मृत्यु के करीब हूँ ,इसलिए जाकर हिरन का शिकार करो ,और मेरी पसंद के अनुसार उसे पकाकर मेरे पास लाओ ,ताकि मैं उसे खाऊँ और अपनी मृत्यु से पहले तुम्हें आशीष दूँ |

इसहाक ने एसाव से जो कुछ कहा ,वह रिबका ने सुन लिया |जब एसाव शिकार करने निकला ,तब रिबका ने याकूब को बुलाकर उसके पिता की कही हुई बातें बता दीं |फिर उसने कहा ,“मेरे बेटे ,मेरी बातें ध्यान से सुनो |बकरियों के झुण्ड में जाकर डों अच्छे बकरी के बच्चे लेकर आओ ,ताकि मैं तुम्हारे पिता की रुचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाऊँ |तब उसे लेकर अपने पिता के पास जाना ,ताकि उसे खाकर वह अपनी मृत्यु से पहले तुम्हें आशीष दे |” याकूब ने अपनी माता से कहा ,“मेरे भाई एसाव के पूरे शरीर में कितने बाल हैं ,परन्तु मेरी त्वचा तो चिकनी है |यदि वो मुझे टटोलेंगे तो इस धोखे को समझ जाएंगे ,और मुझे आशीष के स्थान पर श्राप ही प्राप्त होगा |” उसकी माँ रिबका ने उससे कहा ,” हे मेरे बेटे ,सुनो ,मुझे श्राप मुझ पर पड़े , और अब जैसा मैने कहा है , जाकर वैसा ही करो |“अत :वह चला गया और अपनी माँ के कहे अनुसार किया| उसकी माँ ने उसके पिता की रुचि के अनुसार भोजन तैयार किया | फिर उसने एसाव के हाथों और गरदन को बकरी की खाल से ढककर उसे एसाव के वस्र पहना दिए | याकूब ने अपने पिता के पास जाकर कहा ,“हे मेरे पिता !” तुरंत ही इसहाक ने पूछा ,“तुम कौन हो ?” इसहाक निश्चित करना चाहता था कि वह एसाव ही है |याकूब ने उत्तर दिया ,” मैं आपका पहिलौठा पुत्र एसाव हूँ | मैंने वही किया जो अपने कहा था, इसलिए अब उठकर इस हिरण का माँस खाइए और मुझे आशीष दीजिए |" इसहाक ने पूछा , “यह तुम्हें इतनी जल्दी कैसे मिल गया ?“याकूब ने उत्तर दिया ,” परमेश्वर ही उसको मेरे सामने ले आए |” देखो बच्चो, याकूब ने कैसे अपने झूठ को छिपाने के लिए परमेश्वर का नाम लिया |

फिर इसहाक ने याकूब से कहा ,“मेरे बेटे ,मेरे पास आओ ,ताकि मैं तुम्हें हाथ लगाकर यह जानू कि तुम वास्तव में एसाव ही हो या नहीं |” फिर इसहाक ने कहा ," आवाज़ तो याकूब की तरह है ,परन्तु हाथ एसाव की तरह हैं |क्या तुम वास्तव में मेरे पुत्र एसाव हो ?" याकूब ने उत्तर दिया ,“हाँ मैं हूँ |तब इसहाक ने कहा ,“हे मेरे पुत्र ,अपने शिकार के माँस को यहाँ लाओ की मैं खाऊँ और तुझे आशीष दूँ |” याकूब जो माँस और जो दाखमधु लाया था , उसे अपने पिता के पास ले गया |इसहाक ने खाया -पीया और याकूब को समृद्धि की आशीष के साथ परिवार का स्वामी भी ठराया |

याकूब के बाहर जाते ही ,एसाव शिकार करके लौटा ,और अपने पिता की रुचि के अनुसार पकाकर ,आशीर्वाद के लिए पहुँचा |इसहाक इस धोखे को जानकर बहुत दुखी हुआ ,परन्तु वह आशीषों को बदल नहीं सकता था |एसाव फूट फूट कर रोया ,परन्तु उसने अपने पहिलौठा होने के अधिकार को बेचकर परमेश्वर की आशीष को तुच्छ जाना था |परमेश्वर ने याकूब को चुना क्योंकि वह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता था ,और प्रतिज्ञाओं का उत्तराधिकारी होना चाहता था |

एसाव बहुत क्रोधित हुआ और वह याकूब को जान से मारना चाहता था |यह जानकर रिबका ने इसहाक से ज़िद की ,कि याकूब को उसके मामा के पास पद्दनराम भेज दे |लड़कों के जन्म होने से पहले ही परमेश्वर ने रिबका को यह बता दिया था कि छोटा बेटा परमेश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए याकूब को धोखा करने की आवश्यकता नहीं थी| उसने गलती की और बाद में इसकी सज़ा उसे मिली |

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति अध्याय 27 1 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आंखें ऐसी धुंधली पड़ गईं, कि उसको सूझता न था, तब उसने अपने जेठे पुत्र ऐसाव को बुला कर कहा, हे मेरे पुत्र; उसने कहा, क्या आज्ञा। 2 उसने कहा, सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा: 3 सो अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार ले कर मैदान में जा, और मेरे लिये हिरन का अहेर कर ले आ। 4 तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना कर मेरे पास ले आना, कि मैं उसे खा कर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूं। 5 तब ऐसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक ऐसाव से यह बात कह रहा था, तब रिबका सुन रही थी। 6 सो उसने अपने पुत्र याकूब से कहा सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई ऐसाव से यह कहते सुना, 7 कि तू मेरे लिये अहेर कर के उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खा कर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहिले आशीर्वाद दूं 8 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान, 9 कि बकरियों के पास जा कर बकरियों के दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रूचि के अनुसार उन के मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊंगी। 10 तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खा कर मरने से पहिले तुझ को आशीर्वाद दे। 11 याकूब ने अपनी माता रिबका से कहा, सुन, मेरा भाई ऐसाव तो रोंआर पुरूष है, और मैं रोमहीन पुरूष हूं। 12 कदाचित मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूंगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊंगा। 13 उसकी माता ने उससे कहा, हे मेरे, पुत्र, शाप तुझ पर नहीं मुझी पर पड़े, तू केवल मेरी सुन, और जा कर वे बच्चे मेरे पास ले आ। 14 तब याकूब जा कर उन को अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया। 15 तब रिबका ने अपने पहिलौठे पुत्र ऐसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, ले कर अपने लहुरे पुत्र याकूब को पहिना दिए। 16 और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया। 17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी। 18 सो वह अपने पिता के पास गया, और कहा, हे मेरे पिता: उसने कहा क्या बात है? हे मेरे पुत्र, तू कौन है? 19 याकूब ने अपने पिता से कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र ऐसाव हूं। मैं ने तेरी आज्ञा के अनुसार किया है; सो उठ और बैठ कर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे। 20 इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया? उसने यह उत्तर दिया, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे साम्हने कर दिया। 21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोल कर जानूं, कि तू सचमुच मेरा पुत्र ऐसाव है या नहीं। 22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उसने उसको टटोल कर कहा, बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ ऐसाव ही के से जान पड़ते हैं। 23 और उसने उसको नहीं चीन्हा, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। सो उस ने उसको आशीर्वाद दिया 24 और उसने पूछा, क्या तू सचमुच मेरा पुत्र ऐसाव है? उसने कहा हां मैं हूं। 25 तब उसने कहा, भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपने पुत्र के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूं। तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उसने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उसने पिया। 26 तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम। 27 उसने निकट जा कर उसको चूमा। और उसने उसके वस्त्रों की सुगन्ध पाकर उसको य़ह आशीर्वाद दिया, कि देख, मेरे पुत्र का सुगन्ध जो ऐसे खेत का सा है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो: 28 सो परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे: 29 राज्य राज्य के लोग तेरे आधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत करें: तू अपने भाइयों का स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत करें: जो तुझे शाप दें सो आप ही स्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें सो आशीष पाएं॥ 30 यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे ही चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के साम्हने से निकला ही था, कि ऐसाव अहेर ले कर आ पहुंचा। 31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बना कर अपने पिता के पास ले आया, और उस से कहा, हे मेरे पिता, उठ कर अपने पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे। 32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, तू कौन है? उसने कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र ऐसाव हूं। 33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर कांपते हुए कहा, फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैं ने तेरे आने से पहिले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? वरन उसको आशीष लगी भी रहेगी। 34 अपने पिता की यह बात सुनते ही ऐसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे। 35 उसने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया। 36 उसने कहा, क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था: और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है: फिर उसने कहा, क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है? 37 इसहाक ने ऐसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके आधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है: सो अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूं? 38 ऐसाव ने अपने पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे: यों कह कर ऐसाव फूट फूट के रोया। 39 उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पड़े॥ 40 और तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के आधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके। 41 ऐसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; सो उसने सोचा, कि मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूंगा। 42 जब रिबका को अपने पहिलौठे पुत्र ऐसाव की ये बातें बताई गईं, तब उसने अपने लहुरे पुत्र याकूब को बुला कर कहा, सुन, तेरा भाई ऐसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन को धीरज दे रहा है। 43 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा ; 44 और थोड़े दिन तक, अर्थात जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना। 45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध तुझ पर से उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहां से बुलवा भेजूंगी: ऐसा क्यों हो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनों से रहित होना पड़े? 46 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियों के कारण मैं अपने प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियों में से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?

प्रश्न-उत्तर

प्र 1 : इसहाक ने एसाव से क्या करने को कहा था ?उ 1 : इसहाक ने एसाव से कहा था कि वह बूढ़ा हो गया है और मृत्यु उसके करीब है इसलिया जाकर हिरण का शिकार करो और उसके पसंद के अनुसार उसे पकाकर उसके पास लाये तब वह उसको खाकर अपनी मृत्यु के पहले एसाव को आशीष दे सके।
प्र 2 : याकूब ने किस प्रकार आशीर्वाद पाया ?उ 2 : याकूब ने धोखे से इसहाक से आशीर्वाद पाया । उसकी माँ के कहे अनुसार उसने किया । उसकी माँ ने उसे याकूब के हाथों और गरदन को बकरी की ख्याल से ढ़क कर उसे एसाव के वस्त्र पहनाकर , माँस और दखमधु के साथ इस हाक के पास भेज दिया । इसहाक ने उसे एसाव समझ के समृद्धि की आशीष के साथ परिवार का स्वामी भी ठहराया ।
प्र 3 : याकूब अपने भाई एसाव के क्रोध से कैसे बचा ?उ 3 : याकूब को एसाव के क्रोध से बचाने के लिये अपने मामा के पास पद्द्नराम रहना पडा ।
प्र 4 : याकूब मे वह कौन सा गुण था जो अच्छा था ?उ 4: याकूब परमेश्वर से ज्यादा से ज्यादा आशीष पाने का गुण था।

संगीत

याकूब मल्लयुद्ध करता , स्वर्गदूत से सारी रात, जाने नहीं दूँगा जब तक, पूरी न करे हर मुराद ।

चलाकी से हर आशीष,याकूब ने जीवन में पाई, अब उसके पीछे थे पड़े,लाबान और उसका भाई, याकूब परेशान,वह गया,परमेश्वर के पास , और मिला एक इन्सान,उससे मल्लयुद्ध किया पूरी रात।

स्वर्गदूत कहे दिन निकलता,अब मुझको जाने दो, याकूब था जोर से जकड़ता,तब छूटक जांघ को, स्वर्गदूत ने पुछा नाम और याकूब ने बताया पूरा सच, और उसने दी आशीष,तू होगा इस्राएल अब ।