पाठ 4 : इब्राहीम और लूत
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सारांश
इब्राहीम और लूत ,दोनों ही बहुत अमीर हो गए | उनके पास भेड़ों और पशुओं का इतना बड़ा झुण्ड हों गया कि उनके चरवाहे चारागाह के लिए आपस में झगड़ा करने लगे |
इस बात से इब्राहीम दुखी हुआ | वह परमेश्वर का जन था ,और मेल से रहना चाहता था | अत : इब्राहीम ने लूत से कहा ," हम भाई हैं ,और हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए |यह देश बहुत बड़ा है ,अत : हम एक दूसरे से अलग होकर रहें |" इस बात पर सहमति हों गई | अब जगह चुनने की बात आई |इब्राहीम ने लूत को पहले चुनने कि आजादी दी |हम देखते हैं कि वरिष्ठ होने के बावजूद भी इब्राहीम ने नि : स्वथरता और नम्रता दिखाई | बच्चों ,यहाँ हमारे लिए एक अच्छा उदाहरण है |
लूत इस विचार से खुश था | वे ऊँचे स्थान पर थे ,इसलिए वह भूमि का सही अवलोकन कर सका | उसने यरदन नदी से सिंची हुई तराई को देखा , और अपने जानवरों के लिए सही चारागाह देखकर उसे चुन लिया , और पूर्व की और चला गया | वह तराई वाले नगरों में रहा और सदोम की तरफ अपना तंबू खड़ा किया |
दूसरी ओर , इब्राहीम कनान देश में रहने लगा |कितनी आसानी से उसने समस्या को सुलझाया | लूत को अपना भाई मानने के कारण इब्राहीम ने सावधानी बरती कि उसे ठेस न पहुंचे |दोनों ही जीवते परमेश्वर की सेवा करते थे | इब्राहीम के लिए सभी धन -दोलत से कीमती उसकी गवाही थी ,अत : उसने परमेश्वर के नाम का अनादर न होने की सावधानी बरती |
बाइबल अध्यन
उत्पत्ति अध्याय 13 1 तब अब्राम अपनी पत्नी, और अपनी सारी सम्पत्ति ले कर, लूत को भी संग लिये हुए, मिस्र को छोड़ कर कनान के दक्खिन देश में आया। 2 अब्राम भेड़-बकरी, गाय-बैल, और सोने-रूपे का बड़ा धनी था। 3 फिर वह दक्खिन देश से चलकर, बेतेल के पास उसी स्थान को पहुंचा, जहां उसका तम्बू पहले पड़ा था, जो बेतेल और ऐ के बीच में है। 4 यह स्थान उस वेदी का है, जिसे उसने पहले बनाई थी, और वहां अब्राम ने फिर यहोवा से प्रार्थना की। 5 और लूत के पास भी, जो अब्राम के साथ चलता था, भेड़-बकरी, गाय-बैल, और तम्बू थे। 6 सो उस देश में उन दोनों की समाई न हो सकी कि वे इकट्ठे रहें: क्योंकि उनके पास बहुत धन था इसलिये वे इकट्ठे न रह सके। 7 सो अब्राम, और लूत की भेड़-बकरी, और गाय-बैल के चरवाहों के बीच में झगड़ा हुआ: और उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे। 8 तब अब्राम लूत से कहने लगा, मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहों के बीच में झगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। 9 क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दाहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दाहिनी ओर जाए तो मैं बाईं ओर जाऊंगा। 10 तब लूत ने आंख उठा कर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा, कि वह सब सिंची हुई है। जब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा को नाश न किया था, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की बाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ थी। 11 सो लूत अपने लिये यरदन की सारी तराई को चुन के पूर्व की ओर चला, और वे एक दूसरे से अलग हो गए। 12 अब्राम तो कनान देश में रहा, पर लूत उस तराई के नगरों में रहने लगा; और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया। 13 सदोम के लोग यहोवा के लेखे में बड़े दुष्ट और पापी थे। 14 जब लूत अब्राम से अलग हो गया तब उसके पश्चात यहोवा ने अब्राम से कहा, आंख उठा कर जिस स्थान पर तू है वहां से उत्तर-दक्खिन, पूर्व-पश्चिम, चारों ओर दृष्टि कर। 15 क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है, उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग युग के लिये दूंगा। 16 और मैं तेरे वंश को पृथ्वी की धूल के किनकों की नाईं बहुत करूंगा, यहां तक कि जो कोई पृथ्वी की धूल के किनकों को गिन सकेगा वही तेरा वंश भी गिन सकेगा। 17 उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा। 18 इसके पशचात् अब्राम अपना तम्बू उखाड़ कर, माम्रे के बांजों के बीच जो हेब्रोन में थे जा कर रहने लगा, और वहां भी यहोवा की एक वेदी बनाई॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : इब्राहीम और लूत क्यों अलग हुए ?
उ 1 : इब्राहीम और लूत इसलिये अलग हुए क्योंकि इब्राहीम और लूत के चरवाहे चारागाह के लिये आपस मे जगडा करने लगे।प्र 2 : इब्राहीम के जीवन मे कौन सी बात थी जो उसके लिये सबसे अधिक महत्वपूर्ण थी ।
उ 2 : इब्राहीम के जीवन मे सभी धन -दौलत से महत्वपूर्ण उसकी गवाही थी , अतः उसने परमेश्वर के नाम का अनादर ना होने की सावधानी बरती ।प्र 3 : लूत ने अपने बसने के लिये कौन सा स्थान चुना , और क्यों ?
उ 3 : लूत ने यरदन नदी से सींची हुई तराई को देखा और अपने जानवरों के लिये सही चारागाह देखकर उसे चुन लिया ।प्र 4 : लूत किस प्रकार के मनुष्य को चित्रित करता है?
उ 4 : लूत सांसारिक व्यक्ति को चित्रित करता है।प्र 5 : इब्राहीम किस प्रकार के मानुषे को चित्रित करता है:
उ 5 : इब्राहीम आत्मिक व्यक्ति को चित्रित करता है।
संगीत
क्या ही भली और मनोहर बात है , भाई लोग मिलकर रहें , आहा हेरमोन पहाड़ की औस के समान , यह कितनी सोहावनी है । ,
एक पिता की संतान है हम , एक ही मिराज के सांझी है हम , आहा , मृत्यु या जीवन भी हमको कभी , अलग कर ना सकेंगे ।
इकट्ठा संगति मनाते रहना हमको , है कितना मन भावता , लेकिन श्रेष्ट पिता की आज्ञा मानकर हम , खुशखबरी सुनने जाए घर घर।