पाठ 35 : लाजर
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सारांश
बैतनिय्याह गाँव में दो बहनों मार्था और मरियम और उनका भाई लाज़र रहते थे |यह परिवार परमेश्वर का भय मानने वाला और प्रभु यीशु से प्रेम करने वाला था |प्रभु यीशु भी उनसे प्रेम करते थे ,और अक्सर उन के घर जाते थे | लाज़र बीमार हों गया और उनके घर पर मातम छा गया | उसकी बहनों ने प्रभु यीशु के पास संदेश भेजा |उन्हें आशा थी कि प्रभु तुरंत आकर उसे स्वस्थ कर देंगे |उन्होंने संदेश भेजा था कि “जिससे तू प्रेम करता है ,वह बीमार है |“संदेश मिलने के बावजूद प्रभु दो दिन और वहीं ठहरे रहे जहाँ थे |इस दौरान लाज़र की मृत्यु हो गई -बहुत दुख और निराशा के साथ बहनों ने उसे दफनाने की तैयारी की |उनकी प्रथा के अनुसार उसके शरीर को कफन से लपेटा गया और सिर के चारों ओर कपड़ बाँधा गया |फिर उसे कब्र में रखा गया |वह एक गुफा थी जिसके प्रवेश द्वार पर पत्थर रखा गया | उस समय प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा ,“आओ हम यहूदिया को चलें |हमारा मित्र लाज़र सो गया है ,परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूँ |“जब चेले यह समझ नहीं पाए तब प्रभु ने उनसे स्पष्ट कर दिया कि लाज़र मर गया है |जब वे बैतनिय्याह पहुँचे ,मार्था प्रभु से मिलने आई ,और बोली ,“हे प्रभु ,यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई कदापि न मरता |“मरियम ने भी आकर यही शब्द कहे |मार्था और मरियम के आस -पास बहुत लोग एकत्र हुए |उनका दुख देखकर प्रभु यीशु भी रोए |प्रभु ने पूछा ,“तुमने उसे कहाँ रखा है ?“उन्होंने कहा ,“हे प्रभु ,चलकर देख ले |“प्रभु ने उनसे कहा कि पत्थर हटाओ |मार्था ने कहा ,“हे प्रभु उसमें से तो अब दुर्गंध आती है ,क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए हैं |” प्रभु ने उससे कहा ,“क्या मैंने तुझसे नहीं कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी ?” उन्होंने पत्थर हटाया |प्रभु यीशु ने स्वर्ग की तरह देखकर अपने पिता का धन्यवाद किया |फिर बड़े शब्द से पुकारा ,“हे लाज़र ,निकल आ !“लाज़र कफन से बँधा हुआ निकल आया |प्रभु ने कहा ,“उसे खोल दो ,और जाने दो |” जितनों ने यह देखा उसमें से अनेकों ने प्रभु यीशु पर विश्वास किया |प्रभु ने यह प्रकट कर दिया कि वे जीवन और मृत्यु पर अधिकार रखते हैं ,और उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है |यही यीशु मसीह हमारे प्रभु और उद्दारकर्ता हैं |क्या अपने उन पर विश्वास किया |
बाइबल अध्यन
यूहन्ना 11:1-34 1 मरियम और उस की बहिन मारथा के गांव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार था। 2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पांवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाजर बीमार था। 3 सो उस की बहिनों ने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है। 4 यह सुनकर यीशु ने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो। 5 और यीशु मारथा और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता था। 6 सो जब उस ने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहां दो दिन और ठहर गया। 7 फिर इस के बाद उस ने चेलों से कहा, कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें। 8 चेलों ने उस से कहा, हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है? 9 यीशु ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता है, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है। 10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उस में प्रकाश नहीं। 11 उस ने ये बातें कहीं, और इस के बाद उन से कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं। 12 तब चेलों ने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा। 13 यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा था: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा। 14 तब यीशु ने उन से साफ कह दिया, कि लाजर मर गया है। 15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूं कि मैं वहां न था जिस से तुम विश्वास करो, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें। 16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें। 17 सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं। 18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था। 19 और बहुत से यहूदी मारथा और मरियम के पास उन के भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे। 20 सो मारथा यीशु के आने का समचार सुनकर उस से भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही। 21 मारथा ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता। 22 और अब भी मैं जानती हूं, कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा। 23 यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा। 24 मारथा ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा। 25 यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा। 26 और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है? 27 उस ने उस से कहा, हां हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूं, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है। 28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है। 29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई। 30 (यीशु अभी गांव में नहीं पहुंचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहां मारथा ने उस से भेंट की थी।) 31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये। 32 जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पांवों पर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता। 33 जब यीशु न उस को और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है? 34 उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : लाज़र किस गाँव मे रहता था ?
उ 1 : बैतनिय्याह गाँव मे लाज़र रहता था ।प्र 2 : उसकी बहिने कौन थी ?
उ 2 : उसकी बहिने मार्था और मरियम थी ।प्र 3 : प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को कैसे बताया कि लाज़र की मृत्यु हो गई ?
उ 3 : प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को यों कहा कि लाज़र सो गया है और प्रभु उसे जगाने जा रहें हैं ।प्र 4 : प्रभु यीशु से मिलने पर मार्था ने क्या कहा ?
उ 4 : प्रभु यीशु से मिलने पर मार्था ने यों कहा "हे प्रभु ,यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई कदापि ना मारता ।प्र 5 : प्रभु यीशु ने लाज़र को कैसे जीवित किया ?
उ 5 : प्रभु यीशु जब लाज़र की कब्र पर पहुंचे तब कब्र का पत्थर हटाने को बोला। पत्थर हटने के बादप्रभु ने स्वर्ग की तरफ देखकर अपने पिता का धन्यवाद किया और फिर बड़े शब्द से पुकार कर कहा ' हे लाज़र निकाल आ !" लाज़र कफन से बँधा निकाल आया ।संगीत
मन को लुभावन सामर्थ वचन,
ध्यान करूँ तब ऐसा वर दे,
हरेक दिलों की जरूरत जानकर,
जीवन जल बहा दे (2)
लाजर को जीवन दे दिया था वचन , दासों के कानों में भी, आज सुनादे जीवन का वचन, यह मुर्दे ललकारे। (2)
तेरा जन तुझ पर मजबूत बनने को
स्वर्गीय वर्षा भेज दे (जोर का वर्षा भेज दे )
दुख मिटाता तेरा मधुर वाणी,
जीवन का अमृत है । (2)