पाठ 19 : राजा शाऊल

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सारांश

परमेश्वर ने शमूएल से कहा ,“लोगों ने तेरा नहीं मेरा ही तिरस्कार किया है ।उन्हें राजा दे दो ,परन्तु यह चेतावनी भी दे देना कि यह उनके लिए अच्छा नहीं होगा।“शमूएल इस विषय में बहुत दुखी था ,परन्तु उसने इस्राएलियों की इच्छानुसार बिन्यामीन गोत्र के शऊल को इस्रएल का पहला राजा होने के लिए नियुक्त किया ।लोग अत्यंत प्रसन्न थे और चिल्लाए ,“राजा चिरंजीव रहे !” शाऊल ने अच्छी शुरूआत की |उसने अम्मोनियों और अन्य शत्रुओं पर इस्राएलियों को विजय दिलाई |परन्तु उसने परमेश्वर की सभी आज्ञाओं को नहीं माना । एक बार उसने बलिदान चढ़ाया ,जो केवल एक याजक को ही करना चाहिए था।और एक बार परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी कि सारे अमालेकियों को उनके पशुओं समेत नाश करो , परन्तू शऊल ने उस आज्ञा का पालन भी पूर्ण रूप से नहीं किया । उसनए उनके राजा अगाग को और अच्छे पशुओं को भी जीवित छोड़ा । जब शमूएल शाऊल के पास आया ,तो शाऊल ने कहा ,“तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले ,मैंने यहोवा की आज्ञा पूरी की है । “शमूएल ने पूछा ,“फिर भेड़ बकरियों का यह मिमियाना और गाय -बैलों का यह बंबाना जो मुझे सुनाई देता है ,यह क्यों हो रहा है ?“शाऊल ने उत्तर दिया ,“प्रजा के लोगों ने अच्छी से अच्छी भेड़ -बकरियों और गाय -बैलों को तेरे परमेश्वर यहोवा के लिए बलि करने को छोड़ दिया है ,और बाकी सब को तो हम ने सत्यानाश कर दिया है । “शमूएल ने उत्तर दिया ,“तूने ऐसा क्यों किया ?क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है ?सुन मानना तो बलि चढ़ाने से ,और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है । शाऊल ने मान लिया कि उसने पाप किया ,परन्तु उसका मन परिवर्तन नहीं हुआ था । परमेश्वर ने दूसरे राजा का अभिषेक करने के लिए शमूएल को भेजा ।

बाइबल अध्यन

1 शमूएल अध्याय 15 1 शमूएल ने शाऊल से कहा, यहोवा ने अपनी प्रजा इस्राएल पर राज्य करने के लिये तेरा अभिषेक करने को मुझे भेजा था; इसलिये अब यहोवा की बातें सुन ले। 2 सेनाओं का यहोवा यों कहता है, कि मुझे चेत आता है कि अमालेकियों ने इस्राएलियों से क्या किया; और जब इस्राएली मिस्र से आ रहे थे, तब उन्होंने मार्ग में उनका साम्हना किया। 3 इसलिये अब तू जा कर अमालेकियों को मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए सत्यानाश कर; क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बच्चा, क्या दूधपिउवा, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, क्या ऊंट, क्या गदहा, सब को मार डाल॥ 4 तब शाऊल ने लोगों को बुलाकर इकट्ठा किया, और उन्हें तलाईम में गिना, और वे दो लाख प्यादे, और दस हजार यहूदी पुरूष भी थे। 5 तब शाऊल ने अमालेक नगर के पास जा कर एक नाले में घातकों को बिठाया। 6 और शाऊल ने केनियों से कहा, कि वहां से हटो, अमालेकियों के मध्य में से निकल जाओ कहीं ऐसा न हो कि मैं उनके साथ तुम्हारा भी अन्त कर डालूं; क्योंकि तुम ने सब इस्राएलियों पर उनके मिस्र से आते समय प्रीति दिखाई थी। और केनी अमालेकियों के मध्य में से निकल गए। 7 तब शाऊल ने हवीला से ले कर शूर तक जो मिस्र के साम्हने है अमालेकियों को मारा। 8 और उनके राजा अगाग को जीवित पकड़ा, और उसकी सब प्रजा को तलवार से सत्यानाश कर डाला। 9 परन्तु अगाग पर, और अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, मोटे पशुओं, और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा था, उन पर शाऊल और उसकी प्रजा ने कोमलता की, और उन्हें सत्यानाश करना न चाहा; परन्तु जो कुछ तुच्छ और निकम्मा था उसको उन्होंने सत्यानाश किया॥ 10 तब यहोवा का यह वचन शमूएल के पास पहुंचा, 11 कि मैं शाऊल को राजा बना के पछताता हूं; क्योंकि उसने मेरे पीछे चलना छोड़ दिया, और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। तब शमूएल का क्रोध भड़का; और वह रात भर यहोवा की दोहाई देता रहा। 12 बिहान को जब शमूएल शाऊल से भेंट करने के लिये सवेरे उठा; तब शमूएल को यह बताया गया, कि शाऊल कर्म्मेल को आया था, और अपने लिये एक निशानी खड़ी की, और घूमकर गिलगाल को चला गया है। 13 तब शमूएल शाऊल के पास गया, और शाऊल ने उस से कहा, तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले; मैं ने यहोवा की आज्ञा पूरी की है। 14 शमूएल ने कहा, फिर भेड़-बकरियों का यह मिमियाना, और गय-बैलों का यह बंबाना जो मुझे सुनाई देता है, यह क्यों हो रहा है? 15 शाऊल ने कहा, वे तो अमालेकियों के यहां से आए हैं; अर्थात प्रजा के लोगों ने अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों को तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये बलि करने को छोड़ दिया है; और बाकी सब को तो हम ने सत्यानाश कर दिया है। 16 तब शमूएल ने शाऊल से कहा, ठहर जा! और जो बात यहोवा ने आज रात को मुझ से कही है वह मैं तुझ को बताता हूं। उसने कहा, कह दे। 17 शमूएल ने कहा, जब तू अपनी दृष्टि में छोटा था, तब क्या तू इस्राएली गोत्रियों का प्रधान न हो गया, और क्या यहोवा ने इस्राएल पर राज्य करने को तेरा अभिषेक नहीं किया? 18 और यहोवा ने तुझे यात्रा करने की आज्ञा दी, और कहा, जा कर उन पापी अमालेकियों को सत्यानाश कर, और जब तक वे मिट न जाएं, तब तक उन से लड़ता रह। 19 फिर तू ने किस लिये यहोवा की वह बात टालकर लूट पर टूट के वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है? 20 शाऊल ने शमूएल से कहा, नि:सन्देह मैं ने यहोवा की बात मानकर जिधर यहोवा ने मुझे भेजा उधर चला, और अमालेकियों को सत्यानाश किया है। 21 परन्तु प्रजा के लोग लूट में से भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, अर्थात सत्यानाश होने की उत्तम उत्तम वस्तुओं को गिलगाल में तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये बलि चढ़ाने को ले आए हैं। 22 शमूएल ने कहा, क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। 23 देख बलवा करना और भावी कहने वालों से पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतों और गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है। तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिये उसने तुझे राजा होने के लिये तुच्छ जाना है। 24 शाऊल ने शमूएल से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं ने तो अपनी प्रजा के लोगों का भय मानकर और उनकी बात सुनकर यहोवा की आज्ञा और तेरी बातों का उल्लंघन किया है। 25 परन्तु अब मेरे पाप को क्षमा कर, और मेरे साथ लौट आ, कि मैं यहोवा को दण्डवत करूं। 26 शमूएल ने शाऊल से कहा, मैं तेरे साथ न लौटूंगा; क्योंकि तू ने यहोवा की बात को तुच्छ जाना है, और यहोवा ने तुझे इस्राएल का राजा होने के लिये तुच्छ जाना है। 27 तब शमूएल जाने के लिये घूमा, और शाऊल ने उसके बागे की छोर को पकड़ा, और वह फट गया। 28 तब शमूएल ने उस से कहा आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझ से छीन लिया, और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से अच्छा है दे दिया है। 29 और जो इस्राएल का बलमूल है वह न तो झूठ बोलता और न पछताता है; क्योंकि वह मनुष्य नहीं है, कि पछताए। 30 उसने कहा, मैं ने पाप तो किया है; तौभी मेरी प्रजा के पुरनियों और इस्राएल के साम्हने मेरा आदर कर, और मेरे साथ लौट, कि मैं तेरे परमेश्वर यहोवा को दण्डवत करूं। 31 तब शमूएल लौटकर शाऊल के पीछे गया; और शाऊल ने यहोवा का दण्डवत की। 32 तब शमूएल ने कहा, अमालेकियों के राजा आगाग को मेरे पास ले आओ। तब आगाग आनन्द के साथ यह कहता हुआ उसके पास गया, कि निश्चय मृत्यु का दु:ख जाता रहा। 33 शमूएल ने कहा, जैसे स्त्रियां तेरी तलवार से निर्वंश हुई हैं, वैसे ही तेरी माता स्त्रियों में निर्वंश होगी। तब शमूएल ने आगाग को गिलगाल में यहोवा के साम्हने टुकड़े टुकड़े किया॥ 34 तब शमूएल रामा को चला गया; और शाऊल अपने नगर गिबा को अपने घर गया। 35 और शमूएल ने अपने जीवन भर शाऊल से फिर भेंट न की, क्योंकि शमूएल शाऊल के लिये विलाप करता रहा। और यहोवा शाऊल को इस्राएल का राजा बनाकर पछताता था॥

प्रश्न-उत्तर

प्र 1 :राजाओं से पहले इस्राएल पर कौन शासन करते थे?उ 1 : राजाओं से पहले इस्राएल पर न्यायी लोग शासन करते थे ।
प्र 2 : इस्राएलियों ने राजा की माँग क्यों की ?उ 2 : इस्राएलियों ने राजा की माँग इसलिये की क्योंकि उनके चारों ओर रहने राज्यों मे राजा राज्य करते थे ।
प्र 3 : इस्राएल का पहला राजा कौन था ?उ 3 : इस्राएल का पहला राजा बिन्यामीन गोत्र का शाऊल था।
प्र 4 : शाऊल का पाप क्या था ?उ 4 : शाऊल का पाप यह था कि उसने परमेश्वर की आज्ञा को पूर्ण रूप से नहीं माना । परमेश्वर ने उसे सारे अमालेकियों को उनके पशुओं समेत नाश करने को कहा था लकिन उसने राजा अगाग और अच्छे पशुओं को जीवित छोड़ा।
प्र 5 : उसे क्या सज़ा मिली ?उ 5 : शाऊल को यह सज़ा मिली कि उसे परमेश्वर ने राजा के पद से हटा दिया ।