पाठ 1 : नूह धार्मिकता का प्रचारक

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सारांश

नूह के दिनों में मनुष्य बहुत ही दुष्ट थे | हम जानते हैं कि परमेशवर पाप से घृणा करते हैं |धर्मी परमेशवर पाप को दंड दिए बगैर नहीं रह सकते |उन्होंने मनुष्यजाति को बाढ़ से नष्ट करने का निशचय किया |परमेशवर ने सब मनुष्यों में मात्र एक ही व्यक्ति को धर्मी पाया , और वह था- नूह |बाइबल में लिखा है ,“परमेशवर के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रहे | ( उत्पति 6-8 )|नूह के विषय में यह भी कहा गया है, “अपने विश्वास के कारण उसने संसार को दोषी ठहराया , और उस धर्म का वारिस हुआ , जो विश्वाससे होता है|"(इब्रा .11:7)|

परमेशवर ने नूह से कहा ,“मनुष्यों के उपद्रव से पृथ्वी भर गई है , इसलिए मैं मनुष्यों और पृथ्वी, दोनों को नष्ट करूंगा | इसलिए तू अपने लिए गोपेर वृक्ष की लकड़ी का जहाज बना, और उसमे कमरे बना और उस पर अंदर और बाहर राल लगाना | " परमेश्वर ने नूह को उस जहाज का नाप भी दिया | 450 फुट लंबा’ 75 फुट चौड़ा और 45 फुट ऊंचा बनाया जाना था | जहाज को 3 खण्डों में विभाजित किया जाना था’, निचला, मध्य व ऊपरी | उसमें एक खिड़की और एक द्वार बनाया जाना था |

नूह ने ठीक वही किया जो परमेश्वर ने उससे कहा था | जहाज बनाने में नूह को लगभग सौ वर्ष लगे | और वह लोगों से प्रचार करता रहा, और अनेवाली बाढ़ के बारे में छितौनी देता रहा, ताकि वे जहाज में प्रवेश करके बच सकें | फिर भी किसी ने विश्वास नहीं किया |

नूह की पत्नी और तीन विवाहित पुत्र भी थे | जब जहाज बनकर तय्यार हो गया, तब सही समय पर परमेश्वर ने नूह को परिवार समेत जहाज में जाने की आज्ञा दी, और हर एक जाती के पक्षी और जानवरों के जोड़े को अपने साथ ले जाने को कहा | बलिदान के योग्य शुद्ध जानवरों की सात सात जोड़े जहाज में गए|

सबके अंदर जाने के पश्चात स्वयं परमेश्वर ने द्वार बंद कर किया | एक सप्ताह के बाद वर्षा होने लगी | उस समय तक लोगों के लिए, बारिश एक अनजान बात थी, क्योंकि पृथ्वी से जो कोहरा उठता था , उसी से पृथ्वी सिंच जाती थी | 40 दिन और 40 रात निरंतर वर्षा होती रही और पूरी पृथ्वी पानी से भर गई |पृथ्वी पर चलने वाले सभी प्राणी मर गए|परन्तु जहाज पानी पर सुरक्षित तैरता रहा |जहाज के अंदर सभी सुरक्षित थे |बाढ़ का पानी 150 दिन तक पृथ्वी पर भरा रहा |

परमेश्वर ने नूह को और अन्य सभी प्राणियों को स्मरण रखा |बाढ़ का पानी कम होने लगा |अंतत : परमेश्वर ने नूह को जहाज से बाहर आने को कहा |वह अपनी पत्नी , अपने तीन बेटों और उनकी पत्नियों समेत बाहर आया और अपने साथ सभी पशु - पक्षियों को भी लाया |धन्यवादी ह्रदय से नूह ने परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाया |

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति अध्याय 6 1 फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्न हुई, 2 तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिस को चाहा उन से ब्याह कर लिया। 3 और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी। 4 उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीन काल से प्रचलित है। 5 और यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है। 6 और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। 7 तब यहोवा ने सोचा, कि मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। 8 परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही॥ 9 नूह की वंशावली यह है। नूह धर्मी पुरूष और अपने समय के लोगों में खरा था, और नूह परमेश्वर ही के साथ साथ चलता रहा। 10 और नूह से, शेम, और हाम, और येपेत नाम, तीन पुत्र उत्पन्न हुए। 11 उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। 12 और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी। 13 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिये मैं उन को पृथ्वी समेत नाश कर डालूंगा। 14 इसलिये तू गोपेर वृक्ष की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उस में कोठरियां बनाना, और भीतर बाहर उस पर राल लगाना। 15 और इस ढंग से उसको बनाना: जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊंचाई तीस हाथ की हो। 16 जहाज में एक खिड़की बनाना, और इसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक अलंग में एक द्वार रखना, और जहाज में पहिला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना। 17 और सुन, मैं आप पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं: और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएंगे। 18 परन्तु तेरे संग मैं वाचा बान्धता हूं: इसलिये तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। 19 और सब जीवित प्राणियों में से, तू एक एक जाति के दो दो, अर्थात एक नर और एक मादा जहाज में ले जा कर, अपने साथ जीवित रखना। 20 एक एक जाति के पक्षी, और एक एक जाति के पशु, और एक एक जाति के भूमि पर रेंगने वाले, सब में से दो दो तेरे पास आएंगे, कि तू उन को जीवित रखे। 21 और भांति भांति का भोज्य पदार्थ जो खाया जाता है, उन को तू ले कर अपने पास इकट्ठा कर रखना सो तेरे और उनके भोजन के लिये होगा। 22 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।

अध्याय 7 1 और यहोवा ने नूह से कहा, तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मैं ने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में धर्मी देखा है। 2 सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात सात, अर्थात नर और मादा लेना: पर जो पशु शुद्ध नहीं है, उन में से दो दो लेना, अर्थात नर और मादा: 3 और आकाश के पक्षियों में से भी, सात सात, अर्थात नर और मादा लेना: कि उनका वंश बचकर सारी पृथ्वी के ऊपर बना रहे। 4 क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं हैं सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा। 5 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। 6 नूह की अवस्था छ: सौ वर्ष की थी, जब जलप्रलय पृथ्वी पर आया। 7 नूह अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जलप्रलय से बचने के लिये जहाज में गया। 8 और शुद्ध, और अशुद्ध दोनो प्रकार के पशुओं में से, पक्षियों, 9 और भूमि पर रेंगने वालों में से भी, दो दो, अर्थात नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी। 10 सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। 11 जब नूह की अवस्था के छ: सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्तरहवां दिन आया; उसी दिन बड़े गहिरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए। 12 और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृथ्वी पर होती रही। 13 ठीक उसी दिन नूह अपने पुत्र शेम, हाम, और येपेत, और अपनी पत्नी, और तीनों बहुओं समेत, 14 और उनके संग एक एक जाति के सब बनैले पशु, और एक एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक एक जाति के सब पृथ्वी पर रेंगने वाले, और एक एक जाति के सब उड़ने वाले पक्षी, जहाज में गए। 15 जितने प्राणियों में जीवन की आत्मा थी उनकी सब जातियों में से दो दो नूह के पास जहाज में गए। 16 और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए। तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया। 17 और पृथ्वी पर चालीस दिन तक प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया जिस से जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृथ्वी पर से ऊंचा उठ गया। 18 और जल बढ़ते बढ़ते पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर ऊपर तैरता रहा। 19 और जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहां तक कि सारी धरती पर जितने बड़े बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। 20 जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए 21 और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृथ्वी पर सब चलने वाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी मे बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए। 22 जो जो स्थल पर थे उन में से जितनों के नथनों में जीवन का श्वास था, सब मर मिटे। 23 और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, जो जो भूमि पर थे, सो सब पृथ्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए। 24 और जल पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा॥

अध्याय 8 1 और परमेश्वर ने नूह की, और जितने बनैले पशु, और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभों की सुधि ली: और परमेश्वर ने पृथ्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा। 2 और गहिरे समुद्र के सोते और आकाश के झरोखे बंद हो गए; और उससे जो वर्षा होती थी सो भी थम गई। 3 और एक सौ पचास दिन के पशचात जल पृथ्वी पर से लगातार घटने लगा। 4 सातवें महीने के सत्तरहवें दिन को, जहाज अरारात नाम पहाड़ पर टिक गया। 5 और जल दसवें महीने तक घटता चला गया, और दसवें महीने के पहिले दिन को, पहाड़ों की चोटियाँ दिखलाई दीं। 6 फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात नूह ने अपने बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोल कर, एक कौआ उड़ा दिया: 7 वह जब तक जल पृथ्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर उधर फिरता रहा। 8 फिर उसने अपने पास से एक कबूतरी को उड़ा दिया, कि देखें कि जल भूमि से घट गया कि नहीं। 9 उस कबूतरी को अपने पैर के तले टेकने के लिये कोई आधार ने मिला, सो वह उसके पास जहाज में लौट आई: क्योंकि सारी पृथ्वी के ऊपर जल ही जल छाया था तब उसने हाथ बढ़ा कर उसे अपने पास जहाज में ले लिया। 10 तब और सात दिन तक ठहर कर, उसने उसी कबूतरी को जहाज में से फिर उड़ा दिया। 11 और कबूतरी सांझ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जलपाई का एक नया पत्ता है; इस से नूह ने जान लिया, कि जल पृथ्वी पर घट गया है। 12 फिर उसने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौट कर न आई। 13 फिर ऐसा हुआ कि छ: सौ एक वर्ष के पहिले महीने के पहिले दिन जल पृथ्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोल कर क्या देखा कि धरती सूख गई है। 14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृथ्वी पूरी रीति से सूख गई॥ 15 तब परमेश्वर ने, नूह से कहा, 16 तू अपने पुत्रों, पत्नी, और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ। 17 क्या पक्षी, क्या पशु, क्या सब भांति के रेंगने वाले जन्तु जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, जितने शरीरधारी जीवजन्तु तेरे संग हैं, उस सब को अपने साथ निकाल ले आ, कि पृथ्वी पर उन से बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृथ्वी पर फैल जाएं। 18 तब नूह, और उसके पुत्र, और पत्नी, और बहुएं, निकल आईं: 19 और सब चौपाए, रेंगने वाले जन्तु, और पक्षी, और जितने जीवजन्तु पृथ्वी पर चलते फिरते हैं, सो सब जाति जाति करके जहाज में से निकल आए। 20 तब नूह ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ कुछ ले कर वेदी पर होमबलि चढ़ाया। 21 इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, कि मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूंगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उन को फिर कभी न मारूंगा। 22 अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्ड और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएंगे॥

2 पतरस- 2:3 और वे लोभ के लिये बातें गढ़ कर तुम्हें अपने लाभ का कारण बनाएंगे, और जो दण्ड की आज्ञा उन पर पहिले से हो चुकी है, उसके आने में कुछ भी देर नहीं, और उन का विनाश ऊंघता नहीं।

प्रश्न-उत्तर

प्र 1: परमेश्वर ने जलप्रलय क्यों भेजा ?उ 1: परमेश्वर ने जलप्रलय इसलिये भेजा क्योंकि मनुष्यों के उपद्रव से प्रिथी भर गई थी और परमेश्वर मनुष्यों और पृथ्वी दोनों को नष्ट करना चाहता था ।
प्र 2 : जहाज़ मे कितने लोग थे ?उ 2 : जहाज़ मे आठ लोग थे ।
प्र 3 : अन्य सभी लोग क्यों नाश हुए ?उ 3 : अन्य सभी लोग इसलिया नाश हुए क्योंकि उन्होंने नूह का प्रचार और आने वाली बाढ़ के बारे मे चेतावनी देता था किसी ने विश्वास नहीं किया ।
प्र 4 : 'एक द्वार' से हम क्या सीखते हैं ?उ 4 : 'एक द्वार' से हम यह सीखते हैं कि उद्धार का एक मात्र मार्ग प्रभु यीशु मसीह है ।
प्र 5 : भविष्य मे आने वाले न्याय से हम कैसे बच सकते है?उ 5 : भविष्य मे आने वाले न्याय से हम इस प्रकार बच सकतें हैं यदि हम परमेश्वर के वचन पर विश्वास करेंगें और परमेश्वर की बातों की पूरी आज्ञा पालन कारेंगें ।

संगीत

चट्टान पर बुद्धिमान ने बनाया अपना घर (3) और जोर से बारिश आई जोर से बारिश आई और तूफान भी उठा (3) और बुद्धिमान का घर स्थिर रहा ।

बालू पर मूर्ख ने बनाया अपना घर (3) और जोर से बारिश आई जोर से बारिश आई और तूफान भी उठा (3) और मूर्ख का घर गिर पड़ा ।

जीवन की नीव यीशु पर रखनेवाले (3) आंधी तूफ़ानों में नही गिरेगा (2) और यदि अपने दिल में यीशु को आने दो (2) तो स्वर्गीय मिरास पाएंगे

लड़के लड़कियों को स्वर्ग जाना चाह है(3) अपने दिल में यीशु को आने दो (2)