पाठ 7 : जलप्रलय

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सारांश

आज हम सीखेगें उस बड़े बाढ़ के विषय में जो परमेश्वर ने पृथ्वी पर लोगों की दुष्टता के कारण लाया। हम सीख चुकें हैं कि कैन की सन्तान बढ़ती गई और उन्होंने अपने लिए नगर बसाए । वे परमेश्वर से प्रीति नहीं रखते थे और दुष्टता के लिए ही जीवन व्यतीत करते थे। शेत की सन्तान भी बढ़ती गई और पहले तो परमेश्वर के मार्ग पर चलते थे परन्तु थोड़े समय के बाद वे भी परमेश्वर से मुड़ गए। सारे जगत में इतनी बुराई भर गई थी कि परमेश्वर लोगों को सजा दिए बगैर रह नहीं सकते थे। पाप का अन्त हमेशा मृत्यु ही होता है। उन दिनों के लोगों के बीच नूह रहता था, जो धर्मी था और परमेश्वर के साथ चलता था। वह हनोक के परिवार से था। परमेश्वर ने उस से कहा कि वह उस पीढ़ी के लोगों को एक बड़े बाढ़ के द्वारा नाश करनेवाला है। परन्तु नूह पर परमेश्वर की कृपा दृष्टि हुई। परमेश्वर ने नूह से कहा कि वह तीन छत वाला जहाज बनाए, जिसमें एक खिड़की और एक द्वार हो। नूह ने जहाज को परमेश्वर की आज्ञा अनुसार बनाकर उसके बाहर और भीतर पानी से बचाने के लिए उस पर राल लगाया। नूह द्वारा जहाज बनाने के समय परमेश्वर ने लोगों को मन फिराव का भरपुर समय दिया। जहाज बनाते हुए नूह ने करीब सौ वर्षों तक मन फिराव का प्रचार किया। उसने लोगों को चेताया कि परमेश्वर धर्मी है और उनकी दुष्टता का परिणाम उनका विनाश होगा। लेकिन उसकी बातों पर किसी ने ध्यान देकर मन नहीं फिराया। परमेश्वर के अनुगह्र का समय समाप्त हो गया। मतुशेलह की आयु सब से अधिक थी, परन्तु उसके पिता ने कहा था, “उसके मरने पर वैसा होगा ” अब उसके मरने का समय आ गया था, जहाज तैयार हो चुका था और न्याय आनेवाला था। परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी कि सभी प्राणियों को दो दो करके जहाज में लेना, ( शुद्ध पशु और पक्षियों को सात सात कर के लेने को कहा ) उसे सब के लिए भोजन का प्रबन्ध करने को कहा गया। हर एक प्राणी नूह के पास आए और जहाज में चले गए। तब नूह अपने तीनों बेटे और बहुओं के साथ जहाज मे गया, और परमेश्वर ने द्वार बन्द किया। नूह के बेटों के नाम शेम, हाम और यापेत थे । उस समय नुह की आयु 600 वर्ष की थी। सात दिनों के बाद भारी वर्षा होने लगी और चालीस दिनों तक होती रही। गहरे जल के सोते भी खोले गए।आकाश के झरोखे भी खुल गए। जल से पृथ्वी भर गई और जहाज पानी मे तैरते हुए उठने लगा । पहाड़ भी पानी में डूब गए और हर जीवित प्राणी मर गए । मनुष्यों के साथ पशु, पक्षी और रेंगने वाले जन्तु भी मर गए। एक सौ पचास दिनों तक बाढ़ का असर रहा। तब परमेश्वर ने नूह को याद किया और वायु चलाई। पानी कम होने लगा और जहाज अरारात पहाड़ पर ठहरा । नूह ने कौवे को बाहर भेजा जो पानी के सूखने तक आना-जाना करता रहा। फिर नूह ने कबुतरी को भेजा परन्तु पैर रखने के लिए सूखी भूमि न पाकर वह फिर जहाज में लौट आई। सात दिनों के पश्चात नूह ने उसे फिर भेजा वह सांझ को ही लौटी ओर उसकी चोंच में जलपाई का पत्ता था। इस से नुह ने जाना की पेड़ पानी से बाहर है। सात दिनों के बाद उसने कबुतरी को फिर भेजा, इस बार वह नहीं लौटी। तब नुह ने जहाज को खोलकर बाहर देखा। उसने सूखी भूमि को देखा, परन्तु परमेश्वर से बाहर जाने की अनुमति पाने के लिए उसे आठ सप्ताह तक रुकना पड़ा । तब वह अपने परिवार और सारे प्राणियों समेत बाहर आया। ताकि वे सब पृथ्वी पर फिर बढ़ सके। बाहर निकलकर सब से पहले नूह ने एक वेदी बनाई और शुद्ध प्राणियों का बलिदान चढ़ाया। इसके द्वारा वह बचानेवाले परमेश्वर की आराधना कर रहा था। यद्यपि नूह एक धर्मी व्याक्ति था और कई सालों से परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य था, वह जानता था कि बलि का लहू बहाए बगैर वह परमेश्वर की आराधना नहीं कर सकता है । परमेश्वर ने नूह की भेंट को स्वीकार किया और वादा किया कि फिर कभी पृथ्वी को जलप्रलय से नाश नहीं करेगा। और अपने इस वाचा के चिन्ह के रुप में इन्द्रधनुष को रखा।

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति 6 1 फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्न हुई, 2 तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिस को चाहा उन से ब्याह कर लिया। 3 और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी। 4 उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीन काल से प्रचलित है। 5 और यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है। 6 और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। 7 तब यहोवा ने सोचा, कि मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। 8 परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही॥ 9 नूह की वंशावली यह है। नूह धर्मी पुरूष और अपने समय के लोगों में खरा था, और नूह परमेश्वर ही के साथ साथ चलता रहा। 10 और नूह से, शेम, और हाम, और येपेत नाम, तीन पुत्र उत्पन्न हुए। 11 उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। 12 और परमेश्वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी। 13 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिये मैं उन को पृथ्वी समेत नाश कर डालूंगा। 14 इसलिये तू गोपेर वृक्ष की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उस में कोठरियां बनाना, और भीतर बाहर उस पर राल लगाना। 15 और इस ढंग से उसको बनाना: जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊंचाई तीस हाथ की हो। 16 जहाज में एक खिड़की बनाना, और इसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक अलंग में एक द्वार रखना, और जहाज में पहिला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना। 17 और सुन, मैं आप पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं: और सब जो पृथ्वी पर हैं मर जाएंगे। 18 परन्तु तेरे संग मैं वाचा बान्धता हूं: इसलिये तू अपने पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। 19 और सब जीवित प्राणियों में से, तू एक एक जाति के दो दो, अर्थात एक नर और एक मादा जहाज में ले जा कर, अपने साथ जीवित रखना। 20 एक एक जाति के पक्षी, और एक एक जाति के पशु, और एक एक जाति के भूमि पर रेंगने वाले, सब में से दो दो तेरे पास आएंगे, कि तू उन को जीवित रखे। 21 और भांति भांति का भोज्य पदार्थ जो खाया जाता है, उन को तू ले कर अपने पास इकट्ठा कर रखना सो तेरे और उनके भोजन के लिये होगा। 22 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।

अध्याय 7 1 और यहोवा ने नूह से कहा, तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मैं ने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि में धर्मी देखा है। 2 सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात सात, अर्थात नर और मादा लेना: पर जो पशु शुद्ध नहीं है, उन में से दो दो लेना, अर्थात नर और मादा: 3 और आकाश के पक्षियों में से भी, सात सात, अर्थात नर और मादा लेना: कि उनका वंश बचकर सारी पृथ्वी के ऊपर बना रहे। 4 क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं हैं सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा। 5 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। 6 नूह की अवस्था छ: सौ वर्ष की थी, जब जलप्रलय पृथ्वी पर आया। 7 नूह अपने पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जलप्रलय से बचने के लिये जहाज में गया। 8 और शुद्ध, और अशुद्ध दोनो प्रकार के पशुओं में से, पक्षियों, 9 और भूमि पर रेंगने वालों में से भी, दो दो, अर्थात नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी। 10 सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। 11 जब नूह की अवस्था के छ: सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्तरहवां दिन आया; उसी दिन बड़े गहिरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए। 12 और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृथ्वी पर होती रही। 13 ठीक उसी दिन नूह अपने पुत्र शेम, हाम, और येपेत, और अपनी पत्नी, और तीनों बहुओं समेत, 14 और उनके संग एक एक जाति के सब बनैले पशु, और एक एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक एक जाति के सब पृथ्वी पर रेंगने वाले, और एक एक जाति के सब उड़ने वाले पक्षी, जहाज में गए। 15 जितने प्राणियों में जीवन की आत्मा थी उनकी सब जातियों में से दो दो नूह के पास जहाज में गए। 16 और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए। तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया। 17 और पृथ्वी पर चालीस दिन तक प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया जिस से जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृथ्वी पर से ऊंचा उठ गया। 18 और जल बढ़ते बढ़ते पृथ्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर ऊपर तैरता रहा। 19 और जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहां तक कि सारी धरती पर जितने बड़े बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। 20 जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए 21 और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृथ्वी पर सब चलने वाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी मे बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए। 22 जो जो स्थल पर थे उन में से जितनों के नथनों में जीवन का श्वास था, सब मर मिटे। 23 और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, जो जो भूमि पर थे, सो सब पृथ्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए। 24 और जल पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा॥

प्रश्न-उत्तर

प्र 1 : परमेश्वर ने जलप्रलय क्यों भेजा ?उ 1 : मनुष्य के पापों की सज़ा देने ।
प्र 2 : नूह और उसका परिवार उस भयंकर परमेश्वर से कैसे बचे ?उ 2 : नूह और उसका परिवार जहाज मे बैठने के कारण उस भयंकर जलप्रलय से बच गए ।
प्र 3 : जहाज में कितने लोग गए ? वे कौन कौन थे ?उ 3 : जहाज मे आठ लोग थे । वे थे नूह और उसकी पत्नी ,नूह के तीन पुत्र : शेंम ,हाम और येपेत और उन तीनों पुत्रों की पत्नियाँ ।
प्र 4 : क्या हुआ जब बाढ़ आई ?उ 4 : जब बाढ़ आई तो सारे जीवित प्राणी मर मिटे ।
प्र 5 : क्या हुआ जब बाढ़ से नष्ट नहीं करेंगे यह परमेश्वर का वायदा था , और इसके लिए परमेश्वर ने क्या चिह्न दिया ?उ 5 : परमेश्वर का यह वायदा है कि पृथ्वी को दुबारा बाढ से नष्ट नहीं करेंगे और इसके लिये परमेश्वर ने मेघ धनुष का चिन्ह दिया ।

संगीत

नूह तुम जहाज को जल्दी तैयार करो, भयंकर बारिश बरसेगी जल्दी। आज्ञा मानी उस भक्त ने जहाज को बनाया स्वयं ही ने, जहाज बनाया ठक-ठक-ठक बारिश बरसी टप-टप-टप पानी भर गया ऊपर तक चिल्लाए लोग सब हा-हा-हा नूह-नूह दरवाजा खोल (2) परमेश्वर ने जहाज का दरवाजा बंद किया, नाश हुए ना आज्ञा मानने वाले। उद्धार का जहाज मसीह यीशु जल्दी तू आजा उसी के पास बुला रहा है सब लोगों को उद्धार के जहाज में प्रवेश करने। (2)