पाठ 39 : क्रूस की मृत्यु
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सारांश
हम देख चुके हैं कि प्रभु यीशु को परमेश्वर ने बालक के रुप मे जन्म लेने भेजा था। वह मनुष्य बनकर मनुष्यों के बीच पिता की इच्छा पुरी करते हुए रहा। उन्होने लोगों के बीच अनेक अद्धभुत कार्य किए, जैसे बिमारों को चंगा करना और मुर्दों को जिलाना। इन कार्यों के द्वारा उसने परमेश्वर का प्रेम और सामर्थ प्रगट किया। बहुतो ने उस पर विश्वास किया। वे जानते थे कि वह प्रतिज्ञा किया गया मसीहा है। एक भीड हमेशा प्रभु यीशु के पीछे रहती थी जिसके कारण यहूदियों के प्रधान और महायाजकों को जलन हुई उन्होने प्रभु पर दोष लगाना चाहा पर ऐसा कर न सके। इस कारण उन्हे और भी जलन और क्रोध हुआ। प्रभु के चेलों मे से एक लालची था, उसका नाम यहूदा था। उसने प्रधानों को प्रभु को पकडवाने मे सहायता करने का वादा किया। प्रधानों ने उसे तीस चान्दी के सिक्के देने का वादा किया। वह उनकी बात मानकर मौका देखने लगा कि जब प्रभु भीड के साथ नहीं होंगे ,वह उसे पकडवाऐगा। देर रात जब प्रभु गतसमनी के बगीचे में प्रार्थना कर रहा था और उसके चेले करीब मे सो रहे थे, महायाजक की ओर से एक सैनिकों की टोली मशाले, और हथियार लेकर उसे पकडने यहूदा के साथ वहां आए। यहूदा ने आकर प्रभु यीशु को चूमा ताकि वे जान सके कि उन्हे किसे पकडना चाहिए। यहूदियों के नेताओ ने यीशु से पूछताछ की
और अन्त मे पिलातुस ने भी यीशु की पुछताछ की। उसें प्रभु मे कोई दोष न मिला ।फिर भी यहूदी अगुवों के दबाव के कारण उसे प्रभु यीशु को दोषी ठहराकर क्रसु की मृत्यु का दण्ड सुनाना पडा। सैनिकों ने प्रभु के सिर पर कांटों का मुकुट रखा और उसका मजाक उडाया। उन्होने उसे बैजनी वस्त्र पहनाया और बार बार उसके पास जाकर कहने लगे, ” यहूदियो के राजा की जय!“ और उन्होंने उसके मंहु पर चांटे मारे। सुबह नौ बजे के करीब प्रभु को गोलगोता पर क्रूस पर चढाने के लिए ले गए। उसें फिर अपने ही ही वस्त्र पहनाए गए। उसने अपना क्रूस खुद उठाया। जब वे खोपडी नामक स्थान पहुंचे उन्होंने क्रूस उसे और उसके साथ और दो अपराधियों को पर क्रूस चढाया, एक उसके दहिने ओर एक उसके बाएं ओर यीशु उनके बीच। बारह बजे एक बडा अंधकार छा गया और तीन बजे तक रहा। तब प्रभु ने बडे आवाज मे कहा, ”मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, तुने मुझे क्यों छोड दिया?“ अन्त मे उसने कहा,” पिता मै अपना प्राण तुझे सौपंता हूं । ं “ इस तरह प्रभु यीशु सब के लिए मर गया।
बाइबल अध्यन
मत्ती अध्याय 26 1 जब यीशु ये सब बातें कह चुका, तो अपने चेलों से कहने लगा। 2 तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह का पर्व्व होगा; और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिये पकड़वाया जाएगा। 3 तब महायाजक और प्रजा के पुरिनए काइफा नाम महायाजक के आंगन में इकट्ठे हुए। 4 और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें। 5 परन्तु वे कहते थे, कि पर्व्व के समय नहीं; कहीं ऐसा न हो कि लोगों में बलवा मच जाए। 6 जब यीशु बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर में था। 7 तो एक स्त्री संगमरमर के पात्र में बहुमोल इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया। 8 यह देखकर, उसके चेले रिसयाए और कहने लगे, इस का क्यों सत्यनाश किया गया? 9 यह तो अच्छे दाम पर बिक कर कंगालों को बांटा जा सकता था। 10 यह जानकर यीशु ने उन से कहा, स्त्री को क्यों सताते हो? उस ने मेरे साथ भलाई की है। 11 कंगाल तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदैव न रहूंगा। 12 उस ने मेरी देह पर जो यह इत्र उण्डेला है, वह मेरे गाढ़े जाने के लिये किया है 13 मैं तुम से सच कहता हूं, कि सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहां उसके इस काम का वर्णन भी उसके स्मरण में किया जाएगा। 14 तब यहूदा इस्करियोती नाम बारह चेलों में से एक ने महायाजकों के पास जाकर कहा। 15 यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूं, तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस चान्दी के सिक्के तौलकर दे दिए। 16 और वह उसी समय से उसे पकड़वाने का अवसर ढूंढ़ने लगा॥ 17 अखमीरी रोटी के पर्व्व के पहिले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे; तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें? 18 उस ने कहा, नगर में फुलाने के पास जाकर उस से कहो, कि गुरू कहता है, कि मेरा समय निकट है, मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहां पर्व्व मनाऊंगा। 19 सो चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी, और फसह तैयार किया। 20 जब सांझ हुई, तो वह बारहों के साथ भोजन करने के लिये बैठा। 21 जब वे खा रहे थे, तो उस ने कहा, मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा। 22 इस पर वे बहुत उदास हुए, और हर एक उस से पूछने लगा, हे गुरू, क्या वह मैं हूं? 23 उस ने उत्तर दिया, कि जिस ने मेरे साथ थाली में हाथ डाला है, वही मुझे पकड़वाएगा। 24 मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य के लिये शोक है जिस के द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है: यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिये भला होता। 25 तब उसके पकड़वाने वाले यहूदा ने कहा कि हे रब्बी, क्या वह मैं हूं? 26 उस ने उस से कहा, तू कह चुका: जब वे खा रहे थे, तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष मांग कर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, लो, खाओ; यह मेरी देह है। 27 फिर उस ने कटोरा लेकर, धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, तुम सब इस में से पीओ। 28 क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है। 29 मैं तुम से कहता हूं, कि दाख का यह रस उस दिन तक कभी न पीऊंगा, जब तक तुम्हारे साथ अपने पिता के राज्य में नया न पीऊं॥ 30 फिर वे भजन गाकर जैतून पहाड़ पर गए॥ 31 तब यीशु ने उन से कहा; तुम सब आज ही रात को मेरे विषय में ठोकर खाओगे; क्योंकि लिखा है, कि मैं चरवाहे को मारूंगा; और झुण्ड की भेड़ें तित्तर बित्तर हो जाएंगी। 32 परन्तु मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊंगा। 33 इस पर पतरस ने उस से कहा, यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाएं तो खाएं, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊंगा। 34 यीशु ने उस से कहा, मैं तुम से सच कहता हूं, कि आज ही रात को मुर्गे के बांग देने से पहिले, तू तीन बार मुझ से मुकर जाएगा। 35 पतरस ने उस से कहा, यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो, तौभी, मैं तुझ से कभी न मुकरूंगा: और ऐसा ही सब चेलों ने भी कहा॥ 36 तब यीशु ने अपने चेलों के साथ गतसमनी नाम एक स्थान में आया और अपने चेलों से कहने लगा कि यहीं बैठे रहना, जब तक कि मैं वहां जाकर प्रार्थना करूं। 37 और वह पतरस और जब्दी के दोनों पुत्रों को साथ ले गया, और उदास और व्याकुल होने लगा। 38 तब उस ने उन से कहा; मेरा जी बहुत उदास है, यहां तक कि मेरे प्राण निकला चाहते: तुम यहीं ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो। 39 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो। 40 फिर चेलों के पास आकर उन्हें सोते पाया, और पतरस से कहा; क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके? 41 जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। 42 फिर उस ने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की; कि हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो। 43 तब उस ने आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्योंकि उन की आंखें नींद से भरी थीं। 44 और उन्हें छोड़कर फिर चला गया, और वही बात फिर कहकर, तीसरी बार प्रार्थना की। 45 तब उस ने चेलों के पास आकर उन से कहा; अब सोते रहो, और विश्राम करो: देखो, घड़ी आ पहुंची है, और मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। 46 उठो, चलें; देखो, मेरा पकड़वाने वाला निकट आ पहुंचा है॥ 47 वह यह कह ही रहा था, कि देखो यहूदा जो बारहों में से एक था, आया, और उसके साथ महायाजकों और लोगों के पुरनियों की ओर से बड़ी भीड़, तलवारें और लाठियां लिए हुए आई। 48 उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें यह पता दिया था कि जिस को मैं चूम लूं वही है; उसे पकड़ लेना। 49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा; हे रब्बी नमस्कार; और उस को बहुत चूमा। 50 यीशु ने उस से कहा; हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले। तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले, और उसे पकड़ लिया। 51 और देखो, यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उस का कान उड़ा दिया। 52 तब यीशु ने उस से कहा; अपनी तलवार काठी में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे। 53 क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूं, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? 54 परन्तु पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, क्योंकर पूरी होंगी? 55 उसी घड़ी यीशु ने भीड़ से कहा; क्या तुम तलवारें और लाठियां लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। 56 परन्तु यह सब इसलिये हुआ है, कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन के पूरे हों: तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए॥ 57 और यीशु के पकड़ने वाले उस को काइफा नाम महायाजक के पास ले गए, जहां शास्त्री और पुरिनए इकट्ठे हुए थे। 58 और पतरस दूर से उसके पीछे पीछे महायाजक के आंगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को प्यादों के साथ बैठ गया। 59 महायाजक और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध में झूठी गवाही की खोज में थे। 60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई। 61 अन्त में दो जनों ने आकर कहा, कि उस ने कहा है; कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूं और उसे तीन दिन में बना सकता हूं। 62 तब महायाजक ने खड़े होकर उस से कहा, क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं? परन्तु यीशु चुप रहा: महायाजक ने उस से कहा। 63 मैं तुझे जीवते परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे। 64 यीशु ने उस से कहा; तू ने आप ही कह दिया: वरन मैं तुम से यह भी कहता हूं, कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे। 65 तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, इस ने परमेश्वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन? 66 देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! तुम क्या समझते हो? उन्होंने उत्तर दिया, यह वध होने के योग्य है। 67 तब उन्होंने उस के मुंह पर थूका, और उसे घूंसे मारे, औरों ने थप्पड़ मार के कहा। 68 हे मसीह, हम से भविष्यद्ववाणी करके कह: कि किस ने तुझे मारा? 69 और पतरस बाहर आंगन में बैठा हुआ था: कि एक लौंड़ी ने उसके पास आकर कहा; तू भी यीशु गलीली के साथ था। 70 उस ने सब के साम्हने यह कह कर इन्कार किया और कहा, मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है। 71 जब वह बाहर डेवढ़ी में चला गया, तो दूसरी ने उसे देखकर उन से जो वहां थे कहा; यह भी तो यीशु नासरी के साथ था। 72 उस ने शपथ खाकर फिर इन्कार किया कि मैं उस मनुष्य को नहीं जानता। 73 थोड़ी देर के बाद, जो वहां खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उस से कहा, सचमुच तू भी उन में से एक है; क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है। 74 तब वह धिक्कार देने और शपथ खाने लगा, कि मैं उस मनुष्य को नहीं जानता; और तुरन्त मुर्ग ने बांग दी। 75 तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई की मुर्ग के बांग देने से पहिले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा और वह बाहर जाकर फूट फूट कर रोने लगा॥
अध्याय 27 1 जब भोर हुई, तो सब महायाजकों और लोगों के पुरनियों ने यीशु के मार डालने की सम्मति की। 2 और उन्होंने उसे बान्धा और ले जाकर पीलातुस हाकिम के हाथ में सौंप दिया॥ 3 जब उसके पकड़वाने वाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चान्दी के सिक्के महायाजकों और पुरनियों के पास फेर लाया। 4 और कहा, मैं ने निर्दोषी को घात के लिये पकड़वाकर पाप किया है? उन्होंने कहा, हमें क्या? तू ही जान। 5 तब वह उन सिक्कों मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को फांसी दी। 6 महायाजकों ने उन सिक्कों लेकर कहा, इन्हें भण्डार में रखना उचित नहीं, क्योंकि यह लोहू का दाम है। 7 सो उन्होंने सम्मति करके उन सिक्कों से परदेशियों के गाड़ने के लिये कुम्हार का खेत मोल ले लिया। 8 इस कारण वह खेत आज तक लोहू का खेत कहलाता है। 9 तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हुआ; कि उन्होंने वे तीस सिक्के अर्थात उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्त्राएल की सन्तान में से कितनों ने ठहराया था) ले लिए। 10 और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया॥ 11 जब यीशु हाकिम के साम्हने खड़ा था, तो हाकिम ने उस से पूछा; कि क्या तू यहूदियों का राजा है? यीशु ने उस से कहा, तू आप ही कह रहा है। 12 जब महायाजक और पुरिनए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उस ने कुछ उत्तर नहीं दिया। 13 इस पर पीलातुस ने उस से कहा: क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियां दे रहे हैं? 14 परन्तु उस ने उस को एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहां तक कि हाकिम को बड़ा आश्चर्य हुआ। 15 और हाकिम की यह रीति थी, कि उस पर्व्व में लोगों के लिये किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था। 16 उस समय बरअब्बा नाम उन्हीं में का एक नामी बन्धुआ था। 17 सो जब वे इकट्ठे हुए, तो पीलातुस ने उन से कहा; तुम किस को चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूं? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है? 18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है। 19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उस की पत्नी ने उसे कहला भेजा, कि तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना; क्योंकि मैं ने आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुख उठाया है। 20 महायाजकों और पुरनियों ने लोगों को उभारा, कि वे बरअब्बा को मांग ले, और यीशु को नाश कराएं। 21 हाकिम ने उन से पूछा, कि इन दोनों में से किस को चाहते हो, कि तुम्हारे लिये छोड़ दूं? उन्होंने कहा; बरअब्बा को। 22 पीलातुस ने उन से पूछा; फिर यीशु को जो मसीह कहलाता है, क्या करूं? सब ने उस से कहा, वह क्रूस पर चढ़ाया जाए। 23 हाकिम ने कहा; क्यों उस ने क्या बुराई की है? परन्तु वे और भी चिल्ला, चिल्लाकर कहने लगे, “वह क्रूस पर चढ़ाया जाए”। 24 जब पीलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इस के विपरीत हुल्लड़ होता जाता है, तो उस ने पानी लेकर भीड़ के साम्हने अपने हाथ धोए, और कहा; मैं इस धर्मी के लोहू से निर्दोष हूं; तुम ही जानो। 25 सब लोगों ने उत्तर दिया, कि इस का लोहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो। 26 इस पर उस ने बरअब्बा को उन के लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए॥ 27 तब हाकिम के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चहुं ओर इकट्ठी की। 28 और उसके कपड़े उतारकर उसे किरिमजी बागा पहिनाया। 29 और काटों को मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा; और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्ठे में उड़ाने लगे, कि हे यहूदियों के राजा नमस्कार। 30 और उस पर थूका; और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो वह बागा उस पर से उतारकर फिर उसी के कपड़े उसे पहिनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले॥ 32 बाहर जाते हुए उन्हें शमौन नाम एक कुरेनी मनुष्य मिला, उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। 33 और उस स्थान पर जो गुलगुता नाम की जगह अर्थात खोपड़ी का स्थान कहलाता है पहुंचकर। 34 उन्होंने पित्त मिलाया हुआ दाखरस उसे पीने को दिया, परन्तु उस ने चखकर पीना न चाहा। 35 तब उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया; और चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बांट लिए। 36 और वहां बैठकर उसका पहरा देने लगे। 37 और उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है”। 38 तब उसके साथ दो डाकू एक दाहिने और एक बाएं क्रूसों पर चढ़ाए गए। 39 और आने जाने वाले सिर हिला हिलाकर उस की निन्दा करते थे। 40 और यह कहते थे, कि हे मन्दिर के ढाने वाले और तीन दिन में बनाने वाले, अपने आप को तो बचा; यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ। 41 इसी रीति से महायाजक भी शास्त्रियों और पुरनियों समेत ठट्ठा कर करके कहते थे, इस ने औरों को बचाया, और अपने को नहीं बचा सकता। 42 यह तो “इस्राएल का राजा है”। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। 43 उस ने परमेश्वर का भरोसा रखा है, यदि वह इस को चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इस ने कहा था, कि “मैं परमेश्वर का पुत्र हूं”। 44 इसी प्रकार डाकू भी जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे उस की निन्दा करते थे॥ 45 दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक उस सारे देश में अन्धेरा छाया रहा। 46 तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी अर्थात हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया? 47 जो वहां खड़े थे, उन में से कितनों ने यह सुनकर कहा, वह तो एलिय्याह को पुकारता है। 48 उन में से एक तुरन्त दौड़ा, और स्पंज लेकर सिरके में डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया। 49 औरों ने कहा, रह जाओ, देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं। 50 तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। 51 और देखो मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया: और धरती डोल गई और चटानें तड़क गईं। 52 और कब्रें खुल गईं; और सोए हुए पवित्र लोगों की बहुत लोथें जी उठीं। 53 और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए। 54 तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भुईंडोल और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, सचमुच “यह परमेश्वर का पुत्र था”। 55 वहां बहुत सी स्त्रियां जो गलील से यीशु की सेवा करती हुईं उसके साथ आईं थीं, दूर से यह देख रही थीं। 56 उन में मरियम मगदलीली और याकूब और योसेस की माता मरियम और जब्दी के पुत्रों की माता थीं। 57 जब सांझ हुई तो यूसुफ नाम अरिमतियाह का एक धनी मनुष्य जो आप ही यीशु का चेला था आया: उस ने पीलातुस के पास जाकर यीशु की लोथ मांगी। 58 इस पर पीलातुस ने दे देने की आज्ञा दी। 59 यूसुफ ने लोथ को लेकर उसे उज्ज़वल चादर में लपेटा। 60 और उसे अपनी नई कब्र में रखा, जो उस ने चट्टान में खुदवाई थी, और कब्र के द्वार पर बड़ा पत्थर लुढ़काकर चला गया। 61 और मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहां कब्र के साम्हने बैठी थीं॥ 62 दूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, महायाजकों और फरीसियों ने पीलातुस के पास इकट्ठे होकर कहा। 63 हे महाराज, हमें स्मरण है, कि उस भरमाने वाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूंगा। 64 सो आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएं, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहिले से भी बुरा होगा। 65 पीलातुस ने उन से कहा, तुम्हारे पास पहरूए तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो। 66 सो वे पहरूओं को साथ ले कर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : परमेश्वर ने अपने पुत्र को इस संसार में क्यों भेजा ?
उ 1 : परमेश्वर ने अपने पुत्र को इस संसार मे इसलिया भेजा कि मनुष्यों के बीच मे रहकर पिता कि ईच्छा को पूरा करे। तीन वर्षों तक प्रभु यीशु लोगों के बीच मे रहे और बहुत से आचर्यकर्म किये ,रोगियों को चांगा किया ,मृतकों को जीवित किया ,इस प्रकार परमेश्वर के प्रेम को प्रकट किया।प्र 2 : महायाजक और शासक प्रभु यीशु से क्यों जलते थे ?
उ 2 : महायजक और शासक प्रभु यीशु से इसलिये जलते थे क्योंकि प्रभु यीशु के पीछे एक भीड़ हमेशा रहती थी । वे प्रभु का दोष ढ़ूढ़ने का प्रयत्न करते रहते थे परानटु कोई दोष ना मिला।प्र 3 : प्रभु यीशु को किसने पकड़वाया ? और क्यों ?
उ 3 : प्रभु यीशु को यहूद नामक एक चले ने पकड़वाया । वह लालची और धन का लोभी था।प्र 4 : प्रभु यीशु को पकड़वाने के लिए यहूदा को कितना धन प्राप्त हुआ ?
उ 4 : प्रभु को पकड़वाने के लिये यहूद को चांदी के तीस सिक्के मिले ।प्र 5 : प्रभु यीशु को किस स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया गया ?
उ 5 : प्रभु यीशु मसीह को गुलगुता नामक स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया ।प्र 6 : जब प्रभु क्रूस पर थे, तब दोपहर से लेकर तीसरे पहर तक क्या हुआ ?
उ 6 : जब प्रभु यीशु मसीह क्रूस पर थे तब दोपहर से लकेर तीसरे पहर तक ये बातें हुई : (1) अंधेरा चाय रहा , (2) तीसरे पहर के समय प्रभु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा " हे मेरे परमेश्वर ,हे मेरे परमेश्वर , तूने मूझे क्यों छोड दिया ? अंत मे प्रभु यीशु ने कहा " हे पिया , मै अपनी आत्मा तेरे हाथों मे सौंपता हूँ ।प्र 7 : क्रूस पर से प्रभु यीशु ने जो कुछ कहा, उसमें से कुछ शब्द बताओ ?
उ 7 : कुछ शब्द जो प्रभु यीशु ने क्रूस पर कहे : (1)हे मेरे परमेश्वर ,हे मेरे परमेश्वर , तूने मूझे क्यों छोड दिया ? (2) हे पिया , मै अपनी आत्मा तेरे हाथों मे सौंपता हूँ ।
संगीत
(tune: mikki yishu knne milne di taag) क्रूस का नजारा ना हो धुंधला चित्त लगा के सोचो घटना जरा जी नहीं पीयू यह कटोरा मत भूल जा कि तेरे गुनाहों की सजा ।
कोड़े मार मार घसीटा अपशब्द चीख चीख कर चलाया बड़ा करूँ यत्न खून बहकर खत्म हुई ताकत बोझ तेरा खींच खींचकर यीशु गिरते उठते चढ़ रहा है कलवरी।
अपमानित किया कपड़ा निकालकर मेरी शर्मनाक पापों की सजा छुपे पाप मैंने किए लेकिन खुल्ले आम तू तमाशा बना दिल फट जाने की शर्मिंदगी ।
कैसे जानू प्रभु उस दर्द को हम है नापाक पिता से जुदा होना पड़ा मेरी खातिर पिता ने छोड़ा नरक ज्वाला में आओ रो रो माफी उससे माँग लो सच्ची महोबत को पहचान लो इश्क के बाजार में।