पाठ 3 : मनुष्य का सृष्टि
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सारांश
हम देख चुके हैं कि परमेश्वर ने पृथ्वी और उसमे जो कुछ है उसे कैसे बनाया। आज हम देखेंगे कि परमेश्वर ने पहला पुरुष और स्त्री को कैसे बनाया।परमेश्वर की योजना थी कि अन्त में वो अपने समान किसी को बनाए। वो जो पशु पक्षी और किसी भी सृष्टि से श्रेष्ठ हो। परमेश्वर उसे सारी पृथ्वी का अधिकारी बनाना चाहता था। परमेश्वर चाहता था कि वह आत्मिक हो ताकि परमेश्वर उस से गहरी संगती कर सके। परमेश्वर ने भूमि की धुल से पहले पुरुष का शरीर बनाया। तब परमेश्वर ने उसके नथनों में जीवन का श्वास फुंका और वह जीवित प्राणी बन गया। तब परमेश्वर ने मनुष्य को जीने के लिए एक विषेश स्थान बनाया। उसने अदन में एक बगीचा बनाकर मनुष्य को वहां रखा। उस वाटिका के बीच में जीवन का वृक्ष था,एक और वृक्ष था जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष कहलाता था। परमेश्वर ने पहले मनुष्य आदम से कहा कि वह उस वाटिका के भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को छोड और किसी भी वृक्ष का फल खा सकता है। परमेश्वर ने आदम से कहा, ” यदि तू उसका फल खाए तो निश्चित मरेगा “।परमेश्वर ने हर पशु को नर और नारी करके बनाया। परन्तु आदम अकेला था। परमेश्वर ने देखा कि पुरुष का अकेला रहना अच्छा नहीं है, और उसके लिए विषेश रीति से एक साथी बनाया। परमेश्वर ने ये कार्य कैसे किया? परमेश्वर ने सारे पशुओं को आदम के पास लाया ताकि वह उनके नाम रखे। जैसे वे उसके सामने से गुजरते थे वह उनको नाम देता था। पशुओं के बीच आदम को अपने लिए कोई साथी नहीं मिला। तब परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डालकर उसकी पसली की एक रीढ़ निकाली, और उस जगह को मांस से भर दिया। परमेश्वर ने रीढ़ से स्त्री बनाई और उसे आदम के सामने लाया। उसे देखकर आदम ने कहा, ” ये मेरी हड्डियों मे की हड्डी और मांस का मांस है, इसलिए स्त्री कहलाएगी, क्योंकि वो मनुष्य में से ली गई है।“ (उत्पति 2:23 ) ये सृष्टि का छठवा दिन था। इस तरह पुरुष और स्त्री परमेश्वर की संगती मे आनन्द से रहे।
बाइबल अध्यन
उत्पत्ति 1:26-30 26 फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। 27 तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। 28 और परमेश्वर ने उन को आशीष दी: और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगने वाले सब जन्तुओ पर अधिकार रखो। 29 फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं: 30 और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया।
उत्पत्ति 2:7-25 7 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया। 8 और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक वाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया। 9 और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। 10 और उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहां से आगे बहकर चार धारा में हो गई। 11 पहिली धारा का नाम पीशोन है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहां सोना मिलता है घेरे हुए है। 12 उस देश का सोना चोखा होता है, वहां मोती और सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं। 13 और दूसरी नदी का नाम गीहोन है, यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है। 14 और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है, यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहती है। और चौथी नदी का नाम फरात है। 15 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को ले कर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे, 16 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: 17 पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा॥ 18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उससे मेल खाए। 19 और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखें, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। 20 सो आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके। 21 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकाल कर उसकी सन्ती मांस भर दिया। 22 और यहोवा परमेश्वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। 23 और आदम ने कहा अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है: सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है। 24 इस कारण पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे। 25 और आदम और उसकी पत्नी दोनो नंगे थे, पर लजाते न थे॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1:परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि क्यों की ?
उ 1: परमेश्वर ने अपनी महिमा के लिये मनुष्य की सृष्टि की ।प्र 2: कौन सा दिन था , जब मनुष्य की सृष्टि की ?
उ 2 : परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि छतवें दिन की ।प्र 3 : परमेश्वर ने आदम को कैसे बनाया ?
उ 3: परमेश्वर ने पहले पुरुष को भूमि की मिट्टी से बनाया और उसके नथनों मे "जीवन का श्वास "फूंका और आदम "जीवित प्राणी " बन गया ।प्र 4: परमेश्वर ने हव्वा को कैसे बनाया ?
उ 4: परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद मे डाल दिया और उसकी एक पसुली निकाली और उससे एक स्त्री बना दी ।प्र 5: आदम और हव्वा कहाँ रहते थे ?
उ 5: आदम और हव्वा अदन के बगीचे मे रहते थे ।
संगीत
मसीहा को तू मान ले ओ मेरे साथियों ।
मसीहा ने फूल बनाए (3) तू रंग बिरंगे देख ले ओ मेरे साथिया ।
मेरे मसीहा ने पंछी बनाए (2) तू उढ़ते छुए देख ले ओ मोरे साथिया ।
मेरे मसीहा ने पानी बनाया (4) तू ठण्डा मीठा पीले ओ मोरे साथिया ।
मेरे मसीहा ने तारे बनाए (1) तू टिम टिमाते देख ले ओ मोरे साथिया ।
मेरे मसीहा ने आदम बनाया अद्भुत ईश्वर स्वरूप में ओ मोरे साथिया ।
मेरे मसीहा ने हव्वा बनाई तू उसकी स्तुति करलो ओ मोरे साथिया ।