पाठ 24 : सिंहों के माँद में डेनियल
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सारांश
पिछले सप्ताह हमने तीन जवान पुरुषों के विषय में देखा जिन्होंने सोने की मूरत के सामने दण्डवत करने से इनकार किया और किस तरह परमेश्वर ने आश्चर्यकर्म के द्वारा उन्हें बचाया। उन तीनो जवानों का एक मित्र दानिय्येल था। वह भी एक यहूदी गुलाम था जो जीवित परमेश्वर को प्रेम करता था और उसी की सेवा करता था। उसे भी उन तीनों के समान बाबुल की रीतियों को सिखाया गया था। वह परमेश्वर का जन था जिसे सपनों का अर्थ समझाने का गुण था। उसका सरकार में बहुत उंचा पद था। नबूकदनेस्सर और उसके बेटों के राज्य के पश्चात दारा बाबुल का राजा बना। उसने अपने महान राज्य की देखभाल करने के लिए तीन अधिकारियों को ठहराया। उनमें दानिय्येल सब से बड़ा था। उसे दूसरों से अधिक माना जाता था क्योंकि उसमें उत्तम आत्मा थी। इसलिए बाकि के अधिकारी उससे जलन रखते थे। उन्होंने उसे मार डालने की योजना बनाई। उन्हों ने उसके खिलाफ शिकायत करने का प्रयत्न किया परन्तु उस पर कोई दोष नहीं लगा सके। उन्हे उस में कोई खोट न मिली क्योंकि वह विश्वासयोग्य था और उसके काम में कोई दोष नहीं था। अन्त मे उसके विरोधियों ने परमेश्वर के नियम के संबध मे उस पर आरोप लगाने की साजिश की। सो वे एक साथ होकर राजा के पास जाकर कहने लगे, “हे राजा दारा तू सदा जीवित रह! राजा को एक ऐसा आदेश देना चाहिए कि यदि कोई आनेवाले 30 दिनों तक आप को छोड़ ओर किसी मनुष्य या ईश्वर से प्रार्थना करे तो वह सिंहों की मांद में डाला जाए।” ये अधिपति अच्छी तरह से जानते थे कि दानिय्येल हर रोज तीन बार प्रार्थना किया करता है । राजा उनकी योजना के विषय में अनजान था और उनकी बात मान ली। उसने ऐसा आदेश दिया और उसे लिखवाया ताकि वह बदला न जाए। आदेश निकलने के बाद लोगों ने किसी भी वस्तु के लिए राजा को छोड़ न तो मनुष्य से और न ही अपने देवताओं से कुछ माँगा। दानिय्यल को इस आदेश के विषय में जानकारी मिलने के बाद वह अपनी उपरी कोठरी में गया जिसकी खिडकियां यरुश्लेम की ओर खुलती थी। दिन में तीन बार उसने पहले के समान घुटना टेककर परमेश्वर से प्रार्थना किया और परमेश्वर का धन्यवाद किया। अधिपतियों ने उसे प्रार्थना करते देखकर राजा के पास जाकर कहा, कि दानिय्येल को सिंहों की मांद मे फेंके जाने की आज्ञा दें। यह सुनकर राजा को बहुत दुख हुआ। वह नहीं चाहता था कि दानिय्येल के साथ कोई हानि हो। लेकिन वह अपना बनाया हुआ नियम बदल नहीं सकता था। दानिय्येल सिंहों की मांद में डाला गया। राजा ने दानिय्येल से कहा, “जिस परमेश्वर की तू सेवा करता है वही तेरी रक्षा करे।” एक पत्थर को लाकर सिंहों की मांद पर रखा गया, और राजा ने उसे अपनी ही अंगूठी से मुहर लगाई। उस रात राजा सो नहीं पाया। पौ फटते ही राजा सिंहों की मांद पर गया, और दुख भरे स्वर में पुकार कर कहा, “हे जीवित परमेश्वर के सेवक दानिय्येल, क्या तू जिस परमेश्वर की सेवा करता है उसने तुझे सिंहों से बचाया है?” भीतर से जवाब सुनकर वह चकित हुआ। दानिय्येल ने उससे चिल्लाकर कहा, “हे राजा मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुंह बंद कर दिया ताकि वे मुझे हानि न पहुंचा सके, क्योंकि मै उसकी दृष्टि में निर्दोष पाया गया हूँ, और न ही मैने आप के खिलाफ कोई अपराध किया है।” यह सुनकर राजा आनन्दित हुआ। उसने अपने सेवकों को आज्ञा दी कि दानिय्येल को बाहर निकाला जाए। परमेश्वर पर विश्वास रखने के कारण दानिय्येल कोई हानि नहीं हुई। राजा ने आज्ञा दी कि दानिय्येल के शत्रु जिन्होंने उसके विरुद्ध यह गुप्त योजना बनाई थी उन्हे सिंहों की मांद में डाल दिया जाए। उनके नीचे पहुंचने से पहले ही सिंहों ने उन्हे पकड़कर उनको हडिृडयों समेत चबा डाला। राजा दारा ने आदेश दिया कि उसके सारे राज्य में सर्वदा राज करनेवाले दानिय्येल के परमेश्वर की आराधना की जाए। वह ऐसा परमेश्वर है जो अपने सन्तानों की रक्षा कर सकता है।
बाइबल अध्यन
दानिय्येल 6 1 दारा को यह अच्छा लगा कि अपने राज्य के ऊपर एक सौ बीस ऐसे अधिपति ठहराए, जो पूरे राज्य में अधिकार रखें। 2 और उनके ऊपर उसने तीन अध्यक्ष, जिन में से दानिय्येल एक था, इसलिये ठहराए, कि वे उन अधिपतियों से लेखा लिया करें, और इस रीति राजा की कुछ हानि न होने पाए। 3 जब यह देखा गया कि दानिय्येल में उत्तम आत्मा रहती है, तब उसको उन अध्यक्षों और अधिपतियों से अधिक प्रतिष्ठा मिली; वरन राजा यह भी सोचता था कि उसको सारे राज्य के ऊपर ठहराए। 4 तब अध्यक्ष और अधिपति राजकार्य के विषय में दानिय्येल के विरुद्ध दोष ढूंढ़ने लगे; परन्तु वह विश्वासयोग्य था, और उसके काम में कोई भूल वा दोष न निकला, और वे ऐसा कोई अपराध वा दोष न पा सके। 5 तब वे लोग कहने लगे, हम उस दानिय्येल के परमेश्वर की व्यवस्था को छोड़ और किसी विषय में उसके विरुद्ध कोई दोष न पा सकेंगे॥ 6 तब वे अध्यक्ष और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उस से कहा, हे राजा दारा, तू युगयुग जीवित रहे। 7 राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और गवर्नरों ने भी आपास में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य वा देवता से बिनती करे, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाए। 8 इसलिये अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिस से यह बात मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार अदल-बदल न हो सके। 9 तब दारा राजा ने उस आज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया॥ 10 जब दानिय्येल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताक्षर किया गया है, तब वह अपने घर में गया जिसकी उपरौठी कोठरी की खिड़कियां यरूशलेम के सामने खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के साम्हने घुटने टेक कर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा। 11 तब उन पुरूषों ने उतावली से आकर दानिय्येल को अपने परमेश्वर के सामने बिनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया। 12 सो वे राजा के पास जा कर, उसकी राजआज्ञा के विषय में उस से कहने लगे, हे राजा, क्या तू ने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़ किसी मनुष्य वा देवता से बिनती करेगा, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाएगा? राजा ने उत्तर दिया, हां, मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार यह बात स्थिर है। 13 तब उन्होंने राजा से कहा, यहूदी बंधुओं में से जो दानिय्येल है, उसने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताक्षर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार बिनती किया करता है॥ 14 यह वचन सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्येल के बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसके बचाने का यत्न करता रहा। 15 तब वे पुरूष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, हे राजा, यह जान रख, कि मादियों और फारसियों में यह व्यवस्था है कि जो जो मनाही वा आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती॥ 16 तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्येल लाकर सिंहों की मान्द में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्येल से कहा, तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए! 17 तब एक पत्थर लाकर उस गड़हे के मुंह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी से, और अपने प्रधानों की अंगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने ने पाए। 18 तब राजा अपने महल में चला गया, और उस रात को बिना भोजन पड़ा रहा; और उसके पास सुख विलास की कोई वस्तु नहीं पहुंचाई गई, और उसे नींद भी नहीं आई॥ 19 भोर को पौ फटते ही राजा उठा, और सिंहों के गड़हे की ओर फुर्ती से चला गया। 20 जब राजा गड़हे के निकट आया, तब शोक भरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्येल से कहा, हे दानिय्येल, हे जीवते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है? 21 तब दानिय्येल ने राजा से कहा, हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे! 22 मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुंह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके साम्हने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैं ने कोई भूल नहीं की। 23 तब राजा ने बहुत आनन्दित हो कर, दानिय्येल को गड़हे में से निकालने की आज्ञा दी। सो दानिय्येल गड़हे में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिन्ह न पाया गया, क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था। 24 और राजा ने आज्ञा दी कि जिन पुरूषों ने दानिय्येल की चुगली खाई थी, वे अपने अपने लड़के-बालों और स्त्रियों समेत लाकर सिंहों के गड़हे में डाल दिए जाएं; और वे गड़हे की पेंदी तक भी न पहुंचे कि सिंहों ने उन पर झपट कर सब हड्डियों समेत उन को चबा डाला॥ 25 तब दारा राजा ने सारी पृथ्वी के रहने वाले देश-देश और जाति-जाति के सब लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वालों के पास यह लिखा, तुम्हारा बहुत कुशल हो। 26 मैं यह आज्ञा देता हूं कि जहां जहां मेरे राज्य का अधिकार है, वहां के लोग दानिय्येल के परमेश्वर के सम्मुख कांपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीवता और युगानयुग तक रहने वाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी। 27 जिसने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ाने वाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिन्हों और चमत्कारों का प्रगट करने वाला है। 28 और दानिय्येल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनों के राज्य के दिनों में भाग्यवान् रहा॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : अन्य अधिकारी दानिय्येल से क्यों जलते थे ?
उ 1 : अन्य अधिकारी दानिय्येल से इसलिये जलते थे क्योंकि दानिय्येल मे उत्तम आत्मा रहती थी,सबसे अधिक प्रतिष्ठा मिली और राजा कि दृष्टि मे सर्वोत्तम ठहरा ।प्र 2 : राजाज्ञा के बारे में जानने पर दानिय्येल ने क्या किया ?
उ 2 : राजाज्ञा के बारे मे जानने पर दानिय्येल अपनी रीति के अनुसार दिन मे तीन बार अपने परमेश्वर के सामान्य घुटने टेककर प्रार्थना और धन्यवाद करता रहा ।प्र 3 : दानिय्येल को शेरों की माँद में डालने के पश्चात राजा को कैसा महसूस हुआ ? सुबह उसने क्या किया ?
उ 3 : दानिय्येल को शेरों कि माँद मे डालने के पश्चात राजा उदास हुआ पौ फटते ही राजा उठा और सिंहो के गड़हे दानिय्येल कि ओर फुर्ती से चल गया और दानिय्येल का पता किया । परमेश्वर ने दूत भेजकर सिंहों के मुह को बंद कर दिया था जिससे दानिय्येल को कोई हानी नहीं हुई ।प्र 4 : अंत में उन अफसरों के साथ क्या हुआ ?
उ 4 : अंत मे उन अफसरों को राजा ने आज्ञा दि कि सिंहों के माँद ने डाल दिये जाए और वे गड़हे की पेंदी तक भी न पहुंचे कि सिंहों ने उन पर झपटकर चबा डाला ।संगीत
प्रार्थना न करो, तो करे क्या प्रार्थना के सिवाय, और करे क्या मेरे रूह की धड़कन, है प्रार्थना ना होना विश्वासी, ईश्वर से कभी जुदा।
शेर की माँद में भी, परखा गया फिर आग की भट्टी, में भी देखा गया फरिश्तों का साथ, है कितना मीठा यीशु के संग परीक्षा है, प्रार्थना का मौका ।
दुश्मनों क साजिश, हुई नाकाम
धोखा देने वाले, हुए खुद ही शिकार
करता है उन्हे ऊंचा, ठीक समय पर
जो परमेश्वर का सदा, करते है आदर।