पाठ 18 : शमुएल
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सारांश
आज हम एक लड़के के विषय में सीखेंगे जो उसकी माँ की प्रार्थनाओं के कारण ही जन्मा। ये घटना इस्राएलियों के कनान देश में बसने के कईं वर्षों के बाद की है। एल्काना नाम का एक व्यक्ति था, जिसकी पत्नी इसलिए दुखी थी कि उसकी कोई सन्तान नहीं है। हर वर्ष यह परिवार परमेश्वर की आराधना करने शीलो जाया करते थे। एली उस समय का महायाजक था। एक बार जब हन्ना बहुत दुखी थी, वह परमेश्वर के भवन में गई और उसने प्रार्थना की,“ हे परमेश्वर, यदि तु मुझे एक बेटा दे तो मै उसे जीवन भर तुझे अर्पण करुंगी। ” हन्ना अपने मन में ही प्रार्थना कर रही थी, केवल उसके होंठ हील रहे थे कोई आवाज नहीं आ रही थी। एली महायाजक ने सोचा कि हन्ना ने पी ली है, और उसे ये कहकर चिढ़ाने लगा; अपना नशा उतार। हन्ना ने जवाब में कहा, “नहीं मेरे प्रभु, मैं एक दुखयारी स्त्री हूं, मैंने न तो दाखमधु पिया है और न ही मदिरा। मै तो केवल अपने मन की वेदना प्रभु को सुना रही थी।” परमेश्वर ने उसकी प्राथनाओं को सुन लिया, और उसे एक लड़का हुआ जिसका नाम हन्ना ने शमूएल रखा। शमूएल का अर्थ है, मांगा हुआ! जब बालक का दूध छुड़ाया गया हन्ना ने शमूएल को शिलो ले जाकर उसे परमेश्वर के सामने अर्पण किया । हन्ना ने एली से कहा! “मैंने इस बेटे के लिए प्रार्थना की थी और परमेश्वर ने मेरी सुन ली। सो मैं अब इसे परमेश्वर को लौटा रही हूं, और ये जीवन भर परमेश्वर का ही रहेगा।” इस तरह शमूएल एली के साथ मन्दिर में ही रहा, हर वर्ष जब उसकी माँ परमेश्वर के भवन में आराधना करने आती तो वो अपने बेटे के लिए एक नया बागा लाकर देती थी। क्योंकि हन्ना ने अपने बेटे को परमेश्वर के भवन में सेवा करने के लिए छोड़ दिया, परमेश्वर ने उसे पांच और बच्चे दिए। हम देखते हैं कि हम जो कुछ परमेश्वर को देते हैं उस से कहीं अधिक वह हमें देता है। शमूएल आज्ञाकारी था और परमेश्वर के भवन में अपना काम गम्भीरता और ईमानदारी से किया करता था। उसके विषय में कहा गया है कि, “शमूएल परमेश्वर और मनुष्य दोनों की दृष्टि में बढ़ता गया। ” एक रात जब शमूएल मन्दिर में सोया था उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना। वह तुरन्त दोड़कर एली के पास गया और कहने लगा, “कहीए, मैं यहां हूँ। ” एली ने कहा, नहीं! मैंने तुझे नहीं बुलाया, जाकर लेट जा। ऐसे ही दो बार और हुआ। वास्तव में परमेश्वर उसे बुला रहा था। परमेश्वर ने उसे फिर पुकारा, और शमूएल फिर एली के पास जाकर कहा, कहीए आप ने मुझे क्यों बुलाया ? तब एली ने जाना कि परमेश्वर लड़के को बुला रहा है, और उसने शमूएल से कहा! “जाकर लेट जा, और यदि वह तुझे फिर पुकारे तो कहना, कह प्रभु तेरा दास सुन रहा है।” शमूएल ने एली याजक के कहने के अनुसार किया, और जब उसे फिर पुकारा गया उसने जवाब देकर कहा, “कह प्रभु, तेरा दास सुन रहा है।” तब परमेश्वर ने शमूएल से कहा, कि एली के बेटों की दुष्टता के कारण उस परिवार पर भारी न्याय आनेवाला है। परमेश्वर एली से इसलिए क्रोधित थे कि उसने आपे बेटों को पाप करने से नहीं रोका था। परमेश्वर के कहने के अनुसार एली के दोनो बेटे, होप्नी और पीनहास की युद्ध में मृत्यु हो गई और इस दुखी सन्देश को सुनकर एली अपनी कुर्सी से उलटा गिर पड़ और गर्दन टूटने के कारण वह मर गया। उस समय से परमेश्वर अकसर शमूएल से बातें करता था। शमूएल याजक और परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता बन गया। उसने सारे इस्राएल का न्याय किया।
बाइबल अध्यन
1 शमूएल (अध्याय 1 से 5) 1 एप्रैम के पहाड़ी देश के रामतैम सोपीम नाम नगर का निवासी एल्काना नाम पुरूष था, वह एप्रेमी था, और सूप के पुत्र तोहू का परपोता, एलीहू का पोता, और यरोहाम का पुत्र था। 2 और उसके दो पत्नियां थीं; एक का तो नाम हन्ना और दूसरी का पनिन्ना था। और पनिन्ना के तो बालक हुए, परन्तु हन्ना के कोई बालक न हुआ। 3 वह पुरूष प्रति वर्ष अपने नगर से सेनाओं के यहोवा को दण्डवत करने और मेलबलि चढ़ाने के लिये शीलो में जाता था; और वहां होप्नी और पीनहास नाम एली के दोनों पुत्र रहते थे, जो यहोवा के याजक थे। 4 और जब जब एल्काना मेलबलि चढ़ाता था तब तब वह अपनी पत्नी पनिन्ना को और उसके सब बेटे-बेटियों को दान दिया करता था; 5 परन्तु हन्ना को वह दूना दान दिया करता था, क्योंकि वह हन्ना से प्रीति रखता था; तौभी यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी थी। 6 परन्तु उसकी सौत इस कारण से, कि यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी थी, उसे अत्यन्त चिढ़ाकर कुढ़ाती रहती थीं। 7 और वह तो प्रति वर्ष ऐसा ही करता था; और जब हन्ना यहोवा के भवन को जाती थी तब पनिन्ना उसको चिढ़ाती थी। इसलिये वह रोती और खाना न खाती थी। 8 इसलिये उसके पति एल्काना ने उस से कहा, हे हन्ना, तू क्यों रोती है? और खाना क्यों नहीं खाती? और मेरा मन क्यों उदास है? क्या तेरे लिये मैं दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूं? 9 तब शीलो में खाने और पीने के बाद हन्ना उठी। और यहोवा के मन्दिर के चौखट के एक अलंग के पास एली याजक कुर्सी पर बैठा हुआ था। 10 और यह मन में व्याकुल हो कर यहोवा से प्रार्थना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी। 11 और उसने यह मन्नत मानी, कि हे सेनाओं के यहोवा, यदि तू अपनी दासी के दु:ख पर सचमुच दृष्टि करे, और मेरी सुधि ले, और अपनी दासी को भूल न जाए, और अपनी दासी को पुत्र दे, तो मैं उसे उसके जीवन भर के लिये यहोवा को अर्पण करूंगी, और उसके सिर पर छुरा फिरने न पाएगा। 12 जब वह यहोवा के साम्हने ऐसी प्रार्थना कर रही थी, तब एली उसके मुंह की ओर ताक रहा था। 13 हन्ना मन ही मन कह रही थी; उसके होंठ तो हिलते थे परन्तु उसका शब्द न सुन पड़ता था; इसलिये एली ने समझा कि वह नशे में है। 14 तब एली ने उस से कहा, तू कब तक नशे में रहेगी? अपना नशा उतार। 15 हन्ना ने कहा, नहीं, हे मेरे प्रभु, मैं तो दु:खिया हूं; मैं ने न तो दाखमधु पिया है और न मदिरा, मैं ने अपने मन की बात खोल कर यहोवा से कही है। 16 अपनी दासी को ओछी स्त्री न जान जो कुछ मैं ने अब तक कहा है, वह बहुत ही शोकित होने और चिढ़ाई जाने के कारण कहा है। 17 एली ने कहा, कुशल से चली जा; इस्राएल का परमेश्वर तुझे मन चाहा वर दे। 18 उसे ने कहा, तेरी दासी तेरी दृष्टि में अनुग्रह पाए। तब वह स्त्री चली गई और खाना खाया, और उसका मुंह फिर उदास न रहा। 19 बिहान को वे सवेरे उठ यहोवा को दण्डवत करके रामा में अपने घर लौट गए। और एलकाना अपनी स्त्री हन्ना के पास गया, और यहोवा ने उसकी सुधि ली; 20 तब हन्ना गर्भवती हुई और समय पर उसके एक पुत्र हुआ, और उसका नाम शमूएल रखा, क्योंकि वह कहने लगी, मैं ने यहोवा से मांगकर इसे पाया है। 21 फिर एल्काना अपने पूरे घराने समेत यहोवा के साम्हने प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने और अपनी मन्नत पूरी करने के लिये गया। 22 परन्तु हन्ना अपने पति से यह कहकर घर में रह गई, कि जब बालक का दूध छूट जाएगा तब मैं उसको ले जाऊंगी, कि वह यहोवा को मुंह दिखाए, और वहां सदा बना रहे। 23 उसके पति एलकाना ने उस से कहा, जो तुझे भला लगे वही कर, जब तक तू उसका दूध न छुड़ाए तब तक यहीं ठहरी रह; केवल इतना हो कि यहोवा अपना वचन पूरा करे। इसलिये वह स्त्री वहीं घर पर रह गई और अपने पुत्र के दूध छुटने के समय तक उसको पिलाती रही। 24 जब उसने उसका दूध छुड़ाया तब वह उसको संग ले गई, और तीन बछड़े, और एपा भर आटा, और कुप्पी भर दाखमधु भी ले गई, और उस लड़के को शीलो में यहोवा के भवन में पहुंचा दिया; उस समय वह लड़का ही था। 25 और उन्होंने बछड़ा बलि करके बालक को एली के पास पहुंचा दिया। 26 तब हन्ना ने कहा, हे मेरे प्रभु, तेरे जीवन की शपथ, हे मेरे प्रभु, मैं वही स्त्री हूं जो तेरे पास यहीं खड़ी हो कर यहोवा से प्रार्थना करती थी। 27 यह वही बालक है जिसके लिये मैं ने प्रार्थना की थी; और यहोवा ने मुझे मुंह मांगा वर दिया है। 28 इसी लिये मैं भी उसे यहोवा को अर्पण कर देती हूं; कि यह अपने जीवन भर यहोवा ही का बना रहे। तब उसने वहीं यहोवा को दण्डवत किया॥
अध्याय 2 1 और हन्ना ने प्रार्थना करके कहा, मेरा मन यहोवा के कारण मगन है; मेरा सींग यहोवा के कारण ऊंचा, हुआ है। मेरा मुंह मेरे शत्रुओं के विरुद्ध खुल गया, क्योंकि मैं तेरे किए हुए उद्धार से आनन्दित हूं। 2 यहोवा के तुल्य कोई पवित्र नहीं, क्योंकि तुझ को छोड़ और कोई है ही नहीं; और हमारे परमेश्वर के समान कोई चट्टान नहीं है॥ 3 फूलकर अहंकार की ओर बातें मत करो, और अन्धेर की बातें तुम्हारे मुंह से न निकलें; क्योंकि यहोवा ज्ञानी ईश्वर है, और कामों को तौलने वाला है॥ 4 शूरवीरों के धनुष टूट गए, और ठोकर खाने वालों की कटि में बल का फेंटा कसा गया॥ 5 जो पेट भरते थे उन्हें रोटी के लिये मजदूरी करनी पड़ी, जो भूखे थे वे फिर ऐसे न रहे। वरन जो बांझ थी उसके सात हुए, और अनेक बालकों की माता घुलती जाती है। 6 यहोवा मारता है और जिलाता भी है; वही अधोलोक में उतारता और उस से निकालता भी है॥ 7 यहोवा निर्धन करता है और धनी भी बनाता है, वही नीचा करता और ऊंचा भी करता है। 8 वह कंगाल को धूलि में से उठाता; और दरिद्र को घूरे में से निकाल खड़ा करता है, ताकि उन को अधिपतियों के संग बिठाए, और महिमायुक्त सिंहासन के अधिकारी बनाए। क्योंकि पृथ्वी के खम्भे यहोवा के हैं, और उसने उन पर जगत को धरा है। 9 वह अपने भक्तों के पावों को सम्भाले रहेगा, परन्तु दुष्ट अन्धियारे में चुपचाप पड़े रहेंगे; क्योंकि कोई मनुष्य अपने बल के कारण प्रबल न होगा॥ 10 जो यहोवा से झगड़ते हैं वे चकनाचूर होंगे; वह उनके विरुद्ध आकाश में गरजेगा। यहोवा पृथ्वी की छोर तक न्याय करेगा; और अपने राजा को बल देगा, और अपने अभिषिक्त के सींग को ऊंचा करेगा॥ 11 तब एल्काना रामा को अपने घर चला गया। और वह बालक एली याजक के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करने लगा॥ 12 एली के पुत्र तो लुच्चे थे; उन्होंने यहोवा को न पहिचाना। 13 और याजकों की रीति लोगों के साथ यह थी, कि जब कोई मनुष्य मेलबलि चढ़ाता था तब याजक का सेवक मांस पकाने के समय एक त्रिशूली कांटा हाथ में लिये हुए आकर, 14 उसे कड़ाही, वा हांडी, वा हंडे, वा तसले के भीतर डालता था; और जितना मांस कांटे में लग जाता था उतना याजक आप लेता था। यों ही वे शीलो में सारे इस्राएलियों से किया करते थे जो वहां आते थे। 15 और चर्बी जलाने से पहिले भी याजक का सेवक आकर मेलबलि चढ़ाने वाले से कहता था, कि कबाब के लिये याजक को मांस दे; वह तुझ से पका हुआ नहीं, कच्चा ही मांस लेगा। 16 और जब कोई उस से कहता, कि निश्चय चर्बी अभी जलाई जाएगी, तब जितना तेरा जी चाहे उतना ले लेना, तब वह कहता था, नहीं, अभी दे; नहीं तो मैं छीन लूंगा। 17 इसलिये उन जवानों का पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ; क्योंकि वे मनुष्य यहोवा की भेंट का तिरस्कार करते थे॥ 18 परन्तु शमूएल जो बालक था सनी का एपोद पहिने हुए यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता था। 19 और उसकी माता प्रति वर्ष उसके लिये एक छोटा सा बागा बनाकर जब अपने पति के संग प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने आती थी तब बागे को उसके पास लाया करती थी। 20 और एली ने एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देकर कहा, यहोवा इस अर्पण किए हुए बालक की सन्ती जो उसको अर्पण किया गया है तुझ को इस पत्नी से वंश दे; तब वे अपने यहां चले गए। 21 और यहोवा ने हन्ना की सुधि ली, और वह गर्भवती हुई ओर उसके तीन बेटे और दो बेटियां उत्पन्न हुई। और शमूएल बालक यहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया। 22 और एली तो अति बूढ़ा हो गया था, और उसने सुना कि मेरे पुत्र सारे इस्राएल से कैसा कैसा व्यवहार करते हैं, वरन मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करने वाली स्त्रियों के संग कुकर्म भी करते हैं। 23 तब उसने उन से कहा, तुम ऐसे ऐसे काम क्यों करते हो? मैं तो इन सब लोगों से तुम्हारे कुकर्मों की चर्चा सुना करता हूं। 24 हे मेरे बेटों, ऐसा न करो, क्योंकि जो समाचार मेरे सुनने में आता है वह अच्छा नहीं; तुम तो यहोवा की प्रजा से अपराध कराते हो। 25 यदि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का अपराध करे, तब तो परमेश्वर उसका न्याय करेगा; परन्तु यदि कोई मनुष्य यहोवा के विरुद्ध पाप करे, तो उसके लिये कौन बिनती करेगा? तौभी उन्होंने अपने पिता की बात न मानी; क्योंकि यहोवा की इच्छा उन्हें मार डालने की थी। 26 परन्तु शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनों उस से प्रसन्न रहते थे॥ 27 और परमेश्वर का एक जन एली के पास जा कर उस से कहने लगा, यहोवा यों कहता है, कि जब तेरे मूलपुरूष का घराना मिस्र में फिरौन के घराने के वश में था, तब क्या मैं उस पर निश्चय प्रगट न हुआ था? 28 और क्या मैं ने उसे इस्राएल के सब गोत्रों में से इसलिये चुन नहीं लिया था, कि मेरा याजक हो कर मेरी वेदी के ऊपर चढ़ावे चढ़ाए, और धूप जलाए, और मेरे साम्हने एपोद पहिना करे? और क्या मैं ने तेरे मूलपुरूष के घराने को इस्राएलियों के कुल हव्य न दिए थे? 29 इसलिये मेरे मेलबलि और अन्नबलि जिन को मैं ने अपने धाम में चढ़ाने की आज्ञा दी है, उन्हें तुम लोग क्यों पांव तले रौंदते हो? और तू क्योंअपने पुत्रों का आदर मेरे आदर से अधिक करता है, कि तुम लोग मेरी इस्राएली प्रजा की अच्छी से अच्छी भेंटें खा खाके मोटे हो जाओ? 30 इसलिये इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, कि मैं ने कहा तो था, कि तेरा घराना और तेरे मूलपुरूष का घराना मेरे साम्हने सदैव चला करेगा; परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है, कि यह बात मुझ से दूर हो; क्योंकि जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएंगे। 31 सुन, वे दिन आते हैं, कि मैं तेरा भुजबल और तेरे मूलपुरूष के घराने का भुजबल ऐसा तोड़ डालूंगा, कि तेरे घराने में कोई बूढ़ा होने न पाएगा। 32 इस्राएल का कितना ही कल्याण क्यों न हो, तौभी तुझे मेरे धाम का दु:ख देख पड़ेगा, और तेरे घराने में कोई कभी बूढ़ा न होने पाएगा। 33 मैं तेरे कुल के सब किसी से तो अपनी वेदी की सेवा न छीनूंगा, परन्तु तौभी तेरी आंखें देखती रह जाएंगी, और तेरा मन शोकित होगा, और तेरे घर की बढ़ती सब अपनी पूरी जवानी ही में मर मिटेंगें। 34 और मेरी इस बात का चिन्ह वह विपत्ति होगी जो होप्नी और पीनहास नाम तेरे दोनों पुत्रों पर पड़ेगी; अर्थात वे दोनों के दोनों एक ही दिन मर जाएंगे। 35 और मैं अपने लिये एक विश्वासयोग्य याजक ठहराऊंगा, जो मेरे हृदय और मन की इच्छा के अनुसार किया करेगा, और मैं उसका घर बसाऊंगा और स्थिर करूंगा, और वह मेरे अभिषिक्त के आगे सब दिन चला फिरा करेगा। 36 और ऐसा होगा कि जो कोई तेरे घराने में बचा रहेगा वह उसी के पास जा कर एक छोटे से टुकड़े चान्दी के वा एक रोटी के लिये दण्डवत करके कहेगा, याजक के किसी काम में मुझे लगा, जिस से मुझे एक टुकड़ा रोटी मिले॥
अध्याय 3 1 और वह बालक शमूएल एली के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करता था। और उन दिनों में यहोवा का वचन दुर्लभ था; और दर्शन कम मिलता था। 2 और उस समय ऐसा हुआ कि (एली की आंखे तो धुंघली होने लगी थीं और उसे न सूझ पड़ता था) जब वह अपने स्थान में लेटा हुआ था, 3 और परमेश्वर का दीपक अब तक बुझा नहीं था, और शमूएल यहोवा के मन्दिर में जहाँ परमेश्वर का सन्दूक था लेटा था; 4 तब यहोवा ने शमूएल को पुकारा; और उसने कहा, क्या आज्ञा! 5 तब उसने एली के पास दौड़कर कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। वह बोला, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। तो वह जा कर लेट गया। 6 तब यहोवा ने फिर पुकार के कहा, हे शमूएल! शमूएल उठ कर एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। उसने कहा, हे मेरे बेटे, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। 7 उस समय तक तो शमूएल यहोवा को नहीं पहचानता था, और न तो यहोवा का वचन ही उस पर प्रगट हुआ था। 8 फिर तीसरी बार यहोवा ने शमूएल को पुकारा। और वह उठके एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। तब एली ने समझ लिया कि इस बालक को यहोवा ने पुकारा है। 9 इसलिये एली ने शमूएल से कहा, जा लेट रहे; और यदि वह तुझे फिर पुकारे, तो तू कहना, कि हे यहोवा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है तब शमूएल अपने स्थान पर जा कर लेट गया। 10 तब यहोवा आ खड़ा हुआ, और पहिले की नाईं पुकारा, शमूएल! शमूएल! शमूएल ने कहा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है। 11 यहोवा ने शमूएल से कहा, सुन, मैं इस्राएल में एक काम करने पर हूं, जिससे सब सुनने वालों पर बड़ा सन्नाटा छा जाएगा। 12 उस दिन मैं एली के विरुद्ध वह सब कुछ पूरा करूंगा जो मैं ने उसके घराने के विषय में कहा, उसे आरम्भ से अन्त तक पूरा करूंगा। 13 क्योंकि मैं तो उसको यह कहकर जता चुका हूं, कि मैं उस अधर्म का दण्ड जिसे वह जानता है सदा के लिये उसके घर का न्याय करूंगा, क्योंकि उसके पुत्र आप शापित हुए हैं, और उसने उन्हें नहीं रोका। 14 इस कारण मैं ने एली के घराने के विषय यह शपथ खाई, कि एली के घराने के अधर्म का प्रायश्चित न तो मेलबलि से कभी होगा, और न अन्नबलि से। 15 और शमूएल भोर तक लेटा रहा; तब उसने यहोवा के भवन के किवाड़ों को खोला। और शमूएल एली को उस दर्शन की बातें बताने से डरा। 16 तब एली ने शमूएल को पुकारकर कहा, हे मेरे बेटे, शमूएल! वह बोला, क्या आज्ञा। 17 तब उसने पूछा, वह कौन सी बात है जो यहोवा ने तुझ से कही है? उसे मुझ से न छिपा। जो कुछ उसने तुझ से कहा हो यदि तू उस में से कुछ भी मुझ से छिपाए, तो परमेश्वर तुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 18 तब शमूएल ने उसको रत्ती रत्ती बातें कह सुनाईं, और कुछ भी न छिपा रखा। वह बोला, वह तो यहोवा है; जो कुछ वह भला जाने वही करें। 19 और शमूएल बड़ा होता गया, और यहोवा उसके संग रहा, और उसने उसकी कोई भी बात निष्फल होने नहीं दी। 20 और दान से बेर्शेबा तक के रहने वाले सारे इस्राएलियों ने जान लिया कि शमूएल यहोवा का नबी होने के लिये नियुक्त किया गया है। 21 और यहोवा ने शीलो में फिर दर्शन दिया, क्योंकि यहोवा ने अपने आप को शीलो में शमूएल पर अपने वचन के द्वारा प्रगट किया॥
अध्याय 4 1 और शमूएल का वचन सारे इस्राएल के पास पहुंचा। और इस्राएली पलिश्तियों से युद्ध करने को निकले; और उन्होंने तो एबेनेजेर के आस-पास छावनी डाली, और पलिश्तियों ने अपेक में छावनी डाली। 2 तब पलिश्तियों ने इस्राएल के विरुद्ध पांति बान्धी, और जब घमासान युद्ध होने लगा तब इस्राएली पलिश्तियों से हार गए, और उन्होंने कोई चार हजार इस्राएली सेना के पुरूषों को मैदान ही में मार डाला। 3 और जब वे लोग छावनी में लौट आए, तब इस्राएल के वृद्ध लोग कहने लगे, कि यहोवा ने आज हमें पलिश्तियों से क्यों हरवा दिया है? आओ, हम यहोवा की वाचा का सन्दूक शीलो से मांग ले आएं, कि वह हमारे बीच में आकर हमें शत्रुओं के हाथ से बचाए। 4 तब उन लोगों ने शीलो में भेज कर वहां से करूबों के ऊपर विराजने वाले सेनाओं के यहोवा की वाचा का सन्दूक मंगा लिया; और परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साथ एली के दोनों पुत्र, होप्नी और पिनहास भी वहां थे। 5 जब यहोवा की वाचा का सन्दूक छावनी में पहुंचा, तब सारे इस्राएली इतने बल से ललकार उठे, कि भूमि गूंज उठी। 6 इस ललकार का शब्द सुनकर पलिश्तियों ने पूछा, इब्रियों की छावनी में ऐसी बड़ी ललकार का क्या कारण है? तब उन्होंने जान लिया, कि यहोवा का सन्दूक छावनी में आया है। 7 तब पलिश्ती डरकर कहने लगे, उस छावनी में परमेश्वर आ गया है। फिर उन्होंने कहा, हाय! हम पर ऐसी बात पहिले नहीं हुई थी। 8 हाय! ऐसे महाप्रतापी देवताओं के हाथ से हम को कौन बचाएगा? ये तो वे ही देवता हैं जिन्होंने मिस्रियों पर जंगल में सब प्रकार की विपत्तियां डाली थीं। 9 हे पलिश्तियों, तुम हियाव बान्धो, और पुरूषार्थ जगाओ, कहीं ऐसा न हो कि जैसे इब्री तुम्हारे आधीन हो गए वैसे तुम भी उनके आधीन हो जाओ; पुरूषार्थ करके संग्राम करो। 10 तब पलिश्ती लड़ाई के मैदान में टूट पड़े, और इस्राएली हार कर अपने अपने डेरे को भागने लगे; और ऐसा अत्यन्त संहार हुआ, कि तीस हजार इस्राएली पैदल खेत आए। 11 और परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया; और एली के दोनों पुत्र, होप्नी और पीनहास, भी मारे गए। 12 तब एक बिन्यामीनी मनुष्य ने सेना में से दौड़कर उसी दिन अपने वस्त्र फाड़े और सिर पर मिट्टी डाले हुए शीलो में पहुंचा। 13 वह जब पहुंचा उस समय एली, जिसका मन परमेश्वर के सन्दूक की चिन्ता से थरथरा रहा था, वह मार्ग के किनारे कुर्सी पर बैठा बाट जोह रहा था। और ज्योंही उस मनुष्य ने नगर में पहुंचकर वह समाचार दिया त्योंही सारा नगर चिल्ला उठा। 14 चिल्लाने का शब्द सुनकर एली ने पूछा, ऐसे हुल्लड़ और हाहाकार मचने का क्या कारण है? और उस मनुष्य ने जट जा कर एली को पूरा हाल सुनाया। 15 एली तो अट्ठानवे वर्ष का था, और उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई थीं, और उसे कुछ सूझता न था। 16 उस मनुष्य ने एली से कहा, मैं वही हूं जो सेना में से आया हूं; और मैं सेना से आज ही भाग आया। वह बोला, हे मेरे बेटे, क्या समाचार है? 17 उस समाचार देने वाले ने उत्तर दिया, कि इस्राएली पलिश्तियों के साम्हने से भाग गए हैं, और लोगों का बड़ा भयानक संहार भी हुआ है, और तेरे दोनों पुत्र होप्नी और पीनहास भी मारे गए, और परमेश्वर का सन्दूक भी छीन लिया गया है। 18 ज्योंही उसने परमेश्वर के सन्दूक का नाम लिया त्योंही एली फाटक के पास कुर्सी पर से पछाड़ खाकर गिर पड़ा; और बूढ़े और भारी होने के कारण उसकी गर्दन टूट गई, और वह मर गया। उसने तो इस्राएलियों का न्याय चालीस वर्ष तक किया था। 19 उसकी बहू पीनहास की स्त्री गर्भवती थी, और उसका समय समीप था। और जब उसने परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने, और अपने ससुर और पति के मरने का समाचार सुना, तब उसको जच्चा का दर्द उठा, और वह दुहर गई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 20 उसके मरते मरते उन स्त्रियों ने जो उसके आस पास खड़ी थीं उस से कहा, मत डर, क्योंकि तेरे पुत्र उत्पन्न हुआ है। परन्तु उसने कुछ उत्तर न दिया, और न कुछ ध्यान दिया। 21 और परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने और अपने ससुर और पति के कारण उसने यह कहकर उस बालक का नाम ईकाबोद रखा, कि इस्राएल में से महिमा उठ गई! 22 फिर उसने कहा, इस्राएल में से महिमा उठ गई है, क्योंकि परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया है॥
अध्याय 5 1 और पलिश्तियों ने परमेश्वर का सन्दूक एबनेज़ेर से उठा कर अशदोद में पहुंचा दिया; 2 फिर पलिश्तियों ने परमेश्वर के सन्दूक को उठा कर दागोन के मन्दिर में पहुंचाकर दागोन के पास धर दिया। 3 बिहान को अशदोदियों ने तड़के उठ कर क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मूंह भूमि पर गिरा पड़ा है। तब उन्होंने दागोन को उठा कर उसी के स्थान पर फिर खड़ा किया। 4 फिर बिहान को जब वे तड़के उठे, तब क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मुंह भूमि पर गिरा पड़ा है; और दागोन का सिर और दोनों हथेलियां डेवढ़ी पर कटी हुई पड़ी हैं; निदान दागोन का केवल धड़ समूचा रह गया। 5 इस कारण आज के दिन तक भी दागोन के पुजारी और जितने दागोन के मन्दिर में जाते हैं, वे अशदोद में दागोन की डेवढ़ी पर पांव नहीं धरते॥ 6 तब यहोवा का हाथ अशदोदियों के ऊपर भारी पड़ा, और वह उन्हें नाश करने लगा; और उसने अशदोद और उसके आस पास के लोगों के गिलटियां निकालीं। 7 यह हाल देखकर अशदोद के लोगों ने कहा, इस्राएल के देवता का सन्दूक हमारे मध्य रहने नहीं पाएगा; क्योंकि उसका हाथ हम पर और हमारे देवता दागोन पर कठोरता के साथ पड़ा है। 8 तब उन्होंने पलिश्तियों के सब सरदारों को बुलवा भेजा, और उन से पूछा, हम इस्राएल के देवता के सन्दूक से क्या करें? वे बोले, इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घूमाकर गत में पहुंचाया जाए। तो उन्होंने इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घुमाकर गत में पहुंचा दिया। 9 जब वे उसको घुमाकर वहां पहुंचे, तो यूं हुआ कि यहोवा का हाथ उस नगर के विरुद्ध ऐसा उठा कि उस में अत्यन्त हलचल मच गई; ओर उसने छोटे से बड़े तब उस नगर के सब लोगों को मारा, और उनके गिलटियां निकलने लगीं। 10 तब उन्होंने परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन को भेजा और ज्योंही परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन में पहुंचा त्योंही एक्रोनी यह कहकर चिल्लाने लगे, कि इस्राएल के देवता का सन्दूक घुमाकर हमारे पास इसलिये पहुंचाया गया है, कि हम और हमारे लोगों को मरवा डाले। 11 तब उन्होंने पलिश्तियों के सब सरदारों को इकट्ठा किया, और उन से कहा, इस्राएल के देवता के सन्दूक को निकाल दो, कि वह अपने स्थान पर लौट जाए, और हम को और हमारे लोगों को मार डालने न पाए। उस समस्त नगर में तो मृत्यु के भय की हलचल मच रही थी, और परमेश्वर का हाथ वहां बहुत भारी पड़ा था। 12 और जो मनुष्य न मरे वे भी गिलटियों के मारे पड़े रहे; और नगर की चिल्लाहट आकाश तक पहुंची॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : शमूएल के माता और पिता के क्या नाम थे ?
उ 1 : शामूएल के माता का नाम हन्ना था और पिता का नाम एल्काना था।प्र 2 : हन्ना क्यों दुखी थी ? और उसने क्या किया ?
उ 2 : हन्ना इसलिया दुखी थी क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी । उसने रोते हुए प्रार्थना की कि यदि परमेश्वर उसे एक पुत्र दंगे तो वह उसे जीवंब भर के लिये यहोवा को अर्पण करेगी ।प्र 3 : परमेश्वर ने हन्ना की प्रार्थना का उत्तर कैसे दिया ?
उ 3 : परमेश्वर ने उसी वर्ष उसे एक पुत्र दिया ।प्र 4 : 'शमूएल' का क्या अर्थ है ?
उ 4 : शामूएल का अर्थ है ईश्वर का सुना हुआ ।प्र 5 : हन्ना ने शमूएल को किसके पास छोड़ा ?
उ 5 : हन्ना ने शामूएल को एली महायजक के पास छोड़ा ।प्र 6 : एली के परिवार के विषय में परमेश्वर ने शमूएल से क्या कहा ?
उ 6 : एली के परिवार के विषय मे परमेश्वर ने शामूएल से यह कहा कि एली के पुत्रों की दुष्टता के कारण परमेश्वर उसके परिवार पर दण्ड भेजेगा ।प्र 7 : बाद में शमूएल क्या बना ?
उ 7 : शामूएल परमेश्वर का भविष्यद्धक्ता और याजक बना ।
संगीत
हैलो ,,,हैलो ,,,,प्रभु यीशु हमे आपसे बात करना आप कितने अच्छे है आप कितने सच्चे है मेरी प्रार्थना सुनते है उत्तर भी देते हमेशा
शमूएल हे शमूएल मुझे तुमसे बात करना दास तेरा सुन रहा है प्रभु जी आज्ञा दे चाहे कितनी मुश्किल हो आज्ञा तेरी पूरी करूंगा ।