पाठ 14 : जलती झड़ी
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सारांश
चालीस वर्ष की आयु तक मूसा राजा के महल में रहा। उसने मिस्र देश की विद्या और ज्ञान को प्राप्त किया परन्तु उनकी मूरतें या देवताओं की उपासना कभी नहीं की। वह इस्राएल के जीवित परमेश्वर पर विश्वास करता था, और परमेश्वर को न जानने वालों के साथ आरामदायक जीवन बिताने से अच्छा अपने लोगों की सहायता करके परमेश्वर की आशिषों को पाना उत्तम जानता था। एक दिन उसने देखा कि एक मिस्री किसी यहूदी को मार रहा है। उसने सोचा कि कोई देख नहीं रहा है। उसने उस मिस्री को मार डाला और उसकी लोथ को बालू में दफना दिया। अगले दिन उसने दो इब्रियों को लड़ते देखा, और दोषी से पूछा, “तुम अपने साथी इस्राएली को क्यों मार रहे हो?” उस व्यक्ति ने कहा! “तुम्हें हमारा न्याय करने को किसने ठहराया है? क्या तुम उस मिस्री के समान मुझे भी मार दोगे।” तब मूसा डर गया और सोचने लगा कि मैंने जो किया है सब को पता चल गया होगा। जब फिरौन ने ये बात सुनी उसने मूसा को मार डालना चाहा, परन्तु मूसा वहां से भागकर मिद्यान को चला गया। वहां वह परमेश्वर की आराधना करनेवाले एक याजक के साथ रहा। उसने मूसा का ब्याह अपनी बेटी से करवाया, और मूसा अपने ससुर की भेड़ बकरियों को चराया करता था। कई वर्षां के बाद मिस्र का राजा मर गया और उसकी गद्दी पर एक नया फिरौन बैठा। मूसा चालीस वर्षों तक मिद्यान में रहा। तब होरेब पर्वत पर परमेश्वर ने मूसा से बातें की। एक दिन मूसा ने देखा कि एक झाड़ी में आग लगी है। परन्तु झाड़ी जल नहीं रही है। जब मूसा उस झाड़ी के करीब गया तो उसने एक आवाज सुनी। उस झाड़ी मे से परमेश्वर उस से बात कर रहा था। परमेश्वर ने कहा! “करीब मत आ, तू पवित्र भूमि पर खड़ा है, अपनी जूतियां उतार दे। मै तेरे पिता, इब्राहिम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर हूं।” मूसा डर गया और परमेश्वर की उपस्थिति के प्रकाश के तेज से अपना मुंह छिपाया। प्रभु ने कहा, “मैने मिस्र में अपने लोगों के कष्ट को देखा है। मैंने उनकी दुहाई को भी सुना है जो वे अपने सतानेवालों के कारण करते हैं, और मुझे उनकी चिन्ता है। अब मै तुझे फिरौन के पास भेजता हूं ताकि तू इस्राएल के सन्तान को मिस्र से निकाल लाए। ” यह सुनकर मूसा चकित हुआ, वह मिस्र जाने से डरता था। उसने कहा! मैं ऐसा नहीं कर सकता, मुझ पर तो इस्राएली विश्वास नहीं करेंगे । वे पूछेंगे कि तुम्हे किसने भेजा है? परमेश्वर ने उस से कहा, “तू जाकर उन से कह, कि उनके पुरखाओं के परमेश्वर ने तुझे भेजा है। प्राचीनों से कहना कि मैने तुझे दर्शन देकर कहा है कि मैं उन्हें मिस्र से निकालकर ऐसी भूमि में बसाउंगा जहां दूध और मधू बहता है। वे तेरी बातों को मानेंगे, और प्राचीनों को लेकर तुझे मिस्र के राजा के पास जाना है। फिरौन से कहना कि इस्राएलियों के परमेश्वर ने हमसे बातें की है, कृप्या हमे मरुभूमि में जाकर परमेश्वर के सामने बलि चढ़ाकर आराधना करने दो । मैं जानता हूं कि फिरौन तुम्हारी बात नहीं मानेगा, ताकि मैं उसे सजा दूं और वह तुम्हें भेज देगा।” परमेश्वर ने मूसा को दो चिन्ह दिए ताकि वो इस्राएलियों और फिरौन को दिखा सके कि परमेश्वर उसके साथ है। पहले तो परमेश्वर ने मूसा से कहा कि उसके हाथ की लाठी जमीन पर फेंक दे, और जब उसने लाठी फेंक दी तो वह सांप बन गई। तब परमेश्वर ने उसे कहा, कि सांप को पूंछ से पकड़ ले। जब मूसा ने वैसा किया तो सांप फिर लाठी बन गया। दूसरे चिन्ह के लिए परमेश्वर ने मूसा से कहा कि अपना हाथ छाती पर रखकर निकाल, और जब उस ने ऐसा किया तो उसका हाथ कोढ़ से श्वेत हो गया। तब परमेश्वर ने उसे फिर अपना हाथ छाती पर रखने को कहा, और जब उसने बाहर निकाला तो वह ठीक हो गया। फिर परमेश्वर ने कहा कि “यदि ये दो चिन्हों को देखकर भी वे विश्वास न करे तो नदी का पानी लेकर भूमि पर डाल देना और वह लहू बन जाएगा।” तब भी मूसा ने परमेश्वर से बिनती की, कि “मै ठीक तरह से बोल नहीं सकता इसलिए और किसी को भेज । ” इस कारण परमेश्वर का क्रोध मूसा पर भड़क उठा, परन्तु परमेश्वर ने मूसा के लिए बातें करने हेतु मूसा के भाई हारुन को ठहराया। परमेश्वर ने मूसा से कहा कि “मैं तेरे और हारुन के मुँह के साथ रहूँगा और तुम्हें क्या कहना है सिखाउंगा।”
बाइबल अध्यन
निर्गमन 2:11-4:15 11 उन दिनों में ऐसा हुआ कि जब मूसा जवान हुआ, और बाहर अपने भाई बन्धुओं के पास जा कर उनके दु:खों पर दृष्टि करने लगा; तब उसने देखा, कि कोई मिस्री जन मेरे एक इब्री भाई को मार रहा है। 12 जब उसने इधर उधर देखा कि कोई नहीं है, तब उस मिस्री को मार डाला और बालू में छिपा दिया॥ 13 फिर दूसरे दिन बाहर जा कर उसने देखा कि दो इब्री पुरूष आपस में मारपीट कर रहे हैं; उसने अपराधी से कहा, तू अपने भाई को क्यों मारता है? 14 उसने कहा, किस ने तुझे हम लोगों पर हाकिम और न्यायी ठहराया? जिस भांति तू ने मिस्री को घात किया क्या उसी भांति तू मुझे भी घात करना चाहता है? तब मूसा यह सोचकर डर गया, कि निश्चय वह बात खुल गई है। 15 जब फिरौन ने यह बात सुनी तब मूसा को घात करने की युक्ति की। तब मूसा फिरौन के साम्हने से भागा, और मिद्यान देश में जा कर रहने लगा; और वह वहां एक कुएं के पास बैठ गया। 16 मिद्यान के याजक की सात बेटियां थी; और वे वहां आकर जल भरने लगीं, कि कठौतों में भरके अपने पिता की भेड़बकरियों को पिलाएं। 17 तब चरवाहे आकर उन को हटाने लगे; इस पर मूसा ने खड़ा हो कर उनकी सहायता की, और भेड़-बकरियों को पानी पिलाया। 18 जब वे अपने पिता रूएल के पास फिर आई, तब उसने उन से पूछा, क्या कारण है कि आज तुम ऐसी फुर्ती से आई हो? 19 उन्होंने कहा, एक मिस्री पुरूष ने हम को चरवाहों के हाथ से छुड़ाया, और हमारे लिये बहुत जल भरके भेड़-बकरियों को पिलाया। 20 तब उसने अपनी बेटियों से कहा, वह पुरूष कहां है? तुम उसको क्योंछोड़ आई हो? उसको बुला ले आओ कि वह भोजन करे। 21 और मूसा उस पुरूष के साथ रहने को प्रसन्न हुआ; उसने उसे अपनी बेटी सिप्पोरा को ब्याह दिया। 22 और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, तब मूसा ने यह कहकर, कि मैं अन्य देश में परदेशी हूं, उसका नाम गेर्शोम रखा॥ 23 बहुत दिनों के बीतने पर मिस्र का राजा मर गया। और इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस ले कर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुंची। 24 और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर अपनी वाचा को, जो उसने इब्राहीम, और इसहाक, और याकूब के साथ बान्धी थी, स्मरण किया। 25 और परमेश्वर ने इस्राएलियों पर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया॥
अध्याय 3 1 मूसा अपके ससुर यित्रो नाम मिद्यान के याजक की भेड़-बकरियोंको चराता या; और वह उन्हें जंगल की परली ओर होरेब नाम परमेश्वर के पर्वत के पास ले गया। 2 और परमेश्वर के दूत ने एक कटीली फाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उस ने दृष्टि उठाकर देखा कि फाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। 3 तब मूसा ने सोचा, कि मैं उधर फिरके इस बड़े अचम्भे को देखूंगा, कि वह फाड़ी क्योंनहीं जल जाती। 4 जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्वर ने फाड़ी के बीच से उसको पुकारा, कि हे मूसा, हे मूसा। मूसा ने कहा, क्या आज्ञा। 5 उस ने कहा इधर पास मत आ, और अपके पांवोंसे जूतियोंको उतार दे, क्योंकि जिस स्यान पर तू खड़ा है वह पवित्र भूमि है। 6 फिर उस ने कहा, मैं तेरे पिता का परमेश्वर, और इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं। तब मूसा ने जो परमेश्वर की ओर निहारने से डरता या अपना मुंह ढ़ाप लिया। 7 फिर यहोवा ने कहा, मैं ने अपक्की प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दु:ख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्र्म करानेवालोंके कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है ; 8 इसलिथे अब मैं उतर आया हूं कि उन्हें मिस्रियोंके वश से छुड़ाऊं, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, अर्यात् कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी लोगोंके स्यान में पहुंचाऊं। 9 सो अब सुन, इस्राएलियोंकी चिल्लाहट मुझे सुनाई पक्की है, और मिस्रियोंका उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है, 10 इसलिथे आ, मैं तुझे फिरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए। 11 तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, मै कौन हूं जो फिरौन के पास जाऊं, और इस्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले आऊं ? 12 उस ने कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूं, तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि जब तू उन लोगोंको मिस्र से निकाल चुके तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्वर की उपासना करोगे। 13 मूसा ने परमेश्वर से कहा, जब मैं इस्राएलियोंके पास जाकर उन से यह कहूं, कि तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझ से पूछें, कि उसका क्या नाम है? तब मैं उनको क्या बताऊं? 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूं सो हूं। फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूं है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। 15 फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, कि तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर, अर्यात् इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर, यहोवा उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा। 16 इसलिथे अब जाकर इस्राएली पुरनियोंको इकट्ठा कर, और उन से कह, कि तुम्हारे पितर इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे दर्शन देकर यह कहा है, कि मैं ने तुम पर और तुम से जो बर्ताव मिस्र में किया जाता है उस पर भी चित लगाया है; 17 और मैं ने ठान लिया है कि तुम को मिस्र के दुखोंमें से निकालकर कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी हिब्बी, और यबूसी लोगोंके देश में ले चलूंगा, जो ऐसा देश है कि जिस में दूध और मधु की धारा बहती है। 18 तब वे तेरी मानेंगे; और तू इस्राएली पुरनियोंको संग लेकर मिस्र के राजा के पास जाकर उस से योंकहना, कि इब्रियोंके परमेश्वर, यहोवा से हम लोगोंकी भेंट हुई है; इसलिथे अब हम को तीन दिन के मार्ग पर जंगल में जाने दे, कि अपके परमेश्वर यहोवा को बलिदान चढ़ाएं। 19 मैं जानता हूं कि मिस्र का राजा तुम को जाने न देगा वरन बड़े बल से दबाए जाने पर भी जाने न देगा। 20 इसलिथे मैं हाथ बढ़ाकर उन सब आश्चर्यकर्मोंसे जो मिस्र के बीच करूंगा उस देश को मारूंगा; और उसके पश्चात् वह तुम को जाने देगा। 21 तब मैं मिस्रियोंसे अपक्की इस प्रजा पर अनुग्रह करवाऊंगा; और जब तुम निकलोगे तब छूछे हाथ न निकलोगे। 22 वरन तुम्हारी एक एक स्त्री अपक्की अपक्की पड़ोसिन, और अपके अपके घर की पाहुनी से सोने चांदी के गहने, और वस्त्र मांग लेगी, और तुम उन्हें अपके बेटोंऔर बेटियोंको पहिराना; इस प्रकार तुम मिस्रियोंको लूटोगे।।
अध्याय 4:1-15 1 तब मूसा ने उतर दिया, कि वे मेरी प्रतीति न करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन कहेंगे, कि यहोवा ने तुझ को दर्शन नहीं दिया। 2 यहोवा ने उससे कहा, तेरे हाथ में वह क्या है? वह बोला, लाठी। 3 उसने कहा, उसे भूमि पर डाल दे; जब उसने उसे भूमि पर डाला तब वह सर्प बन गई, और मूसा उसके साम्हने से भागा। 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, हाथ बढ़ाकर उसकी पूंछ पकड़ ले कि वे लोग प्रतीति करें कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर अर्थात इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने तुझ को दर्शन दिया है। 5 तब उसने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ा तब वह उसके हाथ में फिर लाठी बन गई। 6 फिर यहोवा ने उससे यह भी कहा, कि अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप। सो उसने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; फिर जब उसे निकाला तब क्या देखा, कि उसका हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत हो गया है। 7 तब उसने कहा, अपना हाथ छाती पर फिर रखकर ढांप। और उसने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; और जब उसने उसको छाती पर से निकाला तब क्या देखता है, कि वह फिर सारी देह के समान हो गया। 8 तब यहोवा ने कहा, यदि वे तेरी बात की प्रतीति न करें, और पहिले चिन्ह को न मानें, तो दूसरे चिन्ह की प्रतीति करेंगे। 9 और यदि वे इन दोनों चिन्होंकी प्रतीति न करें और तेरी बात को न मानें, तब तू नील नदी से कुछ जल ले कर सूखी भूमि पर डालना; और जो जल तू नदी से निकालेगा वह सूखी भूमि पर लोहू बन जायेगा। 10 मूसा ने यहोवा से कहा, हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा; मैं तो मुंह और जीभ का भद्दा हूं। 11 यहोवा ने उससे कहा, मनुष्य का मुंह किस ने बनाया है? और मनुष्य को गूंगा, वा बहिरा, वा देखने वाला, वा अन्धा, मुझ यहोवा को छोड़ कौन बनाता है? 12 अब जा, मैं तेरे मुख के संग हो कर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊंगा। 13 उसने कहा, हे मेरे प्रभु, जिस को तू चाहे उसी के हाथ से भेज। 14 तब यहोवा का कोप मूसा पर भड़का और उसने कहा, क्या तेरा भाई लेवीय हारून नहीं है? मुझे तो निश्चय है कि वह बोलने में निपुण है, और वह तेरी भेंट के लिये निकला भी आता है, और तुझे देखकर मन में आनन्दित होगा। 15 इसलिये तू उसे ये बातें सिखाना; और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग हो कर जो कुछ तुम्हें करना होगा वह तुम को सिखलाता जाऊंगा।
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : मूसा के सामने चुनाव के कौन से विकल्प थे ? उसने क्या चुना ?
उ 1 : मूसा के सामने चुनाव के दो विकल्प थे। (1)परमेश्वर को न जानने वाले लोगों के साथ आराम के जीवन का आनंद । (2)अपने जाति भाईयों की सहायता करना और परमेश्वरसे आशीष प्राप्त करना । मूसा ने दूसरा विकल्प चुना ।प्र 2 : होरेब पर्वत पर उसने कौन सी अद्भुत बात देखी ?
उ 2 : होरेब पर्वत पर मूसा ने यह अद्भुत बात देखी कि एक झाडी मे आग की लौ उठी है पर झाडी भस्म नहीं होती ।प्र 3 : मूसा के लिए परमेश्वर का संदेश क्या था ?
उ 3 : परमेश्वर ने मूसा को यह संदेश दिया कि परमेश्वर अपनी प्रजा के लोग जो मिश्र मे है उनके दुख को देखा है और उनकी चिल्लाहट जो परिश्रम कराने वालों के कारण होती है उसको भी मेने सुना है । उनकी पीड़ा पर परमेश्वर ने चित लगाया है और अब परमेश्वर मूसा को फिरौन के भजकर अपनी प्रजा इस्राएल को मिश्र से निकाल लायेगा ।प्र 4 : कौन से दो चिह्न परमेश्वर ने मूसा को दिए, ताकि लोग विश्वास करें कि उसे परमेश्वर ने भेजा है ?
उ 4 : परमेश्वर ने मूसा को दो चिन्ह दिये थे जिससे लोग विश्वास करेंगे कि उसे परमेश्वर ने भेजा है। (1) जब मूसा अपनी लाठी को जमीन पर फेंक देगा तब वह सर्प बन जायगा और जब दुबारा उसे पूंछ से पकड़ेगा तो लाठी बन जायेगी । (2) जब मूसा अपने हाथ को छाती पर रख के ढ़ापेगा और उसको निकलेगा तो वह हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत होगा और जब दुबारा मूसा अपना हाथ छाती पर रख कर ढ़ापेगा तब उसका हाथ पहला जैसा हो जायेगा ।प्र 5 : परमेश्वर का वायदा क्या था ?
उ 5 : परमेश्वर का वायदा यह था कि अपनी प्रजा को मिश्र देश से निकाल कर एक एसे देश मे पहुंचायेगा जहां दूध और मधु की धारा बहती है ।
संगीत
जलती झाड़ी की ओर देखो (3) जो न भस्म हो पाक है जगह, जूते उतारो (3) झाड़ी कहती सुनो मैं हूँ खुदा, अब्राहम का, मैं हूँ खुदा,इसहाक का मैं हूँ खुदा,याकूब का भी झाड़ी में खुदा ने कहा ।