पाठ 12 : मिस्र का शासक यूसुफ

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सारांश

फिरौन के राजमहल में प्रधान पीलानेहारे को उसका स्थान फिर मिलने पर वह यूसुफ को भूल गया। उसकी और से यूसुफ के लिए कोई सहायता नहीं आई। परन्तु परमेश्वर ने यूसुफ को स्मरण किया और उसके लिए एक अद्धभुत छुटकारे का कार्य किया। दो वर्षां के बाद मिस्र के राजा फिरौन ने एक रात सपना देखा। अपने स्वप्न में वह एक नदी के पास खड़ा था। नदी में से सात सुन्दर और मोटी गायें निकली। और कछार की घांस चरने लगी। फिर उसने और सात गायों को नदी से निकलती देखा, जो कुरूप और दुर्बल थी और उन गायों के निकट नदी के तट पर जा खडी हुईं तब सात दुर्बल गायों ने उन सात मोटी गायों को खा लिया। तौभी वे पहले के समान ही दुर्बल रही। तब फिरौन ने उठकर जाना कि वह स्वप्न देख रहा है । तब वह फिर सोया और उसने और एक स्वप्न देखा। इस बार उसने देखा कि एक डंटी में से सात मोटी और अच्छी बालें निकली, उनके पीछे सात पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकली। तब मुरझाई हुई बालों ने अच्छी बालों को निगल लिया। फिर फिरौन जागा। सुबह राजा व्याकुल था। उसने देश के सारे ज्ञानी और ज्योतिषियों को बुलाकर उन्हें अपना सपना सुनाया, परन्तु सपनों का अर्थ कोई न समझा सका। तब प्रधान पीलानेहारे ने यूसुफ को याद किया। उसने फिरौन से कहा, “आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है! दो वर्ष पहले जब मैं बन्दीगृह में था, मुझे और एक अन्य व्यक्ति को एक ही रात में सपना आया। एक इब्रानी युवक ने हमारे सपनों का अर्थ बताया, और जैसे उसने कहा था वैसा ही हुआ।” तुरन्त फिरौन ने यूसुफ को बुलवाया। सेवकों ने उसे फुर्ति करके बन्दीगृह से लाया। उसने बाल बनवाए और कपड़े बदलकर राजा के सामने खड़ा हुआ। फिरौन ने कहा, “मैने सुना है कि तू सपनों को समझकर उनका अर्थ बता सकता है” तब उसने अपने सपने यूसुफ को सुनाए। यूसुफ ने कहा, “मै नहीं वरन परमेश्वर फिरौन को सपनों का अर्थ बताएगा।” ध्यान दें कि यूसुफ ने किस तरह परमेश्वर को सारी महिमा दी। परमेश्वर ने यूसुफ को सपनों का अर्थ बताया और यूसुफ ने कहा, “दोनो सपनों का एक ही अर्थ है। परमेश्वर क्या करनेवाला है उसने फिरौन को दिखा दिया है। सात मोटी गायें, और सात अच्छी बालें उपज के बहुतायत के सात वर्ष है, सात पतली गायें और सात मुरझाई हुई बालें आकाल के सात वर्ष है। अगले सात वर्ष बहुत अच्छी उपज और कटनी के होगें, उसके पश्चात सात वर्ष आकाल के होगें। आकाल इतना भयंकर होगा कि बहुतायत के वर्षा को भूला देंगे। एक ही संकट के दो सपनों का अर्थ है कि परमेश्वर ऐसा जल्द ही करेगा।” तब यूसुफ ने फिरौन को सलाह दी कि वह किसी होनहार और बुद्धिमान व्यक्ति को उपज का देखरेख करने का ज़िम्मा दे। “उसे बहुतायत के वर्षों के अनाज को बटोरने दे और फिरौन के अधिकार में उस अनाज को नगरों में जमा किया जाए, ताकि आनेवाले आकाल के समय के लिए उसे रखा जाए” फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को यह सलह अच्छी लगी। फिरौन ने कहा, “जब कि परमेश्वर ने ये सारी बातें तुझे बताई है, तुझ से अच्छा और कोई नहीं जो इस काम को कर सके। तू मेरे घर और राज्य पर अधिकारी होगा, और जो तू कहे मेरे लोग मानेंगे। ” फिरौन ने अपनी उंगली की अंगूठी निकालकर यूसुफ को पहना दी, उसने उसे मलमल के वस्त्र पहनाए और उसके गले में सोने की माला पहनाई। उसने यूसुफ को अपने दूसरे रथ में सवार कराया, और लोग उसके आगे ये कहते चले कि “घुटने टेक कर दण्डवत करो।” फिरौन ने यूसुफ को मिस्र देश का प्रधान मंत्री ठहराया। जैसा यूसुफ ने कहा था वैसा ही हुआ। पहले सात वर्षों में बहुत अधिक उपज हुई और यूसुफ ने बड़े बड़े गोदाम बनवाए और उनमें सब प्रकार की भोजन वस्तुएं जमा करके रखने लगा। जब आकाल के सात वर्ष आए यूसुफ ने लोगों को अन्न बेचा। दूसरे देश के लोग भी मिस्र से अनाज मोल लेने आए। यूसुफ ने उन सब को अन्न बेचकर फिरौन का धन ओर बढ़ाया। यूसुफ का जीवन प्रभु यीशु का प्रतीक है। जिस तरह उसे उसके भाइयों ने घृणा करके परदेशियों के हाथ बेच दिया, यीशु मसीह को उसके अपनों ने तिरस्कार करके बेच दिया। आज जितने प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं वे उसके राज्य के भागीदार होंगे। आज की कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर अपने लोगों को उनके अनेक कष्टों के बावजूद हमेशा याद रखते हैं। यूसुफ ने परमेश्वर की सेवा बन्दीगृह में होते हुए भी ईमानदारी से की, और परमेश्वर ने उसे प्रतिफल दिया।

बाइबल अध्यन

उत्पत्ति 41 1 पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है। 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकल कर कछार की घास चरने लगीं। 3 और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई। 4 तब ये कुरूप और दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गईं। तब फिरौन जाग उठा। 5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं। 6 और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था। 8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पण्डितों को बुलवा भेजा; और उन को अपने स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा। 9 तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: 10 जब फिरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद करा के जल्लादों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था; 11 तब हम दोनों ने, एक ही रात में, अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा; 12 और वहां हमारे साथ एक इब्री जवान था, जो जल्लादों के प्रधान का दास था; सो हम ने उसको बताया, और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया। 13 और जैसा जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया। 14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फिरौन के साम्हने आया। 15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बताने वाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है। 16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, मैं तो कुछ नहीं जानता: परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा। 17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मैं ने अपने स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं 18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकल कर कछार की घास चरने लगी। 19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मैं ने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं। 20 और इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया। 21 और जब वे उन को खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उन को खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाईं जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। 22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं। 23 फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 24 और इन पतली बालोंने उन सात अच्छी अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियों को बताया, पर इस का समझानेहारा कोई नहीं मिला। 25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उसने फिरौन को जताया है। 26 वे सात अच्छी अच्छी गायें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है। 27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गायें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरझाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे। 28 यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उसने फिरौन को दिखाया है। 29 सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। 30 उनके पश्चात सात वर्ष अकाल के आयेंगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जायेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा। 31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा। 32 और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा। 33 इसलिये अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। 34 फिरौन यह करे, कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे। 35 और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजन वस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिये फिरौन के वश में करके उसकी रक्षा करें। 36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए। 37 यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियों को अच्छी लगी। 38 सो फिरौन ने अपने कर्मचारियोंसे कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है? 39 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं; 40 इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा। 41 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिकारी ठहरा देता हूं 42 तब फिरौन ने अपने हाथ से अंगूठी निकाल के यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढिय़ा मलमल के वस्त्र पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी; 43 और उसको अपने दूसरे रथ पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उसने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया। 44 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा। 45 और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा। 46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का था। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा। 47 सुकाल के सातों वर्षोंमें भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही। 48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया, और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। 49 सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गईं। 50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे। 51 और यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है। 52 और दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है। 53 और मिस्र देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए। 54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशों में अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था। 55 जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी: और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो। 56 सो जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोल के मिस्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा। 57 सो सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था।

प्रश्न-उत्तर

प्र 1 : फिरौन का पहला स्वप्न क्या था ?उ 1 : फिरौन का पहला सपना यह था कि वह नील नदी के किनारे पर खडा है और उस नदी मे से सात सुन्दर और मोटी मोटी गाय निकलकर घास चरने लगी और उनके पीछे सात कुरूप ओर दुर्बल गाय नदी से निकली । वह सात कुरूप ओर दुर्बल गायों ने सात सुन्दर ओर मोती गायों को खा लिया ।
प्र 2 : फिरौन का दूसरा स्वप्न क्या था ?उ 2 : फिरौन का दूसरा स्वप्न था कि डंठी मे से सात मोटी -मोटी और अच्छी बाले निकली और उसके बाद सात पतली और मुरझाई बाले निकली । इन पतली और मुरझाई बालों ने मोंटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया ।
प्र 3 : फिरौन को स्वप्नों का अर्थ किसने बताया ?उ 3 : यूसुफ ने ।
प्र 4 : स्वप्नों का क्या अर्थ था ?उ 4 : दोनों स्वप्नों का अर्थ एक ही था । सात मोंटी गाय और सात अच्छी बाले बहुतायत के सात वर्ष हैं और सात दुर्बल गाय और सात मुरझाई हुई बाले अकाल के सात वर्ष हैं । फिरौन ने यह स्वप्न दो बार देखा इसका भेद यही है कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है और परमेश्वर इसे शीग्र पूरी करेगा ।
प्र 5 : यूसुफ को क्या प्रतिफल प्राप्त हुआ ?उ 5 : यूसुफ को प्राप्त प्रतिफल : यूसुफ को राजा फिरौन ने सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया।

संगीत

ईमानदार था गुलामी में भी और ईश्वर की नजर में भी सलाखों के पीछे भी उलझनों के बीच में भी।

को : आशा भरा एक सपना हो ईश्वरीय शान का जीवन के हर संघर्ष में रहो स्वर्ग मीरास की धुन में।

प्रभु दो अनुग्रह कि सहता रहूँ अमीरी गरीबी में वफादार रहूँ मुश्किलों में भी मैं सिद्ध बनू यूसुफ के समान भलाई ही करूँ।

Faithful among the slaves Faultless before the lord Forgotten in the jail During fiercest strom Dreaming like a king knowing the plans of king of kings In your spiritual warfare Dream the things of above not earthly The grace to be humble during power The faithfulness in the kings store house The compassion to the poor unneedy Let me be like joseph found Faultless in the house of lord.