पाठ 10 : यूसुफ और उसके भाई
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सारांश
आज हम यूसुफ के विषय में सीखेंगे और देखेंगे कि किस तरह उसने अपने भाईयों के द्वारा दुख उठाया । याकूब के बारह बेटे थे, और यूसुफ ग्याहरवा था। उसके बुढ़ापे का बेटा होने के कारण याकूब उस से अधिक प्रेम करता था। सतरह वर्ष का होते होते यूसुफ अपने भाईयों के साथ जाने लगा, जो चरवाहे थे । घर लौटने पर वह अपने भाईयों की बुराइयां को पिता से कहता था। इस कारण उसके भाई उस से घृणा करते थे। एक दिन याकूब ने यूसुफ के लिए एक बहुरंगी वस्त्र लाया। इस कारण उसके भाईयों को जलन हुई। एक दिन यूसुफ ने सपना देखा। उसने अपने भाईयों को बताया। उसने अपने भाईयों को कहा! “जब हम खेत में पूलें बांध रहे थे, तो क्या देखता हूं कि मेरा पूला उठकर खड़ा हो गया, और तुम्हारे पूलों ने उठकर मेरे पूले को दण्डवत किया।” यह सुनकर उन्होंने उस से और भी बैर किया और कहने लगे, “क्या तुम सोचते हो कि तुम हम पर राज करोगे? ” कुछ दिनों बाद यूसुफ ने उन से कहा! “मै ने सपने में देखा कि, सूर्य चांद और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत कर रहे है।” याकूब समझ गया कि उसका अर्थ क्या है, माता पिता और उसके भाई, इसलिए उसने यूसुफ को डांटकर कहा! क्या तेरी मां और मैं और तेरे भाई तुझे दण्डवत करेगें । परमेश्वर ने भविष्य में होनेवाली बातों का संकेत देने के लिए ये सपने दिखाए थे। उसके भाई उस से जलन रखते थे, और यूसुफ सपनों को पूरी तरह से समझ तो नहीं रहा था फिर भी इन बातों को मन में रखे हुए था। एक दिन जब यूसुफ के भाई शेकेम में थे याकूब ने उनके पास यूसुफ को यह कहकर भेजा, “जाकर देख कि तेरे भाई और भेड़ बकरियां कैसी है, और उनका समाचार ले आ।” यूसुफ के शेकेम पहुँचने तक वो दोतान को चले गए थे। यूसुफ उनके पीछे गया और उन्हे ढूँढ निकाला। उसे आते देखकर उसके भाईयों ने उसकी हत्या करने की साजिश की। परन्तु सब से बड़े भाई रुबेन ने ऐसा होने न दिया। उसकी सलाह के अनुसार उन्होंने यूसुफ के बहुरंगी वस्त्र को ले लिया और उसे सूखे कुएं में फ़ेंक दिया। जब कुछ व्यापारी जो मिस्र की ओर ऊंट पर जा रहे थे, भाईयों ने यूसुफ को कुएं में से निकालकर उसे बीस सिक्को में बेच दिया। स्मरण करो कि हमारे प्रभु यीशु को भी उसके चेलों में से एक ने बेचा था। वे व्यापारी मिद्यानी थे जिन्हों ने यूसुफ को मिस्र देश में ले जाकर उसे फिरोन के सैनिकों के प्रमुख पोतीपर को बेच दिया। यूसुफ के भाईयों ने उस रंगीन वस्त्र को लेकर उसे एक मेम्ने के लहू में डुबोया। उन्हों ने उस वस्त्र को याकूब के पास भेजा। याकूब ने उसे पहचानकर सोचा कि यूसुफ को किसी जंगली जानवर ने मार डाला है। वह कईं दिनों तक यूसुफ के लिए शोक करता रहा और शान्त होने से इनकार करता रहा।
बाइबल अध्यन
उत्पत्ति 37:1-36 1 याकूब तो कनान देश में रहता था, जहां उसका पिता परदेशी हो कर रहा था। 2 और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है: कि यूसुफ सतरह वर्ष का हो कर भाइयों के संग भेड़-बकरियों को चराता था; और वह लड़का अपने पिता की पत्नी बिल्हा, और जिल्पा के पुत्रों के संग रहा करता था: और उनकी बुराईयों का समाचार अपने पिता के पास पहुंचाया करता था: 3 और इस्राएल अपने सब पुत्रों से बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता था, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र था: और उसने उसके लिये रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया। 4 सो जब उसके भाईयों ने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयों से अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उससे बैर करने लगे और उसके साथ ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे। 5 और यूसुफ ने एक स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका वर्णन किया: तब वे उससे और भी द्वेष करने लगे। 6 और उसने उन से कहा, जो स्वप्न मैं ने देखा है, सो सुनो: 7 हम लोग खेत में पूले बान्ध रहे हैं, और क्या देखता हूं कि मेरा पूला उठ कर सीधा खड़ा हो गया; तब तुम्हारे पूलों ने मेरे पूले को चारों तरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत किया। 8 तब उसके भाइयों ने उससे कहा, क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा? वा सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा? सो वे उसके स्वप्नों और उसकी बातों के कारण उससे और भी अधिक बैर करने लगे। 9 फिर उसने एक और स्वप्न देखा, और अपने भाइयों से उसका भी यों वर्णन किया, कि सुनो, मैं ने एक और स्वप्न देखा है, कि सूर्य और चन्द्रमा, और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत कर रहे हैं। 10 यह स्वप्न उसने अपने पिता, और भाइयों से वर्णन किया: तब उसके पिता ने उसको दपट के कहा, यह कैसा स्वप्न है जो तू ने देखा है? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जा कर तेरे आगे भूमि पर गिरके दण्डवत करेंगे? 11 उसके भाई तो उससे डाह करते थे; पर उसके पिता ने उसके उस वचन को स्मरण रखा। 12 और उसके भाई अपने पिता की भेड़-बकरियों को चराने के लिये शकेम को गए। 13 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, तेरे भाई तो शकेम ही में भेड़-बकरी चरा रहें होंगे, सो जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूं। उसने उससे कहा जो आज्ञा मैं हाजिर हूं। 14 उसने उससे कहा, जा, अपने भाइयों और भेड़-बकरियों का हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ। सो उसने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शकेम में आया। 15 और किसी मनुष्य ने उसको मैदान में इधर उधर भटकते हुए पाकर उससे पूछा, तू क्या ढूंढता है? 16 उसने कहा, मैं तो अपने भाइयों को ढूंढता हूं: कृपा कर मुझे बता, कि वे भेड़-बकरियों को कहां चरा रहे हैं? 17 उस मनुष्य ने कहा, वे तो यहां से चले गए हैं: और मैं ने उन को यह कहते सुना, कि आओ, हम दोतान को चलें। सो यूसुफ अपने भाइयों के पास चला, और उन्हें दोतान में पाया। 18 और ज्योंही उन्होंने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहिले ही उसे मार डालने की युक्ति की। 19 और वे आपस में कहने लगे, देखो, वह स्वप्न देखनेहारा आ रहा है। 20 सो आओ, हम उसको घात करके किसी गड़हे में डाल दें, और यह कह देंगे, कि कोई दुष्ट पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या फल होगा। 21 यह सुनके रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने की मनसा से कहा, हम उसको प्राण से तो न मारें। 22 फिर रूबेन ने उन से कहा, लोहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड़हे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ। वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुंचाना चाहता था। 23 सो ऐसा हुआ, कि जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुंचा तब उन्हों ने उसका रंगबिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहिने हुए था, उतार लिया। 24 और यूसुफ को उठा कर गड़हे में डाल दिया: वह गड़हा तो सूखा था और उस में कुछ जल न था। 25 तब वे रोटी खाने को बैठ गए: और आंखे उठा कर क्या देखा, कि इश्माएलियों का एक दल ऊंटो पर सुगन्धद्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है। 26 तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, अपने भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा? 27 आओ, हम उसे इश्माएलियों के हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाएं, क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी हड्डी और मांस है, सो उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुंचे: 28 सो यूसुफ के भाइयों ने उसको उस गड़हे में से खींच के बाहर निकाला, और इश्माएलियों के हाथ चांदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया: और वे यूसुफ को मिस्र में ले गए। 29 और रूबेन ने गड़हे पर लौटकर क्या देखा, कि यूसुफ गड़हे में नहीं हैं; सो उसने अपने वस्त्र फाड़े। 30 और अपने भाइयों के पास लौटकर कहने लगा, कि लड़का तो नहीं हैं; अब मैं किधर जाऊं? 31 और तब उन्होंने यूसुफ का अंगरखा लिया, और एक बकरे को मार के उसके लोहू में उसे डुबा दिया। 32 और उन्होंने उस रंग बिरंगे अंगरखे को अपने पिता के पास भेज कर कहला दिया; कि यह हम को मिला है, सो देखकर पहिचान ले, कि यह तेरे पुत्र का अंगरखा है कि नहीं। 33 उसने उसको पहिचान लिया, और कहा, हां यह मेरे ही पुत्र का अंगरखा है; किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है; नि:सन्देह यूसुफ फाड़ डाला गया है। 34 तब याकूब ने अपने वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपने पुत्र के लिये बहुत दिनों तक विलाप करता रहा। 35 और उसके सब बेटे-बेटियों ने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, मैं तो विलाप करता हुआ अपने पुत्र के पास अधोलोक में उतर जाऊंगा। इस प्रकार उसका पिता उसके लिये रोता ही रहा। 36 और मिद्यानियों ने यूसुफ को मिस्र में ले जा कर पोतीपर नाम, फिरौन के एक हाकिम, और जल्लादों के प्रधान, के हाथ बेच डाला॥
प्रश्न-उत्तर
प्र 1 : याकूब के कितने पुत्र थे ?
उ 1 : याकूब के बारह पुत्र थे ।प्र 2 : यूसुफ के भाई उससे क्यों घृणा करते थे ?
उ 2 : यूसुफ के भाई उससे इसलिये घृणा करते थे क्योंकि वह अपने भाईयों की बुराइयों का समाचार अपने पिता को देता था और एक बार याकूब ने यूसुफ को एक रंगबिरंगा अंगरखा दिया ।प्र 3 : यूसुफ ने कौन से स्वप्न देखे ?
उ 3 : यूसुफ ने दो स्वप्न देखे। (1): यूसुफ ने देखा कि वह अपने भाइयों के साथ खेत मे था और सभी अपने -अपने पूले बांध रहे थे,तब यूसुफ का पूला खड़ा हो गया और उसके भाईयों के पूलों ने यूसुफ के पूले को चारों तरफ से घेर लिया और दंडवतः किया । (2) यूसुफ ने सपना देखा कि सूर्य , चाँद और ग्यारह तारे आकर यूसुफ को दंडवतः किया ।प्र 4 : याकूब ने यूसुफ को कहाँ भेजा ?
उ 4 : याकूब ने यूसुफ को शकेम मे भेजा ।प्र 5 : वहाँ उसके साथ क्या हुआ ?
उ 5 : यूसुफ जब शकेम पहुँचा तब तक उसके भाई दोतान पहुँच गये थे । जब उन्होंने अपनी ओर यूसुफ को आते देखा तब उन्होंने उसे मार डालने की योजना बनाई । सबसे बड़ा भाई रूबेन ने मारने की अनुमति नहीं दी तब उसका रंगबिरंगा अंगरखा उतार दिया और एक सूखे कुए मे डाल दिया।रूबेन उसे बचना चाहता था लेकिन रूबेन जब उनके सामने से हट गया उन्होंने उसे मिस्र जाने वाले व्यापारियों के हाथ बीस चांदी के टुकड़ों मे बेच दिया । व्यापारियों ने मिश्र मे पोतिफर के हाथ बेच दिया जो फिरोन (राजा ) का एक अधिकारी था । यूसुफ के भाईयों ने एक बकरे को मार कर अंगरखे को उसके खून मे डुबा दिया और अपने पिता के पास भेज दिया जिसे देखकर उसके पिता ने पहचान लिया ।
संगीत
भला करने वालों से ,दुनिया चिढ़ती है बुरा करने वालों की ,मित्र हो जाती है युसुफ पूछने गया था ,भाइयों का हाल उनसे मिला धोखा ,रखा न ख्याल ।
यीशु ही सारे जगत की ज्योति है बराबर सबको प्रकाश देती है पाप से नहीं यीशु से करो प्यार ठोकर न खाओगे ,मिलेगा उद्धार ।